Wednesday 12 January 2022

एक और एक ग्यारह : रजत और रोजी के शादी के लिए बुआ क्यों तैयार नहीं थी

‘‘बूआ ने रोजी के पापा को शादी के लिए मनाने की भरसक कोशिश की, मगर वे टस से मस नहीं हो रहे थे…’’‘‘क्या रोजी डिसूजा क्रिश्चियन है? लल्ला तुम्हारा क्या दिमाग खराब हो गया है? क्या हमारी जाति में लड़कियों का अकाल पड़ गया है, जो हम विजातीय बहू घर लाएं? मैं दिवंगत भैयाभाभी को क्या मुंह दिखाऊंगी? मुझ उपेक्षित विधवा को दोनों ने मन से सहारा दिया था. उन की उम्मीदें पूरी करना मेरा फर्ज है… सारे समाज में हमारी खिल्ली उड़ेगी वह अलग,’’  सुमित्रा ने नाराज होते हुए कहा.

‘‘उफ, बूआ, आप नाहक परेशान हो रही हैं. आजकल अंतर्जातीय विवाह को सहर्ष स्वीकार किया जाता है… मांपापा जिंदा होते तो वे भी इनकार नहीं करते. आप पहले रोजी से मिल तो लो… बहुत सभ्य और संस्कारी लड़की है. आप को जरूर पसंद आएगी. बूआ हम दोनों एकदूसरे से प्यार करते हैं… जातिधर्म का क्या करना है… जीवन में प्यारविश्वास की अहमियत होती है,’’ मैं ने बूआ को समझाते हुए कहा.

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‘‘मैं कह देती हूं लल्ला तुम अपनी पसंद की लड़की ला सकते हो, मुझे कोई एतराज नहीं होगा, किंतु विजातीय नहीं चलेगी,’’ बूआ ने भी अपना निर्णय सुना दिया.बूआ अपनी शादी के 10 दिन बाद ही विधवा हो गई थीं. फूफाजी का रोड ऐक्सीडैंट में देहांत हो गया था. बूआ के ससुराल वालों ने उन से रिश्ता खत्म कर लिया. रोतीबिलखती बूआ की चीखपुकार ससुराल के दरवाजे न खुलवा सकी थी. उस दुखदाई घड़ी में मेरे मांपापा ने उन्हें सहारा देते हुए कहा था, ‘‘जीजी, हमारे रहते खुद को बेसहारा और अकेला न समझो,’’ और फिर बूआ हमारे साथ ही रहने लगीं.

मेरे विवाह के संबंध में बूआ का निर्णयमेरे लिए आदेश से कम न था. मैं उसे नकार नहीं सकता था. बूआ ही मेरी सबकुछ थीं. मैं 14 साल का था जब मेरे मांपापा का देहांत हुआ था. उस कच्ची उम्र में मेरी बूआ ने मुझे टूटनेबिखरने नहीं दिया. वे चट्टान बन मेरा संबल बनी रहीं. पापा की छोटी सी किराने की दुकान थी. उन के देहांत के बाद बूआ और मैं ने मिल कर उसे संभाला, बूआ मुझे पढ़ने के लिए भी प्रोत्साहित करती रहीं. परिणामस्वरूप मैं ने बीकौम तक पढ़ाई कर ली. फिर मुझे प्राइवेट कंपनी में नौकरी मिल गई. मैं और बूआ बेहद खुश हुए.

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मेरे औफिस में मेरी जूनियर रोजी और मैं एकदूसरे से प्यार करने लगे, किंतु बूआ के इनकार के कारण अगले ही दिन मैं ने रोजी को बताते हुए कहा, ‘‘रोजी, बूआ हमारी शादी के लिए तैयार नहीं हैं? मुझे रत्तीभर भी अंदेशा न था कि बूआ जातिधर्म का सवाल खड़ा कर देंगी. वरना मैं आगे न बढ़ता. मुझे माफ कर देना. मैं ने नाहक तुम्हारा दिल दुखाया.’’

रोजी ने संयत स्वर में कहा, ‘‘रजत, हमें बूआ को सोचने हेतु पर्याप्त समय देना चाहिए. मुझे पूरा विश्वास है एक दिन बूआ जरूर मान जाएंगी.’’ ‘‘रोजी, बूआ की बातों से तो ऐसा ही प्रतीत हो रहा है कि जातिधर्म की रूढि़वादिता उन के अंदर जड़ें जमाए है. मैं तुम्हें अन्यत्र शादी की सलाह देना चाहता हूं, शादीविवाह सही उम्र में ही अच्छे लगते हैं. मेरे लिए अपना जीवन बरबाद न करो,’’ मैं ने रोजी को समझाते हुए कहा.

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‘‘यह मुझ से नहीं होगा रजत,’’ रोजी ने धीरे से कहा. ‘‘रोजी, तुम मेरी हमउम्र ही हो न यानी तुम भी बत्तीस वर्ष की हो रही है. अत: रिक्वैस्ट कर रहा हूं कि अन्यत्र विवाह पर विचार करो. रोजी हम बूआ की सहमति के बिना विवाह कर लेते हैं. मगर मैं बूआ को किसी भी कीमत पर नाराज नहीं कर सकता,’’ मैं ने रोजी को अन्यत्र शादी करने हेतु बात बनाते हुए कहा.

‘‘नहीं रजत हम बूआ को नाराज नहीं कर सकते. उन्होंने तुम्हें पालपोस कर इस योग्य बनाया कि आज तुम गर्व से दुनिया का सामना कर सकते हो. वे चाहतीं तो पुनर्विवाह कर अपनी गृहस्थी बसा सकती थीं, किंतु उन्होंने मांपापा बन कर तुम्हें पालापोसा, पढ़ायालिखाया,’’ रोजी ने कहा.  ‘‘इसी समझदारी का तो मैं दीवाना हूं. इसीलिए तुम से हाथ जोड़ कर प्रार्थना करता हूं कि अन्यत्र विवाह हेतु सोचना शुरू कर दो.’’

रोजी मुसकराते हुए अपनी टेबल पर चली गई. लंचब्रेक खत्म हो चुका था.10 दिनों के अंदर ही रोजी का ट्रांसफर कंपनी की दूसरी शाखा में कर दिया गया. मालूम हुआ इस हेतु रोजी ने अनुरोध किया था. मेरे दिल को ठेस लगी, किंतु मैं ने महसूस किया कि यह उचित ही है. दूर रहने से अन्यत्र विवाह हेतु मन बना सकेगी.

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अब फोन से बातें कर संतोष करना पड़ता. मैं सदैव उसे अन्यत्र विवाह हेतु प्रोत्साहित करता, मगर वह बात हंसी में टाल देती. मैं ने एक दिन कहा रोजी, ‘‘अपने विवाह में मुझे अवश्य बुलाना. भुला न देना.’’उस ने खोखली हंसी के साथ कहा, ‘‘घबराओ नहीं, रजत पहला इन्विटेशन तुम्हें ही जाएगा… तुम्हारे बिना मेरी शादी संभव ही नहीं.’’

रोजी के बारे में जान लेने के बाद बूआ मेरी शादी के लिए विशेष सक्रिय हो गई थीं. मैं ने भी उन की आज्ञा का पालन करते हुए विज्ञापन दे दिया था. कई जगह रिश्ते की बात चली भी,किंतु कहीं मेरी साधारण कदकाठी, शक्लसूरत तो कहीं मेरी साधारण नौकरी तो कहीं मेरी सादगी और गंभीरता मेरे रिश्ते के लिए बाधक बन गई. कहींकहीं तो मेरी वृद्ध बूआ का मेरे साथ रहना और मेरा उन्हें सर्वस्व मान पूजना ही बाधक बन बैठा.

एक लड़की का कहना था, ‘‘मुझे तो सारे काम अपनी मनमरजी से करने की आदत है. तुम्हारे यहां तो तुम्हारी बूआ ही घर की सर्वेसर्वा हैं. मैं नहीं सह सकूंगी.’’ मेरी शादी की बात नहीं बन सकी. मैं अब करीब 35 साल का हो चला था और बूआ 70 की. हम दोनों की बढ़ती उम्र ने बूआ को मेरी शादी हेतु चिंतित कर रखा था.

रविवार का दिन था. मैं समाचारपत्र पढ़ रहा था तभी बूआ मेरे पास बैठ कर मेरे बाल सहलाते हुए बोलीं, ‘‘लल्ला, एक बात कहूं, इनकार तो नहीं करेगा?’’ मैं ने आश्चर्य से कहा, ‘‘बूआ, कुछ कहने के लिए आप को मुझ से पूछने की आवश्यकता कब से महसूस होने लगी? मैं आप को इतना पराया कब से लगने लगा?’’

‘‘क्या बोलूं लल्ला, बात ही कुछ ऐसी है,’’ बूआ ने धीरे से कहा. मैं ने आशंका से समाचारपत्र एक तरफ पटकते हुए कहा, ‘‘बूआ, जो भी मन में है बोल दो. आप का कथन मेरे लिए आदेश से कम नहीं है. इनकार करने का तो सवाल ही नहीं उठता.’’ ‘‘लल्ला, तुम रोजी से शादी कर लो, तुम जैसे हो, जैसी तुम्हारी नौकरी और आमदनी है और तुम्हारी वृद्ध बूआ, सभी उसे यथास्थिति स्वीकार्य था न… वह तो तुम से अपनी इच्छा से शादी करना चाहती थी. मैं कम अक्ल अपनी रूढि़वादी सोच ले कर तुम दोनों के बीच आ खड़ी हुई,’’ बूआ ने अपनी बात रखी, ‘‘वह आज भी अविवाहित बैठी है लल्ला. मेरा दिल कहता है वह तुम्हारा इंतजार कर रही है. तुम उस से शादी कर लो,’’ भावावेश में बूआ की आंखें सजल हो उठी थीं.

मैं ने उन के आंसू पोंछते हुए कहा, ‘‘बूआ, स्वयं को दोषी नहीं समझो. सब विधि का विधान समझो. आप के इनकार के बाद हम व्यक्तिगत रूप से कभी मिले ही नहीं. हां, औफिशियल मीटिंग में कभीकभी भेंट हुई है. हम ने अपनी शादी के संबंध में तो कभी चर्चा ही नहीं की इस दौरान. मैं जरूर उसे फोन करता हूं और हमेशा उसे अन्यत्र विवाह हेतु प्रोत्साहित करता हूं…फिर अचानक स्वयं के साथ शादी… इस के अलावा बूआ मैं ने महसूस किया है कि रोजी मुझ से बात करने से कतराती भी है.’’

‘‘अचानक ही सही लल्ला तुम मुझे उस के घर ले चलो. मैं स्वयं उसे मांग लूंगी. लल्ला इनकार न करो,’’ बूआ ने मनुहार करते हुए कहा तो मैं टाल न सका, पहुंच गया बूआ को ले कर रोजी के घर. रोजी के घर में पहली बार आया था. हां, उसे कालोनी के मोड़ पर 2-4 बार ड्रौप जरूर किया था.

मुझे अचानक बूआ के साथ देख कर रोजी का आश्चर्यचकित होना स्वाभाविक था. उस ने अव्यवस्थित कुरसी को व्यवस्थित कर बैठने का आग्रह करते हुए बूआ के चरण स्पर्श किए. रोजी का घर बेहतर साधारण था. एक पुरानी सी चौकी पर उस के वृद्ध कमजोर पापा ताश के पत्तों में लगे थे. उन की भावभंगिमाएं साफ प्रकट कर रही थीं कि उन्हें हमारा आना नापसंद है. एक कोने में खिड़की की तरफ बेहद वृद्ध दादी एक थाली में चावल लिए उन्हें चुनने की कोशिश में लगी थी. उन्हीं के पास रोजी की दीदी बच्चों जैसी हरकतें कर रही थी. वह मुंह में अंगूठा डाल चूसते हुए हंसते हुए बोल रही थी, ‘‘आप कौन हैं? ही…ही… आप यहां क्यों आए हैं…ही…ही…’’

मैं रोजी के घर के वातावरण से हैरान सा था. अब मैं समझ सकता था कि रोजी हमेशा क्यों कहती थी कि शादी का फाइनल करने के पहले मैं अपने परिवार के संबंध में तुम से विस्तार से बात करना चाहती हूं. क्या बोलूं,क्या न बोलूं, समझ न आया तो शांत रहना ही उचित समझा.

बूआ हमारी शादी के लिए जैसे सोच कर आई थीं. अत: रोजी के पापा की बेरुखी के बावजूद मुसकराते हुए बोलीं, ‘‘नमस्ते भाई साहब, मैं रजत से रोजी के विवाह हेतु प्रस्ताव

ले कर आई हूं. दोनों बच्चे एकदूसरे से प्यार करते हैं. अत: दोनों का विवाह कर देना उचित होगा.’’‘‘रोजी के विवाह के संबंध में सिर्फ और सिर्फ मैं निर्णय लूंगा,’’ उन्होंने बेहद सख्त लहजे में कहा. ‘‘हांहां, यह उचित भी है. आप उस के ‘पापा’ हैं आप ही निर्णय करेंगे, मैं इस संबंध में आप की मंशा जानने आई हूं?’’ बूआ ने सहजता से कहा. ‘‘मुझे रोजी की शादी करनी ही नहीं है,’’ उन्होंने पूर्ववत सख्त लहजे में कहा.

रोजी के पापा की बात पर मैं और बूआ आश्चर्यचकित थे. बूआ ने स्वयं को शीघ्र ही संयत कर हंसते हुए कहा, ‘‘कैसी बातें कर रहे हैं भाईसाहब, लड़की को कोई घर थोड़े ही बैठाता है… वह तो दूसरे की अमानत होती है…’’उन्होंने बीच में ही बूआ की बात काटते हुए अत्यधिक तिरस्कार से कहा, ‘‘मुझे रोजी की शादी नहीं करनी है, आप ने सुना नहीं?’’ मैं ने बूआ को शांत रहने और लौट चलने का इशारा किया. रोजी भी नजरों से यही प्रार्थना करती प्रतीत हुई.

अगले दिन मैं बुझे मन से घर लौटा, तो बूआ ने चिंतित स्वर में पूछा, ‘‘क्या बात है लल्ला, तबीयत तो ठीक है? एकदम लुटेपिटे से लग रहे हो.’’ मैं ने कहा, ‘‘बूआ, ऐसा ही समझ लो. दरअसल, मैं औफिस से लौटते हुए रोजी से मिल कर आया. हमारे विवाह हेतु उस के पापा के विचार जान कर मैं हैरान था. यह भी मालूम हुआ, मेरे और रोजी के संबंध के बारे में जान लेने के बाद उन्होंने डांटफटकार कर उसे ट्रांसफर हेतु मजबूर कर दिया था.’’

सारी बात सुन कर बूआ भी हैरान हो गईं, शीघ्र ही अति उत्साह से बोलीं, ‘‘लल्ला, जल्दी चाय खत्म कर मुझे रोजी के घर ले चलो.’’‘‘क्या बूआ, आप को बेइज्जत होना बुरा नहीं लगता?’’ मैं ने इनकार करते हुए कहा.‘‘इनकार न करो, मेरे पास रोजी के पापा के भय का निवारण है,’’ बूआ ने अधीरता से कहा.

हमें स्वयं के घर पर देख कर रोजी केपापा ने आग्नेय नेत्रों से देखते हुए तिरस्कृतशब्दों में कहा, ‘‘आप दोनों फिर आ धमके,क्या मेरी बात…’’बूआ ने हाथ जोड़ कर अनुरोध करते हुए कहा, ‘‘भाईसाहब, आप से प्रार्थना करती हूं, आप नाराज न हों. आप मेरी पूरी बात सुन निर्णय करें. आप का निर्णय हमें शिरोधार्य होगा.’’

‘‘भाई साहब, आप अपने दिल से यह भय निकाल दीजिए कि विवाहोपरांत रोजी पर आप का अधिकार नहीं रहेगा वरन रोजी के साथसाथ रजत पर भी आप का पूरा अधिकार रहेगा. दोनों मिल कर परिवार की सारी जिम्मेदारियां पूरी करेंगे.’’ ‘‘देखिए भाई साहब, दोनों एकदूसरे को चाहते हैं, विधि के विधान को भी दोनों का मेल स्वीकार्य है, मैं तो अपनी संकीर्ण रूढि़वादी सोच के कारण रोजी जैसी सभ्य, सुसंस्कृत लड़की को ठुकरा कर स्वजातीय विवाह हेतु प्रयासरत रही. किंतु मेरे लल्ला का रिश्ता कहीं भी नहीं हो सका. मेरी रूढि़वादी सोच ने खुद ही दम तोड़ दिया.’’

बूआ आज सब खुल कर बोल देना चाहती थीं, ‘‘भाई साहब, मैं अपनी संकीर्ण सोच त्याग कर आगे बढ़ना चाहती हूं. आप से भी प्रार्थना करती हूं, अपने शक अपने भय को त्याग कर प्यार करने वालों का संगम करवा दोनों को आशीर्वाद दीजिए. 2 प्यार करने वालों की राह में बाधा डालना उचित नहीं है.’’

वे बोलीं, ‘‘देखिए भाई साहब, समस्या से डरने या भागने से उस का समाधान असंभव है, किंतु अगर हम साहस के साथ सकारात्मक पहल करें तब अवश्य समस्या का समाधान निकाल लेंगे.’’थोड़ी देर चुप रहने के बाद बूआ अतीत में जाते हुए बोलीं, ‘‘मैं उपेक्षित विधवा थी. जिन्होंने मुझे सहारा दिया कुछ समय बाद वे किशोर रजत को मेरे हवाले कर इस दुनिया से चल बसे. हम दोनों उदास और दुखी थे. मगर फिर साहस और सकारात्मक सोच के साथ जीवन पथ पर बढ़ चले. परिणाम आप के सामने है.’’

रोजी के पापा शांत भाव से बूआ की बातें सुन रहे थे. बूआ ने उन्हें आश्वस्त करते हुए कहा, ‘‘मैं आप को आश्वासन देती हूं कि रोजी और रजत मिल कर एक और एक 2 नहीं, 11 बन कर घर की सारी जिम्मेदारियां संभाल लेंगे.’’

रोजी के पापा की आंखों से झरझर आंसू बह चले. जैसे भय और शक की जमी बर्फ बूआ के आश्वासन की ऊष्मा पा कर पिघल कर आंसू बन आंखों से बह चली. वे आंसू पोंछते हुए बोले, ‘‘सिस्टर, जीवन में बहुत छलकपट देखा है. मैं बैंक कर्मी था. ईमानदार, सख्त मिजाज, रूखे स्वभाव का, बस सहकर्मियों की आंखों की किरकिरी बना रहता था. एक फ्रौड में जबरदस्ती फंसा दिया गया, नौकरी चली गई, मेरी पत्नी मैगी साहसी महिला थी, उस ने मुझे टूटने नहीं दिया. उस ने स्कूल में नौकरी कर घर संभाल लिया, किंतु नियति के क्रूर प्रहार से वह रोड ऐक्सीडैंट में मारी गई, तो मैं टूट गया.’’

‘‘रोजी अपनी मां जैसी साहसी है, पढ़लिख कर नौकरी कर घर संभाल रही है, इसी की आमदनी से घर का खर्च चलता है. अब आप ही बताइए इसे विवाह कर दूसरे घर भेज दूं, तो अपनी वृद्ध मां, मंदबुद्धि दूसरी बेटी और हाराटूटा मैं किस के सहारे रहें? बस इसी स्वार्थी सोच के कारण मुझे रोजी के विवाह यहां तक कि विवाह की चर्चा से ही भय हो गया था.’’

कुछ चुप रहने के बाद वे पुन: बोले, ‘‘आज आप की बातों से पुन: विश्वास करने का दिल हो रहा है कि दुनिया में आज भी इंसानियत है. सच कहता हूं रोजी बेटी की खुशियों का दमन करते हुए मुझे दुख भी बहुत होता था. सच ही कहा गया है कि सारे रास्ते बंद नजर आने के बावजूद एक रास्ता अवश्य खुला रखता है. बस साहस और सकारात्मक पहल की आवश्यकता होती है.’’

फिर उन्होंने मुसकराते हुए मुझ से कहा, ‘‘बेटा रजत मैं ने तुम्हारा और तुम्हारी बूआ का बहुत अनादर किया. मुझे माफ करना’’ और उन्होंने हाथ जोड़ दिए. मैं ने उन के हाथ अलग करते हुए कहा, ‘‘आप बड़े हैं. आप का हाथ माफी के लिए नहीं आशीर्वाद के लिए उठना चाहिए. आप माफी मांग कर मुझ शर्मिंदा न करें अंकल.’’

‘‘बेटा, तुम मुझे पापा कह सकते हो, तुम्हारे जैसा बेटा पा कर मैं धन्य हो गया,’’ कहते हुए उन्होंने मुझे गले से लगा लिया.

सभी की आंखें खुशी के आंसुओं से भर उठीं. मैं मन ही मन अपनी बूआ के साहस, दृढ़संकल्प एवं सकारात्मक पहल को सलाम कर रहा था.

 

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‘‘बूआ ने रोजी के पापा को शादी के लिए मनाने की भरसक कोशिश की, मगर वे टस से मस नहीं हो रहे थे…’’‘‘क्या रोजी डिसूजा क्रिश्चियन है? लल्ला तुम्हारा क्या दिमाग खराब हो गया है? क्या हमारी जाति में लड़कियों का अकाल पड़ गया है, जो हम विजातीय बहू घर लाएं? मैं दिवंगत भैयाभाभी को क्या मुंह दिखाऊंगी? मुझ उपेक्षित विधवा को दोनों ने मन से सहारा दिया था. उन की उम्मीदें पूरी करना मेरा फर्ज है… सारे समाज में हमारी खिल्ली उड़ेगी वह अलग,’’  सुमित्रा ने नाराज होते हुए कहा.

‘‘उफ, बूआ, आप नाहक परेशान हो रही हैं. आजकल अंतर्जातीय विवाह को सहर्ष स्वीकार किया जाता है… मांपापा जिंदा होते तो वे भी इनकार नहीं करते. आप पहले रोजी से मिल तो लो… बहुत सभ्य और संस्कारी लड़की है. आप को जरूर पसंद आएगी. बूआ हम दोनों एकदूसरे से प्यार करते हैं… जातिधर्म का क्या करना है… जीवन में प्यारविश्वास की अहमियत होती है,’’ मैं ने बूआ को समझाते हुए कहा.

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‘‘मैं कह देती हूं लल्ला तुम अपनी पसंद की लड़की ला सकते हो, मुझे कोई एतराज नहीं होगा, किंतु विजातीय नहीं चलेगी,’’ बूआ ने भी अपना निर्णय सुना दिया.बूआ अपनी शादी के 10 दिन बाद ही विधवा हो गई थीं. फूफाजी का रोड ऐक्सीडैंट में देहांत हो गया था. बूआ के ससुराल वालों ने उन से रिश्ता खत्म कर लिया. रोतीबिलखती बूआ की चीखपुकार ससुराल के दरवाजे न खुलवा सकी थी. उस दुखदाई घड़ी में मेरे मांपापा ने उन्हें सहारा देते हुए कहा था, ‘‘जीजी, हमारे रहते खुद को बेसहारा और अकेला न समझो,’’ और फिर बूआ हमारे साथ ही रहने लगीं.

मेरे विवाह के संबंध में बूआ का निर्णयमेरे लिए आदेश से कम न था. मैं उसे नकार नहीं सकता था. बूआ ही मेरी सबकुछ थीं. मैं 14 साल का था जब मेरे मांपापा का देहांत हुआ था. उस कच्ची उम्र में मेरी बूआ ने मुझे टूटनेबिखरने नहीं दिया. वे चट्टान बन मेरा संबल बनी रहीं. पापा की छोटी सी किराने की दुकान थी. उन के देहांत के बाद बूआ और मैं ने मिल कर उसे संभाला, बूआ मुझे पढ़ने के लिए भी प्रोत्साहित करती रहीं. परिणामस्वरूप मैं ने बीकौम तक पढ़ाई कर ली. फिर मुझे प्राइवेट कंपनी में नौकरी मिल गई. मैं और बूआ बेहद खुश हुए.

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मेरे औफिस में मेरी जूनियर रोजी और मैं एकदूसरे से प्यार करने लगे, किंतु बूआ के इनकार के कारण अगले ही दिन मैं ने रोजी को बताते हुए कहा, ‘‘रोजी, बूआ हमारी शादी के लिए तैयार नहीं हैं? मुझे रत्तीभर भी अंदेशा न था कि बूआ जातिधर्म का सवाल खड़ा कर देंगी. वरना मैं आगे न बढ़ता. मुझे माफ कर देना. मैं ने नाहक तुम्हारा दिल दुखाया.’’

रोजी ने संयत स्वर में कहा, ‘‘रजत, हमें बूआ को सोचने हेतु पर्याप्त समय देना चाहिए. मुझे पूरा विश्वास है एक दिन बूआ जरूर मान जाएंगी.’’ ‘‘रोजी, बूआ की बातों से तो ऐसा ही प्रतीत हो रहा है कि जातिधर्म की रूढि़वादिता उन के अंदर जड़ें जमाए है. मैं तुम्हें अन्यत्र शादी की सलाह देना चाहता हूं, शादीविवाह सही उम्र में ही अच्छे लगते हैं. मेरे लिए अपना जीवन बरबाद न करो,’’ मैं ने रोजी को समझाते हुए कहा.

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‘‘यह मुझ से नहीं होगा रजत,’’ रोजी ने धीरे से कहा. ‘‘रोजी, तुम मेरी हमउम्र ही हो न यानी तुम भी बत्तीस वर्ष की हो रही है. अत: रिक्वैस्ट कर रहा हूं कि अन्यत्र विवाह पर विचार करो. रोजी हम बूआ की सहमति के बिना विवाह कर लेते हैं. मगर मैं बूआ को किसी भी कीमत पर नाराज नहीं कर सकता,’’ मैं ने रोजी को अन्यत्र शादी करने हेतु बात बनाते हुए कहा.

‘‘नहीं रजत हम बूआ को नाराज नहीं कर सकते. उन्होंने तुम्हें पालपोस कर इस योग्य बनाया कि आज तुम गर्व से दुनिया का सामना कर सकते हो. वे चाहतीं तो पुनर्विवाह कर अपनी गृहस्थी बसा सकती थीं, किंतु उन्होंने मांपापा बन कर तुम्हें पालापोसा, पढ़ायालिखाया,’’ रोजी ने कहा.  ‘‘इसी समझदारी का तो मैं दीवाना हूं. इसीलिए तुम से हाथ जोड़ कर प्रार्थना करता हूं कि अन्यत्र विवाह हेतु सोचना शुरू कर दो.’’

रोजी मुसकराते हुए अपनी टेबल पर चली गई. लंचब्रेक खत्म हो चुका था.10 दिनों के अंदर ही रोजी का ट्रांसफर कंपनी की दूसरी शाखा में कर दिया गया. मालूम हुआ इस हेतु रोजी ने अनुरोध किया था. मेरे दिल को ठेस लगी, किंतु मैं ने महसूस किया कि यह उचित ही है. दूर रहने से अन्यत्र विवाह हेतु मन बना सकेगी.

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अब फोन से बातें कर संतोष करना पड़ता. मैं सदैव उसे अन्यत्र विवाह हेतु प्रोत्साहित करता, मगर वह बात हंसी में टाल देती. मैं ने एक दिन कहा रोजी, ‘‘अपने विवाह में मुझे अवश्य बुलाना. भुला न देना.’’उस ने खोखली हंसी के साथ कहा, ‘‘घबराओ नहीं, रजत पहला इन्विटेशन तुम्हें ही जाएगा… तुम्हारे बिना मेरी शादी संभव ही नहीं.’’

रोजी के बारे में जान लेने के बाद बूआ मेरी शादी के लिए विशेष सक्रिय हो गई थीं. मैं ने भी उन की आज्ञा का पालन करते हुए विज्ञापन दे दिया था. कई जगह रिश्ते की बात चली भी,किंतु कहीं मेरी साधारण कदकाठी, शक्लसूरत तो कहीं मेरी साधारण नौकरी तो कहीं मेरी सादगी और गंभीरता मेरे रिश्ते के लिए बाधक बन गई. कहींकहीं तो मेरी वृद्ध बूआ का मेरे साथ रहना और मेरा उन्हें सर्वस्व मान पूजना ही बाधक बन बैठा.

एक लड़की का कहना था, ‘‘मुझे तो सारे काम अपनी मनमरजी से करने की आदत है. तुम्हारे यहां तो तुम्हारी बूआ ही घर की सर्वेसर्वा हैं. मैं नहीं सह सकूंगी.’’ मेरी शादी की बात नहीं बन सकी. मैं अब करीब 35 साल का हो चला था और बूआ 70 की. हम दोनों की बढ़ती उम्र ने बूआ को मेरी शादी हेतु चिंतित कर रखा था.

रविवार का दिन था. मैं समाचारपत्र पढ़ रहा था तभी बूआ मेरे पास बैठ कर मेरे बाल सहलाते हुए बोलीं, ‘‘लल्ला, एक बात कहूं, इनकार तो नहीं करेगा?’’ मैं ने आश्चर्य से कहा, ‘‘बूआ, कुछ कहने के लिए आप को मुझ से पूछने की आवश्यकता कब से महसूस होने लगी? मैं आप को इतना पराया कब से लगने लगा?’’

‘‘क्या बोलूं लल्ला, बात ही कुछ ऐसी है,’’ बूआ ने धीरे से कहा. मैं ने आशंका से समाचारपत्र एक तरफ पटकते हुए कहा, ‘‘बूआ, जो भी मन में है बोल दो. आप का कथन मेरे लिए आदेश से कम नहीं है. इनकार करने का तो सवाल ही नहीं उठता.’’ ‘‘लल्ला, तुम रोजी से शादी कर लो, तुम जैसे हो, जैसी तुम्हारी नौकरी और आमदनी है और तुम्हारी वृद्ध बूआ, सभी उसे यथास्थिति स्वीकार्य था न… वह तो तुम से अपनी इच्छा से शादी करना चाहती थी. मैं कम अक्ल अपनी रूढि़वादी सोच ले कर तुम दोनों के बीच आ खड़ी हुई,’’ बूआ ने अपनी बात रखी, ‘‘वह आज भी अविवाहित बैठी है लल्ला. मेरा दिल कहता है वह तुम्हारा इंतजार कर रही है. तुम उस से शादी कर लो,’’ भावावेश में बूआ की आंखें सजल हो उठी थीं.

मैं ने उन के आंसू पोंछते हुए कहा, ‘‘बूआ, स्वयं को दोषी नहीं समझो. सब विधि का विधान समझो. आप के इनकार के बाद हम व्यक्तिगत रूप से कभी मिले ही नहीं. हां, औफिशियल मीटिंग में कभीकभी भेंट हुई है. हम ने अपनी शादी के संबंध में तो कभी चर्चा ही नहीं की इस दौरान. मैं जरूर उसे फोन करता हूं और हमेशा उसे अन्यत्र विवाह हेतु प्रोत्साहित करता हूं…फिर अचानक स्वयं के साथ शादी… इस के अलावा बूआ मैं ने महसूस किया है कि रोजी मुझ से बात करने से कतराती भी है.’’

‘‘अचानक ही सही लल्ला तुम मुझे उस के घर ले चलो. मैं स्वयं उसे मांग लूंगी. लल्ला इनकार न करो,’’ बूआ ने मनुहार करते हुए कहा तो मैं टाल न सका, पहुंच गया बूआ को ले कर रोजी के घर. रोजी के घर में पहली बार आया था. हां, उसे कालोनी के मोड़ पर 2-4 बार ड्रौप जरूर किया था.

मुझे अचानक बूआ के साथ देख कर रोजी का आश्चर्यचकित होना स्वाभाविक था. उस ने अव्यवस्थित कुरसी को व्यवस्थित कर बैठने का आग्रह करते हुए बूआ के चरण स्पर्श किए. रोजी का घर बेहतर साधारण था. एक पुरानी सी चौकी पर उस के वृद्ध कमजोर पापा ताश के पत्तों में लगे थे. उन की भावभंगिमाएं साफ प्रकट कर रही थीं कि उन्हें हमारा आना नापसंद है. एक कोने में खिड़की की तरफ बेहद वृद्ध दादी एक थाली में चावल लिए उन्हें चुनने की कोशिश में लगी थी. उन्हीं के पास रोजी की दीदी बच्चों जैसी हरकतें कर रही थी. वह मुंह में अंगूठा डाल चूसते हुए हंसते हुए बोल रही थी, ‘‘आप कौन हैं? ही…ही… आप यहां क्यों आए हैं…ही…ही…’’

मैं रोजी के घर के वातावरण से हैरान सा था. अब मैं समझ सकता था कि रोजी हमेशा क्यों कहती थी कि शादी का फाइनल करने के पहले मैं अपने परिवार के संबंध में तुम से विस्तार से बात करना चाहती हूं. क्या बोलूं,क्या न बोलूं, समझ न आया तो शांत रहना ही उचित समझा.

बूआ हमारी शादी के लिए जैसे सोच कर आई थीं. अत: रोजी के पापा की बेरुखी के बावजूद मुसकराते हुए बोलीं, ‘‘नमस्ते भाई साहब, मैं रजत से रोजी के विवाह हेतु प्रस्ताव

ले कर आई हूं. दोनों बच्चे एकदूसरे से प्यार करते हैं. अत: दोनों का विवाह कर देना उचित होगा.’’‘‘रोजी के विवाह के संबंध में सिर्फ और सिर्फ मैं निर्णय लूंगा,’’ उन्होंने बेहद सख्त लहजे में कहा. ‘‘हांहां, यह उचित भी है. आप उस के ‘पापा’ हैं आप ही निर्णय करेंगे, मैं इस संबंध में आप की मंशा जानने आई हूं?’’ बूआ ने सहजता से कहा. ‘‘मुझे रोजी की शादी करनी ही नहीं है,’’ उन्होंने पूर्ववत सख्त लहजे में कहा.

रोजी के पापा की बात पर मैं और बूआ आश्चर्यचकित थे. बूआ ने स्वयं को शीघ्र ही संयत कर हंसते हुए कहा, ‘‘कैसी बातें कर रहे हैं भाईसाहब, लड़की को कोई घर थोड़े ही बैठाता है… वह तो दूसरे की अमानत होती है…’’उन्होंने बीच में ही बूआ की बात काटते हुए अत्यधिक तिरस्कार से कहा, ‘‘मुझे रोजी की शादी नहीं करनी है, आप ने सुना नहीं?’’ मैं ने बूआ को शांत रहने और लौट चलने का इशारा किया. रोजी भी नजरों से यही प्रार्थना करती प्रतीत हुई.

अगले दिन मैं बुझे मन से घर लौटा, तो बूआ ने चिंतित स्वर में पूछा, ‘‘क्या बात है लल्ला, तबीयत तो ठीक है? एकदम लुटेपिटे से लग रहे हो.’’ मैं ने कहा, ‘‘बूआ, ऐसा ही समझ लो. दरअसल, मैं औफिस से लौटते हुए रोजी से मिल कर आया. हमारे विवाह हेतु उस के पापा के विचार जान कर मैं हैरान था. यह भी मालूम हुआ, मेरे और रोजी के संबंध के बारे में जान लेने के बाद उन्होंने डांटफटकार कर उसे ट्रांसफर हेतु मजबूर कर दिया था.’’

सारी बात सुन कर बूआ भी हैरान हो गईं, शीघ्र ही अति उत्साह से बोलीं, ‘‘लल्ला, जल्दी चाय खत्म कर मुझे रोजी के घर ले चलो.’’‘‘क्या बूआ, आप को बेइज्जत होना बुरा नहीं लगता?’’ मैं ने इनकार करते हुए कहा.‘‘इनकार न करो, मेरे पास रोजी के पापा के भय का निवारण है,’’ बूआ ने अधीरता से कहा.

हमें स्वयं के घर पर देख कर रोजी केपापा ने आग्नेय नेत्रों से देखते हुए तिरस्कृतशब्दों में कहा, ‘‘आप दोनों फिर आ धमके,क्या मेरी बात…’’बूआ ने हाथ जोड़ कर अनुरोध करते हुए कहा, ‘‘भाईसाहब, आप से प्रार्थना करती हूं, आप नाराज न हों. आप मेरी पूरी बात सुन निर्णय करें. आप का निर्णय हमें शिरोधार्य होगा.’’

‘‘भाई साहब, आप अपने दिल से यह भय निकाल दीजिए कि विवाहोपरांत रोजी पर आप का अधिकार नहीं रहेगा वरन रोजी के साथसाथ रजत पर भी आप का पूरा अधिकार रहेगा. दोनों मिल कर परिवार की सारी जिम्मेदारियां पूरी करेंगे.’’ ‘‘देखिए भाई साहब, दोनों एकदूसरे को चाहते हैं, विधि के विधान को भी दोनों का मेल स्वीकार्य है, मैं तो अपनी संकीर्ण रूढि़वादी सोच के कारण रोजी जैसी सभ्य, सुसंस्कृत लड़की को ठुकरा कर स्वजातीय विवाह हेतु प्रयासरत रही. किंतु मेरे लल्ला का रिश्ता कहीं भी नहीं हो सका. मेरी रूढि़वादी सोच ने खुद ही दम तोड़ दिया.’’

बूआ आज सब खुल कर बोल देना चाहती थीं, ‘‘भाई साहब, मैं अपनी संकीर्ण सोच त्याग कर आगे बढ़ना चाहती हूं. आप से भी प्रार्थना करती हूं, अपने शक अपने भय को त्याग कर प्यार करने वालों का संगम करवा दोनों को आशीर्वाद दीजिए. 2 प्यार करने वालों की राह में बाधा डालना उचित नहीं है.’’

वे बोलीं, ‘‘देखिए भाई साहब, समस्या से डरने या भागने से उस का समाधान असंभव है, किंतु अगर हम साहस के साथ सकारात्मक पहल करें तब अवश्य समस्या का समाधान निकाल लेंगे.’’थोड़ी देर चुप रहने के बाद बूआ अतीत में जाते हुए बोलीं, ‘‘मैं उपेक्षित विधवा थी. जिन्होंने मुझे सहारा दिया कुछ समय बाद वे किशोर रजत को मेरे हवाले कर इस दुनिया से चल बसे. हम दोनों उदास और दुखी थे. मगर फिर साहस और सकारात्मक सोच के साथ जीवन पथ पर बढ़ चले. परिणाम आप के सामने है.’’

रोजी के पापा शांत भाव से बूआ की बातें सुन रहे थे. बूआ ने उन्हें आश्वस्त करते हुए कहा, ‘‘मैं आप को आश्वासन देती हूं कि रोजी और रजत मिल कर एक और एक 2 नहीं, 11 बन कर घर की सारी जिम्मेदारियां संभाल लेंगे.’’

रोजी के पापा की आंखों से झरझर आंसू बह चले. जैसे भय और शक की जमी बर्फ बूआ के आश्वासन की ऊष्मा पा कर पिघल कर आंसू बन आंखों से बह चली. वे आंसू पोंछते हुए बोले, ‘‘सिस्टर, जीवन में बहुत छलकपट देखा है. मैं बैंक कर्मी था. ईमानदार, सख्त मिजाज, रूखे स्वभाव का, बस सहकर्मियों की आंखों की किरकिरी बना रहता था. एक फ्रौड में जबरदस्ती फंसा दिया गया, नौकरी चली गई, मेरी पत्नी मैगी साहसी महिला थी, उस ने मुझे टूटने नहीं दिया. उस ने स्कूल में नौकरी कर घर संभाल लिया, किंतु नियति के क्रूर प्रहार से वह रोड ऐक्सीडैंट में मारी गई, तो मैं टूट गया.’’

‘‘रोजी अपनी मां जैसी साहसी है, पढ़लिख कर नौकरी कर घर संभाल रही है, इसी की आमदनी से घर का खर्च चलता है. अब आप ही बताइए इसे विवाह कर दूसरे घर भेज दूं, तो अपनी वृद्ध मां, मंदबुद्धि दूसरी बेटी और हाराटूटा मैं किस के सहारे रहें? बस इसी स्वार्थी सोच के कारण मुझे रोजी के विवाह यहां तक कि विवाह की चर्चा से ही भय हो गया था.’’

कुछ चुप रहने के बाद वे पुन: बोले, ‘‘आज आप की बातों से पुन: विश्वास करने का दिल हो रहा है कि दुनिया में आज भी इंसानियत है. सच कहता हूं रोजी बेटी की खुशियों का दमन करते हुए मुझे दुख भी बहुत होता था. सच ही कहा गया है कि सारे रास्ते बंद नजर आने के बावजूद एक रास्ता अवश्य खुला रखता है. बस साहस और सकारात्मक पहल की आवश्यकता होती है.’’

फिर उन्होंने मुसकराते हुए मुझ से कहा, ‘‘बेटा रजत मैं ने तुम्हारा और तुम्हारी बूआ का बहुत अनादर किया. मुझे माफ करना’’ और उन्होंने हाथ जोड़ दिए. मैं ने उन के हाथ अलग करते हुए कहा, ‘‘आप बड़े हैं. आप का हाथ माफी के लिए नहीं आशीर्वाद के लिए उठना चाहिए. आप माफी मांग कर मुझ शर्मिंदा न करें अंकल.’’

‘‘बेटा, तुम मुझे पापा कह सकते हो, तुम्हारे जैसा बेटा पा कर मैं धन्य हो गया,’’ कहते हुए उन्होंने मुझे गले से लगा लिया.

सभी की आंखें खुशी के आंसुओं से भर उठीं. मैं मन ही मन अपनी बूआ के साहस, दृढ़संकल्प एवं सकारात्मक पहल को सलाम कर रहा था.

 

The post एक और एक ग्यारह : रजत और रोजी के शादी के लिए बुआ क्यों तैयार नहीं थी appeared first on Sarita Magazine.

January 12, 2022 at 11:00AM

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