Wednesday 5 January 2022

अपना घर- भाग 4: क्या हुआ था आलोक और मालती के बीच

Writer- किरण आहूजा

पिछली बार जब डाक्टर से दिखाने यहां आए थे और डाक्टर ने अरुण को आलूचीनी खाने से पहरेज करने को कहा, तब वाणी ने आलू हटा कर अरुण की थाली में सहजन ज्यादा परोस दिया था. तब कैसे मालती ने सब से नजरें बचा कर उन की थाली से सारे सहजन निकाल कर आलू भर दिया था. सब देखा था वाणी ने पर कुछ बोल नहीं पाई थी. ऐसा कितनी बार हुआ है जब मालती ने ऐसा किया था. घरगृहस्थी की छोटीछोटी बातें बता कर वह आलोक को परेशान नहीं करना चाहती थी. मांबेटे के बीच झगड़ा करवा कर वह दोषी नहीं बनना चाहती थी और इसी बात का मालती फायदा उठाती थी. यही लोग जब उस के मायके जाते हैं, तो कैसे रेणु और अरुण उन के स्वागत में जुट जाते हैं. उन के लिए तरहतरह के पकवान तैयार होने लगते हैं कि बेटी की ससुराल वाले आ रहे हैं और  एक ये लोग हैं. यह सब सोच कर वाणी  का मन कुपित हो उठा.

जानती है, आलोक ऐसा बिलकुल नहीं है. वे तो अरुण और रेणु को अपने मांपापा जैसा ही मानसम्मान देते हैं. लेकिन मालती अपने बेटे को जोरू का गुलाम समझती है. लेकिन इस बात से आलोक को कोई फर्क नहीं पड़ता है. आलोक अपनी मां के अक्खड़ व्यवहार से अच्छी तरह से परिचित है. कभीकभी तो इतनी चिढ़ होती है उसे कि मन करता है यह घर छोड़ कर कहीं और रहने चला जाए. वाणी ही है जो आलोक के गुस्से को दबा कर रखती.

दिवाली के त्योहार पर सब के लिए नए कपड़े और उपहार का समाना खरीदते समय वाणी ने अपने मांपापा के लिए नए कपड़े खरीद लिए थे. सेम वैसी ही साड़ी उस ने रेणु के लिए भी खरीदी  जैसी मालती के लिए. लेकिन यह बात मालती की आंखों में चुभ गई. घुमा कर साड़ी फेंकती हुई बोली थी कि उसे यह साड़ी नहीं चाहिए क्योंकि उस का ओहदा रेणु से बड़ा है. गुस्से से आलोक ने आगे बढ़ कर बोलना चाहा लेकिन वाणी ने उस का हाथ पकड़ कर अंखों से इशारा किया कि प्लीज, जाने दो.

कई बार झूठे आंसू बहाती हुई मालती ने वाणी के प्रति आलोक को भड़काना चाहा, मगर आलोक खूब समझता है अपनी मां को कि वह कैसी है. वाणी ही है जो उसे बरदाश्त कर रही है, वरना कोई और लड़की होती न, तो कब का यह घर छोड़ कर चली गई होती. कहते हैं, बहू खराब होती है. अपने सासससुर को सहन नहीं कर सकती. लेकिन यहां उलटा था.

“मम्मीपापा गए?” बाहर से आते ही आलोक ने पूछा. अपने सासससुर को वह मम्मीपापा ही बोलता है, “क्या कहा डाक्टर ने, सब ठीक है?”

“हूं, ठीक है सब” वाणी ने जवाब दिया और आलोक के लिए चाय बनाने चली गई. चाय पीते हुए ही आलोक उसे देखे जा रहा था और सोच रहा था कि जरूर कोई बात हुई है आज. जूठे कप उठा कर वह किचन में जाने ही लगी कि आलोक ने उसे अपनी बांहों में भर कर चूम लिया. वह भी आज अपने पति के सीने से लग कर खूब रो लेना चाहती थी, कहना चाहती थी कि आज मालती ने उस के मांपापा की बहुत इंसल्ट की, वह भी मनोरमा मामी के सामने. लेकिन उस ने अपनी  नम आंखों को धीरे से साफ किया और यह बोल कर किचन में जाने लगी कि सब ठीक है, वह चिंता न करे. क्या कहती वह? वह बेचारा तो खुद 8-10 दिन पर घर आता है, तो क्या टैंशन दे उसे. मार्केटिंग जौब में ज़्यादातर बाहर ही घूमना पड़ता है आलोक को.

रोज की तरह खानापीना निबटाने के बाद, किचन की सफाई कर के करीब रात के 11 बजे वाणी को बिस्तर नसीब हुआ. वह किताब ले कर पढ़ने ही लगी कि उस की आंखें लग गईं और किताब उस के हाथ में ही रह गई. बड़े प्यार से आलोक ने उस के हाथ से किताब ले कर टेबल पर रख दी और बड़े गौर से निहारा. आज वाणी कुछ ज्यादा ही थकीथकी लग रही थी. उस ने धीरे से उसे कंबल ओढ़ाया और उस की बगल में लेट गया. हमेशा की तरह सुबह उठ कर सब से पहले वाणी ने मालती और मनोरमा मामी को चाय बना कर दी, फिर नाश्ताखाना की तैयारी में जुट गई. रोज वह औफिस जाने से पहले दोपहर के खाने के लिए दालसब्जी बना कर जाती थी, फिर कामवाली बाई कमला आ कर रोटी या चावल, जिस को जो चाहिए, गरमागरम बना कर परोस देती थी. इस के लिए वह उसे एक्स्ट्रा पैसे देती थी. कमला भले ही गरीब कामवाली थी पर उस के आचारविचार बहुत उच्च थे. मालती से घर का कोई काम नहीं होता था. उस के हाथपांव नहीं, सिर्फ जबान ही चलती थी ज्यादा. शाम को औफिस से आ कर, कपड़े न बदल कर पहले वाणी किचन में चली जाती थी क्योंकि उस के सासससुर को रात के 8 बजे तक खाना मिल जाना चाहिए. बाकी के लोगों को जैसेजैसे भूख लगती, या तो वे निकाल कर खुद ही खा लेते या वाणी को आवाज लगा देते थे. वाणी का देवर अंकुर एक प्राइवेट कंपनी में जौब करता है और ननद दिव्या कालेज के अंतिम वर्ष में है.  सासससुर को खिलानेपिलाने के बाद वह फ्रैश हो कर आराम से जो मन होता, करती है. वाणी की आदत है रात को वह बिना पढ़े नहीं सोती. चाहे कितनी भी रात हो जाए, एकदो पन्ने पढ़ कर ही सोती है. उस की अलमारी में पत्रिकाओं के अलावा अच्छेअच्छे लेखकों के नौवेल्स भी भरे पड़े हैं. लेकिन आलोक एकदम उस के उलट है. उसे किताब पढ़ना बोरिंग काम लगता है. उसे मोबाइल चलाना बहुत पसंद है. घंटों वह मोबाइल पर गुजार देता है और इसी बात पर कभीकभी वाणी और आलोक के बीच झगड़ा भी हो जाता है.

“पापा, आप को याद है न, 2 दिनों बाद डाक्टर से आप का अपौइंटमैंट है?” वाणी ने  याद दिलाई तो अरुण कहने लगे कि हां, और उन्होंने अपना शुगर चैकअप भी करवा ली है. “गुड, तो पापा, आप और मम्मी आज ही यहां आ जाओ, इसी बहाने हमें एक दिन ज्यादा साथ रहने का मौका मिल जाएगा,” चहकती हुई वाणी बोली तो अरुण कहने लगे कि हां, वे भी यही सोच रहे थे. मगर रेणु ऐसा नहीं चाहती थी, बल्कि वह तो वाणी की ससुराल जाना ही नहीं चाहती थी.  मगर बापबेटी के सामने उस की कहां चलती है भला.

“देखा न पापा, इस बार आप का शुगर लैवल कितना कम आया है, एकदम नियंत्रण में,” वाणी बोली तो अरुण कहने लगे कि इस बार उन्होंने मीठा छुआ तक नहीं. “हां, बस, ऐसे ही आप मीठा खाने पर कंट्रोल रखो पापा, देखना सब ठीक हो जाएगा. अरे मम्मी, आप किस सोच में डूबी हो?” पीछे की सीट पर रेणु को गुमसुम बैठे देख वाणी ने टोका तो हंसते हुए अरुण कहने लगे कि उस की मां बाहर का नजारा देख रही है. लेकिन रेणु कहने लगी कि इस बार वाणी की ससुराल न जा कर क्यों न वे लोग किसी होटल में रुक जाएं? “क्यों, होटल में क्यों मम्मी, जब यहां मेरा घर है तो? ऐसी कोई बात नहीं है जैसा आप सोच रही हो. चिल्ल करो”  बोल कर वह हंसी तो अरुण भी हंस पड़े. मगर रेणु को हंसी न आई. मनोरमा मामी वाला कमरा खाली था तो वाणी ने सोचा उसी में अरुण और रेणु सो जाएंगे, किसी को कोई परेशानी भी नहीं होगी. वैसे, आलोक ने कहा था कि वह जल्दी आने की कोशिश करेगा, सब साथ में डाक्टर के पास चलेंगे.  लेकिन शायद उसे काम से फुरसत नहीं मिली होगी. यह सोचती हुई वाणी ने गाड़ी घर की तरफ मोड़ ली.

The post अपना घर- भाग 4: क्या हुआ था आलोक और मालती के बीच appeared first on Sarita Magazine.



from कहानी – Sarita Magazine https://ift.tt/3JJC7rr

Writer- किरण आहूजा

पिछली बार जब डाक्टर से दिखाने यहां आए थे और डाक्टर ने अरुण को आलूचीनी खाने से पहरेज करने को कहा, तब वाणी ने आलू हटा कर अरुण की थाली में सहजन ज्यादा परोस दिया था. तब कैसे मालती ने सब से नजरें बचा कर उन की थाली से सारे सहजन निकाल कर आलू भर दिया था. सब देखा था वाणी ने पर कुछ बोल नहीं पाई थी. ऐसा कितनी बार हुआ है जब मालती ने ऐसा किया था. घरगृहस्थी की छोटीछोटी बातें बता कर वह आलोक को परेशान नहीं करना चाहती थी. मांबेटे के बीच झगड़ा करवा कर वह दोषी नहीं बनना चाहती थी और इसी बात का मालती फायदा उठाती थी. यही लोग जब उस के मायके जाते हैं, तो कैसे रेणु और अरुण उन के स्वागत में जुट जाते हैं. उन के लिए तरहतरह के पकवान तैयार होने लगते हैं कि बेटी की ससुराल वाले आ रहे हैं और  एक ये लोग हैं. यह सब सोच कर वाणी  का मन कुपित हो उठा.

जानती है, आलोक ऐसा बिलकुल नहीं है. वे तो अरुण और रेणु को अपने मांपापा जैसा ही मानसम्मान देते हैं. लेकिन मालती अपने बेटे को जोरू का गुलाम समझती है. लेकिन इस बात से आलोक को कोई फर्क नहीं पड़ता है. आलोक अपनी मां के अक्खड़ व्यवहार से अच्छी तरह से परिचित है. कभीकभी तो इतनी चिढ़ होती है उसे कि मन करता है यह घर छोड़ कर कहीं और रहने चला जाए. वाणी ही है जो आलोक के गुस्से को दबा कर रखती.

दिवाली के त्योहार पर सब के लिए नए कपड़े और उपहार का समाना खरीदते समय वाणी ने अपने मांपापा के लिए नए कपड़े खरीद लिए थे. सेम वैसी ही साड़ी उस ने रेणु के लिए भी खरीदी  जैसी मालती के लिए. लेकिन यह बात मालती की आंखों में चुभ गई. घुमा कर साड़ी फेंकती हुई बोली थी कि उसे यह साड़ी नहीं चाहिए क्योंकि उस का ओहदा रेणु से बड़ा है. गुस्से से आलोक ने आगे बढ़ कर बोलना चाहा लेकिन वाणी ने उस का हाथ पकड़ कर अंखों से इशारा किया कि प्लीज, जाने दो.

कई बार झूठे आंसू बहाती हुई मालती ने वाणी के प्रति आलोक को भड़काना चाहा, मगर आलोक खूब समझता है अपनी मां को कि वह कैसी है. वाणी ही है जो उसे बरदाश्त कर रही है, वरना कोई और लड़की होती न, तो कब का यह घर छोड़ कर चली गई होती. कहते हैं, बहू खराब होती है. अपने सासससुर को सहन नहीं कर सकती. लेकिन यहां उलटा था.

“मम्मीपापा गए?” बाहर से आते ही आलोक ने पूछा. अपने सासससुर को वह मम्मीपापा ही बोलता है, “क्या कहा डाक्टर ने, सब ठीक है?”

“हूं, ठीक है सब” वाणी ने जवाब दिया और आलोक के लिए चाय बनाने चली गई. चाय पीते हुए ही आलोक उसे देखे जा रहा था और सोच रहा था कि जरूर कोई बात हुई है आज. जूठे कप उठा कर वह किचन में जाने ही लगी कि आलोक ने उसे अपनी बांहों में भर कर चूम लिया. वह भी आज अपने पति के सीने से लग कर खूब रो लेना चाहती थी, कहना चाहती थी कि आज मालती ने उस के मांपापा की बहुत इंसल्ट की, वह भी मनोरमा मामी के सामने. लेकिन उस ने अपनी  नम आंखों को धीरे से साफ किया और यह बोल कर किचन में जाने लगी कि सब ठीक है, वह चिंता न करे. क्या कहती वह? वह बेचारा तो खुद 8-10 दिन पर घर आता है, तो क्या टैंशन दे उसे. मार्केटिंग जौब में ज़्यादातर बाहर ही घूमना पड़ता है आलोक को.

रोज की तरह खानापीना निबटाने के बाद, किचन की सफाई कर के करीब रात के 11 बजे वाणी को बिस्तर नसीब हुआ. वह किताब ले कर पढ़ने ही लगी कि उस की आंखें लग गईं और किताब उस के हाथ में ही रह गई. बड़े प्यार से आलोक ने उस के हाथ से किताब ले कर टेबल पर रख दी और बड़े गौर से निहारा. आज वाणी कुछ ज्यादा ही थकीथकी लग रही थी. उस ने धीरे से उसे कंबल ओढ़ाया और उस की बगल में लेट गया. हमेशा की तरह सुबह उठ कर सब से पहले वाणी ने मालती और मनोरमा मामी को चाय बना कर दी, फिर नाश्ताखाना की तैयारी में जुट गई. रोज वह औफिस जाने से पहले दोपहर के खाने के लिए दालसब्जी बना कर जाती थी, फिर कामवाली बाई कमला आ कर रोटी या चावल, जिस को जो चाहिए, गरमागरम बना कर परोस देती थी. इस के लिए वह उसे एक्स्ट्रा पैसे देती थी. कमला भले ही गरीब कामवाली थी पर उस के आचारविचार बहुत उच्च थे. मालती से घर का कोई काम नहीं होता था. उस के हाथपांव नहीं, सिर्फ जबान ही चलती थी ज्यादा. शाम को औफिस से आ कर, कपड़े न बदल कर पहले वाणी किचन में चली जाती थी क्योंकि उस के सासससुर को रात के 8 बजे तक खाना मिल जाना चाहिए. बाकी के लोगों को जैसेजैसे भूख लगती, या तो वे निकाल कर खुद ही खा लेते या वाणी को आवाज लगा देते थे. वाणी का देवर अंकुर एक प्राइवेट कंपनी में जौब करता है और ननद दिव्या कालेज के अंतिम वर्ष में है.  सासससुर को खिलानेपिलाने के बाद वह फ्रैश हो कर आराम से जो मन होता, करती है. वाणी की आदत है रात को वह बिना पढ़े नहीं सोती. चाहे कितनी भी रात हो जाए, एकदो पन्ने पढ़ कर ही सोती है. उस की अलमारी में पत्रिकाओं के अलावा अच्छेअच्छे लेखकों के नौवेल्स भी भरे पड़े हैं. लेकिन आलोक एकदम उस के उलट है. उसे किताब पढ़ना बोरिंग काम लगता है. उसे मोबाइल चलाना बहुत पसंद है. घंटों वह मोबाइल पर गुजार देता है और इसी बात पर कभीकभी वाणी और आलोक के बीच झगड़ा भी हो जाता है.

“पापा, आप को याद है न, 2 दिनों बाद डाक्टर से आप का अपौइंटमैंट है?” वाणी ने  याद दिलाई तो अरुण कहने लगे कि हां, और उन्होंने अपना शुगर चैकअप भी करवा ली है. “गुड, तो पापा, आप और मम्मी आज ही यहां आ जाओ, इसी बहाने हमें एक दिन ज्यादा साथ रहने का मौका मिल जाएगा,” चहकती हुई वाणी बोली तो अरुण कहने लगे कि हां, वे भी यही सोच रहे थे. मगर रेणु ऐसा नहीं चाहती थी, बल्कि वह तो वाणी की ससुराल जाना ही नहीं चाहती थी.  मगर बापबेटी के सामने उस की कहां चलती है भला.

“देखा न पापा, इस बार आप का शुगर लैवल कितना कम आया है, एकदम नियंत्रण में,” वाणी बोली तो अरुण कहने लगे कि इस बार उन्होंने मीठा छुआ तक नहीं. “हां, बस, ऐसे ही आप मीठा खाने पर कंट्रोल रखो पापा, देखना सब ठीक हो जाएगा. अरे मम्मी, आप किस सोच में डूबी हो?” पीछे की सीट पर रेणु को गुमसुम बैठे देख वाणी ने टोका तो हंसते हुए अरुण कहने लगे कि उस की मां बाहर का नजारा देख रही है. लेकिन रेणु कहने लगी कि इस बार वाणी की ससुराल न जा कर क्यों न वे लोग किसी होटल में रुक जाएं? “क्यों, होटल में क्यों मम्मी, जब यहां मेरा घर है तो? ऐसी कोई बात नहीं है जैसा आप सोच रही हो. चिल्ल करो”  बोल कर वह हंसी तो अरुण भी हंस पड़े. मगर रेणु को हंसी न आई. मनोरमा मामी वाला कमरा खाली था तो वाणी ने सोचा उसी में अरुण और रेणु सो जाएंगे, किसी को कोई परेशानी भी नहीं होगी. वैसे, आलोक ने कहा था कि वह जल्दी आने की कोशिश करेगा, सब साथ में डाक्टर के पास चलेंगे.  लेकिन शायद उसे काम से फुरसत नहीं मिली होगी. यह सोचती हुई वाणी ने गाड़ी घर की तरफ मोड़ ली.

The post अपना घर- भाग 4: क्या हुआ था आलोक और मालती के बीच appeared first on Sarita Magazine.

January 01, 2022 at 10:00AM

No comments:

Post a Comment