Sunday 27 March 2022

चूक गया अर्जुन का निशाना: भाग 1

बाजार के बीचोबीच स्थित रामलीला मैदान में दोस्तों के साथ रामलीला देख रहे दिनेश पटेल ने कहा, ‘‘भाइयो, मैं तो अब जा रहा हूं. मैं

ट्यूबवेल चला कर आया हूं. मेरा खेत भर गया होगा. इसलिए ट्यूबवेल बंद करना होगा, वरना बगल वाले खेत में पानी चला गया तो काफी नुकसान हो जाएगा.’’

‘‘थोड़ी देर और रुक न यार, रामलीला खत्म होने वाली है. हम सब साथ चलेंगे. तुम्हें तुम्हारे खेतों पर छोड़ कर हम सब गांव चले जाएंगे.’’ दिनेश के बगल में बैठे उस के दोस्त कान्हा ने उसे रोकने के लिए कहा, ‘‘अब थोड़ी ही रामलीला बाकी है. पूरी हो जाने दो.’’

दिनेश गुजरात के बड़ौदा शहर से करीब 15-16 किलोमीटर दूर स्थित मंजूसर कस्बे में रहता था. मंजूसर कभी शामली तहसील जाने वाली सड़क किनारे बसा एक गांव था. लेकिन जब गुजरात सरकार ने यहां जीआईडीसी (गुजरात इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट कारपोरेशन) बना दिया तो यहां छोटीबड़ी तमाम इंडस्ट्रीज लग गईं, जिस की वजह से मंजूसर गांव एक कस्बा बन गया.

दिनेश की जमीन सड़क से दूर थी, जिस पर वह खेती करता था. सिंचाई के लिए उस ने अपना ट्यूबवेल भी लगवा रखा था. बगल वाले खेत में पानी चला जाता तो उस का काफी नुकसान हो जाता, इसलिए वह कान्हा के रोकने पर भी वह नहीं रुका. एक हाथ में टौर्च और दूसरे हाथ में डंडा ले कर वह रामलीला से खेतों की ओर चल पड़ा.

उस समय रात के लगभग डेढ़ बज रहे थे. जिस रास्ते से वह जा रहा था, उस के दोनों ओर ऊंचेऊंचे सरपत खड़े थे, जिन में झींगुर अपनी पूरी ताकत से अपना राग अलाप रहे थे. कोई अगर पीछे से सिर में टपली मार कर चला जाए, तब भी पहचान में न आए उस समय इस तरह का अंधेरा था. उस सुनसान रास्ते पर दिनेश अपनी धुन में चला जा रहा था.

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मुख्य रास्ते से जैसे ही वह अपने खेत के रास्ते की ओर मुड़ा, अंधेरे में भी उसे कुछ ऐसा दिखाई दिया, जिसे देख कर वह चौंक उठा. दिनेश को लगा कि रास्ते में कोई जानवर लेटा है. उस ने हाथ में ली लकड़ी को मजबूती से पकड़ कर दूसरे हाथ में ली टौर्च जलाई तो उस ने जो दृश्य देखा, उस के छक्के छूट गए.

उसे देखते ही वह वापस रामलीला मैदान की ओर भागा. जितने समय में वह खेत के रास्ते तक पहुंचा था, उस के एक चौथाई समय में ही वह रामलीला देख रहे दोस्तों के पास पहुंच गया था. लेकिन तब तक रामलीला खत्म हो चुकी थी. पर अभी उस के दोस्त कान्हा, करसन, रफीक और महबूब रामलीला मैदान में ही बैठे थे.

दिनेश को इस तरह भाग कर आते देख कर सभी हैरानी से उठ खड़े हुए. कान्हा ने पूछा, ‘‘क्या हुआ दिनेश, तू इतनी जल्दी क्यों वापस आ गया? तू तो बहुत डरा हुआ लग रहा है?’’

‘‘डरने की ही बात है,’’ डरे हुए दिनेश ने हांफते हुए कहा,‘‘जल्दी चलो, मेरे खेत वाले रास्ते में एक औरत की लाश पड़ी है. मैं ने अपनी आंखों से देखी है, उस के आसपास सियार घूम रहे हैं.’’

‘‘तेरा दिमाग तो ठीक है, तू ये क्या बक रहा है? किस की लाश हो सकती है?’’ करसन ने हैरानी जताते हुए कहा.

‘‘करसन भाई, मुझे क्या पता वह किस की लाश है,’’ हांफते हुए दिनेश ने कहा.

कान्हा ने जल्दी से अपनी बुलेट स्टार्ट की तो अन्य दोस्तों ने भी अपनीअपनी बाइकें स्टार्ट कर लीं. दिनेश कान्हा के पीछे उस की बुलेट पर बैठ गया तो सभी दिनेश के खेत की ओर चल पड़े. दिनेश के खेत के रास्ते पर जहां लाश पड़ी थी, वहां पहुंचते ही दिनेश ने चिल्ला कर बुलेट रुकवाते हुए कहा, ‘‘रुकोरुको यहीं वह लाश पड़ी है.’’

सभी ने अपनीअपनी मोटरसाइकिलें  मुख्य रास्ते पर खड़ी कर दीं और उस ओर चल पड़े, जहां दिनेश ने लाश पड़ी होने की बात कही थी. जहां लाश पड़ी थी, वहां पहुंच कर दिनेश ने टौर्च जलाई तो वहां लाश नहीं थी. लाश गायब थी. लाश न देख कर दिनेश हतप्रभ रह गया. हैरान होते हुए उस ने कहा, ‘‘अरे यहीं तो लाश पड़ी थी. इतनी देर में कहां चली गई?’’

‘‘अरे यार दिनेश, मैं तो तुम्हें बहुत बहादुर समझता था, पर तुम तो बहुत डरपोक निकले. पता नहीं क्या देख लिया कि तुम्हें लगा लाश पड़ी है. लगता है, जागते में सपना देखा है. यहां कहां है लाश?’’ कान्हा ने कहा.

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कान्हा की बात खत्म होते ही करसन ने कहा, ‘‘भले आदमी तुम्हें वहम हुआ है. यहां कहां है लाश? लाश होती तो इतनी देर में कहां चली जाती. सियार तो उठा कर ले नहीं जा सकता. घसीटने का भी यहां कोई निशान नहीं है.’’

दिनेश सोचने लगा कि कुछ तो गड़बड़ हुई है. पर अब उस के पास ऐसा कोई सबूत नहीं है था कि वह दोस्तों को विश्वास दिला देता कि उस ने जो देखा था, वह सच था.

दिनेश यही सब सोच रहा था कि कान्हा ने बुलेट स्टार्ट की तो दिनेश उस के पीछे बैठ गया. बाकी सब ने भी अपनीअपनी बाइकें स्टार्ट कर लीं. सब के सब दिनेश के खेत पर जा पहुंचे. थोड़ी देर बातचीत कर के सभी अपनेअपने घर चले गए.

दिनेश ट्यूबवेल पर पड़ी चारपाई पर लेट गया. रात का चौथा पहर हो चुका था. दिनेश की आंखों में नींद का नामोनिशान नहीं था. बारबार उस की आंखों के सामने उस लाश का दृश्य आजा रहा था. इस बीच कब दिनेश की आंख लग गई, उसे पता नहीं चला.

सुबह 10 बजे मंजूसर बसअड्डे पर स्थित केतन की चाय की दुकान पर कान्हा, करसन, महबूब और अन्य दोस्त इकट्ठा हुए तो रात की बात याद कर के सब दिनेश की हंसी उड़ाने लगे. उसी बीच रफीक ने आ कर कहा, ‘‘अरे यार कान्हा, अर्जुन काका के यहां क्या हुआ है, जो तमाम लोग इकट्ठा हैं?’’

कान्हा अर्जुन के घर की ओर चला तो बाकी के दोस्त भी उस के पीछेपीछे चल पड़े. कुछ देर में यह टोली अर्जुन के घर पहुंच गई. गांव के तमाम लोग अर्जुन के घर के सामने इकट्ठा थे.

उन के बीच अर्जुन मुंह लटकाए सिर पर हाथ रखे बैठा था. पहुंचते ही कान्हा ने सीधे पूछा, ‘‘क्या हुआ अर्जुन काका? इस तरह मुंह लटका कर क्यों बैठे हो?’’

‘‘अरे, हमारे मोहन की बहू रात को रामलीला देखने गई थी. अभी तक लौट कर नहीं आई है. उस का मोबाइल भी बंद आ रहा है,’’ अर्जुन ने बताया.

कान्हा सोच में पड़ गया. उसे तुरंत पिछली रात की बात याद आ गई. उस के मन में सीधा सवाल उठा कि कहीं दिनेश की बात सच तो नहीं थी?

थोड़ी ही देर में यह खबर एकदूसरे के मुंह से होते हुए पूरे कस्बे में फैल गई.

अर्जुन से मामला जान कर कान्हा अपने दोस्तों के साथ सीधे दिनेश के खेत पर पहुंचा. दिनेश अभी भी खेत पर ही था. उस के पास पहुंच कर कान्हा ने कहा, ‘‘यार दिनेश, रात वाली बात पर अब मुझे विश्वास हो रहा है. तू जो कह रहा था, लगता है वह सच था.’’

‘‘मुझे लगता है, रात को किसी ने अर्जुन काका की विधवा बहू सविता की इज्जत लूट कर उसे मार डाला है.’’ अंदाजा लगाते हुए कान्हा के साथ आए करसन ने कहा, ‘‘एक काम करते हैं, चलो यह बात अर्जुन काका को बताते हैं.’’

दिनेश पटेल ने करसन की हां में हां मिलाई तो कान्हा ने उन सब को चेताते हुए कहा, ‘‘भई देख लेना दिनेश, कहीं यह बवाल अपने माथे ही न पड़ जाए. अर्जुन काका बहुत काईयां आदमी है. बिना कुछ समझेबूझे हम लोगों के सिर ही न आरोप मढ़ दे.’’

‘‘नहीं यार कान्हा, हम लोगों के अलावा और कोई यह बात जानता भी तो नहीं है. इसलिए यह बात हमें अर्जुन काका को जरूर बतानी चाहिए.’’ दिनेश ने दृढ़ता के साथ अपना निर्णय दोस्तों को सुना दिया.

वहां से सभी सीधे अर्जुन के घर पहुंचे. उस समय अर्जुन घर में अकेला ही था. तभी दिनेश ने रामलीला देख कर लौटते समय अपने खेत वाले रास्ते में जो लाश देखी थी, पूरी बात अर्जुन को बता दी. दिनेश की बात सुन कर अर्जुन के तो जैसे होश ही उड़ गए. उस का शरीर ढीला पड़ गया. उस के चेहरे पर चिंता की रेखाएं साफ दिखाई देने लगीं.

अर्जुन को इस तरह परेशान देख कर उसे आश्वस्त कर के सलाह देते हुए दिनेश ने कहा, ‘‘काका मेरी मानो तो अभी भादरवा थाने जा कर रात की पूरी बात बता कर सविता के गायब होने की रिपोर्ट दर्ज करा दो.’’

दिनेश और उस के दोस्तों के सामने ही अर्जुन ने तुरंत कपड़े बदले और गांव के प्रधान को साथ ले कर सीधे थाना भादरवा पहुंच गया. थानाप्रभारी भोपाल सिंह जडेजा को पूरी बात बता कर उस ने अपनी बहू सविता के गायब होने की रिपोर्ट दर्ज करा दी. रिपोर्ट दर्ज होने के बाद जब थानाप्रभारी ने उस से पूछा कि उसे किसी पर शक है तो उस ने कहा, ‘‘जी साहब…’’

‘‘किस पर शक है?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘मुझे अपने ही गांव के दिनेश पटेल पर शक है.’’ अर्जुन ने पूरे आत्मविश्वास के साथ दिनेश का नाम ले लिया था.

अर्जुन के मुंह से दिनेश का नाम सुन कर उस के साथ आया ग्रामप्रधान अवाक रह गया. पर वह कुछ बोल नहीं सका. क्योंकि वह जानता था कि इस समय थानाप्रभारी के सामने उस का कुछ बोलना ठीक भी नहीं है.

थाने के बाहर आते ही ग्रामप्रधान ने दिनेश का बचाव करते हुए कहा, ‘‘क्यों अर्जुन, तुम ने दिनेश का नाम क्यों लिया? वह लड़का तो इस तरह का नहीं है.’’

‘‘नहीं… नहीं प्रधानजी, मैं पागल थोड़े ही हूं जो किसी को गलत फंसा दूंगा. मोहन के मरने के बाद सविता जब से विधवा हुई है, जब देखो तब दिनेश उस से मिलने आता रहता था, उस के हिस्से की खेतों को जोतवाता था, कहीं बाहर जाना होता तो उसे साथ ले कर जाता था. पर बहू बेचारी भोलीभाली थी, आखिर उस के जाल में फंस ही गई. दिनेश ने उस के साथ मनमानी कर के कांटा निकाल फेंका. अब वह लाश देखने का नाटक कर रहा है.’’ अर्जुन ने दिनेश पर गंभीर आरोप लगाते हुए ग्रामप्रधान से कहा.

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बाजार के बीचोबीच स्थित रामलीला मैदान में दोस्तों के साथ रामलीला देख रहे दिनेश पटेल ने कहा, ‘‘भाइयो, मैं तो अब जा रहा हूं. मैं

ट्यूबवेल चला कर आया हूं. मेरा खेत भर गया होगा. इसलिए ट्यूबवेल बंद करना होगा, वरना बगल वाले खेत में पानी चला गया तो काफी नुकसान हो जाएगा.’’

‘‘थोड़ी देर और रुक न यार, रामलीला खत्म होने वाली है. हम सब साथ चलेंगे. तुम्हें तुम्हारे खेतों पर छोड़ कर हम सब गांव चले जाएंगे.’’ दिनेश के बगल में बैठे उस के दोस्त कान्हा ने उसे रोकने के लिए कहा, ‘‘अब थोड़ी ही रामलीला बाकी है. पूरी हो जाने दो.’’

दिनेश गुजरात के बड़ौदा शहर से करीब 15-16 किलोमीटर दूर स्थित मंजूसर कस्बे में रहता था. मंजूसर कभी शामली तहसील जाने वाली सड़क किनारे बसा एक गांव था. लेकिन जब गुजरात सरकार ने यहां जीआईडीसी (गुजरात इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट कारपोरेशन) बना दिया तो यहां छोटीबड़ी तमाम इंडस्ट्रीज लग गईं, जिस की वजह से मंजूसर गांव एक कस्बा बन गया.

दिनेश की जमीन सड़क से दूर थी, जिस पर वह खेती करता था. सिंचाई के लिए उस ने अपना ट्यूबवेल भी लगवा रखा था. बगल वाले खेत में पानी चला जाता तो उस का काफी नुकसान हो जाता, इसलिए वह कान्हा के रोकने पर भी वह नहीं रुका. एक हाथ में टौर्च और दूसरे हाथ में डंडा ले कर वह रामलीला से खेतों की ओर चल पड़ा.

उस समय रात के लगभग डेढ़ बज रहे थे. जिस रास्ते से वह जा रहा था, उस के दोनों ओर ऊंचेऊंचे सरपत खड़े थे, जिन में झींगुर अपनी पूरी ताकत से अपना राग अलाप रहे थे. कोई अगर पीछे से सिर में टपली मार कर चला जाए, तब भी पहचान में न आए उस समय इस तरह का अंधेरा था. उस सुनसान रास्ते पर दिनेश अपनी धुन में चला जा रहा था.

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मुख्य रास्ते से जैसे ही वह अपने खेत के रास्ते की ओर मुड़ा, अंधेरे में भी उसे कुछ ऐसा दिखाई दिया, जिसे देख कर वह चौंक उठा. दिनेश को लगा कि रास्ते में कोई जानवर लेटा है. उस ने हाथ में ली लकड़ी को मजबूती से पकड़ कर दूसरे हाथ में ली टौर्च जलाई तो उस ने जो दृश्य देखा, उस के छक्के छूट गए.

उसे देखते ही वह वापस रामलीला मैदान की ओर भागा. जितने समय में वह खेत के रास्ते तक पहुंचा था, उस के एक चौथाई समय में ही वह रामलीला देख रहे दोस्तों के पास पहुंच गया था. लेकिन तब तक रामलीला खत्म हो चुकी थी. पर अभी उस के दोस्त कान्हा, करसन, रफीक और महबूब रामलीला मैदान में ही बैठे थे.

दिनेश को इस तरह भाग कर आते देख कर सभी हैरानी से उठ खड़े हुए. कान्हा ने पूछा, ‘‘क्या हुआ दिनेश, तू इतनी जल्दी क्यों वापस आ गया? तू तो बहुत डरा हुआ लग रहा है?’’

‘‘डरने की ही बात है,’’ डरे हुए दिनेश ने हांफते हुए कहा,‘‘जल्दी चलो, मेरे खेत वाले रास्ते में एक औरत की लाश पड़ी है. मैं ने अपनी आंखों से देखी है, उस के आसपास सियार घूम रहे हैं.’’

‘‘तेरा दिमाग तो ठीक है, तू ये क्या बक रहा है? किस की लाश हो सकती है?’’ करसन ने हैरानी जताते हुए कहा.

‘‘करसन भाई, मुझे क्या पता वह किस की लाश है,’’ हांफते हुए दिनेश ने कहा.

कान्हा ने जल्दी से अपनी बुलेट स्टार्ट की तो अन्य दोस्तों ने भी अपनीअपनी बाइकें स्टार्ट कर लीं. दिनेश कान्हा के पीछे उस की बुलेट पर बैठ गया तो सभी दिनेश के खेत की ओर चल पड़े. दिनेश के खेत के रास्ते पर जहां लाश पड़ी थी, वहां पहुंचते ही दिनेश ने चिल्ला कर बुलेट रुकवाते हुए कहा, ‘‘रुकोरुको यहीं वह लाश पड़ी है.’’

सभी ने अपनीअपनी मोटरसाइकिलें  मुख्य रास्ते पर खड़ी कर दीं और उस ओर चल पड़े, जहां दिनेश ने लाश पड़ी होने की बात कही थी. जहां लाश पड़ी थी, वहां पहुंच कर दिनेश ने टौर्च जलाई तो वहां लाश नहीं थी. लाश गायब थी. लाश न देख कर दिनेश हतप्रभ रह गया. हैरान होते हुए उस ने कहा, ‘‘अरे यहीं तो लाश पड़ी थी. इतनी देर में कहां चली गई?’’

‘‘अरे यार दिनेश, मैं तो तुम्हें बहुत बहादुर समझता था, पर तुम तो बहुत डरपोक निकले. पता नहीं क्या देख लिया कि तुम्हें लगा लाश पड़ी है. लगता है, जागते में सपना देखा है. यहां कहां है लाश?’’ कान्हा ने कहा.

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कान्हा की बात खत्म होते ही करसन ने कहा, ‘‘भले आदमी तुम्हें वहम हुआ है. यहां कहां है लाश? लाश होती तो इतनी देर में कहां चली जाती. सियार तो उठा कर ले नहीं जा सकता. घसीटने का भी यहां कोई निशान नहीं है.’’

दिनेश सोचने लगा कि कुछ तो गड़बड़ हुई है. पर अब उस के पास ऐसा कोई सबूत नहीं है था कि वह दोस्तों को विश्वास दिला देता कि उस ने जो देखा था, वह सच था.

दिनेश यही सब सोच रहा था कि कान्हा ने बुलेट स्टार्ट की तो दिनेश उस के पीछे बैठ गया. बाकी सब ने भी अपनीअपनी बाइकें स्टार्ट कर लीं. सब के सब दिनेश के खेत पर जा पहुंचे. थोड़ी देर बातचीत कर के सभी अपनेअपने घर चले गए.

दिनेश ट्यूबवेल पर पड़ी चारपाई पर लेट गया. रात का चौथा पहर हो चुका था. दिनेश की आंखों में नींद का नामोनिशान नहीं था. बारबार उस की आंखों के सामने उस लाश का दृश्य आजा रहा था. इस बीच कब दिनेश की आंख लग गई, उसे पता नहीं चला.

सुबह 10 बजे मंजूसर बसअड्डे पर स्थित केतन की चाय की दुकान पर कान्हा, करसन, महबूब और अन्य दोस्त इकट्ठा हुए तो रात की बात याद कर के सब दिनेश की हंसी उड़ाने लगे. उसी बीच रफीक ने आ कर कहा, ‘‘अरे यार कान्हा, अर्जुन काका के यहां क्या हुआ है, जो तमाम लोग इकट्ठा हैं?’’

कान्हा अर्जुन के घर की ओर चला तो बाकी के दोस्त भी उस के पीछेपीछे चल पड़े. कुछ देर में यह टोली अर्जुन के घर पहुंच गई. गांव के तमाम लोग अर्जुन के घर के सामने इकट्ठा थे.

उन के बीच अर्जुन मुंह लटकाए सिर पर हाथ रखे बैठा था. पहुंचते ही कान्हा ने सीधे पूछा, ‘‘क्या हुआ अर्जुन काका? इस तरह मुंह लटका कर क्यों बैठे हो?’’

‘‘अरे, हमारे मोहन की बहू रात को रामलीला देखने गई थी. अभी तक लौट कर नहीं आई है. उस का मोबाइल भी बंद आ रहा है,’’ अर्जुन ने बताया.

कान्हा सोच में पड़ गया. उसे तुरंत पिछली रात की बात याद आ गई. उस के मन में सीधा सवाल उठा कि कहीं दिनेश की बात सच तो नहीं थी?

थोड़ी ही देर में यह खबर एकदूसरे के मुंह से होते हुए पूरे कस्बे में फैल गई.

अर्जुन से मामला जान कर कान्हा अपने दोस्तों के साथ सीधे दिनेश के खेत पर पहुंचा. दिनेश अभी भी खेत पर ही था. उस के पास पहुंच कर कान्हा ने कहा, ‘‘यार दिनेश, रात वाली बात पर अब मुझे विश्वास हो रहा है. तू जो कह रहा था, लगता है वह सच था.’’

‘‘मुझे लगता है, रात को किसी ने अर्जुन काका की विधवा बहू सविता की इज्जत लूट कर उसे मार डाला है.’’ अंदाजा लगाते हुए कान्हा के साथ आए करसन ने कहा, ‘‘एक काम करते हैं, चलो यह बात अर्जुन काका को बताते हैं.’’

दिनेश पटेल ने करसन की हां में हां मिलाई तो कान्हा ने उन सब को चेताते हुए कहा, ‘‘भई देख लेना दिनेश, कहीं यह बवाल अपने माथे ही न पड़ जाए. अर्जुन काका बहुत काईयां आदमी है. बिना कुछ समझेबूझे हम लोगों के सिर ही न आरोप मढ़ दे.’’

‘‘नहीं यार कान्हा, हम लोगों के अलावा और कोई यह बात जानता भी तो नहीं है. इसलिए यह बात हमें अर्जुन काका को जरूर बतानी चाहिए.’’ दिनेश ने दृढ़ता के साथ अपना निर्णय दोस्तों को सुना दिया.

वहां से सभी सीधे अर्जुन के घर पहुंचे. उस समय अर्जुन घर में अकेला ही था. तभी दिनेश ने रामलीला देख कर लौटते समय अपने खेत वाले रास्ते में जो लाश देखी थी, पूरी बात अर्जुन को बता दी. दिनेश की बात सुन कर अर्जुन के तो जैसे होश ही उड़ गए. उस का शरीर ढीला पड़ गया. उस के चेहरे पर चिंता की रेखाएं साफ दिखाई देने लगीं.

अर्जुन को इस तरह परेशान देख कर उसे आश्वस्त कर के सलाह देते हुए दिनेश ने कहा, ‘‘काका मेरी मानो तो अभी भादरवा थाने जा कर रात की पूरी बात बता कर सविता के गायब होने की रिपोर्ट दर्ज करा दो.’’

दिनेश और उस के दोस्तों के सामने ही अर्जुन ने तुरंत कपड़े बदले और गांव के प्रधान को साथ ले कर सीधे थाना भादरवा पहुंच गया. थानाप्रभारी भोपाल सिंह जडेजा को पूरी बात बता कर उस ने अपनी बहू सविता के गायब होने की रिपोर्ट दर्ज करा दी. रिपोर्ट दर्ज होने के बाद जब थानाप्रभारी ने उस से पूछा कि उसे किसी पर शक है तो उस ने कहा, ‘‘जी साहब…’’

‘‘किस पर शक है?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘मुझे अपने ही गांव के दिनेश पटेल पर शक है.’’ अर्जुन ने पूरे आत्मविश्वास के साथ दिनेश का नाम ले लिया था.

अर्जुन के मुंह से दिनेश का नाम सुन कर उस के साथ आया ग्रामप्रधान अवाक रह गया. पर वह कुछ बोल नहीं सका. क्योंकि वह जानता था कि इस समय थानाप्रभारी के सामने उस का कुछ बोलना ठीक भी नहीं है.

थाने के बाहर आते ही ग्रामप्रधान ने दिनेश का बचाव करते हुए कहा, ‘‘क्यों अर्जुन, तुम ने दिनेश का नाम क्यों लिया? वह लड़का तो इस तरह का नहीं है.’’

‘‘नहीं… नहीं प्रधानजी, मैं पागल थोड़े ही हूं जो किसी को गलत फंसा दूंगा. मोहन के मरने के बाद सविता जब से विधवा हुई है, जब देखो तब दिनेश उस से मिलने आता रहता था, उस के हिस्से की खेतों को जोतवाता था, कहीं बाहर जाना होता तो उसे साथ ले कर जाता था. पर बहू बेचारी भोलीभाली थी, आखिर उस के जाल में फंस ही गई. दिनेश ने उस के साथ मनमानी कर के कांटा निकाल फेंका. अब वह लाश देखने का नाटक कर रहा है.’’ अर्जुन ने दिनेश पर गंभीर आरोप लगाते हुए ग्रामप्रधान से कहा.

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March 28, 2022 at 09:00AM

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