Monday 7 March 2022

मुआवजा: कमला का पति क्यों लापता हो गया था

सारी उम्मीदें टूटने लगी थीं. सैलाब की त्रासदी को हुए 1 महीने से भी ज्यादा का समय बीत चुका था. परिवार के लोगों ने सब जगह भटक कर देख लिया था, मगर चारधाम की यात्रा पर गए जानकीदास का कुछ भी अतापता नहीं था.

जानकीदास का नाम न तो जिंदा बचने वालों की सूची में था, न ही मरने वालों की सूची में.

जानकीदास मलबे के किसी ढेर के नीचे दबे थे, सैलाब के भयानक और तेज बहाव के साथ बह कर किसी खड्ड या नदी में चले गए थे, इस के बारे में कोई भी ठीक से कुछ नहीं कह सकता था. उन को अनगिनत लापता लोगों में शामिल माना जा सकता था.

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वास्तव में चारधाम की तीर्थयात्रा करने की जानकीदास की इच्छा बहुत पुरानी थी, मगर आर्थिक तंगी के कारण वे अपनी इस इच्छा को पूरा नहीं कर सके थे.

जब घर का खर्च ही बड़ी मुश्किल से चलता था तो किसी तीर्थयात्रा के लिए पैसे कहां से आते? लेकिन इस बार तो जैसे मौत ने खुद ही जानकीदास के लिए चारधाम की यात्रा का इंतजाम कर दिया था.

दूसरे शब्दों में कहा जाए तो जानकीदास काल के गाल में जाने के लिए ही चारधाम की यात्रा पर गए थे.

वास्तव में शहर की एक धार्मिक संस्था ने किसी रईस दानी के सहयोग से मुफ्त चारधाम की यात्रा का प्रबंध किया था. खानापीना, रहना, सबकुछ धार्मिक संस्था की तरफ से ही मुफ्त में था. दूसरे शब्दों में कहा जाए तो चारधाम की यात्रा के लिए आनेजाने में किसी का एक भी पैसा खर्च नहीं होना था. चारधाम को आनेजाने के लिए धार्मिक संस्था की तरफ से 2 विशेष बसों का इंतजाम किया गया था.

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कई दूसरे लोगों की तरह जानकीदास भी चारधाम की मुफ्त यात्रा के प्रलोभन में आ गए थे. उन को लगा था कि उन्हें इस अवसर को किसी तरह से भी हाथ से जाने नहीं देना चाहिए.

धर्मपत्नी कमला से सलाहमशविरा किए बगैर ही जल्दीजल्दी में जानकीदास ने मुफ्त यात्रा करवाने का बीड़ा उठाने वाली धार्मिक संस्था में अपना नाम पंजीकृत करवा दिया.

जब जानकीदास ने कमला को इस बारे में बताया तो वह उन्हें यात्रा पर जाने से मना नहीं कर सकी. वह मना तब करती अगर सवाल खर्चे का होता. चारधाम की यात्रा एकदम मुफ्त में ही थी इसलिए वह क्या एतराज कर सकती थी.

2 बसों में मुफ्त की चारधाम की यात्रा पर गए सभी लोग, कहा जाता है, उस रात केदारनाथ में ही थे जब तबाही का सैलाब पहाड़ों से उतरते हुए अपने साथ सबकुछ बहा ले गया था.

बहुत ही कम लोग थे जो सैलाब से जिंदा बच कर वापस आ सके थे.

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अधिकांश लोग अचानक आए सैलाब में या तो बह गए थे या फिर धराशायी हुई इमारतों के मलबे में दब गए थे.

जितने लोगों को जिंदा या मुरदा खोजा जा सकता था, खोज लिया गया था. सरकार अब कह रही थी कि जो लोग जिंदा या मुरदा नहीं मिल सके थे उन को लापता लोगों की सूची में शामिल कर लिया जाएगा.

लापता लोगों की संख्या हजारों में थी, मगर सही आंकड़ा किसी के भी पास नहीं था.

जानकीदास का भी कोई अतापता नहीं था इसलिए उन का नाम भी लापता लोगों में शुमार था. लापता होने का अर्थ था न ही जिंदा और न ही मुरदा. दूसरे शब्दों में कहा जाए तो किसी शख्स के लिए सारी उम्र का दर्द और टीस.

रोरो कर कमला की आंखों के आंसू भी जैसे सूख गए थे. पति के जिंदा होने की उम्मीद खत्म होने पर अब उसे दूसरी चिंताएं सताने लगी थीं. सब से बड़ी और तात्कालिक चिंता थी परिवार के भरणपोषण की.

घर में पहले ही से आर्थिक तंगी थी. तंगी की वजह से ही बड़े लड़के सुधीर को कालेज की पढ़ाई अधूरी छोड़नी पड़ी थी और वह इन दिनों किसी नौकरी की तलाश में मारामारा फिर रहा था. छोटा लड़का दीपक घिसटघिसट कर अपनी स्कूल की पढ़ाई पूरी कर रहा था. उसे स्कूल की फीस या किताब के लिए कई बार मिन्नतें करनी पड़ती थीं. कमला की सब से बड़ी और जानलेवा चिंता जवान हो रही बेटी सुमन को ले कर थी.

तंगहाली के कारण कमला पहले ही जवान हो रही बेटी को ले कर चिंता में घुलती रही थी. हमेशा सोचती थी कि बेटी के शादीब्याह के लिए आखिर पैसे कहां से आएंगे?

अब तो कमला की चिंता ने और भी विकराल रूप ले लिया था. कमाने वाला ही नहीं रहा था.

शादीब्याह तो दूर की बात थी, अब तो दो वक्त की रोटी की ही समस्या सामने खड़ी थी. जानकीदास को प्राइवेट दुकान पर काम करने के एवज में सिर्फ 6 हजार रुपए मिलते थे.

घोर अंधकार में अचानक कमला के कानों में राहत देने वाली एक खबर पड़ी. उस ने टीवी पर सुना कि सरकार मृत लोगों के साथसाथ लापता लोगों के परिवार वालों को 3 लाख रुपए का मुआवजा देने जा रही है.

सरकार की मुआवजा देने वाली उक्त घोषणा के बाद कमला ने मुआवजे की रकम को हासिल करने के लिए भागदौड़ शुरू कर दी. इस के लिए कमला ने शहर की उसी धार्मिक संस्था की मदद ली जिस ने चारधाम की मुफ्त यात्रा के लिए 2 बसें भेजी थीं. धार्मिक संस्था ने कमला की पूरी मदद की और मुआवजा पाने के लिए सारी दस्तावेजी औपचारिकताओं को उस से पूरा करवा कर आगे भेजा. दस्तावेजी औपचारिकताओं को पूरा करने के लिए कमला को कई जगह धक्के भी खाने पड़े.

इस के बाद मुआवजे की रकम के इंतजार में कमला को बारबार धार्मिक संस्था के कार्यालय में चक्कर लगाने पड़े.

आखिर एक दिन कमला को बताया गया कि मृत और लापता लोगों के परिजनों को मुआवजे की रकम के चैक मिलने शुरू हो गए हैं और उस को भी उस के मुआवजे का चैक जल्दी ही मिल जाएगा. धार्मिक संस्था के सचिव ने सिर्फ 5 हजार रुपए मांगे थे सारी मेहनत के बदले, जो कमला ने कह दिया कि वह दे देगी. चैक जल्दी मिलने की उम्मीद में कमला अपनी कल्पनाओं में भविष्य की कई योजनाएं बनाने लगी.

मुआवजे की रकम 3 लाख रुपए की थी. इतनी बड़ी रकम के अपने पास होने का कभी सपना भी कमला ने नहीं देखा था. इतनी बड़ी रकम कई समस्याओं का हल कर सकती थी. कमला इस रकम से नौकरी के लिए भटक रहे अपने बड़े लड़के को कोई छोटामोटा धंधा करवा सकती थी. जवान हो रही बेटी के शादीब्याह के लिए कुछ रकम को संभाल कर रख सकती थी. रकम के हाथ में आने से फाकों वाले हालात का खतरा भी टल सकता था.

3 लाख रुपए की रकम के हाथ में आने के खयाल से कमला के अंदर की 2 ख्वाहिशें भी जाग उठी थीं जो पति के रहते हुए भी कभी पूरी नहीं हो सकी थीं. इन सब के बाद भी जब रात के सन्नाटे में कमला को अपने पति की याद आती तो वह बेचैन हो उठती और सो नहीं पाती. ऐसे ही में एक रात कमला अपने लापता हुए पति के बारे में सोचते हुए बिस्तर पर करवटें बदल रही थी तो घर के दरवाजे पर किसी ने काफी आहिस्ता से दस्तक दी.

पहले तो वह समझी कि वह दस्तक उस का वहम है मगर वह वहम नहीं था.

करवटें बदल रही कमला उठ कर बैठ गई. घड़ी पर नजर डाली. रात के 2 बज रहे थे. बराबर वाले दूसरे कमरे में बच्चे गहरी नींद में सो रहे थे.

इतनी रात गए कौन हो सकता था?

कमला ने खुद से सवाल किया. उस का दिल धकधक करने लगा. कई खयाल कमला के दिमाग में कौंधे और उस के सारे शरीर में सिहरन सी दौड़ गई.

कमला ने पहले सोचा कि वह गहरी नींद में सोए अपने तीनों बच्चों में से बड़े बेटे सुधीर को जगा दे और उस को साथ ले कर घर का दरवाजा खोले.

फिर कोई विचार कर के कमला रुक गई और उठ कर ड्योढ़ी पार कर के घर के दरवाजे के पास आ गई.

‘‘कौन है?’’ दरवाजे से कान सटा कर थोड़ा लरजती धीमी आवाज में कमला ने कहा.

दरवाजे के दूसरी तरफ से काफी धीमी, अस्पष्ट और फुसफुसाहट जैसी आवाज सुनाई दी.

एकाएक जैसे कमला का सारा शरीर बर्फ की तरह ठंडा हो गया.

धीमी और अस्पष्ट होने के बाद भी कमला उस आवाज को पहचान सकती थी.

थमती सांस के साथ कमला ने कांपते हाथों से दरवाजा खोल दिया.

दरवाजा खोलते ही सामने जानकीदास खड़े नजर आए. बदहाल, बेहाल. उन की शक्ल उन मुसीबतों की कहानी खुद बयान कर रही थी जिस में से गुजर कर वे पार तक पहुंचे थे. बढ़ी हुई दाढ़ी, लाल आंखें और चेहरे पर जबरदस्त थकान.

‘‘आप, आप जिंदा हैं?’’ कमला के मुख से बरबस ही निकला.

‘‘हां, दीपक की मां. मैं जिंदा हूं. बच्चों को मत जगाना, मैं तुम को अपने बचने की सारी कहानी बतलाता हूं,’’ अंदर दाखिल होते हुए जानकीदास ने कहा.

उन के अंदर आने पर कमला ने धीरे से दरवाजा दोबारा बंद कर के सांकल लगा दी.

कमरे में आ कर जानकीदास धीमे स्वर में सैलाब से अपने बचने की सारी कहानी पत्नी को सुनाने लगे.

जानकीदास ने पत्नी को बताया कि कैसे पानी आने की चेतावनी सुनते ही वे धर्मशाला में से निकल जल्दी से भाग कर एक ऊंचे पहाड़ पर चढ़ गए थे. उन के पहाड़ पर चढ़ते ही तेज सैलाब सारे केदारनाथ को लील गया था. रात के अंधकार में उन को केवल बहते हुए पानी की गड़गड़ाहट और लोगों की चीखपुकार के सिवा कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा था. डर कर जानकीदास अंधेरे में ही आगे बढ़ते गए और भटक गए थे. भटकते हुए वे कहां से कहां निकल गए, उन को नहीं मालूम. कई दिनों तक उन को जंगल में भूखाप्यासा भटकना पड़ा. कई लोगों ने अपने घर में पनाह दे कर उन को रोटी खिलाई.

सैलाब से हुई भयानक तबाही के कारण पहाड़ों से निकलने के सारे रास्ते बंद थे. काफी खराब हालत में जानकीदास एक जगह से दूसरी जगह भटकते रहे और फिर गंभीर रूप से बीमार पड़ गए.

बीमारी की हालत में साधुओं की एक टोली ने जानकीदास को कई दिन तक अपने डेरे में रख कर उन का इलाज किया और उन को भोजन खिलाया.

इस दौरान जानकीदास बाकी संसार से कटे रहे. दिन और तारीख का उन को कोई हिसाब नहीं रहा, मगर घर की याद सताती रही. स्वस्थ होने पर जानकीदास को उन्हीं साधुओं ने पहाड़ों में से निकाल घर पहुंचने में मदद की जिन्होंने उन्हें अपने डेरे में रख कई दिन तक उन का इलाज किया और उन को भोजन करवाया.

घर वापस आते हुए जानकीदास को नहीं मालूम था कि इतने दिनों में उन के पीछे दुनिया कितनी बदल चुकी थी.

?पति की आपबीती सुनने के बाद कमला कशमकश वाली हालत में कुछ पल खामोश रही, फिर बोली, ‘‘मैं ने आप के जिंदा वापस आने की सारी उम्मीद खो दी थी, इसलिए सरकार की तरफ से दिए जाने वाले मुआवजे को हासिल करने के लिए दरख्वास्त दे दी थी. मुआवजे की रकम अगले कुछ दिन में मिलने ही वाली थी, मगर उस से पहले आप ही सहीसलामत वापस आ गए.’’

कमला के शब्दों में खुशी के अंदर छिपा जैसे एक दर्द भी था. जानकीदास एकाएक जैसे किसी सोच में पड़ गए.

‘‘मुआवजे की रकम कितनी है?’’ कुछ विचार करते हुए जानकीदास ने पूछा.

‘‘3 लाख रुपए,’’ कमला ने जवाब दिया.

‘‘बहुत बड़ी रकम है. इतनी बड़ी रकम के अपने पास होने का सपना भी शायद हम लोगों ने कभी नहीं देखा था,’’ एक ठंडी सांस भरते हुए जानकीदास ने कहा.

‘‘हां, रकम बड़ी है, मगर आप के जीवन से बड़ी नहीं.’’

‘‘नहीं कमला, जीवन अपनी जगह है और पैसा अपनी जगह. इतने पैसों से हमारे परिवार का रहनसहन संवर सकता है. हमें ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए जिस से दरवाजे पर आई लक्ष्मी वापस लौट जाए.’’

‘‘आप कहना क्या चाहते हैं?’’ पति को ताकते हुए कमला ने कहा.

‘‘मुझ को तो सब लोगों ने मुरदा मान ही लिया है, कमला, इस समय मेरे जिंदा सामने आने का मतलब मुआवजे की रकम से हाथ धोना भी हो सकता है. क्या अच्छा नहीं होगा कि अपने परिवार की बेहतरी के लिए मैं फिलहाल मुरदों में ही शुमार रहूं,’’ हंसने की कोशिश करते हुए जानकीदास ने कहा.

‘‘क्या?’’ सदमे वाली हालत में पति को देखते हुए कमला ने कहा.

‘‘बच्चे अभी सो रहे हैं, कमला, इस से पहले कि वे जागें मुझ को यहां से जाना होगा. मेरे जिंदा होने की बात राज ही रहनी चाहिए. मैं जिंदा रह कर अपनी औलाद के लिए कुछ नहीं कर सका, मगर जिंदा होते हुए मर कर मैं शायद उन के लिए बहुतकुछ कर सकता हूं.

‘‘और हां, तुम को अपनी मांग का सिंदूर पोंछने की जरूरत नहीं. एक तो तुम जान गई हो कि मैं जिंदा हूं, दूसरा लापता इंसानों की गिनती न जिंदा इंसानों में होती है और न ही मुरदा इंसानों में, इसलिए दुनिया भी तुम्हारी भरी हुई मांग पर उंगली नहीं उठा सकती. अब चलता हूं. रोशनी होने से पहले मुझ को इस महल्ले से ही नहीं बल्कि इस शहर से भी बाहर निकल जाना होगा,’’

अपनी जगह से उठते हुए जानकीदास ने कहा.

कमला की आंखों में आंसू छलक पड़े. उस ने झुक कर पति के कदमों को  छू लिया.

इस के बाद जानकीदास ने दरवाजा खोला और बाहर अंधकार में गुम हो गए. मुआवजे की रकम उन के जीवन पर भारी पड़ी थी.

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सारी उम्मीदें टूटने लगी थीं. सैलाब की त्रासदी को हुए 1 महीने से भी ज्यादा का समय बीत चुका था. परिवार के लोगों ने सब जगह भटक कर देख लिया था, मगर चारधाम की यात्रा पर गए जानकीदास का कुछ भी अतापता नहीं था.

जानकीदास का नाम न तो जिंदा बचने वालों की सूची में था, न ही मरने वालों की सूची में.

जानकीदास मलबे के किसी ढेर के नीचे दबे थे, सैलाब के भयानक और तेज बहाव के साथ बह कर किसी खड्ड या नदी में चले गए थे, इस के बारे में कोई भी ठीक से कुछ नहीं कह सकता था. उन को अनगिनत लापता लोगों में शामिल माना जा सकता था.

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वास्तव में चारधाम की तीर्थयात्रा करने की जानकीदास की इच्छा बहुत पुरानी थी, मगर आर्थिक तंगी के कारण वे अपनी इस इच्छा को पूरा नहीं कर सके थे.

जब घर का खर्च ही बड़ी मुश्किल से चलता था तो किसी तीर्थयात्रा के लिए पैसे कहां से आते? लेकिन इस बार तो जैसे मौत ने खुद ही जानकीदास के लिए चारधाम की यात्रा का इंतजाम कर दिया था.

दूसरे शब्दों में कहा जाए तो जानकीदास काल के गाल में जाने के लिए ही चारधाम की यात्रा पर गए थे.

वास्तव में शहर की एक धार्मिक संस्था ने किसी रईस दानी के सहयोग से मुफ्त चारधाम की यात्रा का प्रबंध किया था. खानापीना, रहना, सबकुछ धार्मिक संस्था की तरफ से ही मुफ्त में था. दूसरे शब्दों में कहा जाए तो चारधाम की यात्रा के लिए आनेजाने में किसी का एक भी पैसा खर्च नहीं होना था. चारधाम को आनेजाने के लिए धार्मिक संस्था की तरफ से 2 विशेष बसों का इंतजाम किया गया था.

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कई दूसरे लोगों की तरह जानकीदास भी चारधाम की मुफ्त यात्रा के प्रलोभन में आ गए थे. उन को लगा था कि उन्हें इस अवसर को किसी तरह से भी हाथ से जाने नहीं देना चाहिए.

धर्मपत्नी कमला से सलाहमशविरा किए बगैर ही जल्दीजल्दी में जानकीदास ने मुफ्त यात्रा करवाने का बीड़ा उठाने वाली धार्मिक संस्था में अपना नाम पंजीकृत करवा दिया.

जब जानकीदास ने कमला को इस बारे में बताया तो वह उन्हें यात्रा पर जाने से मना नहीं कर सकी. वह मना तब करती अगर सवाल खर्चे का होता. चारधाम की यात्रा एकदम मुफ्त में ही थी इसलिए वह क्या एतराज कर सकती थी.

2 बसों में मुफ्त की चारधाम की यात्रा पर गए सभी लोग, कहा जाता है, उस रात केदारनाथ में ही थे जब तबाही का सैलाब पहाड़ों से उतरते हुए अपने साथ सबकुछ बहा ले गया था.

बहुत ही कम लोग थे जो सैलाब से जिंदा बच कर वापस आ सके थे.

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अधिकांश लोग अचानक आए सैलाब में या तो बह गए थे या फिर धराशायी हुई इमारतों के मलबे में दब गए थे.

जितने लोगों को जिंदा या मुरदा खोजा जा सकता था, खोज लिया गया था. सरकार अब कह रही थी कि जो लोग जिंदा या मुरदा नहीं मिल सके थे उन को लापता लोगों की सूची में शामिल कर लिया जाएगा.

लापता लोगों की संख्या हजारों में थी, मगर सही आंकड़ा किसी के भी पास नहीं था.

जानकीदास का भी कोई अतापता नहीं था इसलिए उन का नाम भी लापता लोगों में शुमार था. लापता होने का अर्थ था न ही जिंदा और न ही मुरदा. दूसरे शब्दों में कहा जाए तो किसी शख्स के लिए सारी उम्र का दर्द और टीस.

रोरो कर कमला की आंखों के आंसू भी जैसे सूख गए थे. पति के जिंदा होने की उम्मीद खत्म होने पर अब उसे दूसरी चिंताएं सताने लगी थीं. सब से बड़ी और तात्कालिक चिंता थी परिवार के भरणपोषण की.

घर में पहले ही से आर्थिक तंगी थी. तंगी की वजह से ही बड़े लड़के सुधीर को कालेज की पढ़ाई अधूरी छोड़नी पड़ी थी और वह इन दिनों किसी नौकरी की तलाश में मारामारा फिर रहा था. छोटा लड़का दीपक घिसटघिसट कर अपनी स्कूल की पढ़ाई पूरी कर रहा था. उसे स्कूल की फीस या किताब के लिए कई बार मिन्नतें करनी पड़ती थीं. कमला की सब से बड़ी और जानलेवा चिंता जवान हो रही बेटी सुमन को ले कर थी.

तंगहाली के कारण कमला पहले ही जवान हो रही बेटी को ले कर चिंता में घुलती रही थी. हमेशा सोचती थी कि बेटी के शादीब्याह के लिए आखिर पैसे कहां से आएंगे?

अब तो कमला की चिंता ने और भी विकराल रूप ले लिया था. कमाने वाला ही नहीं रहा था.

शादीब्याह तो दूर की बात थी, अब तो दो वक्त की रोटी की ही समस्या सामने खड़ी थी. जानकीदास को प्राइवेट दुकान पर काम करने के एवज में सिर्फ 6 हजार रुपए मिलते थे.

घोर अंधकार में अचानक कमला के कानों में राहत देने वाली एक खबर पड़ी. उस ने टीवी पर सुना कि सरकार मृत लोगों के साथसाथ लापता लोगों के परिवार वालों को 3 लाख रुपए का मुआवजा देने जा रही है.

सरकार की मुआवजा देने वाली उक्त घोषणा के बाद कमला ने मुआवजे की रकम को हासिल करने के लिए भागदौड़ शुरू कर दी. इस के लिए कमला ने शहर की उसी धार्मिक संस्था की मदद ली जिस ने चारधाम की मुफ्त यात्रा के लिए 2 बसें भेजी थीं. धार्मिक संस्था ने कमला की पूरी मदद की और मुआवजा पाने के लिए सारी दस्तावेजी औपचारिकताओं को उस से पूरा करवा कर आगे भेजा. दस्तावेजी औपचारिकताओं को पूरा करने के लिए कमला को कई जगह धक्के भी खाने पड़े.

इस के बाद मुआवजे की रकम के इंतजार में कमला को बारबार धार्मिक संस्था के कार्यालय में चक्कर लगाने पड़े.

आखिर एक दिन कमला को बताया गया कि मृत और लापता लोगों के परिजनों को मुआवजे की रकम के चैक मिलने शुरू हो गए हैं और उस को भी उस के मुआवजे का चैक जल्दी ही मिल जाएगा. धार्मिक संस्था के सचिव ने सिर्फ 5 हजार रुपए मांगे थे सारी मेहनत के बदले, जो कमला ने कह दिया कि वह दे देगी. चैक जल्दी मिलने की उम्मीद में कमला अपनी कल्पनाओं में भविष्य की कई योजनाएं बनाने लगी.

मुआवजे की रकम 3 लाख रुपए की थी. इतनी बड़ी रकम के अपने पास होने का कभी सपना भी कमला ने नहीं देखा था. इतनी बड़ी रकम कई समस्याओं का हल कर सकती थी. कमला इस रकम से नौकरी के लिए भटक रहे अपने बड़े लड़के को कोई छोटामोटा धंधा करवा सकती थी. जवान हो रही बेटी के शादीब्याह के लिए कुछ रकम को संभाल कर रख सकती थी. रकम के हाथ में आने से फाकों वाले हालात का खतरा भी टल सकता था.

3 लाख रुपए की रकम के हाथ में आने के खयाल से कमला के अंदर की 2 ख्वाहिशें भी जाग उठी थीं जो पति के रहते हुए भी कभी पूरी नहीं हो सकी थीं. इन सब के बाद भी जब रात के सन्नाटे में कमला को अपने पति की याद आती तो वह बेचैन हो उठती और सो नहीं पाती. ऐसे ही में एक रात कमला अपने लापता हुए पति के बारे में सोचते हुए बिस्तर पर करवटें बदल रही थी तो घर के दरवाजे पर किसी ने काफी आहिस्ता से दस्तक दी.

पहले तो वह समझी कि वह दस्तक उस का वहम है मगर वह वहम नहीं था.

करवटें बदल रही कमला उठ कर बैठ गई. घड़ी पर नजर डाली. रात के 2 बज रहे थे. बराबर वाले दूसरे कमरे में बच्चे गहरी नींद में सो रहे थे.

इतनी रात गए कौन हो सकता था?

कमला ने खुद से सवाल किया. उस का दिल धकधक करने लगा. कई खयाल कमला के दिमाग में कौंधे और उस के सारे शरीर में सिहरन सी दौड़ गई.

कमला ने पहले सोचा कि वह गहरी नींद में सोए अपने तीनों बच्चों में से बड़े बेटे सुधीर को जगा दे और उस को साथ ले कर घर का दरवाजा खोले.

फिर कोई विचार कर के कमला रुक गई और उठ कर ड्योढ़ी पार कर के घर के दरवाजे के पास आ गई.

‘‘कौन है?’’ दरवाजे से कान सटा कर थोड़ा लरजती धीमी आवाज में कमला ने कहा.

दरवाजे के दूसरी तरफ से काफी धीमी, अस्पष्ट और फुसफुसाहट जैसी आवाज सुनाई दी.

एकाएक जैसे कमला का सारा शरीर बर्फ की तरह ठंडा हो गया.

धीमी और अस्पष्ट होने के बाद भी कमला उस आवाज को पहचान सकती थी.

थमती सांस के साथ कमला ने कांपते हाथों से दरवाजा खोल दिया.

दरवाजा खोलते ही सामने जानकीदास खड़े नजर आए. बदहाल, बेहाल. उन की शक्ल उन मुसीबतों की कहानी खुद बयान कर रही थी जिस में से गुजर कर वे पार तक पहुंचे थे. बढ़ी हुई दाढ़ी, लाल आंखें और चेहरे पर जबरदस्त थकान.

‘‘आप, आप जिंदा हैं?’’ कमला के मुख से बरबस ही निकला.

‘‘हां, दीपक की मां. मैं जिंदा हूं. बच्चों को मत जगाना, मैं तुम को अपने बचने की सारी कहानी बतलाता हूं,’’ अंदर दाखिल होते हुए जानकीदास ने कहा.

उन के अंदर आने पर कमला ने धीरे से दरवाजा दोबारा बंद कर के सांकल लगा दी.

कमरे में आ कर जानकीदास धीमे स्वर में सैलाब से अपने बचने की सारी कहानी पत्नी को सुनाने लगे.

जानकीदास ने पत्नी को बताया कि कैसे पानी आने की चेतावनी सुनते ही वे धर्मशाला में से निकल जल्दी से भाग कर एक ऊंचे पहाड़ पर चढ़ गए थे. उन के पहाड़ पर चढ़ते ही तेज सैलाब सारे केदारनाथ को लील गया था. रात के अंधकार में उन को केवल बहते हुए पानी की गड़गड़ाहट और लोगों की चीखपुकार के सिवा कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा था. डर कर जानकीदास अंधेरे में ही आगे बढ़ते गए और भटक गए थे. भटकते हुए वे कहां से कहां निकल गए, उन को नहीं मालूम. कई दिनों तक उन को जंगल में भूखाप्यासा भटकना पड़ा. कई लोगों ने अपने घर में पनाह दे कर उन को रोटी खिलाई.

सैलाब से हुई भयानक तबाही के कारण पहाड़ों से निकलने के सारे रास्ते बंद थे. काफी खराब हालत में जानकीदास एक जगह से दूसरी जगह भटकते रहे और फिर गंभीर रूप से बीमार पड़ गए.

बीमारी की हालत में साधुओं की एक टोली ने जानकीदास को कई दिन तक अपने डेरे में रख कर उन का इलाज किया और उन को भोजन खिलाया.

इस दौरान जानकीदास बाकी संसार से कटे रहे. दिन और तारीख का उन को कोई हिसाब नहीं रहा, मगर घर की याद सताती रही. स्वस्थ होने पर जानकीदास को उन्हीं साधुओं ने पहाड़ों में से निकाल घर पहुंचने में मदद की जिन्होंने उन्हें अपने डेरे में रख कई दिन तक उन का इलाज किया और उन को भोजन करवाया.

घर वापस आते हुए जानकीदास को नहीं मालूम था कि इतने दिनों में उन के पीछे दुनिया कितनी बदल चुकी थी.

?पति की आपबीती सुनने के बाद कमला कशमकश वाली हालत में कुछ पल खामोश रही, फिर बोली, ‘‘मैं ने आप के जिंदा वापस आने की सारी उम्मीद खो दी थी, इसलिए सरकार की तरफ से दिए जाने वाले मुआवजे को हासिल करने के लिए दरख्वास्त दे दी थी. मुआवजे की रकम अगले कुछ दिन में मिलने ही वाली थी, मगर उस से पहले आप ही सहीसलामत वापस आ गए.’’

कमला के शब्दों में खुशी के अंदर छिपा जैसे एक दर्द भी था. जानकीदास एकाएक जैसे किसी सोच में पड़ गए.

‘‘मुआवजे की रकम कितनी है?’’ कुछ विचार करते हुए जानकीदास ने पूछा.

‘‘3 लाख रुपए,’’ कमला ने जवाब दिया.

‘‘बहुत बड़ी रकम है. इतनी बड़ी रकम के अपने पास होने का सपना भी शायद हम लोगों ने कभी नहीं देखा था,’’ एक ठंडी सांस भरते हुए जानकीदास ने कहा.

‘‘हां, रकम बड़ी है, मगर आप के जीवन से बड़ी नहीं.’’

‘‘नहीं कमला, जीवन अपनी जगह है और पैसा अपनी जगह. इतने पैसों से हमारे परिवार का रहनसहन संवर सकता है. हमें ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए जिस से दरवाजे पर आई लक्ष्मी वापस लौट जाए.’’

‘‘आप कहना क्या चाहते हैं?’’ पति को ताकते हुए कमला ने कहा.

‘‘मुझ को तो सब लोगों ने मुरदा मान ही लिया है, कमला, इस समय मेरे जिंदा सामने आने का मतलब मुआवजे की रकम से हाथ धोना भी हो सकता है. क्या अच्छा नहीं होगा कि अपने परिवार की बेहतरी के लिए मैं फिलहाल मुरदों में ही शुमार रहूं,’’ हंसने की कोशिश करते हुए जानकीदास ने कहा.

‘‘क्या?’’ सदमे वाली हालत में पति को देखते हुए कमला ने कहा.

‘‘बच्चे अभी सो रहे हैं, कमला, इस से पहले कि वे जागें मुझ को यहां से जाना होगा. मेरे जिंदा होने की बात राज ही रहनी चाहिए. मैं जिंदा रह कर अपनी औलाद के लिए कुछ नहीं कर सका, मगर जिंदा होते हुए मर कर मैं शायद उन के लिए बहुतकुछ कर सकता हूं.

‘‘और हां, तुम को अपनी मांग का सिंदूर पोंछने की जरूरत नहीं. एक तो तुम जान गई हो कि मैं जिंदा हूं, दूसरा लापता इंसानों की गिनती न जिंदा इंसानों में होती है और न ही मुरदा इंसानों में, इसलिए दुनिया भी तुम्हारी भरी हुई मांग पर उंगली नहीं उठा सकती. अब चलता हूं. रोशनी होने से पहले मुझ को इस महल्ले से ही नहीं बल्कि इस शहर से भी बाहर निकल जाना होगा,’’

अपनी जगह से उठते हुए जानकीदास ने कहा.

कमला की आंखों में आंसू छलक पड़े. उस ने झुक कर पति के कदमों को  छू लिया.

इस के बाद जानकीदास ने दरवाजा खोला और बाहर अंधकार में गुम हो गए. मुआवजे की रकम उन के जीवन पर भारी पड़ी थी.

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March 08, 2022 at 09:00AM

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