Sunday 30 January 2022

मेरी दीदी: सनम क्यों अपनी बड़ी बहन से नजरें नहीं मिला पा रही थी

लेखिका- भावना ठाकर

मेरी आंखें बंद हो रही हैं, सांसें तन का साथ छोड़ रही हैं। ऐसा लग रहा है मानों मम्मी की आवाज दूर बहुत दूर से आ रही है,”सनम, आंखें खोलो बेटा, क्या हो रहा है तुझे सनम…”मैं आंखें नहीं खोल सकती। शायद मेरे पास ज्यादा वक्त नहीं, पर अनंत की डगर पर जातेजाते मेरी आंखों के सामने जिंदगी की हर घटना किसी फिल्म की तरह प्रतिबिंबित हो रही हैं। मम्मी के उस वाक्य ने मुझे स्कूल से ले कर अब तक की जिंदगी का स्मरण करा दिया और मैं अतीत की गलियों का सफर करते कुछ साल पीछे चली गई…

रोज सुबह मम्मी कितनी सारी आवाज लगा कर उठाती थीं, “सनम बेटा, उठो स्कूल के लिए देर हो रही है.मुझे भी मम्मी के मुंह से बेटा शब्द सुनना बहुत अच्छा लगता है तो जानबूझ कर बिस्तर पर ही पड़ी रहती और जब तक मम्मी सनम से सन्नूडी पर आ कर डांटती नहीं और मुझे जगाने के चक्कर में पूरा घर जग जाता तब दौड़ती हुई बाथरूम में घुस जाती थी। और मम्मी भी झूठा गुस्सा जताते रसोई में सब के लिए नाश्ता बनाने चली जातीं.

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मम्मीपापा, सागरिका दीदी, समर्थ और मुझे मिला कर कुल 5 लोगों का हमारा छोटा सा परिवार है। एकदूसरे के साथ भावनात्मक रूप से जुड़े शांति से जिंदगी जी रहे थे। मेरी सागरिका दीदी बहुत शांत और सरल स्वभाव की हैं और मैं थोड़ी सी चंचल। दीदी मुझे बहुत प्यार करती हैं पर एक बात मेरी दीदी को बिलकुल पसंद नहीं। दीदी की अपनी चीजें  कोई और इस्तेमाल करें वह उन्हें  बिलकुल पसंद नहीं था। पापा हमेशा तीनों बच्चों के लिए एक सी चीजें  लाते थे, पर मुझे हमेशा दीदी की चीजें  ही ज्यादा अच्छी लगती थीं, तो चोरीछिपे दीदी की चीजें इस्तेमाल कर लिया करती थी तो उस पर दीदी चिल्ला कर पूरे घर को सिर पर ले लेतीं।

घर में किसी बात पर कभी क्लेश नहीं होता था पर इस बात पर जंग छिड़ जाती। मम्मीपापा के बहुत डांटने पर,”सौरी, अगली बार ऐसा नहीं करूंगी…” बोल कर मैं छिटक लेती.दीदी मुझ से 3 साल बड़ी थीं। देखते ही देखते दीदी ग्रैजुएट हो गईं और मैं कालेज में आ गई। पापा दीदी के लिए लड़का ढूंढ़ने लगे और वह दिन भी आ गया। दीदी के लिए एक बहुत ही बेहतरीन रिश्ता आया। सूरत में अपना बिजनैस संभाल रहे आदित्य के साथ दीदी का रिश्ता पक्का हो गया। आदित्य के मम्मीपापा मुंबई में रहते थे क्योंकि उन की 1 ब्रांच वहां पर थी। बहुत ही सरल व समझदार और दिखने में हैंडशम थे आदित्य। मेरी दीदी भी गोरी, सुंदर और सलिकेदार हैं। दोनों की जोड़ी बहुत जमती थी। पापा ने बड़ी धूमधाम से दी की शादी की.

दीदी के ससुराल जाते ही मेरी जिंदगी में एक खालीपन भर गया। मुझे हर बात पर दीदी की याद आती.आहिस्ताआहिस्ता दीदी के बगैर जीने की आदत डाल रही थी. ऐसे में दीदी की शादी को 3 साल बीत गए। बीच में 2-3 बार दीदी घर आई थीं पर जीजू सिर्फ 1-2 बार ही आए। बस, फोन पर बातें होतीं. पढाई की वजह से मैं भी 1-2 बार ही दीदी के यहां गई थी, इसलिए जीजू का ज्यादा परिचय नहीं था, पर दीदी से उन की बहुत तारीफ सुनी थी.देखते ही देखते दीदी ने खुशखबरी दी, दीदी मां बनने वाली थीं.

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मैं तो मौसी बनने के खयाल से ही झूम उठी। घर में नन्हें मेहमान के आने की तैयारियां शुरू हो गईं. मम्मीपापा भी नानानानी बनने वाले हैं, यह सुन कर खुशी से पागल हो गए। पर दीदी की तबियत बहुत ही खराब रहने लगी. जीजू दी को अपनी नजर के सामने रखना चाहते थे और मम्मीपापा दीदी को हमारे घर लाना चाहते थे.जीजू के मम्मी की तबियत भी कुछ ठीक नहीं रहती थी तो वे भी दी की देखभाल नहीं कर पातीं, इसलिए यह तय हुआ कि अगले कुछ महीने दीदी हमारे यहां रहेंगी और डिलिवरी के वक्त जीजू के यहां, दीदी को पापा हवाईजहाज से ले आए। उन के आते ही घर चहक उठा और मैं इसलिए ज्यादा खुश थी कि मेरा ग्रैजुएशन पूरा हो गया था तो अब आराम से दी के साथ वक्त बिता सकती थी.

मैं दीदी का बहुत खयाल रखती थी और मम्मी भी दीदी को बिस्तर से उठने नहीं देती थीं, फिर भी दी की तबियत दिनबदिन खराब होती चली गई और 7वें महीने में ही एक दिन उन्हें जोर का दर्द उठा और उन्हें अस्पताल ले जाना पड़ा. जीजू भी तुरंत आ गए पर डाक्टर की लाख कोशिशों के बाद भी बच्चे को नहीं बचा पाए. दी और जीजू दोनों ही टूट गए। तब मां ने कहा कि बच्चे के साथ लेनदेन नहीं होगा, कुदरत दोबारा सुख देगा, पर डाक्टर ने कहा कि दोबारा मां बनने की सोचिएगा भी नहीं, क्योंकि सागरिका का यूट्रस कमजोर है। 9 महीने तक बच्चे को कोख में नहीं पाल सकता… यह सुन कर दी को बहुत बड़ा झटका लगा, एक स्त्री तभी संपूर्ण कहलाती है जब उसे मां का सुख प्राप्त होता है। दीदी पर भी यही बात लागू होती थी। दीदी मानों बुत बन गई,जिंदगी से रस ही उड़ गया, अकेली बैठी पता नहीं क्या सोचती रहती। सारे घर वाले मिल कर भी दी को खुश नहीं रख पा रहे थे। 2 महीने बीत गए पर दी अपने बच्चे को भूल ही नहीं पा रही थी.

जीजू दी को लेने आ गए पर दी की तबियत इतनी ठीक नहीं थी तो उन का ध्यान रखने के लिए मम्मीपापा ने मुझे दी के साथ सूरत भेज दिया, मैं और जीजू दी को हंसाने की भरपूर कोशिश करते रहते थे, पर दी को डिप्रैशन से बाहर निकालने में नाकामयाब रहे, दी खानेपीने में भी लापरवाह रहने लगीं और न किसी चीज में दिलचस्पी ले रही थीं, एक दिन हीमोग्लोबिन कम हो जाने की वजह से वे चक्कर खा कर गिर गईं, तुरंत ऐंबुलेंस बुला कर उन्हें अस्पताल ले गए, डाक्टर ने कहा कि औक्सीजन और ब्लड चढ़ाना होगा और 3-4 दिन अस्पताल में ऐडमिट करना पड़ेगा, दी को अस्पताल में ऐडमिट करना पड़ा। घर और जीजू की जिम्मेदारी मेरे उपर आ गई। अस्पताल वाले वहां किसी को रहने नहीं देते, वहां का स्टाफ ही मरीज को देखता. मैं ने अच्छे से सब संभाल लिया पर दीदी की चिंता में जीजू भी अपनी सेहत के प्रति लापरवाह होते चले गए.

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अगली रात 2 बजे मैं पानी पीने उठी तो देखा कि जीजू बालकनी में खड़े आसमान की तरफ देख कर चिंता में जाग रहे थे. नींद कोसों दूर थी. मुझ से जीजू की यह हालत देखी नहीं गई. मैं आहिस्ता से जीजू के पास गई और सांत्वना देते हुए पानी का गिलास दे कर समझाने लगी कि सब ठीक हो जाएगा सो जाइए, जीजू मुझ से लिपट कर रोने लगे,”सनम, हम ने किसी का क्या बिगाड़ा था…क्यों हुआ हमारे साथ यह सब…”

मैं ने भी जीजू को रोने दिया ताकि दर्द थोड़ा कम हो, पर आहिस्ताआहिस्ता हम दोनों पर पता नहीं कौन सा नशा छाने लगा,  विपरीत सैक्स की पहली छुअन पा कर थोड़ी मैं बहक गई और बहुत महीनों के प्यासे जीजू मुझ में दीदी को ढूंढ़ने लगे। नजदीकियों ने कब हम दोनों को अपनी आगोश में ले लिया पता ही नहीं चला और जो नहीं होना चाहिए वह हो गया.

सारी सीमाओं को लांघने के बाद हम दोनों को होश आया, मैं तो धक से रह गई, ‘हाय, यह मैं क्या कर बैठी? दी को क्या मुंह दिखाऊंगी, मम्मीपापा से कैसे नजरें मिला पाऊंगी’, पर जो हुआ उसे कैसे झुठलाऊं, जीजू मुझ से नजरें तक नहीं मिला पा रहे थे, बारबार मुझे सौरी कहते रहे पर उन के अकेले की गलती भी नहीं थी, न उन्होंने जबरदस्ती की थी, इस गुनाह में मैं बराबर की हिस्सेदार थी, हम दोनों ही बहक गए थे.

जीजू ने अब घर आना बंद कर दिया। औफिस में ही लंच मंगवा लेते थे और वहीं पर सो जाते थे। दीदी 1 सप्ताह बाद अच्छी हो कर घर आ गई, अब जीजू को घर आए बगैर चारा नहीं था। दी अब थोड़ी मूड़ में भी रहने लगी थीं, पर मुझे और जीजू को चुप देख कर टोकतीं,”आखिर आप दोनों को हुआ क्या है? जो पूरा घर सिर पर लिए घूमते थे अचानक यह परिवर्तन क्यों? अब तो मैं भलीचंगी हूं। अब तो दोनों खुश रहो…” पर क्या जवाब देते हम दोंनो।

जीजू दी का बहुत खयाल रखते थे, मगर मेरे साथ बात करने से भी कतराते थे। चाह कर भी हम दोनों उस कमजोर पल को भूला नहीं पा रहे थे। याद आते ही सिर शर्म से झुक जाता था. अब मैं यहां से भाग जाना चाहती थी। मैंने दी से कहा,”दी, अब आप ठीक हो तो मैं घर जाऊं?”

मम्मीपापा कुछ दिन बाद दी को देखने आने वाले थे, तो उन्होंने कहा कि इतनी जल्दी क्या है तुझे, अब मम्मीपापा के साथ ही जाना और जबरदस्ती रोक लिया। ऐसा करते 1 महीना बीत गया और एक दिन खाने के टेबल पर दाल की खुशबू लेते ही मुझे जोरदार मितली उठी। मैं दौड़ कर बाथरूम चली गई और वहां उलटी हो गई। मैं सोच में पड़ गई कि पेट में तो कोई गड़बड़ नहीं फिर यह उलटी किस बात की? और सोचते ही मेरे रौंगटे खड़े हो गए। आंखों में आंसू आ गए। आजतक दी की हर चीज छिप कर इस्तेमाल कर लेती थी तब उन के डांटने पर भी मजे लेती थी मैं, आज पहली बार दी को जान से भी ज्यादा अजिज जीजू के साथ अंतरंग पल बिताने पर घोर पछतावा हो रहा था और खुद के प्रति तिरस्कार।

किस मुंह से उन्हें बताऊं कि दी, आजतक मैं ने आप की हर चीज को बिना बताए इस्तेमाल किया। ऐसा तो सपने में भी नहीं सोचा था कि जिस पर सिर्फ और सिर्फ आप का अधिकार है एक दिन उसे भी मैं… ओह, यह मैं क्या कर बैठी। आज अनजाने में ही सही अपनी उस आदत को दोहराने पर खुद पर शर्म आ रही थी.इतने में बाथरूम के बाहर से दीदी ने पूछा,”सनम, क्या हुआ तू ठीक तो है? चल बाहर आ हम डाक्टर को दिखा देते हैं. मैं स्वस्थता का चोला पहन कर बाहर आई और दी से कहा कि शायद ऐसीडिटी हो गई है, थोड़ा आराम कर लेती हूं ठीक हो जाऊंगी। अपने रूम में आ कर बिस्तर पर ओंधे मुंह लेटे इतना रोई कि आंखें सूख गईं.

मन में खयालों का बवंडर उठ रहा था पर किसी निर्णय पर नहीं पहुंच पा रही थी,  ऐसे ही पूरा दिन पड़ी रही,  उलटी के डर से रात को डिनर के लिए भी नहीं उठी, थोड़ा जूस पी कर सो गई. दूसरे दिन मम्मीपापा और समर्थ आ गए, दीवाली की छुट्टियां थीं तो मम्मीपापा कुछ दिन रुकने का प्लान बना कर आए थे. मैं यहां से कहीं भाग जाना चाहती थी पर जाऊं तो कहां जाऊं…

मम्मीपापा और दी पीछे गार्डन में गप्पें लड़ा रहे थे कि इतने में जीजू औफिस से आ गए, उस एकांत का फायदा उठा कर मैं ने जीजू से अपने मन की शंका बता दी, जीजू घबरा गए। उन की आंखें पछतावे के आंसू से नम हो गईं, हम दोनों में से कोई एकदूसरे को आश्वासन देने की स्थिति में नहीं थे, जैसे पाप छत पर चढ़ कर चिल्लाता है वैसे ही मेरी उलटियों का सिलसिला दूसरे दिन भी चालू रहा, उस दिन तो दी गुस्सा हो गईं,”सनम, 2 दिन से तबियत खराब है, न ठीक से खाना खाती है न दवा लेती है, अब हद हो गई, जबरदस्ती डाक्टर के पास ले गईं, मेरे तो पसीने छूट गए.

डाक्टर ने सारे टेस्ट किए और रिपोर्ट देखते ही दी को बधाई देते हुए कहा,”बधाई हो, यह मां बनने वाली हैं…”दी की आंखें बाहर निकल आईं, होंठ सील गए मानों बदन का पूरा खून जम गया हो। मैं सिर झुकाए बैठी रही। कोई चारा न था, क्या रिएक्ट करती? दी जल्दी ही डाक्टर का शुक्रिया अदा कर बाहर चली गईं, मैं भी पीछेपीछे चल दी। घर आते ही दी का आक्रोश ज्वालामुखी की तरह फूट पड़ा। सब से पहले यही सवाल किया,”कौन है वह? आदित्य…”

मैं ने हलका सा सिर हिला कर हां कहा तो दी बोली,”सनम, तुम ने मेरी सारी चीजें आजतक इस्तेमाल कीं मैं बरदाश्त करती रही पर अब आदित्य को भी…?” इतना सुनते ही मम्मी ने मेरे गाल पर थप्पड़ जङ दिया और पापा तो मानों मेरा मुंह तक देखने को तैयार नहीं थे, पीछे मुड़ कर बोले,”कल ही नर्सिंगहोम जा कर सब क्लियर करवा लो. पर इतना सुनते ही दी को पता नहीं क्या हुआ कि मुझ से लिपट कर चिल्लाते हुए बोलीं,”नहीं, मैं अपने बच्चे की हत्या करने की किसी को इजाजत नहीं दूंगी, यह मेरा बच्चा है मुझे हर कीमत पर चाहिए। दी मेरा सिर चुमती रहीं मानों बच्चे के आने की खुशी में मेरी और जीजू की गलती माफ करने के मूड़ में हों। दी खुशी से झूम उठीं और मेरे सामने दया की भीख मांगते बोलीं,”सनम, वादा कर तू मेरे बच्चे को जन्म देगी, मेरी झोली ममता से भर दे मेरी बहन। तेरा यह उपकार मैं जिंदगीभर नहीं भूल पाऊंगी।”

मैं असमंजस में थी और मम्मीपापा इस बात से बिलकुल सहमत नहीं थे। उन्होंने दी को समझाया कि तुम्हारी खुशी के लिए सनम की जिंदगी बरबाद नहीं कर सकते। जीजू किसी भी बात की तरफदारी करने की परिस्थिति में नहीं थे। हाथ जोड़ कर इतना ही बोले,”हो सके तो मुझे माफ़ कर दीजिएगा, फिर दीदी को भी लगा की सनम की जिंदगी का सवाल है, मेरी खुशी के लिए सनम की जिंदगी बरबाद नहीं कर सकती। तो दी ने मुझे कहा कल ही हम अस्पताल जाते हैं, तुम तैयार रहना.

मैं अपनी दी की मनोदशा से वाकिफ थी। दीदी दिल से चाहती थीं कि यह  बच्चा किसी भी हाल में जन्म ले कर उन का आंचल ममता से भर दे, पर उन का मन इजाजत नहीं दे रहा था। दी की लाचारी उन की आंखों से आंसू बन कर बह रही थी और उन आंसूओं ने मुझे एक ठोस निर्णय लेने पर मजबूर कर दिया।

मैं ने दी को अपने पास बैठाया और उन का हाथ अपने हाथों में ले कर वादा किया,”दी, मेरी जिंदगी का जो होना है हो जाए पर मैं आप को मां का सुख दे कर आप को संपूर्ण स्त्री बनने का सुख जरूर दूंगी। मेरी कोख में पल रहा बच्चा आप की अमानत है। मैं इस बच्चे को जन्म दूंगी फिर जो हो मेरे साथ। कोई ऐसा लड़का मिल जाएगा जो मुझे मेरी कमी और खूबी के साथ मुझे अपनाएगा। बाकी जो होगा देखा जाएगा,” इतना सुनते ही जैसे पहली बारिश का स्पर्श पाते पतझड़ वसंत में बदल जाती है वैसे ही दीदी के भीतर नवचेतना का संचार हुआ और मुझ से लिपट कर बोलीं,”सनम, आज पहली बार तेरा मेरी चीज का इस्तेमाल करने पर मैं नाराज नहीं, जानेअनजाने मेरी चीजों का इस्तेमाल करने की बहुत बड़ी कीमत तुम ने चुका दी है।”

मम्मीपापा को भी मेरे निर्णय के आगे झुकना पड़ा। बच्चों के प्यार के आगे मांबाप हमेशा झुकते जो आए हैं, वक्त अपनी गति से बह रहा था। दी ने 8 महीने एक मां की तरह मेरा खयाल रखा, पर 9वें महीना लगते ही एक दिन बाथरूम में नहाते वक्त मेरा पैर फिसला और दर्द के साथ ब्लिडिंग होने लगा। चीखते हुए मैं बेहोश हो गई। आंखें खुलीं तो खुद को अस्पताल के बिस्तर पर पाया। मेरी आगोश में फूल सी बच्ची सो रही थी। डाक्टर ने कहा,”अभिनंदन… आप को बेटी हुई है। मैं ने बच्ची दीदी के हाथों में सौंपते हुए कहा,”दी, संभालिए अपनी अमानत।”

जिंदगी जैसे मेरी सांसों से नाता छुड़ा कर छूट रही थी, आंखों के आगे अंधेरा छाने लगा, हृदय की गति मंद होती महसूस हो रही थी। सब के चेहरे धुंधले दिख रहे थे और मम्मी की आवाज मानों दूर किसी पर्वत के पीछे से आ रही हो ऐसा महसूस हो रहा था,”सनम बेटा, आंखें खोल… क्या हो रहा है तुझे। डाक्टर, देखिए मेरी बच्ची को… सनम बेटे, आंखें खोल…” और आज भी मम्मी के मुंह से बेटा शब्द महसूस करते पड़ी रही। आज तो मम्मी सनम से सन्नूडी पर आएगी फिर भी उठा नहीं जाएगा, अनंत की डगर पर प्रस्थान जो कर रही हूं। एक तसल्ली लिए कि दीदी की इस्तेमाल की हुई सारी चीजों की कीमत चुका कर जा रही हूं। अब अलविदा कहने का भी होश नहीं रहा, आंखें हमेशा के लिए बंद जो हो रही थीं।

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लेखिका- भावना ठाकर

मेरी आंखें बंद हो रही हैं, सांसें तन का साथ छोड़ रही हैं। ऐसा लग रहा है मानों मम्मी की आवाज दूर बहुत दूर से आ रही है,”सनम, आंखें खोलो बेटा, क्या हो रहा है तुझे सनम…”मैं आंखें नहीं खोल सकती। शायद मेरे पास ज्यादा वक्त नहीं, पर अनंत की डगर पर जातेजाते मेरी आंखों के सामने जिंदगी की हर घटना किसी फिल्म की तरह प्रतिबिंबित हो रही हैं। मम्मी के उस वाक्य ने मुझे स्कूल से ले कर अब तक की जिंदगी का स्मरण करा दिया और मैं अतीत की गलियों का सफर करते कुछ साल पीछे चली गई…

रोज सुबह मम्मी कितनी सारी आवाज लगा कर उठाती थीं, “सनम बेटा, उठो स्कूल के लिए देर हो रही है.मुझे भी मम्मी के मुंह से बेटा शब्द सुनना बहुत अच्छा लगता है तो जानबूझ कर बिस्तर पर ही पड़ी रहती और जब तक मम्मी सनम से सन्नूडी पर आ कर डांटती नहीं और मुझे जगाने के चक्कर में पूरा घर जग जाता तब दौड़ती हुई बाथरूम में घुस जाती थी। और मम्मी भी झूठा गुस्सा जताते रसोई में सब के लिए नाश्ता बनाने चली जातीं.

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मम्मीपापा, सागरिका दीदी, समर्थ और मुझे मिला कर कुल 5 लोगों का हमारा छोटा सा परिवार है। एकदूसरे के साथ भावनात्मक रूप से जुड़े शांति से जिंदगी जी रहे थे। मेरी सागरिका दीदी बहुत शांत और सरल स्वभाव की हैं और मैं थोड़ी सी चंचल। दीदी मुझे बहुत प्यार करती हैं पर एक बात मेरी दीदी को बिलकुल पसंद नहीं। दीदी की अपनी चीजें  कोई और इस्तेमाल करें वह उन्हें  बिलकुल पसंद नहीं था। पापा हमेशा तीनों बच्चों के लिए एक सी चीजें  लाते थे, पर मुझे हमेशा दीदी की चीजें  ही ज्यादा अच्छी लगती थीं, तो चोरीछिपे दीदी की चीजें इस्तेमाल कर लिया करती थी तो उस पर दीदी चिल्ला कर पूरे घर को सिर पर ले लेतीं।

घर में किसी बात पर कभी क्लेश नहीं होता था पर इस बात पर जंग छिड़ जाती। मम्मीपापा के बहुत डांटने पर,”सौरी, अगली बार ऐसा नहीं करूंगी…” बोल कर मैं छिटक लेती.दीदी मुझ से 3 साल बड़ी थीं। देखते ही देखते दीदी ग्रैजुएट हो गईं और मैं कालेज में आ गई। पापा दीदी के लिए लड़का ढूंढ़ने लगे और वह दिन भी आ गया। दीदी के लिए एक बहुत ही बेहतरीन रिश्ता आया। सूरत में अपना बिजनैस संभाल रहे आदित्य के साथ दीदी का रिश्ता पक्का हो गया। आदित्य के मम्मीपापा मुंबई में रहते थे क्योंकि उन की 1 ब्रांच वहां पर थी। बहुत ही सरल व समझदार और दिखने में हैंडशम थे आदित्य। मेरी दीदी भी गोरी, सुंदर और सलिकेदार हैं। दोनों की जोड़ी बहुत जमती थी। पापा ने बड़ी धूमधाम से दी की शादी की.

दीदी के ससुराल जाते ही मेरी जिंदगी में एक खालीपन भर गया। मुझे हर बात पर दीदी की याद आती.आहिस्ताआहिस्ता दीदी के बगैर जीने की आदत डाल रही थी. ऐसे में दीदी की शादी को 3 साल बीत गए। बीच में 2-3 बार दीदी घर आई थीं पर जीजू सिर्फ 1-2 बार ही आए। बस, फोन पर बातें होतीं. पढाई की वजह से मैं भी 1-2 बार ही दीदी के यहां गई थी, इसलिए जीजू का ज्यादा परिचय नहीं था, पर दीदी से उन की बहुत तारीफ सुनी थी.देखते ही देखते दीदी ने खुशखबरी दी, दीदी मां बनने वाली थीं.

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मैं तो मौसी बनने के खयाल से ही झूम उठी। घर में नन्हें मेहमान के आने की तैयारियां शुरू हो गईं. मम्मीपापा भी नानानानी बनने वाले हैं, यह सुन कर खुशी से पागल हो गए। पर दीदी की तबियत बहुत ही खराब रहने लगी. जीजू दी को अपनी नजर के सामने रखना चाहते थे और मम्मीपापा दीदी को हमारे घर लाना चाहते थे.जीजू के मम्मी की तबियत भी कुछ ठीक नहीं रहती थी तो वे भी दी की देखभाल नहीं कर पातीं, इसलिए यह तय हुआ कि अगले कुछ महीने दीदी हमारे यहां रहेंगी और डिलिवरी के वक्त जीजू के यहां, दीदी को पापा हवाईजहाज से ले आए। उन के आते ही घर चहक उठा और मैं इसलिए ज्यादा खुश थी कि मेरा ग्रैजुएशन पूरा हो गया था तो अब आराम से दी के साथ वक्त बिता सकती थी.

मैं दीदी का बहुत खयाल रखती थी और मम्मी भी दीदी को बिस्तर से उठने नहीं देती थीं, फिर भी दी की तबियत दिनबदिन खराब होती चली गई और 7वें महीने में ही एक दिन उन्हें जोर का दर्द उठा और उन्हें अस्पताल ले जाना पड़ा. जीजू भी तुरंत आ गए पर डाक्टर की लाख कोशिशों के बाद भी बच्चे को नहीं बचा पाए. दी और जीजू दोनों ही टूट गए। तब मां ने कहा कि बच्चे के साथ लेनदेन नहीं होगा, कुदरत दोबारा सुख देगा, पर डाक्टर ने कहा कि दोबारा मां बनने की सोचिएगा भी नहीं, क्योंकि सागरिका का यूट्रस कमजोर है। 9 महीने तक बच्चे को कोख में नहीं पाल सकता… यह सुन कर दी को बहुत बड़ा झटका लगा, एक स्त्री तभी संपूर्ण कहलाती है जब उसे मां का सुख प्राप्त होता है। दीदी पर भी यही बात लागू होती थी। दीदी मानों बुत बन गई,जिंदगी से रस ही उड़ गया, अकेली बैठी पता नहीं क्या सोचती रहती। सारे घर वाले मिल कर भी दी को खुश नहीं रख पा रहे थे। 2 महीने बीत गए पर दी अपने बच्चे को भूल ही नहीं पा रही थी.

जीजू दी को लेने आ गए पर दी की तबियत इतनी ठीक नहीं थी तो उन का ध्यान रखने के लिए मम्मीपापा ने मुझे दी के साथ सूरत भेज दिया, मैं और जीजू दी को हंसाने की भरपूर कोशिश करते रहते थे, पर दी को डिप्रैशन से बाहर निकालने में नाकामयाब रहे, दी खानेपीने में भी लापरवाह रहने लगीं और न किसी चीज में दिलचस्पी ले रही थीं, एक दिन हीमोग्लोबिन कम हो जाने की वजह से वे चक्कर खा कर गिर गईं, तुरंत ऐंबुलेंस बुला कर उन्हें अस्पताल ले गए, डाक्टर ने कहा कि औक्सीजन और ब्लड चढ़ाना होगा और 3-4 दिन अस्पताल में ऐडमिट करना पड़ेगा, दी को अस्पताल में ऐडमिट करना पड़ा। घर और जीजू की जिम्मेदारी मेरे उपर आ गई। अस्पताल वाले वहां किसी को रहने नहीं देते, वहां का स्टाफ ही मरीज को देखता. मैं ने अच्छे से सब संभाल लिया पर दीदी की चिंता में जीजू भी अपनी सेहत के प्रति लापरवाह होते चले गए.

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अगली रात 2 बजे मैं पानी पीने उठी तो देखा कि जीजू बालकनी में खड़े आसमान की तरफ देख कर चिंता में जाग रहे थे. नींद कोसों दूर थी. मुझ से जीजू की यह हालत देखी नहीं गई. मैं आहिस्ता से जीजू के पास गई और सांत्वना देते हुए पानी का गिलास दे कर समझाने लगी कि सब ठीक हो जाएगा सो जाइए, जीजू मुझ से लिपट कर रोने लगे,”सनम, हम ने किसी का क्या बिगाड़ा था…क्यों हुआ हमारे साथ यह सब…”

मैं ने भी जीजू को रोने दिया ताकि दर्द थोड़ा कम हो, पर आहिस्ताआहिस्ता हम दोनों पर पता नहीं कौन सा नशा छाने लगा,  विपरीत सैक्स की पहली छुअन पा कर थोड़ी मैं बहक गई और बहुत महीनों के प्यासे जीजू मुझ में दीदी को ढूंढ़ने लगे। नजदीकियों ने कब हम दोनों को अपनी आगोश में ले लिया पता ही नहीं चला और जो नहीं होना चाहिए वह हो गया.

सारी सीमाओं को लांघने के बाद हम दोनों को होश आया, मैं तो धक से रह गई, ‘हाय, यह मैं क्या कर बैठी? दी को क्या मुंह दिखाऊंगी, मम्मीपापा से कैसे नजरें मिला पाऊंगी’, पर जो हुआ उसे कैसे झुठलाऊं, जीजू मुझ से नजरें तक नहीं मिला पा रहे थे, बारबार मुझे सौरी कहते रहे पर उन के अकेले की गलती भी नहीं थी, न उन्होंने जबरदस्ती की थी, इस गुनाह में मैं बराबर की हिस्सेदार थी, हम दोनों ही बहक गए थे.

जीजू ने अब घर आना बंद कर दिया। औफिस में ही लंच मंगवा लेते थे और वहीं पर सो जाते थे। दीदी 1 सप्ताह बाद अच्छी हो कर घर आ गई, अब जीजू को घर आए बगैर चारा नहीं था। दी अब थोड़ी मूड़ में भी रहने लगी थीं, पर मुझे और जीजू को चुप देख कर टोकतीं,”आखिर आप दोनों को हुआ क्या है? जो पूरा घर सिर पर लिए घूमते थे अचानक यह परिवर्तन क्यों? अब तो मैं भलीचंगी हूं। अब तो दोनों खुश रहो…” पर क्या जवाब देते हम दोंनो।

जीजू दी का बहुत खयाल रखते थे, मगर मेरे साथ बात करने से भी कतराते थे। चाह कर भी हम दोनों उस कमजोर पल को भूला नहीं पा रहे थे। याद आते ही सिर शर्म से झुक जाता था. अब मैं यहां से भाग जाना चाहती थी। मैंने दी से कहा,”दी, अब आप ठीक हो तो मैं घर जाऊं?”

मम्मीपापा कुछ दिन बाद दी को देखने आने वाले थे, तो उन्होंने कहा कि इतनी जल्दी क्या है तुझे, अब मम्मीपापा के साथ ही जाना और जबरदस्ती रोक लिया। ऐसा करते 1 महीना बीत गया और एक दिन खाने के टेबल पर दाल की खुशबू लेते ही मुझे जोरदार मितली उठी। मैं दौड़ कर बाथरूम चली गई और वहां उलटी हो गई। मैं सोच में पड़ गई कि पेट में तो कोई गड़बड़ नहीं फिर यह उलटी किस बात की? और सोचते ही मेरे रौंगटे खड़े हो गए। आंखों में आंसू आ गए। आजतक दी की हर चीज छिप कर इस्तेमाल कर लेती थी तब उन के डांटने पर भी मजे लेती थी मैं, आज पहली बार दी को जान से भी ज्यादा अजिज जीजू के साथ अंतरंग पल बिताने पर घोर पछतावा हो रहा था और खुद के प्रति तिरस्कार।

किस मुंह से उन्हें बताऊं कि दी, आजतक मैं ने आप की हर चीज को बिना बताए इस्तेमाल किया। ऐसा तो सपने में भी नहीं सोचा था कि जिस पर सिर्फ और सिर्फ आप का अधिकार है एक दिन उसे भी मैं… ओह, यह मैं क्या कर बैठी। आज अनजाने में ही सही अपनी उस आदत को दोहराने पर खुद पर शर्म आ रही थी.इतने में बाथरूम के बाहर से दीदी ने पूछा,”सनम, क्या हुआ तू ठीक तो है? चल बाहर आ हम डाक्टर को दिखा देते हैं. मैं स्वस्थता का चोला पहन कर बाहर आई और दी से कहा कि शायद ऐसीडिटी हो गई है, थोड़ा आराम कर लेती हूं ठीक हो जाऊंगी। अपने रूम में आ कर बिस्तर पर ओंधे मुंह लेटे इतना रोई कि आंखें सूख गईं.

मन में खयालों का बवंडर उठ रहा था पर किसी निर्णय पर नहीं पहुंच पा रही थी,  ऐसे ही पूरा दिन पड़ी रही,  उलटी के डर से रात को डिनर के लिए भी नहीं उठी, थोड़ा जूस पी कर सो गई. दूसरे दिन मम्मीपापा और समर्थ आ गए, दीवाली की छुट्टियां थीं तो मम्मीपापा कुछ दिन रुकने का प्लान बना कर आए थे. मैं यहां से कहीं भाग जाना चाहती थी पर जाऊं तो कहां जाऊं…

मम्मीपापा और दी पीछे गार्डन में गप्पें लड़ा रहे थे कि इतने में जीजू औफिस से आ गए, उस एकांत का फायदा उठा कर मैं ने जीजू से अपने मन की शंका बता दी, जीजू घबरा गए। उन की आंखें पछतावे के आंसू से नम हो गईं, हम दोनों में से कोई एकदूसरे को आश्वासन देने की स्थिति में नहीं थे, जैसे पाप छत पर चढ़ कर चिल्लाता है वैसे ही मेरी उलटियों का सिलसिला दूसरे दिन भी चालू रहा, उस दिन तो दी गुस्सा हो गईं,”सनम, 2 दिन से तबियत खराब है, न ठीक से खाना खाती है न दवा लेती है, अब हद हो गई, जबरदस्ती डाक्टर के पास ले गईं, मेरे तो पसीने छूट गए.

डाक्टर ने सारे टेस्ट किए और रिपोर्ट देखते ही दी को बधाई देते हुए कहा,”बधाई हो, यह मां बनने वाली हैं…”दी की आंखें बाहर निकल आईं, होंठ सील गए मानों बदन का पूरा खून जम गया हो। मैं सिर झुकाए बैठी रही। कोई चारा न था, क्या रिएक्ट करती? दी जल्दी ही डाक्टर का शुक्रिया अदा कर बाहर चली गईं, मैं भी पीछेपीछे चल दी। घर आते ही दी का आक्रोश ज्वालामुखी की तरह फूट पड़ा। सब से पहले यही सवाल किया,”कौन है वह? आदित्य…”

मैं ने हलका सा सिर हिला कर हां कहा तो दी बोली,”सनम, तुम ने मेरी सारी चीजें आजतक इस्तेमाल कीं मैं बरदाश्त करती रही पर अब आदित्य को भी…?” इतना सुनते ही मम्मी ने मेरे गाल पर थप्पड़ जङ दिया और पापा तो मानों मेरा मुंह तक देखने को तैयार नहीं थे, पीछे मुड़ कर बोले,”कल ही नर्सिंगहोम जा कर सब क्लियर करवा लो. पर इतना सुनते ही दी को पता नहीं क्या हुआ कि मुझ से लिपट कर चिल्लाते हुए बोलीं,”नहीं, मैं अपने बच्चे की हत्या करने की किसी को इजाजत नहीं दूंगी, यह मेरा बच्चा है मुझे हर कीमत पर चाहिए। दी मेरा सिर चुमती रहीं मानों बच्चे के आने की खुशी में मेरी और जीजू की गलती माफ करने के मूड़ में हों। दी खुशी से झूम उठीं और मेरे सामने दया की भीख मांगते बोलीं,”सनम, वादा कर तू मेरे बच्चे को जन्म देगी, मेरी झोली ममता से भर दे मेरी बहन। तेरा यह उपकार मैं जिंदगीभर नहीं भूल पाऊंगी।”

मैं असमंजस में थी और मम्मीपापा इस बात से बिलकुल सहमत नहीं थे। उन्होंने दी को समझाया कि तुम्हारी खुशी के लिए सनम की जिंदगी बरबाद नहीं कर सकते। जीजू किसी भी बात की तरफदारी करने की परिस्थिति में नहीं थे। हाथ जोड़ कर इतना ही बोले,”हो सके तो मुझे माफ़ कर दीजिएगा, फिर दीदी को भी लगा की सनम की जिंदगी का सवाल है, मेरी खुशी के लिए सनम की जिंदगी बरबाद नहीं कर सकती। तो दी ने मुझे कहा कल ही हम अस्पताल जाते हैं, तुम तैयार रहना.

मैं अपनी दी की मनोदशा से वाकिफ थी। दीदी दिल से चाहती थीं कि यह  बच्चा किसी भी हाल में जन्म ले कर उन का आंचल ममता से भर दे, पर उन का मन इजाजत नहीं दे रहा था। दी की लाचारी उन की आंखों से आंसू बन कर बह रही थी और उन आंसूओं ने मुझे एक ठोस निर्णय लेने पर मजबूर कर दिया।

मैं ने दी को अपने पास बैठाया और उन का हाथ अपने हाथों में ले कर वादा किया,”दी, मेरी जिंदगी का जो होना है हो जाए पर मैं आप को मां का सुख दे कर आप को संपूर्ण स्त्री बनने का सुख जरूर दूंगी। मेरी कोख में पल रहा बच्चा आप की अमानत है। मैं इस बच्चे को जन्म दूंगी फिर जो हो मेरे साथ। कोई ऐसा लड़का मिल जाएगा जो मुझे मेरी कमी और खूबी के साथ मुझे अपनाएगा। बाकी जो होगा देखा जाएगा,” इतना सुनते ही जैसे पहली बारिश का स्पर्श पाते पतझड़ वसंत में बदल जाती है वैसे ही दीदी के भीतर नवचेतना का संचार हुआ और मुझ से लिपट कर बोलीं,”सनम, आज पहली बार तेरा मेरी चीज का इस्तेमाल करने पर मैं नाराज नहीं, जानेअनजाने मेरी चीजों का इस्तेमाल करने की बहुत बड़ी कीमत तुम ने चुका दी है।”

मम्मीपापा को भी मेरे निर्णय के आगे झुकना पड़ा। बच्चों के प्यार के आगे मांबाप हमेशा झुकते जो आए हैं, वक्त अपनी गति से बह रहा था। दी ने 8 महीने एक मां की तरह मेरा खयाल रखा, पर 9वें महीना लगते ही एक दिन बाथरूम में नहाते वक्त मेरा पैर फिसला और दर्द के साथ ब्लिडिंग होने लगा। चीखते हुए मैं बेहोश हो गई। आंखें खुलीं तो खुद को अस्पताल के बिस्तर पर पाया। मेरी आगोश में फूल सी बच्ची सो रही थी। डाक्टर ने कहा,”अभिनंदन… आप को बेटी हुई है। मैं ने बच्ची दीदी के हाथों में सौंपते हुए कहा,”दी, संभालिए अपनी अमानत।”

जिंदगी जैसे मेरी सांसों से नाता छुड़ा कर छूट रही थी, आंखों के आगे अंधेरा छाने लगा, हृदय की गति मंद होती महसूस हो रही थी। सब के चेहरे धुंधले दिख रहे थे और मम्मी की आवाज मानों दूर किसी पर्वत के पीछे से आ रही हो ऐसा महसूस हो रहा था,”सनम बेटा, आंखें खोल… क्या हो रहा है तुझे। डाक्टर, देखिए मेरी बच्ची को… सनम बेटे, आंखें खोल…” और आज भी मम्मी के मुंह से बेटा शब्द महसूस करते पड़ी रही। आज तो मम्मी सनम से सन्नूडी पर आएगी फिर भी उठा नहीं जाएगा, अनंत की डगर पर प्रस्थान जो कर रही हूं। एक तसल्ली लिए कि दीदी की इस्तेमाल की हुई सारी चीजों की कीमत चुका कर जा रही हूं। अब अलविदा कहने का भी होश नहीं रहा, आंखें हमेशा के लिए बंद जो हो रही थीं।

The post मेरी दीदी: सनम क्यों अपनी बड़ी बहन से नजरें नहीं मिला पा रही थी appeared first on Sarita Magazine.

January 31, 2022 at 09:00AM

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