Tuesday 18 January 2022

26 January Special: गरम स्पर्श- तबादले पर क्या था मनीष के दिल का हाल

2कैप्टन मनीष को असम से नागालैंड में तबादले का और्डर मिला तो उन का दिल कुछ उदास होने लगा. पर और भी बहुत सारे साथियों के तबादले के और्डर आए थे, यह जान कर कुछ ढाढ़स बंधा. सोचा, कुछ तो दोस्त साथ होंगे, वक्त अच्छा बीतेगा. नागा विद्रोहियों की सरगर्मियां काफी बढ़ी हुई थीं. यही देखते हुए पहाड़ी फौज की 4 बटालियनों को कोहिमा भेजना जरूरी समझा गया. कैप्टन मनीष कोहिमा रैजिमैंट हैडक्वार्टर पर हाजिर हुए तो उन की कंपनी को कोहिमा से 60 किलोमीटर की दूरी पर खूबसूरत पहाडि़यों के दामन में स्थित फौजी कैंप में पहुंचने का आदेश मिला. जैसे ही वे सब कैंप पहुंचे तो चारों ओर नजर फिराते हुए बहुत प्रसन्न हुए.

चारों तरफ ऊंचे पहाड़, उन पर साल और देवदार के पेड़. नीचे मैदानों में चारों ओर मीलों तक फैली हरियाली और सब्ज मखमली घास. तरहतरह के कुसुमित पुष्पों ने उन का मन मोह लिया. दूसरे दिन शाम को जीप में कैंप से 2 मील की दूरी पर निरीक्षण चौकी का मुआयना कर के लौटे तो रास्ते में एक छोटे रैस्टोरेंट के सामने कौफी पीने के लिए जीप रोक दी. भीतर कोने में पड़ी टेबल पर कौफी का और्डर दे कर बैठे ही थे कि उन की नजर कुछ दूर बैठे एक जोड़े पर गई. दोनों ने मुसकराते, गरदन हिला कर कैप्टन का अभिवादन किया. कैप्टन ने देखा कि दोनों स्थानीय थे और चेहरेमोहरे से नागालैंड के ही लग रहे थे. लड़की स्कर्ट व ब्लाउज पहने हुए थी. उस का जिस्म खूबसूरत व सुडौल था, नाकनक्श तीखे थे. दोनों ने आपस में कुछ खुसुरफुसुर की और उठ कर कैप्टन के पास आए.

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‘‘हैलो सर, मे वी गिव यू कंपनी?’’

‘‘ओह, श्योर,’’ कैप्टन ने चारों तरफ पड़ी कुरसियों की ओर इशारा करते हुए कहा. पहाड़ी वेशभूषा में बैरा कौफी ले कर आया तो कैप्टन ने उसे 2 कप और लाने के लिए कहा. बैरा कौफी रख कर चला गया. आंखों में हलकी मुसकराहट, पर बिना कुछ कहे नागा नौजवान ने कौफी का कप कैप्टन की ओर बढ़ाया.

‘‘थैंक यू,’’ कैप्टन ने कप ले कर उन्हें भी कौफी पीने के लिए इशारा किया.

‘‘डौली वांगजू,’’ नौजवान नागा ने पास बैठी लड़की के कंधे पर हाथ रखते हुए उस का नाम बताया, ‘‘मी फिलिप,’’ फिर अपना नाम दोहराया.

कैप्टन ने मुसकराते हुए अपनी पहचान दी, ‘‘माई सैल्फ मनीष.’’ कुछ देर तक बातचीत होती रही फिर कैप्टन मनीष वहां से चल दिए.

कैंप में लौट कर कैप्टन मनीष हाथमुंह धो कर रात को मेस (भोजन कक्ष) में डिनर करने गए. वहां बातोंबातों में उन्होंने मेजर खन्ना को नागा जोड़े के साथ हुई मुलाकात के बारे में बताया, ‘‘जोड़ी तो बहुत खूबसूरत थी, पर पता नहीं चला कि उन का आपसी रिश्ता क्या है?’’

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‘‘पर आप को चिंता क्यों है कि वे आपस में क्या लगते हैं?’’

‘‘नहींनहीं, मुझे इस बात से क्या,’’ कैप्टन ने तत्पर जवाब दे कर बात को टाल दिया.

दूसरे दिन पूर्व निर्धारित प्रोग्राम के अनुसार बागियों के खिलाफ अभियान हेतु 3 दिन के लिए जाने का और्डर मिला. कैंप से गाडि़यों का काफिला उत्तरपूर्व की तरफ रवाना हुआ तो नौजवानों में उत्साह था. उन के चमकते चेहरों से यों जान पड़ रहा था कि वे मैदान मार कर ही लौटेंगे. कैंप से रवाना होने पर मैदानी इलाके से गुजरता गाडि़यों का काफिला थोड़ी देर के लिए मिट्टी के गुबार में गुम हो गया. सिर्फ गाडि़यों के इंजन की गड़गड़ाहट और जूजू की आवाज सुनाई दे रही थी. कुछ देर के बाद मैदानी इलाका पार कर के काफिला जैसे ही बोम ला पहाड़ी के कच्चे रास्ते से ऊंचाई चढ़ने लगा वैसे ही धूल का गुबार पीछे रह गया. दूर से टेढ़ीमेढ़ी पहाड़ी पगडंडियों पर गुजरता गाडि़यों का काफिला इतना छोटा सा लग रहा था मानो बच्चों ने अपने लारीनुमा खिलौनों में चाबी भर कर एकदूसरे के पीछे छोड़ दी हो.

कैंप में पीछे रह गए जवान हाथ हिला कर काफिले को देर तक विदा करते रहे. कुछ ही पल में काफिला आंखों से ओझल हो गया. 3 दिन के बाद काफिला लौटा. मुखबिर की सूचनानुसार फौजियों ने बोम ला पहाडि़यों के पीछे बागियों के अड्डों को चारों तरफ से घेर लिया पर घेराव के पहले ही बागी फरार हो गए थे. फौजियों ने सारा इलाका छान मारा फिर भी कोई सुराग न मिला. कैप्टन मनीष दोस्तों के साथ मैस में गपशप करने के बावजूद बोरियत महसूस करने लगे थे. एक दिन फिर जीप में बैठ कर कैंप से बाहर जा कर उसी रैस्टोरेंट में कौफी पीने के लिए पहुंचे. भीतर पहुंचे तो उन की नजर डौली वांगजू पर पड़ी जो कोने में पड़ी टेबल पर अखबार पढ़ रही थी. इस बार वह अकेली थी. कैप्टन मनीष अभी दूसरे कोने में पड़ी कुरसी पर बैठ ही रहे थे कि डौली वहां से उठ कर उन के पास आई.

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‘‘हैलो कैप्टन,’’ डौली ने मुसकराते हुए उन का अभिवादन किया.

‘‘हैलो मैडम, हाउ डू यू डू?’’ मनीष उस का नाम भूल गए थे.

डौली ने उन्हें याद दिलाते हुए कहा, ‘‘डौली, सर.’’

‘‘ओह डौली, प्लीज,’’ कैप्टन ने अपनी गलती स्वीकारते हुए कहा.

डौली फौरन दूसरी कुरसी पर बैठी और उन से 3-4 दिन नजर न आने का कारण पूछा. पर मनीष ने कैंप से आने का मौका न मिलने की वजह बता कर बात वहीं खत्म कर दी. दोनों ने मिल कर कौफी पी. मनीष ने डौली से उस के मांबाप के बारे में जानना चाहा. डौली ने उन्हें बताया कि वह मिशनरी स्कूल से 2 साल पहले मैट्रिक पास कर चुकी है. उस के मातापिता दोनों मिशनरी स्कूल में टीचर थे. स्कूल के बाद दोनों प्रचार का काम करते थे.

मनीष रहरह कर डौली की आंखों में निहारते रहे, उन में बेहिसाब कशिश थी. बौबकट बालों की सुनहरी लटें कभीकभी हवा के झोंके से उस के सुर्ख गालों को चूमने की कोशिश कर रही थीं, जिन्हें डौली बाएं हाथ की कनिष्ठिका के लंबे नाखून से निहायत खूबसूरत अंदाज में हटाती रही. मनीष उस के चेहरे को बारबार गौर से देख रहे थे. सोच रहे थे कि डौली के नाकनक्श न बर्मी थे, न ही चीनी वंश के. पहाडि़यों की तरह उस की नाक चपटी और समतल भी नहीं थी. बल्कि उत्तरी भारत के मैदानी इलाके के आर्य वंश का सा रूपसौष्ठव था. बेपनाह हुस्न का ऐसा बुत देश के दूरदराज घनी पहाडि़यों व वादियों में भी मिल सकता है, सोच कर वे हैरान थे.

ये भी पढ़ें- संदेह के बादल- भाग 2: क्यों अपने ही जाल में फंसती जा रही थी सुरभि

मनीष का जी उठने को नहीं हो रहा था. पर कैंप में वक्त पर पहुंचना था, इसलिए डौली की ओर मुसकरा कर उठने लगे. डौली ने एक अजीब मुसकराहट के साथ कंधे को एक मामूली झटका दे कर इजाजत देनी चाही, तो कैप्टन मनीष से रहा नहीं गया. वे डौली का हाथ थाम कर उस की आंखों में झांकते रहे, जैसे उस के बेपनाह हुस्न को नजरों से एक ही घूंट में पीना चाहते हों. डौली की मस्तीभरी निगाहों में मनीष पलभर के लिए अपनी सुधबुध भुला बैठे. अचानक हाथ की उंगलियों पर डौली के सुर्ख लबों का स्पर्श महसूस करते हुए होश में आए. उन का चेहरा सुर्ख हो गया. खुद को संभालते हुए अगले दिन मिलने का वादा करते हुए वे मुसकरा कर जीप में सवार हो कर चले गए. पर रास्ते भर एक अनोखा एहसास उन के साथ रहा. एक अजीब मादकता उन पर हावी रही.

कैंप में लौट कर थोड़ी देर के लिए वे अपने तंबू में जा कर लेट गए. काफी देर तक किसी खूबसूरत खयाल ने उन का पीछा नहीं छोड़ा. काश, डौली के साथ ब्याह रचा कर उसे राजस्थान में अपने घर ले कर जा सकते. आकाश की इस अप्सरा को अपनी बांहों में भर कर प्यार करते, या कभी सामने बिठा कर सजदा करते. डौली को हासिल कर के, काश स्वप्निल आनंद का अनुभव कर पाते. पलभर की मुलाकात में मनीष को डौली की शांत नीली आंखों की गहराई में एक अजीब कशिश के साथसाथ नजदीकी और अपनापन भी नजर आया था.

दूसरे दिन फिर बागियों के खिलाफ अभियान का दूसरा चरण उत्तरपश्चिम की तरफ जोला पहाडि़यों की घाटियों में तय हुआ. शाम के वक्त अंधेरा होने के बाद मुखबिरों की गुप्त सूचना के अनुसार फौजी दल जोला पहाडि़यों की तरफ रवाना हुआ. जोला की बड़ी पहाड़ी के पीछे बागियों के दल के छिपे रहने की जानकारी थी. फौजी जवानों ने जोला दर्रे से काफी पहले गाडि़यों को रोका और हथियारों के साथ वे पैदल चल पड़े. चांदनी रात थी. दुश्मन की नजर न पड़े, इसलिए छोटीछोटी टोलियों में जोला दर्रे के नजदीकी द्वार पर पहुंचे और फौरन

2-2 सैनिकों के ग्रुप में तितरबितर हो कर पहाडि़यों के घने झुंड की ओट में छिप कर मोरचा संभाले बैठे रहे. कैप्टन मनीष ने अपने साथ तेजकरन को रख लिया. अमावस के बाद चौथे दिन वाला चांद बहुत देर न रुक सका. अंधेरा जैसेजैसे बढ़ने लगा वैसेवैसे सिपाहियों की बेसब्री बढ़ने लगी. पता नहीं, शायद सारी रात यों ही टोह में बैठे गुजर जाए. यों ही इंतजार करते रात का अंतिम पहर आ गया. अचानक जोला दर्रे के छोर पर ऐसा लगा जैसे कुछ धुंधली परछाइयां बिना आवाज के आगे बढ़ रही हैं. टोह में बैठे फौजी दल के सिपाही हरकत में आ गए. सभी के हाथ राइफलों और मशीनगनों के ट्रिगरों पर पहुंच गए और कैप्टन मनीष के और्डर का इंतजार करने लगे.

धुंधली परछाइयां काले लिबास में धीरेधीरे उन झाडि़यों के घने झुरमुट की तरफ बढ़ रही थीं, जिन की ओट में कैप्टन मनीष और सूबेदार तेजकरन टोह में बैठे थे. दूसरे दल से एक फौजी की राइफल से अचानक गोली चल जाने से 2 साए एक तरफ दौड़े और 2 कैप्टन के दल की तरफ. कैप्टन की पिस्तौल की गोली से एक गिर पड़ा. फौजी दस्ते के लिए कैप्टन का यह इशारा जैसे और्डर था. चारों तरफ से मशीनगनों से गोलियों की बौछार शुरू हो गई. जवाब में बागियों ने गोलियां चलाईं. पर कुछ देर के बाद जवाबी गोलियों की आवाज शांत हो गई. फौजी दल की गोलीबारी जारी रही. काफी देर तक जवाबी गोलियों के न आने से फौजी दल ने भी गोलीबारी बंद कर दी.

पौ फटते ही रोशनी का प्रभामंडल बढ़ने लगा. फौजी पहाडि़यों से निकल कर अपने शिकार को कब्जे में करने के लिए उतावले हो रहे थे. पर कैप्टन ने उन्हें रोका, कि कहीं दुश्मन ताक लगाए बैठा हो और अचानक हमला कर दे. इसलिए सिर्फ 2 फौजी जा कर लाशों का निरीक्षण करें. 2 नौजवानों ने आगे बढ़ कर झाडि़यों से लाशें ढूंढ़ निकालीं. कुल 2 लाशें मिलीं. शिनाख्त करने की कोशिश की गई, पर बेकार. इतने में कैप्टन और साथी भी पहुंच गए. बागियों की लाशों की पहचान कर पाना मुश्किल काम था. शक्ल से एक मर्द लग रहा था तो दूसरी औरत. दोनों ने गहरे नीले रंग की शर्ट और जींस पहनी हुई थी. जैसे ही 2 जवानों ने उलटी पड़ी लाशों को सीधा कर के लिटाया तो कैप्टन अकस्मात चौंक उठे. ‘डौली और फिलिप को देख कर कैप्टन का चेहरा शांत और गंभीर हो गया. झुक कर उन्होंने डौली के सर्द चेहरे से बालों की लट अपनी गरम उंगलियों से हटा कर दूर कर दी. पर डौली का सर्द चेहरा मनीष की उंगलियों का गरम स्पर्श महसूस न कर सका.

(अनुवाद : देवी नागरानी)

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2कैप्टन मनीष को असम से नागालैंड में तबादले का और्डर मिला तो उन का दिल कुछ उदास होने लगा. पर और भी बहुत सारे साथियों के तबादले के और्डर आए थे, यह जान कर कुछ ढाढ़स बंधा. सोचा, कुछ तो दोस्त साथ होंगे, वक्त अच्छा बीतेगा. नागा विद्रोहियों की सरगर्मियां काफी बढ़ी हुई थीं. यही देखते हुए पहाड़ी फौज की 4 बटालियनों को कोहिमा भेजना जरूरी समझा गया. कैप्टन मनीष कोहिमा रैजिमैंट हैडक्वार्टर पर हाजिर हुए तो उन की कंपनी को कोहिमा से 60 किलोमीटर की दूरी पर खूबसूरत पहाडि़यों के दामन में स्थित फौजी कैंप में पहुंचने का आदेश मिला. जैसे ही वे सब कैंप पहुंचे तो चारों ओर नजर फिराते हुए बहुत प्रसन्न हुए.

चारों तरफ ऊंचे पहाड़, उन पर साल और देवदार के पेड़. नीचे मैदानों में चारों ओर मीलों तक फैली हरियाली और सब्ज मखमली घास. तरहतरह के कुसुमित पुष्पों ने उन का मन मोह लिया. दूसरे दिन शाम को जीप में कैंप से 2 मील की दूरी पर निरीक्षण चौकी का मुआयना कर के लौटे तो रास्ते में एक छोटे रैस्टोरेंट के सामने कौफी पीने के लिए जीप रोक दी. भीतर कोने में पड़ी टेबल पर कौफी का और्डर दे कर बैठे ही थे कि उन की नजर कुछ दूर बैठे एक जोड़े पर गई. दोनों ने मुसकराते, गरदन हिला कर कैप्टन का अभिवादन किया. कैप्टन ने देखा कि दोनों स्थानीय थे और चेहरेमोहरे से नागालैंड के ही लग रहे थे. लड़की स्कर्ट व ब्लाउज पहने हुए थी. उस का जिस्म खूबसूरत व सुडौल था, नाकनक्श तीखे थे. दोनों ने आपस में कुछ खुसुरफुसुर की और उठ कर कैप्टन के पास आए.

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‘‘हैलो सर, मे वी गिव यू कंपनी?’’

‘‘ओह, श्योर,’’ कैप्टन ने चारों तरफ पड़ी कुरसियों की ओर इशारा करते हुए कहा. पहाड़ी वेशभूषा में बैरा कौफी ले कर आया तो कैप्टन ने उसे 2 कप और लाने के लिए कहा. बैरा कौफी रख कर चला गया. आंखों में हलकी मुसकराहट, पर बिना कुछ कहे नागा नौजवान ने कौफी का कप कैप्टन की ओर बढ़ाया.

‘‘थैंक यू,’’ कैप्टन ने कप ले कर उन्हें भी कौफी पीने के लिए इशारा किया.

‘‘डौली वांगजू,’’ नौजवान नागा ने पास बैठी लड़की के कंधे पर हाथ रखते हुए उस का नाम बताया, ‘‘मी फिलिप,’’ फिर अपना नाम दोहराया.

कैप्टन ने मुसकराते हुए अपनी पहचान दी, ‘‘माई सैल्फ मनीष.’’ कुछ देर तक बातचीत होती रही फिर कैप्टन मनीष वहां से चल दिए.

कैंप में लौट कर कैप्टन मनीष हाथमुंह धो कर रात को मेस (भोजन कक्ष) में डिनर करने गए. वहां बातोंबातों में उन्होंने मेजर खन्ना को नागा जोड़े के साथ हुई मुलाकात के बारे में बताया, ‘‘जोड़ी तो बहुत खूबसूरत थी, पर पता नहीं चला कि उन का आपसी रिश्ता क्या है?’’

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‘‘पर आप को चिंता क्यों है कि वे आपस में क्या लगते हैं?’’

‘‘नहींनहीं, मुझे इस बात से क्या,’’ कैप्टन ने तत्पर जवाब दे कर बात को टाल दिया.

दूसरे दिन पूर्व निर्धारित प्रोग्राम के अनुसार बागियों के खिलाफ अभियान हेतु 3 दिन के लिए जाने का और्डर मिला. कैंप से गाडि़यों का काफिला उत्तरपूर्व की तरफ रवाना हुआ तो नौजवानों में उत्साह था. उन के चमकते चेहरों से यों जान पड़ रहा था कि वे मैदान मार कर ही लौटेंगे. कैंप से रवाना होने पर मैदानी इलाके से गुजरता गाडि़यों का काफिला थोड़ी देर के लिए मिट्टी के गुबार में गुम हो गया. सिर्फ गाडि़यों के इंजन की गड़गड़ाहट और जूजू की आवाज सुनाई दे रही थी. कुछ देर के बाद मैदानी इलाका पार कर के काफिला जैसे ही बोम ला पहाड़ी के कच्चे रास्ते से ऊंचाई चढ़ने लगा वैसे ही धूल का गुबार पीछे रह गया. दूर से टेढ़ीमेढ़ी पहाड़ी पगडंडियों पर गुजरता गाडि़यों का काफिला इतना छोटा सा लग रहा था मानो बच्चों ने अपने लारीनुमा खिलौनों में चाबी भर कर एकदूसरे के पीछे छोड़ दी हो.

कैंप में पीछे रह गए जवान हाथ हिला कर काफिले को देर तक विदा करते रहे. कुछ ही पल में काफिला आंखों से ओझल हो गया. 3 दिन के बाद काफिला लौटा. मुखबिर की सूचनानुसार फौजियों ने बोम ला पहाडि़यों के पीछे बागियों के अड्डों को चारों तरफ से घेर लिया पर घेराव के पहले ही बागी फरार हो गए थे. फौजियों ने सारा इलाका छान मारा फिर भी कोई सुराग न मिला. कैप्टन मनीष दोस्तों के साथ मैस में गपशप करने के बावजूद बोरियत महसूस करने लगे थे. एक दिन फिर जीप में बैठ कर कैंप से बाहर जा कर उसी रैस्टोरेंट में कौफी पीने के लिए पहुंचे. भीतर पहुंचे तो उन की नजर डौली वांगजू पर पड़ी जो कोने में पड़ी टेबल पर अखबार पढ़ रही थी. इस बार वह अकेली थी. कैप्टन मनीष अभी दूसरे कोने में पड़ी कुरसी पर बैठ ही रहे थे कि डौली वहां से उठ कर उन के पास आई.

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‘‘हैलो कैप्टन,’’ डौली ने मुसकराते हुए उन का अभिवादन किया.

‘‘हैलो मैडम, हाउ डू यू डू?’’ मनीष उस का नाम भूल गए थे.

डौली ने उन्हें याद दिलाते हुए कहा, ‘‘डौली, सर.’’

‘‘ओह डौली, प्लीज,’’ कैप्टन ने अपनी गलती स्वीकारते हुए कहा.

डौली फौरन दूसरी कुरसी पर बैठी और उन से 3-4 दिन नजर न आने का कारण पूछा. पर मनीष ने कैंप से आने का मौका न मिलने की वजह बता कर बात वहीं खत्म कर दी. दोनों ने मिल कर कौफी पी. मनीष ने डौली से उस के मांबाप के बारे में जानना चाहा. डौली ने उन्हें बताया कि वह मिशनरी स्कूल से 2 साल पहले मैट्रिक पास कर चुकी है. उस के मातापिता दोनों मिशनरी स्कूल में टीचर थे. स्कूल के बाद दोनों प्रचार का काम करते थे.

मनीष रहरह कर डौली की आंखों में निहारते रहे, उन में बेहिसाब कशिश थी. बौबकट बालों की सुनहरी लटें कभीकभी हवा के झोंके से उस के सुर्ख गालों को चूमने की कोशिश कर रही थीं, जिन्हें डौली बाएं हाथ की कनिष्ठिका के लंबे नाखून से निहायत खूबसूरत अंदाज में हटाती रही. मनीष उस के चेहरे को बारबार गौर से देख रहे थे. सोच रहे थे कि डौली के नाकनक्श न बर्मी थे, न ही चीनी वंश के. पहाडि़यों की तरह उस की नाक चपटी और समतल भी नहीं थी. बल्कि उत्तरी भारत के मैदानी इलाके के आर्य वंश का सा रूपसौष्ठव था. बेपनाह हुस्न का ऐसा बुत देश के दूरदराज घनी पहाडि़यों व वादियों में भी मिल सकता है, सोच कर वे हैरान थे.

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मनीष का जी उठने को नहीं हो रहा था. पर कैंप में वक्त पर पहुंचना था, इसलिए डौली की ओर मुसकरा कर उठने लगे. डौली ने एक अजीब मुसकराहट के साथ कंधे को एक मामूली झटका दे कर इजाजत देनी चाही, तो कैप्टन मनीष से रहा नहीं गया. वे डौली का हाथ थाम कर उस की आंखों में झांकते रहे, जैसे उस के बेपनाह हुस्न को नजरों से एक ही घूंट में पीना चाहते हों. डौली की मस्तीभरी निगाहों में मनीष पलभर के लिए अपनी सुधबुध भुला बैठे. अचानक हाथ की उंगलियों पर डौली के सुर्ख लबों का स्पर्श महसूस करते हुए होश में आए. उन का चेहरा सुर्ख हो गया. खुद को संभालते हुए अगले दिन मिलने का वादा करते हुए वे मुसकरा कर जीप में सवार हो कर चले गए. पर रास्ते भर एक अनोखा एहसास उन के साथ रहा. एक अजीब मादकता उन पर हावी रही.

कैंप में लौट कर थोड़ी देर के लिए वे अपने तंबू में जा कर लेट गए. काफी देर तक किसी खूबसूरत खयाल ने उन का पीछा नहीं छोड़ा. काश, डौली के साथ ब्याह रचा कर उसे राजस्थान में अपने घर ले कर जा सकते. आकाश की इस अप्सरा को अपनी बांहों में भर कर प्यार करते, या कभी सामने बिठा कर सजदा करते. डौली को हासिल कर के, काश स्वप्निल आनंद का अनुभव कर पाते. पलभर की मुलाकात में मनीष को डौली की शांत नीली आंखों की गहराई में एक अजीब कशिश के साथसाथ नजदीकी और अपनापन भी नजर आया था.

दूसरे दिन फिर बागियों के खिलाफ अभियान का दूसरा चरण उत्तरपश्चिम की तरफ जोला पहाडि़यों की घाटियों में तय हुआ. शाम के वक्त अंधेरा होने के बाद मुखबिरों की गुप्त सूचना के अनुसार फौजी दल जोला पहाडि़यों की तरफ रवाना हुआ. जोला की बड़ी पहाड़ी के पीछे बागियों के दल के छिपे रहने की जानकारी थी. फौजी जवानों ने जोला दर्रे से काफी पहले गाडि़यों को रोका और हथियारों के साथ वे पैदल चल पड़े. चांदनी रात थी. दुश्मन की नजर न पड़े, इसलिए छोटीछोटी टोलियों में जोला दर्रे के नजदीकी द्वार पर पहुंचे और फौरन

2-2 सैनिकों के ग्रुप में तितरबितर हो कर पहाडि़यों के घने झुंड की ओट में छिप कर मोरचा संभाले बैठे रहे. कैप्टन मनीष ने अपने साथ तेजकरन को रख लिया. अमावस के बाद चौथे दिन वाला चांद बहुत देर न रुक सका. अंधेरा जैसेजैसे बढ़ने लगा वैसेवैसे सिपाहियों की बेसब्री बढ़ने लगी. पता नहीं, शायद सारी रात यों ही टोह में बैठे गुजर जाए. यों ही इंतजार करते रात का अंतिम पहर आ गया. अचानक जोला दर्रे के छोर पर ऐसा लगा जैसे कुछ धुंधली परछाइयां बिना आवाज के आगे बढ़ रही हैं. टोह में बैठे फौजी दल के सिपाही हरकत में आ गए. सभी के हाथ राइफलों और मशीनगनों के ट्रिगरों पर पहुंच गए और कैप्टन मनीष के और्डर का इंतजार करने लगे.

धुंधली परछाइयां काले लिबास में धीरेधीरे उन झाडि़यों के घने झुरमुट की तरफ बढ़ रही थीं, जिन की ओट में कैप्टन मनीष और सूबेदार तेजकरन टोह में बैठे थे. दूसरे दल से एक फौजी की राइफल से अचानक गोली चल जाने से 2 साए एक तरफ दौड़े और 2 कैप्टन के दल की तरफ. कैप्टन की पिस्तौल की गोली से एक गिर पड़ा. फौजी दस्ते के लिए कैप्टन का यह इशारा जैसे और्डर था. चारों तरफ से मशीनगनों से गोलियों की बौछार शुरू हो गई. जवाब में बागियों ने गोलियां चलाईं. पर कुछ देर के बाद जवाबी गोलियों की आवाज शांत हो गई. फौजी दल की गोलीबारी जारी रही. काफी देर तक जवाबी गोलियों के न आने से फौजी दल ने भी गोलीबारी बंद कर दी.

पौ फटते ही रोशनी का प्रभामंडल बढ़ने लगा. फौजी पहाडि़यों से निकल कर अपने शिकार को कब्जे में करने के लिए उतावले हो रहे थे. पर कैप्टन ने उन्हें रोका, कि कहीं दुश्मन ताक लगाए बैठा हो और अचानक हमला कर दे. इसलिए सिर्फ 2 फौजी जा कर लाशों का निरीक्षण करें. 2 नौजवानों ने आगे बढ़ कर झाडि़यों से लाशें ढूंढ़ निकालीं. कुल 2 लाशें मिलीं. शिनाख्त करने की कोशिश की गई, पर बेकार. इतने में कैप्टन और साथी भी पहुंच गए. बागियों की लाशों की पहचान कर पाना मुश्किल काम था. शक्ल से एक मर्द लग रहा था तो दूसरी औरत. दोनों ने गहरे नीले रंग की शर्ट और जींस पहनी हुई थी. जैसे ही 2 जवानों ने उलटी पड़ी लाशों को सीधा कर के लिटाया तो कैप्टन अकस्मात चौंक उठे. ‘डौली और फिलिप को देख कर कैप्टन का चेहरा शांत और गंभीर हो गया. झुक कर उन्होंने डौली के सर्द चेहरे से बालों की लट अपनी गरम उंगलियों से हटा कर दूर कर दी. पर डौली का सर्द चेहरा मनीष की उंगलियों का गरम स्पर्श महसूस न कर सका.

(अनुवाद : देवी नागरानी)

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January 19, 2022 at 09:00AM

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