Wednesday 26 January 2022

प्रेरणा: क्या शादीशुदा गृहस्थी में डूबी अंकिता ने अपने सपनों को दोबारा पूरा किया?

लेखक- 

‘‘बड़ी मुद्दत हुई तुम्हारा गाना सुने. आज कुछ सुनाओ. कोई भी राग उठा लो,  बागेश्वरी, विहाग या मालकोश, जो इस समय के राग हैं,’’ रात का भोजन करने के बाद मनोहर लाल ने अंकिता से इच्छा व्यक्त की. वे बड़े लंबे समय के बाद अपनी बेटी और दामाद के यहां उन से मिलने आए थे.

इस से पहले कि अंकिता कुछ कहती, उस की 14 साल की बेटी चहक पड़ी, ‘‘सुना तो है कि मां बड़ा अच्छा गाती थीं, संगीत विशारद भी हैं, लेकिन मैं ने तो आज तक इन के मुख से कोई गाना नहीं सुना.’’

‘‘यह मैं क्या सुन रहा हूं? तुम तो इतना बढि़या गाती थीं. कुछ और समय लखनऊ में रहना हो गया होता तो तुम ने संगीत में निपुणता प्राप्त कर ली होती.’’

‘‘अभ्यास छूटे एक युग बीत गया. अब गला ही नहीं चलता. मेरे पास शास्त्रीय संगीत के अनेक कैसेट पड़े हैं, उन में से कोई लगा दूं?’’

‘‘नहीं, वह सब कुछ नहीं. इतने परिश्रम से सीखी हुई विद्या तुम ने गंवा कैसे दी? शाम 4 बजे के बाद कालेज से लौटती थीं तो जल्दीजल्दी कुछ नाश्ता कर रिकशे से भातखंडे कालेज चल देती थीं. वहां से लौटतेलौटते रात के साढ़े 7 बज जाते थे. थक जाने पर भी रियाज करती थीं. जाड़ों में रात जल्दी घिर आती है. तब मैं तुम्हें लेने साइकिल से कालेज पहुंचता था. उस ओर से रिकशे के पैसे बचाने के लिए तुम कितने उत्साह से पैदल ही उछलतीकूदती चली आती थीं. हम लोगों के कैसे कठिन दिन थे वे. वह सारी साधना धूल में मिल गई.’’

‘‘पिताजी, आप तो समझते नहीं. शादी के बाद बराबर तो असम में रहना पड़ा. उस पर नौकरी के आएदिन के तबादले और दौरे. उस अनजाने क्षेत्र में अकेली कलपती मैं क्या अभ्यास करती. मुझे तो हर समय डर लगा रहता था. आप ने देख तो लिया, इतने सालों के बाद आप आए हैं, लेकिन फिर भी इन का दौरे पर जाना जरूरी है.’’

‘‘यह तो नौकरी की विवशता है. इस में तुम दोनों क्या कर सकते हो? अकेलेपन की जो समस्या तुम ने उठाई, उस में तो संगीत या पुस्तकों से उत्तम और कोई साथी होता ही नहीं. अच्छा, यह बताओ कि तुम ने संगीत सीखा क्यों था?’’

‘‘मां और आप को शास्त्रीय संगीत का शौक था. जिस काम से आप लोग प्रसन्न हों उसे करने में हम सभी भाईबहनों को तब आनंद आता था.’’

ये भी पढ़ें- अम्मां जैसा कोई नहीं: क्या अनु ने अम्मा का साथ निभाया

‘‘यह सही नहीं है. रुचि न होने पर कहीं पुरस्कार जीते जाते हैं? अच्छा, अब कुछ शुरू करो.’’

‘‘पिताजी, घर में तानपूरा तक तो है नहीं.’’

‘‘कोई बात नहीं, बिना तानपूरे के भी चलेगा. किसी संगीत सभा में थोड़े ही गा रही हो?’’

कुछ देर शांत रहने के बाद अंकिता ने गला साफ कर के खांसा. तुहिना किलक उठी, ‘‘आज आईं मां पकड़ में.’’

कुछ गुनगुनाने के बाद अंकिता का स्वर उभरा :

‘कौन करत तोसों विनती पियरवा,

मानो न मानो मोरी बात.’

गाने की इस प्रथम पंक्ति को 3-4 बार दोहराने के बाद अंकिता ने राग के अंतरे को उठाया :

‘जब से गए मोरी सुधि हू न लीनी,

कल न परत दिनरात.’

लेकिन वह खिंच नहीं सका और अंकिता हताशा में सिर झटकते हुए चुप हो गई.

मनोहर लाल, जो आंखें बंद किए बेटी का गायन सुन रहे थे, बोले, ‘‘अगर मुझे ठीक याद है तो बागेश्वरी के इसी गीत पर तुम्हें अंतरविद्यालय संगीत समारोह में पुरस्कार मिला था. आज यह हालत है कि तुम यह भी भूल गईं कि बागेश्वरी में 2 स्वर कोमल लगते हैं. तुम ने तो उन की जगह शुद्ध स्वर लगा दिए. अंतरा भी तुम इसलिए नहीं खींच पाईं क्योंकि अभ्यास छूटा हुआ है.’’

‘‘अब क्या करूं, पिताजी?’’ अंकिता ने झींक कर कहा.

‘‘मेरी बात मानो तो एक तानपूरा खरीद लो. तुहिना अब बड़ी हो गई है. उसे तबला सिखवा दो. मैं सच कहता हूं कि यह जो तुम्हें हर समय बोरियत सी महसूस होती रहती है, सब दूर भाग जाएगी.’’

‘‘कोशिश करूंगी.’’

‘‘कोशिश नहीं, समझ लो कि यह तो करना ही है. लोग इस देश से प्रतिभा पलायन को ले कर हंगामा खड़ा करते हैं. लेकिन यहां तो प्रत्यक्ष प्रतिभा पराभव को देख रहा हूं. यह कहां तक उचित है?’’

अगले दिन अचल भी दौरे से लौट आए. उन्होंने जब तुहिना से अंकिता की छीछालेदर की बात सुनी तो अपने ससुर को सफाई देने लगे, ‘‘पिताजी, मैं ने तो न जाने कितनी बार इन से कहा कि अपने संगीत ज्ञान को नष्ट न होने दें और रुचि बनाए रखें. कैसेट तो घर में दर्जनों आ गए हैं लेकिन गाने के नाम पर हमेशा यही सुनने को मिला कि गला ही साथ नहीं देता. शायद अब आप के कहने का कुछ असर पड़े.’’

मनोहर लाल तो 4 दिन रहने के बाद लौट गए परंतु अपने पीछे बेटी के घर में मोटरकार के पीछे उठे धूल के गुबार जैसा वातावरण छोड़ गए. अंकिता खिसियानी बिल्ली की तरह कई दिनों तक बातबात पर नौकर और तुहिना पर बरसती रही.

अभी इस घटना को बीते एक पखवाड़ा भी नहीं हुआ था कि एक शाम चपरासी ने अंदर आ कर अंकिता को सूचना दी, ‘‘छोटे साहब आए हैं. साथ में उन की पत्नी भी हैं. उन को बैठक में बैठा दिया है.’’

‘‘ठीक किया. हम लोग अभी आते हैं. रसोई में चंदन से कहना कि कुछ खाने की चीजें और 4 गिलास शरबत बैठक में पहुंचा जाए.’’

ठीक है कहता हुआ चपरासी रसोईघर की ओर चला गया.

‘‘अभी नए असिस्टैंट इंजीनियर की नियुक्ति हुई है. शायद वही मिलने आए होंगे,’’ अचल ने अंकिता को बताया.

अचल और अंकिता ने बैठक में जा कर देखा कि एक आकर्षक युवा दंपती बैठे प्रतीक्षा कर रहे हैं. शुरुआती शिष्टाचार के बाद दोनों पुरुषों में तो बातचीत शुरू हो गई लेकिन आगंतुक महिला को चुप देख अंकिता ने उस से पूछा, ‘‘आप कहां की हैं?’’

‘‘मेरी ससुराल तो बरेली में है लेकिन मायका लखनऊ में है.’’

‘‘मैं भी लखनऊ की हूं. इसलिए तुम मुझे ‘दीदी’ कह सकती हो. वैसे तुम्हारा नाम क्या है?’’

‘‘जी, सिकता.’’

फिर तो अंकिता ने उस से उस के महल्ले, स्कूल, कालेज आदि सभी के बारे में पूछ डाला. यह भी पता चला कि सिकता ने भी भातखंडे संगीत विद्यालय में संगीत की शिक्षा पाई थी.

ये भी पढ़ें- पतिया सास: आखिर क्यों पति कपिल से परेशान थी उसकी पत्नी?

‘‘जब भी खाली समय हुआ करे और मन न लगे तो मेरे पास चली आया करो. अब संकोच न करना.’’

‘‘खाली समय तो बहुत रहता है क्योंकि ये तो जब देखो तब दौरे पर जाते रहते हैं और मैं अकेली घर में पड़ी ऊबती रहती हूं. अकेले घर में गाया भी नहीं जा सकता. नौकरचाकर न जाने क्या सोचें?’’

अंकिता के मस्तिष्क में सहसा बिजली सी कौंधी. वह बोली, ‘‘हम लोगों के क्लब में एक महिला समिति भी है, जिस में अफसरों की पत्नियां या तो ताश खेलती रहती हैं या फिर कभी ‘हाउसी’. क्यों न हम दोनों मिल कर कालोनी की लड़कियों के लिए संगीत की कक्षाएं शुरू करें. तुम्हारा तो अभी सबकुछ नया सीखा हुआ है. तुम्हारे सहारे मैं भी अपने पुराने अभ्यास पर धार लगाने का प्रयास करूंगी.’’

‘‘सच दीदी, आप ने तो मेरी बिन मांगी मुराद पूरी कर दी. आप जैसा भी कहेंगी, मैं करती रहूंगी. आप शुरू तो करें,’’ सिकता उत्साह से चहक उठी.

अंकिता ने अपने प्रभाव से क्लब की महिला समिति में एक कमरे में संगीत कक्षाएं चालू करा दीं, लेकिन शुरूशुरू में तथाकथित संभ्रांत महिलाओं ने खूब नाकभौं सिकोड़ी. कुछ ने तो यहां तक कह डाला कि यह 4 दिन की चांदनी है, फिर तो टांयटांय फिस्स होना ही है.

परंतु अंकिता को यह सब सुनने की फुरसत नहीं थी. सिकता और स्वयं के अतिरिक्त उस ने एक अन्य अध्यापक तथा तबलावादक को वेतन दे कर 3 घंटे प्रतिदिन के लिए नियुक्त कर लिया. कालोनी से संगीत सीखने की इच्छुक 10-12 लड़कियां और महिलाएं भी एकत्र हो गईं.

सिकता को तो संगीत सिखाना सहज लगता था लेकिन अंकिता को कुछ कक्षाएं पढ़ाने के लिए पहले घर पर घंटों अभ्यास करना पड़ा. उस पर एक नशा सा छाया हुआ था और वह जीतोड़ परिश्रम में लगी हुई थी. महिला समिति के फंड के अलावा वह अपने पास से भी काफी धन संगीत विद्यालय के लिए खर्च कर चुकी थी.

अंकिता को जैसेजैसे संगीत विद्यालय की आलोचना सुनने को मिलती, वैसेवैसे उस का संकल्प और दृढ़ होता जाता. देखतेदेखते 2 साल के अंदर ही इस संगीत विद्यालय ने अपनी पहचान बनानी आरंभ कर दी. महल्ले में क्या, पूरे शहर में उस की चर्चा होने लगी.

जहां किसी सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन होता वहां संगीत विद्यालय की छात्राओं को भेजने के अनुरोध भी अंकिता को प्राप्त होने लगे. उस को इस से काफी आत्मसंतोष मिलता. वह इस तरह के सभी प्रस्तावों का स्वागत करती और हरेक कार्यक्रम को प्रस्तुत करने से पहले भाग लेने वाली छात्राओं को जम कर अभ्यास कराती. अधिकांश कार्यक्रमों का संचालन वह खुद ही करती.

क्लब में होली, तीज, ईद, दीवाली तथा राष्ट्रीय पर्वों पर होने वाले समारोहों में वह संगीत विद्यालय के विशेष कार्यक्रम रखती, जिन की सभी प्रशंसा करते. स्थानीय अखबारों में उन की रिपोर्ट छपती. कभीकभी आकाशवाणी और दूरदर्शन से भी निमंत्रण मिलने लगा.

अचल का जल्द ही होने वाला तबादला अंकिता को अब चिंतित करने लगा था क्योंकि इस स्थान पर उन के 4 साल पूरे हो चुके थे. उसे डर था कि कहीं उस के जाने के बाद विद्यालय बंद न हो जाए, इसलिए अंकिता ने संगीत विद्यालय की संचालन समिति के मुख्य पदों को पदेन रूप से परिवर्तित कर दिया था, जिस से किसी व्यक्ति विशेष के रहने अथवा न रहने से विद्यालय के संचालन पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़े. स्थानीय वेतनभोगी अध्यापकों की संख्या भी बढ़ा दी थी. कुछ प्रमुख रुचिसंपन्न महिलाओं को उस ने विद्यालय का संरक्षक भी बना दिया था.

अचल अकसर अंकिता को खिजाते, ‘‘तुम तो अब पूरी तरह संगीत विद्यालय को समर्पित हो गई हो. कहीं ऐसा न हो कि मैं भी काट दिया जाऊं.’’

‘‘कैसी बात करते हैं. आप के ही सहयोग से तो मुझे सार्थक जीवन की ये घडि़यां देखने को मिली हैं.’’

‘‘मेरे कहने की तुम ने कब चिंता की? यह तो पिताजी की झिड़की का प्रभाव है.’’

‘‘सच, हमारे विद्यालय के कार्यक्रमों में बड़ा निखार आ रहा है. डर यही लगता है कि कहीं हमारे तबादले के बाद यह उत्साह ठंडा न पड़ जाए.’’

‘‘तुम ने नींव तो इतनी मजबूत डाली है कि अब उसे चलते रहना चाहिए.’’

‘‘क्यों जी, हम लोगों का तबादला

1-2 साल के लिए रुक नहीं सकता?’’

‘‘इस बार तबादला तरक्की के साथ होगा. उसे रुकवाना हानिकारक होगा. चिंता क्यों करती हो, जिस जगह भी जाएंगे, वहां एक नया विद्यालय शुरू किया जा सकता है.’’

‘‘यहां सब जम गया था. कहांकहां नए गड्ढे खोदें और पौधे रोपें.’’

‘‘तो क्या हुआ? अब तो माली निपुण हो गया है. फिर वहां तुम्हारा स्तर ऊंचा होने का भी तो लाभ मिलेगा. वहां कौन काट सकेगा तुम्हारी बात?’’

‘‘अब जो होगा, देखूंगी. पर जगहजगह तंबू गाड़ना मुझे भाता नहीं.’’

‘‘भई, हम लोग तो गाडि़या लुहार हैं. दिन में सड़क किनारे गाड़ी रोकी, कुदाल, खुरपी, हंसिए बनाए, बेचे और बढ़ चले. इस जीवन का अपना अलग रस है.’’

‘‘हर कोई आप की तरह दार्शनिक नहीं होता.’’

बात पर तो विराम लग गया परंतु अंकिता के मन की चंचलता बनी रही.

वसंतपंचमी के अवसर पर दूरदर्शन के प्रादेशिक प्रसारण में संगीत कार्यक्रम प्रस्तुत करने के प्रस्ताव को अंकिता ने स्वीकार तो कर लिया परंतु उस के लिए 2 गीत तैयार कराने में उसे और छात्राओं को बड़ा परिश्रम करना पड़ा. कार्यक्रम का सफल मंचन हो जाने पर उसे बड़ा संतोष मिला.

अंकिता अभी वसंत के कार्यक्रम की अपनी थकान उतार भी नहीं पाई थी कि उसे अपने पिता का पत्र मिला.

‘‘टीवी के प्रादेशिक कार्यक्रम में तुम्हारे विद्यालय द्वारा प्रस्तुत कार्यक्रम देखा. संचालिका के रूप में तुम्हें पहचान लिया. कार्यक्रम बहुत अच्छा था. मन बहुत प्रसन्न हुआ. लेकिन बेटी, एक बात याद रखना कि विद्या के क्षेत्र में प्रसाद वर्जित है.’’

पत्र पाने के बाद अंकिता आत्मसंतोष से भर उठी.

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लेखक- 

‘‘बड़ी मुद्दत हुई तुम्हारा गाना सुने. आज कुछ सुनाओ. कोई भी राग उठा लो,  बागेश्वरी, विहाग या मालकोश, जो इस समय के राग हैं,’’ रात का भोजन करने के बाद मनोहर लाल ने अंकिता से इच्छा व्यक्त की. वे बड़े लंबे समय के बाद अपनी बेटी और दामाद के यहां उन से मिलने आए थे.

इस से पहले कि अंकिता कुछ कहती, उस की 14 साल की बेटी चहक पड़ी, ‘‘सुना तो है कि मां बड़ा अच्छा गाती थीं, संगीत विशारद भी हैं, लेकिन मैं ने तो आज तक इन के मुख से कोई गाना नहीं सुना.’’

‘‘यह मैं क्या सुन रहा हूं? तुम तो इतना बढि़या गाती थीं. कुछ और समय लखनऊ में रहना हो गया होता तो तुम ने संगीत में निपुणता प्राप्त कर ली होती.’’

‘‘अभ्यास छूटे एक युग बीत गया. अब गला ही नहीं चलता. मेरे पास शास्त्रीय संगीत के अनेक कैसेट पड़े हैं, उन में से कोई लगा दूं?’’

‘‘नहीं, वह सब कुछ नहीं. इतने परिश्रम से सीखी हुई विद्या तुम ने गंवा कैसे दी? शाम 4 बजे के बाद कालेज से लौटती थीं तो जल्दीजल्दी कुछ नाश्ता कर रिकशे से भातखंडे कालेज चल देती थीं. वहां से लौटतेलौटते रात के साढ़े 7 बज जाते थे. थक जाने पर भी रियाज करती थीं. जाड़ों में रात जल्दी घिर आती है. तब मैं तुम्हें लेने साइकिल से कालेज पहुंचता था. उस ओर से रिकशे के पैसे बचाने के लिए तुम कितने उत्साह से पैदल ही उछलतीकूदती चली आती थीं. हम लोगों के कैसे कठिन दिन थे वे. वह सारी साधना धूल में मिल गई.’’

‘‘पिताजी, आप तो समझते नहीं. शादी के बाद बराबर तो असम में रहना पड़ा. उस पर नौकरी के आएदिन के तबादले और दौरे. उस अनजाने क्षेत्र में अकेली कलपती मैं क्या अभ्यास करती. मुझे तो हर समय डर लगा रहता था. आप ने देख तो लिया, इतने सालों के बाद आप आए हैं, लेकिन फिर भी इन का दौरे पर जाना जरूरी है.’’

‘‘यह तो नौकरी की विवशता है. इस में तुम दोनों क्या कर सकते हो? अकेलेपन की जो समस्या तुम ने उठाई, उस में तो संगीत या पुस्तकों से उत्तम और कोई साथी होता ही नहीं. अच्छा, यह बताओ कि तुम ने संगीत सीखा क्यों था?’’

‘‘मां और आप को शास्त्रीय संगीत का शौक था. जिस काम से आप लोग प्रसन्न हों उसे करने में हम सभी भाईबहनों को तब आनंद आता था.’’

ये भी पढ़ें- अम्मां जैसा कोई नहीं: क्या अनु ने अम्मा का साथ निभाया

‘‘यह सही नहीं है. रुचि न होने पर कहीं पुरस्कार जीते जाते हैं? अच्छा, अब कुछ शुरू करो.’’

‘‘पिताजी, घर में तानपूरा तक तो है नहीं.’’

‘‘कोई बात नहीं, बिना तानपूरे के भी चलेगा. किसी संगीत सभा में थोड़े ही गा रही हो?’’

कुछ देर शांत रहने के बाद अंकिता ने गला साफ कर के खांसा. तुहिना किलक उठी, ‘‘आज आईं मां पकड़ में.’’

कुछ गुनगुनाने के बाद अंकिता का स्वर उभरा :

‘कौन करत तोसों विनती पियरवा,

मानो न मानो मोरी बात.’

गाने की इस प्रथम पंक्ति को 3-4 बार दोहराने के बाद अंकिता ने राग के अंतरे को उठाया :

‘जब से गए मोरी सुधि हू न लीनी,

कल न परत दिनरात.’

लेकिन वह खिंच नहीं सका और अंकिता हताशा में सिर झटकते हुए चुप हो गई.

मनोहर लाल, जो आंखें बंद किए बेटी का गायन सुन रहे थे, बोले, ‘‘अगर मुझे ठीक याद है तो बागेश्वरी के इसी गीत पर तुम्हें अंतरविद्यालय संगीत समारोह में पुरस्कार मिला था. आज यह हालत है कि तुम यह भी भूल गईं कि बागेश्वरी में 2 स्वर कोमल लगते हैं. तुम ने तो उन की जगह शुद्ध स्वर लगा दिए. अंतरा भी तुम इसलिए नहीं खींच पाईं क्योंकि अभ्यास छूटा हुआ है.’’

‘‘अब क्या करूं, पिताजी?’’ अंकिता ने झींक कर कहा.

‘‘मेरी बात मानो तो एक तानपूरा खरीद लो. तुहिना अब बड़ी हो गई है. उसे तबला सिखवा दो. मैं सच कहता हूं कि यह जो तुम्हें हर समय बोरियत सी महसूस होती रहती है, सब दूर भाग जाएगी.’’

‘‘कोशिश करूंगी.’’

‘‘कोशिश नहीं, समझ लो कि यह तो करना ही है. लोग इस देश से प्रतिभा पलायन को ले कर हंगामा खड़ा करते हैं. लेकिन यहां तो प्रत्यक्ष प्रतिभा पराभव को देख रहा हूं. यह कहां तक उचित है?’’

अगले दिन अचल भी दौरे से लौट आए. उन्होंने जब तुहिना से अंकिता की छीछालेदर की बात सुनी तो अपने ससुर को सफाई देने लगे, ‘‘पिताजी, मैं ने तो न जाने कितनी बार इन से कहा कि अपने संगीत ज्ञान को नष्ट न होने दें और रुचि बनाए रखें. कैसेट तो घर में दर्जनों आ गए हैं लेकिन गाने के नाम पर हमेशा यही सुनने को मिला कि गला ही साथ नहीं देता. शायद अब आप के कहने का कुछ असर पड़े.’’

मनोहर लाल तो 4 दिन रहने के बाद लौट गए परंतु अपने पीछे बेटी के घर में मोटरकार के पीछे उठे धूल के गुबार जैसा वातावरण छोड़ गए. अंकिता खिसियानी बिल्ली की तरह कई दिनों तक बातबात पर नौकर और तुहिना पर बरसती रही.

अभी इस घटना को बीते एक पखवाड़ा भी नहीं हुआ था कि एक शाम चपरासी ने अंदर आ कर अंकिता को सूचना दी, ‘‘छोटे साहब आए हैं. साथ में उन की पत्नी भी हैं. उन को बैठक में बैठा दिया है.’’

‘‘ठीक किया. हम लोग अभी आते हैं. रसोई में चंदन से कहना कि कुछ खाने की चीजें और 4 गिलास शरबत बैठक में पहुंचा जाए.’’

ठीक है कहता हुआ चपरासी रसोईघर की ओर चला गया.

‘‘अभी नए असिस्टैंट इंजीनियर की नियुक्ति हुई है. शायद वही मिलने आए होंगे,’’ अचल ने अंकिता को बताया.

अचल और अंकिता ने बैठक में जा कर देखा कि एक आकर्षक युवा दंपती बैठे प्रतीक्षा कर रहे हैं. शुरुआती शिष्टाचार के बाद दोनों पुरुषों में तो बातचीत शुरू हो गई लेकिन आगंतुक महिला को चुप देख अंकिता ने उस से पूछा, ‘‘आप कहां की हैं?’’

‘‘मेरी ससुराल तो बरेली में है लेकिन मायका लखनऊ में है.’’

‘‘मैं भी लखनऊ की हूं. इसलिए तुम मुझे ‘दीदी’ कह सकती हो. वैसे तुम्हारा नाम क्या है?’’

‘‘जी, सिकता.’’

फिर तो अंकिता ने उस से उस के महल्ले, स्कूल, कालेज आदि सभी के बारे में पूछ डाला. यह भी पता चला कि सिकता ने भी भातखंडे संगीत विद्यालय में संगीत की शिक्षा पाई थी.

ये भी पढ़ें- पतिया सास: आखिर क्यों पति कपिल से परेशान थी उसकी पत्नी?

‘‘जब भी खाली समय हुआ करे और मन न लगे तो मेरे पास चली आया करो. अब संकोच न करना.’’

‘‘खाली समय तो बहुत रहता है क्योंकि ये तो जब देखो तब दौरे पर जाते रहते हैं और मैं अकेली घर में पड़ी ऊबती रहती हूं. अकेले घर में गाया भी नहीं जा सकता. नौकरचाकर न जाने क्या सोचें?’’

अंकिता के मस्तिष्क में सहसा बिजली सी कौंधी. वह बोली, ‘‘हम लोगों के क्लब में एक महिला समिति भी है, जिस में अफसरों की पत्नियां या तो ताश खेलती रहती हैं या फिर कभी ‘हाउसी’. क्यों न हम दोनों मिल कर कालोनी की लड़कियों के लिए संगीत की कक्षाएं शुरू करें. तुम्हारा तो अभी सबकुछ नया सीखा हुआ है. तुम्हारे सहारे मैं भी अपने पुराने अभ्यास पर धार लगाने का प्रयास करूंगी.’’

‘‘सच दीदी, आप ने तो मेरी बिन मांगी मुराद पूरी कर दी. आप जैसा भी कहेंगी, मैं करती रहूंगी. आप शुरू तो करें,’’ सिकता उत्साह से चहक उठी.

अंकिता ने अपने प्रभाव से क्लब की महिला समिति में एक कमरे में संगीत कक्षाएं चालू करा दीं, लेकिन शुरूशुरू में तथाकथित संभ्रांत महिलाओं ने खूब नाकभौं सिकोड़ी. कुछ ने तो यहां तक कह डाला कि यह 4 दिन की चांदनी है, फिर तो टांयटांय फिस्स होना ही है.

परंतु अंकिता को यह सब सुनने की फुरसत नहीं थी. सिकता और स्वयं के अतिरिक्त उस ने एक अन्य अध्यापक तथा तबलावादक को वेतन दे कर 3 घंटे प्रतिदिन के लिए नियुक्त कर लिया. कालोनी से संगीत सीखने की इच्छुक 10-12 लड़कियां और महिलाएं भी एकत्र हो गईं.

सिकता को तो संगीत सिखाना सहज लगता था लेकिन अंकिता को कुछ कक्षाएं पढ़ाने के लिए पहले घर पर घंटों अभ्यास करना पड़ा. उस पर एक नशा सा छाया हुआ था और वह जीतोड़ परिश्रम में लगी हुई थी. महिला समिति के फंड के अलावा वह अपने पास से भी काफी धन संगीत विद्यालय के लिए खर्च कर चुकी थी.

अंकिता को जैसेजैसे संगीत विद्यालय की आलोचना सुनने को मिलती, वैसेवैसे उस का संकल्प और दृढ़ होता जाता. देखतेदेखते 2 साल के अंदर ही इस संगीत विद्यालय ने अपनी पहचान बनानी आरंभ कर दी. महल्ले में क्या, पूरे शहर में उस की चर्चा होने लगी.

जहां किसी सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन होता वहां संगीत विद्यालय की छात्राओं को भेजने के अनुरोध भी अंकिता को प्राप्त होने लगे. उस को इस से काफी आत्मसंतोष मिलता. वह इस तरह के सभी प्रस्तावों का स्वागत करती और हरेक कार्यक्रम को प्रस्तुत करने से पहले भाग लेने वाली छात्राओं को जम कर अभ्यास कराती. अधिकांश कार्यक्रमों का संचालन वह खुद ही करती.

क्लब में होली, तीज, ईद, दीवाली तथा राष्ट्रीय पर्वों पर होने वाले समारोहों में वह संगीत विद्यालय के विशेष कार्यक्रम रखती, जिन की सभी प्रशंसा करते. स्थानीय अखबारों में उन की रिपोर्ट छपती. कभीकभी आकाशवाणी और दूरदर्शन से भी निमंत्रण मिलने लगा.

अचल का जल्द ही होने वाला तबादला अंकिता को अब चिंतित करने लगा था क्योंकि इस स्थान पर उन के 4 साल पूरे हो चुके थे. उसे डर था कि कहीं उस के जाने के बाद विद्यालय बंद न हो जाए, इसलिए अंकिता ने संगीत विद्यालय की संचालन समिति के मुख्य पदों को पदेन रूप से परिवर्तित कर दिया था, जिस से किसी व्यक्ति विशेष के रहने अथवा न रहने से विद्यालय के संचालन पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़े. स्थानीय वेतनभोगी अध्यापकों की संख्या भी बढ़ा दी थी. कुछ प्रमुख रुचिसंपन्न महिलाओं को उस ने विद्यालय का संरक्षक भी बना दिया था.

अचल अकसर अंकिता को खिजाते, ‘‘तुम तो अब पूरी तरह संगीत विद्यालय को समर्पित हो गई हो. कहीं ऐसा न हो कि मैं भी काट दिया जाऊं.’’

‘‘कैसी बात करते हैं. आप के ही सहयोग से तो मुझे सार्थक जीवन की ये घडि़यां देखने को मिली हैं.’’

‘‘मेरे कहने की तुम ने कब चिंता की? यह तो पिताजी की झिड़की का प्रभाव है.’’

‘‘सच, हमारे विद्यालय के कार्यक्रमों में बड़ा निखार आ रहा है. डर यही लगता है कि कहीं हमारे तबादले के बाद यह उत्साह ठंडा न पड़ जाए.’’

‘‘तुम ने नींव तो इतनी मजबूत डाली है कि अब उसे चलते रहना चाहिए.’’

‘‘क्यों जी, हम लोगों का तबादला

1-2 साल के लिए रुक नहीं सकता?’’

‘‘इस बार तबादला तरक्की के साथ होगा. उसे रुकवाना हानिकारक होगा. चिंता क्यों करती हो, जिस जगह भी जाएंगे, वहां एक नया विद्यालय शुरू किया जा सकता है.’’

‘‘यहां सब जम गया था. कहांकहां नए गड्ढे खोदें और पौधे रोपें.’’

‘‘तो क्या हुआ? अब तो माली निपुण हो गया है. फिर वहां तुम्हारा स्तर ऊंचा होने का भी तो लाभ मिलेगा. वहां कौन काट सकेगा तुम्हारी बात?’’

‘‘अब जो होगा, देखूंगी. पर जगहजगह तंबू गाड़ना मुझे भाता नहीं.’’

‘‘भई, हम लोग तो गाडि़या लुहार हैं. दिन में सड़क किनारे गाड़ी रोकी, कुदाल, खुरपी, हंसिए बनाए, बेचे और बढ़ चले. इस जीवन का अपना अलग रस है.’’

‘‘हर कोई आप की तरह दार्शनिक नहीं होता.’’

बात पर तो विराम लग गया परंतु अंकिता के मन की चंचलता बनी रही.

वसंतपंचमी के अवसर पर दूरदर्शन के प्रादेशिक प्रसारण में संगीत कार्यक्रम प्रस्तुत करने के प्रस्ताव को अंकिता ने स्वीकार तो कर लिया परंतु उस के लिए 2 गीत तैयार कराने में उसे और छात्राओं को बड़ा परिश्रम करना पड़ा. कार्यक्रम का सफल मंचन हो जाने पर उसे बड़ा संतोष मिला.

अंकिता अभी वसंत के कार्यक्रम की अपनी थकान उतार भी नहीं पाई थी कि उसे अपने पिता का पत्र मिला.

‘‘टीवी के प्रादेशिक कार्यक्रम में तुम्हारे विद्यालय द्वारा प्रस्तुत कार्यक्रम देखा. संचालिका के रूप में तुम्हें पहचान लिया. कार्यक्रम बहुत अच्छा था. मन बहुत प्रसन्न हुआ. लेकिन बेटी, एक बात याद रखना कि विद्या के क्षेत्र में प्रसाद वर्जित है.’’

पत्र पाने के बाद अंकिता आत्मसंतोष से भर उठी.

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January 27, 2022 at 09:00AM

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