Tuesday 8 March 2022

नई रोशनी: भाग 1- नईम का पढ़ालिखा होना क्यों गुनाह बन गया था

लेखिका- शकीला एस हुसैन

बेटियां जिस घर में जाती हैं खुशी और सुकून की रोशनी फैला देती हैं. पर पता नहीं, बेटी के पैदा होने पर लोग गम क्यों मनाते हैं. सबा थकीहारी शाम को घर पहुंची. अम्मी नमाज पढ़ रही थीं. नमाज खत्म कर उन्होंने प्यार से बेटी के सलाम का जवाब दिया. उस ने थकान एक मुसकान में लपेट मां की खैरियत पूछी. फिर वह उठ कर किचन में गई जहां उस की भाभी रीमा खाना बना रही थीं. सबा अपने लिए चाय बनाने लगी. सुबह का पूरा काम कर के वह स्कूल जाती थी. बस, शाम के खाने की जिम्मेदारी भाभी की थी, वह भी उन्हें भारी पड़ती थी. जब सबा ने चाय का पहला घूंट लिया तो उसे सुकून सा महसूस हुआ.

‘‘सबा आपी, गुलशन खाला आई थीं, आप के लिए एक रिश्ता बताया है. अम्मी ने ‘हां’ कही है, परसों वे लोग आएंगे,’’ भाभी ने खनकते हुए लहजे में उसे बताया. सबा का गला अंदर तक कड़वा हो गया. आंखों में नमकीन पानी उतर आया. भाभी अपने अंदाज में बोले जा रही थीं, ‘‘लड़के का खुद का जनरल स्टोर है, देखने में ठीकठाक है पर ज्यादा पढ़ालिखा नहीं है. स्टोर से काफी अच्छी कमाई हो जाती है, आप के लिए बहुत अच्छा है.’’

सबा को लगा वह तनहा तपते रेगिस्तान में खड़ी है. दिल ने चाहा, अपनी डिगरी को पुरजेपुरजे कर के जला दे. भाभी ने मुड़ कर उस के धुआं हुए चेहरे को देखा और समझाने लगीं, ‘‘सबा आपी, देखें, आदमी का पढ़ालिखा होना ज्यादा जरूरी नहीं है. बस, कमाऊ और दुनियादारी को समझने वाला होना चाहिए.’’

सबा ने दुख से रीमा को देखा. रीमा एक कम पढ़ी, नासमझ लड़की थी. वह आटेसाटे की शादी (लड़की दे कर लड़की ब्याहना) में सबा की भाभी बन कर आ गई थी. सबा की छोटी बहन लुबना की शादी रीमा के भाई आजाद से हुई थी. आज वही रीमा कितनी आसानी से सबा की शादी के बारे में सबकुछ कह रही हैं.

ये भी पढ़ें- पहली डेट: क्यों उसका मन आशंकाओं से भरा था?

अब्बा ने एक के बाद एक लड़कियां होने का इलजाम भी अम्मी पर लगाया, हफ्तों बेटियों की सूरत नहीं देखी. वह तो अच्छा हुआ तीसरी बार बेटा हो गया, तो अम्मी की हैसियत का ग्राफ कुछ ऊंचा हो गया और अब्बा भी कुछ नरम पड़े. बेटियों का भार कम करने की खातिर बचपन में ही भाई की शादी मामू की बेटी रीमा से और छोटी बहन लुबना की शादी रीमा के भाई आजाद से तय कर दी. आजाद सबा से उम्र में छोटा था इसलिए लुबना की बात तय कर दी. आज पहली बार उसे लड़की होने की बेबसी का एहसास हुआ.

‘‘रीमा, तुम क्या जानो इल्म कैसी दौलत है? कैसी रोशनी है, जो इंसान को जीने का सलीका सिखाती है? वहीं यह डिगरी मर्दऔरत के बीच ऐसे फासले भी पैदा कर देती है कि औरत की सारी उम्र इन फासलों को पाटने में कट जाती है.’’

सबा का कतई दिल न चाह रहा था कि एक बार फिर उसे शोपीस की तरह लड़के वालों को दिखाया जाए पर अम्मी की मिन्नत और बेबसी के आगे वह मजबूर हो गई. वे कहने लगीं, ‘‘सबा, मेरी खातिर मान जाओ. मुझे पूरी उम्मीद है कि वे लोग तुम्हें जरूर पसंद करेंगे.’’

उस ने दुखी हो सोचा, ‘उस की ख्वाहिश व पसंद का किसी को एहसास नहीं. वह एमएससी पास है और एक अच्छे प्राइवेट स्कूल में नौकरी करती है फिर भी पसंद लड़का ही करेगा,’ उस ने उलझ कर कहा, ‘‘अम्मी, कितने लोग तो आ कर रिजैक्ट कर गए हैं, किसी को सांवले रंग पर एतराज, किसी को उम्र ज्यादा लगी, किसी को पढ़ालिखा होना और किसी को नौकरी करना नागवार गुजरा. अब फिर वही नाटक.’’

अम्मी रो पड़ीं, ‘‘बेटी, मैं बहुत शर्मिंदा हूं. तुम्हारी शादी मुझे सब से पहले करनी थी पर तुम हमारी मजबूरी और हालात की भेंट चढ़ गईं.’’

सबा यह नौकरी करीब 8 साल से कर रही थी, जब वह बीएससी फाइनल में थी तो अब्बा की एक ऐक्सिडैंट में टांग टूट गई, नौकरी प्राइवेट कंपनी में थी. बहुत दिनों के इलाज के बाद लकड़ी के सहारे चलने लगे. इस अरसे में नौकरी खत्म हो गई.

कंपनी से मिला पैसा कुछ इलाज में खर्च हुआ, कुछ घर में. अब आमदनी का कोई जरिया न था. लुबना और छोटा भाई जोहेब अभी पढ़ रहे थे. उस ने बीएससी पास करते ही नौकरी की तलाश शुरू कर दी. अच्छी डिवीजन होने के कारण उसे इसी स्कूल में प्राइमरी सैक्शन में नौकरी मिल गई. उस ने नाइट क्लासेस से एमएससी और बीएड पूरा किया और फिर सेकेंडरी सैक्शन में प्रमोट हो गई. अब अब्बा उसे बेहद प्यार करते. वही तो घर की गाड़ी खींच रही थी.

 

शाम को गहरे रंगों के रेशमी कपड़ों में लड़के की अम्मी और 2 बहनें आईं. उन लोगों ने बताया कि लड़के, नईम की ख्वाहिश है कि लड़की पढ़ीलिखी हो, इसलिए वे लोग सबा को देखने आए हैं.

लड़के की अम्मी ने हाथों में ढेर सी चमकती चूडि़यां पहन रखी थीं. खनखनाते हुए वे बोलीं, ‘‘हमारे बेटे की डिमांड पढ़ीलिखी लड़की है, इसलिए हमें तो आप की बेटी पसंद है.’’

अम्मी ने शादी में देर न की क्योंकि जोहेब की बहुत अच्छी नौकरी लगे 2 साल हो चुके थे. काफी कुछ तो उन्होंने दहेज में देने को बना रखा था. कुछ और तैयारी हुई और सबा दुलहन बन कर नईम के घर पहुंच गई.

सबा उस मामूली से सजे कमरे में दुलहन बनी बैठी थी. उस की ननदें और उस की सहेलियां कुछ देर उस के पास बैठी बचकाने मजाक करती रहीं, फिर भाई को भेजने का कह कर उसे तनहा छोड़ गईं. काफी देर बाद उस की जिंदगी का वह लमहा आया जिस का लड़कियां बड़ी बेसब्री से इंतजार करती हैं. नईम हाथ में मोबाइल लिए अंदर दाखिल हुआ और उस के पास बैठ गया, उस का घूंघट उठा कर कोई खूबसूरत या नाजुक बात कहने के बजाय वह, उसे मोबाइल से अपने दोस्तों के बेहूदा मैसेज पढ़ कर सुनाने लगा जो खासतौर पर उस के दोस्तों ने उसे इस रात के लिए भेजे थे. सबा सिर झुकाए सुनती रही. उस का दिल भर आया. वह खूबसूरत रात बिना किसी अनोखे एहसास, प्यार के जज्बात के गुजर गई.

सुबह नाश्ते में पूरियां, हलवा, फ्राइड चिकन देख उस ने धीरे से कहा, ‘‘मैं सुबहसुबह इतना भारी नाश्ता नहीं कर सकती.’’

‘‘ठीक है, न खाओ,’’ नईम ने लापरवाही से कहा, फिर उस के लिए ब्रैडदूध मंगवा दिया, न कोई मनुहार न इसरार.

फिर जिंदगी एक इम्तिहान की तरह शुरू हो गई. सबा अभी अपनेआप को इस बदले माहौल में व्यवस्थित करती, उस से पहले ही सब के व्यवहार बदलने लगे. सास की तीखी बातें, ननदों के बातबात पर पढे़लिखे होने के ताने. जैसे उसे नीचा दिखाने की होड़ शुरू हो गई. उस का व्यवहारकुशल और पढ़ालिखा होना जैसे एक गुनाह बन गया. सबा इसे झेल नहीं पा रही थी इसलिए उस ने खामोशी ओढ़ ली. धीरेधीरे सब से कटने लगी. उन लोगों की बातों में भी या तो किसी की बुराई होती या मजाक उड़ाया जाता, वह अपने कमरे तक सीमित हो गई.

नईम का नरम और बचकाना रवैया उसे खड़े होने के लिए जमीन देता रहा. इतना भी काफी था. जब वह स्टोर से आता मांबहनों के पास एकडेढ़ घंटे बैठता, तीनों उस की शिकायतों के दफ्तर खोल देतीं. हर काम में बुराई का एक पहलू मिल जाता, खाने में कम तेल डालना, छोटी रोटियां बनाना कंजूसी गिना जाता, साफसफाई की बात पर मौडर्न होने का इलजाम, चमकदमक के रेशमी कपड़े न पहनने पर फैशन की दुहाई, ये सब सुन उस का मन कसैला हो जाता.

नईम पर कुछ देर इन शिकायतों का असर रहता फिर वह सबा से अच्छे से बात करता. क्योंकि यह उसी की ख्वाहिश थी कि उसे पढ़ीलिखी बीवी मिले और वह अपने दोस्तों पर उस की धाक जमा सके पर सबा को एक शोपीस बन कर नईम के दोस्तों के यहां जाना जरा भी अच्छा नहीं लगता था.

नौकरी तो वह छोड़ ही चुकी थी. एक तो स्कूल ससुराल से बहुत दूर था, दूसरे, शादी की एक शर्त नौकरी छोड़ना भी थी. अपना काम पूरा कर अपने कमरे में किताबें पढ़ती रहती. कानून की डिगरी लेना उस के सपनों में से एक था पर हालात ने इजाजत न दी, न ही वक्त मिला. अब वह अपने खाली टाइम में कानून की किताबें पढ़ अपना यह शौक पूरा करती. वह एक समझदार बेटी, एक परफैक्ट टीचर, एक संपूर्ण औरत तो थी पर मनचाही बहू नहीं बन पा रही थी.

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लेखिका- शकीला एस हुसैन

बेटियां जिस घर में जाती हैं खुशी और सुकून की रोशनी फैला देती हैं. पर पता नहीं, बेटी के पैदा होने पर लोग गम क्यों मनाते हैं. सबा थकीहारी शाम को घर पहुंची. अम्मी नमाज पढ़ रही थीं. नमाज खत्म कर उन्होंने प्यार से बेटी के सलाम का जवाब दिया. उस ने थकान एक मुसकान में लपेट मां की खैरियत पूछी. फिर वह उठ कर किचन में गई जहां उस की भाभी रीमा खाना बना रही थीं. सबा अपने लिए चाय बनाने लगी. सुबह का पूरा काम कर के वह स्कूल जाती थी. बस, शाम के खाने की जिम्मेदारी भाभी की थी, वह भी उन्हें भारी पड़ती थी. जब सबा ने चाय का पहला घूंट लिया तो उसे सुकून सा महसूस हुआ.

‘‘सबा आपी, गुलशन खाला आई थीं, आप के लिए एक रिश्ता बताया है. अम्मी ने ‘हां’ कही है, परसों वे लोग आएंगे,’’ भाभी ने खनकते हुए लहजे में उसे बताया. सबा का गला अंदर तक कड़वा हो गया. आंखों में नमकीन पानी उतर आया. भाभी अपने अंदाज में बोले जा रही थीं, ‘‘लड़के का खुद का जनरल स्टोर है, देखने में ठीकठाक है पर ज्यादा पढ़ालिखा नहीं है. स्टोर से काफी अच्छी कमाई हो जाती है, आप के लिए बहुत अच्छा है.’’

सबा को लगा वह तनहा तपते रेगिस्तान में खड़ी है. दिल ने चाहा, अपनी डिगरी को पुरजेपुरजे कर के जला दे. भाभी ने मुड़ कर उस के धुआं हुए चेहरे को देखा और समझाने लगीं, ‘‘सबा आपी, देखें, आदमी का पढ़ालिखा होना ज्यादा जरूरी नहीं है. बस, कमाऊ और दुनियादारी को समझने वाला होना चाहिए.’’

सबा ने दुख से रीमा को देखा. रीमा एक कम पढ़ी, नासमझ लड़की थी. वह आटेसाटे की शादी (लड़की दे कर लड़की ब्याहना) में सबा की भाभी बन कर आ गई थी. सबा की छोटी बहन लुबना की शादी रीमा के भाई आजाद से हुई थी. आज वही रीमा कितनी आसानी से सबा की शादी के बारे में सबकुछ कह रही हैं.

ये भी पढ़ें- पहली डेट: क्यों उसका मन आशंकाओं से भरा था?

अब्बा ने एक के बाद एक लड़कियां होने का इलजाम भी अम्मी पर लगाया, हफ्तों बेटियों की सूरत नहीं देखी. वह तो अच्छा हुआ तीसरी बार बेटा हो गया, तो अम्मी की हैसियत का ग्राफ कुछ ऊंचा हो गया और अब्बा भी कुछ नरम पड़े. बेटियों का भार कम करने की खातिर बचपन में ही भाई की शादी मामू की बेटी रीमा से और छोटी बहन लुबना की शादी रीमा के भाई आजाद से तय कर दी. आजाद सबा से उम्र में छोटा था इसलिए लुबना की बात तय कर दी. आज पहली बार उसे लड़की होने की बेबसी का एहसास हुआ.

‘‘रीमा, तुम क्या जानो इल्म कैसी दौलत है? कैसी रोशनी है, जो इंसान को जीने का सलीका सिखाती है? वहीं यह डिगरी मर्दऔरत के बीच ऐसे फासले भी पैदा कर देती है कि औरत की सारी उम्र इन फासलों को पाटने में कट जाती है.’’

सबा का कतई दिल न चाह रहा था कि एक बार फिर उसे शोपीस की तरह लड़के वालों को दिखाया जाए पर अम्मी की मिन्नत और बेबसी के आगे वह मजबूर हो गई. वे कहने लगीं, ‘‘सबा, मेरी खातिर मान जाओ. मुझे पूरी उम्मीद है कि वे लोग तुम्हें जरूर पसंद करेंगे.’’

उस ने दुखी हो सोचा, ‘उस की ख्वाहिश व पसंद का किसी को एहसास नहीं. वह एमएससी पास है और एक अच्छे प्राइवेट स्कूल में नौकरी करती है फिर भी पसंद लड़का ही करेगा,’ उस ने उलझ कर कहा, ‘‘अम्मी, कितने लोग तो आ कर रिजैक्ट कर गए हैं, किसी को सांवले रंग पर एतराज, किसी को उम्र ज्यादा लगी, किसी को पढ़ालिखा होना और किसी को नौकरी करना नागवार गुजरा. अब फिर वही नाटक.’’

अम्मी रो पड़ीं, ‘‘बेटी, मैं बहुत शर्मिंदा हूं. तुम्हारी शादी मुझे सब से पहले करनी थी पर तुम हमारी मजबूरी और हालात की भेंट चढ़ गईं.’’

सबा यह नौकरी करीब 8 साल से कर रही थी, जब वह बीएससी फाइनल में थी तो अब्बा की एक ऐक्सिडैंट में टांग टूट गई, नौकरी प्राइवेट कंपनी में थी. बहुत दिनों के इलाज के बाद लकड़ी के सहारे चलने लगे. इस अरसे में नौकरी खत्म हो गई.

कंपनी से मिला पैसा कुछ इलाज में खर्च हुआ, कुछ घर में. अब आमदनी का कोई जरिया न था. लुबना और छोटा भाई जोहेब अभी पढ़ रहे थे. उस ने बीएससी पास करते ही नौकरी की तलाश शुरू कर दी. अच्छी डिवीजन होने के कारण उसे इसी स्कूल में प्राइमरी सैक्शन में नौकरी मिल गई. उस ने नाइट क्लासेस से एमएससी और बीएड पूरा किया और फिर सेकेंडरी सैक्शन में प्रमोट हो गई. अब अब्बा उसे बेहद प्यार करते. वही तो घर की गाड़ी खींच रही थी.

 

शाम को गहरे रंगों के रेशमी कपड़ों में लड़के की अम्मी और 2 बहनें आईं. उन लोगों ने बताया कि लड़के, नईम की ख्वाहिश है कि लड़की पढ़ीलिखी हो, इसलिए वे लोग सबा को देखने आए हैं.

लड़के की अम्मी ने हाथों में ढेर सी चमकती चूडि़यां पहन रखी थीं. खनखनाते हुए वे बोलीं, ‘‘हमारे बेटे की डिमांड पढ़ीलिखी लड़की है, इसलिए हमें तो आप की बेटी पसंद है.’’

अम्मी ने शादी में देर न की क्योंकि जोहेब की बहुत अच्छी नौकरी लगे 2 साल हो चुके थे. काफी कुछ तो उन्होंने दहेज में देने को बना रखा था. कुछ और तैयारी हुई और सबा दुलहन बन कर नईम के घर पहुंच गई.

सबा उस मामूली से सजे कमरे में दुलहन बनी बैठी थी. उस की ननदें और उस की सहेलियां कुछ देर उस के पास बैठी बचकाने मजाक करती रहीं, फिर भाई को भेजने का कह कर उसे तनहा छोड़ गईं. काफी देर बाद उस की जिंदगी का वह लमहा आया जिस का लड़कियां बड़ी बेसब्री से इंतजार करती हैं. नईम हाथ में मोबाइल लिए अंदर दाखिल हुआ और उस के पास बैठ गया, उस का घूंघट उठा कर कोई खूबसूरत या नाजुक बात कहने के बजाय वह, उसे मोबाइल से अपने दोस्तों के बेहूदा मैसेज पढ़ कर सुनाने लगा जो खासतौर पर उस के दोस्तों ने उसे इस रात के लिए भेजे थे. सबा सिर झुकाए सुनती रही. उस का दिल भर आया. वह खूबसूरत रात बिना किसी अनोखे एहसास, प्यार के जज्बात के गुजर गई.

सुबह नाश्ते में पूरियां, हलवा, फ्राइड चिकन देख उस ने धीरे से कहा, ‘‘मैं सुबहसुबह इतना भारी नाश्ता नहीं कर सकती.’’

‘‘ठीक है, न खाओ,’’ नईम ने लापरवाही से कहा, फिर उस के लिए ब्रैडदूध मंगवा दिया, न कोई मनुहार न इसरार.

फिर जिंदगी एक इम्तिहान की तरह शुरू हो गई. सबा अभी अपनेआप को इस बदले माहौल में व्यवस्थित करती, उस से पहले ही सब के व्यवहार बदलने लगे. सास की तीखी बातें, ननदों के बातबात पर पढे़लिखे होने के ताने. जैसे उसे नीचा दिखाने की होड़ शुरू हो गई. उस का व्यवहारकुशल और पढ़ालिखा होना जैसे एक गुनाह बन गया. सबा इसे झेल नहीं पा रही थी इसलिए उस ने खामोशी ओढ़ ली. धीरेधीरे सब से कटने लगी. उन लोगों की बातों में भी या तो किसी की बुराई होती या मजाक उड़ाया जाता, वह अपने कमरे तक सीमित हो गई.

नईम का नरम और बचकाना रवैया उसे खड़े होने के लिए जमीन देता रहा. इतना भी काफी था. जब वह स्टोर से आता मांबहनों के पास एकडेढ़ घंटे बैठता, तीनों उस की शिकायतों के दफ्तर खोल देतीं. हर काम में बुराई का एक पहलू मिल जाता, खाने में कम तेल डालना, छोटी रोटियां बनाना कंजूसी गिना जाता, साफसफाई की बात पर मौडर्न होने का इलजाम, चमकदमक के रेशमी कपड़े न पहनने पर फैशन की दुहाई, ये सब सुन उस का मन कसैला हो जाता.

नईम पर कुछ देर इन शिकायतों का असर रहता फिर वह सबा से अच्छे से बात करता. क्योंकि यह उसी की ख्वाहिश थी कि उसे पढ़ीलिखी बीवी मिले और वह अपने दोस्तों पर उस की धाक जमा सके पर सबा को एक शोपीस बन कर नईम के दोस्तों के यहां जाना जरा भी अच्छा नहीं लगता था.

नौकरी तो वह छोड़ ही चुकी थी. एक तो स्कूल ससुराल से बहुत दूर था, दूसरे, शादी की एक शर्त नौकरी छोड़ना भी थी. अपना काम पूरा कर अपने कमरे में किताबें पढ़ती रहती. कानून की डिगरी लेना उस के सपनों में से एक था पर हालात ने इजाजत न दी, न ही वक्त मिला. अब वह अपने खाली टाइम में कानून की किताबें पढ़ अपना यह शौक पूरा करती. वह एक समझदार बेटी, एक परफैक्ट टीचर, एक संपूर्ण औरत तो थी पर मनचाही बहू नहीं बन पा रही थी.

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March 09, 2022 at 09:00AM

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