Wednesday 5 January 2022

अपना घर- भाग 3: क्या हुआ था आलोक और मालती के बीच

Writer- किरण आहूजा

बचपन में वाणी के मांपापा ने उस की हर जिद मानी. याद है, एक बार वाणी ने स्कूल की फीस जमा करने की जिद पकड़ ली, कहने लगी कि उस के सारे दोस्त खुद से स्कूल में फीस जमा करते हैं तो वह भी करेगी.  हार कर अरुण को उस के हाथ में पैसे देने पड़े थे. लेकिन कई बार समझाया कि देखना, पैसे गिरे नहीं कहीं, तुम्हारे बैग से पैसे कोई निकाल न ले. लेकिन वाणी ने दोस्त के बहकावे में आ कर उन पैसों से सब को चाटपकौड़ी व आइसक्रीम खिला दिया था. घर आ कर रेणु से उसे खूब डांट पड़ी थी लेकिन अरुण ने उसे प्यार से समझाया था कि पैसे बहुत मेहनत से कमाए जाते हैं, इन्हें यों खर्च नहीं किए जाते. वह सीख आज भी वह नहीं भूली है. वाणी के पापा बैंक में कलर्क थे. बहुत ज्यादा तनख्वाह नहीं थी उन की. इतने कम पैसों में बड़ी मुश्किल से उन का घर चल पाता था, उस पर से शादी लायक बहन और बीमार बूढ़े मातापिता की ज़िम्मेदारी भी उन पर ही थी. अरुण के 2 बड़े भाई भी थे और दोनों अच्छी पोस्ट पर थे, पर उन्होंने अपने मांबाप और जवान बहन की ज़िम्मेदारी लेने से मना कर दिया था. याद है उसे तभी उस के घर में एक छोटा सा टीवी हुआ करता था. अपने दोस्तों के घर बड़ा टीवी देख वाणी ने भी जिद पकड़ ली थी कि उसे भी वैसा ही टीवी चाहिए.  रेणु ने बहुत समझाया कि अभी वे  बड़ा टीवी नहीं खरीद सकते हैं. खर्चे बहुत हैं घर में, बूआ की शादी भी करानी है. मगर जिद्दी वाणी कहां कुछ सुनने वाली थी. तब कहां से कैसे पैसे जुटा कर अरुण बड़ा टीवी खरीद लाए थे यह बोल कर कि पैसे तो बाद में बहुत आ जाएंगे. मगर यह बात हमेशा उन्हें खलेगी कि अपनी बेटी की एक छोटी सी इच्छा पूरी नहीं कर पाए थे. अरुण तो बस अपनी बेटी के चेहरे पर मुसकान देख कर ही जीते आए थे. वक़्त के साथ धीरेधीरे अरुण के ओहदे बढ़ते गए और जिम्मेदारियां कम होती गईं. लेकिन बापबेटी का प्यार दिनोंदिन और प्रगाढ़ होता गया. अरुण के लिए तो वही खुशी की बात होती थी जब वाणी खुश होती थी.

कालेज की पढ़ाई पूरी होने के बाद यहीं दिल्ली के ही एक मैनेजमैंट कालेज में वाणी ने एडमिशन ले लिया था, जहां पहली बार आलोक से उस की मुलाकत हुई थी. धीरेधीरे उन की मुलाकत दोस्ती में और फिर प्यार में तबदील हो गई. एक दिन दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया. अरुण और रेणु को इस शादी से कोई आपत्ति न थी. अपनी बेटी के लिए आलोक उन्हें हर तरह से सही लगा था. लेकिन आलोक के परिवार वालों को यह रिश्ता बिलकुल भी मंजूर न था. मालती को सांवलीसलोनी वाणी जरा भी पसंद न आई थी. वह तो अपने बेटे के लिए गोरी-नारी बहू लाना चाहती थी. चलो, यह भी ठीक है मगर मालती का कहना था कि वाणी अपने मांबाप की अकेली बेटी है इसलिए अपने मांबाप की ज़िम्मेदारी भी उसी की होगी. और वह नहीं चाहेगी कि शादी के बाद भी बहू मायकामायका करती रहे.

“तो क्या हो गया मां? मैं भी तो आप का एकलौता बेटा हूं. तो क्या शादी के बाद मैं आप लोगों को छोड़ दूंगा, अपनी ज़िम्मेदारी से मुंह मोड़ लूंगा, बोलो न?” आलोक ने कहा था.

“तुम्हारी बात अलग है बेटा. वाणी एक लड़की है. शादी के बाद एक लड़की का अपनी ससुराल और पति के प्रति कुछ फर्ज और जिम्मेदारियां होती हैं जो निभाने पड़ते हैं. लेकिन यहां मुझे तो डर है कि कहीं शादी के बाद वह तुम्हें ही घरजमाई न बना दे और हम कुछ न कर पाएं.” दरअसल, मालती को यह डर था कि कहीं उस का बेटा अपनी ससुराल का हो कर न रह जाए. “अगर वे मेरी कुछ शर्तें मनाने को तैयार हैं तो मुझे भी इस शादी से कोई एतराज नहीं है.” आलोक ने जब मालती की शर्तें वाणी के सामने रखी थीं तब वाणी भड़क उठी थी कि यह क्या बात हो गई. नहीं, वह ऐसा हरगिज नहीं करेगी. दरअसल, मालती चाहती थी कि शादी के बाद वाणी अपने मांबाप से ज्यादा मेलजोल न रखे और न ही बारबार मायके जाए. जाना भी हो तो एक दिन से ज्यादा न रहे वहां. और सब से बड़ी बात, ससुराल के प्रति अपनी सारी जिम्मेदारियां पूरी ईमानदारी से निभाए.

“वाह, क्या बात है.  तुम्हारी मां ने एक जज की तरह फैसला सुना दिया. लेकिन मैं उन के इस फैसले को मनाने से इनकार करती हूं,” गुस्से में फनफनाती हुई वाणी बोल कर वहां से जाने ही लगी कि आलोक ने उस का हाथ पकड़ लिया. वह बोली, “क्या तुम भी यही चाहते हो?“

“नहीं, मैं ऐसा कुछ नहीं चाहता, लेकिन सिर्फ मान लेने में क्या हर्ज़ है. तुम जानती हो न, मैं तुम्हारे बगैर नहीं रह सकता? प्लीज, मान जाओ न,” आलोक ने रिक्वैस्ट की थी.

“अच्छा, तो तुम चाहते हो कि अभी मैं उन की बात मान जाऊं? लेकिन क्यों, जब मुझे उन की बात मंजूर ही नहीं है तो? नहीं आलोक, झूठ की बुनियाद पर मैं रिश्ते नहीं बनाना चाहती. शादी में सिर्फ लड़केलड़की का ही मिलना नहीं होता, बल्कि 2 परिवार भी आपस में मिलते हैं जिसे रिश्तेदारी कहते हैं और तुम चाहते हो हम एक झूठ से इस रिश्ते की शुरुआत करें?”

लेकिन, आलोक का कहना था कि सिर्फ कह देने से क्या चला जाएगा उस का? दोनों अपनीअपनी जिद पर अड़े थे और यही जिद उन की लड़ाई की वजह बन गई. गुस्से में आलोक ने यहां तक बोल दिया कि शायद उन का प्यार ही झूठा है और अब यह रिश्ता खत्म ही समझो.

“ठीक है, मुझे भी इस रिश्ते में कोई दिलचस्पी नहीं है” कह कर वाणी भी वहाँ से चलते बनी. एक छोटी सी बात पर उनके बीच महीनों तक बात बंद रही.  वाणी ने आलोक का अपने फोन से नंबर भी डिलीट कर दिया था. लेकिन आलोक वाणी को भुला नहीं पा रहा था. वाणी के गम में वह शराब पीने लगा था. वाणी की दोस्त मानसी से उसे यह बात पता चली थी कि आलोक अब अपने मांपापा के घर में नहीं रहता. उस के अपने परिवार वालों से झगड़ा चल रहा है.

“वाणी, वह आज भी तुम से उतना ही प्यार करता है जितना पहले करता था. नहीं भुला पाया है वह तुम्हें,” मानसी बोली थी, “आज भी उस के हाथ पर तेरे नाम का टैटू है और उस के जौइंट अकाउंट में आज भी तेरा ही नाम है. तो अब और क्या प्रूव चाहिए तुम्हें उस के प्यार का? हां, ठीक है तभी उस की बातें गलत लगी तुम्हें. लेकिन एक बार उस की जगह पर रह कर सोच, तू क्या करती वहां पर? माफ कर दे उसे अब, नहीं तो शराब पीपी कर मर जाएगा वह.”

मानसी की बात सुन वह दौड़ी गई थी.  आलोक की दशा देख वह रो पड़ी थी. लेकिन आलोक अपनी वाणी को देख मरतेमरते जी उठा था. दोनों की आंखों से बहते उन आंसुओं में उन के सारे गिलेशिकवे बह गए थे. सब के सामने घुटने पर बैठ कर उस ने गुलाब का फूल देते हुए वाणी को शादी के लिए प्रपोज किया था जिसे वाणी ने झट से स्वीकार कर लिया था. उस वक़्त मालती कसमसा कर रह गई थी सिर्फ अपने बेटे की खातिर वह कुछ बोल नहीं पाई थी. लेकिन अंदर से वाणी के लिए उस के मन में प्रेम नहीं, नफरत जागी थी. शादी के बाद वाणी ने अपनी तरफ से मालती या घर के किसी भी सदस्य को कभी कोई शिकायत का मौका नहीं दिया. बल्कि वह अपनी सारी ज़िम्मेदारी बखूबी निभा रही थी, नौकरी करते हुए भी.  लेकिन एक बेटी की ज़िम्मेदारी निभाना भी वह नहीं भूली थी. लेकिन मालती को फिर भी वाणी से कोई न कोई शिकायत रहती ही थी.

मालती को अरुण और रेणु का अपने घर आनाजाना बिलकुल अच्छा नहीं लगता था. बेटा फिर उस से दूर न चला जाए, इसलिए कुछ कहती नहीं थी. लेकिन अकेले में जो मन सो बोल कर अपनी भड़ास जरूर निकाल लेती थी. अरुण के मजाकिया स्वभाव को वह बदतमीजी बताती, तो रेणु को अक्खड़ औरत कह कर संबोधित करती थी. अरुण और रेणु के आने पर जब वाणी अपने मांपापा की खातिरदारी में लग जाती तब मालती का खून खौल उठता था. कुछ न कुछ बोल कर वह वाणी का मन छोटा कर ही देती थी. किचन में जा कर वह अपने मांपापा के लिए एक कप चाय भी बनाने लगती तो कैसे मालती कहने लगती थी, ‘बहू, चायपत्ती कम डाला करो, बहुत महंगाई बढ़ गई है. दूध के दाम भी देखो कितने बढ़ते जा रहे हैं.’  लेकिन वही खुद चाय पीनी हो तो, ‘बहू, जरा पत्ती लगा कर देना और पानी कम डालना चाय में.’ कितनी सैल्फिश है यह औरत, यह सोच कर वाणी का मन कड़वा हो जाता.

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Writer- किरण आहूजा

बचपन में वाणी के मांपापा ने उस की हर जिद मानी. याद है, एक बार वाणी ने स्कूल की फीस जमा करने की जिद पकड़ ली, कहने लगी कि उस के सारे दोस्त खुद से स्कूल में फीस जमा करते हैं तो वह भी करेगी.  हार कर अरुण को उस के हाथ में पैसे देने पड़े थे. लेकिन कई बार समझाया कि देखना, पैसे गिरे नहीं कहीं, तुम्हारे बैग से पैसे कोई निकाल न ले. लेकिन वाणी ने दोस्त के बहकावे में आ कर उन पैसों से सब को चाटपकौड़ी व आइसक्रीम खिला दिया था. घर आ कर रेणु से उसे खूब डांट पड़ी थी लेकिन अरुण ने उसे प्यार से समझाया था कि पैसे बहुत मेहनत से कमाए जाते हैं, इन्हें यों खर्च नहीं किए जाते. वह सीख आज भी वह नहीं भूली है. वाणी के पापा बैंक में कलर्क थे. बहुत ज्यादा तनख्वाह नहीं थी उन की. इतने कम पैसों में बड़ी मुश्किल से उन का घर चल पाता था, उस पर से शादी लायक बहन और बीमार बूढ़े मातापिता की ज़िम्मेदारी भी उन पर ही थी. अरुण के 2 बड़े भाई भी थे और दोनों अच्छी पोस्ट पर थे, पर उन्होंने अपने मांबाप और जवान बहन की ज़िम्मेदारी लेने से मना कर दिया था. याद है उसे तभी उस के घर में एक छोटा सा टीवी हुआ करता था. अपने दोस्तों के घर बड़ा टीवी देख वाणी ने भी जिद पकड़ ली थी कि उसे भी वैसा ही टीवी चाहिए.  रेणु ने बहुत समझाया कि अभी वे  बड़ा टीवी नहीं खरीद सकते हैं. खर्चे बहुत हैं घर में, बूआ की शादी भी करानी है. मगर जिद्दी वाणी कहां कुछ सुनने वाली थी. तब कहां से कैसे पैसे जुटा कर अरुण बड़ा टीवी खरीद लाए थे यह बोल कर कि पैसे तो बाद में बहुत आ जाएंगे. मगर यह बात हमेशा उन्हें खलेगी कि अपनी बेटी की एक छोटी सी इच्छा पूरी नहीं कर पाए थे. अरुण तो बस अपनी बेटी के चेहरे पर मुसकान देख कर ही जीते आए थे. वक़्त के साथ धीरेधीरे अरुण के ओहदे बढ़ते गए और जिम्मेदारियां कम होती गईं. लेकिन बापबेटी का प्यार दिनोंदिन और प्रगाढ़ होता गया. अरुण के लिए तो वही खुशी की बात होती थी जब वाणी खुश होती थी.

कालेज की पढ़ाई पूरी होने के बाद यहीं दिल्ली के ही एक मैनेजमैंट कालेज में वाणी ने एडमिशन ले लिया था, जहां पहली बार आलोक से उस की मुलाकत हुई थी. धीरेधीरे उन की मुलाकत दोस्ती में और फिर प्यार में तबदील हो गई. एक दिन दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया. अरुण और रेणु को इस शादी से कोई आपत्ति न थी. अपनी बेटी के लिए आलोक उन्हें हर तरह से सही लगा था. लेकिन आलोक के परिवार वालों को यह रिश्ता बिलकुल भी मंजूर न था. मालती को सांवलीसलोनी वाणी जरा भी पसंद न आई थी. वह तो अपने बेटे के लिए गोरी-नारी बहू लाना चाहती थी. चलो, यह भी ठीक है मगर मालती का कहना था कि वाणी अपने मांबाप की अकेली बेटी है इसलिए अपने मांबाप की ज़िम्मेदारी भी उसी की होगी. और वह नहीं चाहेगी कि शादी के बाद भी बहू मायकामायका करती रहे.

“तो क्या हो गया मां? मैं भी तो आप का एकलौता बेटा हूं. तो क्या शादी के बाद मैं आप लोगों को छोड़ दूंगा, अपनी ज़िम्मेदारी से मुंह मोड़ लूंगा, बोलो न?” आलोक ने कहा था.

“तुम्हारी बात अलग है बेटा. वाणी एक लड़की है. शादी के बाद एक लड़की का अपनी ससुराल और पति के प्रति कुछ फर्ज और जिम्मेदारियां होती हैं जो निभाने पड़ते हैं. लेकिन यहां मुझे तो डर है कि कहीं शादी के बाद वह तुम्हें ही घरजमाई न बना दे और हम कुछ न कर पाएं.” दरअसल, मालती को यह डर था कि कहीं उस का बेटा अपनी ससुराल का हो कर न रह जाए. “अगर वे मेरी कुछ शर्तें मनाने को तैयार हैं तो मुझे भी इस शादी से कोई एतराज नहीं है.” आलोक ने जब मालती की शर्तें वाणी के सामने रखी थीं तब वाणी भड़क उठी थी कि यह क्या बात हो गई. नहीं, वह ऐसा हरगिज नहीं करेगी. दरअसल, मालती चाहती थी कि शादी के बाद वाणी अपने मांबाप से ज्यादा मेलजोल न रखे और न ही बारबार मायके जाए. जाना भी हो तो एक दिन से ज्यादा न रहे वहां. और सब से बड़ी बात, ससुराल के प्रति अपनी सारी जिम्मेदारियां पूरी ईमानदारी से निभाए.

“वाह, क्या बात है.  तुम्हारी मां ने एक जज की तरह फैसला सुना दिया. लेकिन मैं उन के इस फैसले को मनाने से इनकार करती हूं,” गुस्से में फनफनाती हुई वाणी बोल कर वहां से जाने ही लगी कि आलोक ने उस का हाथ पकड़ लिया. वह बोली, “क्या तुम भी यही चाहते हो?“

“नहीं, मैं ऐसा कुछ नहीं चाहता, लेकिन सिर्फ मान लेने में क्या हर्ज़ है. तुम जानती हो न, मैं तुम्हारे बगैर नहीं रह सकता? प्लीज, मान जाओ न,” आलोक ने रिक्वैस्ट की थी.

“अच्छा, तो तुम चाहते हो कि अभी मैं उन की बात मान जाऊं? लेकिन क्यों, जब मुझे उन की बात मंजूर ही नहीं है तो? नहीं आलोक, झूठ की बुनियाद पर मैं रिश्ते नहीं बनाना चाहती. शादी में सिर्फ लड़केलड़की का ही मिलना नहीं होता, बल्कि 2 परिवार भी आपस में मिलते हैं जिसे रिश्तेदारी कहते हैं और तुम चाहते हो हम एक झूठ से इस रिश्ते की शुरुआत करें?”

लेकिन, आलोक का कहना था कि सिर्फ कह देने से क्या चला जाएगा उस का? दोनों अपनीअपनी जिद पर अड़े थे और यही जिद उन की लड़ाई की वजह बन गई. गुस्से में आलोक ने यहां तक बोल दिया कि शायद उन का प्यार ही झूठा है और अब यह रिश्ता खत्म ही समझो.

“ठीक है, मुझे भी इस रिश्ते में कोई दिलचस्पी नहीं है” कह कर वाणी भी वहाँ से चलते बनी. एक छोटी सी बात पर उनके बीच महीनों तक बात बंद रही.  वाणी ने आलोक का अपने फोन से नंबर भी डिलीट कर दिया था. लेकिन आलोक वाणी को भुला नहीं पा रहा था. वाणी के गम में वह शराब पीने लगा था. वाणी की दोस्त मानसी से उसे यह बात पता चली थी कि आलोक अब अपने मांपापा के घर में नहीं रहता. उस के अपने परिवार वालों से झगड़ा चल रहा है.

“वाणी, वह आज भी तुम से उतना ही प्यार करता है जितना पहले करता था. नहीं भुला पाया है वह तुम्हें,” मानसी बोली थी, “आज भी उस के हाथ पर तेरे नाम का टैटू है और उस के जौइंट अकाउंट में आज भी तेरा ही नाम है. तो अब और क्या प्रूव चाहिए तुम्हें उस के प्यार का? हां, ठीक है तभी उस की बातें गलत लगी तुम्हें. लेकिन एक बार उस की जगह पर रह कर सोच, तू क्या करती वहां पर? माफ कर दे उसे अब, नहीं तो शराब पीपी कर मर जाएगा वह.”

मानसी की बात सुन वह दौड़ी गई थी.  आलोक की दशा देख वह रो पड़ी थी. लेकिन आलोक अपनी वाणी को देख मरतेमरते जी उठा था. दोनों की आंखों से बहते उन आंसुओं में उन के सारे गिलेशिकवे बह गए थे. सब के सामने घुटने पर बैठ कर उस ने गुलाब का फूल देते हुए वाणी को शादी के लिए प्रपोज किया था जिसे वाणी ने झट से स्वीकार कर लिया था. उस वक़्त मालती कसमसा कर रह गई थी सिर्फ अपने बेटे की खातिर वह कुछ बोल नहीं पाई थी. लेकिन अंदर से वाणी के लिए उस के मन में प्रेम नहीं, नफरत जागी थी. शादी के बाद वाणी ने अपनी तरफ से मालती या घर के किसी भी सदस्य को कभी कोई शिकायत का मौका नहीं दिया. बल्कि वह अपनी सारी ज़िम्मेदारी बखूबी निभा रही थी, नौकरी करते हुए भी.  लेकिन एक बेटी की ज़िम्मेदारी निभाना भी वह नहीं भूली थी. लेकिन मालती को फिर भी वाणी से कोई न कोई शिकायत रहती ही थी.

मालती को अरुण और रेणु का अपने घर आनाजाना बिलकुल अच्छा नहीं लगता था. बेटा फिर उस से दूर न चला जाए, इसलिए कुछ कहती नहीं थी. लेकिन अकेले में जो मन सो बोल कर अपनी भड़ास जरूर निकाल लेती थी. अरुण के मजाकिया स्वभाव को वह बदतमीजी बताती, तो रेणु को अक्खड़ औरत कह कर संबोधित करती थी. अरुण और रेणु के आने पर जब वाणी अपने मांपापा की खातिरदारी में लग जाती तब मालती का खून खौल उठता था. कुछ न कुछ बोल कर वह वाणी का मन छोटा कर ही देती थी. किचन में जा कर वह अपने मांपापा के लिए एक कप चाय भी बनाने लगती तो कैसे मालती कहने लगती थी, ‘बहू, चायपत्ती कम डाला करो, बहुत महंगाई बढ़ गई है. दूध के दाम भी देखो कितने बढ़ते जा रहे हैं.’  लेकिन वही खुद चाय पीनी हो तो, ‘बहू, जरा पत्ती लगा कर देना और पानी कम डालना चाय में.’ कितनी सैल्फिश है यह औरत, यह सोच कर वाणी का मन कड़वा हो जाता.

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January 01, 2022 at 07:36PM

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