Tuesday 18 January 2022

परिणाम: पाखंड या वैज्ञानिक किसकी हुई जीत?

“हमारे बेटे का नाम क्या सोचा है तुम ने?” रात में परिधि ने पति रोहन की बांहों पर अपना सिर रखते हुए पूछा.

“हमारे प्यार की निशानी का नाम होगा अंश, जो मेरा भी अंश होगा और तुम्हारा भी,” मुसकराते हुए रोहन ने जवाब दिया.

“बेटी हुई तो?”

“बेटी हुई तो उसे सपना कह कर पुकारेंगे. वह हमारा सपना जो पूरा करेगी.”

“सच बहुत सुंदर नाम हैं दोनों. तुम बहुत अच्छे पापा बनोगे,” हंसते हुए परिधि ने कहा तो रोहन ने उस के माथे को चूम लिया.

लौकडाउन का दूसरा महीना शुरू हुआ था जबकि परिधि की प्रैगनैंसी का 8वां महीना पूरा हो चुका था और अब कभी भी उसे डिलीवरी के लिए अस्पताल जाना पड़ सकता था.

परिधि का पति रोहन इंजीनियर था जो परिधि को ले कर काफी सपोर्टिव और खुले दिमाग का इंसान था जबकि उस की सास उर्मिला देवी का स्वभाव कुछ अलग ही था. वे धर्मकर्म पर जरूरत से ज्यादा विश्वास रखती थीं.

प्रैगनैंसी के बाद से ही परिधि को कुछ तकलीफें बनी रहती थीं. ऐसे में उर्मिला देवी ने कई दफा परिधि के आने वाले बच्चे के नाम पर धार्मिक अनुष्ठान भी करवाए. मगर फिलहाल लौकडाउन की वजह से सब बंद था.

उस दिन सुबह से ही परिधि के पेट में दर्द हो रहा था. रात तक उस का दर्द काफी बढ़ गया. उसे अस्पताल ले जाया गया. महिला डाक्टर ने अच्छी तरह परीक्षण कर के बताया,” रोहनजी, परिधि के गर्भाशय में बच्चे की गलत स्थिति की वजह से उन्हें बीचबीच में दर्द हो रहा है. ऐसे में इन्हें ऐडमिट कर के कुछ दिनों तक निगरानी में रखना बेहतर होगा.”

ये भी पढ़ें- शुक्रिया श्वेता दी: आखिर क्या हुआ था अंकिता और श्वेता के बीच

“जी जैसा आप उचित समझें,” कह कर रोहन ने परिधि को ऐडमिट करा दिया.

इधर उर्मिला देवी ने डाक्टर की बात सुनी तो तुरंत पंडित को बुलावा भेजा.

“पंडितजी, बहू को दर्द हो रहा है. उसे स्वस्थ बच्चा हो जाए और सब ठीक रहे इस के लिए कुछ उपाय बताइए?”

अपनी भौंहों पर बल डालते हुए पंडितजी ने कुछ देर सोचा फिर बोले,” ठीक है एक अनुष्ठान कराना होगा. सब अच्छा हो जाएगा. इस अनुष्ठान में करीब ₹10 हजार का खर्च आएगा.”

“जी आप रुपयों की चिंता न करें. बस सब चंगा कर दें. आप बताएं कि किन चीजों का इंतजाम करना है?”

पंडितजी ने एक लंबी सूची तैयार की जिस में लाल और पीला कपड़ा, लाल धागे, चावल, घी, लौंग, कपूर, लाल फूल, रोली, चंदन, साबुत गेहूं, सिंदूर, केसर, नारियल, दूर्वा, कुमकुम, पीपल और तुलसी के पत्ते, पान, सुपारी आदि शामिल थे.

उर्मिला देवी ने मोहल्ले के परिचित परचून की दुकान से वे चीजें खरीद लीं. कुछ चीजें घर में भी मौजूद थीं.

सारे सामानों के साथ उर्मिला देवी पंडित को ले कर अस्पताल पहुंंचीं तो अस्पताल की नर्सें और कर्मचारी हैरान रह गए. उन्हें रिसैप्शन पर ही रोक दिया गया मगर उर्मिला देवी बड़ी चालाकी से पंडित को विजिटर बना कर अंदर ले आईं. उर्मिला देवी ने पहले ही परिधि को प्राइवेट वार्ड में शिफ्ट कर लिया था. कमरा बंद कर के अनुष्ठान की प्रक्रिया आरंभ की गई.

बाहर घूम रहीं नर्सों को इस बाबत पूरी जानकारी थी कि अंदर क्या चल रहा है मगर उन के पास कहने के लिए शब्द नहीं थे. उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि इस पाखंड को कैसे रोकें. दरअसल, अस्पताल में ऐसी घटना कभी भी नहीं हुई थी. सभी सीनियर डाक्टर के आने का इंतजार कर रहे थे. तब तक करीब 1 घंटे की के अंदर सारी प्रक्रियाएं पूरी कर उर्मिला देवी ने पंडित को विदा कर दिया.

नर्सें अंदर घुसीं तो देखा की परिधि के हाथ में लाल धागा बंधा हुआ है. माथे पर दूर तक सिंदूर लगा है. जमीन पर हलदी से बनाई गई एक आकृति के ऊपर चावल, लौंग, कुमकुम जैसी बहुत सी चीजें रखी हुई हैं. पास में नारियल के ऊपर एक पीला कपड़ा भी पड़ा हुआ है. और भी बहुत सी चीजें नजर आ रही थीं.

“स्टूपिड पीपुल्स…” कहते हुए एक नर्स ने बुरा सा मुंह बनाया और बाहर चली गई.

उर्मिला देवी चिढ़ गईं. नर्स को सुनाने की गरज से जोरजोर से चिल्ला कर कहने लगीं,” पूजा हम ने कराई है इस कलमुंही को क्या परेशानी है?”

इस बात को 4-5 दिन बीत गए. इस बीच परिधि को जुकाम और खांसी की समस्या हो गई. हलका बुखार भी हो गया था. अस्पताल वालों ने तुरंत उस का कोविड टेस्ट कराया.

ये भी पढ़ें- उपेक्षा: कैसे टूटा अनुभा का भ्रम?

उसी दिन रात में परिधि को दर्द उठा. आननफानन में सारे इंतजाम किए गए. सुबह की पहली किरण के साथ उस की गोद में एक नन्हा बच्चा खिलखिला उठा. घर वालों को खबर की गई. वे दौड़े आए.

तबतक कोविड-19 रिपोर्ट भी आ गई थी. परिधि कोरोना पोजिटिव थी. परिधि के पति और सास को जब यह खबर दी गई तो सास ने चिल्ला कर कहा,” ऐसा कैसे हो सकता है? हमारी बहू तो बिलकुल स्वस्थ हालत में अस्पताल आई थी. तुम लोगों ने जरूर सावधानी नहीं रखी होगी तभी ऐसा हुआ.”

“यह क्या कह रही हो अम्मांजी? हम ने ऐसा क्या कर दिया? हमारे अस्पताल में मरीजों की सुरक्षा का पूरा खयाल रखा जाता है. यहां पूरी सफाई से सारे काम होते हैं.”

नर्स ने कहा तो सास उसी पर चिल्ला उठीं,” हांहां… गलत तो हम ही कह रहे हैं. वह देखो मरीज बिना मास्क के जा रहा है.”

“अम्मांजी उस की कल ही रिपोर्ट आई है. उसे कोरोना नहीं है और एक बात बता दूं, इस अस्पताल में कई इमारते हैं. इस इमारत में केवल गाइनिक केसेज आते हैं. बगल वाली इमारत कोविड मरीजों के लिए है. वहां के किसी स्टाफ को भी इधर आने की परमिशन नहीं. वैसे भी हम मास्क, ग्लव्स और सैनिटाइजेशन का पूरा खयाल रखते हैं. हमें उलटी बातें न सुनाओ.”

“कैसे न सुनाऊं? मेरी बहू को इसी अस्पताल में कोरोना हुआ है. साफ है कि यहां का मैनेजमैंट सही नहीं. यहां आया हुआ स्वस्थ इंसान भी कोरोना मरीज बन जाता है.”

“आप तो हम पर इल्जाम लगाना भी मत. पता नहीं क्याक्या अंधविश्वास और पाखंड के चोंचले करती फिरती हो. अपनी बहू को देखिए. उस की तबीयत बिगड़ जाएगी. उस का फीवर अब ठीक है. आप अपने साथ ले जाइए. न्यू बोर्न बेबी को इस अस्पताल में छोड़ना उचित नहीं. इस वक्त छोटे बच्चे की कैसे केयर करनी है वह हम समझा देंगे.”

“नहीं इसे हम घर कैसे ले जा सकते हैं? इसे कोविड है. घर में किसी को हो जाएगा. इतनी तो समझ होनी चाहिए न आप को.”

“मां हम परिधि को घर में क्वैरंटाइन कर देंगे. बच्चे को कोविड से कैसे बचाना है वह नर्स बता ही देंगी.”

“नहीं हम बहू और बच्चे को घर नहीं ले जा सकते. खबरदार रोहन जो तू इन के चक्कर में आया. ये नर्स और डाक्टर ऐसे ही बोलते हैं. पर मैं कोई खतरा मोल नहीं ले सकती.”

“पर मां…”

तुझे कसम है चल यहां से..”

उर्मिला देवी रोहन का हाथ पकड़ कर उसे घसीटती हुई घर ले गईं. परिधि का चेहरा बन गया. डाक्टर और नर्स आपस में उर्मिला देवी के व्यवहार और हरकतों की बुराई करने लगे. उन लोगों ने मैनेजमैंट को भी उर्मिला देवी के गलत व्यवहार की खबर कर दी. 1-2 लोकल अखबारों में भी इस घटना का उल्लेख किया गया.

इस बात को करीब 4-5 दिन बीत चुके थे. एक दिन उर्मिला देवी ने पंडितजी को फोन लगाया. वह पूछना चाहती थीं कि आगे क्या करना उचित रहेगा और ग्रहनक्षत्रों के बुरे दोष कैसे दूर किए जाएं?

फोन पंडित के बेटे ने उठाया.

“बेटा जरा पंडितजी को फोन देना..” उर्मिला देवी ने कहा.

बेटे ने कहा,”पिताजी को कोरोना हो गया था. 1 सप्ताह पहले ही उन की मौत हो चुकी है.”

उर्मिला जी के हाथ से फोन छूट कर गिर पड़ा. खुद भी सोफे पर बैठ गईं. पंडितजी को कोरोना था, यह जान कर वह डर गई थीं. यानी जिस दिन पंडितजी धार्मिक अनुष्ठान कराने आए थे तब भी उन्हें कोरोना था. तभी तो परिधि को भी यह बीमारी हुई है.

परिधि के साथ उस दिन पंडितजी के साथ वह भी तो थीं यानी अब वह खुद भी कोरोना की चपेट में आ सकती हैं. उन्होंने गौर किया कि 2-3 दिनों से उन्हें भी खांसी हो रही थी.

उर्मिलाजी ने फटाफट अपना कोरोना टेस्ट करवाया. अब तक उन्हें बुखार भी आ चुका था. हजारीबाग में कोरोना का एक ही अस्पताल था इसलिए उन्हें उसी अस्पताल में जाना पड़ा. मगर वहां के मैनेजमैंट ने उर्मिला देवी को ऐडमिट करने से साफ इनकार कर दिया.

ऐंबुलैंस में पड़ीं उर्मिला देवी का दिमाग काम नहीं कर रहा था. वे जानती थीं कि इस के अलावा यहां कोई अस्पताल नहीं. अब या तो उन्हें 4 घंटे के सफर के बाद रांची ले जाया जाएगा और वहां बैड न मिला तो 12 घंटे का सफर कर के पटना जाने को तैयार रहना होगा. हताश रोहन अस्पताल से वापस निकल आया.

दोनों जानते थे कि उर्मिला देवी को अपनी करनी का फल ही मिल रहा था. उन की गलत सोच, अंधविश्वास और नकारात्मक रवैए का ही परिणाम था कि आज बहू और पोते के साथसाथ उन की अपनी जिंदगी भी दांव पर लग चुकी थी.

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“हमारे बेटे का नाम क्या सोचा है तुम ने?” रात में परिधि ने पति रोहन की बांहों पर अपना सिर रखते हुए पूछा.

“हमारे प्यार की निशानी का नाम होगा अंश, जो मेरा भी अंश होगा और तुम्हारा भी,” मुसकराते हुए रोहन ने जवाब दिया.

“बेटी हुई तो?”

“बेटी हुई तो उसे सपना कह कर पुकारेंगे. वह हमारा सपना जो पूरा करेगी.”

“सच बहुत सुंदर नाम हैं दोनों. तुम बहुत अच्छे पापा बनोगे,” हंसते हुए परिधि ने कहा तो रोहन ने उस के माथे को चूम लिया.

लौकडाउन का दूसरा महीना शुरू हुआ था जबकि परिधि की प्रैगनैंसी का 8वां महीना पूरा हो चुका था और अब कभी भी उसे डिलीवरी के लिए अस्पताल जाना पड़ सकता था.

परिधि का पति रोहन इंजीनियर था जो परिधि को ले कर काफी सपोर्टिव और खुले दिमाग का इंसान था जबकि उस की सास उर्मिला देवी का स्वभाव कुछ अलग ही था. वे धर्मकर्म पर जरूरत से ज्यादा विश्वास रखती थीं.

प्रैगनैंसी के बाद से ही परिधि को कुछ तकलीफें बनी रहती थीं. ऐसे में उर्मिला देवी ने कई दफा परिधि के आने वाले बच्चे के नाम पर धार्मिक अनुष्ठान भी करवाए. मगर फिलहाल लौकडाउन की वजह से सब बंद था.

उस दिन सुबह से ही परिधि के पेट में दर्द हो रहा था. रात तक उस का दर्द काफी बढ़ गया. उसे अस्पताल ले जाया गया. महिला डाक्टर ने अच्छी तरह परीक्षण कर के बताया,” रोहनजी, परिधि के गर्भाशय में बच्चे की गलत स्थिति की वजह से उन्हें बीचबीच में दर्द हो रहा है. ऐसे में इन्हें ऐडमिट कर के कुछ दिनों तक निगरानी में रखना बेहतर होगा.”

ये भी पढ़ें- शुक्रिया श्वेता दी: आखिर क्या हुआ था अंकिता और श्वेता के बीच

“जी जैसा आप उचित समझें,” कह कर रोहन ने परिधि को ऐडमिट करा दिया.

इधर उर्मिला देवी ने डाक्टर की बात सुनी तो तुरंत पंडित को बुलावा भेजा.

“पंडितजी, बहू को दर्द हो रहा है. उसे स्वस्थ बच्चा हो जाए और सब ठीक रहे इस के लिए कुछ उपाय बताइए?”

अपनी भौंहों पर बल डालते हुए पंडितजी ने कुछ देर सोचा फिर बोले,” ठीक है एक अनुष्ठान कराना होगा. सब अच्छा हो जाएगा. इस अनुष्ठान में करीब ₹10 हजार का खर्च आएगा.”

“जी आप रुपयों की चिंता न करें. बस सब चंगा कर दें. आप बताएं कि किन चीजों का इंतजाम करना है?”

पंडितजी ने एक लंबी सूची तैयार की जिस में लाल और पीला कपड़ा, लाल धागे, चावल, घी, लौंग, कपूर, लाल फूल, रोली, चंदन, साबुत गेहूं, सिंदूर, केसर, नारियल, दूर्वा, कुमकुम, पीपल और तुलसी के पत्ते, पान, सुपारी आदि शामिल थे.

उर्मिला देवी ने मोहल्ले के परिचित परचून की दुकान से वे चीजें खरीद लीं. कुछ चीजें घर में भी मौजूद थीं.

सारे सामानों के साथ उर्मिला देवी पंडित को ले कर अस्पताल पहुंंचीं तो अस्पताल की नर्सें और कर्मचारी हैरान रह गए. उन्हें रिसैप्शन पर ही रोक दिया गया मगर उर्मिला देवी बड़ी चालाकी से पंडित को विजिटर बना कर अंदर ले आईं. उर्मिला देवी ने पहले ही परिधि को प्राइवेट वार्ड में शिफ्ट कर लिया था. कमरा बंद कर के अनुष्ठान की प्रक्रिया आरंभ की गई.

बाहर घूम रहीं नर्सों को इस बाबत पूरी जानकारी थी कि अंदर क्या चल रहा है मगर उन के पास कहने के लिए शब्द नहीं थे. उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि इस पाखंड को कैसे रोकें. दरअसल, अस्पताल में ऐसी घटना कभी भी नहीं हुई थी. सभी सीनियर डाक्टर के आने का इंतजार कर रहे थे. तब तक करीब 1 घंटे की के अंदर सारी प्रक्रियाएं पूरी कर उर्मिला देवी ने पंडित को विदा कर दिया.

नर्सें अंदर घुसीं तो देखा की परिधि के हाथ में लाल धागा बंधा हुआ है. माथे पर दूर तक सिंदूर लगा है. जमीन पर हलदी से बनाई गई एक आकृति के ऊपर चावल, लौंग, कुमकुम जैसी बहुत सी चीजें रखी हुई हैं. पास में नारियल के ऊपर एक पीला कपड़ा भी पड़ा हुआ है. और भी बहुत सी चीजें नजर आ रही थीं.

“स्टूपिड पीपुल्स…” कहते हुए एक नर्स ने बुरा सा मुंह बनाया और बाहर चली गई.

उर्मिला देवी चिढ़ गईं. नर्स को सुनाने की गरज से जोरजोर से चिल्ला कर कहने लगीं,” पूजा हम ने कराई है इस कलमुंही को क्या परेशानी है?”

इस बात को 4-5 दिन बीत गए. इस बीच परिधि को जुकाम और खांसी की समस्या हो गई. हलका बुखार भी हो गया था. अस्पताल वालों ने तुरंत उस का कोविड टेस्ट कराया.

ये भी पढ़ें- उपेक्षा: कैसे टूटा अनुभा का भ्रम?

उसी दिन रात में परिधि को दर्द उठा. आननफानन में सारे इंतजाम किए गए. सुबह की पहली किरण के साथ उस की गोद में एक नन्हा बच्चा खिलखिला उठा. घर वालों को खबर की गई. वे दौड़े आए.

तबतक कोविड-19 रिपोर्ट भी आ गई थी. परिधि कोरोना पोजिटिव थी. परिधि के पति और सास को जब यह खबर दी गई तो सास ने चिल्ला कर कहा,” ऐसा कैसे हो सकता है? हमारी बहू तो बिलकुल स्वस्थ हालत में अस्पताल आई थी. तुम लोगों ने जरूर सावधानी नहीं रखी होगी तभी ऐसा हुआ.”

“यह क्या कह रही हो अम्मांजी? हम ने ऐसा क्या कर दिया? हमारे अस्पताल में मरीजों की सुरक्षा का पूरा खयाल रखा जाता है. यहां पूरी सफाई से सारे काम होते हैं.”

नर्स ने कहा तो सास उसी पर चिल्ला उठीं,” हांहां… गलत तो हम ही कह रहे हैं. वह देखो मरीज बिना मास्क के जा रहा है.”

“अम्मांजी उस की कल ही रिपोर्ट आई है. उसे कोरोना नहीं है और एक बात बता दूं, इस अस्पताल में कई इमारते हैं. इस इमारत में केवल गाइनिक केसेज आते हैं. बगल वाली इमारत कोविड मरीजों के लिए है. वहां के किसी स्टाफ को भी इधर आने की परमिशन नहीं. वैसे भी हम मास्क, ग्लव्स और सैनिटाइजेशन का पूरा खयाल रखते हैं. हमें उलटी बातें न सुनाओ.”

“कैसे न सुनाऊं? मेरी बहू को इसी अस्पताल में कोरोना हुआ है. साफ है कि यहां का मैनेजमैंट सही नहीं. यहां आया हुआ स्वस्थ इंसान भी कोरोना मरीज बन जाता है.”

“आप तो हम पर इल्जाम लगाना भी मत. पता नहीं क्याक्या अंधविश्वास और पाखंड के चोंचले करती फिरती हो. अपनी बहू को देखिए. उस की तबीयत बिगड़ जाएगी. उस का फीवर अब ठीक है. आप अपने साथ ले जाइए. न्यू बोर्न बेबी को इस अस्पताल में छोड़ना उचित नहीं. इस वक्त छोटे बच्चे की कैसे केयर करनी है वह हम समझा देंगे.”

“नहीं इसे हम घर कैसे ले जा सकते हैं? इसे कोविड है. घर में किसी को हो जाएगा. इतनी तो समझ होनी चाहिए न आप को.”

“मां हम परिधि को घर में क्वैरंटाइन कर देंगे. बच्चे को कोविड से कैसे बचाना है वह नर्स बता ही देंगी.”

“नहीं हम बहू और बच्चे को घर नहीं ले जा सकते. खबरदार रोहन जो तू इन के चक्कर में आया. ये नर्स और डाक्टर ऐसे ही बोलते हैं. पर मैं कोई खतरा मोल नहीं ले सकती.”

“पर मां…”

तुझे कसम है चल यहां से..”

उर्मिला देवी रोहन का हाथ पकड़ कर उसे घसीटती हुई घर ले गईं. परिधि का चेहरा बन गया. डाक्टर और नर्स आपस में उर्मिला देवी के व्यवहार और हरकतों की बुराई करने लगे. उन लोगों ने मैनेजमैंट को भी उर्मिला देवी के गलत व्यवहार की खबर कर दी. 1-2 लोकल अखबारों में भी इस घटना का उल्लेख किया गया.

इस बात को करीब 4-5 दिन बीत चुके थे. एक दिन उर्मिला देवी ने पंडितजी को फोन लगाया. वह पूछना चाहती थीं कि आगे क्या करना उचित रहेगा और ग्रहनक्षत्रों के बुरे दोष कैसे दूर किए जाएं?

फोन पंडित के बेटे ने उठाया.

“बेटा जरा पंडितजी को फोन देना..” उर्मिला देवी ने कहा.

बेटे ने कहा,”पिताजी को कोरोना हो गया था. 1 सप्ताह पहले ही उन की मौत हो चुकी है.”

उर्मिला जी के हाथ से फोन छूट कर गिर पड़ा. खुद भी सोफे पर बैठ गईं. पंडितजी को कोरोना था, यह जान कर वह डर गई थीं. यानी जिस दिन पंडितजी धार्मिक अनुष्ठान कराने आए थे तब भी उन्हें कोरोना था. तभी तो परिधि को भी यह बीमारी हुई है.

परिधि के साथ उस दिन पंडितजी के साथ वह भी तो थीं यानी अब वह खुद भी कोरोना की चपेट में आ सकती हैं. उन्होंने गौर किया कि 2-3 दिनों से उन्हें भी खांसी हो रही थी.

उर्मिलाजी ने फटाफट अपना कोरोना टेस्ट करवाया. अब तक उन्हें बुखार भी आ चुका था. हजारीबाग में कोरोना का एक ही अस्पताल था इसलिए उन्हें उसी अस्पताल में जाना पड़ा. मगर वहां के मैनेजमैंट ने उर्मिला देवी को ऐडमिट करने से साफ इनकार कर दिया.

ऐंबुलैंस में पड़ीं उर्मिला देवी का दिमाग काम नहीं कर रहा था. वे जानती थीं कि इस के अलावा यहां कोई अस्पताल नहीं. अब या तो उन्हें 4 घंटे के सफर के बाद रांची ले जाया जाएगा और वहां बैड न मिला तो 12 घंटे का सफर कर के पटना जाने को तैयार रहना होगा. हताश रोहन अस्पताल से वापस निकल आया.

दोनों जानते थे कि उर्मिला देवी को अपनी करनी का फल ही मिल रहा था. उन की गलत सोच, अंधविश्वास और नकारात्मक रवैए का ही परिणाम था कि आज बहू और पोते के साथसाथ उन की अपनी जिंदगी भी दांव पर लग चुकी थी.

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January 19, 2022 at 09:58AM

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