Thursday 12 May 2022

विद्या का मंदिर- भाग 1: क्या थी सतीश की सोच

“अरे रे, रोकना,” रमा ने एक बार जब फिर राहुल से कार रुकवाई, तो राहुल के मुंह से निकल पड़ा, “ओह नो.”

सामने उस के वही चिरपरिचित हनुमानजी का मंदिर था जिस को वह रोज ही यहां से गुजरते हुए देखता था. पहले यह छोटा सा मंदिर था. देखते ही देखते मंदिर ने भव्य रूप ले लिया था. बढ़ते ट्रैफिक और रोज जाम जैसी स्थिति पैदा होने के मद्देनजर सड़कों को चौड़ी करने के लिए कई अवैध रूप से कब्जा की हुई इमारतों, छोटीमोटी दुकानों को हटा दिया गया. लेकिन इस मंदिर को छूने की हिम्मत किसी को न हुई. सड़क चौड़ी हुई, ट्रैफिक प्लान भी बदला. लेकिन यह मंदिर अपनी जगह पर जस का तस रहा. हां, इस का स्वरूप बदलता रहा. मंदिर में एक के बाद एक भगवान की प्रतिमाएं स्थापित होती रहीं और मंदिर का आकार छोटे से बड़ा होता गया. एक विशालकाय हनुमानजी की प्रतिमा मंदिर के बाहर ऊपर स्थापित कर दी गई. बाईं ओर से एक सड़क जाती और दाईं ओर से दूसरी. रास्ता वन-वे हो गया. वैसे तो मंदिर का मुख्यद्वार सड़क के दाईं ओर खुलता था, लेकिन हनुमानजी की प्रतिमा सड़क को 2 भागों में विभाजित करने वाले स्थान पर मंदिर के ऊपर स्थापित की हुई थी. सिंदूरी रंग की विशालकाय मूर्ति बरबस ही लोगों का ध्यान अपनी ओर खींच लेती थी.

राहुल को जो बात सब से ज्यादा अखरती थी, वह थी, वे 2 दुकानें.  मंदिर के बाईं ओर शराब की दुकान और दाईं ओर चिकन कौर्नर.  रोज शाम को इन 2 दुकानों में  जितनी भीड़ उमड़ती थी, उतनी भीड़ तो मंदिर में भी नहीं उमड़ती. बजरंगबलीजी भले ही बल में अव्वल हों, मगर लोकतंत्र के पैमाने में कहीं टिक नहीं पाते थे. सामने बड़ी सी हनुमानजी की प्रतिमा और उन के दोनों तरफ ये दुकानें एक अजीब सा विरोधाभास उत्पन्न करती थीं. शाम को मंदिर में होती आरती और शंखनाद की ध्वनि इन 2 दुकानों में भीड़ से उत्पन्न कोलाहल में दब के रह जाती. यह दृश्य राहुल को बहुत ही हास्यास्पद लगता था. हनुमानजी को क्या देखने को मिल रहा…यह विचार आते ही राहुल को हंसी आ जाती. कभीकभी तो मन करता राहुल का कि हनुमानजी की मूर्ति को कपड़े से ढक दे या इन 2 दुकानों को यहां से हटा दे, इन में दूसरा विकल्प बिलकुल भी संभव न था.

उसी हनुमानजी के मंदिर के आगे रमा ने गाड़ी रुकवा दी.

“मुझे, मंदिर में चलने के लिए मत कहना,” राहुल ने अड़ते हुए कहा.

“भगवान हनुमानजी से भी आशीर्वाद ले लो,” हनुमानजी की प्रतिमा को हाथ जोड़ते हुए रमा बोली.

“मम्मी, आप यह चौथे मंदिर में जा रही हो,” झुंझलाते हुए राहुल ने गाड़ी से उतरते हुए कहा.

राहुल की बातों को अनसुना कर रमा मंदिर में भगवानजी के आगे नतमस्तक हो गई. राहुल उखड़ा सा खड़ा रहा.

पापा की कार राहुल को मुश्किल से ही छूने को मिलती थी, कारण, वे अभी भी राहुल को बच्चा समझते थे और थोड़ा डरते भी थे उस की ड्राइविंग से. नौकरी पर लगते ही राहुल ने सब से पहले अपने लिए कार खरीदी. मम्मीपापा मना ही करते रह गए. लाल रंग की नई चमचमाती कार घर में खड़ी हो गई.

दूसरे दिन राहुल का अपनी नई कार चलाने की सारी खुशी और जोश उस समय ठंडा हो गया, जब उस ने बैग में अपना लंचबौक्स रख, कार की चाबी हवा में घुमाते हुए औफिस जाने के लिए निकलने ही वाला था कि रमा ने रोक दिया.

“पहले गाड़ी देवी मां के मंदिर जाएगी. वहां देवी की पूजा और आशीर्वाद के बाद ही कार चलाएगा.”

“मम्मी, मैं इन सब में विश्वास नहीं करता,” अपनी नई गाड़ी चलाने को उतावला राहुल लापरवाही से बोला.

“मुझे कुछ नहीं सुनना,” रमा ने अपना अंतिम फैसला सुनाया, तो राहुल खीझ गया.

मुंह फुला कर राहुल चाबी वहीं टेबल पर जोर से पटक और बिना कुछ बोले तेजी से औफिस के लिए निकल गया.

“क्यों बच्चे का मूड खराब करती हो,” अखबार पढ़ते हुए सतीश चंद्र बोले.

“आप तो चुप ही रहिए. आप को तो पूजापाठ में कोई आस्था है नहीं, राहुल को भी वैसे ही बना रहे हो,” कार की चाबी को कस कर पकड़ती हुई रमा बोली.

इतवार को सुबहसुबह रमा ने राहुल को उठा दिया.

“मम्मी, चाय तो पिला दो पहले,” उनींदा सा राहुल बोला.

“कोई चायवाय नहीं. मंदिर में पूजा के बाद ही चायनाश्ता करेंगे. जल्दी उठ और नहा कर तैयार हो जाओ, नहीं तो मंदिर में फिर बहुत भीड़ हो जाएगी.”

अधखुली आंखों से राहुल ने देखा- सामने मम्मी तैयार खड़ी थी.

“अभी सोने दो, रोज तो जल्दी उठना पड़ता है,” बोल कर राहुल ने बिस्तर पर दूसरी ओर करवट ले कर लिहाफ अपने ऊपर तक खींच कर फिर सो गया.

“कल औफिस कार से जाना है कि नहीं?” राहुल के ऊपर से लिहाफ खींचती हुई रमा ने ब्रह्मास्त्र छोड़ा.

राहुल को पता था कि बिना देवी के मंदिर जाए मां कार चलाने नहीं देगी. कार चलाने की लालसा ने राहुल के अंदर एकाएक ऊर्जा का संचार कर दिया. एक झटके से उठा और जल्दी से नहा कर तैयार होने लगा.

शहर से 14 किलोमीटर दूर मुख्य सड़क पर बना यह मंदिर अपनी प्राकृतिक छटा से यात्रियों का मन बरबस ही मोह लेता  है. एक ओर विभिन्न किस्म के हरेभरे पेड़ों से आच्छादित पहाड़ियां और दूसरी ओर थोड़ी सी समतल भूमि पर निर्मित देवी मां का मंदिर और पीछे विस्तृत क्षेत्र में फैली बरसाती नदी, जिस में उथला पानी का स्तर. नदी के स्वच्छ, निर्मल जल में छोटेबड़े,  सफेदस्लेटी रंग के गोलाकार पत्थर स्पष्ट दृष्टिगोचर होते हैं, कभीकभार हिरन व हाथी भी नदी के आसपास विचरित करते दिख जाते हैं. दूर सड़क से यह विहंगम दृश्य बड़ा रमणीक लगता है.

इतवार होने की वजह से सच में मंदिर में बहुत भीड़ थी. मंदिर की मान्यता है कि नया वाहन लेने पर देवी से पूजा करवाने पर वाहन और चालक दोनों सुरक्षित रहते हैं. किस्मकिस्म की चमचमाती ब्रैंडेड नई दोपहिया और चौपहिया वाहनों की असंख्य गाड़ियां मंदिर के बाहर खचाखच खड़ी हुई थीं. ऐसा लग रहा, मानो शहर के सारे शोरूमों की गाड़ियां यहीं एकसाथ इकट्ठी हो गई हों. बड़ी मुश्किल से पार्किंग की जगह मिली. भिखारियों की अच्छीखासी तादाद मंदिर के बाहर मंड़रा रही थी.

The post विद्या का मंदिर- भाग 1: क्या थी सतीश की सोच appeared first on Sarita Magazine.



from कहानी – Sarita Magazine https://www.sarita.in/story/social-story-in-hindi-vidya-ka-mandir-part-1

“अरे रे, रोकना,” रमा ने एक बार जब फिर राहुल से कार रुकवाई, तो राहुल के मुंह से निकल पड़ा, “ओह नो.”

सामने उस के वही चिरपरिचित हनुमानजी का मंदिर था जिस को वह रोज ही यहां से गुजरते हुए देखता था. पहले यह छोटा सा मंदिर था. देखते ही देखते मंदिर ने भव्य रूप ले लिया था. बढ़ते ट्रैफिक और रोज जाम जैसी स्थिति पैदा होने के मद्देनजर सड़कों को चौड़ी करने के लिए कई अवैध रूप से कब्जा की हुई इमारतों, छोटीमोटी दुकानों को हटा दिया गया. लेकिन इस मंदिर को छूने की हिम्मत किसी को न हुई. सड़क चौड़ी हुई, ट्रैफिक प्लान भी बदला. लेकिन यह मंदिर अपनी जगह पर जस का तस रहा. हां, इस का स्वरूप बदलता रहा. मंदिर में एक के बाद एक भगवान की प्रतिमाएं स्थापित होती रहीं और मंदिर का आकार छोटे से बड़ा होता गया. एक विशालकाय हनुमानजी की प्रतिमा मंदिर के बाहर ऊपर स्थापित कर दी गई. बाईं ओर से एक सड़क जाती और दाईं ओर से दूसरी. रास्ता वन-वे हो गया. वैसे तो मंदिर का मुख्यद्वार सड़क के दाईं ओर खुलता था, लेकिन हनुमानजी की प्रतिमा सड़क को 2 भागों में विभाजित करने वाले स्थान पर मंदिर के ऊपर स्थापित की हुई थी. सिंदूरी रंग की विशालकाय मूर्ति बरबस ही लोगों का ध्यान अपनी ओर खींच लेती थी.

राहुल को जो बात सब से ज्यादा अखरती थी, वह थी, वे 2 दुकानें.  मंदिर के बाईं ओर शराब की दुकान और दाईं ओर चिकन कौर्नर.  रोज शाम को इन 2 दुकानों में  जितनी भीड़ उमड़ती थी, उतनी भीड़ तो मंदिर में भी नहीं उमड़ती. बजरंगबलीजी भले ही बल में अव्वल हों, मगर लोकतंत्र के पैमाने में कहीं टिक नहीं पाते थे. सामने बड़ी सी हनुमानजी की प्रतिमा और उन के दोनों तरफ ये दुकानें एक अजीब सा विरोधाभास उत्पन्न करती थीं. शाम को मंदिर में होती आरती और शंखनाद की ध्वनि इन 2 दुकानों में भीड़ से उत्पन्न कोलाहल में दब के रह जाती. यह दृश्य राहुल को बहुत ही हास्यास्पद लगता था. हनुमानजी को क्या देखने को मिल रहा…यह विचार आते ही राहुल को हंसी आ जाती. कभीकभी तो मन करता राहुल का कि हनुमानजी की मूर्ति को कपड़े से ढक दे या इन 2 दुकानों को यहां से हटा दे, इन में दूसरा विकल्प बिलकुल भी संभव न था.

उसी हनुमानजी के मंदिर के आगे रमा ने गाड़ी रुकवा दी.

“मुझे, मंदिर में चलने के लिए मत कहना,” राहुल ने अड़ते हुए कहा.

“भगवान हनुमानजी से भी आशीर्वाद ले लो,” हनुमानजी की प्रतिमा को हाथ जोड़ते हुए रमा बोली.

“मम्मी, आप यह चौथे मंदिर में जा रही हो,” झुंझलाते हुए राहुल ने गाड़ी से उतरते हुए कहा.

राहुल की बातों को अनसुना कर रमा मंदिर में भगवानजी के आगे नतमस्तक हो गई. राहुल उखड़ा सा खड़ा रहा.

पापा की कार राहुल को मुश्किल से ही छूने को मिलती थी, कारण, वे अभी भी राहुल को बच्चा समझते थे और थोड़ा डरते भी थे उस की ड्राइविंग से. नौकरी पर लगते ही राहुल ने सब से पहले अपने लिए कार खरीदी. मम्मीपापा मना ही करते रह गए. लाल रंग की नई चमचमाती कार घर में खड़ी हो गई.

दूसरे दिन राहुल का अपनी नई कार चलाने की सारी खुशी और जोश उस समय ठंडा हो गया, जब उस ने बैग में अपना लंचबौक्स रख, कार की चाबी हवा में घुमाते हुए औफिस जाने के लिए निकलने ही वाला था कि रमा ने रोक दिया.

“पहले गाड़ी देवी मां के मंदिर जाएगी. वहां देवी की पूजा और आशीर्वाद के बाद ही कार चलाएगा.”

“मम्मी, मैं इन सब में विश्वास नहीं करता,” अपनी नई गाड़ी चलाने को उतावला राहुल लापरवाही से बोला.

“मुझे कुछ नहीं सुनना,” रमा ने अपना अंतिम फैसला सुनाया, तो राहुल खीझ गया.

मुंह फुला कर राहुल चाबी वहीं टेबल पर जोर से पटक और बिना कुछ बोले तेजी से औफिस के लिए निकल गया.

“क्यों बच्चे का मूड खराब करती हो,” अखबार पढ़ते हुए सतीश चंद्र बोले.

“आप तो चुप ही रहिए. आप को तो पूजापाठ में कोई आस्था है नहीं, राहुल को भी वैसे ही बना रहे हो,” कार की चाबी को कस कर पकड़ती हुई रमा बोली.

इतवार को सुबहसुबह रमा ने राहुल को उठा दिया.

“मम्मी, चाय तो पिला दो पहले,” उनींदा सा राहुल बोला.

“कोई चायवाय नहीं. मंदिर में पूजा के बाद ही चायनाश्ता करेंगे. जल्दी उठ और नहा कर तैयार हो जाओ, नहीं तो मंदिर में फिर बहुत भीड़ हो जाएगी.”

अधखुली आंखों से राहुल ने देखा- सामने मम्मी तैयार खड़ी थी.

“अभी सोने दो, रोज तो जल्दी उठना पड़ता है,” बोल कर राहुल ने बिस्तर पर दूसरी ओर करवट ले कर लिहाफ अपने ऊपर तक खींच कर फिर सो गया.

“कल औफिस कार से जाना है कि नहीं?” राहुल के ऊपर से लिहाफ खींचती हुई रमा ने ब्रह्मास्त्र छोड़ा.

राहुल को पता था कि बिना देवी के मंदिर जाए मां कार चलाने नहीं देगी. कार चलाने की लालसा ने राहुल के अंदर एकाएक ऊर्जा का संचार कर दिया. एक झटके से उठा और जल्दी से नहा कर तैयार होने लगा.

शहर से 14 किलोमीटर दूर मुख्य सड़क पर बना यह मंदिर अपनी प्राकृतिक छटा से यात्रियों का मन बरबस ही मोह लेता  है. एक ओर विभिन्न किस्म के हरेभरे पेड़ों से आच्छादित पहाड़ियां और दूसरी ओर थोड़ी सी समतल भूमि पर निर्मित देवी मां का मंदिर और पीछे विस्तृत क्षेत्र में फैली बरसाती नदी, जिस में उथला पानी का स्तर. नदी के स्वच्छ, निर्मल जल में छोटेबड़े,  सफेदस्लेटी रंग के गोलाकार पत्थर स्पष्ट दृष्टिगोचर होते हैं, कभीकभार हिरन व हाथी भी नदी के आसपास विचरित करते दिख जाते हैं. दूर सड़क से यह विहंगम दृश्य बड़ा रमणीक लगता है.

इतवार होने की वजह से सच में मंदिर में बहुत भीड़ थी. मंदिर की मान्यता है कि नया वाहन लेने पर देवी से पूजा करवाने पर वाहन और चालक दोनों सुरक्षित रहते हैं. किस्मकिस्म की चमचमाती ब्रैंडेड नई दोपहिया और चौपहिया वाहनों की असंख्य गाड़ियां मंदिर के बाहर खचाखच खड़ी हुई थीं. ऐसा लग रहा, मानो शहर के सारे शोरूमों की गाड़ियां यहीं एकसाथ इकट्ठी हो गई हों. बड़ी मुश्किल से पार्किंग की जगह मिली. भिखारियों की अच्छीखासी तादाद मंदिर के बाहर मंड़रा रही थी.

The post विद्या का मंदिर- भाग 1: क्या थी सतीश की सोच appeared first on Sarita Magazine.

May 06, 2022 at 09:57PM

No comments:

Post a Comment