Tuesday 8 March 2022

जीजाजी से होली: कैसी खेली सोनू-मोनू ने होली?

होली पर सोनू व मोनू के जीजाजी पहली बार अपनी ससुराल आ रहे थे. सोनूमोनू थे तो करीब 13 और 14 साल के ही, पर शैतानियों में बड़ेबड़ोें के कान काटते थे. दोनों ने निश्चय किया कि जीजाजी से ऐसी होली खेलनी है कि वे इसे जिंदगी भर न भूल पाएं. इस बारे में दोनों भाई रोज तरहतरह की योजनाएं बनाते रहते.

आखिर होली के 4 दिन पहले  ही जीजाजी आ गए. जीजाजी ने आते ही सब को बता दिया कि उन्हें रंगों से सख्त नफरत है. वे केवल धुलेंडी के दिन ही होली खेलेंगे और वह भी केवल सूखे रंगों से.

सनूमोनू के पिताजी ने अपने लाड़लों की शैतानियों को ध्यान में रखते हुए दोनों को चेतावनी दी, ‘‘देखो बच्चो, तुम्हारे जीजाजी को गीला रंग पसंद नहीं है इसलिए उन पर रंग मत डालना.’’

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‘‘नहीं डालेंगे, पर अगर रंग इन के ऊपर अपनेआप लग गया तो?’’ दोनों ने एकसाथ पूछा.

‘‘अरे वाह, रंग अपनेआप मुझ पर कैसे गिरेगा? क्या रंग कोई जादू है?’’ जीजाजी बोले.

‘‘तो ऐसा है कि…’’ सोनू कुछ बोल ही रहा था कि उस के पिताजी ने बीच में ही टोका, ‘‘बस, तुम लोग रंग मत डालना. रंग अपनेआप लग जाए तो लगने देना. तब तुम लोगों का कोई कुसूर नहीं होगा. बस, तुम अपने वादे पर अटल रहना.’’

‘‘हम वादा करते हैं कि जीजाजी पर रंग नहीं डालेंगे,’’ दोनों बोले.

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जीजीजी प्रसन्न हो उठे. दूसरे दिन सोनूमोनू ने जीजाजी के साथ जरा भी शरारत नहीं की. दोनों ध्यान से दिनभर जीजाजी की दिनचर्या देखते रहे तथा गुपचुप अपना कार्यक्रम उसी हिसाब से तय करते रहे. दोनों ने दिनभर कोई शैतानी नहीं की खूब घुलमिल कर जीजाजी से बातें करते रहे. इस से जीजाजी की नजर में वे अच्छे बच्चे बन गए. जीजाजी अपनी दिनचर्या के अनुसार सुबह उठ कर अधमुंदी आंखों से पलंग के पास रखी कुरसी पर बैठ जाते और चाय पीते. उस के बाद घर के पीछे वाले छोटे बगीचे में थोड़ी देर टहलते, फिर नहाते. तीसरे दिन जीजाजी पलंग से उठ कर ज्यों ही कुरसी पर बैठे तो चौंक कर इस तरह उछले जैसे सांप पर बैठ गए हों. वहां कुरसी पर रंगीन पानी से भरे रबड़ के कई गुब्बारे रखे हुए थे. जीजाजी के बैठने से कई गुब्बारे फूट गए और जीजाजी नीचे से एकदम रंगीन हो गए.

‘‘इस कुरसी पर गुब्बारे किस ने रख दिए?’’ पूछते हुए जीजाजी स्नानघर की तरफ भागे.

यह देख मोनू चीखा, ‘‘जीजाजी, आप ने हमारे गुब्बारे क्यों फोड़ दिए?’’

उधर सोनू ने स्नानघर वाले नल को पीछे से बंद कर दिया था और एक जग चाशनी का भर कर वहां रख दिया था. जीजाजी ने उस चाशनी को ही पानी समझ कर उस से अपने शरीर के निचले हिस्से पर लगा रंग धोया और अकड़ते हुए निकले तथा बगीचे में टहलने चले गए.

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चाशनी के कारण जीजाजी का पाजामा शरीर से चिपक गया और थोड़ा सा रस पाजामे से बाहर भी आ गया. इस रस में सोनू थोड़ा गुलाब जल भी डालना न भूला था. अत: थोड़ी देर में कई मधुमक्खियां आ कर जीजाजी के पीछे भिनभिनाने लगीं. खुशबूदार मीठे रस की गंध पा कर गली की एक कुतिया भी जीजाजी के पीछे लग गई. अब आगेआगे जीजाजी तथा पीछेपीछे मधुमक्खियां और कुतिया चक्कर लगाने लगीं. जीजाजी की हालत देखते ही बनती थी. तब तक 10-12 और मधुमक्खियां कहीं से आ गईं और वे भी जीजाजी के पीछे लग गईं. सोनू तो मौके की ताक में था ही. वह जीजाजी से बोला, ‘‘जीजाजी, आप फौरन घर के अंदर भाग जाइए और दरवाजा बंद कर लीजिए.’’

जीजाजी घर के अंदर जाने वाले दरवाजे की तरफ लपके पर वह तो बंद था. सोनू बोला, ‘‘यह दरवाजा बड़ी कठिनाई से खुलता है. मैं तो इसे खोल ही नहीं पाता. आप जरा जोर लगा कर खोल लें.’’ अपनी योजना के मुताबिक मोनू दरवाजे को अंदर से बंद कर के सिटकिनी लगाए खड़ा था तथा दोनों ने पहले से ही दरवाजे के हैंडिल के कुछ पेच खोल रखे थे. जीजाजी ने आव देखा न ताव, झट दरवाजे के हैंडिल को पकड़ कर अपनी तरफ पूरी ताकत से खींचा, क्योंकि वे मधुमक्खियोें तथा कुतिया के पीछा करने से बुरी तरह तंग हो चुके थे.

पूरी ताकत लगाने से हैंडिल उखड़ कर जीजाजी के हाथ में आ गया और जीजाजी धड़ाम से नीचे जा गिरे. सोनू ने अंदाजा लगा लिया था कि जीजाजी कहां गिरेंगे इसलिए उस ने पहले से ही एक गहरे रंग से भरा टब खिसका कर निशाने पर रख दिया था. अत: जीजाजी धड़ाम से उसी टब में गिरे. अब उन की हालत देखने लायक हो गई थी. जीजाजी गिरते ही चिल्लाए, ‘‘यह टब यहां किस नालायक ने रख दिया था?’’

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मोनू झट से दरवाजा खोल कर बाहर आया और जीजाजी की हालत पर हंसते हुए बोला, ‘‘जीजाजी, यह टब मैं ने अपने दोस्तों के लिए भरा था. आप ने तो इस का सत्यानाश ही कर दिया है. हम ने अपने वादे के मुताबिक आप पर रंग नहीं डाला आप तो खुद ही रंग में जा कर गिरे हैं.’’ हंगामा सुन कर मोनू के मातापिता, बहन सभी दौड़े आए. जीजाजी की हालत देख कर सारे खिलखिला कर हंसने लगे. जरा देर बाद सोनू के पिताजी ने गंभीर होते हुए दोनों को डांटा, ‘‘नालायको, अभी होली में 2 दिन बाकी हैेें, तुम लोग ये सारी शरारतें बंद करो और चुपचाप अपने कमरे में जा कर पढ़ो. खबरदार, अगर दिनभर बाहर निकले. यदि जीजाजी के कमरे की तरफ झांका भी तो…’’ सोनूमोनू मुंह लटकाए अपने कमरे में चले गए और जीजाजी नहानेधोने चले गए.

अगले दिन तक सोनूमोनू एकदम शांत रह कर आदर्श बच्चों की तरह अपने कमरे से बाहर नहीं निकले तथा वहीं पढ़ते रहे. दोपहर बाद जीजाजी ने सोचा, ‘अकेले बोर हो रहा हूं, थोड़ी देर सोनूमोनू के कमरे में ही जा कर गपशप कर लूं.’ सोनूमोनू के पढ़ाई के कमरे में एक मेज तथा 2 कुरसियां थीं, जिन पर बैठे दोनों भाई पढ़ रहे थे. वहां केवल एक खाट और थी. जीजाजी गुनगुनाते हुए उन के कमरे में गए.

‘‘सोनूमोनू, अब तो खूब जम कर पढ़ाई कर रहे हो,’’ कहते हुए वे मस्ती से उस खाट पर बैठे तो धड़ाम से फिर रंग से भरे टब में जा गिरे. सोनूमोनू ने यहां भी शैतानी की योजना बना ली थी. खाट को बीच में से काट कर चादर बिछा रखी थी तथा नीचे निशाने पर वही रंग से भरा टब रख दिया था. ‘‘अरे नालायको, तुम बाज नहीं आओगे अपनी शरारतों से,’’ कहते हुए जीजाजी स्नानघर की तरफ भागे और दरवाजे पर फिसल कर बुरी तरह गिरे सोनू ने एक गिलास में केले का गूदा तैयार कर रखा था. ज्यों ही जीजाजी टब में गिरे, वह फौरन स्नानघर के बाहर फर्श पर थोड़ी दूरी पर उसे फैला आया तथा स्नानघर से करीब 6 फुट की दूरी पर एक स्टूल रख दिया जिस पर एक थाल गुलाल से भरा था.

स्नानघर की तरफ भागते हुए जीजाजी को होश कहां था? ज्यों ही वे फिसले तो गिरतेगिरते उन का हाथ अपने बचाव के लिए स्टूल के पाए की तरफ गया, जिसे बदहवासी में उन्होंने पकड़ लिया. इस से स्टूल पर रखी गुलाल से भरी थाली उन के मुंह पर आ गिरी. जजाजी लाल मुंह वाले बंदर बन गए. वे फिर गुस्से से चिल्लाए. सोनू के पिताजी फिर दौडे़दौड़े आए. जीजाजी की हालत देख कर उन की भी हंसी नहीं रुक रही थी.

सोनूमोनू ने सफाई दी, ‘‘हम ने जीजाजी पर रंग नहीं डाला है. आप खुद इन से पूछ लो.’’

आखिर सोनू के पिताजी ने उन्हें उठाया और स्नानघर में पहुंचाया. सोनूमोनू ने स्नानघर में साबुन की टिकिया को हटा कर उस की जगह बूट पौलिश में काला रंग मिला कर एक टिकिया बना कर पहले ही वहां रख दी थी. जीजाजी उसे खूब रगड़रगड़ कर जब काले हब्शी बने बाहर आए तो उन्हें देख कर सभी का हंसी के मारे बुरा हाल हो गया. जीजाजी कुछ देर तक तो कुछ भी नहीं समझ सके, फिर हकीकत जान कर चिल्लाए, ‘‘ठहरो नालायको, तुम दोनों ने तो मेरी ऐसी हालत बनाई है कि मैं इस होली को जिंदगीभर याद रखूंगा.’’

‘‘हम यही तो चाहते थे,’’ दोनों एकसाथ बोले, ‘‘पर जीजाजी, हम ने अपने वादे के मुताबिक अभी तक आप पर रंग नहीं डाला है. क्या आप हमारे साथ होली खेलेंगे?’’ ‘‘अब भी कोई कसर बाकी है क्या? ठहरो, मैं खेलाता हूं तुम दोनों को असली होली,’’ कहते हुए जीजाजी डंडा ले कर उन दोनों के पीछे दौड़े.

आखिर होली का दिन भी आ गया. उस दिन सोनूमोनू के कुछ मित्र भी होली खेलने आए. जीजाजी घर के पीछे बने बगीचे में टहल रहे थे. उन्हें देखते ही सोनूमोनू और उन की मित्रमंडली उन के पीछे फिल्मी गाना गाते हुए भागी, ‘‘आज न छोड़ेंगे बस हमजोली, खेलेंगे हम होली…’’ जीजाजी उन्हें देख कर सिर पर पांव रख कर भागे और उन्होंने कमरे के दरवाजे को जोर से धक्का दिया. दरवाजा एक झटके से खुल गया और उस के ऊपर एक कुंदे से लटकी हुई रंग की बालटी का सारा रंग उन के सफेद कपड़ों पर आ गिरा. जीजाजी ने खीज कर उन की ओर देखा. तभी सोनू बोला, ‘‘जीजाजी, देखिए अभी तक हम ने अपनी प्रतिज्ञा नहीं तोड़ी है. तब भी आप हमारे रंगों से बच नहीं पाए हैं. फिर क्यों न जम कर रंगों से होली खेल ली जाए.’’

जीजाजी भी अब होली के रंगों में पूरी तरह रंग चुके थे और यह जान चुके थे कि इन शैतानों से जितना दूर भागा जाएगा, उतनी मुसीबत और आएगी. अत: हथियार डाल दिए और फिर जम कर होली खेली. 

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होली पर सोनू व मोनू के जीजाजी पहली बार अपनी ससुराल आ रहे थे. सोनूमोनू थे तो करीब 13 और 14 साल के ही, पर शैतानियों में बड़ेबड़ोें के कान काटते थे. दोनों ने निश्चय किया कि जीजाजी से ऐसी होली खेलनी है कि वे इसे जिंदगी भर न भूल पाएं. इस बारे में दोनों भाई रोज तरहतरह की योजनाएं बनाते रहते.

आखिर होली के 4 दिन पहले  ही जीजाजी आ गए. जीजाजी ने आते ही सब को बता दिया कि उन्हें रंगों से सख्त नफरत है. वे केवल धुलेंडी के दिन ही होली खेलेंगे और वह भी केवल सूखे रंगों से.

सनूमोनू के पिताजी ने अपने लाड़लों की शैतानियों को ध्यान में रखते हुए दोनों को चेतावनी दी, ‘‘देखो बच्चो, तुम्हारे जीजाजी को गीला रंग पसंद नहीं है इसलिए उन पर रंग मत डालना.’’

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‘‘नहीं डालेंगे, पर अगर रंग इन के ऊपर अपनेआप लग गया तो?’’ दोनों ने एकसाथ पूछा.

‘‘अरे वाह, रंग अपनेआप मुझ पर कैसे गिरेगा? क्या रंग कोई जादू है?’’ जीजाजी बोले.

‘‘तो ऐसा है कि…’’ सोनू कुछ बोल ही रहा था कि उस के पिताजी ने बीच में ही टोका, ‘‘बस, तुम लोग रंग मत डालना. रंग अपनेआप लग जाए तो लगने देना. तब तुम लोगों का कोई कुसूर नहीं होगा. बस, तुम अपने वादे पर अटल रहना.’’

‘‘हम वादा करते हैं कि जीजाजी पर रंग नहीं डालेंगे,’’ दोनों बोले.

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जीजीजी प्रसन्न हो उठे. दूसरे दिन सोनूमोनू ने जीजाजी के साथ जरा भी शरारत नहीं की. दोनों ध्यान से दिनभर जीजाजी की दिनचर्या देखते रहे तथा गुपचुप अपना कार्यक्रम उसी हिसाब से तय करते रहे. दोनों ने दिनभर कोई शैतानी नहीं की खूब घुलमिल कर जीजाजी से बातें करते रहे. इस से जीजाजी की नजर में वे अच्छे बच्चे बन गए. जीजाजी अपनी दिनचर्या के अनुसार सुबह उठ कर अधमुंदी आंखों से पलंग के पास रखी कुरसी पर बैठ जाते और चाय पीते. उस के बाद घर के पीछे वाले छोटे बगीचे में थोड़ी देर टहलते, फिर नहाते. तीसरे दिन जीजाजी पलंग से उठ कर ज्यों ही कुरसी पर बैठे तो चौंक कर इस तरह उछले जैसे सांप पर बैठ गए हों. वहां कुरसी पर रंगीन पानी से भरे रबड़ के कई गुब्बारे रखे हुए थे. जीजाजी के बैठने से कई गुब्बारे फूट गए और जीजाजी नीचे से एकदम रंगीन हो गए.

‘‘इस कुरसी पर गुब्बारे किस ने रख दिए?’’ पूछते हुए जीजाजी स्नानघर की तरफ भागे.

यह देख मोनू चीखा, ‘‘जीजाजी, आप ने हमारे गुब्बारे क्यों फोड़ दिए?’’

उधर सोनू ने स्नानघर वाले नल को पीछे से बंद कर दिया था और एक जग चाशनी का भर कर वहां रख दिया था. जीजाजी ने उस चाशनी को ही पानी समझ कर उस से अपने शरीर के निचले हिस्से पर लगा रंग धोया और अकड़ते हुए निकले तथा बगीचे में टहलने चले गए.

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चाशनी के कारण जीजाजी का पाजामा शरीर से चिपक गया और थोड़ा सा रस पाजामे से बाहर भी आ गया. इस रस में सोनू थोड़ा गुलाब जल भी डालना न भूला था. अत: थोड़ी देर में कई मधुमक्खियां आ कर जीजाजी के पीछे भिनभिनाने लगीं. खुशबूदार मीठे रस की गंध पा कर गली की एक कुतिया भी जीजाजी के पीछे लग गई. अब आगेआगे जीजाजी तथा पीछेपीछे मधुमक्खियां और कुतिया चक्कर लगाने लगीं. जीजाजी की हालत देखते ही बनती थी. तब तक 10-12 और मधुमक्खियां कहीं से आ गईं और वे भी जीजाजी के पीछे लग गईं. सोनू तो मौके की ताक में था ही. वह जीजाजी से बोला, ‘‘जीजाजी, आप फौरन घर के अंदर भाग जाइए और दरवाजा बंद कर लीजिए.’’

जीजाजी घर के अंदर जाने वाले दरवाजे की तरफ लपके पर वह तो बंद था. सोनू बोला, ‘‘यह दरवाजा बड़ी कठिनाई से खुलता है. मैं तो इसे खोल ही नहीं पाता. आप जरा जोर लगा कर खोल लें.’’ अपनी योजना के मुताबिक मोनू दरवाजे को अंदर से बंद कर के सिटकिनी लगाए खड़ा था तथा दोनों ने पहले से ही दरवाजे के हैंडिल के कुछ पेच खोल रखे थे. जीजाजी ने आव देखा न ताव, झट दरवाजे के हैंडिल को पकड़ कर अपनी तरफ पूरी ताकत से खींचा, क्योंकि वे मधुमक्खियोें तथा कुतिया के पीछा करने से बुरी तरह तंग हो चुके थे.

पूरी ताकत लगाने से हैंडिल उखड़ कर जीजाजी के हाथ में आ गया और जीजाजी धड़ाम से नीचे जा गिरे. सोनू ने अंदाजा लगा लिया था कि जीजाजी कहां गिरेंगे इसलिए उस ने पहले से ही एक गहरे रंग से भरा टब खिसका कर निशाने पर रख दिया था. अत: जीजाजी धड़ाम से उसी टब में गिरे. अब उन की हालत देखने लायक हो गई थी. जीजाजी गिरते ही चिल्लाए, ‘‘यह टब यहां किस नालायक ने रख दिया था?’’

ये भी पढ़ें- स्वीकृति : मीता की तुलना नीरा से परिवार वाले क्यों कर रहे थे

मोनू झट से दरवाजा खोल कर बाहर आया और जीजाजी की हालत पर हंसते हुए बोला, ‘‘जीजाजी, यह टब मैं ने अपने दोस्तों के लिए भरा था. आप ने तो इस का सत्यानाश ही कर दिया है. हम ने अपने वादे के मुताबिक आप पर रंग नहीं डाला आप तो खुद ही रंग में जा कर गिरे हैं.’’ हंगामा सुन कर मोनू के मातापिता, बहन सभी दौड़े आए. जीजाजी की हालत देख कर सारे खिलखिला कर हंसने लगे. जरा देर बाद सोनू के पिताजी ने गंभीर होते हुए दोनों को डांटा, ‘‘नालायको, अभी होली में 2 दिन बाकी हैेें, तुम लोग ये सारी शरारतें बंद करो और चुपचाप अपने कमरे में जा कर पढ़ो. खबरदार, अगर दिनभर बाहर निकले. यदि जीजाजी के कमरे की तरफ झांका भी तो…’’ सोनूमोनू मुंह लटकाए अपने कमरे में चले गए और जीजाजी नहानेधोने चले गए.

अगले दिन तक सोनूमोनू एकदम शांत रह कर आदर्श बच्चों की तरह अपने कमरे से बाहर नहीं निकले तथा वहीं पढ़ते रहे. दोपहर बाद जीजाजी ने सोचा, ‘अकेले बोर हो रहा हूं, थोड़ी देर सोनूमोनू के कमरे में ही जा कर गपशप कर लूं.’ सोनूमोनू के पढ़ाई के कमरे में एक मेज तथा 2 कुरसियां थीं, जिन पर बैठे दोनों भाई पढ़ रहे थे. वहां केवल एक खाट और थी. जीजाजी गुनगुनाते हुए उन के कमरे में गए.

‘‘सोनूमोनू, अब तो खूब जम कर पढ़ाई कर रहे हो,’’ कहते हुए वे मस्ती से उस खाट पर बैठे तो धड़ाम से फिर रंग से भरे टब में जा गिरे. सोनूमोनू ने यहां भी शैतानी की योजना बना ली थी. खाट को बीच में से काट कर चादर बिछा रखी थी तथा नीचे निशाने पर वही रंग से भरा टब रख दिया था. ‘‘अरे नालायको, तुम बाज नहीं आओगे अपनी शरारतों से,’’ कहते हुए जीजाजी स्नानघर की तरफ भागे और दरवाजे पर फिसल कर बुरी तरह गिरे सोनू ने एक गिलास में केले का गूदा तैयार कर रखा था. ज्यों ही जीजाजी टब में गिरे, वह फौरन स्नानघर के बाहर फर्श पर थोड़ी दूरी पर उसे फैला आया तथा स्नानघर से करीब 6 फुट की दूरी पर एक स्टूल रख दिया जिस पर एक थाल गुलाल से भरा था.

स्नानघर की तरफ भागते हुए जीजाजी को होश कहां था? ज्यों ही वे फिसले तो गिरतेगिरते उन का हाथ अपने बचाव के लिए स्टूल के पाए की तरफ गया, जिसे बदहवासी में उन्होंने पकड़ लिया. इस से स्टूल पर रखी गुलाल से भरी थाली उन के मुंह पर आ गिरी. जजाजी लाल मुंह वाले बंदर बन गए. वे फिर गुस्से से चिल्लाए. सोनू के पिताजी फिर दौडे़दौड़े आए. जीजाजी की हालत देख कर उन की भी हंसी नहीं रुक रही थी.

सोनूमोनू ने सफाई दी, ‘‘हम ने जीजाजी पर रंग नहीं डाला है. आप खुद इन से पूछ लो.’’

आखिर सोनू के पिताजी ने उन्हें उठाया और स्नानघर में पहुंचाया. सोनूमोनू ने स्नानघर में साबुन की टिकिया को हटा कर उस की जगह बूट पौलिश में काला रंग मिला कर एक टिकिया बना कर पहले ही वहां रख दी थी. जीजाजी उसे खूब रगड़रगड़ कर जब काले हब्शी बने बाहर आए तो उन्हें देख कर सभी का हंसी के मारे बुरा हाल हो गया. जीजाजी कुछ देर तक तो कुछ भी नहीं समझ सके, फिर हकीकत जान कर चिल्लाए, ‘‘ठहरो नालायको, तुम दोनों ने तो मेरी ऐसी हालत बनाई है कि मैं इस होली को जिंदगीभर याद रखूंगा.’’

‘‘हम यही तो चाहते थे,’’ दोनों एकसाथ बोले, ‘‘पर जीजाजी, हम ने अपने वादे के मुताबिक अभी तक आप पर रंग नहीं डाला है. क्या आप हमारे साथ होली खेलेंगे?’’ ‘‘अब भी कोई कसर बाकी है क्या? ठहरो, मैं खेलाता हूं तुम दोनों को असली होली,’’ कहते हुए जीजाजी डंडा ले कर उन दोनों के पीछे दौड़े.

आखिर होली का दिन भी आ गया. उस दिन सोनूमोनू के कुछ मित्र भी होली खेलने आए. जीजाजी घर के पीछे बने बगीचे में टहल रहे थे. उन्हें देखते ही सोनूमोनू और उन की मित्रमंडली उन के पीछे फिल्मी गाना गाते हुए भागी, ‘‘आज न छोड़ेंगे बस हमजोली, खेलेंगे हम होली…’’ जीजाजी उन्हें देख कर सिर पर पांव रख कर भागे और उन्होंने कमरे के दरवाजे को जोर से धक्का दिया. दरवाजा एक झटके से खुल गया और उस के ऊपर एक कुंदे से लटकी हुई रंग की बालटी का सारा रंग उन के सफेद कपड़ों पर आ गिरा. जीजाजी ने खीज कर उन की ओर देखा. तभी सोनू बोला, ‘‘जीजाजी, देखिए अभी तक हम ने अपनी प्रतिज्ञा नहीं तोड़ी है. तब भी आप हमारे रंगों से बच नहीं पाए हैं. फिर क्यों न जम कर रंगों से होली खेल ली जाए.’’

जीजाजी भी अब होली के रंगों में पूरी तरह रंग चुके थे और यह जान चुके थे कि इन शैतानों से जितना दूर भागा जाएगा, उतनी मुसीबत और आएगी. अत: हथियार डाल दिए और फिर जम कर होली खेली. 

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March 09, 2022 at 09:00AM

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