Thursday 24 March 2022

तनु बदल गई है: क्यों तनु में बदलाव आय़ा?

लेकिन वह उस समय हैरानपरेशान हो गया, जब तनु से पूछ कर उस ने घर में एक पार्टी रखी, जिस में उस की महिला मित्र भी शामिल हुई थीं. तनु ने उन सब की अच्छे से आवभगत की. राजेश ने , जो वह सोचने पर विवश हो गया? क्या वाकई तनु बदल गई थी…?

राजेश प्रत्यक्षत: तो लैपटौप या ईमेल पर पढ़ रहा था, लेकिन उस के कान अपनी पत्नी तन्वी और बच्चों स्नेहा और यश की बातों की तरफ लगे थे, बातों के साथ तन्वी सब के टिफिन पैक करती जा रही थी. स्नेहा ने कहा, ‘‘मां, आज औफिस से आने में देर हो सकती है.’’

‘‘ओह, फिर? क्यों?’’

‘‘आज बहुत काम है. 8 बजे भी निकली, तो ठाणे  पहुंचतेपहुंचते 11 तो बज ही जाएंगे, मेरा डिनर मत बनाना. औफिस की कैंटीन से ही कुछ खा कर निकलूंगी.’’

‘‘क्या मुसीबत है, औफिस आनाजाना कितना मुश्किल होता जा रहा फिर मुंबई में.

“इस से पहले तो वर्क फ्रौम होम था तो कम से कम आसपास तो रहती थी.

स्नेहा, कोई कुलीग नहीं है जिस के साथ तुम आजा पाओ.”

‘‘नहीं मां, मैं ही यहां सब से दूर रहती हूं ठाणे में.’’

‘‘कितना अच्छा होता तुम्हें कोई कंपनी मिल जाती तो…’’

‘‘कल तो मैं ने नरीमन पाइंट पहुंच कर श्रेयस को फोन किया कि मेरा बैग लैपटौप और बाकी सामान से भरा हुआ है और मेरे पैर में भी दर्द है. प्लीज, मुझे लेने आ जाओ, तो बेचारा अपनी गाड़ी ले कर औफिस से मुझे स्टेशन लेने आया, नहीं तो टैक्सी स्टैंड तक जातेजाते मेरे कंधे का बुरा हाल हो जाता.’’‘‘यह तो अच्छा हुआ, तुम्हें कुछ आराम हो गया होगा.’’

यश ने स्नेहा को छेड़ने की कोशिश की, ‘‘ओहो दीदी, तो श्रेयस लेने आया?’’ तन्वी ने डपटा, ‘‘चुप रहो, बकवास मत करो, लेने आ गया तो क्या हुआ, दोस्त है उस का.’’

राजेश को तो अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ, सोचने लगा, आजकल तनु को क्या हो गया है, वह बदल रही है. इतने में तन्वी ने तीन टिफिन टेबल पर रखते हुए कहा, ‘‘अपनेअपने बैग में रख लो.’’

सब तैयार थे, तीनों ने मास्क निकाल कर पहने और निकल गए. राजेश और स्नेहा अपनेअपने औफिस के लिए, यश 12वीं में है, वह स्कूल के लिए. अब कई महीनों बाद फिर फिजिकल क्लास शुरू हो गई थी. घर से निकल कर राजेश अपनी कार निकालने के लिए पार्किंग की तरफ  बढ़ गया, स्नेहा स्टेशन जाने के लिए आटो और राहुल अपनी स्कूटी पर निकल गया.

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राजेश का औफिस बस दस मिनट की दूरी पर है, वह रास्तेभर यही योचता रहा कि कहां तो तन्वी हमेशा किसी भी लड़कीलड़के को साथ देख कर बिदक जाती थी और अब स्नेहा सीए कर रही है, वह आर्टिकलशिप के लिए नरीमन पाइंट अपने औफिस जाती है, अब तनु कितने आराम से पूछती रहती है कि स्नेहा को आनेजाने का कोई साथ मिला या नहीं. यही नहीं, स्नेहा अपने औफिस और कालेज के दोस्तों के बारे में बताती है तो तनु कितने उत्साह से सुनती है उस की बातें और अब तो यश जब अपनी किसी क्लासमेट से फोन पर लंबी बातें करते हैं तब भी तनु कुछ नहीं कहती.

गाड़ी चलाते हुए राजेश को कितनी ही बातें याद आ रही थीं, लौकडाउन से पहले एक बार राजेश को औफिस के किसी काम से बांद्रा जाना था, राजेश ने तन्वी को बताया था, ‘‘तनु, आज बांद्रा जाना है, एक मीटिंग है, अपनी गाड़ी नहीं ले जा रहा हूं, औफिस से सिम्मी को भी जाना है, वही अपनी गाड़ी निकाल रही है, उसी के साथ चला जाता हूं.’’

राजेश को आज भी तन्वी की वो जलती निगाहें याद हैं, तन्वी ने कहा था,

‘‘क्या जरूरत है, आप अपनी कार से ही जाइए, मुझे कभी पसंद नहीं आएगा आप का किसी के साथ जाना.’’

राजेश झुंझला गया था, ‘‘यह क्या बचपना है तनु, यह मुंबई है, कुलीग्स का साथ आनाजाना आम बात है और अब तो तय हो चुका है कि कार वो ले जा रही है, अब मैं यह कैसे कहूं कि मैं अपनी कार से जाऊंगा, तुम अपनी कार से जाओ, कारण क्या बताऊंगा कि मेरी पत्नी को यह पसंद नहीं है.’’

तन्वी ने उस समय और कुछ नहीं कहा था, बस आंखें भर आई थीं उस की और वह सिम्मी यादव के साथ चला तो गया था, लेकिन पूरा दिन उस का काम में दिल नहीं लगा था, जानता था कि आज तनु पूरा दिन उदास रहेगी. तनु को उस का किसी महिला सहकर्मी के साथ आनाजाना पसंद नहीं है, खासतौर पर सिम्मी के साथ जिस को वह जाति की निगाहों से भी देखती है. वह भी ऐसी स्थिति से बचने की कोशिश करता है, लेकिन क्या करे, औफिस में लड़कियां, महिलाएं भरी हुई हैं, कामकाजी महिलाओं के लिए तन्वी के दिल में कुछ खास अच्छी इमेज नहीं थी, लेकिन अब जब से स्नेहा औफिस जाने लगी है, तनु बदल रही है. तन्वी के बारे में ही सोचतेसोचते राजेश औफिस पहुंच गया. दिनभर काम के दौरान भी उसे तन्वी का कई बार खयाल आया. लंचटाइम में उस ने हमेशा की तरह तन्वी को फोन कर उस का हालचाल पूछा, वह जानता है, सरलहृदया तन्वी इतने में ही खुश हो जाती है, दिनभर सब की सुविधाओं का खयाल रखती तनु उस के प्यार के एकएक बोल पर निहाल होती रहती है.

रात को राजेश, तन्वी और राहुल ने डिनर साथ किया, स्नेहा को देर होने ही वाली थी. डिनर के दौरान राजेश ने थोड़ा सकुचाते हुए कहा, ‘‘तनु, इस संडे को कोई खास काम तो नहीं है?’’

‘‘नहीं तो, क्या हुआ?’’

‘‘कुछ नहीं, ऐसे ही सोच रहा था, सब प्रमोशन की पार्टी मांग रहे हैं, उन्हें लंच पर बुला लूं?

“सब लोग अब कोविड की बोरियत को दूर करने के बहाने ढूंढ़ रहे हैं.”

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‘‘हां, तो बुला लीजिए, कौनकौन है?’’

‘‘संजय, अमित तो मैरिड हैं, वे सपरिवार आएंगे,’’ फिर थोड़ा मन ही मन सकुचाते हुए कहा, ‘‘सिम्मी यादव और अंजलि अनमैरिड है, वे तो अकेली ही आएंगी, हम सब की टीम एकसाथ काम करती है, एक अच्छा ग्रुप बन गया है, इन दोनों को नहीं बुलाऊंगा तो अच्छा नहीं लगेगा, बातोंबातों में पता तो चल ही जाएगा.’’

‘‘हां.. तो ठीक है न, जिस को बुलाना हो बुला लो, कुलीग्स ही तो हैं, इस में कौन सी बड़ी बात है,’’ कह कर तन्वी आराम से खाना खाने लगी. राजेश तो हैरान हो गया. बोला, ‘‘सच…?’’

‘‘अरे, इस में हैरान होने वाली क्या बात है?’’

तीनों आराम से बातें करते हुए डिनर करते रहे. अभी स्नेहा ने शेयर उबर ली थी, क्योंकि वह ज्यादा रिस्क नहीं लेना चाहती थी. मुंबई में ट्रैफिक फिर पहले की तरह होने लगा था. उसे आने में देर थी. राजेश तो आजकल तन्वी के स्वभाव में आया बड़ा परिवर्तन महसूस कर रहा है, उसे यकीन नहीं हो रहा था कि तनु इतने आराम से सिम्मी और अंजलि को लंच पर इन्वाइट करने के लिए कहेगी, पहले कभी किसी पार्टी में तनु का इन लोगों से आमनासामना हुआ है तो तनु अपने में ही सिमटी रही थी, बात हायहैलो तक ही सीमित रही थी. थोड़ी देर बाद स्नेहा का फोन आया. फोन तन्वी के मोबाइल पर ही था. स्नेहा कह रही थी,

‘‘मां, रास्ते पर प्रतीक का फोन आ गया. वह मुझे रास्ते में मिलेगा. वह अपनी बाइक से घर छोड़ देगा.’’

तन्वी ने पूछा, ‘‘कौन प्रतीक?’’

‘‘मेरे साथ कोचिंग में था. अचानक आज उस का फोन आ गया. अब मैं उस के साथ एक कौफी पी कर आऊंगी.’’

“हां, यह अच्छा हुआ. रात भी बहुत हो गई है. साढ़े 10  बज रहे हैं. ठीक है, आ जाओ. कोई जानपहचान का  हो तो डर नहीं लगता.”

राजेश ने पूछा, तो तन्वी ने उसे पूरी बात बताई. राजेश ने कहा, ‘‘इतनी रात को…? कौन है प्रतीक?’’

‘‘उस ने बताया तो, कोचिंग में उस के साथ था. अच्छा है न, कोई पुराना जानपहचान का मिल गया.’’

राजेश तन्वी का मुंह देखता रह गया. यह मेरी ही तनु है न. यह वही तनु है न, जो किसी भी लड़केलड़की की दोस्ती को अफेयर ही समझती थी, जो कहती थी कुछ नहीं होती दोस्ती, सब अफेयर होते हैं. तनु की सोच का रुख देख कर उस ने किसी भी महिला सहकर्मी को कभी अपने घर नहीं बुलाया था. वह नहीं चाहता था, तनु को जरा सा भी मानसिक कष्ट पहुंचे. जानता था, मुंह से कुछ नहीं भी कहेगी, लेकिन मन ही मन पता नहीं क्याक्या सोच कर घुटती रहेगी. वह तनु को बहुत प्यार करता था. उसे हमेशा हंसतेमुसकराते देखना चाहता था. आजकल तनु के इस बदलाव पर उस का रातदिन ध्यान जा रहा था.

तनु के दिमाग में कसबाई सोच भरी थी. वह बातबात में ब्राह्मïण होने का गर्व करती थी. औरतें आजाद नहीं रहें, यह भी उन की सोच थी. पापा, प्रतीक घर तक ही छोड़ गया है.’’

तन्वी ने कहा, ‘‘ठीक है, बहुत अच्छा किया उस ने.’’

संडे को राजेश के सब सहकर्मी लंच पर आए. तन्वी ने दिल से सब की आवभगत की. सिम्मी और अंजलि के साथ तो वह इतनी सहृदयता से मिली कि लग रहा था पुरानी सहेलियां हैं.

सुबह से किचन में मेहनत कर रही तन्वी का हाथ बंटाने के लिए दोनों किचन में पहुंच गईं. संजय और अमित अपनी पत्नी और बच्चों के साथ आए थे, उन से तो तन्वी की पहले से दोस्ती थी, लेकिन तन्वी को सिम्मी और अंजलि के साथ खिलखिलाते देख राजेश मन ही मन हैरान था, बारबार सोचता यह मेरी तनु ही है, मेरी अविवाहित सहकर्मी और खासतौर पर सिम्मी के साथ, जिस की जाति को ले कर वह चूंचूं करती रहती थी के साथ ऐसा अपनापन. आजतक तो तनु ने हर महिला सहकर्मी के साथ इतनी दूरी बना कर रखी थी कि राजेश ने तो उन्हें घर बुलाना ही छोड़ दिया था.

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सब ने लंच बहुत हंसीमजाक करते हुए किया. तन्वी के बनाए खाने की सब ने खूब तारीफ की. सिम्मी तो कई बार कई चीजें तन्वी से सीखने के लिए कहती रही. राजेश का मुंह खुला रह गया, जब तन्वी ने नरमी से कहा, ‘‘अरे, यह सब बनाना कोई बड़ी बात नहीं है. जब खाने का मन हो आ जाना. इस बहाने मिलना भी हो जाएगा.’’

अंजलि ने कहा, ‘‘सच… आज घर का खाना खा कर मम्मी के हाथ के खाने की याद आ गई. हम लोग तो मेड का बनाया खा कर बोर हो गए हैं,’’ अंजलि और सिम्मी दो और लड़कियों के साथ फ्लैट शेयर कर के रहती थीं.

लंच कर के सब तन्वी को बारबार थैंक्स बोलते हुए चले गए. तन्वी किचन समेटने लगी. स्नेहा भी हाथ बंटाने लगी. राजेश ने कहा, ‘‘तनु, अब आराम कर लो. थक गई होगी, सुबह से किचन में लगी हो.’’

तनु ‘हां, अभी करती हूं,’ कह कर फ्री हो कर बेडरूम में आराम करने आ गई. राजेश भी कुछ सोचता हुआ लेटा था. तन्वी ने उसे प्यार से देखते हुए पूछा, ‘‘क्या हुआ, क्या सोच रहे हो?’’

“नहीं, कुछ नहीं.”

“आप को क्या लगता है, मैं अंदाजा नहीं लगा पाऊंगी, आप क्या सोच रहे हैं?”

राजेश कुछ बोला नहीं, बस उसे देखता रहा.

“यही सोच रहे हैं न आप कि मैं कुछ बदल गई हूं?”

राजेश चौंकते हुए बोला, ‘‘तुम ने सही अंदाजा लगाया है तनु.’’

“आप ठीक सोच रहे हैं, दुनिया में होती निरंतर प्रगति और बदलते परिवेश से बेखबर मैं अपनी बचपन से मिली जाति और धर्म की संकीर्ण विचारधारा में ही व्यस्त थी. जब से राहुल और स्नेहा बड़े हुए हैं, मैं ने उन की आधुनिक सोच को रातदिन परखा है, किसी लड़केलड़की के संबंध को मैं सिर्फ प्रेम संबंध ही समझती थी, उन में अच्छी दोस्ती भी हो सकती है, यह मैं ने इन बच्चों से ही सीखा है. जब से स्नेहा औफिस जाने लगी है, मैं ने देखा है, ट्रेन में धक्के खाने से अच्छा है पैट्रोल शेयर कर सब बच्चे आराम से एकदूसरे के साथ चले जाते हैं. धीरेधीरे मुझे भी कामकाजी लड़कियों के विचारों का खुलापन भाने लगा है. बंधनों से दूर खुली हवा में सांस लेता जीवन काफी सरस और सरल लगता है.

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“लौकडाउन में जिस तरह अलग धर्मों और जातियों के पड़ोसियों ने एकदूसरे की सहायता की, उस ने मुझे दादादादी की सोच से निकाल दिया. ये लड़कियां आत्मविश्वास से भरी खुश नजर आती हैं. स्नेहा और राहुल के साथ पढ़ने वाले लडक़ेलड़कियों की दोस्ती देखीसमझी है मैं ने, इतने लड़के स्नेहा के दोस्त हैं, जानती हूं मैं अच्छी तरह, उन में से किसी का भी स्नेहा से अफेयर नहीं है, फिर यह साफ, सरल दोस्ती ही तो है, आप जब पिछले महीने टूर पर थे, स्नेहा और मैं कुछ शौपिंग करने गए थे, हमारी कार बंद हो गई, क्योंकि उस की लौकडाउन में सर्विस नहीं हुई थी. मुझे तो कुछ समझ नहीं आया क्या करें, स्नेहा ने तुरंत अपने एक दोस्त अनिल पंवार जो वहीं रहता है को फोन किया. वह अपनी कार ले आया. हम उसी की कार से गए, गैरेज वाले को फोन किया. वह मैकेनिक लाया कार ले कर वापस आए, अनिल को ही पता था कहां जाना है, क्या करना है, स्नेहा और मुझे तो बिलकुल आइडिया नहीं था, ऐसे कितने ही मौकों पर मैं ने बच्चों से ही बहुतकुछ सीखासमझा है. पहले मैं मराठी लोगों से भी दूरी बनाए रखती थी. सच है, अपनी पहले की सोच से बाहर आ कर मेरा मन भी काफी हलका हो गया है. अब मैं थोड़ा आराम कर लूं?’’ कह कर तन्वी मुसकराते हुए आंखें बंद कर लेट गई.

राजेश उसे प्यार से निहारते हुए सोच रहा था, तनु तो सचमुच बदल गई है और यह बदलाव बहुत अच्छा था.

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लेकिन वह उस समय हैरानपरेशान हो गया, जब तनु से पूछ कर उस ने घर में एक पार्टी रखी, जिस में उस की महिला मित्र भी शामिल हुई थीं. तनु ने उन सब की अच्छे से आवभगत की. राजेश ने , जो वह सोचने पर विवश हो गया? क्या वाकई तनु बदल गई थी…?

राजेश प्रत्यक्षत: तो लैपटौप या ईमेल पर पढ़ रहा था, लेकिन उस के कान अपनी पत्नी तन्वी और बच्चों स्नेहा और यश की बातों की तरफ लगे थे, बातों के साथ तन्वी सब के टिफिन पैक करती जा रही थी. स्नेहा ने कहा, ‘‘मां, आज औफिस से आने में देर हो सकती है.’’

‘‘ओह, फिर? क्यों?’’

‘‘आज बहुत काम है. 8 बजे भी निकली, तो ठाणे  पहुंचतेपहुंचते 11 तो बज ही जाएंगे, मेरा डिनर मत बनाना. औफिस की कैंटीन से ही कुछ खा कर निकलूंगी.’’

‘‘क्या मुसीबत है, औफिस आनाजाना कितना मुश्किल होता जा रहा फिर मुंबई में.

“इस से पहले तो वर्क फ्रौम होम था तो कम से कम आसपास तो रहती थी.

स्नेहा, कोई कुलीग नहीं है जिस के साथ तुम आजा पाओ.”

‘‘नहीं मां, मैं ही यहां सब से दूर रहती हूं ठाणे में.’’

‘‘कितना अच्छा होता तुम्हें कोई कंपनी मिल जाती तो…’’

‘‘कल तो मैं ने नरीमन पाइंट पहुंच कर श्रेयस को फोन किया कि मेरा बैग लैपटौप और बाकी सामान से भरा हुआ है और मेरे पैर में भी दर्द है. प्लीज, मुझे लेने आ जाओ, तो बेचारा अपनी गाड़ी ले कर औफिस से मुझे स्टेशन लेने आया, नहीं तो टैक्सी स्टैंड तक जातेजाते मेरे कंधे का बुरा हाल हो जाता.’’‘‘यह तो अच्छा हुआ, तुम्हें कुछ आराम हो गया होगा.’’

यश ने स्नेहा को छेड़ने की कोशिश की, ‘‘ओहो दीदी, तो श्रेयस लेने आया?’’ तन्वी ने डपटा, ‘‘चुप रहो, बकवास मत करो, लेने आ गया तो क्या हुआ, दोस्त है उस का.’’

राजेश को तो अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ, सोचने लगा, आजकल तनु को क्या हो गया है, वह बदल रही है. इतने में तन्वी ने तीन टिफिन टेबल पर रखते हुए कहा, ‘‘अपनेअपने बैग में रख लो.’’

सब तैयार थे, तीनों ने मास्क निकाल कर पहने और निकल गए. राजेश और स्नेहा अपनेअपने औफिस के लिए, यश 12वीं में है, वह स्कूल के लिए. अब कई महीनों बाद फिर फिजिकल क्लास शुरू हो गई थी. घर से निकल कर राजेश अपनी कार निकालने के लिए पार्किंग की तरफ  बढ़ गया, स्नेहा स्टेशन जाने के लिए आटो और राहुल अपनी स्कूटी पर निकल गया.

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राजेश का औफिस बस दस मिनट की दूरी पर है, वह रास्तेभर यही योचता रहा कि कहां तो तन्वी हमेशा किसी भी लड़कीलड़के को साथ देख कर बिदक जाती थी और अब स्नेहा सीए कर रही है, वह आर्टिकलशिप के लिए नरीमन पाइंट अपने औफिस जाती है, अब तनु कितने आराम से पूछती रहती है कि स्नेहा को आनेजाने का कोई साथ मिला या नहीं. यही नहीं, स्नेहा अपने औफिस और कालेज के दोस्तों के बारे में बताती है तो तनु कितने उत्साह से सुनती है उस की बातें और अब तो यश जब अपनी किसी क्लासमेट से फोन पर लंबी बातें करते हैं तब भी तनु कुछ नहीं कहती.

गाड़ी चलाते हुए राजेश को कितनी ही बातें याद आ रही थीं, लौकडाउन से पहले एक बार राजेश को औफिस के किसी काम से बांद्रा जाना था, राजेश ने तन्वी को बताया था, ‘‘तनु, आज बांद्रा जाना है, एक मीटिंग है, अपनी गाड़ी नहीं ले जा रहा हूं, औफिस से सिम्मी को भी जाना है, वही अपनी गाड़ी निकाल रही है, उसी के साथ चला जाता हूं.’’

राजेश को आज भी तन्वी की वो जलती निगाहें याद हैं, तन्वी ने कहा था,

‘‘क्या जरूरत है, आप अपनी कार से ही जाइए, मुझे कभी पसंद नहीं आएगा आप का किसी के साथ जाना.’’

राजेश झुंझला गया था, ‘‘यह क्या बचपना है तनु, यह मुंबई है, कुलीग्स का साथ आनाजाना आम बात है और अब तो तय हो चुका है कि कार वो ले जा रही है, अब मैं यह कैसे कहूं कि मैं अपनी कार से जाऊंगा, तुम अपनी कार से जाओ, कारण क्या बताऊंगा कि मेरी पत्नी को यह पसंद नहीं है.’’

तन्वी ने उस समय और कुछ नहीं कहा था, बस आंखें भर आई थीं उस की और वह सिम्मी यादव के साथ चला तो गया था, लेकिन पूरा दिन उस का काम में दिल नहीं लगा था, जानता था कि आज तनु पूरा दिन उदास रहेगी. तनु को उस का किसी महिला सहकर्मी के साथ आनाजाना पसंद नहीं है, खासतौर पर सिम्मी के साथ जिस को वह जाति की निगाहों से भी देखती है. वह भी ऐसी स्थिति से बचने की कोशिश करता है, लेकिन क्या करे, औफिस में लड़कियां, महिलाएं भरी हुई हैं, कामकाजी महिलाओं के लिए तन्वी के दिल में कुछ खास अच्छी इमेज नहीं थी, लेकिन अब जब से स्नेहा औफिस जाने लगी है, तनु बदल रही है. तन्वी के बारे में ही सोचतेसोचते राजेश औफिस पहुंच गया. दिनभर काम के दौरान भी उसे तन्वी का कई बार खयाल आया. लंचटाइम में उस ने हमेशा की तरह तन्वी को फोन कर उस का हालचाल पूछा, वह जानता है, सरलहृदया तन्वी इतने में ही खुश हो जाती है, दिनभर सब की सुविधाओं का खयाल रखती तनु उस के प्यार के एकएक बोल पर निहाल होती रहती है.

रात को राजेश, तन्वी और राहुल ने डिनर साथ किया, स्नेहा को देर होने ही वाली थी. डिनर के दौरान राजेश ने थोड़ा सकुचाते हुए कहा, ‘‘तनु, इस संडे को कोई खास काम तो नहीं है?’’

‘‘नहीं तो, क्या हुआ?’’

‘‘कुछ नहीं, ऐसे ही सोच रहा था, सब प्रमोशन की पार्टी मांग रहे हैं, उन्हें लंच पर बुला लूं?

“सब लोग अब कोविड की बोरियत को दूर करने के बहाने ढूंढ़ रहे हैं.”

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‘‘हां, तो बुला लीजिए, कौनकौन है?’’

‘‘संजय, अमित तो मैरिड हैं, वे सपरिवार आएंगे,’’ फिर थोड़ा मन ही मन सकुचाते हुए कहा, ‘‘सिम्मी यादव और अंजलि अनमैरिड है, वे तो अकेली ही आएंगी, हम सब की टीम एकसाथ काम करती है, एक अच्छा ग्रुप बन गया है, इन दोनों को नहीं बुलाऊंगा तो अच्छा नहीं लगेगा, बातोंबातों में पता तो चल ही जाएगा.’’

‘‘हां.. तो ठीक है न, जिस को बुलाना हो बुला लो, कुलीग्स ही तो हैं, इस में कौन सी बड़ी बात है,’’ कह कर तन्वी आराम से खाना खाने लगी. राजेश तो हैरान हो गया. बोला, ‘‘सच…?’’

‘‘अरे, इस में हैरान होने वाली क्या बात है?’’

तीनों आराम से बातें करते हुए डिनर करते रहे. अभी स्नेहा ने शेयर उबर ली थी, क्योंकि वह ज्यादा रिस्क नहीं लेना चाहती थी. मुंबई में ट्रैफिक फिर पहले की तरह होने लगा था. उसे आने में देर थी. राजेश तो आजकल तन्वी के स्वभाव में आया बड़ा परिवर्तन महसूस कर रहा है, उसे यकीन नहीं हो रहा था कि तनु इतने आराम से सिम्मी और अंजलि को लंच पर इन्वाइट करने के लिए कहेगी, पहले कभी किसी पार्टी में तनु का इन लोगों से आमनासामना हुआ है तो तनु अपने में ही सिमटी रही थी, बात हायहैलो तक ही सीमित रही थी. थोड़ी देर बाद स्नेहा का फोन आया. फोन तन्वी के मोबाइल पर ही था. स्नेहा कह रही थी,

‘‘मां, रास्ते पर प्रतीक का फोन आ गया. वह मुझे रास्ते में मिलेगा. वह अपनी बाइक से घर छोड़ देगा.’’

तन्वी ने पूछा, ‘‘कौन प्रतीक?’’

‘‘मेरे साथ कोचिंग में था. अचानक आज उस का फोन आ गया. अब मैं उस के साथ एक कौफी पी कर आऊंगी.’’

“हां, यह अच्छा हुआ. रात भी बहुत हो गई है. साढ़े 10  बज रहे हैं. ठीक है, आ जाओ. कोई जानपहचान का  हो तो डर नहीं लगता.”

राजेश ने पूछा, तो तन्वी ने उसे पूरी बात बताई. राजेश ने कहा, ‘‘इतनी रात को…? कौन है प्रतीक?’’

‘‘उस ने बताया तो, कोचिंग में उस के साथ था. अच्छा है न, कोई पुराना जानपहचान का मिल गया.’’

राजेश तन्वी का मुंह देखता रह गया. यह मेरी ही तनु है न. यह वही तनु है न, जो किसी भी लड़केलड़की की दोस्ती को अफेयर ही समझती थी, जो कहती थी कुछ नहीं होती दोस्ती, सब अफेयर होते हैं. तनु की सोच का रुख देख कर उस ने किसी भी महिला सहकर्मी को कभी अपने घर नहीं बुलाया था. वह नहीं चाहता था, तनु को जरा सा भी मानसिक कष्ट पहुंचे. जानता था, मुंह से कुछ नहीं भी कहेगी, लेकिन मन ही मन पता नहीं क्याक्या सोच कर घुटती रहेगी. वह तनु को बहुत प्यार करता था. उसे हमेशा हंसतेमुसकराते देखना चाहता था. आजकल तनु के इस बदलाव पर उस का रातदिन ध्यान जा रहा था.

तनु के दिमाग में कसबाई सोच भरी थी. वह बातबात में ब्राह्मïण होने का गर्व करती थी. औरतें आजाद नहीं रहें, यह भी उन की सोच थी. पापा, प्रतीक घर तक ही छोड़ गया है.’’

तन्वी ने कहा, ‘‘ठीक है, बहुत अच्छा किया उस ने.’’

संडे को राजेश के सब सहकर्मी लंच पर आए. तन्वी ने दिल से सब की आवभगत की. सिम्मी और अंजलि के साथ तो वह इतनी सहृदयता से मिली कि लग रहा था पुरानी सहेलियां हैं.

सुबह से किचन में मेहनत कर रही तन्वी का हाथ बंटाने के लिए दोनों किचन में पहुंच गईं. संजय और अमित अपनी पत्नी और बच्चों के साथ आए थे, उन से तो तन्वी की पहले से दोस्ती थी, लेकिन तन्वी को सिम्मी और अंजलि के साथ खिलखिलाते देख राजेश मन ही मन हैरान था, बारबार सोचता यह मेरी तनु ही है, मेरी अविवाहित सहकर्मी और खासतौर पर सिम्मी के साथ, जिस की जाति को ले कर वह चूंचूं करती रहती थी के साथ ऐसा अपनापन. आजतक तो तनु ने हर महिला सहकर्मी के साथ इतनी दूरी बना कर रखी थी कि राजेश ने तो उन्हें घर बुलाना ही छोड़ दिया था.

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सब ने लंच बहुत हंसीमजाक करते हुए किया. तन्वी के बनाए खाने की सब ने खूब तारीफ की. सिम्मी तो कई बार कई चीजें तन्वी से सीखने के लिए कहती रही. राजेश का मुंह खुला रह गया, जब तन्वी ने नरमी से कहा, ‘‘अरे, यह सब बनाना कोई बड़ी बात नहीं है. जब खाने का मन हो आ जाना. इस बहाने मिलना भी हो जाएगा.’’

अंजलि ने कहा, ‘‘सच… आज घर का खाना खा कर मम्मी के हाथ के खाने की याद आ गई. हम लोग तो मेड का बनाया खा कर बोर हो गए हैं,’’ अंजलि और सिम्मी दो और लड़कियों के साथ फ्लैट शेयर कर के रहती थीं.

लंच कर के सब तन्वी को बारबार थैंक्स बोलते हुए चले गए. तन्वी किचन समेटने लगी. स्नेहा भी हाथ बंटाने लगी. राजेश ने कहा, ‘‘तनु, अब आराम कर लो. थक गई होगी, सुबह से किचन में लगी हो.’’

तनु ‘हां, अभी करती हूं,’ कह कर फ्री हो कर बेडरूम में आराम करने आ गई. राजेश भी कुछ सोचता हुआ लेटा था. तन्वी ने उसे प्यार से देखते हुए पूछा, ‘‘क्या हुआ, क्या सोच रहे हो?’’

“नहीं, कुछ नहीं.”

“आप को क्या लगता है, मैं अंदाजा नहीं लगा पाऊंगी, आप क्या सोच रहे हैं?”

राजेश कुछ बोला नहीं, बस उसे देखता रहा.

“यही सोच रहे हैं न आप कि मैं कुछ बदल गई हूं?”

राजेश चौंकते हुए बोला, ‘‘तुम ने सही अंदाजा लगाया है तनु.’’

“आप ठीक सोच रहे हैं, दुनिया में होती निरंतर प्रगति और बदलते परिवेश से बेखबर मैं अपनी बचपन से मिली जाति और धर्म की संकीर्ण विचारधारा में ही व्यस्त थी. जब से राहुल और स्नेहा बड़े हुए हैं, मैं ने उन की आधुनिक सोच को रातदिन परखा है, किसी लड़केलड़की के संबंध को मैं सिर्फ प्रेम संबंध ही समझती थी, उन में अच्छी दोस्ती भी हो सकती है, यह मैं ने इन बच्चों से ही सीखा है. जब से स्नेहा औफिस जाने लगी है, मैं ने देखा है, ट्रेन में धक्के खाने से अच्छा है पैट्रोल शेयर कर सब बच्चे आराम से एकदूसरे के साथ चले जाते हैं. धीरेधीरे मुझे भी कामकाजी लड़कियों के विचारों का खुलापन भाने लगा है. बंधनों से दूर खुली हवा में सांस लेता जीवन काफी सरस और सरल लगता है.

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“लौकडाउन में जिस तरह अलग धर्मों और जातियों के पड़ोसियों ने एकदूसरे की सहायता की, उस ने मुझे दादादादी की सोच से निकाल दिया. ये लड़कियां आत्मविश्वास से भरी खुश नजर आती हैं. स्नेहा और राहुल के साथ पढ़ने वाले लडक़ेलड़कियों की दोस्ती देखीसमझी है मैं ने, इतने लड़के स्नेहा के दोस्त हैं, जानती हूं मैं अच्छी तरह, उन में से किसी का भी स्नेहा से अफेयर नहीं है, फिर यह साफ, सरल दोस्ती ही तो है, आप जब पिछले महीने टूर पर थे, स्नेहा और मैं कुछ शौपिंग करने गए थे, हमारी कार बंद हो गई, क्योंकि उस की लौकडाउन में सर्विस नहीं हुई थी. मुझे तो कुछ समझ नहीं आया क्या करें, स्नेहा ने तुरंत अपने एक दोस्त अनिल पंवार जो वहीं रहता है को फोन किया. वह अपनी कार ले आया. हम उसी की कार से गए, गैरेज वाले को फोन किया. वह मैकेनिक लाया कार ले कर वापस आए, अनिल को ही पता था कहां जाना है, क्या करना है, स्नेहा और मुझे तो बिलकुल आइडिया नहीं था, ऐसे कितने ही मौकों पर मैं ने बच्चों से ही बहुतकुछ सीखासमझा है. पहले मैं मराठी लोगों से भी दूरी बनाए रखती थी. सच है, अपनी पहले की सोच से बाहर आ कर मेरा मन भी काफी हलका हो गया है. अब मैं थोड़ा आराम कर लूं?’’ कह कर तन्वी मुसकराते हुए आंखें बंद कर लेट गई.

राजेश उसे प्यार से निहारते हुए सोच रहा था, तनु तो सचमुच बदल गई है और यह बदलाव बहुत अच्छा था.

The post तनु बदल गई है: क्यों तनु में बदलाव आय़ा? appeared first on Sarita Magazine.

March 24, 2022 at 09:28AM

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