Friday 7 January 2022

अब हम खुश हैं: भाग 2- क्या दलित परिवार की रश्मि की शादी राकेश से हो पाई

“सो तो है,” राकेश की मम्मी बोलीं, “मगर, हमारी ऐसी किस्मत कहां…? अभी जो लड़की देखी है, उसे नौकरी वाला लड़का ही जो चाहिए. कई जगह तो हम देख चुके हैं. हम पंडितों के भाग्य में दुख ही तो लिखा है.”

“सुखदुख अपने बनाने से बनता है मां,” उषा तपाक से बोल उठी थी, “अब हमें अपनी सोच से ऊपर उठना होगा. तभी सुख मिलेगा.”

“ये सब कहने की बातें हैं,” राकेश के पापा बोल उठे, “इसे बदलना आसान नहीं. मैं आजकल की इन फिल्मी बातों को पसंद नहीं करता. हमारे बुजुर्गों ने बहुत सोचसमझ कर यह नियम बनाए हैं. और हम उस से अलग जा नहीं सकते.”

नाश्ते की प्लेटें वही सर्व कर रही थी. राकेश का एक दोस्त अनुज उस का मुंहलगा जैसा था और कुछ अधिक ही वाचाल था. वह उस के पीछे किचन तक चला आया और खुद ही गिलास निकाल पानी ले कर पीने लगा था.

राकेश की मम्मी मुंह पर तो कुछ बोली नहीं. मगर, उस के जाते ही वे बड़बड़ाने लगीं, “ये नान्ह जात सब जगह गुड़गोबर एक किए रहते हैं. मुंह पर तो लगाम है नहीं. कुछ भी बोलते चला जाता है.”

यह सुन कर वह एकदम स्तब्ध रह गई थी. अब तक वह धड़ल्ले से किचन से अंदरबाहर होते रहती थी. कहीं उसे भी ऐसा ही कुछ कह दिया गया, तो उस की क्या इज्जत रह जाएगी. उसे अब उन के किचन के अंदर जाने में भी संकोच होने लगा था. मगर उस ने ऐसा कुछ जाहिर होने नहीं दिया.
इस फंक्शन में उसे कुछ देर भी हो गई थी. लेकिन राकेश की मां ने उसे खाना खा कर ही जाने दिया.

और इस के बाद तो यह कुछ क्रम सा ही बन गया था. राकेश की मां को कुछ भी परेशानी होती तो उसे बुला लेती थी. धीरेधीरे वह इस घर में घुलमिल सी गई थी. राकेश के मम्मीपापा उसे पसंद करने लगे थे. यहां तक कि एक बार जब राकेश की शादी के लिए कुछ लोग बात करने आए, तो वह भी उस में शामिल थी.

सारी बातें हो चुकी थीं. मगर ज्यों ही उन्होंने सुना कि लड़का प्रतियोगिता की परीक्षाओं से निराश हो कर अब बिजनैस का रुख कर चुका है और पिता के साथ दुकान पर बैठता है, तो वे असहज हो गए. लड़की के चाचा ने बोल भी दिया, “सौरी सर, हम किसी नौकरीशुदा लड़के की तलाश में हैं. क्योंकि लड़की की भी यही इच्छा है.”

“क्यों बिजनेसमैन में क्या कमी है,” वह राकेश के पापा से पूछ बैठी, “आज के हालात में सभी को पैसा चाहिए. और पैसा तो बिजनैस से ही आता है. नौकरी में तो एक बंधीबंधाई सैलरी मिलती है, जो महीना शुरू होते ही भले पूर्णिमा के चांद की तरह दिखे, महीना खत्म होते ही अमावस्या के चंद्रमा के समान खत्म हो जाती है.”

“नौकरी में ऊपरी आमदनी भी तो दिखती है.”

“कितना खतरा है इस में. कभी पकड़े गए तो जिंदगी नरक बन जाती है. फिर सभी के साथ तो ऐसा नहीं रहता. कैसे लोग हैं यह?”

“अरे रश्मि, लड़कियों को लगता है कि बिजनैस चौबीस घंटे का चक्कर है, जबकि नौकरी में आठ घंटे आराम से औफिस में रहो, बाकी मजे लो,” उषा दीदी बोली, “अब इन्हें कौन समझाए.”

“अब वो बात कहां रही नौकरी में. जब कभी हमारे यहां इंस्पेक्शन होता है, किसी वीआईपी के आने या औडिट के आने से हम समय कहां देखते हैं. हमें भी अपना काम पूरा करना होता है और अतिरिक्त समय देना ही पड़ता है.”

“छुट्टियां भी रहती हैं ना.”

“तो क्या बिजनैस में छुट्टियां नहीं होतीं. बारिशभर छुट्टियां ही समझिए. फिर तीजत्योहारों में व्यस्तता रहती है, तो उसी अनुसार उस के बाद आराम भी तो रहता है. यह भी तो समझना चाहिए,” वह आश्चर्य प्रकट करती हुई बोली, “लोग बिजनैस को इतने गलत नजरिए से क्यों देखते हैं. इस व्यापार के बल पर ही तो आज यह दुनिया खड़ी है. कभी धर्म, सत्ता का संचालक हुआ करता था. फिर उस की जगह ताकत ने ले ली. और आज यह व्यापार ही है, जो विश्व का संचालक बना हुआ है. सभी की उन्नतिप्रगति की यह धुरी व्यापार ही तो है. और उस के प्रति इतनी घृणा.”

“अब क्या कहें, लड़की ही इस बात पर अड़ी है कि बिजनैसमैन से शादी नहीं करनी. यही नहीं, वह यहां तक कह रही थी कि बिजनैसमैन परिवार में ही नहीं जाना. वहां न कोई छुट्टी है, न कोई तीजत्योहार की खुशी होती है.”

राकेश की दीदी उषा बोली, “उन्हें अपनी बेटी की शादी किसी पुरोहिताई करने वाले पंडित से करनी चाहिए. फुरसत ही फुरसत होती है उस के पास. या फिर किसी मंदिर के किसी पुजारी से शादी करते. जब वह ठाकुरजी को लिए घरघर घूमता, तब पता चलता कि गरीबी क्या और भिखमंगापन कैसा होता है.”

“पहले ही प्रतियोगिता परीक्षाओं के नाम पर लाखों डुबा चुका है,” राकेश के भैया भुनभुनाए, “अब इस से बिजनैस भी नहीं होगा.”

“मैं बिजनैस कर के दिखा दूंगा कि मैं फैल्योर नहीं हूं,” राकेश चिल्लाया, “आप ही नहीं, वे सारी लड़कियां भी देख लेंगी कि मैं गलत नहीं हूं.”

“अच्छी बात है,” भैया मुसकराते हुए बोले, “कोशिश करना अच्छी बात है.”

राकेश की मां ने उसे जोरों से डांटा था. फिर वे रश्मि से मुखातिब हो कर बोलीं, “अब तुम ही समझाना इसे.”

“आप के घरेलू मामलों में मैं क्या कर सकती हूं?” वह बोली, “फिर भी मुझे विश्वास है कि वह बिजनैस में सफल होगा. बस, आप लोगों के सहयोग की उसे जरूरत है. मैं उसे बैंक से लोन दिलाने में सहयोग करूंगी.”

जैसेजैसे समय बीतता, राकेश थोड़ा उग्र होता जा रहा है, यह वह महसूस कर रही थी. खासकर उस के मनमस्तिष्क में यह बात घर कर गई थी कि लड़कियों ने उसे नापसंद कर दिया.

“जरा यह भी तो सोचो कि जब लड़कियों को इसी तरह नापसंद किया जाता होगा, तो उन पर क्या बीतती होगी?” एक दिन उस ने उस से कह दिया, तो वह शांत स्वर में बोला, “सही बात है, किसी की भावनाओं पर चोट पहुंचाना ठीक नहीं. मगर इस से किसी का अपराध अक्षम्य तो नहीं हो जाता. और इस का उत्तर तो यही हो सकता है कि मैं बिजनैस में सफल होऊं.”

“तुम चिंता क्यों करते हो? तुम्हें बैंक से 10 लाख का लोन तो सैंक्शन हो ही चुका है. तुम्हारे पापा ने राजधानी कौम्प्लेक्स वाली दुकान दे ही दी है. वह तो तुम्हारा बिजनैस खड़ा करने के लिए प्रयासरत हैं ही.”

“मगर, मैं तुम से एक बात कहना चाहता हूं. आशा है कि तुम मेरी बात को ठुकराओगी नहीं,” वह एकदम से भावुक हो कहता चला गया, “मुझे लगता है कि अब मैं तुम्हारे बिना रह नहीं पाऊंगा. मुझे तुम से प्यार हो गया है. मैं तुम से शादी करना चाहता हूं. मैं ने मम्मीपापा से बात कर ली है और उन्होंने भी सहमति दे दी है कि तुम सुलझी हुई लड़की हो. मेरी भावनाओं को समझ सकती हो. मेरा विश्वास है कि मेरे इस निवेदन को तुम स्वीकार करोगी.”

यह सुन कर वह एकदम से सन्न रह गई. राकेश बहुत भला लड़का है, इसे तो वह मानती है. मगर उस के घर वाले, खासकर उस के मम्मीपापा के मन में अभी भी अपनी ऊंची जाति का दंभ तो है ही. और जब वह जानेंगे कि वह दलित परिवार की लड़की है, तो क्या उसे स्वीकार कर पाएंगे? उसे तो नहीं लगता कि यह उस के लिए ठीक होगा. आमतौर पर शुरुआत तो ठीक ही होती है. मगर समय के साथ जटिलताएं बढ़ने लगती हैं. पासपड़ोस, नातेरिश्तेदारों के तानोंफिकरों से व्यक्ति का मन फिर जाता है.

आगे पढ़ें- भारी मन लिए राकेश…

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“सो तो है,” राकेश की मम्मी बोलीं, “मगर, हमारी ऐसी किस्मत कहां…? अभी जो लड़की देखी है, उसे नौकरी वाला लड़का ही जो चाहिए. कई जगह तो हम देख चुके हैं. हम पंडितों के भाग्य में दुख ही तो लिखा है.”

“सुखदुख अपने बनाने से बनता है मां,” उषा तपाक से बोल उठी थी, “अब हमें अपनी सोच से ऊपर उठना होगा. तभी सुख मिलेगा.”

“ये सब कहने की बातें हैं,” राकेश के पापा बोल उठे, “इसे बदलना आसान नहीं. मैं आजकल की इन फिल्मी बातों को पसंद नहीं करता. हमारे बुजुर्गों ने बहुत सोचसमझ कर यह नियम बनाए हैं. और हम उस से अलग जा नहीं सकते.”

नाश्ते की प्लेटें वही सर्व कर रही थी. राकेश का एक दोस्त अनुज उस का मुंहलगा जैसा था और कुछ अधिक ही वाचाल था. वह उस के पीछे किचन तक चला आया और खुद ही गिलास निकाल पानी ले कर पीने लगा था.

राकेश की मम्मी मुंह पर तो कुछ बोली नहीं. मगर, उस के जाते ही वे बड़बड़ाने लगीं, “ये नान्ह जात सब जगह गुड़गोबर एक किए रहते हैं. मुंह पर तो लगाम है नहीं. कुछ भी बोलते चला जाता है.”

यह सुन कर वह एकदम स्तब्ध रह गई थी. अब तक वह धड़ल्ले से किचन से अंदरबाहर होते रहती थी. कहीं उसे भी ऐसा ही कुछ कह दिया गया, तो उस की क्या इज्जत रह जाएगी. उसे अब उन के किचन के अंदर जाने में भी संकोच होने लगा था. मगर उस ने ऐसा कुछ जाहिर होने नहीं दिया.
इस फंक्शन में उसे कुछ देर भी हो गई थी. लेकिन राकेश की मां ने उसे खाना खा कर ही जाने दिया.

और इस के बाद तो यह कुछ क्रम सा ही बन गया था. राकेश की मां को कुछ भी परेशानी होती तो उसे बुला लेती थी. धीरेधीरे वह इस घर में घुलमिल सी गई थी. राकेश के मम्मीपापा उसे पसंद करने लगे थे. यहां तक कि एक बार जब राकेश की शादी के लिए कुछ लोग बात करने आए, तो वह भी उस में शामिल थी.

सारी बातें हो चुकी थीं. मगर ज्यों ही उन्होंने सुना कि लड़का प्रतियोगिता की परीक्षाओं से निराश हो कर अब बिजनैस का रुख कर चुका है और पिता के साथ दुकान पर बैठता है, तो वे असहज हो गए. लड़की के चाचा ने बोल भी दिया, “सौरी सर, हम किसी नौकरीशुदा लड़के की तलाश में हैं. क्योंकि लड़की की भी यही इच्छा है.”

“क्यों बिजनेसमैन में क्या कमी है,” वह राकेश के पापा से पूछ बैठी, “आज के हालात में सभी को पैसा चाहिए. और पैसा तो बिजनैस से ही आता है. नौकरी में तो एक बंधीबंधाई सैलरी मिलती है, जो महीना शुरू होते ही भले पूर्णिमा के चांद की तरह दिखे, महीना खत्म होते ही अमावस्या के चंद्रमा के समान खत्म हो जाती है.”

“नौकरी में ऊपरी आमदनी भी तो दिखती है.”

“कितना खतरा है इस में. कभी पकड़े गए तो जिंदगी नरक बन जाती है. फिर सभी के साथ तो ऐसा नहीं रहता. कैसे लोग हैं यह?”

“अरे रश्मि, लड़कियों को लगता है कि बिजनैस चौबीस घंटे का चक्कर है, जबकि नौकरी में आठ घंटे आराम से औफिस में रहो, बाकी मजे लो,” उषा दीदी बोली, “अब इन्हें कौन समझाए.”

“अब वो बात कहां रही नौकरी में. जब कभी हमारे यहां इंस्पेक्शन होता है, किसी वीआईपी के आने या औडिट के आने से हम समय कहां देखते हैं. हमें भी अपना काम पूरा करना होता है और अतिरिक्त समय देना ही पड़ता है.”

“छुट्टियां भी रहती हैं ना.”

“तो क्या बिजनैस में छुट्टियां नहीं होतीं. बारिशभर छुट्टियां ही समझिए. फिर तीजत्योहारों में व्यस्तता रहती है, तो उसी अनुसार उस के बाद आराम भी तो रहता है. यह भी तो समझना चाहिए,” वह आश्चर्य प्रकट करती हुई बोली, “लोग बिजनैस को इतने गलत नजरिए से क्यों देखते हैं. इस व्यापार के बल पर ही तो आज यह दुनिया खड़ी है. कभी धर्म, सत्ता का संचालक हुआ करता था. फिर उस की जगह ताकत ने ले ली. और आज यह व्यापार ही है, जो विश्व का संचालक बना हुआ है. सभी की उन्नतिप्रगति की यह धुरी व्यापार ही तो है. और उस के प्रति इतनी घृणा.”

“अब क्या कहें, लड़की ही इस बात पर अड़ी है कि बिजनैसमैन से शादी नहीं करनी. यही नहीं, वह यहां तक कह रही थी कि बिजनैसमैन परिवार में ही नहीं जाना. वहां न कोई छुट्टी है, न कोई तीजत्योहार की खुशी होती है.”

राकेश की दीदी उषा बोली, “उन्हें अपनी बेटी की शादी किसी पुरोहिताई करने वाले पंडित से करनी चाहिए. फुरसत ही फुरसत होती है उस के पास. या फिर किसी मंदिर के किसी पुजारी से शादी करते. जब वह ठाकुरजी को लिए घरघर घूमता, तब पता चलता कि गरीबी क्या और भिखमंगापन कैसा होता है.”

“पहले ही प्रतियोगिता परीक्षाओं के नाम पर लाखों डुबा चुका है,” राकेश के भैया भुनभुनाए, “अब इस से बिजनैस भी नहीं होगा.”

“मैं बिजनैस कर के दिखा दूंगा कि मैं फैल्योर नहीं हूं,” राकेश चिल्लाया, “आप ही नहीं, वे सारी लड़कियां भी देख लेंगी कि मैं गलत नहीं हूं.”

“अच्छी बात है,” भैया मुसकराते हुए बोले, “कोशिश करना अच्छी बात है.”

राकेश की मां ने उसे जोरों से डांटा था. फिर वे रश्मि से मुखातिब हो कर बोलीं, “अब तुम ही समझाना इसे.”

“आप के घरेलू मामलों में मैं क्या कर सकती हूं?” वह बोली, “फिर भी मुझे विश्वास है कि वह बिजनैस में सफल होगा. बस, आप लोगों के सहयोग की उसे जरूरत है. मैं उसे बैंक से लोन दिलाने में सहयोग करूंगी.”

जैसेजैसे समय बीतता, राकेश थोड़ा उग्र होता जा रहा है, यह वह महसूस कर रही थी. खासकर उस के मनमस्तिष्क में यह बात घर कर गई थी कि लड़कियों ने उसे नापसंद कर दिया.

“जरा यह भी तो सोचो कि जब लड़कियों को इसी तरह नापसंद किया जाता होगा, तो उन पर क्या बीतती होगी?” एक दिन उस ने उस से कह दिया, तो वह शांत स्वर में बोला, “सही बात है, किसी की भावनाओं पर चोट पहुंचाना ठीक नहीं. मगर इस से किसी का अपराध अक्षम्य तो नहीं हो जाता. और इस का उत्तर तो यही हो सकता है कि मैं बिजनैस में सफल होऊं.”

“तुम चिंता क्यों करते हो? तुम्हें बैंक से 10 लाख का लोन तो सैंक्शन हो ही चुका है. तुम्हारे पापा ने राजधानी कौम्प्लेक्स वाली दुकान दे ही दी है. वह तो तुम्हारा बिजनैस खड़ा करने के लिए प्रयासरत हैं ही.”

“मगर, मैं तुम से एक बात कहना चाहता हूं. आशा है कि तुम मेरी बात को ठुकराओगी नहीं,” वह एकदम से भावुक हो कहता चला गया, “मुझे लगता है कि अब मैं तुम्हारे बिना रह नहीं पाऊंगा. मुझे तुम से प्यार हो गया है. मैं तुम से शादी करना चाहता हूं. मैं ने मम्मीपापा से बात कर ली है और उन्होंने भी सहमति दे दी है कि तुम सुलझी हुई लड़की हो. मेरी भावनाओं को समझ सकती हो. मेरा विश्वास है कि मेरे इस निवेदन को तुम स्वीकार करोगी.”

यह सुन कर वह एकदम से सन्न रह गई. राकेश बहुत भला लड़का है, इसे तो वह मानती है. मगर उस के घर वाले, खासकर उस के मम्मीपापा के मन में अभी भी अपनी ऊंची जाति का दंभ तो है ही. और जब वह जानेंगे कि वह दलित परिवार की लड़की है, तो क्या उसे स्वीकार कर पाएंगे? उसे तो नहीं लगता कि यह उस के लिए ठीक होगा. आमतौर पर शुरुआत तो ठीक ही होती है. मगर समय के साथ जटिलताएं बढ़ने लगती हैं. पासपड़ोस, नातेरिश्तेदारों के तानोंफिकरों से व्यक्ति का मन फिर जाता है.

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January 07, 2022 at 12:43PM

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