Monday 10 January 2022

मुक्तिद्वार: भाग 2- क्या थी कुमुद की कहानी

एक दिन पार्थ और पंखुड़ी का कहीं घूमने का प्रोग्राम बना. माधुरी सोच रही थी कि वह और बच्चे भी जाएंगे. लेकिन पार्थ और पंखुड़ी ने सारी तैयारी कर ली और बोले, ‘मम्मी, आप कहां परेशान होंगी? दोनों बच्चों को हम आप के भरोसे ही छोड़े जा रहे हैं. कहने को हर काम के लिए मेड हैं पर उन पर निगरानी रखना, बच्चों का खानापीना देखना आदि सबकुछ माधुरी की ही ज़िम्मेदारी थी. 3 माह बाद ही माधुरी को लगने लगा था कि बेटे के पास रहने का फ़ैसला ले कर माधुरी ने बहुत बड़ी गलती कर ली है. फिर सोचसमझ कर माधुरी ने रैसिडेंशियल स्कूल में नौकरी करने का फैसला ले लिया था. तब से आज तक माधुरी एक बार ही छुट्टियों में बेटे के घर में गई थी और एक फालतू समान की तरह पड़ी रही थी. तब से ले कर आज तक वह कभी गई नहीं और न ही कभी फ़ोन आया.

कुमुद एक बार प्रेम में असफल हुई और फिर उस ने कभी विवाह न करने का फैसला कर लिया था. जब तक कुमुद अपने घर पर रह कर स्थानीय स्कूल में नौकरी करती रही तब तक भाईभाभी उसे पान के पत्ते की तरह फेंटते रहे. कुमुद के बालबच्चे नहीं हैं. यह ही सोच कर वह 20 वर्षों की नौकरी में भी एक पैसा भी नहीं जोड़ पाई थी. कभी भतीजे की एडमिशन फीस तो कभी भांजी की शादी में ख़र्च करना उस की जिम्मेदारी बन जाती थी. कुमुद को होश तब आया जब पिता की मृत्यु के बाद पूरा घर भाइयों के नाम कर दिया गया था. जब कुमुद ने आवाज़ उठानी चाही तो वह भाइयों के साथसाथ मां और बहनों की भी दुश्मन बन गई थी. वह पिछले 7 वर्षों से इस स्कूल में संस्कृत पढा रही हैं.

जयति 32 वर्ष की सांवलीसलोनी बंगाली बाला थी. मां की मृत्यु के पश्चात जब पिता ने उसी की हमउम्र एक लड़की को उस की मां बना कर खड़ा कर दिया था तो जयति का मन कलकत्ता से ऊब गया था. वह अपना समान बांध कर दिल्ली आ गई थी. दिल्ली के एक बड़े स्कूल में नौकरी भी मिल गई थी. जयति को वहां का स्वच्छंद जीवन रास भी आ गया था लेकिन उसे कुछ बच नहीं रहा था. इसलिए, वह इस रैसिडेंशियल स्कूल में पिछले 4 वर्षों से इंग्लिश अध्यापिका के रूप में नियुक्त थी. यहां पर बचत तो हो रही थी मगर आज़ादी नहीं थी. छुट्टियों में भी उसे लगता जैसे वह नौकरी ही कर रही हो.

विजय की कहानी कुछ अलग थी. उस की पत्नी ने उस के साथ बेवफ़ाई करी थी. उस ने उस के दोस्त के साथ दूसरा विवाह रचा लिया था. विजय एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में इंजीनियर के पद पर कार्यरत था. उस हादसे के बाद सबकुछ छोड़छाड़ कर वह इस स्कूल में आ गया था. यहां पर वह फिजिक्स पढ़ाता था.

इंद्रवेश 32 वर्ष का नौजवान था. अपने परिवार में वह रेशम पर टाट के पैबंद जैसा था. पिता के साथसाथ दोनों भाई भी सरकारी महकमे में अच्छे पद पर कार्य करते थे. इंद्रवेश को नकारा, कामचोर, निक्कमे और भी न जाने किसकिस विश्लेषण से नवाज़ा जाता था. खोते हुए आत्मसम्मान को बचाने के लिए इंद्रवेश इस रैसिडेंशियल स्कूल में मैथ्स पढ़ा रहा था.

कार झटके से एक ढाबे के सामने रुकी. विनोद सब के लिए चाय लेने के लिए चला गया. इंद्रवेश गहरी नींद में सोया हुआ था. तभी माधुरी ने उसे उठा कर खाने की प्लेट पकड़ाई. पूरी, आलू खाते हुए इंद्रवेश के मुंह से निकल गया, “माधुरी मैम, आप ने तो बिलकुल मम्मी जैसा खाना बनाया है. बरसों बाद ऐसा लगा कि आज भूख ख़त्म हुई है.” जयति मुसकराते हुए बोली, “यह राजकुमार घर क्यों नहीं जाता.” फिर मम्मी के हाथ के बने पकवान खाने को इंद्रवेश बोला, “क्योंकि बेरोजगार लड़का और अविवाहित लड़की परिवार के लिए बोझ होते हैं.” जयति यह सुन कर कट कर रह गई. इंद्रवेश बात को संभालते हुए बोला, “यह एक कहावत है, जयति प्लीज, मुझे गलत मत समझना.” विनोद पीछे से बोले, “अरे, तुम सब एंजौय करो, छोड़ो कल की बातें.”

कल की बात पुरानी कार से उतरते ही सब अपना अतीत वहीं छोड़ आए थे. पूरे 2 दिन बेहद मस्ती में बीत गए थे. न स्कूल का शोरगुल, न ही अतीत के साए. वापसी में माधुरी उसांस छोड़ते हुए बोली, “काश, मेरे पास यहां पर अपना छोटा सा कौटेज होता. यहीं पर हर छुट्टियों में आ कर रहती. न स्कूल वालों की धौंस और न ही बेटेबहू को दुनियादारी निभाने की मजबूरी.” विनोद हंसते हुए बोले, “माधुरी जी, विचार तो बहुत अच्छा है पर यहां पर कौटेज की कीमत 50 -60 लाख रुपए के बीच है.”

कुमुद बोली, “यह तो मैं भी चाहती हूं कि मरने से पहले कुछ तो ऐसा हो जो मेरा एकदम निजी हो जिस पर बस मेरा हक हो. जयति और इंद्रवेश, तुम दोनों यह ग़लती मत करना, चाहे एक कमरे का ही सही, पर अपना आशियाना जरूर बनाना.” तभी विजय बोला, “मुश्किल नहीं है कुछ भी अगर ठान लीजिए. अगर हम चाहें तो मिल कर खरीद सकते हैं.” विजय की बात सुन कर सब थोड़ा अचकचा गए.

जयति बोली, “क्या ऐसा हो सकता है?” विजय बोला, “जरूर हो सकता हैं मगर प्रौपर प्लानिंग और एक अच्छे वकील की मदद से.” इंद्रवेश बोला, “मेरे दोस्त के पापा, प्रौपर्टी संबंधित कार्य ही देखते हैं. मैं उन से बात करता हूं.” माधुरी बोली, “अरे, पहले स्कूल तो पहुंच जाएं. सब लोगों का ऊर्जा स्तर एकाएक बढ़ गया था. सब लोगों के जीवन को इस नए आइडिया ने एकाएक सकारात्मक ऊर्जा से सराबोर कर दिया था.

पहले हर छुट्टी सब को निराशा से भर देती थी लेकिन अब आगमी गरमी की छुट्टियों में सब ने एक प्लान बना लिया था. विजय और विनोद धनौटी जा कर वहां पर उपलब्ध मकान और कौटेज का मुआयना करेंगे. इंद्रवेश और जयति देहरादून में रह कर स्थानीय वक़ीलों से इस संबंध में बातचीत करेंगे. वहीं, कुमुद और माधुरी पैसों का लेखाजोखा रखेगी. अगर लोन लेना पड़ा तो कैसे लिया जाएगा और क्या क्या कर सकते हैं, ये सब माधुरी और कुमुद का डिपार्टमैंट था. पूरी छुट्टियां इसी सब में बीत गई थीं.

आगे पढ़ें- बहुत ही सोचविचार के साथ धनौल्टी में…

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एक दिन पार्थ और पंखुड़ी का कहीं घूमने का प्रोग्राम बना. माधुरी सोच रही थी कि वह और बच्चे भी जाएंगे. लेकिन पार्थ और पंखुड़ी ने सारी तैयारी कर ली और बोले, ‘मम्मी, आप कहां परेशान होंगी? दोनों बच्चों को हम आप के भरोसे ही छोड़े जा रहे हैं. कहने को हर काम के लिए मेड हैं पर उन पर निगरानी रखना, बच्चों का खानापीना देखना आदि सबकुछ माधुरी की ही ज़िम्मेदारी थी. 3 माह बाद ही माधुरी को लगने लगा था कि बेटे के पास रहने का फ़ैसला ले कर माधुरी ने बहुत बड़ी गलती कर ली है. फिर सोचसमझ कर माधुरी ने रैसिडेंशियल स्कूल में नौकरी करने का फैसला ले लिया था. तब से आज तक माधुरी एक बार ही छुट्टियों में बेटे के घर में गई थी और एक फालतू समान की तरह पड़ी रही थी. तब से ले कर आज तक वह कभी गई नहीं और न ही कभी फ़ोन आया.

कुमुद एक बार प्रेम में असफल हुई और फिर उस ने कभी विवाह न करने का फैसला कर लिया था. जब तक कुमुद अपने घर पर रह कर स्थानीय स्कूल में नौकरी करती रही तब तक भाईभाभी उसे पान के पत्ते की तरह फेंटते रहे. कुमुद के बालबच्चे नहीं हैं. यह ही सोच कर वह 20 वर्षों की नौकरी में भी एक पैसा भी नहीं जोड़ पाई थी. कभी भतीजे की एडमिशन फीस तो कभी भांजी की शादी में ख़र्च करना उस की जिम्मेदारी बन जाती थी. कुमुद को होश तब आया जब पिता की मृत्यु के बाद पूरा घर भाइयों के नाम कर दिया गया था. जब कुमुद ने आवाज़ उठानी चाही तो वह भाइयों के साथसाथ मां और बहनों की भी दुश्मन बन गई थी. वह पिछले 7 वर्षों से इस स्कूल में संस्कृत पढा रही हैं.

जयति 32 वर्ष की सांवलीसलोनी बंगाली बाला थी. मां की मृत्यु के पश्चात जब पिता ने उसी की हमउम्र एक लड़की को उस की मां बना कर खड़ा कर दिया था तो जयति का मन कलकत्ता से ऊब गया था. वह अपना समान बांध कर दिल्ली आ गई थी. दिल्ली के एक बड़े स्कूल में नौकरी भी मिल गई थी. जयति को वहां का स्वच्छंद जीवन रास भी आ गया था लेकिन उसे कुछ बच नहीं रहा था. इसलिए, वह इस रैसिडेंशियल स्कूल में पिछले 4 वर्षों से इंग्लिश अध्यापिका के रूप में नियुक्त थी. यहां पर बचत तो हो रही थी मगर आज़ादी नहीं थी. छुट्टियों में भी उसे लगता जैसे वह नौकरी ही कर रही हो.

विजय की कहानी कुछ अलग थी. उस की पत्नी ने उस के साथ बेवफ़ाई करी थी. उस ने उस के दोस्त के साथ दूसरा विवाह रचा लिया था. विजय एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में इंजीनियर के पद पर कार्यरत था. उस हादसे के बाद सबकुछ छोड़छाड़ कर वह इस स्कूल में आ गया था. यहां पर वह फिजिक्स पढ़ाता था.

इंद्रवेश 32 वर्ष का नौजवान था. अपने परिवार में वह रेशम पर टाट के पैबंद जैसा था. पिता के साथसाथ दोनों भाई भी सरकारी महकमे में अच्छे पद पर कार्य करते थे. इंद्रवेश को नकारा, कामचोर, निक्कमे और भी न जाने किसकिस विश्लेषण से नवाज़ा जाता था. खोते हुए आत्मसम्मान को बचाने के लिए इंद्रवेश इस रैसिडेंशियल स्कूल में मैथ्स पढ़ा रहा था.

कार झटके से एक ढाबे के सामने रुकी. विनोद सब के लिए चाय लेने के लिए चला गया. इंद्रवेश गहरी नींद में सोया हुआ था. तभी माधुरी ने उसे उठा कर खाने की प्लेट पकड़ाई. पूरी, आलू खाते हुए इंद्रवेश के मुंह से निकल गया, “माधुरी मैम, आप ने तो बिलकुल मम्मी जैसा खाना बनाया है. बरसों बाद ऐसा लगा कि आज भूख ख़त्म हुई है.” जयति मुसकराते हुए बोली, “यह राजकुमार घर क्यों नहीं जाता.” फिर मम्मी के हाथ के बने पकवान खाने को इंद्रवेश बोला, “क्योंकि बेरोजगार लड़का और अविवाहित लड़की परिवार के लिए बोझ होते हैं.” जयति यह सुन कर कट कर रह गई. इंद्रवेश बात को संभालते हुए बोला, “यह एक कहावत है, जयति प्लीज, मुझे गलत मत समझना.” विनोद पीछे से बोले, “अरे, तुम सब एंजौय करो, छोड़ो कल की बातें.”

कल की बात पुरानी कार से उतरते ही सब अपना अतीत वहीं छोड़ आए थे. पूरे 2 दिन बेहद मस्ती में बीत गए थे. न स्कूल का शोरगुल, न ही अतीत के साए. वापसी में माधुरी उसांस छोड़ते हुए बोली, “काश, मेरे पास यहां पर अपना छोटा सा कौटेज होता. यहीं पर हर छुट्टियों में आ कर रहती. न स्कूल वालों की धौंस और न ही बेटेबहू को दुनियादारी निभाने की मजबूरी.” विनोद हंसते हुए बोले, “माधुरी जी, विचार तो बहुत अच्छा है पर यहां पर कौटेज की कीमत 50 -60 लाख रुपए के बीच है.”

कुमुद बोली, “यह तो मैं भी चाहती हूं कि मरने से पहले कुछ तो ऐसा हो जो मेरा एकदम निजी हो जिस पर बस मेरा हक हो. जयति और इंद्रवेश, तुम दोनों यह ग़लती मत करना, चाहे एक कमरे का ही सही, पर अपना आशियाना जरूर बनाना.” तभी विजय बोला, “मुश्किल नहीं है कुछ भी अगर ठान लीजिए. अगर हम चाहें तो मिल कर खरीद सकते हैं.” विजय की बात सुन कर सब थोड़ा अचकचा गए.

जयति बोली, “क्या ऐसा हो सकता है?” विजय बोला, “जरूर हो सकता हैं मगर प्रौपर प्लानिंग और एक अच्छे वकील की मदद से.” इंद्रवेश बोला, “मेरे दोस्त के पापा, प्रौपर्टी संबंधित कार्य ही देखते हैं. मैं उन से बात करता हूं.” माधुरी बोली, “अरे, पहले स्कूल तो पहुंच जाएं. सब लोगों का ऊर्जा स्तर एकाएक बढ़ गया था. सब लोगों के जीवन को इस नए आइडिया ने एकाएक सकारात्मक ऊर्जा से सराबोर कर दिया था.

पहले हर छुट्टी सब को निराशा से भर देती थी लेकिन अब आगमी गरमी की छुट्टियों में सब ने एक प्लान बना लिया था. विजय और विनोद धनौटी जा कर वहां पर उपलब्ध मकान और कौटेज का मुआयना करेंगे. इंद्रवेश और जयति देहरादून में रह कर स्थानीय वक़ीलों से इस संबंध में बातचीत करेंगे. वहीं, कुमुद और माधुरी पैसों का लेखाजोखा रखेगी. अगर लोन लेना पड़ा तो कैसे लिया जाएगा और क्या क्या कर सकते हैं, ये सब माधुरी और कुमुद का डिपार्टमैंट था. पूरी छुट्टियां इसी सब में बीत गई थीं.

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January 10, 2022 at 12:49PM

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