Monday 21 March 2022

अपनी राह: 40 की उम्र में हुआ मीरा का कायाकल्प

देखतेही देखते मीरा ने अपनी उम्र का 40वां वसंत पार कर लिया. 5 साल पहले तक रिश्तेदार उस के लिए ढंगबेढंग के रिश्ते भेजते रहे थे, पर अब सभी ने किनारा कर लिया था. उस के मम्मीपापा भी उस से छोटी दोनों बहनों और भाई की शादी कर चुके थे.

‘‘अकेले हैं तो क्या गम है,’’ कह कर  15 सालों से मीरा सारे प्रस्तावों को ठुकराती रही थी. लेकिन अपने असफल प्यार के धधकते रेगिस्तान में नंगे पैर दौड़ती भी तो रही.  वह एक पल के लिए भी देव को भूल न सकी थी. मन में बसे देव को वह भूल भी कैसे सकती थी. तनमन को चुरा, वजूद को मिटा कर मीरा के उस गिरधर ने उसे कहीं मुंह दिखाने के काबिल भी नहीं छोड़ा था. मात्र 14 साल की कच्ची उम्र से मीरा ने उसे मन में छिपा लिया था और उस चोर ने भी छिपने में कोई आनाकानी नहीं की थी. मन, क्रम, वचन से उस का हाथ थामे उस के प्रेम रस में भीगती रही, छीजती  रही. सोतेजागते, उठतेबैठते, रोतेहंसते देवदेव उच्चारती रही.

समय के साथ दोनों के प्यार की खुशबू सर्वत्र फैल रही थी पर देव के प्रेम रस बूंदन में मीरा के मन की भीग रही चुनरिया तन को भी भिगो गई थी. होली के दिन भंग चढ़ा कर देव ने उस के तन की याचना क्या की कि गरजती, नाचती दामिनी की तरह वह उस पर बरस गई. फिर बारबार भीगती रही. कभी मोल ली हुई दासी की तरह तो कभी जोगन की तरह. प्रीत की चुनर ओढ़े मीरा नित नई होती गई.  दोनों ने आईआईटी दिल्ली से कंप्यूटर साइंस में बीटैक किया. एमबीए करने के लिए मीरा बैंगलुरु चली गई और देव बोस्टन के हार्वर्ड बिजनैस स्कूल में चला गया. देव तो बारबार जाने से मना कर रहा था पर मीरा ही नहीं मानी. पलक झपकते 2 साल गुजर जाएंगे, फिर हम और हमारा आशियाना. भविष्य के ढेर सारे सपने आंखों में ले कर भरे मन से मीरा ने देव को विदा किया.

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कभी फोन पर बातें कर के तो कभी फेसबुक पर प्यारमनुहार करते समय बीतता रहा. न्यूयौर्क की एक बड़ी कंपनी में कैंपस सलैक्शन होने के बाद देव इंडिया आया भी. कन्याकुमारी में 2 हफ्ते तक दोनों एकदूजे में खोए रहे. सभी तरह से आश्वस्त करते हुए देव लौट गया. बैंगलुरु की मल्टीनैशनल कंपनी ने मीरा को भारी पैकेज के साथ सलैक्ट कर लिया था. लेकिन उस की नौकरी भी न्यूयौर्क में हो जाए, इस के लिए देव हर तरह से प्रयत्नशील था. नहीं भी होने से कोई बात नहीं थी. शादी के बाद स्पाउस वीजा पर वह देव के साथ चली जाएगी.  लेकिन ऐसा कहां हो सका.

इधर मीरा प्रीत की धानी चुनर ओढ़े देव की प्रतीक्षा कर रही थी. उधर विषम परिस्थितियों में देव को उसी कंपनी में कार्यरत नैन्सी से शादी करनी पड़ी थी. विरह में डूबे जो दिन पावस और वसंत बने हुए थे, अग्नि बन कर उस पर बरस गए. देव पुरुष था, समाज ने उस के कदम को सराहा. स्त्री तन लिए मीरा ही कलंकित हुई. समय की चट्टान पर लिखित उस की प्रेमगाथा ने जीतेजी उसे सलीब पर टांग दिया. विवश मीरा को विरह की अनंत पीड़ा स्वीकारनी पड़ी पर अपनी प्रेम गठिया को छुआ तक नहीं. छूती भी कैसे? एक ही मन था, एक ही चुनर थी और वह भी देव प्रेम रंग में भीगी. दूसरा रंग कहां से चढ़ता और चढ़ता भी कैसे? चुनर का रंग न तो छीजा था और न सूखा था, वह तो दिनोंदिन गहराता गया था.

कितने रिश्ते आए, कितनों ने साथ के लिए हाथ बढ़ाया पर वह देव की जोगिन  ही बनी रही. मीरा अपने काम में ही अपना सुकून ढूंढ़ने का प्रयास करती रही. देखतेदेखते दोनों बहनों एवं भाई का घर बस गया पर मीरा अकेलेपन की मार भोगती रही.  जब से मीरा को दीया का साथ मिला था जीवन के प्रति उस का नजरिया सकारात्मक हो गया था. दीया का बारबार का समझाना कि जीवन में जो गुजर गया उसे भुला कर जीने का प्रयास कर के खुश रहना है.

‘‘अरे यार, कब तक देव की विरहण बनी रहोगी? वह तो सब कुछ भुला कर मस्ती भरा जीवन जी रहा है और तुम उस की यादों को संजोए हो. चलो, आज ब्यूटीपार्लर चलती हैं. अपने साथ तुम्हारे हुलिए को भी बदलवाऊंगी.’’  मीरा ने हंसते हुए कहा, ‘‘उम्र के 40 वसंत पार कर लिए. अब मुझे देखेगा भी कौन, जो ब्यूटीपार्लर जाऊं?’’  ‘‘यह भी कोई उम्र है जोगिन बनने की… 40 के बाद ही जीवन जीने का मजा रहता है… चुनौतियों से, झंझावातों से, बाधाओं से और अगर कोई साथी न हो तो अकेलेपन से जूझने का जज्बा रहता है. जब जागो तभी सबेरा. आज से अपने जीने का अंदाज बदल डालो… कैसी बहार छा जाती है जीवन में देखना.’’

दीया के शब्दों ने मीरा के अंदर तूफान उठा दिया… वह व्यग्र हो उठी… कितना दम है दीया के कथन में… इस तरह से क्यों न समझाया उस के अपनों ने उसे कभी. फिर मीरा ने कोईर् आनाकानी नहीं की.  ब्यूटीपार्लर से निकलने के बाद एक नई मीरा का जन्म हो गया था, जिस के समक्ष खुशियों का समंदर लहरा उठा था. कोई अकेलापन नहीं, उत्साह, उमंग से भरे नए एहसास के कलश चारों ओर छलक उठे थे.

15 सालों के दुखदर्द, टूटन, चुभन और अकेलेपन के पलों को एकसाथ जी लेना चाहती थी. अपार रूप की स्वामिनी थी ही, ब्यूटीपार्लर से निकलने के बाद हीरे से तरासे उस के सौंदर्य ने न जाने कितनी जोड़ी आंखों को बांध लिया था.  मौल में जा कर आधुनिक पोशाकें खरीदीं. फिर उन से मैच करती ज्वैलरी, सौंदर्य प्रसाधन का सामान, परफ्यूम आदि खरीदा. अगर दीया उसे समय का एहसास नहीं दिलाती तो शायद पल भर में अपनी दुनिया बदल लेने के जनून से बाहर ही न आ पाती.

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1 हफ्ते के अंदर ही मीरा ने स्वयं को ही नहीं, अपने फ्लैट के कोनेकोने को भी सजा लिया. वार्डरोब से ले कर किचन तक मुसकरा उठे.  मीरा में आए अचानक परिवर्तन ने अपार्टमैंट से ले कर औफिस तक के लोगों को आश्चर्यचकित कर दिया था. अकेलेपन में घुटती मीरा हर पल चहकने लगी थी. सभी की अवहेलना करने वाली मीरा नए जोश से भर कर सब के साथ उन्मुक्त हो उठी थी.  देखतेदेखते सभी के साथ उस के दोस्ताना संबंध ही नहीं बने, बल्कि वह सब के दुखसुख के साथी भी बन गई. हर पल कुछ नया करने की उमंग से भरी रहती. प्रत्येक दिन सैंडविच निगलने वाली मीरा के खाने का डब्बा खुलते ही लजीज व्यंजनों की सुगंध से सभी के मुंह में पानी आ जाता. साथियों से अपना खाना भी शेयर करने लगी थी.

फिट और चुस्त रहने के लिए मीरा ने जिम जाना भी शुरू कर दिया था. वहां भी हर उम्र के उस के बहुत सारे दोस्त बन गए थे. पढ़ना तो पहले से ही उस की हौबी थी. प्रसिद्घ लेखकों की किताबों से रैक भर गया था.  आंतरिक प्रसन्नता एवं सुगढ़ मेकअप ने उस की उम्र के 10 साल चुरा लिए थे. अपने डाइरैक्टर अमन से हमेशा चिढ़ी रहने वाली मीरा अब उन से भी हिलमिल गई थी. वे भी मीरा में आए परिवर्तन पर चकित थे. उस की असीमित प्रतिभा और उदासी से भरे सौंदर्य पर वे मोहित तो थे ही, उस के जीने के अनोखे अंदाज से वे उस की निकटता के लिए व्याकुल हो उठे.

आननफानन में किसी बड़े प्रोजैक्ट की रूपरेखा तैयार  करते हुए मीरा को साथ लिए उन्होंने न्यूयौर्क के लिए उड़ान भर ली. 2 कमरों की बुकिंग होते हुए भी मीरा को अपने कमरे में रहने को बाध्य किया तो वह भी इनकार नहीं कर सकी. अमन के आकर्षक व्यक्तित्व पर वह भी मुग्ध थी. अब दोनों के दिन सोने के थे और रातें चांदी की.  दोनों एकदूसरे में समाए हाथों में हाथ लिए दुनिया के उस अनोखे खहर में घूमते रहे. वहां रोकटोक करने वाला भी कौन था. तनमन से वर्षों की प्यासी मीरा आनंद सागर में जी भर कर डुबकियां लगा रही थी.

मौल में घूमते समय किसी की घूरती नजरों को पहचान मीरा और उन्मुक्त हो उठी. वह अमन की बांहों में झूम उठी. वे नजरें थीं देव की.  वह अमन से लिपटी हुई देव के समक्ष जा खड़ी हुई.  ‘‘हाय देव, पहचाना नहीं? मैं मीरा… कभी की तुम्हारी दीवानी… सोचा भी नहीं था कि कभी तुम से कुछ यों मुलाकात होगी… सब कुछ ठीक चल रहा है न? कुछ दुबले हो गए हो.’’

अमन की बांहों में अपनेआप को लपेटते हुए उद्दंडता से बोली मानो देव के किए का सारा लेखाजोखा इसी पल ले लेगी.  ‘‘अमन. ये हैं देव, कभी के मेरे मंगेतर थे. मैं इन से तनमन से जुड़ी रही. इन के विश्वासघात के बाद भी इन की यादों में जीतीमरती रही.’’  ये तो मेरे देव नहीं बने पर मैं ने बेवकूफी में जीवन के कितने अनमोल वर्ष इन की पारो बन कर गुजारा दिए.

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‘‘देव, ये हैं अमन,’’ कह कर सब से छिपा कर मीरा ने छलक आए आंसुओं को अमन की हथेलियों में मुंह छिपा कर पोछा और आगे बढ़ गई. अमन को उस पर और भी प्यार उमड़ आया. फिर पीछे मुड़ कर देव को घूरते हुए मीरा को अपनी जैकेट में छिपा लिया.

फटीफटी आंखों से देव तब तक अमन की बांहों में बंधी मीरा को देखता रहा जब तक वह उस की नजरों से ओझल नहीं हो गई.

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देखतेही देखते मीरा ने अपनी उम्र का 40वां वसंत पार कर लिया. 5 साल पहले तक रिश्तेदार उस के लिए ढंगबेढंग के रिश्ते भेजते रहे थे, पर अब सभी ने किनारा कर लिया था. उस के मम्मीपापा भी उस से छोटी दोनों बहनों और भाई की शादी कर चुके थे.

‘‘अकेले हैं तो क्या गम है,’’ कह कर  15 सालों से मीरा सारे प्रस्तावों को ठुकराती रही थी. लेकिन अपने असफल प्यार के धधकते रेगिस्तान में नंगे पैर दौड़ती भी तो रही.  वह एक पल के लिए भी देव को भूल न सकी थी. मन में बसे देव को वह भूल भी कैसे सकती थी. तनमन को चुरा, वजूद को मिटा कर मीरा के उस गिरधर ने उसे कहीं मुंह दिखाने के काबिल भी नहीं छोड़ा था. मात्र 14 साल की कच्ची उम्र से मीरा ने उसे मन में छिपा लिया था और उस चोर ने भी छिपने में कोई आनाकानी नहीं की थी. मन, क्रम, वचन से उस का हाथ थामे उस के प्रेम रस में भीगती रही, छीजती  रही. सोतेजागते, उठतेबैठते, रोतेहंसते देवदेव उच्चारती रही.

समय के साथ दोनों के प्यार की खुशबू सर्वत्र फैल रही थी पर देव के प्रेम रस बूंदन में मीरा के मन की भीग रही चुनरिया तन को भी भिगो गई थी. होली के दिन भंग चढ़ा कर देव ने उस के तन की याचना क्या की कि गरजती, नाचती दामिनी की तरह वह उस पर बरस गई. फिर बारबार भीगती रही. कभी मोल ली हुई दासी की तरह तो कभी जोगन की तरह. प्रीत की चुनर ओढ़े मीरा नित नई होती गई.  दोनों ने आईआईटी दिल्ली से कंप्यूटर साइंस में बीटैक किया. एमबीए करने के लिए मीरा बैंगलुरु चली गई और देव बोस्टन के हार्वर्ड बिजनैस स्कूल में चला गया. देव तो बारबार जाने से मना कर रहा था पर मीरा ही नहीं मानी. पलक झपकते 2 साल गुजर जाएंगे, फिर हम और हमारा आशियाना. भविष्य के ढेर सारे सपने आंखों में ले कर भरे मन से मीरा ने देव को विदा किया.

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कभी फोन पर बातें कर के तो कभी फेसबुक पर प्यारमनुहार करते समय बीतता रहा. न्यूयौर्क की एक बड़ी कंपनी में कैंपस सलैक्शन होने के बाद देव इंडिया आया भी. कन्याकुमारी में 2 हफ्ते तक दोनों एकदूजे में खोए रहे. सभी तरह से आश्वस्त करते हुए देव लौट गया. बैंगलुरु की मल्टीनैशनल कंपनी ने मीरा को भारी पैकेज के साथ सलैक्ट कर लिया था. लेकिन उस की नौकरी भी न्यूयौर्क में हो जाए, इस के लिए देव हर तरह से प्रयत्नशील था. नहीं भी होने से कोई बात नहीं थी. शादी के बाद स्पाउस वीजा पर वह देव के साथ चली जाएगी.  लेकिन ऐसा कहां हो सका.

इधर मीरा प्रीत की धानी चुनर ओढ़े देव की प्रतीक्षा कर रही थी. उधर विषम परिस्थितियों में देव को उसी कंपनी में कार्यरत नैन्सी से शादी करनी पड़ी थी. विरह में डूबे जो दिन पावस और वसंत बने हुए थे, अग्नि बन कर उस पर बरस गए. देव पुरुष था, समाज ने उस के कदम को सराहा. स्त्री तन लिए मीरा ही कलंकित हुई. समय की चट्टान पर लिखित उस की प्रेमगाथा ने जीतेजी उसे सलीब पर टांग दिया. विवश मीरा को विरह की अनंत पीड़ा स्वीकारनी पड़ी पर अपनी प्रेम गठिया को छुआ तक नहीं. छूती भी कैसे? एक ही मन था, एक ही चुनर थी और वह भी देव प्रेम रंग में भीगी. दूसरा रंग कहां से चढ़ता और चढ़ता भी कैसे? चुनर का रंग न तो छीजा था और न सूखा था, वह तो दिनोंदिन गहराता गया था.

कितने रिश्ते आए, कितनों ने साथ के लिए हाथ बढ़ाया पर वह देव की जोगिन  ही बनी रही. मीरा अपने काम में ही अपना सुकून ढूंढ़ने का प्रयास करती रही. देखतेदेखते दोनों बहनों एवं भाई का घर बस गया पर मीरा अकेलेपन की मार भोगती रही.  जब से मीरा को दीया का साथ मिला था जीवन के प्रति उस का नजरिया सकारात्मक हो गया था. दीया का बारबार का समझाना कि जीवन में जो गुजर गया उसे भुला कर जीने का प्रयास कर के खुश रहना है.

‘‘अरे यार, कब तक देव की विरहण बनी रहोगी? वह तो सब कुछ भुला कर मस्ती भरा जीवन जी रहा है और तुम उस की यादों को संजोए हो. चलो, आज ब्यूटीपार्लर चलती हैं. अपने साथ तुम्हारे हुलिए को भी बदलवाऊंगी.’’  मीरा ने हंसते हुए कहा, ‘‘उम्र के 40 वसंत पार कर लिए. अब मुझे देखेगा भी कौन, जो ब्यूटीपार्लर जाऊं?’’  ‘‘यह भी कोई उम्र है जोगिन बनने की… 40 के बाद ही जीवन जीने का मजा रहता है… चुनौतियों से, झंझावातों से, बाधाओं से और अगर कोई साथी न हो तो अकेलेपन से जूझने का जज्बा रहता है. जब जागो तभी सबेरा. आज से अपने जीने का अंदाज बदल डालो… कैसी बहार छा जाती है जीवन में देखना.’’

दीया के शब्दों ने मीरा के अंदर तूफान उठा दिया… वह व्यग्र हो उठी… कितना दम है दीया के कथन में… इस तरह से क्यों न समझाया उस के अपनों ने उसे कभी. फिर मीरा ने कोईर् आनाकानी नहीं की.  ब्यूटीपार्लर से निकलने के बाद एक नई मीरा का जन्म हो गया था, जिस के समक्ष खुशियों का समंदर लहरा उठा था. कोई अकेलापन नहीं, उत्साह, उमंग से भरे नए एहसास के कलश चारों ओर छलक उठे थे.

15 सालों के दुखदर्द, टूटन, चुभन और अकेलेपन के पलों को एकसाथ जी लेना चाहती थी. अपार रूप की स्वामिनी थी ही, ब्यूटीपार्लर से निकलने के बाद हीरे से तरासे उस के सौंदर्य ने न जाने कितनी जोड़ी आंखों को बांध लिया था.  मौल में जा कर आधुनिक पोशाकें खरीदीं. फिर उन से मैच करती ज्वैलरी, सौंदर्य प्रसाधन का सामान, परफ्यूम आदि खरीदा. अगर दीया उसे समय का एहसास नहीं दिलाती तो शायद पल भर में अपनी दुनिया बदल लेने के जनून से बाहर ही न आ पाती.

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1 हफ्ते के अंदर ही मीरा ने स्वयं को ही नहीं, अपने फ्लैट के कोनेकोने को भी सजा लिया. वार्डरोब से ले कर किचन तक मुसकरा उठे.  मीरा में आए अचानक परिवर्तन ने अपार्टमैंट से ले कर औफिस तक के लोगों को आश्चर्यचकित कर दिया था. अकेलेपन में घुटती मीरा हर पल चहकने लगी थी. सभी की अवहेलना करने वाली मीरा नए जोश से भर कर सब के साथ उन्मुक्त हो उठी थी.  देखतेदेखते सभी के साथ उस के दोस्ताना संबंध ही नहीं बने, बल्कि वह सब के दुखसुख के साथी भी बन गई. हर पल कुछ नया करने की उमंग से भरी रहती. प्रत्येक दिन सैंडविच निगलने वाली मीरा के खाने का डब्बा खुलते ही लजीज व्यंजनों की सुगंध से सभी के मुंह में पानी आ जाता. साथियों से अपना खाना भी शेयर करने लगी थी.

फिट और चुस्त रहने के लिए मीरा ने जिम जाना भी शुरू कर दिया था. वहां भी हर उम्र के उस के बहुत सारे दोस्त बन गए थे. पढ़ना तो पहले से ही उस की हौबी थी. प्रसिद्घ लेखकों की किताबों से रैक भर गया था.  आंतरिक प्रसन्नता एवं सुगढ़ मेकअप ने उस की उम्र के 10 साल चुरा लिए थे. अपने डाइरैक्टर अमन से हमेशा चिढ़ी रहने वाली मीरा अब उन से भी हिलमिल गई थी. वे भी मीरा में आए परिवर्तन पर चकित थे. उस की असीमित प्रतिभा और उदासी से भरे सौंदर्य पर वे मोहित तो थे ही, उस के जीने के अनोखे अंदाज से वे उस की निकटता के लिए व्याकुल हो उठे.

आननफानन में किसी बड़े प्रोजैक्ट की रूपरेखा तैयार  करते हुए मीरा को साथ लिए उन्होंने न्यूयौर्क के लिए उड़ान भर ली. 2 कमरों की बुकिंग होते हुए भी मीरा को अपने कमरे में रहने को बाध्य किया तो वह भी इनकार नहीं कर सकी. अमन के आकर्षक व्यक्तित्व पर वह भी मुग्ध थी. अब दोनों के दिन सोने के थे और रातें चांदी की.  दोनों एकदूसरे में समाए हाथों में हाथ लिए दुनिया के उस अनोखे खहर में घूमते रहे. वहां रोकटोक करने वाला भी कौन था. तनमन से वर्षों की प्यासी मीरा आनंद सागर में जी भर कर डुबकियां लगा रही थी.

मौल में घूमते समय किसी की घूरती नजरों को पहचान मीरा और उन्मुक्त हो उठी. वह अमन की बांहों में झूम उठी. वे नजरें थीं देव की.  वह अमन से लिपटी हुई देव के समक्ष जा खड़ी हुई.  ‘‘हाय देव, पहचाना नहीं? मैं मीरा… कभी की तुम्हारी दीवानी… सोचा भी नहीं था कि कभी तुम से कुछ यों मुलाकात होगी… सब कुछ ठीक चल रहा है न? कुछ दुबले हो गए हो.’’

अमन की बांहों में अपनेआप को लपेटते हुए उद्दंडता से बोली मानो देव के किए का सारा लेखाजोखा इसी पल ले लेगी.  ‘‘अमन. ये हैं देव, कभी के मेरे मंगेतर थे. मैं इन से तनमन से जुड़ी रही. इन के विश्वासघात के बाद भी इन की यादों में जीतीमरती रही.’’  ये तो मेरे देव नहीं बने पर मैं ने बेवकूफी में जीवन के कितने अनमोल वर्ष इन की पारो बन कर गुजारा दिए.

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‘‘देव, ये हैं अमन,’’ कह कर सब से छिपा कर मीरा ने छलक आए आंसुओं को अमन की हथेलियों में मुंह छिपा कर पोछा और आगे बढ़ गई. अमन को उस पर और भी प्यार उमड़ आया. फिर पीछे मुड़ कर देव को घूरते हुए मीरा को अपनी जैकेट में छिपा लिया.

फटीफटी आंखों से देव तब तक अमन की बांहों में बंधी मीरा को देखता रहा जब तक वह उस की नजरों से ओझल नहीं हो गई.

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March 22, 2022 at 09:00AM

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