Thursday 6 January 2022

अब हम खुश हैं: भाग 3- क्या दलित परिवार की रश्मि की शादी राकेश से हो पाई

रश्मि ने स्पष्ट किया, “तुम्हारी सुलझी बातों का मैं कायल हूं. मगर मुझे लगता है कि तुम्हारे मम्मीपापा इसे पसंद नहीं कर पाएं.”

“तो तुम्हीं बताओ कि मुझे क्या करना होगा?”

“मैं चाहती हूं कि तुम अपने पैरों पर खड़े हो जाओ. अपना खुद का व्यापार शुरू कर ही चुके हो. तुम्हारे पापा की दुकान पर तुम्हारे भैया का वर्चस्व है, इसलिए यह जरूरी था. क्योंकि दांपत्य जीवन के लिए आर्थिक स्वतंत्रता आवश्यक है.

“मेरी अपनी नौकरी है ही. फिर भी मैं उस घर में नहीं रहना चाहूंगी, जहां मुझे अपने अतीत का अहसास दिलाया जाए. मैं किसी की सहानुभूति या किसी की दया नहीं चाहती. यदि हम अलग रह सकें तो यह विवाह संभव है. आगे का आगे देखा जाएगा. हो सकता है, समय बीतने के साथ तुम्हारे मम्मीपापा को इस जातीय विभेद की व्यर्थता का बोध हो जाए.”

भारी मन लिए राकेश घर लौट आया था. उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह अपनी इस समस्या का समाधान किस प्रकार करे. संयोगवश उसी दिन उषा दीदी एक काम के सिलसिले में वहां आई थी. मम्मी उस से कहने लगी, “अब तो राकेश का अपना बिजनैस भी शुरू हो गया. अब इस की शादी हो जाए, तो हम निश्चिंत हों.”

“तो तुम्हारी नजर में कोई अच्छी सी लड़की है क्या?”

“है ना वो लड़की, जो राकेश की दोस्त है. क्या नाम है उस का. अरे हां, रश्मि, वह मुझे बहुत अच्छी लगी है. तुम उस से एक बार बात कर के देखो.”

अगले दिन इतवार था.

“अरे राकेश, तुम्हारी दोस्त रश्मि की तो कल छुट्टी है न,” उषा ने राकेश से कहा, “उस से मुझे मिलवाओगे नहीं. वह कई बार मुझ से मिलने के लिए कह चुकी है.”

“लो, तुम फोन पर ही बात कर लो,” राकेश बोला, “तुम्हीं उस से अपौइंटमेंट ले लो मिलने का. मैं क्या कह सकता हूं.”

फोन पर रश्मि उस की आवाज सुन कर बोली, “कैसी हैं दीदी? कैसे याद आई हमारी?”

“बस याद आ गई. कल तुम्हारी छुट्टी है तो सोचा कि तुम से मिल लूं,” वह बोली, “अब कई बार तुम मेरे घर आ चुकी हो तो सोचा कि इस बार तुम्हारे घर मिल ही लिया जाए.”

“मगर, मैं तो वर्किंग वूमन होस्टल में रहती हूं. यहां क्या मिलना. अगर आप कहें तो किसी रेस्टोरेंट में टेबल बुक कर दूं. आप लोगों का डिनर मेरी तरफ से.”

“ठीक है, यही सही. बता देना. मैं तैयार रहूंगी.”

थोड़ी देर बाद ही रश्मि का फोन आया, “गौतम शौपिंग मौल के रौयल रेस्टोरेंट में मैं ने टेबल बुक कर दी है. मैं वहां इंतजार करूंगी.”

ठीक शाम 7 बजे उषा जब रौयल रेस्टोरेंट पहुंची, तो उसे अकेले देख हैरान रह गई, “यह क्या दीदी, मम्मीपापा नहीं, राकेश भी नहीं. आप अकेले आई हैं.”

“कुछ विशेष बात करने के लिए अकेले ही आना होता है.”

“निःसंकोच कहिए दीदी. आप मेरी बड़ी बहन की तरह ही हैं.”

“तभी तो मैं तुम से कुछ कहने के लिए आई हूं,” उषा एकदम से उस का हाथ अपने हाथ में लेते हुए बोली, “तुम्हें राकेश कैसा लगता है ?”

“बहुत भले हैं और सुलझे विचारों वाले हैं,” वह सहज हो कर बोली, “मुझे अच्छे लगते हैं, तभी तो मैं उसे पसंद करती हूं.”

“तो मैं चाहूंगी कि इस पसंद को रिश्ते में बदल दिया जाए.”

“इस में कुछ दिक्कतें हैं दीदी,” वह एकदम से गंभीर हो कर बोली, “मैं ने बहुत तकलीफें झेली हैं और अपमान सहा है, क्योंकि मैं दलित परिवार से हूं. और आगे मुझे कुछ ऐसा झेलना न पड़े, इस के लिए मैं सतर्क रहती हूं.

“मैं ने महसूस किया है कि राकेश इसे सहजता से लेता है, मगर आप के मम्मीपापा में वह जातिपांति की फीलिंग्स मैं ने महसूस की है. वे जब जानेंगे कि मैं दलित परिवार से हूं, तो वे इसे सहजता से नहीं ले पाएंगे.”

“अरे, ऐसी बात नहीं है. मां ने ही मुझ से कहा है कि मैं इस रिश्ते के लिए तुम से बात करूं.”

“ठीक है. मगर, जैसे ही वे जानेंगी कि मैं क्या हूं, उन का अहं आड़े आ जाएगा. इस को मैं ने कई जगह देखा और महसूस भी किया है. ऐसे में ऐसे रिश्ते को टूटना ही है. मुझे राकेश स्वीकार है. मगर मैं उस के घर को स्वीकार नहीं कर पाऊंगी. अगर आप लोग हमें अलग रहने के लिए अनुमति देंगे, तो मैं इस पर विचार करूंगी.”

“यह अच्छा तो नहीं लगता कि तुम लोगों की शादी हो और तुम अलग रहो. दुनिया क्या कहेगी, इस पर भी विचार करो.”

“मैं ने पूरी तरह विचार कर लिया है दीदी, तभी कह रही हूं. मेरी एक सहेली बता रही थी कि पूर्वोत्तर भारत के आदिवासी समाजों में ऐसा ही होता है कि नवदंपती अलग घर में ही रहते हैं. तो फिर हम अलग क्यों नहीं रह सकते? वैसे भी दिनभर हम बाहर ही रहेंगे. राकेश अपने बिजनैस में और मैं अपनी नौकरी में. तो अलग रहना ही है.

“दूसरी बात यह कि हम कहीं दूर नहीं, इसी शहर में हैं. वक्तजरूरत हम हाजिर हो सकते हैं. ऐसा है दीदी, मैं बिलकुल व्यावहारिक दृष्टि से चीजों को देख रही हूं. जब हम उस घर में नहीं रहेंगे, तो आसपड़ोस, रिश्तेनातेदारों के तानोंफिकरों से भी महफूज रहेंगे.”

“और शादी कैसे होगी?”

“बिलकुल सादा तरीके से. मुझे महंगे आभूषणों व कपड़ों का कोई शौक नहीं, ताकि फुजुलखर्ची से हम बच जाएं. अभी राकेश को अपने बिजनैस के लिए और पैसों की जरूरत होगी. पापा ने उसे दुकान खुलवा दी, यह बड़ी बात है. उस पर अभी बैंक का कर्ज भी है, जिसे उसे चुकता करना है.”

उषा उस की बात को ध्यानपूर्वक सुन रही थी. जैसे वह अपने भीतर कोई निर्णय ले रही हो.

डिनर के बिल को लेती हुई रश्मि बोली, “यदि मैं ज्यादा बोल गई हूं तो मुझे माफ करना दीदी. मगर मैं क्या करूं. कभीकभी हम लड़कियों को भी हार्ड डिसीजन लेना ही चाहिए, ताकि आगे चल कर कोई बड़ी दिक्कत न हो.”

“मैं तुम से सहमत हूं,” उषा उस का हाथ दबाते हुए बोली, “मैं पूरा प्रयास करूंगी कि तुम लोगों का जीवन संवर जाए. राकेश मेरा भाई है. मैं उसे खुश देखना चाहूंगी ही. और वह तुम्हारे साथ रह कर ही खुश रह सकेगा.”

थोड़े नानुकुर के बाद अंततः सभी सहमत हो गए थे. विचार यही हुआ था कि अभी वह एक फ्लैट किराए पर ले लेंगे. फिर आगे का आगे देखा जाएगा.

और इस प्रकार वह दोनों एक हो गए थे, जिस में उषा दीदी का विशेष योगदान रहा था.

अचानक राकेश पलटा और उसे देखते हुए बोला, “अरे, अभी तक सोई नहीं हो. दिनभर भागदौड़ की हो. थकी नहीं क्या, जो जग रही हो? कल औफिस नहीं जाना है क्या…? क्या सोच रही हो…?”

“बस कुछ नहीं, उषा दीदी के बारे में सोच रही थी. उन्होंने हमारे लिए विशेष मेहनत की. मैं उन की बहुत शुक्रगुजार हूं.”

“सो तो है. उन्होंने मेरी खुशी के लिए मेरे मम्मीपापा को राजी किया, अन्यथा कौन चाहता है कि उन के बेटेबहू उन से अलग हों.”

“मुझे यह निर्णय मजबूरी में लेना पड़ा राकेश. कल जब उन्हें इस जातीय दंभ का व्यर्थता बोध हो जाएगा, हम उन के साथ रह सकते हैं. जब उन्हें हमारी जरूरत होगी, तब हम उन के साथ होंगे.”

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रश्मि ने स्पष्ट किया, “तुम्हारी सुलझी बातों का मैं कायल हूं. मगर मुझे लगता है कि तुम्हारे मम्मीपापा इसे पसंद नहीं कर पाएं.”

“तो तुम्हीं बताओ कि मुझे क्या करना होगा?”

“मैं चाहती हूं कि तुम अपने पैरों पर खड़े हो जाओ. अपना खुद का व्यापार शुरू कर ही चुके हो. तुम्हारे पापा की दुकान पर तुम्हारे भैया का वर्चस्व है, इसलिए यह जरूरी था. क्योंकि दांपत्य जीवन के लिए आर्थिक स्वतंत्रता आवश्यक है.

“मेरी अपनी नौकरी है ही. फिर भी मैं उस घर में नहीं रहना चाहूंगी, जहां मुझे अपने अतीत का अहसास दिलाया जाए. मैं किसी की सहानुभूति या किसी की दया नहीं चाहती. यदि हम अलग रह सकें तो यह विवाह संभव है. आगे का आगे देखा जाएगा. हो सकता है, समय बीतने के साथ तुम्हारे मम्मीपापा को इस जातीय विभेद की व्यर्थता का बोध हो जाए.”

भारी मन लिए राकेश घर लौट आया था. उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह अपनी इस समस्या का समाधान किस प्रकार करे. संयोगवश उसी दिन उषा दीदी एक काम के सिलसिले में वहां आई थी. मम्मी उस से कहने लगी, “अब तो राकेश का अपना बिजनैस भी शुरू हो गया. अब इस की शादी हो जाए, तो हम निश्चिंत हों.”

“तो तुम्हारी नजर में कोई अच्छी सी लड़की है क्या?”

“है ना वो लड़की, जो राकेश की दोस्त है. क्या नाम है उस का. अरे हां, रश्मि, वह मुझे बहुत अच्छी लगी है. तुम उस से एक बार बात कर के देखो.”

अगले दिन इतवार था.

“अरे राकेश, तुम्हारी दोस्त रश्मि की तो कल छुट्टी है न,” उषा ने राकेश से कहा, “उस से मुझे मिलवाओगे नहीं. वह कई बार मुझ से मिलने के लिए कह चुकी है.”

“लो, तुम फोन पर ही बात कर लो,” राकेश बोला, “तुम्हीं उस से अपौइंटमेंट ले लो मिलने का. मैं क्या कह सकता हूं.”

फोन पर रश्मि उस की आवाज सुन कर बोली, “कैसी हैं दीदी? कैसे याद आई हमारी?”

“बस याद आ गई. कल तुम्हारी छुट्टी है तो सोचा कि तुम से मिल लूं,” वह बोली, “अब कई बार तुम मेरे घर आ चुकी हो तो सोचा कि इस बार तुम्हारे घर मिल ही लिया जाए.”

“मगर, मैं तो वर्किंग वूमन होस्टल में रहती हूं. यहां क्या मिलना. अगर आप कहें तो किसी रेस्टोरेंट में टेबल बुक कर दूं. आप लोगों का डिनर मेरी तरफ से.”

“ठीक है, यही सही. बता देना. मैं तैयार रहूंगी.”

थोड़ी देर बाद ही रश्मि का फोन आया, “गौतम शौपिंग मौल के रौयल रेस्टोरेंट में मैं ने टेबल बुक कर दी है. मैं वहां इंतजार करूंगी.”

ठीक शाम 7 बजे उषा जब रौयल रेस्टोरेंट पहुंची, तो उसे अकेले देख हैरान रह गई, “यह क्या दीदी, मम्मीपापा नहीं, राकेश भी नहीं. आप अकेले आई हैं.”

“कुछ विशेष बात करने के लिए अकेले ही आना होता है.”

“निःसंकोच कहिए दीदी. आप मेरी बड़ी बहन की तरह ही हैं.”

“तभी तो मैं तुम से कुछ कहने के लिए आई हूं,” उषा एकदम से उस का हाथ अपने हाथ में लेते हुए बोली, “तुम्हें राकेश कैसा लगता है ?”

“बहुत भले हैं और सुलझे विचारों वाले हैं,” वह सहज हो कर बोली, “मुझे अच्छे लगते हैं, तभी तो मैं उसे पसंद करती हूं.”

“तो मैं चाहूंगी कि इस पसंद को रिश्ते में बदल दिया जाए.”

“इस में कुछ दिक्कतें हैं दीदी,” वह एकदम से गंभीर हो कर बोली, “मैं ने बहुत तकलीफें झेली हैं और अपमान सहा है, क्योंकि मैं दलित परिवार से हूं. और आगे मुझे कुछ ऐसा झेलना न पड़े, इस के लिए मैं सतर्क रहती हूं.

“मैं ने महसूस किया है कि राकेश इसे सहजता से लेता है, मगर आप के मम्मीपापा में वह जातिपांति की फीलिंग्स मैं ने महसूस की है. वे जब जानेंगे कि मैं दलित परिवार से हूं, तो वे इसे सहजता से नहीं ले पाएंगे.”

“अरे, ऐसी बात नहीं है. मां ने ही मुझ से कहा है कि मैं इस रिश्ते के लिए तुम से बात करूं.”

“ठीक है. मगर, जैसे ही वे जानेंगी कि मैं क्या हूं, उन का अहं आड़े आ जाएगा. इस को मैं ने कई जगह देखा और महसूस भी किया है. ऐसे में ऐसे रिश्ते को टूटना ही है. मुझे राकेश स्वीकार है. मगर मैं उस के घर को स्वीकार नहीं कर पाऊंगी. अगर आप लोग हमें अलग रहने के लिए अनुमति देंगे, तो मैं इस पर विचार करूंगी.”

“यह अच्छा तो नहीं लगता कि तुम लोगों की शादी हो और तुम अलग रहो. दुनिया क्या कहेगी, इस पर भी विचार करो.”

“मैं ने पूरी तरह विचार कर लिया है दीदी, तभी कह रही हूं. मेरी एक सहेली बता रही थी कि पूर्वोत्तर भारत के आदिवासी समाजों में ऐसा ही होता है कि नवदंपती अलग घर में ही रहते हैं. तो फिर हम अलग क्यों नहीं रह सकते? वैसे भी दिनभर हम बाहर ही रहेंगे. राकेश अपने बिजनैस में और मैं अपनी नौकरी में. तो अलग रहना ही है.

“दूसरी बात यह कि हम कहीं दूर नहीं, इसी शहर में हैं. वक्तजरूरत हम हाजिर हो सकते हैं. ऐसा है दीदी, मैं बिलकुल व्यावहारिक दृष्टि से चीजों को देख रही हूं. जब हम उस घर में नहीं रहेंगे, तो आसपड़ोस, रिश्तेनातेदारों के तानोंफिकरों से भी महफूज रहेंगे.”

“और शादी कैसे होगी?”

“बिलकुल सादा तरीके से. मुझे महंगे आभूषणों व कपड़ों का कोई शौक नहीं, ताकि फुजुलखर्ची से हम बच जाएं. अभी राकेश को अपने बिजनैस के लिए और पैसों की जरूरत होगी. पापा ने उसे दुकान खुलवा दी, यह बड़ी बात है. उस पर अभी बैंक का कर्ज भी है, जिसे उसे चुकता करना है.”

उषा उस की बात को ध्यानपूर्वक सुन रही थी. जैसे वह अपने भीतर कोई निर्णय ले रही हो.

डिनर के बिल को लेती हुई रश्मि बोली, “यदि मैं ज्यादा बोल गई हूं तो मुझे माफ करना दीदी. मगर मैं क्या करूं. कभीकभी हम लड़कियों को भी हार्ड डिसीजन लेना ही चाहिए, ताकि आगे चल कर कोई बड़ी दिक्कत न हो.”

“मैं तुम से सहमत हूं,” उषा उस का हाथ दबाते हुए बोली, “मैं पूरा प्रयास करूंगी कि तुम लोगों का जीवन संवर जाए. राकेश मेरा भाई है. मैं उसे खुश देखना चाहूंगी ही. और वह तुम्हारे साथ रह कर ही खुश रह सकेगा.”

थोड़े नानुकुर के बाद अंततः सभी सहमत हो गए थे. विचार यही हुआ था कि अभी वह एक फ्लैट किराए पर ले लेंगे. फिर आगे का आगे देखा जाएगा.

और इस प्रकार वह दोनों एक हो गए थे, जिस में उषा दीदी का विशेष योगदान रहा था.

अचानक राकेश पलटा और उसे देखते हुए बोला, “अरे, अभी तक सोई नहीं हो. दिनभर भागदौड़ की हो. थकी नहीं क्या, जो जग रही हो? कल औफिस नहीं जाना है क्या…? क्या सोच रही हो…?”

“बस कुछ नहीं, उषा दीदी के बारे में सोच रही थी. उन्होंने हमारे लिए विशेष मेहनत की. मैं उन की बहुत शुक्रगुजार हूं.”

“सो तो है. उन्होंने मेरी खुशी के लिए मेरे मम्मीपापा को राजी किया, अन्यथा कौन चाहता है कि उन के बेटेबहू उन से अलग हों.”

“मुझे यह निर्णय मजबूरी में लेना पड़ा राकेश. कल जब उन्हें इस जातीय दंभ का व्यर्थता बोध हो जाएगा, हम उन के साथ रह सकते हैं. जब उन्हें हमारी जरूरत होगी, तब हम उन के साथ होंगे.”

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January 02, 2022 at 12:34PM

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