Thursday 27 January 2022

दिव्या आर्यन: जब दो अनजानी राहों में मिले धोखा खा चुके हमराही

लेखक- नीरज कुमार मिश्रा

‘पता नहीं बस और गाड़ियों में रात में भी एसी क्यों चलाया जाता है, माना कि गरमी से नज़ात पाने के लिए एसी का चलाया जाना ज़रूरी है पर तब क्यों जब ज्यादा गरमी न हो,’ बस की खिड़की से बाहर देखती हुई दिव्या सोच रही थी. मन नहीं माना तो उस ने खिड़की को ज़रा सा खिसका भर दिया, एक हवा का झोंका आया और दिव्या की ज़ुल्फों से अठखेलियाँ करते हुए गुज़र गया.

कोई टोक न दे, इसलिए धीरे से खिड़की को वापस बंद कर दिया दिव्या ने. दिव्या जो आज अपने कसबे लालपुर से शहर को जा रही थी. वहां उसे कुछ दिन रुकना था. उस ने शहर के एक होटल में एक सिंगल रूम की बुकिंग पहले से ही करा रखी थी.

चर्रचर्र की आवाज़ के साथ बस रुकी. दिव्या ने बाहर की ओर देखा तो पाया कि पुलिसचेक है. शायद स्वतंत्रता दिवस करीब है, इसीलिए पुलिस वाले हर बस को रोक कर गहन तलाशी करते हैं. हरेक व्यक्ति की तलाशी और आईडी चेक होती है. पुलिस की चेकिंग के बाद बस आगे बढ़ी.

अब भी आधा सफर बाकी था. ‘अब तो लगता है मुझे पहुंचने में काफी रात हो जाएगी. तब, बसस्टैंड से होटल तक जाने में परेशानी होगी,’ दिव्या सोच रही थी.

ऐसा हुआ भी.

बस को शहर पहुंचने में काफी रात हो गई. दिव्या ने अपना सामान उठाया और किसी रिकशे या कैब वाले को देखने लगी. कई औटो रिकशे वाले खड़े थे पर उन में से कुछ ने होटल तक जाने से मना कर दिया तो कुछ औटो में ही सो रहे थे जबकि कुछ में ड्राइवर थे ही नहीं.

परेशान हो उठी दिव्या, ‘अगर कोई सवारी नहीं मिली तो मैं होटल कैसे जाऊंगी और बाकी की रात यहां कैसे बिताऊंगी!’

तभी उस की नज़र कोने में खड़े एक औटो पर पड़ी. दिव्या उस की तरफ गई तो देखा कि ड्राइवर उस के अंदर बैठबैठे हुआ सो रहा है.

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“ए औटो वाले, खाली हो, होटल रीगल तक चलोगे?” दिव्या का स्वर पता नहीं क्यों तेज़ हो गया था. उस की आवाज़ सुन कर वह उठ गया और इधरउधर देखने लगा.

“ज…जी, वह आखिरी बस आ गई क्या? मैं ज़रा सो गया था. हां, बताइए मैडम, कहां जाना है?”

“होटल रीगल जाना है मुझे,” दिव्या बोली थी.

“हां जी, बैठिए,” कह कर उस ने औटो स्टार्ट कर के आगे बढ़ा दिया.

“होटल रीगल यहां से कितनी दूर होगा?” दिव्या ने पूछा

“वह मैडम, कुछ नहीं तो 16 किलोमीटर तो पड़ ही जाएगा. बात ऐसी है न मैडम, कि यह बसस्टैंड शहर के काफी बाहर और सुनसान जगह पर बनवा दिया गया है, इसीलिए यहां से हर चीज़ दूर पड़ती है. पर, आप घबराइए मत, हम अभी पहुंचाए देते हैं,” औटो वाले ने जवाब दिया.

औटो वाले का चेहरा तो नहीं दिख रहा था पर उस के कान में एक चेन में पिरोया हुआ कोई बुंदा पहना हुआ था, जो बारबार बाहर की चमक पड़ने पर रोशनी बिखेर देता था. उस चमक से बारबार दिव्या का ध्यान औटो वाले के कानों पर चला जाता.

अचानक से औटो के अंदर रोशनी सी भर गई. औटो वाले और दिव्या दोनों का ध्यान उस रोशनी पर गया. 4 लड़के थे जो अपनी बाइक की हेडलाइट को जानबूझ कर औटो के अंदर तक पंहुचा रहे थे .

इन को भी कहीं जाना होगा, ऐसा सोच कर दिव्या ने अपना ध्यान वहां से हटा लिया पर औटो वाले की आंखें लगातार पीछे आने वाली बाइकों पर थीं और वह उन लोगों की नीयत भांप चुका था.

अचानक से औटो वाले ने अपनी गति बढ़ा दी जितनी बढ़ा सकता था और औटो को मुख्य सड़क से हटा कर किसी और सड़क पर चलाने लगा.

“क्या हुआ, यह तुम इतनी तेज़ क्यों चला रहे हो और औटो को किस दिशा में ले जा रहे हो? बात क्या है आखिर?” दिव्या ने कई सवाल दाग दिए.

“जी, कुछ नहीं मैडम, आप डरिए नहीं. दरअसल, इस शहर में कुछ भेड़िए इंसानी भेष में रोज़ रात को लड़कियों का मांस नोचने के लिए निकल पड़ते हैं और आज इन लोगों ने आप को अकेले देख लिया है. पर आप घबराइए नहीं, मैं इन के मंसूबे कामयाब नहीं होने दूंगा,” आंखों को रास्ते और साइड मिरर पर जमाए हुए औटो वाला बोल रहा था.

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पीछे आती हुई बाइकों ने अपनी गति और बढ़ा दी और वे औटो के बराबर में आने लगे .

औटो वाले ने अचानक औटो को एक दिशा में लहरा दिया और औटो के लहराने से बाइक वाला संभल नहीं पाया और बाइक कंट्रोल से बाहर हो गई. और वह लहराता हुआ गिर गया.

अपने साथी को गिरा देख कर दूसरा गुस्से में भर गया और बाइक चलाते हुए अंदर बैठी दिव्या के बराबर हाथ पहुंचाया. तुरंत ही दिव्या ने अपने साथ में लाए हुए लेडीज़ छाते का एक ज़ोरदार वार उस के हेलमेट पर कर दिया. इस अप्रत्याशित वार से वह भी बाइक समेत गिर गया. अपने 2 साथियों के चोटिल होने के बाद बाकी के दोनों सवारों का हौसला टूट गया उन दोनों ने पीछे आना छोड़ कर अपनी बाइकों को मोड़ लिया.

उन गुंडों से पीछा छुड़ाने के चक्कर में औटो मुख्य सड़क से भटक कर पास में छोटी सड़क पर चलने लगा था और औटोवाला ड्राइवर बगैर इस बात का ध्यान करे औटो भगाता जा रहा था. और अब जब उसे इस बात का भान हुआ तब तक औटो शहर के किसी दूसरे हिस्से में आ गया था. वहां चारों और घुप्प अंधेरा था. बस, जितनी दूर औटो की रोशनी जाती उतना ही रास्ता दिखाई दे रहा था.

औटो चला जा रहा था. तभी अचानक औटो से खटाक की आवाज़ आई और औटो रुक गया. औटो ड्राइवर को जितनी तकनीक मालूम थी वह सबकुछ अपना लिया. पर कुछ न हो सका .

“मैडम, अफ़सोस की बात है, हम शहर के किसी बाहरी हिस्से में आ गए हैं और वापसी का कोई उपाय नहीं है. अब हमें रात यही कहीं काटनी होगी.”

“क्या मतलब, यहां कहां और कैसे?”

“अब क्या करें मैडम, मजबूरी है,” औटोवाला युवक बोला, फिर कहने लगा, “वह सामने आसमान में ऊंचाई पर एक लाल बल्ब चमक रहा है, वहां चलते हैं. ज़रूर वहां हमे सिर छिपाने लायक जगह मिल जाएगी.” अपनी उंगली दिखाते हुए उस ने कहा और एक झटके से दिव्या का बैग उठा लिया और तेज़ी से चल पड़ा.

उस का अंदाज़ा सही था. यह एक निर्माणाधीन बहुमंज़िली इमारत थी, जिस के एक हिस्से में कुछ मज़दूर सो रहे थे और बाकी की इमारत खाली थी. दोनों चलते हुए ऊपर वाले फ्लोर पर पहुंचे और एक कोने में सामान रख दिया.

यह सब दिव्या को बड़ा अजीब लग रहा था और वह यह भी सोच रही थी, एक अजनबी के साथ वह इतनी देर से है, फिर भी उसे कोई असुरक्षा का भाव क्यों नहीं आ रहा है?

“इधर आ जाइए, हवा अच्छी आ रही है,” युवक ने बालकनी में आवाज़ देते हुए कहा.

“वैसे, तुम्हारा नाम क्या है?” अचानक से दिव्या ने पूछा.

“ज जी, मेरा नाम आर्यन है,” युवक ने थोड़ा झिझकते हुए उत्तर दिया.

” भाई वाह, क्या नाम है, वैरी गुड़,” दिव्या ने अपने पर्स में रखे हुए बिस्कुट निकाल कर आर्यन की ओर बढ़ाते हुए कहा.

“जी मैडम, बात ऐसी है कि मेरी मां शाहरुख खान की बहुत बड़ी फैन थी और जब ‘मोहब्बतें’ फिल्म रिलीज़ हुई न, तब मैं उस के पेट में था और तभी उस ने सोच लिया था कि अगर बेटा पैदा हुआ तो उस का नाम आर्यन रखेगी.”

आर्यन की सरल बातें सुन कर बिना मुसकराए न रह सकी दिव्या. पानी पीते हुए घड़ी पर निगाह डाली तो अभी रात का 2 बज रहा था. अभी तो पूरी रात यहीं काटनी है, इस गरज से दिव्या ने बातचीत जारी रखी.

“दिखने में तो खूबसूरत लगते हो और पढ़े लिखे भी. फिर, यह औटो चलाने की जगह कोई नौकरी क्यों नहीं करते?” दिव्या ने पूछा.

“मैडम, मैं ने एमए किया है वह भी इंग्लिश में. पर आजकल इस पढ़ाई से कुछ नहीं होता. या तो बहुत बड़ी डिग्री हो या फिर किसी की सिफारिश. और अपने पास दोनों ही नहीं. मरता क्या न करता, इसलिए औटो लाने लगा.

“ऊं…मोहब्बतें… तो कुछ अपनी मोहब्बत के बारे में भी बताओ. किसी लड़की से प्यारव्यार भी हुआ है या फिर…?” दिव्या ने पूछा.

उस की इस बात पर पहले तो आर्यन कुछ शरमा सा गया, फिर उस की आंखों में गुस्सा उत्तर आया, बोला, “हां मैडम, मुझे भी प्यार हुआ तो था पर अफ़सोस कि लड़की ने धोखा दे दिया…एक दिन मैं औटो ले कर घर वापस जा रहा था. तभी सड़क के किनारे मैं ने देखा कि एक लड़का पड़ा हुआ है. उस के सिर से खून बह रहा है और भीड़ मोबाइल से वीडियो बना रही है. कोई उस लड़के को अस्पताल ले कर नहीं जा रहा. उस लड़के के साथ एक बदहवास सी लड़की भी थी. मुझे उन दोनों पर दया आई और इंसानियत के नाते मैं ने उन दोनों को अस्पताल पहुंचाया. “अस्पताल में उस लड़के को जब खून की ज़रूरत पड़ी तो उस लड़की ने मुझ से मदद मांगी. मुझ से कहा कि वह लड़का उस का भाई है और खून का इंतज़ाम करना है.

“मैं क्या करता, मैं ने अपना खून उस लड़के को दिया और उस की जान बचाई. उस लड़की ने मुझे शुक्रिया कहा और बदले में मेरे को अपने घर का पता व अपना मोबाइल नंबर दिया, साथ ही मेरा नंबर लिया भी. और फिर रोज़ सुबह ही उस लड़की का व्हाट्सऐप्प पर मैसेज आता और चैटिंग भी करती. वह मुझ से पूछती कि वह उसे कैसी लगती है. और इसी तरह की कई दूसरी बातें भी पूछती थी.

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“एक दिन मेरे मोबाइल पर उसी लड़की का फोन आया और उस ने मुझे अपने घर पर बुलाया. मैं उस से मिलने के लिए आतुर था, इसलिए तैयार हो कर उस के घर पहुंच गया. पता नहीं क्यों मुझे लगने लगा था कि वह लड़की मुझ से प्यार करने लगी है, इसलिए मैं उस के लिए एक लाल गुलाब भी ले कर गया था. जब मैं वहां पहुंचा तो उस ने मेरा खूब स्वागत भी किया. उस के घर में सिर्फ उस की मां ही रहती थी पर उस दिन वह कहीं गई हुई थी.

“जब मैं ने उस लड़की से पूछा कि उस का वह भाई कहां है तो उस ने बताया कि वह भी मां के साथ ही कहीं गया है. अकेलापन देख कर मैं ने उस लड़की को शादी का प्रस्ताव दे डाला.

“अभी तक उस लड़की ने मेरा नाम नहीं पूछा था. नाम पूछने पर जब मैं ने उसे अपना नाम आर्यन डिसूजा बताया तब उस ने मेरे ईसाई होने पर सवाल खड़ा कर दिया और निराश हो कर कहने लगी, ‘मुझे भूल जाओ. मैं शादी तुम से नहीं कर सकती क्योंकि मेरी मां और पापा कट्टर हिंदू हैं, वे किसी गैरधर्म वाले लड़के से मेरी शादी नहीं करेंगे.’ हालांकि उस के भाई को खून देने को ले कर किसी को कोई एतराज नहीं था पर शादी की बात आते ही जातिधर्म सब आ गया. बस मैडम, मेरी पहली और आखिरी कहानी यही थी,” यह कह कर आर्यन चुप हो गया.

“काफी अजीब कहानी है तुम्हारे प्यार की. पर है बहुत ही इमोशनल और नई सी. इस पर कोई फिल्म वाला एक फिल्म बना सकता है,” दिव्या ने हंसते हुए कहा.

“हां जी, हो सकता है. पर आप ने कुछ अपने बारे में नहीं बताया, मसलन आप के मांबाप?” आर्यन भी दिव्या की प्रेमकथा ही जानना चाहता था, पर वह बात कहने की हिम्मत नहीं कर पाया, इसलिए मांबाप का नाम ले लिया.

“मेरे बाप एक फार्मा कंपनी में काम करते थे. उन का सेल्स का काम था, तो अकसर घर के बाहर रहते. घर में सबकुछ था, ज्यादा नहीं तो कम भी नहीं. जब वे घर आते तो हम सब को खूब समय और तोहफे भी देते…” कहतेकहते चुप हो गई दिव्या.

“जी, और आप की मां?”

“मां, अब उस के बारे में क्या बताऊं. उस का पेट हर तरह से भरा हुआ था- रुपए से, पैसे से. पर कुछ औरतों को अपने जिस्म की भूख मिटाने के लिए रोज़ एक नया मर्द चाहिए होता है न, कुछ ऐसी ही थी मेरी मां. वह कहीं भी जाती तो अपने लिए गुर्गा तलाश ही लेती और उसे अपना फोन नंबर दे देती. और जब वह आदमी घर तक आ जाता तो मुझे किसी बहाने से घर के बाहर भेज देती और उस आदमी के साथ जिस्मानी ताल्लुकात बनाती.

“धीरेधीरे उस की बेशर्मी इतनी बढ़ गई थी कि वह मेरे सामने ही किसी भी गैरमर्द के साथ प्रेम की अठखेलियां करने लगती. उस की ये हरकतें पापा को पता चलीं, तो उन्होंने तुरंत ही उसे तलाक़ दे दिया और मुझे मां के पास ही छोड़ दिया. तलाक़ के बाद मां को सम्भल जाना चाहिए था, पर वह और भी निरंकुश हो गई. “अब तो आदमी आते और घर पर ही पड़े रहते, बल्कि आदमी लोग शिफ्टों में आने लगे थे और मेरी मां जीभर सेक्स का मज़ा लेती थी. मां की हरकतें देख कर मैं ने अपने घर की छत पर जा कर आत्महत्या करने की कोशिश की, पर तभी मेरे पड़ोस में रहने वाले लड़के ने अपनी जान पर खेलते हुए मेरी जान बचाई.

“मुझे किसी का सहारा चाहिए था. मैं उस लड़के के कंधे पर सिर रख कर खूब रोई. मैं सिसकियों में बंध सी गई थी.

उस लड़के ने मुझे ऐसे वक्त में सहारा दिया कि मुझे उस से प्यार हो जाना स्वाभाविक ही था. प्यार तो उस को भी मुझ से हो गया था पर हमारी शादी के बीच मेरी मां का दुष्चरित्र आ गया और उस लड़के ने मुझ से साफ कह दिया कि उस के मांबाप किसी ऐसी लड़की से उस की शादी नहीं कराना चाहते जिस की तलाकशुदा मां कई मर्दों से सम्बन्ध रखती हो,” इतना कह कर चुप हो गई थी दिव्या.

दोनों चुप थे. रात का सन्नाटा भी बखूबी उन का साथ दे रहा था. हवा आआ कर अब भी कभीकभी दिव्या की ज़ुल्फों को उड़ा दे रही थी, जिन्हें वह परेशान हो कर बारबार संभालती थी.

“पर मैडम, मेरी कहानी कुछ नई लग सकती है आप को पर आप की कहानी में तो दर्द के अलावा कुछ नहीं है” पास में बैठे हुए आर्यन ने कहा.

प्रतिउत्तर में कोई जवाब नहीं आया, सिर्फ एक छोटी सी सिसकी ही आई जिसे चाह कर भी दिव्या छिपा न सकी थी.

“क्या तुम रो रही हो?” आर्यन ने पूछा.

बिना कोई उत्तर दिए ही आर्यन के सीने से लिपट गई दिव्या…रोती रही…शायद बचपन से ले कर अब तक कोई कंधा नहीं नसीब हुआ था उसे जिस पर वह सिर रख सके. रोती रही वह जब तक उस का मन हलका नहीं हो गया.

और आर्यन ने भी अपनी मज़बूत बांहों का घेरा दिव्या के गिर्द डाल दिया था. और दिव्या के माथे पर चुम्बन अंकित कर दिया. वह खामोश इमारत अब उन के मिलन की गवाह बन रही थी.

सूरज की पहली किरण फूटी पर वे दोनों अब भी किसी लता की तरह एकदूसरे से लिपटे हुए थे.

तभी दूर से एक दुग्ध वाहन आता हुआ दिखाई दिया. दिव्या ने आर्यन का हाथ पकड़ा और आर्यन ने बैग उठाया और दोनों ने दौड़ कर उस वाहन में लिफ्ट मांगी.

“हम कहां जा रहे हैं …और मेरा औटो तो वहीं रह गया मैडम,” आर्यन ने पूछा.

“अगर तुम्हें कोई और काम मिले तो क्या तुम करोगे ?” दिव्या ने आर्यन की आंखों में झांकते हुए कहा.

“हां मैडम, क्यों नहीं करूंगा.”

“पर हो सकता है तुम्हें उम्रभर मेरा साथ देना पड़े?”

“हां, पर तुम्हें साथ देना होगा तो ही करूंगा मैडम.”

“मैडम नहीं, दिव्या नाम है मेरा,” दिव्या ने कहा.

बदले में आर्यन सिर्फ मुसकरा कर रह गया.

शहर आ गया था. दोनों पूछतेपाछते होटल रीगल पहुंच गए.

रिसेप्शन पर जा कर दिव्या ने मैनेजर से कहा, “जी, मैं ने अपने लिए एक सिंगल बैडरूम बुक कराया था. मुझे आने में देर हो गई. पर, अब मुझे सिंगल नहीं बल्कि डबल बैडरूम चाहिए.”

“जी मैडम, किस नाम से रूम बुक था?” मैनेजर ने पूछा.

“मेरा कमरा दिव्या नाम से बुक था. पर अब आप रजिस्टर में मेरे पति आर्यन डिसूजा और दिव्या डिसूजा का नाम लिख सकते हैं,” दिव्या ने आर्यन की तरफ देखते हुए कहा.

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लेखक- नीरज कुमार मिश्रा

‘पता नहीं बस और गाड़ियों में रात में भी एसी क्यों चलाया जाता है, माना कि गरमी से नज़ात पाने के लिए एसी का चलाया जाना ज़रूरी है पर तब क्यों जब ज्यादा गरमी न हो,’ बस की खिड़की से बाहर देखती हुई दिव्या सोच रही थी. मन नहीं माना तो उस ने खिड़की को ज़रा सा खिसका भर दिया, एक हवा का झोंका आया और दिव्या की ज़ुल्फों से अठखेलियाँ करते हुए गुज़र गया.

कोई टोक न दे, इसलिए धीरे से खिड़की को वापस बंद कर दिया दिव्या ने. दिव्या जो आज अपने कसबे लालपुर से शहर को जा रही थी. वहां उसे कुछ दिन रुकना था. उस ने शहर के एक होटल में एक सिंगल रूम की बुकिंग पहले से ही करा रखी थी.

चर्रचर्र की आवाज़ के साथ बस रुकी. दिव्या ने बाहर की ओर देखा तो पाया कि पुलिसचेक है. शायद स्वतंत्रता दिवस करीब है, इसीलिए पुलिस वाले हर बस को रोक कर गहन तलाशी करते हैं. हरेक व्यक्ति की तलाशी और आईडी चेक होती है. पुलिस की चेकिंग के बाद बस आगे बढ़ी.

अब भी आधा सफर बाकी था. ‘अब तो लगता है मुझे पहुंचने में काफी रात हो जाएगी. तब, बसस्टैंड से होटल तक जाने में परेशानी होगी,’ दिव्या सोच रही थी.

ऐसा हुआ भी.

बस को शहर पहुंचने में काफी रात हो गई. दिव्या ने अपना सामान उठाया और किसी रिकशे या कैब वाले को देखने लगी. कई औटो रिकशे वाले खड़े थे पर उन में से कुछ ने होटल तक जाने से मना कर दिया तो कुछ औटो में ही सो रहे थे जबकि कुछ में ड्राइवर थे ही नहीं.

परेशान हो उठी दिव्या, ‘अगर कोई सवारी नहीं मिली तो मैं होटल कैसे जाऊंगी और बाकी की रात यहां कैसे बिताऊंगी!’

तभी उस की नज़र कोने में खड़े एक औटो पर पड़ी. दिव्या उस की तरफ गई तो देखा कि ड्राइवर उस के अंदर बैठबैठे हुआ सो रहा है.

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“ए औटो वाले, खाली हो, होटल रीगल तक चलोगे?” दिव्या का स्वर पता नहीं क्यों तेज़ हो गया था. उस की आवाज़ सुन कर वह उठ गया और इधरउधर देखने लगा.

“ज…जी, वह आखिरी बस आ गई क्या? मैं ज़रा सो गया था. हां, बताइए मैडम, कहां जाना है?”

“होटल रीगल जाना है मुझे,” दिव्या बोली थी.

“हां जी, बैठिए,” कह कर उस ने औटो स्टार्ट कर के आगे बढ़ा दिया.

“होटल रीगल यहां से कितनी दूर होगा?” दिव्या ने पूछा

“वह मैडम, कुछ नहीं तो 16 किलोमीटर तो पड़ ही जाएगा. बात ऐसी है न मैडम, कि यह बसस्टैंड शहर के काफी बाहर और सुनसान जगह पर बनवा दिया गया है, इसीलिए यहां से हर चीज़ दूर पड़ती है. पर, आप घबराइए मत, हम अभी पहुंचाए देते हैं,” औटो वाले ने जवाब दिया.

औटो वाले का चेहरा तो नहीं दिख रहा था पर उस के कान में एक चेन में पिरोया हुआ कोई बुंदा पहना हुआ था, जो बारबार बाहर की चमक पड़ने पर रोशनी बिखेर देता था. उस चमक से बारबार दिव्या का ध्यान औटो वाले के कानों पर चला जाता.

अचानक से औटो के अंदर रोशनी सी भर गई. औटो वाले और दिव्या दोनों का ध्यान उस रोशनी पर गया. 4 लड़के थे जो अपनी बाइक की हेडलाइट को जानबूझ कर औटो के अंदर तक पंहुचा रहे थे .

इन को भी कहीं जाना होगा, ऐसा सोच कर दिव्या ने अपना ध्यान वहां से हटा लिया पर औटो वाले की आंखें लगातार पीछे आने वाली बाइकों पर थीं और वह उन लोगों की नीयत भांप चुका था.

अचानक से औटो वाले ने अपनी गति बढ़ा दी जितनी बढ़ा सकता था और औटो को मुख्य सड़क से हटा कर किसी और सड़क पर चलाने लगा.

“क्या हुआ, यह तुम इतनी तेज़ क्यों चला रहे हो और औटो को किस दिशा में ले जा रहे हो? बात क्या है आखिर?” दिव्या ने कई सवाल दाग दिए.

“जी, कुछ नहीं मैडम, आप डरिए नहीं. दरअसल, इस शहर में कुछ भेड़िए इंसानी भेष में रोज़ रात को लड़कियों का मांस नोचने के लिए निकल पड़ते हैं और आज इन लोगों ने आप को अकेले देख लिया है. पर आप घबराइए नहीं, मैं इन के मंसूबे कामयाब नहीं होने दूंगा,” आंखों को रास्ते और साइड मिरर पर जमाए हुए औटो वाला बोल रहा था.

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पीछे आती हुई बाइकों ने अपनी गति और बढ़ा दी और वे औटो के बराबर में आने लगे .

औटो वाले ने अचानक औटो को एक दिशा में लहरा दिया और औटो के लहराने से बाइक वाला संभल नहीं पाया और बाइक कंट्रोल से बाहर हो गई. और वह लहराता हुआ गिर गया.

अपने साथी को गिरा देख कर दूसरा गुस्से में भर गया और बाइक चलाते हुए अंदर बैठी दिव्या के बराबर हाथ पहुंचाया. तुरंत ही दिव्या ने अपने साथ में लाए हुए लेडीज़ छाते का एक ज़ोरदार वार उस के हेलमेट पर कर दिया. इस अप्रत्याशित वार से वह भी बाइक समेत गिर गया. अपने 2 साथियों के चोटिल होने के बाद बाकी के दोनों सवारों का हौसला टूट गया उन दोनों ने पीछे आना छोड़ कर अपनी बाइकों को मोड़ लिया.

उन गुंडों से पीछा छुड़ाने के चक्कर में औटो मुख्य सड़क से भटक कर पास में छोटी सड़क पर चलने लगा था और औटोवाला ड्राइवर बगैर इस बात का ध्यान करे औटो भगाता जा रहा था. और अब जब उसे इस बात का भान हुआ तब तक औटो शहर के किसी दूसरे हिस्से में आ गया था. वहां चारों और घुप्प अंधेरा था. बस, जितनी दूर औटो की रोशनी जाती उतना ही रास्ता दिखाई दे रहा था.

औटो चला जा रहा था. तभी अचानक औटो से खटाक की आवाज़ आई और औटो रुक गया. औटो ड्राइवर को जितनी तकनीक मालूम थी वह सबकुछ अपना लिया. पर कुछ न हो सका .

“मैडम, अफ़सोस की बात है, हम शहर के किसी बाहरी हिस्से में आ गए हैं और वापसी का कोई उपाय नहीं है. अब हमें रात यही कहीं काटनी होगी.”

“क्या मतलब, यहां कहां और कैसे?”

“अब क्या करें मैडम, मजबूरी है,” औटोवाला युवक बोला, फिर कहने लगा, “वह सामने आसमान में ऊंचाई पर एक लाल बल्ब चमक रहा है, वहां चलते हैं. ज़रूर वहां हमे सिर छिपाने लायक जगह मिल जाएगी.” अपनी उंगली दिखाते हुए उस ने कहा और एक झटके से दिव्या का बैग उठा लिया और तेज़ी से चल पड़ा.

उस का अंदाज़ा सही था. यह एक निर्माणाधीन बहुमंज़िली इमारत थी, जिस के एक हिस्से में कुछ मज़दूर सो रहे थे और बाकी की इमारत खाली थी. दोनों चलते हुए ऊपर वाले फ्लोर पर पहुंचे और एक कोने में सामान रख दिया.

यह सब दिव्या को बड़ा अजीब लग रहा था और वह यह भी सोच रही थी, एक अजनबी के साथ वह इतनी देर से है, फिर भी उसे कोई असुरक्षा का भाव क्यों नहीं आ रहा है?

“इधर आ जाइए, हवा अच्छी आ रही है,” युवक ने बालकनी में आवाज़ देते हुए कहा.

“वैसे, तुम्हारा नाम क्या है?” अचानक से दिव्या ने पूछा.

“ज जी, मेरा नाम आर्यन है,” युवक ने थोड़ा झिझकते हुए उत्तर दिया.

” भाई वाह, क्या नाम है, वैरी गुड़,” दिव्या ने अपने पर्स में रखे हुए बिस्कुट निकाल कर आर्यन की ओर बढ़ाते हुए कहा.

“जी मैडम, बात ऐसी है कि मेरी मां शाहरुख खान की बहुत बड़ी फैन थी और जब ‘मोहब्बतें’ फिल्म रिलीज़ हुई न, तब मैं उस के पेट में था और तभी उस ने सोच लिया था कि अगर बेटा पैदा हुआ तो उस का नाम आर्यन रखेगी.”

आर्यन की सरल बातें सुन कर बिना मुसकराए न रह सकी दिव्या. पानी पीते हुए घड़ी पर निगाह डाली तो अभी रात का 2 बज रहा था. अभी तो पूरी रात यहीं काटनी है, इस गरज से दिव्या ने बातचीत जारी रखी.

“दिखने में तो खूबसूरत लगते हो और पढ़े लिखे भी. फिर, यह औटो चलाने की जगह कोई नौकरी क्यों नहीं करते?” दिव्या ने पूछा.

“मैडम, मैं ने एमए किया है वह भी इंग्लिश में. पर आजकल इस पढ़ाई से कुछ नहीं होता. या तो बहुत बड़ी डिग्री हो या फिर किसी की सिफारिश. और अपने पास दोनों ही नहीं. मरता क्या न करता, इसलिए औटो लाने लगा.

“ऊं…मोहब्बतें… तो कुछ अपनी मोहब्बत के बारे में भी बताओ. किसी लड़की से प्यारव्यार भी हुआ है या फिर…?” दिव्या ने पूछा.

उस की इस बात पर पहले तो आर्यन कुछ शरमा सा गया, फिर उस की आंखों में गुस्सा उत्तर आया, बोला, “हां मैडम, मुझे भी प्यार हुआ तो था पर अफ़सोस कि लड़की ने धोखा दे दिया…एक दिन मैं औटो ले कर घर वापस जा रहा था. तभी सड़क के किनारे मैं ने देखा कि एक लड़का पड़ा हुआ है. उस के सिर से खून बह रहा है और भीड़ मोबाइल से वीडियो बना रही है. कोई उस लड़के को अस्पताल ले कर नहीं जा रहा. उस लड़के के साथ एक बदहवास सी लड़की भी थी. मुझे उन दोनों पर दया आई और इंसानियत के नाते मैं ने उन दोनों को अस्पताल पहुंचाया. “अस्पताल में उस लड़के को जब खून की ज़रूरत पड़ी तो उस लड़की ने मुझ से मदद मांगी. मुझ से कहा कि वह लड़का उस का भाई है और खून का इंतज़ाम करना है.

“मैं क्या करता, मैं ने अपना खून उस लड़के को दिया और उस की जान बचाई. उस लड़की ने मुझे शुक्रिया कहा और बदले में मेरे को अपने घर का पता व अपना मोबाइल नंबर दिया, साथ ही मेरा नंबर लिया भी. और फिर रोज़ सुबह ही उस लड़की का व्हाट्सऐप्प पर मैसेज आता और चैटिंग भी करती. वह मुझ से पूछती कि वह उसे कैसी लगती है. और इसी तरह की कई दूसरी बातें भी पूछती थी.

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“एक दिन मेरे मोबाइल पर उसी लड़की का फोन आया और उस ने मुझे अपने घर पर बुलाया. मैं उस से मिलने के लिए आतुर था, इसलिए तैयार हो कर उस के घर पहुंच गया. पता नहीं क्यों मुझे लगने लगा था कि वह लड़की मुझ से प्यार करने लगी है, इसलिए मैं उस के लिए एक लाल गुलाब भी ले कर गया था. जब मैं वहां पहुंचा तो उस ने मेरा खूब स्वागत भी किया. उस के घर में सिर्फ उस की मां ही रहती थी पर उस दिन वह कहीं गई हुई थी.

“जब मैं ने उस लड़की से पूछा कि उस का वह भाई कहां है तो उस ने बताया कि वह भी मां के साथ ही कहीं गया है. अकेलापन देख कर मैं ने उस लड़की को शादी का प्रस्ताव दे डाला.

“अभी तक उस लड़की ने मेरा नाम नहीं पूछा था. नाम पूछने पर जब मैं ने उसे अपना नाम आर्यन डिसूजा बताया तब उस ने मेरे ईसाई होने पर सवाल खड़ा कर दिया और निराश हो कर कहने लगी, ‘मुझे भूल जाओ. मैं शादी तुम से नहीं कर सकती क्योंकि मेरी मां और पापा कट्टर हिंदू हैं, वे किसी गैरधर्म वाले लड़के से मेरी शादी नहीं करेंगे.’ हालांकि उस के भाई को खून देने को ले कर किसी को कोई एतराज नहीं था पर शादी की बात आते ही जातिधर्म सब आ गया. बस मैडम, मेरी पहली और आखिरी कहानी यही थी,” यह कह कर आर्यन चुप हो गया.

“काफी अजीब कहानी है तुम्हारे प्यार की. पर है बहुत ही इमोशनल और नई सी. इस पर कोई फिल्म वाला एक फिल्म बना सकता है,” दिव्या ने हंसते हुए कहा.

“हां जी, हो सकता है. पर आप ने कुछ अपने बारे में नहीं बताया, मसलन आप के मांबाप?” आर्यन भी दिव्या की प्रेमकथा ही जानना चाहता था, पर वह बात कहने की हिम्मत नहीं कर पाया, इसलिए मांबाप का नाम ले लिया.

“मेरे बाप एक फार्मा कंपनी में काम करते थे. उन का सेल्स का काम था, तो अकसर घर के बाहर रहते. घर में सबकुछ था, ज्यादा नहीं तो कम भी नहीं. जब वे घर आते तो हम सब को खूब समय और तोहफे भी देते…” कहतेकहते चुप हो गई दिव्या.

“जी, और आप की मां?”

“मां, अब उस के बारे में क्या बताऊं. उस का पेट हर तरह से भरा हुआ था- रुपए से, पैसे से. पर कुछ औरतों को अपने जिस्म की भूख मिटाने के लिए रोज़ एक नया मर्द चाहिए होता है न, कुछ ऐसी ही थी मेरी मां. वह कहीं भी जाती तो अपने लिए गुर्गा तलाश ही लेती और उसे अपना फोन नंबर दे देती. और जब वह आदमी घर तक आ जाता तो मुझे किसी बहाने से घर के बाहर भेज देती और उस आदमी के साथ जिस्मानी ताल्लुकात बनाती.

“धीरेधीरे उस की बेशर्मी इतनी बढ़ गई थी कि वह मेरे सामने ही किसी भी गैरमर्द के साथ प्रेम की अठखेलियां करने लगती. उस की ये हरकतें पापा को पता चलीं, तो उन्होंने तुरंत ही उसे तलाक़ दे दिया और मुझे मां के पास ही छोड़ दिया. तलाक़ के बाद मां को सम्भल जाना चाहिए था, पर वह और भी निरंकुश हो गई. “अब तो आदमी आते और घर पर ही पड़े रहते, बल्कि आदमी लोग शिफ्टों में आने लगे थे और मेरी मां जीभर सेक्स का मज़ा लेती थी. मां की हरकतें देख कर मैं ने अपने घर की छत पर जा कर आत्महत्या करने की कोशिश की, पर तभी मेरे पड़ोस में रहने वाले लड़के ने अपनी जान पर खेलते हुए मेरी जान बचाई.

“मुझे किसी का सहारा चाहिए था. मैं उस लड़के के कंधे पर सिर रख कर खूब रोई. मैं सिसकियों में बंध सी गई थी.

उस लड़के ने मुझे ऐसे वक्त में सहारा दिया कि मुझे उस से प्यार हो जाना स्वाभाविक ही था. प्यार तो उस को भी मुझ से हो गया था पर हमारी शादी के बीच मेरी मां का दुष्चरित्र आ गया और उस लड़के ने मुझ से साफ कह दिया कि उस के मांबाप किसी ऐसी लड़की से उस की शादी नहीं कराना चाहते जिस की तलाकशुदा मां कई मर्दों से सम्बन्ध रखती हो,” इतना कह कर चुप हो गई थी दिव्या.

दोनों चुप थे. रात का सन्नाटा भी बखूबी उन का साथ दे रहा था. हवा आआ कर अब भी कभीकभी दिव्या की ज़ुल्फों को उड़ा दे रही थी, जिन्हें वह परेशान हो कर बारबार संभालती थी.

“पर मैडम, मेरी कहानी कुछ नई लग सकती है आप को पर आप की कहानी में तो दर्द के अलावा कुछ नहीं है” पास में बैठे हुए आर्यन ने कहा.

प्रतिउत्तर में कोई जवाब नहीं आया, सिर्फ एक छोटी सी सिसकी ही आई जिसे चाह कर भी दिव्या छिपा न सकी थी.

“क्या तुम रो रही हो?” आर्यन ने पूछा.

बिना कोई उत्तर दिए ही आर्यन के सीने से लिपट गई दिव्या…रोती रही…शायद बचपन से ले कर अब तक कोई कंधा नहीं नसीब हुआ था उसे जिस पर वह सिर रख सके. रोती रही वह जब तक उस का मन हलका नहीं हो गया.

और आर्यन ने भी अपनी मज़बूत बांहों का घेरा दिव्या के गिर्द डाल दिया था. और दिव्या के माथे पर चुम्बन अंकित कर दिया. वह खामोश इमारत अब उन के मिलन की गवाह बन रही थी.

सूरज की पहली किरण फूटी पर वे दोनों अब भी किसी लता की तरह एकदूसरे से लिपटे हुए थे.

तभी दूर से एक दुग्ध वाहन आता हुआ दिखाई दिया. दिव्या ने आर्यन का हाथ पकड़ा और आर्यन ने बैग उठाया और दोनों ने दौड़ कर उस वाहन में लिफ्ट मांगी.

“हम कहां जा रहे हैं …और मेरा औटो तो वहीं रह गया मैडम,” आर्यन ने पूछा.

“अगर तुम्हें कोई और काम मिले तो क्या तुम करोगे ?” दिव्या ने आर्यन की आंखों में झांकते हुए कहा.

“हां मैडम, क्यों नहीं करूंगा.”

“पर हो सकता है तुम्हें उम्रभर मेरा साथ देना पड़े?”

“हां, पर तुम्हें साथ देना होगा तो ही करूंगा मैडम.”

“मैडम नहीं, दिव्या नाम है मेरा,” दिव्या ने कहा.

बदले में आर्यन सिर्फ मुसकरा कर रह गया.

शहर आ गया था. दोनों पूछतेपाछते होटल रीगल पहुंच गए.

रिसेप्शन पर जा कर दिव्या ने मैनेजर से कहा, “जी, मैं ने अपने लिए एक सिंगल बैडरूम बुक कराया था. मुझे आने में देर हो गई. पर, अब मुझे सिंगल नहीं बल्कि डबल बैडरूम चाहिए.”

“जी मैडम, किस नाम से रूम बुक था?” मैनेजर ने पूछा.

“मेरा कमरा दिव्या नाम से बुक था. पर अब आप रजिस्टर में मेरे पति आर्यन डिसूजा और दिव्या डिसूजा का नाम लिख सकते हैं,” दिव्या ने आर्यन की तरफ देखते हुए कहा.

The post दिव्या आर्यन: जब दो अनजानी राहों में मिले धोखा खा चुके हमराही appeared first on Sarita Magazine.

January 28, 2022 at 09:00AM

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