Friday 6 May 2022

दूसरी मां- भाग 2: क्या मीना आंटी अपने लिए सम्मान पैदा कर सकीं?

हमारी पहली मुलाकात मेरी 14वीं सालगिरह के समारोह में हमारे घर में हुई थी. मेरे मनपसंद गुलाबी रंग में वे एक खूबसूरत ड्रैस मेरे लिए उपहार में लाई थीं. मीना आंटी को धन्यवाद देते हुए मैं ने प्रसन्नता व्यक्त की और कहा, ‘‘बड़े दिनों से ऐसी ड्रैस पहनने की इच्छा थी मेरी. आप को किस ने बताया कि गुलाबी रंग मेरा पसंदीदा रंग है?’’

‘‘तुम्हारे पापा ने. तुम्हें उपहार पसंद आया, इस बात की मुझे खुशी है, कविता,’’ एक बार मेरा गाल प्यार से थपथपा कर वे दूसरे मेहमानों से बातें करने लगी थीं.

मैं ने ही नहीं, मुझ से 3 साल छोटे मेरे भाई सुमित ने भी उस पहली मुलाकात में मीना आंटी को पसंद कर लिया था. वे सुमित के लिए स्केट्स का जोड़ा ले कर आई थीं. अब वह घरबाहर दिनरात स्केटिंग करते हुए मीना आंटी के गुण गाता रहता.

मीना आंटी पापा के औफिस में काम करती थीं. उन की उम्र हमारी पहली मुलाकात के वक्त करीब 35 वर्ष की रही होगी. उन का रंग गेहुआं और नैननक्श साधारण थे. आंखों में एक चमक हर वक्त मौजूद रहती थी.

उन के साधारण रंगरूप को अत्यधिक प्रभावशाली उन का धीरगंभीर व्यक्तित्व बनाता था. साधारण औरतों की तरह मैं ने उन्हें ज्यादा बोलते कभी नहीं देखा. वे कम बोलती थीं और काम की बातें करती थीं. उन के हावभाव और बोलचाल में भरपूर आत्मविश्वास झलकता था. हलके रंगों की सूती साडि़यां उन के सुगठित शरीर पर बहुत जमती थीं. खूबसूरत न होते हुए भी मीना आंटी के प्रभावशाली व्यक्तित्व से सामने वाला बहुत प्रभावित होता था.

जन्मदिन समारोह में कुछ देर हमारी अकेले में बातें हुई थीं.

‘अभी तुम 8वीं कक्षा में पढ़ रही हो न कविता?’ अपनी बगल वाली कुरसी पर बैठा कर उन्होंने मुझ से परिचय बढ़ाने की खातिर पूछा था.

‘जी आंटी,’ मैं ने मुसकराते हुए जवाब दिया.

‘बड़ी हो कर क्या बनना चाहती हो?’

‘मैं डाक्टर बनूंगी, आंटी,’ मैं ने जोशीले अंदाज में जवाब दिया.

‘क्यों बनना चाहती हो डाक्टर तुम?’ उन्होंने दिलचस्पी दिखाई.

‘मेरी मां चाहती थीं कि मैं डाक्टर बनूं. आंटी, उन के इस सपने को मैं जरूर पूरा करूंगी.’

‘यह तो बड़ी अच्छी बात होगी, कविता. खूब दिल लगा कर पढ़ रही

हो न?’

‘जी, हां आंटी.’

‘7वीं में कितने नंबर आए थे तुम्हारे?’

‘72 प्रतिशत,’ मैं ने सकुचाते स्वर में बताया.

‘इतने नंबर लाने से तो बात नहीं बनेगी, कविता,’ उन का स्वर गंभीर हो उठा, ‘मैडिकल में प्रवेश पाने के लिए बड़ा तगड़ा कंपीटिशन है आजकल. सिर्फ सोच भर लेने से जिंदगी के मकसद पूरे नहीं होते. और दिल लगा कर पढ़ाई में मेहनत नहीं करोगी तो डाक्टर नहीं बन सकोगी.’

साफसच्ची बात मुंह पर कह देने का उन का रूखा सा अंदाज मुझे पलभर को अखरा था. फिर मैं ने उन से मिले खूबसूरत उपहार के बारे में सोचा और मन की नाराजगी को भुला कर, ‘मैं और ज्यादा मेहनत करूंगी, आंटी,’ ऐसा वादा कर के मैं अपनी सहेलियों के पास चली गई थी.

ये भी पढ़ें- दुर्घटना

जन्मदिन समारोह के बाद से लगभग हर शनिवारइतवार मीना आंटी हमारे यहां कभी पापा के साथ तो कभी अकेली आ जाती थीं. सुमित और मेरा वक्त उन के साथ अच्छा गुजरता था. बातों से ज्यादा वे कुछ न कुछ करते रहने में दिलचस्पी रखती थीं.

मेरे साथ वे बैडमिंटन खेलतीं तो सुमित उन्हें शतरंज की बाजी में उलझा कर खूब खुश होता. क्रिकेट पर उन दोनों के बीच गरमागरम बहस अकसर हो जाती. गणित और विज्ञान में ही नहीं, चित्रकला व कढ़ाईबुनाई में भी मेरी सहायता करने की उन में काबिलीयत थी.

2 महीने की जानपहचान के बाद हमारे आपसी संबंध बड़े अच्छे हो गए थे. भरपूर प्यार और सम्मान था उन के प्रति मेरे दिल में. फिर एक शाम मेरी सीमा चाची ने जो कुछ मुझ से कहा, उस ने मेरे दिलोदिमाग में जबरदस्त हलचल मचा दी थी.

चाची ने मुझे पास बैठा कर पूछा, ‘कविता, तू अपनी इस मीना आंटी

की चालाकी को समझ भी पा रही है

या नहीं?’

‘वे क्या चालाकी कर रही हैं, चाची?’ मैं ने फौरन माथे पर बल डाले.

‘तुम बच्चों से दोस्ती बढ़ा कर वह तुम्हारी मां की जगह आना चाहती है इस घर में.’

‘ऐसी कोई बात नहीं है, चाची.’ मैं ने चाची से ऐसा कहा जरूर, पर भीतर ही भीतर मैं बेचैन हो उठी थी.

‘यही सच है, कविता. तुम्हारी ताईजी का आज दोपहर में मुझे फोन आया था. कल तुम्हारे पापा अपने बड़े भाई से मिलने गए थे. वे तुम्हारी इस चालाक मीना आंटी से शादी करना चाहते हैं. मुझे तो यह तलाकशुदा औरत कभी अच्छी नहीं लगी. जब सौतेली मां बन कर घर में आ जाएगी तब दिखाएगी अपना असली रंग. तुम्हारे पिताजी को तुम से दूर कर के देखना कैसा सुलूक करेगी तुम भाईबहनों के साथ.’

चाची मेरी भावानाओं को भड़का कर मेरे दिल में मीना आंटी के प्रति नफरत पैदा करना चाह रही थीं. चाची का व्यक्तित्व मीना आंटी के व्यक्तित्व से बिलकुल अलग है और उन दोनों की कभी पट नहीं सकती, यह बात चाची अपने व्यवहार व बातों से पहले ही कई बार जाहिर कर चुकी थीं. उन के भड़काने का मुझ पर खास प्रभाव नहीं होने वाला था. फिर भी मीना आंटी को ले कर उस वक्त मेरे मन में चिढ़, नाराजगी और नफरत के भाव पैदा हुए थे.

जब मेरी मां की मौत हुई तब मेरी उम्र 10 वर्ष से कुछ कम थी. उन के गुरदे खराब हो गए थे. सुमित और मुझे कच्ची उम्र में बेसहारा छोड़ कर दुनिया से जाने का सख्त अफसोस उन्हें आखिरी सांस तक रहा था.

‘मेरे बाद अपने पापा का, अपने छोटे भाई का ध्यान रखना मेरी गुडि़या…मेरी जगह तुझे संभालना होगा घर’, अपनी पलकें हमेशा के लिए मूंद लेने से पहले मां ने मुझे अपने सीने से लगा कर इस तरह की बात सैकड़ों बार कही होगी.

मां को मैं भूली नहीं थी. उन को याद करते हुए कभी भी मेरी आंखों में आंसू आ जाया करते थे. वे हमारे बीच नहीं थीं, पर घर के चप्पेचप्पे से उन की यादें जुड़ी हुई थीं. उन की जगह कोई दूसरी औरत लेने की कोशिश करे, यह बात मेरे लिए असहनीय होती, मां की जगह मीना आंटी को देखने की कल्पना जब मैं ने की, तो चिढ़ व गुस्से के कारण मेरा दिमाग भन्ना उठा और आंखों में भावुकतावश आंसू छलक आए.

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हमारी पहली मुलाकात मेरी 14वीं सालगिरह के समारोह में हमारे घर में हुई थी. मेरे मनपसंद गुलाबी रंग में वे एक खूबसूरत ड्रैस मेरे लिए उपहार में लाई थीं. मीना आंटी को धन्यवाद देते हुए मैं ने प्रसन्नता व्यक्त की और कहा, ‘‘बड़े दिनों से ऐसी ड्रैस पहनने की इच्छा थी मेरी. आप को किस ने बताया कि गुलाबी रंग मेरा पसंदीदा रंग है?’’

‘‘तुम्हारे पापा ने. तुम्हें उपहार पसंद आया, इस बात की मुझे खुशी है, कविता,’’ एक बार मेरा गाल प्यार से थपथपा कर वे दूसरे मेहमानों से बातें करने लगी थीं.

मैं ने ही नहीं, मुझ से 3 साल छोटे मेरे भाई सुमित ने भी उस पहली मुलाकात में मीना आंटी को पसंद कर लिया था. वे सुमित के लिए स्केट्स का जोड़ा ले कर आई थीं. अब वह घरबाहर दिनरात स्केटिंग करते हुए मीना आंटी के गुण गाता रहता.

मीना आंटी पापा के औफिस में काम करती थीं. उन की उम्र हमारी पहली मुलाकात के वक्त करीब 35 वर्ष की रही होगी. उन का रंग गेहुआं और नैननक्श साधारण थे. आंखों में एक चमक हर वक्त मौजूद रहती थी.

उन के साधारण रंगरूप को अत्यधिक प्रभावशाली उन का धीरगंभीर व्यक्तित्व बनाता था. साधारण औरतों की तरह मैं ने उन्हें ज्यादा बोलते कभी नहीं देखा. वे कम बोलती थीं और काम की बातें करती थीं. उन के हावभाव और बोलचाल में भरपूर आत्मविश्वास झलकता था. हलके रंगों की सूती साडि़यां उन के सुगठित शरीर पर बहुत जमती थीं. खूबसूरत न होते हुए भी मीना आंटी के प्रभावशाली व्यक्तित्व से सामने वाला बहुत प्रभावित होता था.

जन्मदिन समारोह में कुछ देर हमारी अकेले में बातें हुई थीं.

‘अभी तुम 8वीं कक्षा में पढ़ रही हो न कविता?’ अपनी बगल वाली कुरसी पर बैठा कर उन्होंने मुझ से परिचय बढ़ाने की खातिर पूछा था.

‘जी आंटी,’ मैं ने मुसकराते हुए जवाब दिया.

‘बड़ी हो कर क्या बनना चाहती हो?’

‘मैं डाक्टर बनूंगी, आंटी,’ मैं ने जोशीले अंदाज में जवाब दिया.

‘क्यों बनना चाहती हो डाक्टर तुम?’ उन्होंने दिलचस्पी दिखाई.

‘मेरी मां चाहती थीं कि मैं डाक्टर बनूं. आंटी, उन के इस सपने को मैं जरूर पूरा करूंगी.’

‘यह तो बड़ी अच्छी बात होगी, कविता. खूब दिल लगा कर पढ़ रही

हो न?’

‘जी, हां आंटी.’

‘7वीं में कितने नंबर आए थे तुम्हारे?’

‘72 प्रतिशत,’ मैं ने सकुचाते स्वर में बताया.

‘इतने नंबर लाने से तो बात नहीं बनेगी, कविता,’ उन का स्वर गंभीर हो उठा, ‘मैडिकल में प्रवेश पाने के लिए बड़ा तगड़ा कंपीटिशन है आजकल. सिर्फ सोच भर लेने से जिंदगी के मकसद पूरे नहीं होते. और दिल लगा कर पढ़ाई में मेहनत नहीं करोगी तो डाक्टर नहीं बन सकोगी.’

साफसच्ची बात मुंह पर कह देने का उन का रूखा सा अंदाज मुझे पलभर को अखरा था. फिर मैं ने उन से मिले खूबसूरत उपहार के बारे में सोचा और मन की नाराजगी को भुला कर, ‘मैं और ज्यादा मेहनत करूंगी, आंटी,’ ऐसा वादा कर के मैं अपनी सहेलियों के पास चली गई थी.

ये भी पढ़ें- दुर्घटना

जन्मदिन समारोह के बाद से लगभग हर शनिवारइतवार मीना आंटी हमारे यहां कभी पापा के साथ तो कभी अकेली आ जाती थीं. सुमित और मेरा वक्त उन के साथ अच्छा गुजरता था. बातों से ज्यादा वे कुछ न कुछ करते रहने में दिलचस्पी रखती थीं.

मेरे साथ वे बैडमिंटन खेलतीं तो सुमित उन्हें शतरंज की बाजी में उलझा कर खूब खुश होता. क्रिकेट पर उन दोनों के बीच गरमागरम बहस अकसर हो जाती. गणित और विज्ञान में ही नहीं, चित्रकला व कढ़ाईबुनाई में भी मेरी सहायता करने की उन में काबिलीयत थी.

2 महीने की जानपहचान के बाद हमारे आपसी संबंध बड़े अच्छे हो गए थे. भरपूर प्यार और सम्मान था उन के प्रति मेरे दिल में. फिर एक शाम मेरी सीमा चाची ने जो कुछ मुझ से कहा, उस ने मेरे दिलोदिमाग में जबरदस्त हलचल मचा दी थी.

चाची ने मुझे पास बैठा कर पूछा, ‘कविता, तू अपनी इस मीना आंटी

की चालाकी को समझ भी पा रही है

या नहीं?’

‘वे क्या चालाकी कर रही हैं, चाची?’ मैं ने फौरन माथे पर बल डाले.

‘तुम बच्चों से दोस्ती बढ़ा कर वह तुम्हारी मां की जगह आना चाहती है इस घर में.’

‘ऐसी कोई बात नहीं है, चाची.’ मैं ने चाची से ऐसा कहा जरूर, पर भीतर ही भीतर मैं बेचैन हो उठी थी.

‘यही सच है, कविता. तुम्हारी ताईजी का आज दोपहर में मुझे फोन आया था. कल तुम्हारे पापा अपने बड़े भाई से मिलने गए थे. वे तुम्हारी इस चालाक मीना आंटी से शादी करना चाहते हैं. मुझे तो यह तलाकशुदा औरत कभी अच्छी नहीं लगी. जब सौतेली मां बन कर घर में आ जाएगी तब दिखाएगी अपना असली रंग. तुम्हारे पिताजी को तुम से दूर कर के देखना कैसा सुलूक करेगी तुम भाईबहनों के साथ.’

चाची मेरी भावानाओं को भड़का कर मेरे दिल में मीना आंटी के प्रति नफरत पैदा करना चाह रही थीं. चाची का व्यक्तित्व मीना आंटी के व्यक्तित्व से बिलकुल अलग है और उन दोनों की कभी पट नहीं सकती, यह बात चाची अपने व्यवहार व बातों से पहले ही कई बार जाहिर कर चुकी थीं. उन के भड़काने का मुझ पर खास प्रभाव नहीं होने वाला था. फिर भी मीना आंटी को ले कर उस वक्त मेरे मन में चिढ़, नाराजगी और नफरत के भाव पैदा हुए थे.

जब मेरी मां की मौत हुई तब मेरी उम्र 10 वर्ष से कुछ कम थी. उन के गुरदे खराब हो गए थे. सुमित और मुझे कच्ची उम्र में बेसहारा छोड़ कर दुनिया से जाने का सख्त अफसोस उन्हें आखिरी सांस तक रहा था.

‘मेरे बाद अपने पापा का, अपने छोटे भाई का ध्यान रखना मेरी गुडि़या…मेरी जगह तुझे संभालना होगा घर’, अपनी पलकें हमेशा के लिए मूंद लेने से पहले मां ने मुझे अपने सीने से लगा कर इस तरह की बात सैकड़ों बार कही होगी.

मां को मैं भूली नहीं थी. उन को याद करते हुए कभी भी मेरी आंखों में आंसू आ जाया करते थे. वे हमारे बीच नहीं थीं, पर घर के चप्पेचप्पे से उन की यादें जुड़ी हुई थीं. उन की जगह कोई दूसरी औरत लेने की कोशिश करे, यह बात मेरे लिए असहनीय होती, मां की जगह मीना आंटी को देखने की कल्पना जब मैं ने की, तो चिढ़ व गुस्से के कारण मेरा दिमाग भन्ना उठा और आंखों में भावुकतावश आंसू छलक आए.

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May 06, 2022 at 09:00AM

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