Monday 21 March 2022

रोजी रोटी: लालाजी ने कैसे रिश्वतखोरी का विरोध किया?

‘‘मेरे यहां न तो कोई गलत माल बनता है न ही मैं मिलावट करता हूं. मैं किस बात का महीना दूं?’’ लाला कुंदन लाल ने रोष भरे स्वर में कहा.

‘‘लालाजी, बात अकेली मिलावट की नहीं है…अब पुराने नियम और तरीके सब बदल चुके हैं. मिलावट के साथसाथ अब सफाई, रंग और कैलोरी आदि की भी जांच की जाती है,’’ स्वास्थ्य विभाग के चपरासी श्यामलाल ने धीमे स्वर में कहा.

‘‘मगर मेरे यहां सफाई का स्तर ठीक है. आप सारे रेस्तरां में कहीं भी गंदगी दिखाएं, किचन में सबकुछ स्टैंडर्ड का है.’’

‘‘ये सब बातें कहने की हैं. अफसर लोग नहीं मानते.’’

‘‘मांग जायज हो तो मानें. पिछले 3 साल से महीने की दर बढ़तेबढ़ते 10 गुनी हो गई है…यह तो सरासर लूट है.’’

‘‘महीना सब का बढ़ाया है, अकेले आप ही का नहीं.’’

‘‘मगर मैं इतना नहीं दे सकता.’’

‘‘सोचविचार कर लीजिए. खामख्वाह पंगा पड़ जाएगा,’’ एक तरह से धमकी देता श्यामलाल चला गया.

चपरासी के जाते दोनों बेटे सुरेश और अशोक भी पिता के पास आ गए. कहां तो 100 रुपए महीना था, अब 3 हजार रुपए महीना मांगा जा रहा है. पहले मिलावट के मामले में सजा अधिकतम 6 महीने से 1 साल तक थी साथ में 1 से 2 हजार रुपए तक जुर्माना था.

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नए प्रावधानों में अब न्यूनतम सजा 3 साल की तथा जुर्माना 25 हजार से 3 लाख रुपए तक हो गया था. जैसे ही कानून सख्त हुआ था वैसे ही रिश्वत की दर भी आसमान पर पहुंच गई. सफाई या हाईजिन स्तर के नाम पर किसी प्रतिष्ठान, दुकान को बंद करवाने का अधिकार भी खाद्य निरीक्षक को मिल गया था. इस से भी अब लूट बढ़ गई थी.

लालजी की गोलहट्टी के नाम से खानेपीने की दुकान सारे शहर में मशहूर थी. माल का स्तर शुरू से काफी अच्छा था. मिलावट वाली कोई वस्तु नहीं थी.  मिलावट तो नहीं थी मगर प्रयोग- शालाओं में कई अन्य आधारों पर नमूना फेल हो जाता था. नमूने को कभी स्तरहीन या अखाद्य या ‘एक्सपायर्ड’ भी करार दे दिया जाता था, जिस से मुकदमा दर्ज हो जाता था या फिर दुकान बंद हो जाती.

जितने ज्यादा नए कानून बनते उतने नए अपराधी बनते. जितना सख्त कानून होता उतना ज्यादा रिश्वत का रेट होता. अपराध तो कम नहीं होते थे, भ्रष्टाचार जरूर बढ़ जाता था.  लाला कुंदन लाल ने जीवनभर मिलावट नहीं की थी. वे ऐसा करना पसंद नहीं करते थे. ग्राहकों को साफसुथरा खाना देना अपना कर्तव्य समझते थे. किसी जमाने में मिलावट का नाम भी नहीं था. मिलावट क्या होती है…कोई नहीं जानता था.  तब खाद्य निरीक्षक का पद भी नहीं था. नगर परिषद का सैनेटरी इंस्पैक्टर कभीकभार बाजार का चक्कर लगा लेता था. किसीकिसी का सैंपल या नमूना ले कर प्रयोगशाला को भेज दिया करता था. सैंपल फेल कम आते थे. सैंपल फेल आने पर जुर्माना होता था जो 50 रुपए से 400-500 रुपए तक था. मगर ऐसा कम ही होता था. कोई सजा का मामला नहीं था.

अब वक्त बदल चुका था. आबादी बहुत बढ़ गई थी. साथ ही कानून और अपराधी भी. अब सैंपल या नमूना फेल ज्यादा आते थे, पास कम होते थे. गेहूं के साथ घुन भी पिसता है, के समान मिलावट न करने वाले भी फंस जाते थे.

लाला कुंदन लाल के साथ दोनों बेटे भी विचारमग्न थे. क्या करें? कभी रिश्वत मात्र 100  रुपए महीना थी अब 3 हजार रुपए मांगे जा रहे थे. कल को या भविष्य में 30 हजार रुपए महीना भी मांगे जा सकते थे. वे मिलावट नहीं करते थे मगर हर जगह बेईमानी थी. प्रयोगशालाओं में नमूने फेल, पास करवाए जाते थे.  अपने विरोधी या प्रतिद्वंद्वी को फंसाने के लिए कई व्यापारी उस का नमूना प्रयोगशाला में फेल करवा देते थे. बदले समय के साथ अब व्यापार में भी घटियापन बढ़ गया था.

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‘‘फूड इंस्पैक्टर 3 हजार रुपए महीना मांग रहा है,’’ लालाजी ने दोनों बेटों को बताया.

‘‘पिताजी, दे दीजिए. सैंपल भर लिया, फेल करवा दिया तब परेशानी बढ़ जाएगी,’’ छोटे बेटे अशोक ने कहा.

‘‘मगर इन की मांग सुरसा के मुंह के समान बढ़ती जा रही है. कभी 100 रुपए महीना था. अब 3 हजार रुपए मांग रहे हैं, साथ ही आधा दर्जन लोग खाने आ जाते हैं,’’ लालाजी ने रोष भरे स्वर में कहा.

इस पर दोनों बेटे खामोश हो गए. क्या करें? पुराना फूड इंस्पैक्टर शरीफ था. 100 रुपए महीना लेने पर भी विनम्रता से पेश आता था. नए जमाने का खाद्य निरीक्षक 3 हजार ले कर भी रूखे और रोबीले अंदाज में बात करता था.  लालाजी मिलावट पहले नहीं करते थे, अब भी नहीं करते. बात सिर्फ इंसाफ की थी. इंसाफ कहां था? प्रयोगशालाओं में निष्पक्षता न थी यही सब से बड़ी समस्या थी.  2 दिन बाद, चपरासी श्यामलाल दोबारा आया.

‘‘लालाजी, क्या इरादा है?’’

‘‘मैं ने पहले भी कहा है, मैं मिलावट नहीं करता. मैं महीना किस बात का दूं?’’ दोटूक स्वर में लालाजी ने कहा.

‘‘लालाजी, सोच लीजिए,’’ यह बोल कर गुस्से से तमतमाता चपरासी वापस चला गया.

‘‘पिताजी, आप ने यह क्या किया? अब यह हमारा सैंपल भरवा देगा?’’ दोनों बेटों ने पिताजी के पास आ कर कहा.

‘‘जो होगा देखेंगे. जोरजबरदस्ती की भी एक सीमा है. जब हम मिलावट ही नहीं करते तब महीना किस बात का दें.’’

‘‘पिताजी, वे प्रयोगशाला से नमूना फेल करवा देंगे.’’

‘‘जो होगा देखेंगे. अब मैं 60 साल का हूं. मुकदमा हो भी जाता है तो भी परवा नहीं है,’’ लालाजी के स्वर में एक निश्चय और चेहरे पर आभा थी.

शाम से पहले एक बड़ी स्टेशनवैगन गोलहट्टी के सामने आ कर रुकी. चिरपरिचित खाद्य निरीक्षक सोम कुमार और स्वास्थ्य अधिकारी मैडम शकुंतला उतर कर दुकान में प्रवेश कर गए.

‘‘दुकान का मालिक कौन है?’’ फूड इंस्पैक्टर ने रौब से पूछा.  लालाजी सब माजरा समझ रहे थे. दर्जनों बार परिवार सहित खापी कर जाने वाला पूछ रहा है कि दुकान का मालिक कौन है.

‘‘मैं हूं जी, बात क्या है?’’

इस दबंग जवाब की उम्मीद फूड इंस्पैक्टर को न थी.

‘‘क्याक्या बनाते हैं आप?’’

‘‘सामने काउंटर में रखा है, देख लीजिए.’’

‘‘आप के पास इस काम का लाइसैंस है?’’

‘‘हां, है जी. यह देखिए,’’ लालाजी ने शीशे से मढ़ी तसवीर के समान फ्रेम में जड़ी म्यूनिसिपैलिटी के लाइसैंस की कापी सामने रखते हुए कहा.

‘‘आप के खिलाफ स्तरहीन खाद्य- पदार्थ बनाने और बेचने की शिकायत है, आप का नमूना भरना है.’’

‘‘जरूर भरिए, किस चीज का नमूना दें?’’इस बेबाक जवाब पर खाद्य निरीक्षक सकपका गया. काउंटर वातानुकूलित था. माल सब साफ था. दुकान में मक्खी, कीट, मच्छर का नामोनिशान तक न था. दुकान में सर्वत्र साफसफाई थी. रसोईघर साफसुथरा था.  गुलाबजामुन और रसगुल्लों का नमूना ले लिया. पहले कभी आने पर लालाजी ड्राईफू्रट से आवभगत करते थे मगर इस बार जानबूझ कर पानी भी नहीं पूछा. इस से इंस्पैक्टर चिढ़ गया.

नमूना ले सब चले गए.  ‘‘पिताजी, अगर नमूना फेल हो गया तो?’’ दोनों बेटों ने कहा, ‘‘पड़ोसी कहता है वह एक दलाल को जानता है जो प्रयोगशाला से नमूना पास करवा सकता है.’’

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‘‘मगर हम तो मिलावट करते नहीं हैं, हौसला रखो, जो होगा देखेंगे.’’  शाम को चपरासी फिर आया. लालाजी ने प्रश्नवाचक निगाहों से घूरते हुए उस की तरफ देखा.

‘‘फूड इंस्पैक्टर कहता है अगर आप को मामला निबटाना है तो निबट सकता है.’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘आप चाहें तो नमूना यहीं खत्म कर देते हैं. प्रयोगशाला में नहीं भेजेंगे और आप चाहें तो नमूना प्रयोगशाला से पास भी करवा सकते हैं. हमारे पास दोनों इंतजाम हैं.’’

‘‘जब मैं मिलावट नहीं करता तब कैसा भी इंतजाम क्यों करूं?’’

चपरासी चुपचाप चला गया. डेढ़ माह बाद नतीजा आया. दोनों नमूने पास हो गए. लालाजी का मनोबल ऊंचा हो गया. दुकान की साख बढ़ गई. 2 माह गुजर गए.  दोपहर को स्वास्थ्य विभाग की वही पहली वाली जीप दुकान के सामने आ कर रुकी.

‘‘आप के खिलाफ शिकायत है. किसी ग्राहक को आप के यहां नाश्ता करने के बाद पेट में दर्द हुआ था,’’ फूड इंस्पैक्टर ने कहा.

‘‘वह कौन है?’’

‘‘प्रमुख चिकित्सा अधिकारी के पास लिखित शिकायत आई थी. आप का नमूना भरना है.’’

‘‘जरूर भरिए.’’

लालाजी के स्वर की दृढ़ता से स्वास्थ्य अधिकारी भी थोड़ा विचलित था. खाद्य निरीक्षक ने दुकान में नजर दौड़ाई. दुकान छोटीमोटी रेस्तरां थी. 4-5 मिठाइयां जैसे रसगुल्ले, गुलाबजामुन, रसमलाई, मिल्ककेक, पिस्ता बर्फी और पुलावचावल के साथ राजमा और छोलेभठूरे आदि प्लेट और पीस रेट के हिसाब से बेचे जाते थे.  दीवार पर रेट लिस्ट लगी थी. साथ  ही लिखा था, ‘यहां गाय का दूध प्रयोग होता है.’, ‘मिल्क नौट फौर सेल’, ‘दूध बेचने के लिए नहीं है.’  प्रावधानों के अनुसार जो वस्तु बेचने के लिए न हो उस का नमूना नहीं लिया जा सकता था. मिठाई का सैंपल पास हो चुका था. चावल, पुलाव, राजमा, छोलेभठूरे में क्या मिलावट हो सकती थी?

‘‘जरा छोले दिखाइए.’’

लालाजी के इशारे पर कारीगर ने एक कटोरी में गैस पर रखे गरम छोले डाल कर दे दिए. नाक के समीप ला उस को सूंघते हुए फूड इंस्पैक्टर ने कहा, ‘‘मसाले की गंध कुछ अजीब सी है. आप इस का नमूना दे दीजिए.’’  मसालाचना, राजमा व छोले की तरी का नमूना अलग से ले टीम चली गई. इस बार चपरासी ‘इंतजाम’ की बात करने नहीं आया. बेटों के सामने भी ‘दलाल’ की मार्फत नमूना पास करवाने की बात नहीं उठाई.  डेढ़ महीने बाद नतीजा आया. राजमा, मसालाचना का नमूना पास हो गया था. छोलेतरी का नमूना निर्धारित मात्रा से ज्यादा मसाला मिलाने पर तकनीकी आधार पर फेल हो गया था.  रजिस्टर्ड डाक से लालाजी को नोटिस मिला. ‘आप का नमूना प्रयोगशाला द्वारा फेल घोषित किया गया है. आप इस तारीख को मुख्य दंडाधिकारी के न्यायालय में हाजिर हों. यदि आप राज्य प्रयोगशाला की रिपोर्ट से असहमत हैं तो केंद्रीय प्रयोगशाला में नमूने को दोबारा परीक्षण हेतु 10 दिन के अंदरअंदर भिजवा सकते हैं.’

लालाजी नोटिस की प्रति ले कर अपने परिचित वकील के पास पहुंचे.  ‘‘अरे, भाई, इस मामले को निचले स्तर पर निबटा देना था. जो मांग रहे थे दे देते,’’ वकील साहब ने नोटिस पढ़ कर कहा.

‘‘मांग जायज होती तो पूरी कर भी देता. कभी 100-200 रुपए महीना मांगते थे अब 3 हजार रुपए और ऊपर से कभी भी खानेपीने को आ जाते. साथ में रौब अलग से.’’  ‘‘मगर मुकदमा कई साल चल सकता है. पेशियों की परेशानी है. नमूना तकनीकी आधार पर फेल है इसलिए सजा का मामला नहीं है. सजा मिलावट के मामले में होती है,’’ वकील साहब ने कहा.  ‘‘और अगर इसे केंद्रीय प्रयोगशाला में दोबारा परीक्षण के लिए भेज दूं तो?’’

‘‘तब कई पहलू हैं. केंद्रीय प्रयोगशाला इसे पास कर सकती है. राज्य प्रयोगशाला की रिपोर्ट के समान ही रिपोर्ट दे सकती है. विभिन्न रिपोर्ट दे सकती है. मिलावट घोषित कर सकती है.’’

‘‘यह तो एक किस्म का जुआ है. ठीक है, हम नमूना दोबारा परीक्षण के लिए केंद्रीय प्रयोगशाला में भेज देते हैं.’’  निर्धारित तिथि को लालाजी, एक पड़ोसी दुकानदार को बतौर जमानती, एक पूर्व नगर पार्षद को बतौर शिनाख्ती और नमूना दोबारा भिजवाने के लिए लकड़ी का खाली डब्बा, रुई का बंडल, सफेद कपड़े का टुकड़ा ले अदालत पहुंच गए.  पहले जमानत हुई. फिर नमूना भेजने की तारीख पड़ी. तारीख वाले दिन नमूना दोबारा सील कर केंद्रीय प्रयोगशाला में रजिस्टर्ड पार्सल द्वारा भेज दिया गया.  चपरासी अब फिर आया.

‘‘लालाजी, हमारे पास केंद्रीय प्रयोगशाला में इंतजाम है.’’

‘‘नहीं भाई, मुझे इंतजाम नहीं करवाना. नमूना फेल भी आ जाता है तो भी कोई बात नहीं. जब तक अदालत फैसला सुनाएगी मैं इस दुनिया से बहुत दूर जा चुका होऊंगा.’’  लालाजी के इस बेबाक जवाब पर चपरासी चला गया. दुकान में खापी रहे ग्राहक खिलखिला कर हंस पड़े.

2 महीने बाद नतीजा आया. नमूना मिलावटी नहीं था. मसाले की मात्रा निर्धारित स्तर से कम थी जबकि राज्य प्रयोगशाला ने मसाले की मात्रा निर्धारित स्तर से ज्यादा बताई थी.  चार्ज की पेशी पर बहस हुई. माननीय न्यायाधीश ने दोनों प्रयोगशालाओं द्वारा दी गई अलगअलग परीक्षण रिपोर्टों के आधार पर लालाजी को संदेह का लाभ देते हुए दोषमुक्त कर दिया.  सारे सिलसिले में 7-8 महीने का समय लगा? और 12 हजार रुपए खर्च हुए. थोड़ी परेशानी तो हुई मगर लालाजी के नैतिक साहस और बेबाकी की सारे दुकानदारों और पड़ोसियों में चर्चा और प्रशंसा हुई.

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‘‘मेरे यहां न तो कोई गलत माल बनता है न ही मैं मिलावट करता हूं. मैं किस बात का महीना दूं?’’ लाला कुंदन लाल ने रोष भरे स्वर में कहा.

‘‘लालाजी, बात अकेली मिलावट की नहीं है…अब पुराने नियम और तरीके सब बदल चुके हैं. मिलावट के साथसाथ अब सफाई, रंग और कैलोरी आदि की भी जांच की जाती है,’’ स्वास्थ्य विभाग के चपरासी श्यामलाल ने धीमे स्वर में कहा.

‘‘मगर मेरे यहां सफाई का स्तर ठीक है. आप सारे रेस्तरां में कहीं भी गंदगी दिखाएं, किचन में सबकुछ स्टैंडर्ड का है.’’

‘‘ये सब बातें कहने की हैं. अफसर लोग नहीं मानते.’’

‘‘मांग जायज हो तो मानें. पिछले 3 साल से महीने की दर बढ़तेबढ़ते 10 गुनी हो गई है…यह तो सरासर लूट है.’’

‘‘महीना सब का बढ़ाया है, अकेले आप ही का नहीं.’’

‘‘मगर मैं इतना नहीं दे सकता.’’

‘‘सोचविचार कर लीजिए. खामख्वाह पंगा पड़ जाएगा,’’ एक तरह से धमकी देता श्यामलाल चला गया.

चपरासी के जाते दोनों बेटे सुरेश और अशोक भी पिता के पास आ गए. कहां तो 100 रुपए महीना था, अब 3 हजार रुपए महीना मांगा जा रहा है. पहले मिलावट के मामले में सजा अधिकतम 6 महीने से 1 साल तक थी साथ में 1 से 2 हजार रुपए तक जुर्माना था.

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नए प्रावधानों में अब न्यूनतम सजा 3 साल की तथा जुर्माना 25 हजार से 3 लाख रुपए तक हो गया था. जैसे ही कानून सख्त हुआ था वैसे ही रिश्वत की दर भी आसमान पर पहुंच गई. सफाई या हाईजिन स्तर के नाम पर किसी प्रतिष्ठान, दुकान को बंद करवाने का अधिकार भी खाद्य निरीक्षक को मिल गया था. इस से भी अब लूट बढ़ गई थी.

लालजी की गोलहट्टी के नाम से खानेपीने की दुकान सारे शहर में मशहूर थी. माल का स्तर शुरू से काफी अच्छा था. मिलावट वाली कोई वस्तु नहीं थी.  मिलावट तो नहीं थी मगर प्रयोग- शालाओं में कई अन्य आधारों पर नमूना फेल हो जाता था. नमूने को कभी स्तरहीन या अखाद्य या ‘एक्सपायर्ड’ भी करार दे दिया जाता था, जिस से मुकदमा दर्ज हो जाता था या फिर दुकान बंद हो जाती.

जितने ज्यादा नए कानून बनते उतने नए अपराधी बनते. जितना सख्त कानून होता उतना ज्यादा रिश्वत का रेट होता. अपराध तो कम नहीं होते थे, भ्रष्टाचार जरूर बढ़ जाता था.  लाला कुंदन लाल ने जीवनभर मिलावट नहीं की थी. वे ऐसा करना पसंद नहीं करते थे. ग्राहकों को साफसुथरा खाना देना अपना कर्तव्य समझते थे. किसी जमाने में मिलावट का नाम भी नहीं था. मिलावट क्या होती है…कोई नहीं जानता था.  तब खाद्य निरीक्षक का पद भी नहीं था. नगर परिषद का सैनेटरी इंस्पैक्टर कभीकभार बाजार का चक्कर लगा लेता था. किसीकिसी का सैंपल या नमूना ले कर प्रयोगशाला को भेज दिया करता था. सैंपल फेल कम आते थे. सैंपल फेल आने पर जुर्माना होता था जो 50 रुपए से 400-500 रुपए तक था. मगर ऐसा कम ही होता था. कोई सजा का मामला नहीं था.

अब वक्त बदल चुका था. आबादी बहुत बढ़ गई थी. साथ ही कानून और अपराधी भी. अब सैंपल या नमूना फेल ज्यादा आते थे, पास कम होते थे. गेहूं के साथ घुन भी पिसता है, के समान मिलावट न करने वाले भी फंस जाते थे.

लाला कुंदन लाल के साथ दोनों बेटे भी विचारमग्न थे. क्या करें? कभी रिश्वत मात्र 100  रुपए महीना थी अब 3 हजार रुपए मांगे जा रहे थे. कल को या भविष्य में 30 हजार रुपए महीना भी मांगे जा सकते थे. वे मिलावट नहीं करते थे मगर हर जगह बेईमानी थी. प्रयोगशालाओं में नमूने फेल, पास करवाए जाते थे.  अपने विरोधी या प्रतिद्वंद्वी को फंसाने के लिए कई व्यापारी उस का नमूना प्रयोगशाला में फेल करवा देते थे. बदले समय के साथ अब व्यापार में भी घटियापन बढ़ गया था.

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‘‘फूड इंस्पैक्टर 3 हजार रुपए महीना मांग रहा है,’’ लालाजी ने दोनों बेटों को बताया.

‘‘पिताजी, दे दीजिए. सैंपल भर लिया, फेल करवा दिया तब परेशानी बढ़ जाएगी,’’ छोटे बेटे अशोक ने कहा.

‘‘मगर इन की मांग सुरसा के मुंह के समान बढ़ती जा रही है. कभी 100 रुपए महीना था. अब 3 हजार रुपए मांग रहे हैं, साथ ही आधा दर्जन लोग खाने आ जाते हैं,’’ लालाजी ने रोष भरे स्वर में कहा.

इस पर दोनों बेटे खामोश हो गए. क्या करें? पुराना फूड इंस्पैक्टर शरीफ था. 100 रुपए महीना लेने पर भी विनम्रता से पेश आता था. नए जमाने का खाद्य निरीक्षक 3 हजार ले कर भी रूखे और रोबीले अंदाज में बात करता था.  लालाजी मिलावट पहले नहीं करते थे, अब भी नहीं करते. बात सिर्फ इंसाफ की थी. इंसाफ कहां था? प्रयोगशालाओं में निष्पक्षता न थी यही सब से बड़ी समस्या थी.  2 दिन बाद, चपरासी श्यामलाल दोबारा आया.

‘‘लालाजी, क्या इरादा है?’’

‘‘मैं ने पहले भी कहा है, मैं मिलावट नहीं करता. मैं महीना किस बात का दूं?’’ दोटूक स्वर में लालाजी ने कहा.

‘‘लालाजी, सोच लीजिए,’’ यह बोल कर गुस्से से तमतमाता चपरासी वापस चला गया.

‘‘पिताजी, आप ने यह क्या किया? अब यह हमारा सैंपल भरवा देगा?’’ दोनों बेटों ने पिताजी के पास आ कर कहा.

‘‘जो होगा देखेंगे. जोरजबरदस्ती की भी एक सीमा है. जब हम मिलावट ही नहीं करते तब महीना किस बात का दें.’’

‘‘पिताजी, वे प्रयोगशाला से नमूना फेल करवा देंगे.’’

‘‘जो होगा देखेंगे. अब मैं 60 साल का हूं. मुकदमा हो भी जाता है तो भी परवा नहीं है,’’ लालाजी के स्वर में एक निश्चय और चेहरे पर आभा थी.

शाम से पहले एक बड़ी स्टेशनवैगन गोलहट्टी के सामने आ कर रुकी. चिरपरिचित खाद्य निरीक्षक सोम कुमार और स्वास्थ्य अधिकारी मैडम शकुंतला उतर कर दुकान में प्रवेश कर गए.

‘‘दुकान का मालिक कौन है?’’ फूड इंस्पैक्टर ने रौब से पूछा.  लालाजी सब माजरा समझ रहे थे. दर्जनों बार परिवार सहित खापी कर जाने वाला पूछ रहा है कि दुकान का मालिक कौन है.

‘‘मैं हूं जी, बात क्या है?’’

इस दबंग जवाब की उम्मीद फूड इंस्पैक्टर को न थी.

‘‘क्याक्या बनाते हैं आप?’’

‘‘सामने काउंटर में रखा है, देख लीजिए.’’

‘‘आप के पास इस काम का लाइसैंस है?’’

‘‘हां, है जी. यह देखिए,’’ लालाजी ने शीशे से मढ़ी तसवीर के समान फ्रेम में जड़ी म्यूनिसिपैलिटी के लाइसैंस की कापी सामने रखते हुए कहा.

‘‘आप के खिलाफ स्तरहीन खाद्य- पदार्थ बनाने और बेचने की शिकायत है, आप का नमूना भरना है.’’

‘‘जरूर भरिए, किस चीज का नमूना दें?’’इस बेबाक जवाब पर खाद्य निरीक्षक सकपका गया. काउंटर वातानुकूलित था. माल सब साफ था. दुकान में मक्खी, कीट, मच्छर का नामोनिशान तक न था. दुकान में सर्वत्र साफसफाई थी. रसोईघर साफसुथरा था.  गुलाबजामुन और रसगुल्लों का नमूना ले लिया. पहले कभी आने पर लालाजी ड्राईफू्रट से आवभगत करते थे मगर इस बार जानबूझ कर पानी भी नहीं पूछा. इस से इंस्पैक्टर चिढ़ गया.

नमूना ले सब चले गए.  ‘‘पिताजी, अगर नमूना फेल हो गया तो?’’ दोनों बेटों ने कहा, ‘‘पड़ोसी कहता है वह एक दलाल को जानता है जो प्रयोगशाला से नमूना पास करवा सकता है.’’

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‘‘मगर हम तो मिलावट करते नहीं हैं, हौसला रखो, जो होगा देखेंगे.’’  शाम को चपरासी फिर आया. लालाजी ने प्रश्नवाचक निगाहों से घूरते हुए उस की तरफ देखा.

‘‘फूड इंस्पैक्टर कहता है अगर आप को मामला निबटाना है तो निबट सकता है.’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘आप चाहें तो नमूना यहीं खत्म कर देते हैं. प्रयोगशाला में नहीं भेजेंगे और आप चाहें तो नमूना प्रयोगशाला से पास भी करवा सकते हैं. हमारे पास दोनों इंतजाम हैं.’’

‘‘जब मैं मिलावट नहीं करता तब कैसा भी इंतजाम क्यों करूं?’’

चपरासी चुपचाप चला गया. डेढ़ माह बाद नतीजा आया. दोनों नमूने पास हो गए. लालाजी का मनोबल ऊंचा हो गया. दुकान की साख बढ़ गई. 2 माह गुजर गए.  दोपहर को स्वास्थ्य विभाग की वही पहली वाली जीप दुकान के सामने आ कर रुकी.

‘‘आप के खिलाफ शिकायत है. किसी ग्राहक को आप के यहां नाश्ता करने के बाद पेट में दर्द हुआ था,’’ फूड इंस्पैक्टर ने कहा.

‘‘वह कौन है?’’

‘‘प्रमुख चिकित्सा अधिकारी के पास लिखित शिकायत आई थी. आप का नमूना भरना है.’’

‘‘जरूर भरिए.’’

लालाजी के स्वर की दृढ़ता से स्वास्थ्य अधिकारी भी थोड़ा विचलित था. खाद्य निरीक्षक ने दुकान में नजर दौड़ाई. दुकान छोटीमोटी रेस्तरां थी. 4-5 मिठाइयां जैसे रसगुल्ले, गुलाबजामुन, रसमलाई, मिल्ककेक, पिस्ता बर्फी और पुलावचावल के साथ राजमा और छोलेभठूरे आदि प्लेट और पीस रेट के हिसाब से बेचे जाते थे.  दीवार पर रेट लिस्ट लगी थी. साथ  ही लिखा था, ‘यहां गाय का दूध प्रयोग होता है.’, ‘मिल्क नौट फौर सेल’, ‘दूध बेचने के लिए नहीं है.’  प्रावधानों के अनुसार जो वस्तु बेचने के लिए न हो उस का नमूना नहीं लिया जा सकता था. मिठाई का सैंपल पास हो चुका था. चावल, पुलाव, राजमा, छोलेभठूरे में क्या मिलावट हो सकती थी?

‘‘जरा छोले दिखाइए.’’

लालाजी के इशारे पर कारीगर ने एक कटोरी में गैस पर रखे गरम छोले डाल कर दे दिए. नाक के समीप ला उस को सूंघते हुए फूड इंस्पैक्टर ने कहा, ‘‘मसाले की गंध कुछ अजीब सी है. आप इस का नमूना दे दीजिए.’’  मसालाचना, राजमा व छोले की तरी का नमूना अलग से ले टीम चली गई. इस बार चपरासी ‘इंतजाम’ की बात करने नहीं आया. बेटों के सामने भी ‘दलाल’ की मार्फत नमूना पास करवाने की बात नहीं उठाई.  डेढ़ महीने बाद नतीजा आया. राजमा, मसालाचना का नमूना पास हो गया था. छोलेतरी का नमूना निर्धारित मात्रा से ज्यादा मसाला मिलाने पर तकनीकी आधार पर फेल हो गया था.  रजिस्टर्ड डाक से लालाजी को नोटिस मिला. ‘आप का नमूना प्रयोगशाला द्वारा फेल घोषित किया गया है. आप इस तारीख को मुख्य दंडाधिकारी के न्यायालय में हाजिर हों. यदि आप राज्य प्रयोगशाला की रिपोर्ट से असहमत हैं तो केंद्रीय प्रयोगशाला में नमूने को दोबारा परीक्षण हेतु 10 दिन के अंदरअंदर भिजवा सकते हैं.’

लालाजी नोटिस की प्रति ले कर अपने परिचित वकील के पास पहुंचे.  ‘‘अरे, भाई, इस मामले को निचले स्तर पर निबटा देना था. जो मांग रहे थे दे देते,’’ वकील साहब ने नोटिस पढ़ कर कहा.

‘‘मांग जायज होती तो पूरी कर भी देता. कभी 100-200 रुपए महीना मांगते थे अब 3 हजार रुपए और ऊपर से कभी भी खानेपीने को आ जाते. साथ में रौब अलग से.’’  ‘‘मगर मुकदमा कई साल चल सकता है. पेशियों की परेशानी है. नमूना तकनीकी आधार पर फेल है इसलिए सजा का मामला नहीं है. सजा मिलावट के मामले में होती है,’’ वकील साहब ने कहा.  ‘‘और अगर इसे केंद्रीय प्रयोगशाला में दोबारा परीक्षण के लिए भेज दूं तो?’’

‘‘तब कई पहलू हैं. केंद्रीय प्रयोगशाला इसे पास कर सकती है. राज्य प्रयोगशाला की रिपोर्ट के समान ही रिपोर्ट दे सकती है. विभिन्न रिपोर्ट दे सकती है. मिलावट घोषित कर सकती है.’’

‘‘यह तो एक किस्म का जुआ है. ठीक है, हम नमूना दोबारा परीक्षण के लिए केंद्रीय प्रयोगशाला में भेज देते हैं.’’  निर्धारित तिथि को लालाजी, एक पड़ोसी दुकानदार को बतौर जमानती, एक पूर्व नगर पार्षद को बतौर शिनाख्ती और नमूना दोबारा भिजवाने के लिए लकड़ी का खाली डब्बा, रुई का बंडल, सफेद कपड़े का टुकड़ा ले अदालत पहुंच गए.  पहले जमानत हुई. फिर नमूना भेजने की तारीख पड़ी. तारीख वाले दिन नमूना दोबारा सील कर केंद्रीय प्रयोगशाला में रजिस्टर्ड पार्सल द्वारा भेज दिया गया.  चपरासी अब फिर आया.

‘‘लालाजी, हमारे पास केंद्रीय प्रयोगशाला में इंतजाम है.’’

‘‘नहीं भाई, मुझे इंतजाम नहीं करवाना. नमूना फेल भी आ जाता है तो भी कोई बात नहीं. जब तक अदालत फैसला सुनाएगी मैं इस दुनिया से बहुत दूर जा चुका होऊंगा.’’  लालाजी के इस बेबाक जवाब पर चपरासी चला गया. दुकान में खापी रहे ग्राहक खिलखिला कर हंस पड़े.

2 महीने बाद नतीजा आया. नमूना मिलावटी नहीं था. मसाले की मात्रा निर्धारित स्तर से कम थी जबकि राज्य प्रयोगशाला ने मसाले की मात्रा निर्धारित स्तर से ज्यादा बताई थी.  चार्ज की पेशी पर बहस हुई. माननीय न्यायाधीश ने दोनों प्रयोगशालाओं द्वारा दी गई अलगअलग परीक्षण रिपोर्टों के आधार पर लालाजी को संदेह का लाभ देते हुए दोषमुक्त कर दिया.  सारे सिलसिले में 7-8 महीने का समय लगा? और 12 हजार रुपए खर्च हुए. थोड़ी परेशानी तो हुई मगर लालाजी के नैतिक साहस और बेबाकी की सारे दुकानदारों और पड़ोसियों में चर्चा और प्रशंसा हुई.

The post रोजी रोटी: लालाजी ने कैसे रिश्वतखोरी का विरोध किया? appeared first on Sarita Magazine.

March 22, 2022 at 09:05AM

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