Wednesday 23 March 2022

अतीत का साया: भाग 1

एअर इंडिया के जहाज में बैठी मृदुला अतीत में खोई हुई थी. परिचारिका की आवाज सुन कर कि ‘मैडम, सीट बैल्ट लगा लीजिए, जहाज दिल्ली के हवाई अड्डे पर लैंड करने वाला है,’ वह एकाएक संभली.

जहाज से उतरते ही वह टैक्सी ले कर होस्टल में अपने वार्डन वाले फ्लैट में पहुंच गई. उस की नौकरानी ने पहले ही उसे टैक्सी से उतरते देख लिया था, सो पूछ बैठी, ‘‘बीबीजी, आप इतनी जल्दी कैसे आ गईं? आप तो एक महीने बाद आने वाली थीं?’’

मृदुला  झल्ला उठी थी और बिना उस की ओर देखे कह उठी, ‘‘अभी तू जा, मैं बहुत थक गई हूं, आराम करना चाहती हूं.’’

उस के जाते ही मृदुला लेट गई और अतीत में खो गई.

लगभग 28 वर्ष पहले उस के पिता ने बड़े अरमानों से उस का विवाह एक संपन्न परिवार के एकलौते बेटे अविनाश से कर के राहत की सांस ली थी.

रिश्तेदारों ने भी पूछा था, ‘मास्टर साहब, यह सब आप ने कैसे संभव किया?’

‘यह सब ऊपर वाले की कृपा से ही संभव हुआ है,’ उन्होंने ऊपर हाथ उठा कर कहा था.

अविनाश के घर वालों ने भी तो मृदुला को सिरआंखों पर लिया था. तभी उसे एक दिन अचानक पता चला कि सिर्फ 2 महीने बाद अविनाश पीएचडी करने अमेरिका जाने वाला है. यह सबकुछ इतनी जल्दीजल्दी हो रहा था कि मृदुला न खुश हो पा रही थी न दुखी. हां, उसे इतना अवश्य लग रहा था कि उन्होंने यह बात उसे शादी से पहले न बता कर ठीक नहीं किया और यही सोच कर वह रातों को जागती व दिन व्यस्तता में बीतते.

ये भी पढ़ें- अग्निपरीक्षा: श्रेष्ठा की जिंदगी में क्या तूफान आया?

अविनाश के अमेरिका जाने का समय भी आ गया. आश्वासनों और भविष्य की कल्पनाओं के साथ वह बिछुड़ गई. पति का अभाव भुलाने के लिए उसे कुछ दिनों के लिए मायके भेज दिया गया. कुछ समय के लिए तो अपनों व सहेलियों के बीच वह सबकुछ भूल गई थी, तभी अचानक उस का जी मिचलाने के साथ उसे पता लगा कि वह मां बनने वाली है. उसे अविनाश से अमेरिका में शीघ्र मिलने की आशाएं धूमिल होने लगीं, पर अविनाश के पत्र, सासससुर का लाड़प्यार और शीघ्र मिलने का उस का आश्वासन ही उसे अकेलेपन का एहसास नहीं होने दे रहा था.

समय बीता. घर में एक नन्हे से सुंदर शिशु ने जन्म लिया. खुशियां मनीं, मिठाइयां बंटीं और न जाने क्याक्या हुआ. बच्चा होते ही अकेलेपन का बचाखुचा एहसास भी न जाने कहां गायब हो गया.

अब तो उसे न पति के पत्र का इंतजार, न उस की याद. बस, सारा समय अरुण के साथ ऐसे ही निकल जाता जैसे उस के जीवन का सबकुछ वही है. मायके वाले भी खुश थे कि अरुण के आ जाने से उस का समय भी आसानी से कट जाएगा और कट भी रहा था.

अविनाश के शीघ्र बुलाने के आश्वासनों में 3 वर्ष बीत गए और उसे पता न लगा हो, ऐसी बात भी नहीं, पर वर्तमान और भविष्य की कल्पनाओं के बीच वास्तव में उसे अकेलेपन का एहसास नहीं हुआ. किसी को क्या पता था कि उसे यही जीवन जीने के लिए तैयार होना पड़ रहा था.

एक दिन अचानक अविनाश के मित्र के पास आए अविनाश के एक पत्र ने सब की आशाओं पर पानी फेर दिया और मृदुला का भविष्य तो पूरी तरह अंधकारमय कर दिया था. अविनाश ने लिखा था कि किन्हीं कारणवश वह एक अमेरिकी लड़की से शादी कर रहा है और उस ने आग्रह किया था कि वह यह बात उचित समय पर मम्मी को बता दे तथा हो सके तो उस की ओर से क्षमा मांग ले.

ये भी पढ़ें- परदे: भाग 1- क्या स्नेहा के सामने आया मनोज?

यह जान कर सब पर क्या बीती थी, उसे समय के थपेड़ों ने अब पूरी तरह भुला दिया था. मृदुला को इतना अवश्य याद है कि सब ने पत्रों द्वारा अविनाश से कई बार संबंध कायम करने के प्रयास किए थे, पर वे बिलकुल निरर्थक साबित हुए थे. उस ने तो जैसे भारत से और घर वालों से हमेशा के लिए नाता तोड़ लिया था और मृदुला भी अरुण को ले कर अब मायके आ गई थी.

उधर अविनाश के मम्मीडैडी तो इसे बरदाश्त ही नहीं कर पाए. पहले मम्मी और फिर डैडी, अरुण और मृदुला के नाम सबकुछ छोड़ कर चल बसे.

हालांकि वे इतना छोड़ गए थे कि वह और अरुण जीवनभर घरबैठे खाते तो भी खत्म न होता, पर मृदुला का स्वाभिमान ऐसा करने से उसे रोक रहा था. उस ने संकल्प लिया कि वह अपने पैरों पर खड़ी होगी और अरुण को इतना ऊंचा उठाएगी कि अगर कभी अविनाश को उस का एहसास हो तो वह अपनी करनी पर पछताए.

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एअर इंडिया के जहाज में बैठी मृदुला अतीत में खोई हुई थी. परिचारिका की आवाज सुन कर कि ‘मैडम, सीट बैल्ट लगा लीजिए, जहाज दिल्ली के हवाई अड्डे पर लैंड करने वाला है,’ वह एकाएक संभली.

जहाज से उतरते ही वह टैक्सी ले कर होस्टल में अपने वार्डन वाले फ्लैट में पहुंच गई. उस की नौकरानी ने पहले ही उसे टैक्सी से उतरते देख लिया था, सो पूछ बैठी, ‘‘बीबीजी, आप इतनी जल्दी कैसे आ गईं? आप तो एक महीने बाद आने वाली थीं?’’

मृदुला  झल्ला उठी थी और बिना उस की ओर देखे कह उठी, ‘‘अभी तू जा, मैं बहुत थक गई हूं, आराम करना चाहती हूं.’’

उस के जाते ही मृदुला लेट गई और अतीत में खो गई.

लगभग 28 वर्ष पहले उस के पिता ने बड़े अरमानों से उस का विवाह एक संपन्न परिवार के एकलौते बेटे अविनाश से कर के राहत की सांस ली थी.

रिश्तेदारों ने भी पूछा था, ‘मास्टर साहब, यह सब आप ने कैसे संभव किया?’

‘यह सब ऊपर वाले की कृपा से ही संभव हुआ है,’ उन्होंने ऊपर हाथ उठा कर कहा था.

अविनाश के घर वालों ने भी तो मृदुला को सिरआंखों पर लिया था. तभी उसे एक दिन अचानक पता चला कि सिर्फ 2 महीने बाद अविनाश पीएचडी करने अमेरिका जाने वाला है. यह सबकुछ इतनी जल्दीजल्दी हो रहा था कि मृदुला न खुश हो पा रही थी न दुखी. हां, उसे इतना अवश्य लग रहा था कि उन्होंने यह बात उसे शादी से पहले न बता कर ठीक नहीं किया और यही सोच कर वह रातों को जागती व दिन व्यस्तता में बीतते.

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अविनाश के अमेरिका जाने का समय भी आ गया. आश्वासनों और भविष्य की कल्पनाओं के साथ वह बिछुड़ गई. पति का अभाव भुलाने के लिए उसे कुछ दिनों के लिए मायके भेज दिया गया. कुछ समय के लिए तो अपनों व सहेलियों के बीच वह सबकुछ भूल गई थी, तभी अचानक उस का जी मिचलाने के साथ उसे पता लगा कि वह मां बनने वाली है. उसे अविनाश से अमेरिका में शीघ्र मिलने की आशाएं धूमिल होने लगीं, पर अविनाश के पत्र, सासससुर का लाड़प्यार और शीघ्र मिलने का उस का आश्वासन ही उसे अकेलेपन का एहसास नहीं होने दे रहा था.

समय बीता. घर में एक नन्हे से सुंदर शिशु ने जन्म लिया. खुशियां मनीं, मिठाइयां बंटीं और न जाने क्याक्या हुआ. बच्चा होते ही अकेलेपन का बचाखुचा एहसास भी न जाने कहां गायब हो गया.

अब तो उसे न पति के पत्र का इंतजार, न उस की याद. बस, सारा समय अरुण के साथ ऐसे ही निकल जाता जैसे उस के जीवन का सबकुछ वही है. मायके वाले भी खुश थे कि अरुण के आ जाने से उस का समय भी आसानी से कट जाएगा और कट भी रहा था.

अविनाश के शीघ्र बुलाने के आश्वासनों में 3 वर्ष बीत गए और उसे पता न लगा हो, ऐसी बात भी नहीं, पर वर्तमान और भविष्य की कल्पनाओं के बीच वास्तव में उसे अकेलेपन का एहसास नहीं हुआ. किसी को क्या पता था कि उसे यही जीवन जीने के लिए तैयार होना पड़ रहा था.

एक दिन अचानक अविनाश के मित्र के पास आए अविनाश के एक पत्र ने सब की आशाओं पर पानी फेर दिया और मृदुला का भविष्य तो पूरी तरह अंधकारमय कर दिया था. अविनाश ने लिखा था कि किन्हीं कारणवश वह एक अमेरिकी लड़की से शादी कर रहा है और उस ने आग्रह किया था कि वह यह बात उचित समय पर मम्मी को बता दे तथा हो सके तो उस की ओर से क्षमा मांग ले.

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यह जान कर सब पर क्या बीती थी, उसे समय के थपेड़ों ने अब पूरी तरह भुला दिया था. मृदुला को इतना अवश्य याद है कि सब ने पत्रों द्वारा अविनाश से कई बार संबंध कायम करने के प्रयास किए थे, पर वे बिलकुल निरर्थक साबित हुए थे. उस ने तो जैसे भारत से और घर वालों से हमेशा के लिए नाता तोड़ लिया था और मृदुला भी अरुण को ले कर अब मायके आ गई थी.

उधर अविनाश के मम्मीडैडी तो इसे बरदाश्त ही नहीं कर पाए. पहले मम्मी और फिर डैडी, अरुण और मृदुला के नाम सबकुछ छोड़ कर चल बसे.

हालांकि वे इतना छोड़ गए थे कि वह और अरुण जीवनभर घरबैठे खाते तो भी खत्म न होता, पर मृदुला का स्वाभिमान ऐसा करने से उसे रोक रहा था. उस ने संकल्प लिया कि वह अपने पैरों पर खड़ी होगी और अरुण को इतना ऊंचा उठाएगी कि अगर कभी अविनाश को उस का एहसास हो तो वह अपनी करनी पर पछताए.

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March 24, 2022 at 09:26AM

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