Monday 10 January 2022

मुक्तिद्वार: भाग 1- क्या थी कुमुद की कहानी

माधुरी और उस के पूरे ग्रुप का आज धनोल्टी घूमने का प्रोग्राम था. माधुरी ने सारी तैयारी कर ली थी. एक छोटी सी मैडिसिन किट भी बना ली थी. तभी कुमुद चुटकी काटते हुए बोली, “मधु, 2 ही दिनों के लिए जा रहे हैं.” और विनोद हंसते हुए बोला, “भई, माधुरी को मत रोको कोई, पूरे 10 वर्षों बाद कहीं जा रही हैं. कर लेने दो उसे अपने मन की.” तभी जयति और इंद्रवेश अंदर आए, दोनों गुस्से से लाल पीले हो रहे थे.

विनोद बोले, “क्या फिर से प्रिंसिपल से लड़ कर आ रहे हो?” जयति गुस्से में बोली, “वो क्या हमें अपना गुलाम समझते हैं, क्या छुट्टियों पर भी हमारा हक नही हैं?” कुमुद तभी दोनों को चाय के कप पकड़ाते हुए बोली, “अरे, विजय समझा देगा. अभी वह टैक्सी की बात करने गया है.”

माधुरी को अपना यह ग्रुप बड़ा भला लगता था. कहने को किसी के साथ खून का रिश्ता नहीं था मगर 2 ही सालों में सभी लोग माधुरी के लिए अपनों से भी अधिक अजीज हो गए थे. माधुरी 56 वर्ष की थी, कुमुद 52 वर्ष की, वहीं विनोद था 63 वर्ष का. मगर पूरे ग्रुप में सब से एनरजेटिक सदस्य थे विजय जो 50 की लपेट में था. वहीं, जयति और इंद्रवेश 32 वर्ष के थे. ये सभी लोग देहरादून के एक रैजिडेंशियल स्कूल में कार्य करते हैं. सभी अपनी जीवनयात्रा में अकेले ही चल रहे थे और धीरेधीरे 2 वर्षों के भीतर सब एक ही राह पर चलने लगे थे.

विनोद का इस स्कूल से बहुत पुराना रिश्ता था. वे 30 वर्षों से इस स्कूल से जुड़े हुए थे. उन के दोनो बच्चे यहीं पढ़े और काबिल बने. विनोद की पत्नी की मृत्यु भी यहीं हुई थी. जब विनोद 60 वर्ष के हुए तो उन्हें पूरी उम्मीद थी कि उन के बच्चे उन्हें अब काम करने नहीं देंगे. मगर विनोद प्रतीक्षा करते रहे और फिर स्वेच्छा से उन्होंने इसी स्कूल में वार्डन की सेवा देनी आरंभ कर दी थी. जब कभी छुट्टियां होती तो विनोद बेहद उदास हो उठते थे. उन के पास कहने के लिए घर था मगर अपना घर नहीं था. जब कभी छुट्टियों में जाते तो बच्चों के कमरे में उन्हें एडजस्ट कर दिया जाता था. दोनों ही बच्चों के घर में उन के लिए कोई कोना सुरक्षित नहीं था.

उन्हें बारबार अपनी पत्नी शोभा की याद आ जाती थी. शोभा ने उन्हें बहुत समझाया था कि भले ही वे लोग रैसिडेंशियल स्कूल में रह रहे हैं मगर एक छोटा सा घर ले लें. पहले विनोद फुजूलखर्ची करते रहे, बाद में बच्चों के खर्चे, विवाह और फिर शोभा के लंबे कैंसर के इलाज के कारण उन की लगभग जमापूंजी समाप्त हो गई थी. उन के पास 20 लाख रुपए बचे थे. मगर इतने पैसों में आजकल मकान आना असंभव ही है. ऐसी ही कहानी लगभग सभी की थी.

सब लोग एक लंबे अरसे से स्कूल से जुड़े हुए थे और खुश थे. बस, छुट्टियां ही होती थीं जब सब एकाकी हो जाते थे. पूरे ग्रुप को पता था कि उन के पास उन का घर नही हैं और इसी बात का फायदा उठाते हुए स्कूल वाले हर छुट्टियों में पूरे ग्रुप को उलझा कर रखते थे. प्रिंसिपल साहब हमेशा बोलते, ‘अरे, यह स्कूल ही तो तुम लोगों का घर हैं. घर पर भी तो हम लोग छुट्टियों में काम करते हैं. फिर जब यहां रहते हो तो इतना तो करना ही होगा, इसलिए इस बार पूरे ग्रुप ने 2 दिनों के लिए बाहर घूमने का प्रोग्राम बनाया था जो प्रिंसिपल महोदय को पसंद नहीं आ रहा था. मगर फिर भी पूरा ग्रुप निकल ही पड़ा.

माधुरी बेहद खुश थी. उसे घूमने का बहुत शौक़ था. मगर पहले घर की जिम्मेदारियों के कारण माधुरी को फुरसत नही मिली और बाद में माधुरी की जिंदगी ही बदल गई. विनोद गुनगुना रहे थे और उन की मीठी आवाज़ के साथसाथ माधुरी अपने अतीत में घूमने लगी. माधुरी के पति का पिछले वर्ष देहांत हो गया था. वे सिंचाई बिभाग में इंजीनियर के पद पर दमोह में कार्यरत थे. दमोह कसबे से थोड़ा बड़ा और शहर से थोड़ा छोटा, धीमा और शांत नगर था. माधुरी एक स्थानीय स्कूल में बच्चो को पढ़ाती थी. साथ ही साथ, एक किटी पार्टी की सदस्य भी थी. बेटे पार्थ और बेटी सोनाक्षी का समय से विवाह कर दिया था. पति के रिटायरमैंट में, बस, 2 वर्ष बचे थे.

माधुरी और उन के पति उपेंद्र ने पोस्ट रिटायरमैंट की पूरी रूपरेखा तैयार कर रखी थी. पर अचानक से एक रात उपेंद्र ऐसे सोए कि सुबह उठे ही नहीं. पहला हार्टअटैक ही वे झेल नहीं पाए थे. माधुरी की तो पूरी दुनिया ही उजड़ गई थी. उन के बेटा और बेटी उन्हें अकेला छोड़ना नहीं चाहते थे. उधर, बहू पंखुड़ी भी मिन्नतें कर रही थी मम्मी घर पर आप रहेंगी तो मुझे भी सुकून रहेगा, नौकरों को भी थोड़ा डर रहेगा.

माधुरी को अपना घर और नौकरी छोड़ने का मन नहीं था. मगर फिर भी वो बेटे के पास इंदौर चली गई थी. माधुरी का घर से बाहर निकलने का मन करता था पर इंदौर में उस की पहचान का दायरा न के बराबर था. पति का विछोह और नए परिवेश के कारण माधुरी एकाएक से बुजुर्ग लगने लगी थी. जब सुबह पंखुड़ी बनसंवर के निकलती तो माधुरी उसे बड़ी हसरत से देखती. उसे भी बनावश्रृंगार का बहुत शौक था. माधुरी के पास सूट और साड़ियों का बहुत अच्छा कलैक्शन था. धीरेधीरे पंखुड़ी माधुरी के कपड़ों का एकएक कर के इस्तेमाल करने लगी थी. अरे मम्मी, आप के पास इतने सुंदर सूट औऱ साड़ियां हैं, अब क्यों ये आलमारी के अंदर गलें. मैं पूरी कीमत वसूल लूंगी.

माधुरी का मन कहता था कि उस के जीवन से, बस, उपेंद्र गया हैं पर वह खुद अभी ज़िंदा है. उस का भी मन है बनावश्रृंगार करने का. लेकिन माधुरी का बुरा समय यह था कि वह विधवा थी और वह भी 56 वर्ष की. मतलब, समाज के हिसाब से वह पूरी तरह संन्यासी है. हमारे देश में तो 50-55 वर्ष की औरतों को, बस, पूजापाठ के या बच्चों के बच्चों की चाकरी के योग्य समझा जाता है. अगर वे अपने लिए ज़ीना चाहें तो वह उन का स्वार्थ समझा जाता है.

आगे पढ़ें- बेटे के पास रहने का फ़ैसला ले कर…

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माधुरी और उस के पूरे ग्रुप का आज धनोल्टी घूमने का प्रोग्राम था. माधुरी ने सारी तैयारी कर ली थी. एक छोटी सी मैडिसिन किट भी बना ली थी. तभी कुमुद चुटकी काटते हुए बोली, “मधु, 2 ही दिनों के लिए जा रहे हैं.” और विनोद हंसते हुए बोला, “भई, माधुरी को मत रोको कोई, पूरे 10 वर्षों बाद कहीं जा रही हैं. कर लेने दो उसे अपने मन की.” तभी जयति और इंद्रवेश अंदर आए, दोनों गुस्से से लाल पीले हो रहे थे.

विनोद बोले, “क्या फिर से प्रिंसिपल से लड़ कर आ रहे हो?” जयति गुस्से में बोली, “वो क्या हमें अपना गुलाम समझते हैं, क्या छुट्टियों पर भी हमारा हक नही हैं?” कुमुद तभी दोनों को चाय के कप पकड़ाते हुए बोली, “अरे, विजय समझा देगा. अभी वह टैक्सी की बात करने गया है.”

माधुरी को अपना यह ग्रुप बड़ा भला लगता था. कहने को किसी के साथ खून का रिश्ता नहीं था मगर 2 ही सालों में सभी लोग माधुरी के लिए अपनों से भी अधिक अजीज हो गए थे. माधुरी 56 वर्ष की थी, कुमुद 52 वर्ष की, वहीं विनोद था 63 वर्ष का. मगर पूरे ग्रुप में सब से एनरजेटिक सदस्य थे विजय जो 50 की लपेट में था. वहीं, जयति और इंद्रवेश 32 वर्ष के थे. ये सभी लोग देहरादून के एक रैजिडेंशियल स्कूल में कार्य करते हैं. सभी अपनी जीवनयात्रा में अकेले ही चल रहे थे और धीरेधीरे 2 वर्षों के भीतर सब एक ही राह पर चलने लगे थे.

विनोद का इस स्कूल से बहुत पुराना रिश्ता था. वे 30 वर्षों से इस स्कूल से जुड़े हुए थे. उन के दोनो बच्चे यहीं पढ़े और काबिल बने. विनोद की पत्नी की मृत्यु भी यहीं हुई थी. जब विनोद 60 वर्ष के हुए तो उन्हें पूरी उम्मीद थी कि उन के बच्चे उन्हें अब काम करने नहीं देंगे. मगर विनोद प्रतीक्षा करते रहे और फिर स्वेच्छा से उन्होंने इसी स्कूल में वार्डन की सेवा देनी आरंभ कर दी थी. जब कभी छुट्टियां होती तो विनोद बेहद उदास हो उठते थे. उन के पास कहने के लिए घर था मगर अपना घर नहीं था. जब कभी छुट्टियों में जाते तो बच्चों के कमरे में उन्हें एडजस्ट कर दिया जाता था. दोनों ही बच्चों के घर में उन के लिए कोई कोना सुरक्षित नहीं था.

उन्हें बारबार अपनी पत्नी शोभा की याद आ जाती थी. शोभा ने उन्हें बहुत समझाया था कि भले ही वे लोग रैसिडेंशियल स्कूल में रह रहे हैं मगर एक छोटा सा घर ले लें. पहले विनोद फुजूलखर्ची करते रहे, बाद में बच्चों के खर्चे, विवाह और फिर शोभा के लंबे कैंसर के इलाज के कारण उन की लगभग जमापूंजी समाप्त हो गई थी. उन के पास 20 लाख रुपए बचे थे. मगर इतने पैसों में आजकल मकान आना असंभव ही है. ऐसी ही कहानी लगभग सभी की थी.

सब लोग एक लंबे अरसे से स्कूल से जुड़े हुए थे और खुश थे. बस, छुट्टियां ही होती थीं जब सब एकाकी हो जाते थे. पूरे ग्रुप को पता था कि उन के पास उन का घर नही हैं और इसी बात का फायदा उठाते हुए स्कूल वाले हर छुट्टियों में पूरे ग्रुप को उलझा कर रखते थे. प्रिंसिपल साहब हमेशा बोलते, ‘अरे, यह स्कूल ही तो तुम लोगों का घर हैं. घर पर भी तो हम लोग छुट्टियों में काम करते हैं. फिर जब यहां रहते हो तो इतना तो करना ही होगा, इसलिए इस बार पूरे ग्रुप ने 2 दिनों के लिए बाहर घूमने का प्रोग्राम बनाया था जो प्रिंसिपल महोदय को पसंद नहीं आ रहा था. मगर फिर भी पूरा ग्रुप निकल ही पड़ा.

माधुरी बेहद खुश थी. उसे घूमने का बहुत शौक़ था. मगर पहले घर की जिम्मेदारियों के कारण माधुरी को फुरसत नही मिली और बाद में माधुरी की जिंदगी ही बदल गई. विनोद गुनगुना रहे थे और उन की मीठी आवाज़ के साथसाथ माधुरी अपने अतीत में घूमने लगी. माधुरी के पति का पिछले वर्ष देहांत हो गया था. वे सिंचाई बिभाग में इंजीनियर के पद पर दमोह में कार्यरत थे. दमोह कसबे से थोड़ा बड़ा और शहर से थोड़ा छोटा, धीमा और शांत नगर था. माधुरी एक स्थानीय स्कूल में बच्चो को पढ़ाती थी. साथ ही साथ, एक किटी पार्टी की सदस्य भी थी. बेटे पार्थ और बेटी सोनाक्षी का समय से विवाह कर दिया था. पति के रिटायरमैंट में, बस, 2 वर्ष बचे थे.

माधुरी और उन के पति उपेंद्र ने पोस्ट रिटायरमैंट की पूरी रूपरेखा तैयार कर रखी थी. पर अचानक से एक रात उपेंद्र ऐसे सोए कि सुबह उठे ही नहीं. पहला हार्टअटैक ही वे झेल नहीं पाए थे. माधुरी की तो पूरी दुनिया ही उजड़ गई थी. उन के बेटा और बेटी उन्हें अकेला छोड़ना नहीं चाहते थे. उधर, बहू पंखुड़ी भी मिन्नतें कर रही थी मम्मी घर पर आप रहेंगी तो मुझे भी सुकून रहेगा, नौकरों को भी थोड़ा डर रहेगा.

माधुरी को अपना घर और नौकरी छोड़ने का मन नहीं था. मगर फिर भी वो बेटे के पास इंदौर चली गई थी. माधुरी का घर से बाहर निकलने का मन करता था पर इंदौर में उस की पहचान का दायरा न के बराबर था. पति का विछोह और नए परिवेश के कारण माधुरी एकाएक से बुजुर्ग लगने लगी थी. जब सुबह पंखुड़ी बनसंवर के निकलती तो माधुरी उसे बड़ी हसरत से देखती. उसे भी बनावश्रृंगार का बहुत शौक था. माधुरी के पास सूट और साड़ियों का बहुत अच्छा कलैक्शन था. धीरेधीरे पंखुड़ी माधुरी के कपड़ों का एकएक कर के इस्तेमाल करने लगी थी. अरे मम्मी, आप के पास इतने सुंदर सूट औऱ साड़ियां हैं, अब क्यों ये आलमारी के अंदर गलें. मैं पूरी कीमत वसूल लूंगी.

माधुरी का मन कहता था कि उस के जीवन से, बस, उपेंद्र गया हैं पर वह खुद अभी ज़िंदा है. उस का भी मन है बनावश्रृंगार करने का. लेकिन माधुरी का बुरा समय यह था कि वह विधवा थी और वह भी 56 वर्ष की. मतलब, समाज के हिसाब से वह पूरी तरह संन्यासी है. हमारे देश में तो 50-55 वर्ष की औरतों को, बस, पूजापाठ के या बच्चों के बच्चों की चाकरी के योग्य समझा जाता है. अगर वे अपने लिए ज़ीना चाहें तो वह उन का स्वार्थ समझा जाता है.

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January 10, 2022 at 12:49PM

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