Tuesday 11 January 2022

चरित्रहीन कौन- भाग 3: कामवाली के साथ क्या कर रहा था उमेश

‘‘आप को याद होगा, जब मैं पहली बार आप के घर लेट आई थी… जैसे ही मेरा काम खत्म हो गया और मैं अपने घर जाने लगी, तो साहब ने कहा कि 1 कप चाय बना दो, फिर चली जाना. चाय दे कर मैं जाने लगी, तो वे बोले कि रूपा थोड़ी देर बैठो. फिर मेरी बनाई चाय की तारीफ करने लगे. फिर कहने लगे कि तुम्हारी दीदी (यानी आप) इतनी अच्छी चाय नहीं बना पाती है. चाय क्या उस के बनाए खाने में भी स्वाद नहीं होता है. फिर कहने लगे कि मैं आप को कुछ न बताऊं. वे अब रोज मेरी तारीफ करने लगे,’’  बोलतेबोलते रूपा चुप हो गई.

रूपा फिर कहने लगी, ‘‘साहब ने एक रोज मुझ से कहा कि तुम्हारा पति यहां नहीं है, तो तुम्हारा कभी मन नहीं करता है?’’

उन की नजरों और उन की कही बातों को मैं समझ गई.

फिर कहने लगे, ‘‘देखा रूपा, यह कोई शर्म की बात नहीं है. यह तो शरीर की जरूरत है और सभी को चाहिए ही… तुम्हारी दीदी तो मेरे साथ बैठना भी पसंद नहीं करती है.’’

‘‘साहब रोज मुझे पैसे पकड़ा देते थे… कहते थे कि अपनी दीदी को कुछ न बताना… कभी भी किसी चीज या पैसे की जरूरत हो तो मुझ से मांग लेना. बिलकुल संकोच मत करना… तुम जरा लेट ही काम करने आया करो… इसी बहाने तुम्हारे हाथों की बनी चाय पीने को मिल जाया करेगी…साहब की सारी बातें मुझे सच्ची लगने लगी थीं और रूपा की आंखों से आंसू बह निकले.

आयुषी ने कहा, ‘‘आगे क्या हुआ वह बताओ.’’

‘‘मैं साहब की चिकनीचुपड़ी बातों में आ गई और फिर… मुझे माफ कर दो दीदी, मुझे नहीं पता था कि इस का अंजाम ये सब होगा,’’ कह कर रूपा फफकफफक कर रो पड़ी.

‘बेचारी, अभी इस की उम्र ही क्या है?’ आयुषी सोचने लगी.

‘‘मैडमजी, कल साहब भी आए थे. माफी मांग रहे थे. कहने लगे कि वह एक डाक्टर को जानते हैं और फिर मुझे वहां ले गए. मगर डाक्टर ने गर्भपात करने से यह कह कर मना कर दिया कि मेरी जान को खतरा है. साहब उसे पैसों का लालच भी देने लगे कि डाक्टर आप आराम से सोचना, हम परसों फिर आएंगे.’’‘‘रूपा, तुम कल जाओ, मैं भी पीछे से आती हूं… साहब को मत बताना कि तुम ने मुझे कुछ बताया है,’’ रूपा को समझा कर आयुषी अपने घर वापस आ गई.

‘‘उमेश, सुबह औफिस की कह कर घर से जल्दी निकल गया. आयुषी तो इसी ताक में थी. उस ने उमेश का पीछा किया. देखा तो उमेश ने अपनी गाड़ी एक क्लीनिक के पास रोक दी. रूपा वहां पहले से खड़ी थी. जैसे ही दोनों क्लीनिक के अंदर गए, आयुषी भी उन के पीछे चल पड़ी.

‘‘मैं ने आप को पहले भी कहा था कि यह गर्भपात अब नहीं हो सकता है… इन की जान को खतरा है,’’ डाक्टर उमेश से कह रहा था.

आयुषी दंग थी कि उमेश पहले भी रूपा को यहां ले कर आ चुका है गर्भपात करवाने और मुझे बेवकूफ बना रहा था कि उस ने कुछ नहीं किया है.

‘‘डाक्टर, आप जितना पैसा कहेंगे दूंगा, पर आप को यह गर्भपात किसी भी तरह करना ही पड़ेगा,’’ उमेश गिडगिड़ाते हुए डाक्टर से कहे जा रहा था.

पैसा है ही ऐसी चीज कि पाप भी पुण्य लगने लगता है. अत: डाक्टर रूपा का गर्भपात करने के लिए तैयार हो गया. आयुषी अब अपनेआप को नहीं रोक पाई. नर्स रोकती रही, वह दनदनाते हुए क्लीनिक के अंदर चली गई.

आयुषी को देखते ही उमेश के पसीने छूटने लगे और डाक्टर कहने लगा, ‘‘कौन हैं आप? ऐसे बिना परमिशन के अंदर कैसे आ गईं?’’

‘‘जैसे आप बिना परमिशन के एक औरत का गर्भपात करने जा रहे हैं डाक्टर. क्या आप को पता है कि इस का अंजाम क्या होगा?’’ आयुषी ने गुस्से में कहा.

डाक्टर, तुरंत गिड़गिड़ाने लगा, ‘‘मुझे माफ कर दो मैडम… मैं तो कब से इस आदमी को यही समझाने की कोशिश कर रहा हूं, पर…’’

उमेश भी कहने लगा, ‘‘आयुषी, इस में मेरी कोई गलती नहीं है. यह चरित्रहीन औरत है. मैं तुम्हें बताने ही वाला था कि इस ने मुझे कैसे…?’’

उमेश की बात पूरी होने से पहले ही आयुषी ने एक जोरदार तमाचा उमेश के गाल पर जड़ दिया, ‘‘चुप एकदम चुप… अब और नहीं… छल, फरेब, धोखेबाजी सब कुछ तो तुम में भरा पड़ा है… चरित्रहीन रूपा नहीं तुम हो तुम. तुम ने इस की गरीबी का फायदा उठाया है… अब इस का अंजाम भी तुम्हीं भुगतोगे.’’

‘‘आयुषी, मुझे माफ कर दो. अब कभी ऐसी गलती नहीं करूंगा… अंतिम बार मेरा भरोसा कर लो,’’ उमेश ने गिड़गिड़ाते हुए कहा.

‘‘भरोसा और तुम्हारा? वह तो इस जन्म में नहीं होगा… अपनी गलती को सुधारने का एक ही उपाय है कि इस बच्चे को अपना नाम दे दो वरना उम्र भर सजा भुगतने के लिए तैयार हो जाओ,’’ आयुषी ने दोटूक शब्दों में कहा.

फिर वह थोड़ा रुक कर बोली, ‘‘अब मैं जो कह रही हूं वह करो. तुम इस बच्चे को अपना लो. यही एक रास्ता है तुम्हारे पास.’’

दोनों ने सहमति से तलाक लिया और उमेश रूपा को ले कर एक कमरे के मकान में रहने लगा. आयुषी को पता चला कि रूपा अब ठाट से रहती है और उमेश का सारा पैसा ऐंठ लेती है.

एक रोज सुबह दरवाजे पर खटखट हुई. देखा बढ़ी दाढ़ी, बिखरे बालों वाला एक आदमी खड़ा था.

‘‘आयुषी मैं उमेश, तुम्हारा गुनाहगार…’’

इस से पहले कि वह कुछ और कहता, आयुषी गरज उठी, ‘‘तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरे दरवाजे पर आने की… चले जाओ यहां से. न मैं और न ही मेरे बच्चे तुम्हारी सूरत देखने को तैयार हैं.’’

उमेश गिड़गिड़ाया, ‘‘आयुषी रूपा गली के एक ड्राइवर के साथ भाग गई. वह मेरा पैसा भी ले गई. अब तुम्हीं मेरा आसरा हो. प्लीज मुझे माफ कर दो.’’

आयुषी ने बेरुखी से दरवाजा बंद कर दिया पर घंटे भर तक वह दरवाजे पर ही सिसकती रही. उमेश से कभी वह कितना प्यार करती थी. आज वह धोखेबाज गिड़गिड़ा रहा है. पुराने प्यार का हवाला दे रहा है पर वह कुछ नहीं कर सकी. बच्चों से भी नहीं कह सकती कि उन का पिता आया था. यह जहर तो उसे अकेले ही पीना होगा.

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‘‘आप को याद होगा, जब मैं पहली बार आप के घर लेट आई थी… जैसे ही मेरा काम खत्म हो गया और मैं अपने घर जाने लगी, तो साहब ने कहा कि 1 कप चाय बना दो, फिर चली जाना. चाय दे कर मैं जाने लगी, तो वे बोले कि रूपा थोड़ी देर बैठो. फिर मेरी बनाई चाय की तारीफ करने लगे. फिर कहने लगे कि तुम्हारी दीदी (यानी आप) इतनी अच्छी चाय नहीं बना पाती है. चाय क्या उस के बनाए खाने में भी स्वाद नहीं होता है. फिर कहने लगे कि मैं आप को कुछ न बताऊं. वे अब रोज मेरी तारीफ करने लगे,’’  बोलतेबोलते रूपा चुप हो गई.

रूपा फिर कहने लगी, ‘‘साहब ने एक रोज मुझ से कहा कि तुम्हारा पति यहां नहीं है, तो तुम्हारा कभी मन नहीं करता है?’’

उन की नजरों और उन की कही बातों को मैं समझ गई.

फिर कहने लगे, ‘‘देखा रूपा, यह कोई शर्म की बात नहीं है. यह तो शरीर की जरूरत है और सभी को चाहिए ही… तुम्हारी दीदी तो मेरे साथ बैठना भी पसंद नहीं करती है.’’

‘‘साहब रोज मुझे पैसे पकड़ा देते थे… कहते थे कि अपनी दीदी को कुछ न बताना… कभी भी किसी चीज या पैसे की जरूरत हो तो मुझ से मांग लेना. बिलकुल संकोच मत करना… तुम जरा लेट ही काम करने आया करो… इसी बहाने तुम्हारे हाथों की बनी चाय पीने को मिल जाया करेगी…साहब की सारी बातें मुझे सच्ची लगने लगी थीं और रूपा की आंखों से आंसू बह निकले.

आयुषी ने कहा, ‘‘आगे क्या हुआ वह बताओ.’’

‘‘मैं साहब की चिकनीचुपड़ी बातों में आ गई और फिर… मुझे माफ कर दो दीदी, मुझे नहीं पता था कि इस का अंजाम ये सब होगा,’’ कह कर रूपा फफकफफक कर रो पड़ी.

‘बेचारी, अभी इस की उम्र ही क्या है?’ आयुषी सोचने लगी.

‘‘मैडमजी, कल साहब भी आए थे. माफी मांग रहे थे. कहने लगे कि वह एक डाक्टर को जानते हैं और फिर मुझे वहां ले गए. मगर डाक्टर ने गर्भपात करने से यह कह कर मना कर दिया कि मेरी जान को खतरा है. साहब उसे पैसों का लालच भी देने लगे कि डाक्टर आप आराम से सोचना, हम परसों फिर आएंगे.’’‘‘रूपा, तुम कल जाओ, मैं भी पीछे से आती हूं… साहब को मत बताना कि तुम ने मुझे कुछ बताया है,’’ रूपा को समझा कर आयुषी अपने घर वापस आ गई.

‘‘उमेश, सुबह औफिस की कह कर घर से जल्दी निकल गया. आयुषी तो इसी ताक में थी. उस ने उमेश का पीछा किया. देखा तो उमेश ने अपनी गाड़ी एक क्लीनिक के पास रोक दी. रूपा वहां पहले से खड़ी थी. जैसे ही दोनों क्लीनिक के अंदर गए, आयुषी भी उन के पीछे चल पड़ी.

‘‘मैं ने आप को पहले भी कहा था कि यह गर्भपात अब नहीं हो सकता है… इन की जान को खतरा है,’’ डाक्टर उमेश से कह रहा था.

आयुषी दंग थी कि उमेश पहले भी रूपा को यहां ले कर आ चुका है गर्भपात करवाने और मुझे बेवकूफ बना रहा था कि उस ने कुछ नहीं किया है.

‘‘डाक्टर, आप जितना पैसा कहेंगे दूंगा, पर आप को यह गर्भपात किसी भी तरह करना ही पड़ेगा,’’ उमेश गिडगिड़ाते हुए डाक्टर से कहे जा रहा था.

पैसा है ही ऐसी चीज कि पाप भी पुण्य लगने लगता है. अत: डाक्टर रूपा का गर्भपात करने के लिए तैयार हो गया. आयुषी अब अपनेआप को नहीं रोक पाई. नर्स रोकती रही, वह दनदनाते हुए क्लीनिक के अंदर चली गई.

आयुषी को देखते ही उमेश के पसीने छूटने लगे और डाक्टर कहने लगा, ‘‘कौन हैं आप? ऐसे बिना परमिशन के अंदर कैसे आ गईं?’’

‘‘जैसे आप बिना परमिशन के एक औरत का गर्भपात करने जा रहे हैं डाक्टर. क्या आप को पता है कि इस का अंजाम क्या होगा?’’ आयुषी ने गुस्से में कहा.

डाक्टर, तुरंत गिड़गिड़ाने लगा, ‘‘मुझे माफ कर दो मैडम… मैं तो कब से इस आदमी को यही समझाने की कोशिश कर रहा हूं, पर…’’

उमेश भी कहने लगा, ‘‘आयुषी, इस में मेरी कोई गलती नहीं है. यह चरित्रहीन औरत है. मैं तुम्हें बताने ही वाला था कि इस ने मुझे कैसे…?’’

उमेश की बात पूरी होने से पहले ही आयुषी ने एक जोरदार तमाचा उमेश के गाल पर जड़ दिया, ‘‘चुप एकदम चुप… अब और नहीं… छल, फरेब, धोखेबाजी सब कुछ तो तुम में भरा पड़ा है… चरित्रहीन रूपा नहीं तुम हो तुम. तुम ने इस की गरीबी का फायदा उठाया है… अब इस का अंजाम भी तुम्हीं भुगतोगे.’’

‘‘आयुषी, मुझे माफ कर दो. अब कभी ऐसी गलती नहीं करूंगा… अंतिम बार मेरा भरोसा कर लो,’’ उमेश ने गिड़गिड़ाते हुए कहा.

‘‘भरोसा और तुम्हारा? वह तो इस जन्म में नहीं होगा… अपनी गलती को सुधारने का एक ही उपाय है कि इस बच्चे को अपना नाम दे दो वरना उम्र भर सजा भुगतने के लिए तैयार हो जाओ,’’ आयुषी ने दोटूक शब्दों में कहा.

फिर वह थोड़ा रुक कर बोली, ‘‘अब मैं जो कह रही हूं वह करो. तुम इस बच्चे को अपना लो. यही एक रास्ता है तुम्हारे पास.’’

दोनों ने सहमति से तलाक लिया और उमेश रूपा को ले कर एक कमरे के मकान में रहने लगा. आयुषी को पता चला कि रूपा अब ठाट से रहती है और उमेश का सारा पैसा ऐंठ लेती है.

एक रोज सुबह दरवाजे पर खटखट हुई. देखा बढ़ी दाढ़ी, बिखरे बालों वाला एक आदमी खड़ा था.

‘‘आयुषी मैं उमेश, तुम्हारा गुनाहगार…’’

इस से पहले कि वह कुछ और कहता, आयुषी गरज उठी, ‘‘तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरे दरवाजे पर आने की… चले जाओ यहां से. न मैं और न ही मेरे बच्चे तुम्हारी सूरत देखने को तैयार हैं.’’

उमेश गिड़गिड़ाया, ‘‘आयुषी रूपा गली के एक ड्राइवर के साथ भाग गई. वह मेरा पैसा भी ले गई. अब तुम्हीं मेरा आसरा हो. प्लीज मुझे माफ कर दो.’’

आयुषी ने बेरुखी से दरवाजा बंद कर दिया पर घंटे भर तक वह दरवाजे पर ही सिसकती रही. उमेश से कभी वह कितना प्यार करती थी. आज वह धोखेबाज गिड़गिड़ा रहा है. पुराने प्यार का हवाला दे रहा है पर वह कुछ नहीं कर सकी. बच्चों से भी नहीं कह सकती कि उन का पिता आया था. यह जहर तो उसे अकेले ही पीना होगा.

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January 09, 2022 at 01:10PM

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