Monday 17 January 2022

शुक्रिया श्वेता दी- भाग 1: आखिर क्या हुआ था अंकिता और श्वेता के बीच

Writer-डा. कविता कुमारी

बालकनी में अकेली बैठी अंकिता की टेबल पर रखी काफी ठंडी हो रही थी. हलकी बूंदाबांदी अब मूसलाधार बारिश में बदल गई थी. वह पानी की मोटीमोटी धारों को एकटक निहार रही थी लेकिन उस का दिमाग कहीं और था. मम्मीपापा वकील से बात करने गए थे, घर में वह अकेली थी. उस की नजरों के सामने बारबार श्वेता दी का चेहरा आ रहा था.

श्वेता दी… उस की जेठानी.  कहने को उन दोनों का रिश्ता देवरानीजेठानी का था लेकिन श्वेता ही सही माने में उस की बड़ी बहन साबित हुई. अगर वह न होती तो न जाने क्या होता उस के साथ. उन्होंने उसे उस नर्क से निकाला जहां वह स्वर्ग की तलाश में गई थी.

हां, स्वर्ग से भी सुंदर अपना घर बसाने की चाहत में उस ने दीपेन का साथ चुना था. दोनों एक ही औफिस में काम करते थे. दोनों में दोस्ती हुई जो धीरेधीरे प्यार में बदल गई. यह कब, कैसे हुआ, अंकिता को पता ही न चला. हर प्रेमी जोड़े की तरह वे साथ जीनेमरने की कसमें खाते, हाथों में हाथ डाले मौल में घूमते, लंचडिनर साथ में करते. दीपेन उस के आगेपीछे डोलता रहता. उस की खूब केयर करता. अंकिता उस के इसी केयरिंग नेचर पर फिदा थी.

ये भी पढ़ें- शापित: रोहित के गंदे खेल का अंजाम क्या हुआ

उसे याद है, औफिस का वाटर प्यूरीफायर खराब हो गया था. गरमी इतनी थी कि  एयरकंडीशन औफिस में भी गला सूख रहा था. उस ने कहा, ‘दीपेन, मैं प्यास से मर जाऊंगी. मुझे प्यास कुछ ज्यादा ही लगती है और नौर्मल पानी सूट नहीं करता.’

‘यह बंदा किस दिन काम आएगा, अभी पानी की बोतल ले कर आता हूं, यार.’

‘तीनचार किलोमीटर जाना होगा यार. शहर से इतनी दूर, ऐसी साइट पर हमें जौइन ही नहीं करना चाहिए था.’

‘मैडम, एक दिन पानी क्या नहीं मिला, आप ने नौकरी छोडऩे का प्लान कर लिया. बंदे को सेवा का मौका तो दीजिए…’ अदा से झुक कर उस ने ऐसे कहा जैसे प्रपोज कर रहा हो और तीर की तरह निकल गया. अंकिता खिडक़ी के पास आ कर, उस का मोटरसाइकिल स्टार्ट कर के जाना देखती रही. जब आंखों से ओझल हो गया, उस ने मुसकरा कर हौले से सिर हिलाया ‘पागल’ और टेबल पर आ कर काम निबटाने लगी.

मम्मीपापा शादी की बात चलाने लगे थे. एक दिन अंकिता ने मां को फोन पर दीपेन के बारे में बताया. मां अचकचा गई, ‘यह क्या कह रही हो? अपने पापा को नहीं जानती? एक तो लडक़ा तुम्हारी पसंद का, उस पर जाति भी अलग. तुम जितना आसान समझ रही हो, उतना आसान नहीं है.’

‘मम्मी जातिवाति से कुछ नहीं होता. दिल मिलना चाहिए, बस. और, मैं पहली लडक़ी नहीं जो दूसरी जाति के लडक़े संग ब्याह रचाऊंगी. कितनी शादियां हो रही हैं समाज में. वह कितना अच्छा और केयरिंग है, तुम लोग एक बार मिल लो, फिर पता चल जाएगा.’

पापा नहीं माने. वह जिद पर अड़ गई. मां दोनों के बीच थी. बड़ी बहन और भाई की शादी हो चुकी थी. उन लोगों ने भी पापा को समझाया. मां निश्चित थीं कि उस में काई उस से छोटा नहीं था कि उस की शादी के बाद किसी तरह की परेशानी होगी. कुछ वक्त लगा. पापा थोड़ेथोड़े नरम पड़े. दीपेन से मिलने को तैयार हुए.

पांचछह दिनों तक वे लोग बेंगलरु के होटल में रुके. अंकिता गर्ल्स होस्टल में रहती थी. उस ने औफिस से छुट्टी ले ली. दीपेन मांपापा को भा गया. लंबा, इकहरा, गोरागोरा दीपेन खूब बातें करता और दिल खोल कर हंसता. सचमुच इतना केयरिंग न उन का बेटा था, न दामाद ही. मम्मी के हाथ में एक छोटा पैकेट भी देखता, तो झट ले लेता- ‘अरे आंटी, बेटे के होते आप सामान क्यों ढो रही हैं?’

ये भी पढ़ें- नो गिल्ट ट्रिप प्लीज: कपिल क्यों आत्महत्या करना चाहता था

रास्ते में सब का खयाल रखता. छोटीछोटी बातों का भी उसे ध्यान रहता. किसी चीज की जरूरत तो नहीं, प्यास लगी है क्या, थकावट हो रही होगी, आराम कर लें…

उस के बाद दोतीन बार वे लोग दीपेन से और मिले. वह हर बार हंसतामुसकराता एनर्जी से भरपूर मिला. आखिर पापा ने शादी के लिए हां कर दी. जब उस के मम्मीपापा से मिलने की बारी आई, उस ने कहा कि आप लोग इतनी दूर कहां जाइएगा, मम्मीपापा पटना  जाने वाले हैं, वहीं उन से मिल लीजिएगा. उस का अपना घर इलाहाबाद था. उन लोगों को आइडिया ठीक लगा.

The post शुक्रिया श्वेता दी- भाग 1: आखिर क्या हुआ था अंकिता और श्वेता के बीच appeared first on Sarita Magazine.



from कहानी – Sarita Magazine https://ift.tt/3Aap6mH

Writer-डा. कविता कुमारी

बालकनी में अकेली बैठी अंकिता की टेबल पर रखी काफी ठंडी हो रही थी. हलकी बूंदाबांदी अब मूसलाधार बारिश में बदल गई थी. वह पानी की मोटीमोटी धारों को एकटक निहार रही थी लेकिन उस का दिमाग कहीं और था. मम्मीपापा वकील से बात करने गए थे, घर में वह अकेली थी. उस की नजरों के सामने बारबार श्वेता दी का चेहरा आ रहा था.

श्वेता दी… उस की जेठानी.  कहने को उन दोनों का रिश्ता देवरानीजेठानी का था लेकिन श्वेता ही सही माने में उस की बड़ी बहन साबित हुई. अगर वह न होती तो न जाने क्या होता उस के साथ. उन्होंने उसे उस नर्क से निकाला जहां वह स्वर्ग की तलाश में गई थी.

हां, स्वर्ग से भी सुंदर अपना घर बसाने की चाहत में उस ने दीपेन का साथ चुना था. दोनों एक ही औफिस में काम करते थे. दोनों में दोस्ती हुई जो धीरेधीरे प्यार में बदल गई. यह कब, कैसे हुआ, अंकिता को पता ही न चला. हर प्रेमी जोड़े की तरह वे साथ जीनेमरने की कसमें खाते, हाथों में हाथ डाले मौल में घूमते, लंचडिनर साथ में करते. दीपेन उस के आगेपीछे डोलता रहता. उस की खूब केयर करता. अंकिता उस के इसी केयरिंग नेचर पर फिदा थी.

ये भी पढ़ें- शापित: रोहित के गंदे खेल का अंजाम क्या हुआ

उसे याद है, औफिस का वाटर प्यूरीफायर खराब हो गया था. गरमी इतनी थी कि  एयरकंडीशन औफिस में भी गला सूख रहा था. उस ने कहा, ‘दीपेन, मैं प्यास से मर जाऊंगी. मुझे प्यास कुछ ज्यादा ही लगती है और नौर्मल पानी सूट नहीं करता.’

‘यह बंदा किस दिन काम आएगा, अभी पानी की बोतल ले कर आता हूं, यार.’

‘तीनचार किलोमीटर जाना होगा यार. शहर से इतनी दूर, ऐसी साइट पर हमें जौइन ही नहीं करना चाहिए था.’

‘मैडम, एक दिन पानी क्या नहीं मिला, आप ने नौकरी छोडऩे का प्लान कर लिया. बंदे को सेवा का मौका तो दीजिए…’ अदा से झुक कर उस ने ऐसे कहा जैसे प्रपोज कर रहा हो और तीर की तरह निकल गया. अंकिता खिडक़ी के पास आ कर, उस का मोटरसाइकिल स्टार्ट कर के जाना देखती रही. जब आंखों से ओझल हो गया, उस ने मुसकरा कर हौले से सिर हिलाया ‘पागल’ और टेबल पर आ कर काम निबटाने लगी.

मम्मीपापा शादी की बात चलाने लगे थे. एक दिन अंकिता ने मां को फोन पर दीपेन के बारे में बताया. मां अचकचा गई, ‘यह क्या कह रही हो? अपने पापा को नहीं जानती? एक तो लडक़ा तुम्हारी पसंद का, उस पर जाति भी अलग. तुम जितना आसान समझ रही हो, उतना आसान नहीं है.’

‘मम्मी जातिवाति से कुछ नहीं होता. दिल मिलना चाहिए, बस. और, मैं पहली लडक़ी नहीं जो दूसरी जाति के लडक़े संग ब्याह रचाऊंगी. कितनी शादियां हो रही हैं समाज में. वह कितना अच्छा और केयरिंग है, तुम लोग एक बार मिल लो, फिर पता चल जाएगा.’

पापा नहीं माने. वह जिद पर अड़ गई. मां दोनों के बीच थी. बड़ी बहन और भाई की शादी हो चुकी थी. उन लोगों ने भी पापा को समझाया. मां निश्चित थीं कि उस में काई उस से छोटा नहीं था कि उस की शादी के बाद किसी तरह की परेशानी होगी. कुछ वक्त लगा. पापा थोड़ेथोड़े नरम पड़े. दीपेन से मिलने को तैयार हुए.

पांचछह दिनों तक वे लोग बेंगलरु के होटल में रुके. अंकिता गर्ल्स होस्टल में रहती थी. उस ने औफिस से छुट्टी ले ली. दीपेन मांपापा को भा गया. लंबा, इकहरा, गोरागोरा दीपेन खूब बातें करता और दिल खोल कर हंसता. सचमुच इतना केयरिंग न उन का बेटा था, न दामाद ही. मम्मी के हाथ में एक छोटा पैकेट भी देखता, तो झट ले लेता- ‘अरे आंटी, बेटे के होते आप सामान क्यों ढो रही हैं?’

ये भी पढ़ें- नो गिल्ट ट्रिप प्लीज: कपिल क्यों आत्महत्या करना चाहता था

रास्ते में सब का खयाल रखता. छोटीछोटी बातों का भी उसे ध्यान रहता. किसी चीज की जरूरत तो नहीं, प्यास लगी है क्या, थकावट हो रही होगी, आराम कर लें…

उस के बाद दोतीन बार वे लोग दीपेन से और मिले. वह हर बार हंसतामुसकराता एनर्जी से भरपूर मिला. आखिर पापा ने शादी के लिए हां कर दी. जब उस के मम्मीपापा से मिलने की बारी आई, उस ने कहा कि आप लोग इतनी दूर कहां जाइएगा, मम्मीपापा पटना  जाने वाले हैं, वहीं उन से मिल लीजिएगा. उस का अपना घर इलाहाबाद था. उन लोगों को आइडिया ठीक लगा.

The post शुक्रिया श्वेता दी- भाग 1: आखिर क्या हुआ था अंकिता और श्वेता के बीच appeared first on Sarita Magazine.

January 18, 2022 at 09:23AM

No comments:

Post a Comment