Thursday 6 January 2022

घर वापसी

राइटर- विनय झैलावत

कोरोना वायरस के दौरान लागू लौकडाउन में पिछले कई दिनों से गोपाल परिवार के साथ अपने घर पर ही था. देश के सब से स्वच्छ शहर इंदौर में मध्य प्रदेश के अन्य शहरों की तुलना में कोरोना के अधिक मामले उसे रहरह कर परेशान कर रहे थे. इंदौर के कुछ हिस्सों में लोगों का प्रशासन के साथ असहयोग भी उसे चिंता में डाल रहा था. लौकडाउन का उल्लंघन भी उसे परेशान कर रहा था. लेकिन वह कर भी क्या सकता था. वह इस महामारी में लौकडाउन का पालन करते हुए घर में बंद था. उस का परिवार भी उस के साथ लौकडाउन का पालन सख्ती से कर रहा था.

गोपाल के परिवार में वृद्ध माता, पत्नी रेखा और 2 बच्चों का अच्छाभला परिवार है. गोपाल खुद एक टीवी मैकेनिक है. अच्छाभला काम है. लेकिन इन दिनों घर पर रह कर एवं लौकडाउन का पालन कर इस महामारी में डाक्‍टरों के निर्देशानुसार अपनी तथा अपने परिवार की सुरक्षा कर रहा था. उसे मालूम था कि इस बीमारी से बचने का एकमात्र रास्ता घर पर रहना ही है.

आज फुरसत के पलों में गोपाल पता नहीं क्यों अतीत की यादों में खो रहा था. उसे आज भी वे दिन याद आ रहे थे जब उस की और उस की पत्नी के बीच झगड़ा हुआ था और बात न्यायालय तक चली गई थी. आज उसे और उस की पत्नी को देख कर कोई इस बात का अंदाजा भी नहीं लगा सकता है. उस के जेहन में अपने उन वकील साहब की याद आ रही थी जो एक दशक पहले उस के तलाक के केस में उस के वकील थे, जिन्होंने उस का परिवार बचाया था. वकील साहब भी उन दिनों उन की तरह ही युवा थे और नईनई वकालत की शुरुआत की थी. आज तो वे शहर के नामीगिरामी वरिष्ठ वकील हैं. उन का नाम भी काफी है. आएदिन समाचारपत्रों में उन का नाम प्रकरणों के संदर्भ में आता रहता है .

यह बात उन दिनों की है जब उस के और उस की पत्नी रेखा के बीच छोटीछोटी बातों ने विकराल रूप ले लिया था. वह नाराज हो कर अपने मायके अपने मातापिता के पास उन के गांव हातौद चली गई थी. इसी नाराजगी में उस ने न्यायालय में तलाक हेतु एक प्रकरण पेश किया. इस के साथ ही उस ने अपने भरणपोषण के लिए दूसरा प्रकरण भी पेश किया. इन प्रकरणों के नोटिस न्यायालय से मिलने पर वह इन वकील साहब से मिला था. वकील साहब ने अपना नयानया औफिस उस के ही मोहल्ले में डाला था.

न्यायालय का नोटिस मिलने पर गोपाल इन्हीं वकील साहब के पास गया. बातचीत में वकील साहब भले और अच्छे लगे. फीस तय कर गोपाल ने कागजात पर अपने हस्ताक्षर कर उन्हें अपने दोनों प्रकरण सौंप दिए. उस ने वकील साहब से पूछा कि उस की पत्नी ने यह प्रकरण किस आधार पर पेश किए हैं?

वकील साहब ने बताया,”हिंदू विवाह अधिनियम के प्रावधानों के अंतर्गत आप की पत्नी ने तलाक का यह प्रकरण पेश किया है. इस में वे आधार दिए गए हैं, जिन के आधार पर तलाक लिया जा सकता है. इन में से एक आधार है क्रूरता. तुम्हारी पत्नी ने इसी आधार पर प्रकरण पेश किया है. उन्होंने आप के खिलाफ मारपीट, गालीगलौच एवं उस के मातापिता के अपमान का आरोप लगाया है.

“दूसरा प्रकरण भारतीय दंड प्रक्रिया के अंतर्गत भरणपोषण की सहायता चाही है. आप की पत्नी का कहना है कि वह कमाती नहीं है, इस कारण उसे भरणपोषण हेतु आप से प्रतिमाह एक राशि चाहिए. यह प्रावधान उसे यह अधिकार देता है.”

नियत तारीख पर वकील साहब ने कागजातों को पेश किया. अब प्रकरण चलना चालू हुए तो चलते रहे. तारीख पर तारीख लगती रही. वह और उस की पत्नी रेखा न्यायालय में आते रहे. उस की पत्नी के साथ उन के ससुर और सास भी रेखा को हिम्मत बंधाने आते थे. उस के ससुर रामप्रसाद और सास गोमतीबाई पास के गांव हातौद में रहते थे. रामप्रसाद एक दरजी थे तथा गांव में उन की दुकान थी. दोनों ही उसे गुस्से से देखते रहते थे .

वकील साहब के पूछने पर गोपाल ने बताया,“मैं ने कभी रेखा के साथ मारपीट नहीं की है. मेरी शिकायत तो उस के मातापिता द्वारा हमारी जिंदगी में किए जाने वाले हस्तक्षेप थे. वे हमारी रोज की जिंदगी में हस्तक्षेप करते थे. यही झगड़े का मूल कारण था.”

वकील साहब ने इस पर उसे समझाया, “प्रकरण पेश करने के लिए आधार बनाने होते हैं. शायद इसलिए यह लिखा गया हो. हो सकता है कि इस में झूठ भी हो. हम अपना पक्ष न्यायालय में प्रस्तुत करेंगे.”

गोपाल की शादी रेखा के साथ हातौद जैसे छोटे गांव में धूमधाम से हुई थी. तब गोपाल के पिताजी भी जीवित थे. दोनों परिवारों में उस समय आपस में काफी स्नेह एवं आदर था. उस के पिताजी की मौत के बाद मामला बिगड़ने लगा. उस के ससुर तथा सास रेखा के प्रति अत्यंत ही संवेदनशील होने लगे. घरपरिवार में उन का हस्तक्षेप दिनप्रतिदिन बढ़ने लगा. आएदिन गोपाल के ससुर रामप्रसाद तथा सास गोमतीबाई उन के घर आने लगे. हर काम और बात पर रामप्रसाद उसे सलाह देने लगे. सास गोमतीबाई भी रेखा के कान भरने लगीं. गोपाल को अपनी और रेखा के जीवन में उन का हस्तक्षेप अखरने लगा. गोपाल की मां भी कभीकभी इस संबंध में उसे बताती थीं. इस को ले कर मां भी अकसर दुखी रहती थीं, लेकिन वे कभी भी हस्तक्षेप नहीं करती थीं.

दिनप्रतिदिन गोपाल की जिंदगी में हस्तक्षेप बढ़ता ही गया. इसे ले कर अब अकसर छोटेमोटे झगड़े होने लगे. रेखा की जब भी अपनी मां से फोन पर लंबीलंबी बातचीत होती थी तब तो निश्चित ही झगड़े होते ही थे. धीरेधीरे इन झगड़ों ने बड़ा रूप ले लिया. सास गोमतीबाई उस की पत्नी को हर मामले पर सलाह देने लगीं. घर पर खाने में क्या बनेगा से ले कर मां की देखभाल व उन पर किए गए खर्च को ले कर झगड़े होने लगे. इन्हीं झगड़ों ने विकराल रूप ले लिया.

एक दिन इस बात पर दोनों पतिपत्नी में झगड़ा हुआ कि आखिर वह मां के लिए इतनी महंगी साड़ी क्यों लाया? रेखा बोली, “मां बाहर जाती ही कहां हैं. इतनी महंगी साड़ी का वह करेंगी क्या?”

इस बात पर गोपाल क्रोधित हो गया. दोनों के बीच झगड़ा बढ़ गया. इस झगड़े के बाद रेखा ने अपने पिता को फोन पर सारी बातें बताई. इस पर रेखा के मातापिता आए और गोपाल पर क्रोधित हो कर अपनी बेटी को अपने घर ले गए.

इस घटना के 1 साल होने के बाद रेखा ने न्यायालय में क्रूरता के आधार पर तलाक का तथा अपने भरणपोषण के मुकदमे न्यायालय में पेश किए. गोपाल ने भी अपने वकील के मारफत जवाब पेश किया. मगर जैसाकि हर मुकदमे में होता है, दोनों ही पक्षों ने कुछ सच तो कुछ झूठ का आधार लिया. दोनों ही ने एकदूसरे को आपसी संबंधों के बिगड़ाव का दोषी माना.

मुकदमे अपनी रफ्तार से चल रहे थे, तारीख पर तारीख. न्यायालय ने आपसी समझौते की कोशिश भी की लेकिन दोनों पक्ष राजी नहीं हुए. गोपाल को दहेज के झूठे मुकदमे में फंसाने की भी धमकी दे डाली. पतिपत्नी के विवादों में अकसर जो आरोप एकदूसरे के खिलाफ लगाए जाते हैं उन में से काफी झूठे भी होते हैं. यही इन मुकदमे में भी हो रहा था. धीरेधीरे दोनों ही पक्ष तारीखों के कारण परेशान होने लगे. कई बरस निकल गए. अब दोनों ही पक्षों को कोई रास्ता समझ में नहीं आ रहा था. दोनों ही पक्षों के मन में अब कहीं न कहीं अपने द्वारा किए गए गलत व्यवहार के प्रति मन में पछतावा भी था.

ऐसी ही एक नियत तारीख पर न्यायालय में गोपाल, रेखा तथा गोपाल के वकील उपस्थित थे. हमेशा की तरह उस के ससुर रामप्रसाद भी थे. जज साहब अपने चैंबर में कोई फैसला लिखवा रहे थे. अनायास ही गोपाल के वकील ने रेखा के पिता से कहा,“रामप्रसादजी रेखा को उस के पति के घर क्यों नहीं भेज रहे हो? दोनों ही युवा हैं. उन के सामने पूरी जिंदगी पड़ी है. उन का जीवन मुकदमेबाजी में बरबाद हो जाएगा. गोपाल से मैं ने बात की है. वह तो रेखा को आज भी ले जाना चाहता है.”

रामप्रसाद ने भी सकारात्मक जवाब दिया. कहा,“वकील साहब, कौन पिता अपनी बेटी को शादी के बाद घर बैठाना पसंद करेगा? बहुत तकलीफदेह होता है एक शादीशुदा बेटी को घर रखना. रोज रेखा की मां रोती है. मेरी तकलीफ का अंदाजा आप लगा सकते हो. अगर गोपाल मेरी बेटी को अपने घर ले जाए तथा अच्छी तरह रखे तो मुझे क्या एतराज हो सकता है,” यह कहते हुए रामप्रसाद की आंखें भर आईं.

इस पर वकील साहब ने गोपाल की तरफ मुड़ कर उस से पूछा, “हां, तो गोपाल क्या कहना है? तुम अपनी पत्नी को ले जाने के लिए तैयार हो?”

इस पर गोपाल ने कहा, “वकील साहब, हम पतिपत्नी के बीच तो पहले भी कोई समस्या नहीं थी. यदि मेरे सासससुर हमारी जिंदगी में हस्तक्षेप कम कर दें तो मैं आज और इसी क्षण रेखा को ले जाने के लिए तैयार हूं. यह वादा करने के लिए भी तैयार हूं कि उसे कोई तकलीफ नहीं होने दूंगा.”

वकील साहब ने रेखा के पिता से कहा, “आप अपनी बेटी की जिंदगी में खुशियां चाहते हैं या नहीं?”

रामप्रसाद बोले, “रेखा तो हमारी जिंदगी है. इकलौती संतान होने के कारण हमें उस की चिंता रहती है. इसलिए रेखा की मां भी उसे फोन करती रहती हैं. हम इसी चिंता के कारण इंदौर अधिक आते हैं. कभी कुछ काम होता है तो कभी रेखा की चिंता.”

वकील साहब ने फिर समझाया, “यदि आप लोगों के हस्तक्षेप से पतिपत्नी के जीवन में अशांति हो रही है तो ऐसी चिंता किस काम की… यह उन का जीवन खाक कर देगी. आप यदि कुछ समय तक आना और फोन करना कम कर दें और आप की बेटी खुशी से अपने पति के साथ रहे तो आप को कोई एतराज तो नहीं है?”

रामप्रसाद ने भी बगैर कोई समय गवाएं कहा, “भला हमें एतराज क्यों होने लगा? हमें तो अपनी बेटी की खुशियों से मतलब है.”

इतने में ही जज साहब अपने चैंबर से बाहर आए. गोपाल के वकील साहब ने सारी बातें जज साहब को बताई. जज साहब भी खुश हुए. दोनों को समझाया भी. उन्होंने रामप्रसाद से कहा, “हम आप की चिंता को भी समझते हैं. हम रेखा के अपने ससुराल जाने के बाद भी कुछ समय तारीखे लगाएंगे. इन तारीखों पर गोपाल और रेखा न्यायालय में आप से मिल सकेंगे. रेखा भी आप को बता सकेगी कि उसे अपने ससुराल में कोई तकलीफ तो नहीं है. उस के साथ प्रेम और सम्मानपूर्वक व्यवहार हो रहा है अथवा नहीं. आप की एवं रेखा के संतुष्टि के बाद ही प्रकरण समाप्त करेंगे,” यह सुन कर रामप्रसाद, रेखा और गोमतीबाई और उन के वकील भी संतुष्ट हो गए.

रेखा न्यायालय से ही गोपाल के साथ अपने ससुराल जाने के लिए राजी हो गई. गोपाल ने भी अपने सासससुर को विश्‍वास दिलाया कि वह रेखा को पूरे सम्मान, आदर और सुखसुविधा से रखेगा. उसे अपने सासससुर के समयसमय पर फोन करने अथवा आने पर भी कोई एतराज नहीं था .

कुछ तारीखों के बाद जज साहब ने गोपाल, रेखा और रामप्रसाद से बातचीत के बाद प्रकरण समाप्त कर दिया. गोपाल की वृद्ध मां भी इस घटनाक्रम से बेहद प्रसन्न थीं. उन्होंने भी घर पर रेखा का स्वागत किया. रेखा भी घर वापसी से बेहद खुश थी.

आज गोपाल को मुकदमे समाप्त होने के बाद उसी दिन शाम को वकील साहब के कार्यालय में हुई मुलाकात भी याद आई. गोपाल अपने वकील साहब से मिलने उन के कार्यालय गया था. वकील साहब ने इस बात पर खुशी जाहिर की कि मुकदमे समाप्त हो चुके हैं. उन्होंने गोपाल से रेखा के साथ अच्छी तरह रहने और झगड़ा न करने की तारीफ की.

इस के बाद वकील साहब ने अपनी बाकी फीस की याद दिलाई. इस पर गोपाल बोला, “वकील साहब, बाकी फीस कैसी? फीस तो पूरे मुकदमे की थी. आप ने पूरा मुकदमा तो लड़ा ही नहीं,” यह बात सुन कर वकील साहब के चेहरे पर एक छोटी सी मुसकान उभर आई.

वकील साहब भले थे. इसलिए उन्होने कहा,“फीस भले ही मत दो लेकिन अपनी पत्नी के साथ अच्छी तरह रहना. यदि भविष्य में आप दोनों के बीच कोई विवाद हुआ तो इस बकाया फीस के साथ नए मुकदमे की अग्रिम फीस लूंगा,”यह सुन कर गोपाल अनायास ही भावुक हो गया. वकील साहब की सलाह का साफ असर और परिवार के एक होने का संतोष दोनों उस के चेहरे पर साफसाफ देखा जा सकता था.

इतने में ही रेखा ने उसे आवाज दी. कहा, “आज खाना नहीं खाना है? आज आप कहां खोए हुए हो?”

इस पर गोपाल ने बड़े ही स्नेह से पत्नी का हाथ पकड़ कर मुसकरा कर बोला, “कहीं नहीं. ऐसे ही कुछ पुरानी यादें ताजा हो गईं.”

इस पर रेखा बोली,” पुरानी यादों को छोड़ो, मैं ने आज आप की पसंद की खीर बनाई है. गोपाल ने रेखा का हाथ छोड़े बगैर कहा,“हां, चलो खाना खाते हैं. खीर से तो खाने में और मजा आएगा.”

दोनों ही खाना खाने चल पड़े. बच्चे और मां पहले से ही वहां मौजूद थे.

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राइटर- विनय झैलावत

कोरोना वायरस के दौरान लागू लौकडाउन में पिछले कई दिनों से गोपाल परिवार के साथ अपने घर पर ही था. देश के सब से स्वच्छ शहर इंदौर में मध्य प्रदेश के अन्य शहरों की तुलना में कोरोना के अधिक मामले उसे रहरह कर परेशान कर रहे थे. इंदौर के कुछ हिस्सों में लोगों का प्रशासन के साथ असहयोग भी उसे चिंता में डाल रहा था. लौकडाउन का उल्लंघन भी उसे परेशान कर रहा था. लेकिन वह कर भी क्या सकता था. वह इस महामारी में लौकडाउन का पालन करते हुए घर में बंद था. उस का परिवार भी उस के साथ लौकडाउन का पालन सख्ती से कर रहा था.

गोपाल के परिवार में वृद्ध माता, पत्नी रेखा और 2 बच्चों का अच्छाभला परिवार है. गोपाल खुद एक टीवी मैकेनिक है. अच्छाभला काम है. लेकिन इन दिनों घर पर रह कर एवं लौकडाउन का पालन कर इस महामारी में डाक्‍टरों के निर्देशानुसार अपनी तथा अपने परिवार की सुरक्षा कर रहा था. उसे मालूम था कि इस बीमारी से बचने का एकमात्र रास्ता घर पर रहना ही है.

आज फुरसत के पलों में गोपाल पता नहीं क्यों अतीत की यादों में खो रहा था. उसे आज भी वे दिन याद आ रहे थे जब उस की और उस की पत्नी के बीच झगड़ा हुआ था और बात न्यायालय तक चली गई थी. आज उसे और उस की पत्नी को देख कर कोई इस बात का अंदाजा भी नहीं लगा सकता है. उस के जेहन में अपने उन वकील साहब की याद आ रही थी जो एक दशक पहले उस के तलाक के केस में उस के वकील थे, जिन्होंने उस का परिवार बचाया था. वकील साहब भी उन दिनों उन की तरह ही युवा थे और नईनई वकालत की शुरुआत की थी. आज तो वे शहर के नामीगिरामी वरिष्ठ वकील हैं. उन का नाम भी काफी है. आएदिन समाचारपत्रों में उन का नाम प्रकरणों के संदर्भ में आता रहता है .

यह बात उन दिनों की है जब उस के और उस की पत्नी रेखा के बीच छोटीछोटी बातों ने विकराल रूप ले लिया था. वह नाराज हो कर अपने मायके अपने मातापिता के पास उन के गांव हातौद चली गई थी. इसी नाराजगी में उस ने न्यायालय में तलाक हेतु एक प्रकरण पेश किया. इस के साथ ही उस ने अपने भरणपोषण के लिए दूसरा प्रकरण भी पेश किया. इन प्रकरणों के नोटिस न्यायालय से मिलने पर वह इन वकील साहब से मिला था. वकील साहब ने अपना नयानया औफिस उस के ही मोहल्ले में डाला था.

न्यायालय का नोटिस मिलने पर गोपाल इन्हीं वकील साहब के पास गया. बातचीत में वकील साहब भले और अच्छे लगे. फीस तय कर गोपाल ने कागजात पर अपने हस्ताक्षर कर उन्हें अपने दोनों प्रकरण सौंप दिए. उस ने वकील साहब से पूछा कि उस की पत्नी ने यह प्रकरण किस आधार पर पेश किए हैं?

वकील साहब ने बताया,”हिंदू विवाह अधिनियम के प्रावधानों के अंतर्गत आप की पत्नी ने तलाक का यह प्रकरण पेश किया है. इस में वे आधार दिए गए हैं, जिन के आधार पर तलाक लिया जा सकता है. इन में से एक आधार है क्रूरता. तुम्हारी पत्नी ने इसी आधार पर प्रकरण पेश किया है. उन्होंने आप के खिलाफ मारपीट, गालीगलौच एवं उस के मातापिता के अपमान का आरोप लगाया है.

“दूसरा प्रकरण भारतीय दंड प्रक्रिया के अंतर्गत भरणपोषण की सहायता चाही है. आप की पत्नी का कहना है कि वह कमाती नहीं है, इस कारण उसे भरणपोषण हेतु आप से प्रतिमाह एक राशि चाहिए. यह प्रावधान उसे यह अधिकार देता है.”

नियत तारीख पर वकील साहब ने कागजातों को पेश किया. अब प्रकरण चलना चालू हुए तो चलते रहे. तारीख पर तारीख लगती रही. वह और उस की पत्नी रेखा न्यायालय में आते रहे. उस की पत्नी के साथ उन के ससुर और सास भी रेखा को हिम्मत बंधाने आते थे. उस के ससुर रामप्रसाद और सास गोमतीबाई पास के गांव हातौद में रहते थे. रामप्रसाद एक दरजी थे तथा गांव में उन की दुकान थी. दोनों ही उसे गुस्से से देखते रहते थे .

वकील साहब के पूछने पर गोपाल ने बताया,“मैं ने कभी रेखा के साथ मारपीट नहीं की है. मेरी शिकायत तो उस के मातापिता द्वारा हमारी जिंदगी में किए जाने वाले हस्तक्षेप थे. वे हमारी रोज की जिंदगी में हस्तक्षेप करते थे. यही झगड़े का मूल कारण था.”

वकील साहब ने इस पर उसे समझाया, “प्रकरण पेश करने के लिए आधार बनाने होते हैं. शायद इसलिए यह लिखा गया हो. हो सकता है कि इस में झूठ भी हो. हम अपना पक्ष न्यायालय में प्रस्तुत करेंगे.”

गोपाल की शादी रेखा के साथ हातौद जैसे छोटे गांव में धूमधाम से हुई थी. तब गोपाल के पिताजी भी जीवित थे. दोनों परिवारों में उस समय आपस में काफी स्नेह एवं आदर था. उस के पिताजी की मौत के बाद मामला बिगड़ने लगा. उस के ससुर तथा सास रेखा के प्रति अत्यंत ही संवेदनशील होने लगे. घरपरिवार में उन का हस्तक्षेप दिनप्रतिदिन बढ़ने लगा. आएदिन गोपाल के ससुर रामप्रसाद तथा सास गोमतीबाई उन के घर आने लगे. हर काम और बात पर रामप्रसाद उसे सलाह देने लगे. सास गोमतीबाई भी रेखा के कान भरने लगीं. गोपाल को अपनी और रेखा के जीवन में उन का हस्तक्षेप अखरने लगा. गोपाल की मां भी कभीकभी इस संबंध में उसे बताती थीं. इस को ले कर मां भी अकसर दुखी रहती थीं, लेकिन वे कभी भी हस्तक्षेप नहीं करती थीं.

दिनप्रतिदिन गोपाल की जिंदगी में हस्तक्षेप बढ़ता ही गया. इसे ले कर अब अकसर छोटेमोटे झगड़े होने लगे. रेखा की जब भी अपनी मां से फोन पर लंबीलंबी बातचीत होती थी तब तो निश्चित ही झगड़े होते ही थे. धीरेधीरे इन झगड़ों ने बड़ा रूप ले लिया. सास गोमतीबाई उस की पत्नी को हर मामले पर सलाह देने लगीं. घर पर खाने में क्या बनेगा से ले कर मां की देखभाल व उन पर किए गए खर्च को ले कर झगड़े होने लगे. इन्हीं झगड़ों ने विकराल रूप ले लिया.

एक दिन इस बात पर दोनों पतिपत्नी में झगड़ा हुआ कि आखिर वह मां के लिए इतनी महंगी साड़ी क्यों लाया? रेखा बोली, “मां बाहर जाती ही कहां हैं. इतनी महंगी साड़ी का वह करेंगी क्या?”

इस बात पर गोपाल क्रोधित हो गया. दोनों के बीच झगड़ा बढ़ गया. इस झगड़े के बाद रेखा ने अपने पिता को फोन पर सारी बातें बताई. इस पर रेखा के मातापिता आए और गोपाल पर क्रोधित हो कर अपनी बेटी को अपने घर ले गए.

इस घटना के 1 साल होने के बाद रेखा ने न्यायालय में क्रूरता के आधार पर तलाक का तथा अपने भरणपोषण के मुकदमे न्यायालय में पेश किए. गोपाल ने भी अपने वकील के मारफत जवाब पेश किया. मगर जैसाकि हर मुकदमे में होता है, दोनों ही पक्षों ने कुछ सच तो कुछ झूठ का आधार लिया. दोनों ही ने एकदूसरे को आपसी संबंधों के बिगड़ाव का दोषी माना.

मुकदमे अपनी रफ्तार से चल रहे थे, तारीख पर तारीख. न्यायालय ने आपसी समझौते की कोशिश भी की लेकिन दोनों पक्ष राजी नहीं हुए. गोपाल को दहेज के झूठे मुकदमे में फंसाने की भी धमकी दे डाली. पतिपत्नी के विवादों में अकसर जो आरोप एकदूसरे के खिलाफ लगाए जाते हैं उन में से काफी झूठे भी होते हैं. यही इन मुकदमे में भी हो रहा था. धीरेधीरे दोनों ही पक्ष तारीखों के कारण परेशान होने लगे. कई बरस निकल गए. अब दोनों ही पक्षों को कोई रास्ता समझ में नहीं आ रहा था. दोनों ही पक्षों के मन में अब कहीं न कहीं अपने द्वारा किए गए गलत व्यवहार के प्रति मन में पछतावा भी था.

ऐसी ही एक नियत तारीख पर न्यायालय में गोपाल, रेखा तथा गोपाल के वकील उपस्थित थे. हमेशा की तरह उस के ससुर रामप्रसाद भी थे. जज साहब अपने चैंबर में कोई फैसला लिखवा रहे थे. अनायास ही गोपाल के वकील ने रेखा के पिता से कहा,“रामप्रसादजी रेखा को उस के पति के घर क्यों नहीं भेज रहे हो? दोनों ही युवा हैं. उन के सामने पूरी जिंदगी पड़ी है. उन का जीवन मुकदमेबाजी में बरबाद हो जाएगा. गोपाल से मैं ने बात की है. वह तो रेखा को आज भी ले जाना चाहता है.”

रामप्रसाद ने भी सकारात्मक जवाब दिया. कहा,“वकील साहब, कौन पिता अपनी बेटी को शादी के बाद घर बैठाना पसंद करेगा? बहुत तकलीफदेह होता है एक शादीशुदा बेटी को घर रखना. रोज रेखा की मां रोती है. मेरी तकलीफ का अंदाजा आप लगा सकते हो. अगर गोपाल मेरी बेटी को अपने घर ले जाए तथा अच्छी तरह रखे तो मुझे क्या एतराज हो सकता है,” यह कहते हुए रामप्रसाद की आंखें भर आईं.

इस पर वकील साहब ने गोपाल की तरफ मुड़ कर उस से पूछा, “हां, तो गोपाल क्या कहना है? तुम अपनी पत्नी को ले जाने के लिए तैयार हो?”

इस पर गोपाल ने कहा, “वकील साहब, हम पतिपत्नी के बीच तो पहले भी कोई समस्या नहीं थी. यदि मेरे सासससुर हमारी जिंदगी में हस्तक्षेप कम कर दें तो मैं आज और इसी क्षण रेखा को ले जाने के लिए तैयार हूं. यह वादा करने के लिए भी तैयार हूं कि उसे कोई तकलीफ नहीं होने दूंगा.”

वकील साहब ने रेखा के पिता से कहा, “आप अपनी बेटी की जिंदगी में खुशियां चाहते हैं या नहीं?”

रामप्रसाद बोले, “रेखा तो हमारी जिंदगी है. इकलौती संतान होने के कारण हमें उस की चिंता रहती है. इसलिए रेखा की मां भी उसे फोन करती रहती हैं. हम इसी चिंता के कारण इंदौर अधिक आते हैं. कभी कुछ काम होता है तो कभी रेखा की चिंता.”

वकील साहब ने फिर समझाया, “यदि आप लोगों के हस्तक्षेप से पतिपत्नी के जीवन में अशांति हो रही है तो ऐसी चिंता किस काम की… यह उन का जीवन खाक कर देगी. आप यदि कुछ समय तक आना और फोन करना कम कर दें और आप की बेटी खुशी से अपने पति के साथ रहे तो आप को कोई एतराज तो नहीं है?”

रामप्रसाद ने भी बगैर कोई समय गवाएं कहा, “भला हमें एतराज क्यों होने लगा? हमें तो अपनी बेटी की खुशियों से मतलब है.”

इतने में ही जज साहब अपने चैंबर से बाहर आए. गोपाल के वकील साहब ने सारी बातें जज साहब को बताई. जज साहब भी खुश हुए. दोनों को समझाया भी. उन्होंने रामप्रसाद से कहा, “हम आप की चिंता को भी समझते हैं. हम रेखा के अपने ससुराल जाने के बाद भी कुछ समय तारीखे लगाएंगे. इन तारीखों पर गोपाल और रेखा न्यायालय में आप से मिल सकेंगे. रेखा भी आप को बता सकेगी कि उसे अपने ससुराल में कोई तकलीफ तो नहीं है. उस के साथ प्रेम और सम्मानपूर्वक व्यवहार हो रहा है अथवा नहीं. आप की एवं रेखा के संतुष्टि के बाद ही प्रकरण समाप्त करेंगे,” यह सुन कर रामप्रसाद, रेखा और गोमतीबाई और उन के वकील भी संतुष्ट हो गए.

रेखा न्यायालय से ही गोपाल के साथ अपने ससुराल जाने के लिए राजी हो गई. गोपाल ने भी अपने सासससुर को विश्‍वास दिलाया कि वह रेखा को पूरे सम्मान, आदर और सुखसुविधा से रखेगा. उसे अपने सासससुर के समयसमय पर फोन करने अथवा आने पर भी कोई एतराज नहीं था .

कुछ तारीखों के बाद जज साहब ने गोपाल, रेखा और रामप्रसाद से बातचीत के बाद प्रकरण समाप्त कर दिया. गोपाल की वृद्ध मां भी इस घटनाक्रम से बेहद प्रसन्न थीं. उन्होंने भी घर पर रेखा का स्वागत किया. रेखा भी घर वापसी से बेहद खुश थी.

आज गोपाल को मुकदमे समाप्त होने के बाद उसी दिन शाम को वकील साहब के कार्यालय में हुई मुलाकात भी याद आई. गोपाल अपने वकील साहब से मिलने उन के कार्यालय गया था. वकील साहब ने इस बात पर खुशी जाहिर की कि मुकदमे समाप्त हो चुके हैं. उन्होंने गोपाल से रेखा के साथ अच्छी तरह रहने और झगड़ा न करने की तारीफ की.

इस के बाद वकील साहब ने अपनी बाकी फीस की याद दिलाई. इस पर गोपाल बोला, “वकील साहब, बाकी फीस कैसी? फीस तो पूरे मुकदमे की थी. आप ने पूरा मुकदमा तो लड़ा ही नहीं,” यह बात सुन कर वकील साहब के चेहरे पर एक छोटी सी मुसकान उभर आई.

वकील साहब भले थे. इसलिए उन्होने कहा,“फीस भले ही मत दो लेकिन अपनी पत्नी के साथ अच्छी तरह रहना. यदि भविष्य में आप दोनों के बीच कोई विवाद हुआ तो इस बकाया फीस के साथ नए मुकदमे की अग्रिम फीस लूंगा,”यह सुन कर गोपाल अनायास ही भावुक हो गया. वकील साहब की सलाह का साफ असर और परिवार के एक होने का संतोष दोनों उस के चेहरे पर साफसाफ देखा जा सकता था.

इतने में ही रेखा ने उसे आवाज दी. कहा, “आज खाना नहीं खाना है? आज आप कहां खोए हुए हो?”

इस पर गोपाल ने बड़े ही स्नेह से पत्नी का हाथ पकड़ कर मुसकरा कर बोला, “कहीं नहीं. ऐसे ही कुछ पुरानी यादें ताजा हो गईं.”

इस पर रेखा बोली,” पुरानी यादों को छोड़ो, मैं ने आज आप की पसंद की खीर बनाई है. गोपाल ने रेखा का हाथ छोड़े बगैर कहा,“हां, चलो खाना खाते हैं. खीर से तो खाने में और मजा आएगा.”

दोनों ही खाना खाने चल पड़े. बच्चे और मां पहले से ही वहां मौजूद थे.

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January 06, 2022 at 01:58PM

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