Friday 21 January 2022

सिसकी- भाग 1: रानू और उसके बीच कैसा रिश्ता था

Writer- कुशलेंद्र श्रीवास्तव

वैसे तो चिन्टू ने एक छोटा स्टूल रख लिया था. जब वह उस पर खड़ा हो जाता तब ही उस के हाथ किचन में रखे गैसस्टोव तक पहुंचते. ऐसा नहीं था कि उस की हाइट कम थी बल्कि वह था ही छोटा. 8 साल की ही तो उस की उम्र थी. वह स्टूल पर खड़ा हो जाता और माचिस की काड़ी से चूल्हा जला लेता. उस से अभीगैसलाइटर से चूल्हा जलाना नहीं आता था. वैसे तो उसे माचिस से भी चूल्हा जलाना नहीं आता था.

तीनचार काड़ियां बरबाद हो जातीं तब जा कर चूल्हा जलता. कई बार तो उस का हाथ भी जल जाता. वह अपने हाथों को पानी में डाल कर जलन मिटाने का प्रयास करता. चूल्हा जल जाने के बाद वह पानीभरी गंजी को उस के ऊपर रख देता और मैगी का पैकेट खोल कर उस में डाल देता. अभी उस से संशी से पकड़ कर गंजी उतारना नहीं आता था, इसलिए वह चूल्हे को बंद कर देता और तब तक यों ही खड़ा इंतजार करता रहता जब तक कि गंजी ठंडी न हो जाती. वह सावधानीपूर्वक गंजी उतारता. फिर उस में मसाला डाल देता. चम्मच से उसे मिलाता. फिर एक प्लेट में डाल कर अपनी छोटी बहन रानू के सामने रख देता.  रानू दूर बैठी अपने भाई को मैगी बनती देखती रहती.

उसे बहुत जोर की भूख लगी थी. जैसे ही प्लेट उस के सामने आती, वह खाने बैठ जाती. चिन्टू उसे खाता देखता रहता, ‘‘और चाहिए?’’

‘‘हां,’’ रानू खातेखाते ही बोल देती.

चिन्टू थोड़ी सी मैगी और उस की प्लेट में डाल देता. उस के सामने पानी का गिलास रख देता. रानू जब खा चुकी होती तब जितनी मैगी बच जाती वह चिन्टू खा लेता. अकसर मैगी कम ही बच पाती थी. दादाजी मैगी नहीं खातीं, उन के लिए चिन्टू चाय बना देता. फिर चिन्टू दोनों की प्लेट, चाय का कप और गंजी को साफ कर रख देता. वह रानू का हाथ पकड़ कर बाहर के कमरे में ले आता और दोनों चुपचाप बैठ जाते. इस कमरे मे  ही दादाजी का पलंग बिछा था जिस में वे लेटे रहते. उन्हें लकवा लगा हुआ था, इस कारण उन से चलते नहीं बनता था. हालांकि थरथराहट के साथ वे बोल तो लेते थे पर उन की इस भाषा को चिन्टू कम ही समझ पाता था. चिन्टू ही उन का हाथ पकड़ कर उन्हें बाथरूम तक ले जाता और फिर बिस्तर पर छोड़ देता. वे असहायी नजरों से चिन्टू को देखते रहते. उन की आंखों से बहने वाले आंसू इस बात के गवाह थे कि वे बहुत कष्ट में हैं.

इस कमरे में ही चिन्टू के मातापिता की फोटो लगी थी जिस पर फूलों का हार डला था. फोटो देख कर वे मम्मीपापा की यादों में खो जाते.

ये भी पढ़ें- पतिया सास: आखिर क्यों पति कपिल से परेशान थी उसकी पत्नी?

‘मम्मी, बहुत जोरों की भूख लगी है.’

‘हां, अभी रोटी सेंकती हूं, तब तक मैगी बना दूं क्या?’

‘रोजरोज मैगी, मैं तो बोर हो गया हूं, आप तो परांठे बना दो.’

‘अच्छा, चलो ठीक है. पहले तुम को परांठा बना देती हूं, बाद में काम कर लूंगी,’ यह कहती हुई मम्मी अपना हाथ धो कर किचन में चली जातीं.

कुछ ही देर में वे प्लेट में परांठा, अचार और शक्कर रख कर ले आतीं. ‘शक्कर कम खाया करो, चुनमुना काटते हैं,’ वे हंसती हुई कह देतीं.

‘‘पर मुझे बगैर शक्कर के परांठा खाना अच्छा नहीं लगता, मम्मी.’

‘अचार तो है, उस से खाओ.’

‘अचार, तेल वाला और फिर कितनी मिर्ची भी तो है उस में,’ चिन्टू नाक सिकोड़ लेता.

‘अच्छा बाबा, तुम को जो पसंद है वह खाओ,’ यह कहती हुईं वे रानू को गोद में उठा लेतीं, ‘तुम क्या खाओगी?’

‘मुझे दूध चाहिए, चौकलेट वाला.’

‘दूध ही दूध पीती हो, एकाध परांठा भी खा लिया करो.’

‘मम्मी, आप की मैगी और आप का परांठा मुझे तो बहुत बुरा लगता है. ये तो भैया के लिए ही रहने दो. मुझे तो दूध दो चौकलेट वाला,’ यह कह कर वह मम्मी के गले से जोर से चिपक जाती.

मम्मी उसे गले से लगाए ही दूध गरम करतीं, फिर उस में बौर्नविटा मिलातीं और रानू को अपनी गोद में बिठा कर उसे प्यार से पिलातीं.

चिन्टू और रानू बाहर के कमरे में बैठ कर एकटक अपनी मम्मी और पापा की फोटो को देखते रहते. उन की आंखों से आंसू बहते रहते.

‘चिन्टू, चलो बाजार चलते हैं, तुम्हें जूता लेना है न?’

‘अरे, अभी तो मैं होमवर्क कर रहा हूं.’

‘आ कर कर लेना.’

‘अच्छा चलो पर आइस्क्रीम भी खिलाना.’

मम्मी तक आवाज पहुंच चुकी थी.

‘खबरदार जो आइसक्रीम खाई, सर्दी हो जाती है. नाक बहने लगती है,’ मम्मी की जोर से आवाज अंदर से ही आती.

‘अरे, एकाध आइस्क्रीम खा लेने से सर्दी नहीं होती,’ पापा बचाव करते.

‘रहने दो, तुम्हें क्या है, परेशान तो मुझे ही होना पड़ता है.’

पापा समझ जाते कि अब मम्मी से बहस करना खतरे से खाली नहीं है. वे चुप हो जाते पर हाथों के इशारे से चिन्टू को समझा देते कि वे बाजार में आइस्क्रीम खाएंगे ही.

‘रानू को भी ले लें,’ कहते हुए पापा रानू को गोद में उठा लेते.

बाजार से जब लौटते तो एक आइसक्रीम मम्मी के लिए ले कर आना न भूलते.

‘देख लेना चिन्टू, मम्मी बेलन ले कर मारने दौड़ेगी.’

‘पर पापा, हम लोग सभी ने आइस्क्रीम खा ली है. मम्मी अकेली नहीं खा पाई हैं. उन के लिए तो ले जाना ही पड़ेगा न.’

ये भी पढ़ें- मलहम: प्यार में मिले धोखे का बदला कैसे लिया गुंजन ने?

‘रख लो बेटा, मैं भी उस के साथ बेईमानी नहीं कर सकता.’

मम्मी को आइस्क्रीम रानू के हाथों से दिलाई जाती. मम्मी कुछ न बोलतीं. आइस्क्रीम को फ्रिज में रख देतीं.

‘अरे खा लो, फ्रिज में वह पानीपानी हो जाएगी,’ पापा बोलते जरूर पर वे मम्मी की ओर देख नहीं रहे होते थे.

‘रख ली, तुम्हारा लाड़ला फिर मांगेगा तो उसे देनी पड़ेगी.’

‘अरे, तुम तो खा लो. उसे दूसरी ला देंगे.’

पर मम्मी न खातीं. आइस्क्रीम शाम को उसे फिर से मिल जाती.

बाहर किसी के दरवाजा खटखटाने की आवाज आई. चिन्टू बोझिल कदमों से दरवाजे की ओर बढ़ गया. वह जानता था कि इस समय केवल कामवाली काकी ही आई होंगी. वैसे भी अब उन के घर में कोई आताजाता था ही नहीं. पापा थे तब कोई न कोई आताजाता रहता था पर अब तो जैसे सभी ने इस घर की तरफ से मुंह फेर लिया था. कामवाली काकी ही थीं दरवाजे पर.

दरवाजा खुलते ही वे अंदर आ गईं. उन्होंने लाड़ से रानू को गोद में उठा लिया. काकी जब भी इन बच्चों को देखतीं उन की आंखों से आंसू बह निकलते. कितना अच्छा घर था. सभी लोग हंसीखुशी रहते थे पर एकाएक कुदरत ने ऐसा कर दिया कि महीनेभर में ही सारी खुशियां गायब हो गईं.

चिन्टू के पापा सहेंद्र थे भी भले आदमी. वे कचहरी में नौकरी करते थे. जरूरतमंद लोगों की हमेशा मदद करने और उन की ईमानदारी की वजह से सभी लोग उन की इज्जत करते थे. उम्र ज्यादा नहीं थी, केवल 35 साल. उन की पत्नी रीना थीं तो घरेलू महिला मगर वे सामाजिक कामों में आगे रहतीं. सहेंद्र उन्हें कभी रोकते नहीं थे. 2 संतानें थीं. बड़ा बेटा 8 साल का और छोटी बेटी 6 साल की. पिताजी थे जो उन के साथ ही रहते थे. मां का देहांत तो कुछ वर्ष पूर्व ही हो गया था. मां की मौत ने पिताजी को तोड़ दिया था. वे बिस्तर पर लग गए. पिछले साल उन्हें लकवा लग गया. सहेंद्र उन की सेवा करते और उन की पत्नी भी उन्हें अपने पिता की तरह ही सहयोग करतीं.

वैसे तो सहेंद्र का एक भाई और था महेंद्र पर वह शादी हो जाने के बाद से ही इसी शहर में अलग रह रहा था. एक बहन भी थी जिस की भी शादी हो चुकी थी. पिताजी ने बाकायदा अपनी जायदादा को 3 भागों में बांट दिया था. महेंद्र को भी एक हिस्सा मिला और बहन को भी. वैसे तो पिताजी चाहते थे कि वे एक हिस्सा अपना भी बचाएं, बुढ़ापे का क्या भरोसा, किसी ने साथ नहीं दिया तो कम से कम दो टाइम की रोटी तो खा ही लेंगे पर सहेंद्र ने उन्हें भरोसा दिला दिया था कि वे पूरे समय उन की देखभाल करेंगे, वे चिंता न करें. उन्होंने सहेंद्र की बात मान ली.

सहेंद्र जानते थे कि इस चौथे हिस्से के चक्कर में भाईबहनों में झगड़ा हो जाएगा. वे नहीं चाहते थे कि उन के भाई और बहनों के बीच कभी भी जायदादा को ले कर कोई झगड़ा हो. सहेंद्र अपने भाई महेंद्र को बहुत स्नेह करते थे और बहन को भी. बहन भी जब मायके के नाम पर आती थी तो सहेंद्र के घर ही आती थी. महेंद्र के घर तो केवल बैठने जाती थी. अकसर जब भी बहन मायके में रुक कर अपनी ससुराल जाती तो सहेंद्र फूटफूट कर रोते जैसे अपनी बिटिया को विदा कर रहे हों.

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Writer- कुशलेंद्र श्रीवास्तव

वैसे तो चिन्टू ने एक छोटा स्टूल रख लिया था. जब वह उस पर खड़ा हो जाता तब ही उस के हाथ किचन में रखे गैसस्टोव तक पहुंचते. ऐसा नहीं था कि उस की हाइट कम थी बल्कि वह था ही छोटा. 8 साल की ही तो उस की उम्र थी. वह स्टूल पर खड़ा हो जाता और माचिस की काड़ी से चूल्हा जला लेता. उस से अभीगैसलाइटर से चूल्हा जलाना नहीं आता था. वैसे तो उसे माचिस से भी चूल्हा जलाना नहीं आता था.

तीनचार काड़ियां बरबाद हो जातीं तब जा कर चूल्हा जलता. कई बार तो उस का हाथ भी जल जाता. वह अपने हाथों को पानी में डाल कर जलन मिटाने का प्रयास करता. चूल्हा जल जाने के बाद वह पानीभरी गंजी को उस के ऊपर रख देता और मैगी का पैकेट खोल कर उस में डाल देता. अभी उस से संशी से पकड़ कर गंजी उतारना नहीं आता था, इसलिए वह चूल्हे को बंद कर देता और तब तक यों ही खड़ा इंतजार करता रहता जब तक कि गंजी ठंडी न हो जाती. वह सावधानीपूर्वक गंजी उतारता. फिर उस में मसाला डाल देता. चम्मच से उसे मिलाता. फिर एक प्लेट में डाल कर अपनी छोटी बहन रानू के सामने रख देता.  रानू दूर बैठी अपने भाई को मैगी बनती देखती रहती.

उसे बहुत जोर की भूख लगी थी. जैसे ही प्लेट उस के सामने आती, वह खाने बैठ जाती. चिन्टू उसे खाता देखता रहता, ‘‘और चाहिए?’’

‘‘हां,’’ रानू खातेखाते ही बोल देती.

चिन्टू थोड़ी सी मैगी और उस की प्लेट में डाल देता. उस के सामने पानी का गिलास रख देता. रानू जब खा चुकी होती तब जितनी मैगी बच जाती वह चिन्टू खा लेता. अकसर मैगी कम ही बच पाती थी. दादाजी मैगी नहीं खातीं, उन के लिए चिन्टू चाय बना देता. फिर चिन्टू दोनों की प्लेट, चाय का कप और गंजी को साफ कर रख देता. वह रानू का हाथ पकड़ कर बाहर के कमरे में ले आता और दोनों चुपचाप बैठ जाते. इस कमरे मे  ही दादाजी का पलंग बिछा था जिस में वे लेटे रहते. उन्हें लकवा लगा हुआ था, इस कारण उन से चलते नहीं बनता था. हालांकि थरथराहट के साथ वे बोल तो लेते थे पर उन की इस भाषा को चिन्टू कम ही समझ पाता था. चिन्टू ही उन का हाथ पकड़ कर उन्हें बाथरूम तक ले जाता और फिर बिस्तर पर छोड़ देता. वे असहायी नजरों से चिन्टू को देखते रहते. उन की आंखों से बहने वाले आंसू इस बात के गवाह थे कि वे बहुत कष्ट में हैं.

इस कमरे में ही चिन्टू के मातापिता की फोटो लगी थी जिस पर फूलों का हार डला था. फोटो देख कर वे मम्मीपापा की यादों में खो जाते.

ये भी पढ़ें- पतिया सास: आखिर क्यों पति कपिल से परेशान थी उसकी पत्नी?

‘मम्मी, बहुत जोरों की भूख लगी है.’

‘हां, अभी रोटी सेंकती हूं, तब तक मैगी बना दूं क्या?’

‘रोजरोज मैगी, मैं तो बोर हो गया हूं, आप तो परांठे बना दो.’

‘अच्छा, चलो ठीक है. पहले तुम को परांठा बना देती हूं, बाद में काम कर लूंगी,’ यह कहती हुई मम्मी अपना हाथ धो कर किचन में चली जातीं.

कुछ ही देर में वे प्लेट में परांठा, अचार और शक्कर रख कर ले आतीं. ‘शक्कर कम खाया करो, चुनमुना काटते हैं,’ वे हंसती हुई कह देतीं.

‘‘पर मुझे बगैर शक्कर के परांठा खाना अच्छा नहीं लगता, मम्मी.’

‘अचार तो है, उस से खाओ.’

‘अचार, तेल वाला और फिर कितनी मिर्ची भी तो है उस में,’ चिन्टू नाक सिकोड़ लेता.

‘अच्छा बाबा, तुम को जो पसंद है वह खाओ,’ यह कहती हुईं वे रानू को गोद में उठा लेतीं, ‘तुम क्या खाओगी?’

‘मुझे दूध चाहिए, चौकलेट वाला.’

‘दूध ही दूध पीती हो, एकाध परांठा भी खा लिया करो.’

‘मम्मी, आप की मैगी और आप का परांठा मुझे तो बहुत बुरा लगता है. ये तो भैया के लिए ही रहने दो. मुझे तो दूध दो चौकलेट वाला,’ यह कह कर वह मम्मी के गले से जोर से चिपक जाती.

मम्मी उसे गले से लगाए ही दूध गरम करतीं, फिर उस में बौर्नविटा मिलातीं और रानू को अपनी गोद में बिठा कर उसे प्यार से पिलातीं.

चिन्टू और रानू बाहर के कमरे में बैठ कर एकटक अपनी मम्मी और पापा की फोटो को देखते रहते. उन की आंखों से आंसू बहते रहते.

‘चिन्टू, चलो बाजार चलते हैं, तुम्हें जूता लेना है न?’

‘अरे, अभी तो मैं होमवर्क कर रहा हूं.’

‘आ कर कर लेना.’

‘अच्छा चलो पर आइस्क्रीम भी खिलाना.’

मम्मी तक आवाज पहुंच चुकी थी.

‘खबरदार जो आइसक्रीम खाई, सर्दी हो जाती है. नाक बहने लगती है,’ मम्मी की जोर से आवाज अंदर से ही आती.

‘अरे, एकाध आइस्क्रीम खा लेने से सर्दी नहीं होती,’ पापा बचाव करते.

‘रहने दो, तुम्हें क्या है, परेशान तो मुझे ही होना पड़ता है.’

पापा समझ जाते कि अब मम्मी से बहस करना खतरे से खाली नहीं है. वे चुप हो जाते पर हाथों के इशारे से चिन्टू को समझा देते कि वे बाजार में आइस्क्रीम खाएंगे ही.

‘रानू को भी ले लें,’ कहते हुए पापा रानू को गोद में उठा लेते.

बाजार से जब लौटते तो एक आइसक्रीम मम्मी के लिए ले कर आना न भूलते.

‘देख लेना चिन्टू, मम्मी बेलन ले कर मारने दौड़ेगी.’

‘पर पापा, हम लोग सभी ने आइस्क्रीम खा ली है. मम्मी अकेली नहीं खा पाई हैं. उन के लिए तो ले जाना ही पड़ेगा न.’

ये भी पढ़ें- मलहम: प्यार में मिले धोखे का बदला कैसे लिया गुंजन ने?

‘रख लो बेटा, मैं भी उस के साथ बेईमानी नहीं कर सकता.’

मम्मी को आइस्क्रीम रानू के हाथों से दिलाई जाती. मम्मी कुछ न बोलतीं. आइस्क्रीम को फ्रिज में रख देतीं.

‘अरे खा लो, फ्रिज में वह पानीपानी हो जाएगी,’ पापा बोलते जरूर पर वे मम्मी की ओर देख नहीं रहे होते थे.

‘रख ली, तुम्हारा लाड़ला फिर मांगेगा तो उसे देनी पड़ेगी.’

‘अरे, तुम तो खा लो. उसे दूसरी ला देंगे.’

पर मम्मी न खातीं. आइस्क्रीम शाम को उसे फिर से मिल जाती.

बाहर किसी के दरवाजा खटखटाने की आवाज आई. चिन्टू बोझिल कदमों से दरवाजे की ओर बढ़ गया. वह जानता था कि इस समय केवल कामवाली काकी ही आई होंगी. वैसे भी अब उन के घर में कोई आताजाता था ही नहीं. पापा थे तब कोई न कोई आताजाता रहता था पर अब तो जैसे सभी ने इस घर की तरफ से मुंह फेर लिया था. कामवाली काकी ही थीं दरवाजे पर.

दरवाजा खुलते ही वे अंदर आ गईं. उन्होंने लाड़ से रानू को गोद में उठा लिया. काकी जब भी इन बच्चों को देखतीं उन की आंखों से आंसू बह निकलते. कितना अच्छा घर था. सभी लोग हंसीखुशी रहते थे पर एकाएक कुदरत ने ऐसा कर दिया कि महीनेभर में ही सारी खुशियां गायब हो गईं.

चिन्टू के पापा सहेंद्र थे भी भले आदमी. वे कचहरी में नौकरी करते थे. जरूरतमंद लोगों की हमेशा मदद करने और उन की ईमानदारी की वजह से सभी लोग उन की इज्जत करते थे. उम्र ज्यादा नहीं थी, केवल 35 साल. उन की पत्नी रीना थीं तो घरेलू महिला मगर वे सामाजिक कामों में आगे रहतीं. सहेंद्र उन्हें कभी रोकते नहीं थे. 2 संतानें थीं. बड़ा बेटा 8 साल का और छोटी बेटी 6 साल की. पिताजी थे जो उन के साथ ही रहते थे. मां का देहांत तो कुछ वर्ष पूर्व ही हो गया था. मां की मौत ने पिताजी को तोड़ दिया था. वे बिस्तर पर लग गए. पिछले साल उन्हें लकवा लग गया. सहेंद्र उन की सेवा करते और उन की पत्नी भी उन्हें अपने पिता की तरह ही सहयोग करतीं.

वैसे तो सहेंद्र का एक भाई और था महेंद्र पर वह शादी हो जाने के बाद से ही इसी शहर में अलग रह रहा था. एक बहन भी थी जिस की भी शादी हो चुकी थी. पिताजी ने बाकायदा अपनी जायदादा को 3 भागों में बांट दिया था. महेंद्र को भी एक हिस्सा मिला और बहन को भी. वैसे तो पिताजी चाहते थे कि वे एक हिस्सा अपना भी बचाएं, बुढ़ापे का क्या भरोसा, किसी ने साथ नहीं दिया तो कम से कम दो टाइम की रोटी तो खा ही लेंगे पर सहेंद्र ने उन्हें भरोसा दिला दिया था कि वे पूरे समय उन की देखभाल करेंगे, वे चिंता न करें. उन्होंने सहेंद्र की बात मान ली.

सहेंद्र जानते थे कि इस चौथे हिस्से के चक्कर में भाईबहनों में झगड़ा हो जाएगा. वे नहीं चाहते थे कि उन के भाई और बहनों के बीच कभी भी जायदादा को ले कर कोई झगड़ा हो. सहेंद्र अपने भाई महेंद्र को बहुत स्नेह करते थे और बहन को भी. बहन भी जब मायके के नाम पर आती थी तो सहेंद्र के घर ही आती थी. महेंद्र के घर तो केवल बैठने जाती थी. अकसर जब भी बहन मायके में रुक कर अपनी ससुराल जाती तो सहेंद्र फूटफूट कर रोते जैसे अपनी बिटिया को विदा कर रहे हों.

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January 22, 2022 at 09:00AM

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