Monday 28 March 2022

ऐश्वर्या नहीं चाहिए मुझे

‘‘उम्र उम्र की बात होती है. जवानी में जो अच्छा लगता है बुढ़ापे में अकसर अच्छा नहीं लगता. इसी को तो कहते हैं जेनरेशन गैप यानी पीढ़ी का अंतर. जब मांबाप बच्चे थे तब वे अपने मांबाप को दकियानूसी कहते थे. अब जब खुद मांबाप बन गए हैं तो दकियानूसी नहीं हैं. अब बच्चे उद्दंड और मुंहजोर हैं. मतलब चित भी मांबाप की और पट भी उन्हीं की. किस्सा यहां समाप्त होता है कि मांबाप सदा ही ठीक थे, वे चाहे आप हों चाहे हम.’’

राघव चाचा मुसकराते हुए कह रहे थे और मम्मीपापा कभी मेरा और कभी चाचा का मुंह देख रहे थे. राघव चाचा शुरू से मस्तमलंग किस्म के इनसान रहे हैं. मैं अकसर सोचा करता था और आज भी सोचता हूं, क्या चाचा का कभी किसी से झगड़ा नहीं होता? चिरपरिचित मुसकान चेहरे पर और नजर ऐसी मानो आरपार सब पढ़ ले.

‘‘इनसान इस संसार को और अपने रिश्तों को सदा अपने ही फीते से नापता है और यहीं पर वह भूल कर जाता है कि उस का फीता जरूरत के अनुसार छोटाबड़ा होता रहता है. अपनी बच्ची का रिश्ता हो रहा हो तो दहेज संबंधी सभी कानून उसे याद होंगे और अपनी बच्ची संसार की सब से सुंदर लड़की भी होगी क्योंकि वह आप की बच्ची है न.’’

‘‘तुम कहना क्या चाहते हो, राघव,’’ पिताजी बोले, ‘‘साफसाफ बात करो न.’’

‘‘साफसाफ ही तो कर रहा हूं. सोमू के रिश्ते के लिए कुछ दिन पहले एक पतिपत्नी आप के घर आए थे…’’

पिताजी ने राघव चाचा की बात बीच में काटते हुए कहा था, ‘‘आजकल सोमू के रिश्ते को ले कर कोई न कोई घर आता ही रहता है. खासकर तब से जब से मैं ने अखबार में विज्ञापन दिया है.’’

‘‘मैं अखबार की बात नहीं कर रहा हूं,’’ राघव चाचा बोले, ‘‘अखबार के जरिए जो रिश्ते आते हैं वे हमारी जानपहचान के नहीं होते. आप ने उन से क्या कहा क्या नहीं, बात बनी, नहीं बनी, किसे पता. दूर से कोई आया, आप से मिला, आप की सुनी, उसे जंची, नहीं जंची, वह चला गया, किसे पता किसे कौन नहीं जंचा. किस ने क्या कहा, किस ने क्या सुना…’’

चाचा के शब्दों पर मैं तनिक चौंक गया. मैं पापा के साथ ही उन के कामकाज मेें हाथ बटाता हूं. आजकल बड़े जोरशोर से मेरे लिए लड़की ढूंढ़ी जा रही है. घर में भी और दफ्तर में भी. कौन किस नजर से आता है, देखतासुनता है वास्तव में मुझे भी पता नहीं होता.

‘‘याद है न जब मानसी के लिए लड़का ढूंढ़ा जा रहा था तब आप की गरदन कैसी झुकी होती थी. उस का रंग सांवला है, उसी पर आप उठतेबैठते चिंता जाहिर करते थे. मैं तब भी आप को यही समझाता था कि रंग गोराकाला होने से कोई फर्क नहीं पड़ता. पूरा का पूरा अस्तित्व गरिमामय हो, उचित पहनावा हो, शालीनता हो तो कोई भी लड़की सुंदर होती है. गोरी चमड़ी का आप क्या करेंगे, जरा मुझे समझाइए. यदि लड़की में संस्कार ही न हुए तो गोरे रंग से ही क्या आप का पेट भर जाएगा? आप का सम्मान ही न करे, जो हवा में तितली की तरह उड़ती फिरे, जो जमीन से कोसों दूर हो, क्या वैसी लड़की चाहिए आप को?

‘‘अच्छा, एक बात और, आप मध्यमवर्गीय परिवार से आते हैं न, जहां दिन चढ़ते ही जरूरतों से भिड़ना पड़ता है. भाभी सारा दिन रसोई में खटती हैं और जिस दिन काम वाली न आए, उन्हें बरतन भी साफ करने पड़ते हैं. यह सोमू भी एक औसत दर्जे का लड़का है, जो पूरी तरह आप के हाथ के नीचे काम करता है. इस की अपनी कोई पहचान नहीं बनी है. आप हाथ खींच लें तो दो वक्त की रोटी भी मुश्किल से कमा सकेगा. आप का बुढ़ापा तभी सुखमय होगा जब संस्कारी बहू आ कर आप से जुड़ जाएगी. कहिए, मैं सच कह रहा हूं कि नहीं?’’

राघव चाचा ने एक बार पूछा तो मम्मीपापा आंखें फाड़फाड़ कर उन का चेहरा देख रहे थे. सच ही तो कह रहे थे चाचा. मेरी अपनी अभी कोई पहचान है कहां. वकालत पढ़ने के बाद पापा की ही तो सहायता कर रहा हूं मैं.

‘‘मेरे एक मित्र की भतीजी है जो मुझे बड़ी प्यारी लगती है. काफी समय से उन के घर मेरा आनाजाना है. वह मुझे अपनीअपनी सी लगती है. सोचा, मेरे ही घर में क्यों न आ जाए. मुझे सोमू के लिए वह लड़की उचित लगी. उस के मांबाप आप का घरद्वार देखने आए थे. मेरे साथ वे नहीं आना चाहते थे, क्योंकि अपने तरीके से वे सब कुछ देखना चाहते थे.’’

‘‘कौन थे वे और कहां से आए थे?’’

‘‘आप ने क्या कहा था उन्हें? आप को तो सुंदर लड़की चाहिए जो ‘ऐश्वर्या राय तो मैं नहीं कहता हो पर उस के आसपास तो हो,’ यही कहा था न आप ने?’’

मैं चाचा की बात सुन कर अवाक् रह गया था. क्या पापा ने उन से ऐसा कहा था? ठगे से पापा जवाब में चुप थे. इस का मतलब चाचा जो कह रहे थे सच है.

‘‘क्या आप अमिताभ बच्चन हैं और आप का बेटा अभिषेक, जिस की लंबाई 5 फुट 7 इंच’ है. आप एक आम इनसान हैं और हम और? क्या आप को ऐश्वर्या राय चाहिए? अपने घर में? क्या ऐश्वर्या राय को संभालने की हिम्मत है आप के बेटे में?… इनसान उतना ही मुंह खोले जितना पचा सके और जितनी चादर हो उतने ही पैर पसारे.’’

‘‘बस करो, राघव,’’ मां तिलमिला कर बोलीं, ‘‘क्या बकबक किए जा रहे हो.’’

‘‘बुरा लग रहा है न सुन कर? मुझे भी लगा था. मुझे सुन कर शर्म आ गई जब उन्होंने मुझ से हाथ जोड़ कर माफी मांग ली. भैया को शर्म नहीं आई अपनी भावी बहू के बारे में विचार व्यक्त करते हुए…भैया, आप किसी राह चलती लड़की पर फबती कसें तो मैं मान लूंगा क्योंकि मैं जानता हूं कि आप कैसे चरित्र के मालिक हैं. पराई लड़कियां आप की नजर में सदा ही पराई रही हैं, जिन पर आप कोई भी फिकरा कस लेते हैं, लेकिन अपनी बहू ढूंढ़ने वाला एक सम्मानजनक ससुर क्या इस तरह की बात करता है, जरा सोचिए. आप तब अपनी बहू के बारे में बात कर रहे थे या किसी फिल्म की हीरोइन के बारे में?’’

पापा ने तब कुछ नहीं कहा. माथे पर ढेर सारे बल समेटे कभी इधर देखते कभी उधर. गलत नहीं कह रहे हैं चाचा. मेरे पापा जब भी किसी की लड़की के बारे में बात करते हैं, तब उन का तरीका सम्मानजनक नहीं होता. इस उम्र में भी वे लड़कियों को पटाखा, फुलझड़ी और न जाने क्याक्या कहते हैं. मुझे अच्छा नहीं लगता पर क्या कर सकता हूं. मां को भी उन का ऐसा व्यवहार पसंद नहीं है.

‘‘अब आप बड़े हो गए हैं भैया. अपना चरित्र जरा सा बदलिए. छिछोरापन आप को नहीं जंचता. हमें स्वप्न सुंदरी नहीं, गृहलक्ष्मी चाहिए, जो हमारे घर में रचबस जाए और लड़की वालों को इतना सस्ता भी न आंको कि उन्हें आप कहीं भी फेंक देंगे. लड़की वाले भी देखते हैं कि कहां उन की बेटी की इज्जत हो पाएगी, कहां नहीं. जिस घर में ससुर ही ऐसी भाषा बोलेगा वहां बाकी सब कैसा बोलते होंगे यह सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है.’’

‘‘कौन थे वे लोग? और कहां से आए थे?’’ मां ने प्रश्न किया.

‘‘वे जहां से भी आए हों पर उन्होंने साफसाफ कह दिया है कि राघवजी, आप के भाई का परिवार बेहद सुंदर है और इतने सुंदर परिवार में हमारी लड़की कहीं भी फिट नहीं बैठ पाएगी. वह एक सामान्य रंगरूप की लड़की है जो हर कार्य और गुण में दक्ष है, लेकिन ऐश्वर्या जैसी किसी भी कोण से नहीं लगती.’’

चाचा उठ खड़े हुए. उड़ती सी नजर मुझ पर डाली, मानो मुझ से कोई राय लेना चाहते हों. क्या वास्तव में मुझे भी कोई रूपसी ही चाहिए, जिस के नखरे भी मैं शायद नहीं उठा पाऊंगा. राह चलते जो रूप की चांदी यहांवहां बिखराती रहे और मैं असुरक्षा के भाव से ही घिरा रहूं. मैं ही कहां का देवपुरुष हूं, जिसे कोई अप्सरा चाहिए. चाचा सच ही कह रहे हैं कि पापा को ऐसा नहीं कहना चाहिए था. मैं ने एकाध बार पापा को समझाया भी था तो उन्होंने मुझे बुरी तरह डांट दिया था, ‘बाप को समझा रहा है. बड़ा मुंहजोर है तू.’

मुझे याद है एक बार मानसी की एक सहेली घर आई थी. पापा ने उसे देख कर मुझ से ही पूछा था :

‘‘सोमू, यह पटाखा कौन है? इस की फिगर बड़ी अच्छी है. तुम्हारी कोई सहेली है क्या?’’

तब पहली बार मुझे बुरा लगा था. वह मानसी की सहेली थी. अगर मानसी किसी के घर जाए और उस घर के लोग उस के शरीर की बनावट को तोलें तो यह जान कर मुझे कैसा लगेगा? यहां तो मेरा बाप ही ऐसी अशोभनीय हरकत कर रहा था.

मेरे मन में एक दंश सा चुभने लगा. कल को मेरे पिता मेरी पत्नी की क्या इज्जत करेंगे? ये तो शायद उस की भी फिगर ही तोलते रहेंगे. मेरी पत्नी में इन्हें ऐश्वर्या जैसा रूप क्यों चाहिए? मैं ने तो इस बारे में कभी सोचा ही नहीं कि मेरी पत्नी कैसी होगी. मेरी बहन  का रंग सांवला है, शायद इसीलिए मुझे सांवली लड़कियां बहुत अच्छी लगती हैं.

मैंने चाचा की तरफ देखा. उन की नजरें बहुत पारखी हैं. उन्होंने जिसे मेरे लिए पसंद किया होगा वह वास्तव में अति सुंदर होगी, इतनी सुंदर कि उस से हमारा घर रोशन हो जाए. मुझे लगा कि पिता की आदत पर अब रोक नहीं लगाऊंगा तो कब लगाऊंगा. मैं ने चाचा को समझाया कि वे उन से दोबारा बात करें.

‘‘सोमू, वह अब नहीं हो पाएगा.’’

चाचा का उत्तर मुझे निरुत्तर कर गया.

‘‘अपने पिता की आदत पर अंकुश लगाओ,’’ चाचा बोले, ‘‘उम्रदराज इनसान को शालीनता से परहेज नहीं होना चाहिए. खूबसूरती की तारीफ करनी चाहिए. मगर गरिमा के साथ. एक बड़ा आदमी सुंदर लड़की को ‘प्यारी सी बच्ची’ भी तो कह सकता है न. ‘पटाखा’ या ‘फुलझड़ी’ कहना अशोभनीय लगता है.’’

चाचा तो चले गए मगर मेरी आंखों के आगे अंधेरा सा छाने लगा. ऐसा लगने लगा कि मेरा पूरा भविष्य ही अंधकार में डूब जाएगा, अगर कहीं पापा और मेरी पत्नी का रिश्ता सुखद न हुआ तो? पापा का अपमान भी मुझ से सहा नहीं जाएगा और पत्नी की गरिमा की जिम्मेदारी भी मुझ पर ही होगी. तब क्या करूंगा मैं जब पापा की जबान पर अंकुश न हुआ तो?

मां ने तो शायद यह सब सुनने की आदत बना ली है. मेरी पत्नी पापा की आदत पचा पाए, न पचा पाए कौन जाने. अभी पत्नी आई नहीं थी लेकिन उस के आने के बाद की कल्पना से ही मैं डरने लगा था.

सहसा एक दिन कुछ ऐसा हो गया जिस से हमारा सारा परिवार ही हिल गया. हमारी कालोनी से सटा एक मौल है जहां पापा एक दिन सिनेमा देखने चले गए. अकेले गए थे इसलिए हम में से किसी को भी पता नहीं था कि कहां गए हैं. शाम के 5 बजे थे. पापा खून से लथपथ घर आए. उन की सफेद कमीज खून से सनी थी. एक लड़की उन्हें संभाले उन के साथ थी. पता चला कि आदमकद शीशा उन्हें नजर ही नहीं आया था और वे उस से जा टकराए थे. नाक का मांस फट गया था जिस वजह से इतना खून बहा था. पापा को बिस्तर पर लिटा कर मां उन की देखभाल में जुट गईं और मैं उस लड़की के साथ बाहर चला आया.

‘‘ये दवाइयां इन्हें खिलाते रहें. टिटनैस का इंजेक्शन मैं ने लगवा दिया है,’’ इतना कहने के बाद उस लड़की ने अपना पर्स खोल कर दवाइयां निकालीं.

‘‘दरअसल इन का ध्यान कहीं और था. ये दूसरी ओर देख रहे थे. लगता है सुंदर चेहरे अंकल को बहुत आकर्षित करते हैं.’’

जबान जम गई थी मेरी. उस ने नजरें उठा कर मुझे देखा और बताने लगी, ‘‘माफ कीजिएगा, मैं भी उन चेहरों के साथ ही थी. जब ये टकराए तब वे चेहरे तो खिलखिला कर अंदर थिएटर में चले गए लेकिन मैं जा नहीं पाई. मेरी पिक्चर छूट गई, इस की चिंता नहीं. मेरे पिताजी की उम्र का व्यक्ति खून से सना हुआ छटपटा रहा है, यह मुझ से देखा नहीं गया.’’

दवाइयों का पुलिंदा और ढेर सारी हिदायतें मुझे दे कर वह सांवली सी लड़की चली गई. अवाक् छोड़ गई मुझे. मेरे पिता पर उस ने कितने पैसे खर्च दिए पूछने का अवसर ही नहीं दिया उस ने.

नाक की चोट थी. पूरी रात हम जागते रहे. सुबह पापा के कराहने से हमारी तंद्रा टूटी. आंखों के आसपास उभर आई सूजन की वजह से उन की आंखें खुली हैं या बंद, यह हमें पता नहीं चल रहा था.

‘‘वह बच्ची कहां गई. बेचारी कहांकहां भटकी मेरे साथ,’’ पापा का स्वर कमजोर था मगर साफ था, ‘‘बड़ी प्यारी बच्ची थी. वह कहां है?’’

पापा का स्वर पहले जैसा नहीं लगा मुझे. उस साधारण सी लड़की को वह बारबार ‘प्यारी बच्ची’ कह रहे थे. बदलेबदले से लगे मुझे पापा. यह चोट शायद उन्हें सच के दर्शन करा गई थी. सुंदर चेहरे उन पर हंस कर चले गए और साधारण चेहरा उन्हें संभाल कर घर छोड़ गया था. एक कमजोर सी आशा जागी मेरे मन में. हो सकता है अब पापा भी मेरी ही तरह कहने लगें, ‘साधारण सी लड़की चाहिए, ऐश्वर्या नहीं चाहिए मुझे.’

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‘‘उम्र उम्र की बात होती है. जवानी में जो अच्छा लगता है बुढ़ापे में अकसर अच्छा नहीं लगता. इसी को तो कहते हैं जेनरेशन गैप यानी पीढ़ी का अंतर. जब मांबाप बच्चे थे तब वे अपने मांबाप को दकियानूसी कहते थे. अब जब खुद मांबाप बन गए हैं तो दकियानूसी नहीं हैं. अब बच्चे उद्दंड और मुंहजोर हैं. मतलब चित भी मांबाप की और पट भी उन्हीं की. किस्सा यहां समाप्त होता है कि मांबाप सदा ही ठीक थे, वे चाहे आप हों चाहे हम.’’

राघव चाचा मुसकराते हुए कह रहे थे और मम्मीपापा कभी मेरा और कभी चाचा का मुंह देख रहे थे. राघव चाचा शुरू से मस्तमलंग किस्म के इनसान रहे हैं. मैं अकसर सोचा करता था और आज भी सोचता हूं, क्या चाचा का कभी किसी से झगड़ा नहीं होता? चिरपरिचित मुसकान चेहरे पर और नजर ऐसी मानो आरपार सब पढ़ ले.

‘‘इनसान इस संसार को और अपने रिश्तों को सदा अपने ही फीते से नापता है और यहीं पर वह भूल कर जाता है कि उस का फीता जरूरत के अनुसार छोटाबड़ा होता रहता है. अपनी बच्ची का रिश्ता हो रहा हो तो दहेज संबंधी सभी कानून उसे याद होंगे और अपनी बच्ची संसार की सब से सुंदर लड़की भी होगी क्योंकि वह आप की बच्ची है न.’’

‘‘तुम कहना क्या चाहते हो, राघव,’’ पिताजी बोले, ‘‘साफसाफ बात करो न.’’

‘‘साफसाफ ही तो कर रहा हूं. सोमू के रिश्ते के लिए कुछ दिन पहले एक पतिपत्नी आप के घर आए थे…’’

पिताजी ने राघव चाचा की बात बीच में काटते हुए कहा था, ‘‘आजकल सोमू के रिश्ते को ले कर कोई न कोई घर आता ही रहता है. खासकर तब से जब से मैं ने अखबार में विज्ञापन दिया है.’’

‘‘मैं अखबार की बात नहीं कर रहा हूं,’’ राघव चाचा बोले, ‘‘अखबार के जरिए जो रिश्ते आते हैं वे हमारी जानपहचान के नहीं होते. आप ने उन से क्या कहा क्या नहीं, बात बनी, नहीं बनी, किसे पता. दूर से कोई आया, आप से मिला, आप की सुनी, उसे जंची, नहीं जंची, वह चला गया, किसे पता किसे कौन नहीं जंचा. किस ने क्या कहा, किस ने क्या सुना…’’

चाचा के शब्दों पर मैं तनिक चौंक गया. मैं पापा के साथ ही उन के कामकाज मेें हाथ बटाता हूं. आजकल बड़े जोरशोर से मेरे लिए लड़की ढूंढ़ी जा रही है. घर में भी और दफ्तर में भी. कौन किस नजर से आता है, देखतासुनता है वास्तव में मुझे भी पता नहीं होता.

‘‘याद है न जब मानसी के लिए लड़का ढूंढ़ा जा रहा था तब आप की गरदन कैसी झुकी होती थी. उस का रंग सांवला है, उसी पर आप उठतेबैठते चिंता जाहिर करते थे. मैं तब भी आप को यही समझाता था कि रंग गोराकाला होने से कोई फर्क नहीं पड़ता. पूरा का पूरा अस्तित्व गरिमामय हो, उचित पहनावा हो, शालीनता हो तो कोई भी लड़की सुंदर होती है. गोरी चमड़ी का आप क्या करेंगे, जरा मुझे समझाइए. यदि लड़की में संस्कार ही न हुए तो गोरे रंग से ही क्या आप का पेट भर जाएगा? आप का सम्मान ही न करे, जो हवा में तितली की तरह उड़ती फिरे, जो जमीन से कोसों दूर हो, क्या वैसी लड़की चाहिए आप को?

‘‘अच्छा, एक बात और, आप मध्यमवर्गीय परिवार से आते हैं न, जहां दिन चढ़ते ही जरूरतों से भिड़ना पड़ता है. भाभी सारा दिन रसोई में खटती हैं और जिस दिन काम वाली न आए, उन्हें बरतन भी साफ करने पड़ते हैं. यह सोमू भी एक औसत दर्जे का लड़का है, जो पूरी तरह आप के हाथ के नीचे काम करता है. इस की अपनी कोई पहचान नहीं बनी है. आप हाथ खींच लें तो दो वक्त की रोटी भी मुश्किल से कमा सकेगा. आप का बुढ़ापा तभी सुखमय होगा जब संस्कारी बहू आ कर आप से जुड़ जाएगी. कहिए, मैं सच कह रहा हूं कि नहीं?’’

राघव चाचा ने एक बार पूछा तो मम्मीपापा आंखें फाड़फाड़ कर उन का चेहरा देख रहे थे. सच ही तो कह रहे थे चाचा. मेरी अपनी अभी कोई पहचान है कहां. वकालत पढ़ने के बाद पापा की ही तो सहायता कर रहा हूं मैं.

‘‘मेरे एक मित्र की भतीजी है जो मुझे बड़ी प्यारी लगती है. काफी समय से उन के घर मेरा आनाजाना है. वह मुझे अपनीअपनी सी लगती है. सोचा, मेरे ही घर में क्यों न आ जाए. मुझे सोमू के लिए वह लड़की उचित लगी. उस के मांबाप आप का घरद्वार देखने आए थे. मेरे साथ वे नहीं आना चाहते थे, क्योंकि अपने तरीके से वे सब कुछ देखना चाहते थे.’’

‘‘कौन थे वे और कहां से आए थे?’’

‘‘आप ने क्या कहा था उन्हें? आप को तो सुंदर लड़की चाहिए जो ‘ऐश्वर्या राय तो मैं नहीं कहता हो पर उस के आसपास तो हो,’ यही कहा था न आप ने?’’

मैं चाचा की बात सुन कर अवाक् रह गया था. क्या पापा ने उन से ऐसा कहा था? ठगे से पापा जवाब में चुप थे. इस का मतलब चाचा जो कह रहे थे सच है.

‘‘क्या आप अमिताभ बच्चन हैं और आप का बेटा अभिषेक, जिस की लंबाई 5 फुट 7 इंच’ है. आप एक आम इनसान हैं और हम और? क्या आप को ऐश्वर्या राय चाहिए? अपने घर में? क्या ऐश्वर्या राय को संभालने की हिम्मत है आप के बेटे में?… इनसान उतना ही मुंह खोले जितना पचा सके और जितनी चादर हो उतने ही पैर पसारे.’’

‘‘बस करो, राघव,’’ मां तिलमिला कर बोलीं, ‘‘क्या बकबक किए जा रहे हो.’’

‘‘बुरा लग रहा है न सुन कर? मुझे भी लगा था. मुझे सुन कर शर्म आ गई जब उन्होंने मुझ से हाथ जोड़ कर माफी मांग ली. भैया को शर्म नहीं आई अपनी भावी बहू के बारे में विचार व्यक्त करते हुए…भैया, आप किसी राह चलती लड़की पर फबती कसें तो मैं मान लूंगा क्योंकि मैं जानता हूं कि आप कैसे चरित्र के मालिक हैं. पराई लड़कियां आप की नजर में सदा ही पराई रही हैं, जिन पर आप कोई भी फिकरा कस लेते हैं, लेकिन अपनी बहू ढूंढ़ने वाला एक सम्मानजनक ससुर क्या इस तरह की बात करता है, जरा सोचिए. आप तब अपनी बहू के बारे में बात कर रहे थे या किसी फिल्म की हीरोइन के बारे में?’’

पापा ने तब कुछ नहीं कहा. माथे पर ढेर सारे बल समेटे कभी इधर देखते कभी उधर. गलत नहीं कह रहे हैं चाचा. मेरे पापा जब भी किसी की लड़की के बारे में बात करते हैं, तब उन का तरीका सम्मानजनक नहीं होता. इस उम्र में भी वे लड़कियों को पटाखा, फुलझड़ी और न जाने क्याक्या कहते हैं. मुझे अच्छा नहीं लगता पर क्या कर सकता हूं. मां को भी उन का ऐसा व्यवहार पसंद नहीं है.

‘‘अब आप बड़े हो गए हैं भैया. अपना चरित्र जरा सा बदलिए. छिछोरापन आप को नहीं जंचता. हमें स्वप्न सुंदरी नहीं, गृहलक्ष्मी चाहिए, जो हमारे घर में रचबस जाए और लड़की वालों को इतना सस्ता भी न आंको कि उन्हें आप कहीं भी फेंक देंगे. लड़की वाले भी देखते हैं कि कहां उन की बेटी की इज्जत हो पाएगी, कहां नहीं. जिस घर में ससुर ही ऐसी भाषा बोलेगा वहां बाकी सब कैसा बोलते होंगे यह सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है.’’

‘‘कौन थे वे लोग? और कहां से आए थे?’’ मां ने प्रश्न किया.

‘‘वे जहां से भी आए हों पर उन्होंने साफसाफ कह दिया है कि राघवजी, आप के भाई का परिवार बेहद सुंदर है और इतने सुंदर परिवार में हमारी लड़की कहीं भी फिट नहीं बैठ पाएगी. वह एक सामान्य रंगरूप की लड़की है जो हर कार्य और गुण में दक्ष है, लेकिन ऐश्वर्या जैसी किसी भी कोण से नहीं लगती.’’

चाचा उठ खड़े हुए. उड़ती सी नजर मुझ पर डाली, मानो मुझ से कोई राय लेना चाहते हों. क्या वास्तव में मुझे भी कोई रूपसी ही चाहिए, जिस के नखरे भी मैं शायद नहीं उठा पाऊंगा. राह चलते जो रूप की चांदी यहांवहां बिखराती रहे और मैं असुरक्षा के भाव से ही घिरा रहूं. मैं ही कहां का देवपुरुष हूं, जिसे कोई अप्सरा चाहिए. चाचा सच ही कह रहे हैं कि पापा को ऐसा नहीं कहना चाहिए था. मैं ने एकाध बार पापा को समझाया भी था तो उन्होंने मुझे बुरी तरह डांट दिया था, ‘बाप को समझा रहा है. बड़ा मुंहजोर है तू.’

मुझे याद है एक बार मानसी की एक सहेली घर आई थी. पापा ने उसे देख कर मुझ से ही पूछा था :

‘‘सोमू, यह पटाखा कौन है? इस की फिगर बड़ी अच्छी है. तुम्हारी कोई सहेली है क्या?’’

तब पहली बार मुझे बुरा लगा था. वह मानसी की सहेली थी. अगर मानसी किसी के घर जाए और उस घर के लोग उस के शरीर की बनावट को तोलें तो यह जान कर मुझे कैसा लगेगा? यहां तो मेरा बाप ही ऐसी अशोभनीय हरकत कर रहा था.

मेरे मन में एक दंश सा चुभने लगा. कल को मेरे पिता मेरी पत्नी की क्या इज्जत करेंगे? ये तो शायद उस की भी फिगर ही तोलते रहेंगे. मेरी पत्नी में इन्हें ऐश्वर्या जैसा रूप क्यों चाहिए? मैं ने तो इस बारे में कभी सोचा ही नहीं कि मेरी पत्नी कैसी होगी. मेरी बहन  का रंग सांवला है, शायद इसीलिए मुझे सांवली लड़कियां बहुत अच्छी लगती हैं.

मैंने चाचा की तरफ देखा. उन की नजरें बहुत पारखी हैं. उन्होंने जिसे मेरे लिए पसंद किया होगा वह वास्तव में अति सुंदर होगी, इतनी सुंदर कि उस से हमारा घर रोशन हो जाए. मुझे लगा कि पिता की आदत पर अब रोक नहीं लगाऊंगा तो कब लगाऊंगा. मैं ने चाचा को समझाया कि वे उन से दोबारा बात करें.

‘‘सोमू, वह अब नहीं हो पाएगा.’’

चाचा का उत्तर मुझे निरुत्तर कर गया.

‘‘अपने पिता की आदत पर अंकुश लगाओ,’’ चाचा बोले, ‘‘उम्रदराज इनसान को शालीनता से परहेज नहीं होना चाहिए. खूबसूरती की तारीफ करनी चाहिए. मगर गरिमा के साथ. एक बड़ा आदमी सुंदर लड़की को ‘प्यारी सी बच्ची’ भी तो कह सकता है न. ‘पटाखा’ या ‘फुलझड़ी’ कहना अशोभनीय लगता है.’’

चाचा तो चले गए मगर मेरी आंखों के आगे अंधेरा सा छाने लगा. ऐसा लगने लगा कि मेरा पूरा भविष्य ही अंधकार में डूब जाएगा, अगर कहीं पापा और मेरी पत्नी का रिश्ता सुखद न हुआ तो? पापा का अपमान भी मुझ से सहा नहीं जाएगा और पत्नी की गरिमा की जिम्मेदारी भी मुझ पर ही होगी. तब क्या करूंगा मैं जब पापा की जबान पर अंकुश न हुआ तो?

मां ने तो शायद यह सब सुनने की आदत बना ली है. मेरी पत्नी पापा की आदत पचा पाए, न पचा पाए कौन जाने. अभी पत्नी आई नहीं थी लेकिन उस के आने के बाद की कल्पना से ही मैं डरने लगा था.

सहसा एक दिन कुछ ऐसा हो गया जिस से हमारा सारा परिवार ही हिल गया. हमारी कालोनी से सटा एक मौल है जहां पापा एक दिन सिनेमा देखने चले गए. अकेले गए थे इसलिए हम में से किसी को भी पता नहीं था कि कहां गए हैं. शाम के 5 बजे थे. पापा खून से लथपथ घर आए. उन की सफेद कमीज खून से सनी थी. एक लड़की उन्हें संभाले उन के साथ थी. पता चला कि आदमकद शीशा उन्हें नजर ही नहीं आया था और वे उस से जा टकराए थे. नाक का मांस फट गया था जिस वजह से इतना खून बहा था. पापा को बिस्तर पर लिटा कर मां उन की देखभाल में जुट गईं और मैं उस लड़की के साथ बाहर चला आया.

‘‘ये दवाइयां इन्हें खिलाते रहें. टिटनैस का इंजेक्शन मैं ने लगवा दिया है,’’ इतना कहने के बाद उस लड़की ने अपना पर्स खोल कर दवाइयां निकालीं.

‘‘दरअसल इन का ध्यान कहीं और था. ये दूसरी ओर देख रहे थे. लगता है सुंदर चेहरे अंकल को बहुत आकर्षित करते हैं.’’

जबान जम गई थी मेरी. उस ने नजरें उठा कर मुझे देखा और बताने लगी, ‘‘माफ कीजिएगा, मैं भी उन चेहरों के साथ ही थी. जब ये टकराए तब वे चेहरे तो खिलखिला कर अंदर थिएटर में चले गए लेकिन मैं जा नहीं पाई. मेरी पिक्चर छूट गई, इस की चिंता नहीं. मेरे पिताजी की उम्र का व्यक्ति खून से सना हुआ छटपटा रहा है, यह मुझ से देखा नहीं गया.’’

दवाइयों का पुलिंदा और ढेर सारी हिदायतें मुझे दे कर वह सांवली सी लड़की चली गई. अवाक् छोड़ गई मुझे. मेरे पिता पर उस ने कितने पैसे खर्च दिए पूछने का अवसर ही नहीं दिया उस ने.

नाक की चोट थी. पूरी रात हम जागते रहे. सुबह पापा के कराहने से हमारी तंद्रा टूटी. आंखों के आसपास उभर आई सूजन की वजह से उन की आंखें खुली हैं या बंद, यह हमें पता नहीं चल रहा था.

‘‘वह बच्ची कहां गई. बेचारी कहांकहां भटकी मेरे साथ,’’ पापा का स्वर कमजोर था मगर साफ था, ‘‘बड़ी प्यारी बच्ची थी. वह कहां है?’’

पापा का स्वर पहले जैसा नहीं लगा मुझे. उस साधारण सी लड़की को वह बारबार ‘प्यारी बच्ची’ कह रहे थे. बदलेबदले से लगे मुझे पापा. यह चोट शायद उन्हें सच के दर्शन करा गई थी. सुंदर चेहरे उन पर हंस कर चले गए और साधारण चेहरा उन्हें संभाल कर घर छोड़ गया था. एक कमजोर सी आशा जागी मेरे मन में. हो सकता है अब पापा भी मेरी ही तरह कहने लगें, ‘साधारण सी लड़की चाहिए, ऐश्वर्या नहीं चाहिए मुझे.’

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