Tuesday 15 March 2022

वह लड़का: जाने-अनजाने जब सपने देख बैठा जतिन

लेखक- सतीश सक्शेना

रिवोली थिएटर, थिएटर के सामने एक सुंदर पार्क, पार्क में हर तरफ बिखरी हुई फूलों की छटा, सीमेंटकंकरीट के जंगलों सी फैली ऊंचीऊंची इमारतों के बीच, मुंबई की उमस से थोड़ी सी राहत पाने की एक जगह. शाम के समय घूमते हुए कुछ बुजुर्ग, शोर मचा कर खेलते हुए बच्चे. कुछ युवकयुवतियां हाथ में हाथ लिए, पार्क की बैंचों पर, जगहजगह सटे बैठे, अपने प्यार के सुखद लमहों को जीते हुए और कुछ लफंगे युवक इधरउधर ताकझांक करते हुए.

कामना पार्क के एक बैंच पर अकेली बैठी थी. पार्क के ये नजारे भी उस के अकेलेपन को दूर नहीं कर पा रहे थे. उस के ठीक सामने वाली बैंच पर एक लड़का भी अकेला बैठा हुआ था. कामना पिछले 10 मिनट से देख रही थी कि वह उसे नजरें चुराचुरा कर देख रहा है.

कामना उठी और उस लड़के के पास आ कर खड़ी हुई. जतिन समझ नहीं पाया कि वह लड़की क्यों खड़ी है. उस ने अपने आसपास और आगेपीछे देखा. उस के अलावा वहां कोई और जानपहचान का नहीं था. जब यह निश्चित हो गया कि वह लड़की उसी से मिलने आई है तो वह सकपका गया. शरीर के रोंगटे खड़े हो गए.

23-24 साल की जिंदगी में उस के साथ ऐसा पहले कभी नहीं हुआ. पैदल चलते, बसों में, मुंबई की लोकल ट्रेनों में सफर करते समय, उस ने सैकड़ों लड़कियों के रूप को आंखों से भरते हुए मन में उतारा था. पर कभी कोई लड़की उसे इस प्रकार घूरते हुए देख कर खुद पास नहीं चली आई. उसे पहली नजर में वह लड़की शरीफ घराने की लगी थी. फिर शंका हुई कि वह कहीं चालचलन में खराब तो नहीं है. पर मन नहीं माना. वह जरूर शरीफ घराने की ही है, उस ने अपने मन को समझाया. अब लगा कि यदि उस की सोच सही है तो कहीं वह उसे थप्पड़ मारने का इरादा तो नहीं कर रही है? पार्क में उपस्थित लोगों के सामने शर्मिंदा तो नहीं करना चाहती? एकबारगी जी चाहा कि पार्क छोड़ कर चला जाए पर अंत में वह हिम्मत जुटा कर उस के सामने जा कर खड़ा हो गया.

ये भी पढ़ें- पहली डेट: क्यों उसका मन आशंकाओं से भरा था?

‘‘बैठो,‘‘ बैंच पर खाली जगह पर बैठते हुए कामना बोली.

जतिन की सांसें जो कुछ देर पहले रुकने लगी थीं, फिर चल पड़ीं. जो कुछ उस ने लड़की के बारे में सोचा था, गलत सिद्ध हो गया. वह शरीफ घराने से ही थी. थप्पड़ मारने और शर्मिंदा करने का उस का कोई इरादा नहीं दिखाई दिया.

‘‘आप बहुत सुंदर हैं,’’ बैठते हुए जतिन ने कहा, ‘‘लाख कोशिशों के बावजूद भी मैं आप के चेहरे से अपनी नजरें नहीं हटा पा रहा था.’’

‘‘सच,’’ कामना ने अपनी नीलीनीली आंखें उस के चेहरे पर गड़ा दीं.

‘‘आप को वहां अकेले नहीं बैठना चाहिए था. ये जो लड़के आप के आसपास मंडरा रहे हैं, अच्छे नहीं हैं,’’ वह बोला.

‘‘मैं जानती हूं पर ये मुझे नहीं छेड़ते. मैं यहां रोज जो आती हूं. वैसे तुम्हारा नाम…’’

‘‘जतिन, और आप का?’’

‘‘कामना,’’ उसे गौर से देखते हुए कामना बोली, ‘‘जतिन, जानते हो मैं तुम्हारे पास क्यों आई? तुम में एक गजब का आकर्षण है. तुम्हें देख कर मुझे लगा, जैसे मेरी बरसों की तलाश पूरी होने जा रही है.’’

‘‘फ्लर्टिंग? ’’ जतिन को अपनी तारीफ सुन कर विश्वास नहीं हुआ.

‘‘बिलकुल नहीं,’’ कामना ने कहा.

‘‘सच तो यह है कि आप जैसी सुंदर लड़की मैं ने इस पार्क में पहले कभी नहीं देखी,’’ जतिन बोला.

‘‘अब तुम फ्लर्ट कर रहे हो?’’

‘‘बिलकुल नहीं.’’

‘‘गुड, मुझे साफ बात करने वाले लड़के ही पसंद हैं. एक बार मुझे फिर से देख कर बताओ कि मैं कैसी लग रही हूं? कोई लड़का यदि लड़की की तारीफ करे तो उसे अच्छा लगता है.’’

जतिन ने इस बार कामना को ऊपर से नीचे तक देखा. ‘‘स्मार्ट, सैक्सी, पार्टीवियर आउटफिट. बिलकुल बेपरवाह हुस्न,’’ उस ने कहा.

‘‘थैंक यू,’’ कामना ने पूछा, ‘‘वैसे करते क्या हो?’’

‘‘एमए कर चुका हूं. अच्छी नौकरी की तलाश में हूं.’’

‘‘मैं ने भी ग्रैजुएशन किया है. मेरी नौकरी करने की मजबूरी नहीं है. पिता हैं नहीं, सिर्फ मां हैं और पिताजी का छोड़ा हुआ खूब पैसा है. सारा दिन सजीसंवरी रहती हूं, दिन में 10 बार सुंदर से सुंदर आउटफिट चेंज करती हूं, मौजमस्ती करती हूं और पैसे लुटाती हूं. बस, यही मेरी जिंदगी है,’’ कामना कुछ गंभीर दिखाई दी.

‘‘फिर यहां पार्क में, अकेले?’’ जतिन ने झिझकते हुए पूछा.

ये भी पढ़ें- Women’s Day Special: जीवन संवारना होगा

‘‘मां शादी के लिए पीछे पड़ी हैं. न कोई अच्छा लड़का उन्हें मेरे लिए मिला है और न ही मुझे, जिसे मैं पसंद कर सकूं. जब तनाव बढ़ जाता है तो यहां आ कर बैठ जाती हूं. तुम पहले लड़के हो, जो मुझे अच्छे लगे हो. खैर छोड़ो इन बातों को. यह बताओ कि कालेज में सिर्फ फ्लर्टिंग ही की या कभी किसी लड़की के साथ डेटिंग भी की?’’

जतिन ने कामना के पास खिसकते हुए कहा, ‘‘डियर, किस दुनिया में जी रही हो. फ्लर्टिंग, डेटिंग आज आउटडेटिड हो चुके हैं. जवान लोगों की नई मंजिल है, लिव इन रिलेशन की. वैसे अभी तक मुझे डेटिंग का मौका नहीं मिला पर तुम चाहो तो यह संभव हो सकता है,’’ जतिन अब खुलने लगा था.

‘‘कहां ले चलोगे? मुझे तेज रफ्तार पसंद है. पार्क के बाहर मेरी औडी खड़ी है. उसी से यहां आतीजाती हूं. मुश्किल से 50 किलोमीटर की स्पीड आ पाती है. सब तरफ कीड़ेमकोड़ों की तरह इंसानों की भीड़. 100 किलोमीटर से ऊपर स्पीड आए तो आए कैसे? तुम्हारे पास बाइक है? उसी पर चलेंगे. ड्राइव मैं करूंगी,’’ कामना बोली.

जतिन कामना के थोड़ा और करीब खिसक आया और बोला, ‘‘महाबलेश्वर कैसा रहेगा?’’

‘‘नाइस, परसों चलते हैं, लेकिन अभी से मेरे इतने नजदीक मत आओ. मुझ से इतना चिपक कर मत बैठो. मैं काफी समय से पार्क में आ रही हूं. बहुत लोग मुझे जानने लगे हैं. उन्हें थोड़ा अजीब लगेगा.’’

जतिन ने खिसक कर अपने और कामना के बीच फिर से उतनी ही दूरी बना ली, जितनी पहले थी.

‘‘पानीपूरी खाओगे?’’

‘‘श्योर, लेकिन एक शर्त पर.‘‘

‘‘कैसी शर्त?’’

‘‘पैसे मैं दूंगा.’’

‘‘नहीं, पैसे मैं दूंगी. जिंदगी में सिर्फ तुम हो, जो मुझे एक नजर में ही पसंद आ गए हो. क्या मैं इस खुशी को भी सैलिब्रेट नहीं कर सकती? इच्छा तो है किसी फाइवस्टार होटल में चलें. पर जल्दबाजी में कदम नहीं उठाने चाहिए. गिरने का डर रहता है.’’

‘‘पानीपूरी कहां खाओगी?’’

‘‘पार्क के बाहर एक चाट वाला है. वहीं चलते हैं,’’ कहते हुए कामना ने कलाई घड़ी की तरफ निगाह डाली. साढ़े 7 बज रहे थे. ‘‘ओफ, डेढ़ घंटा हो गया,’’ उस के मुंह से  निकला.

‘‘कहीं और जाना है क्या?’’ जतिन ने पूछा.

‘‘नहीं, मां ज्यादा चिकचिक न करें, यही खयाल रहता है. अभी वक्त है. चलो, चलते हैं,’’ कामना बैंच से उठ गई. जतिन भी उस के साथ ही उठ गया.

पानीपूरी खातेखाते जतिन सोच रहा था कि उस की तो लौटरी लग गई है. एक बार इस के दिल में पूरी तरह से समा गया तो फिर चांदी ही चांदी है. अजगर हो जाऊंगा. अजगर कहां नौकरी करते हैं? आराम ही आराम. ऐश और सिर्फ ऐश.

‘‘चलो, अब थोड़ा पार्क में घूमते हैं,’’ पानीपूरी खा कर लौटते हुए कामना ने कहा. दोनों पार्क में आ कर एक छोर से दूसरे छोर तक घूमने लगे. थोड़ी देर बाद कामना ने चुप्पी तोड़ी, ‘‘मुझ से शादी करोगे?’’

जतिन बोला, ‘‘तुम अच्छी तो लगने लगी हो पर मुझे जिंदगी में सैटल होने में अभी कुछ वक्त लगेगा. अच्छी नौकरी मिलना भी तो आसान नहीं है.’’

‘‘लेकिन मैं ज्यादा इंतजार नहीं कर सकती. नौकरी न भी करोगे तो चलेगा. मुझे मां की चिकचिक हमेशा के लिए खतम कर के उन्हें खुश करना है.’’

‘‘फिर तो कोई समस्या ही नहीं है. मैं शादी के लिए तैयार हूं.’’

‘‘एक दिन में जिंदगी के फैसले तो नहीं किए जा सकते. कुछ तुम्हें, मुझे समझना है और कुछ मुझे, तुम्हें. थोड़ा समय तो लगेगा. इसीलिए तो मैं ने डेटिंग के

लिए हामी भरी थी. बस, कुछ दिन डेटिंग, फिर फैसला.’’

‘‘तो फिर एक काम क्यों न करें?

1-2 महीने लिव इन रिलेशनशिप में रह लेते हैं. आजकल तो ट्रायल औफर्स का जमाना है. बिल्डर मकान बना कर बेचते हैं तो एक महीने तक का ट्रायल औफर देते हैं. महीने भर ट्रायल लो. पसंद आए तो खरीदो वरना नहीं. डाक्टर्स ट्रीटमैंट में ट्रायल औफर देते हैं तो होटल खाने में. आजकल हर फील्ड में ट्रायल औफर्स की भरमार है. कालेज में भी तो यही चलन लड़के और लड़कियों के बीच था. इस से एकदूसरे को समझने का मौका मिल जाएगा. बात जमी तो शादी, वरना रास्ते अलगअलग और एकदूसरे को अलविदा. कोई कानूनी कार्यवाही नहीं.’’

‘‘नहीं, यह असंभव है. अब मैं ऐसा कुछ नहीं कर सकती, लाइफ  में मैच्योरिटी आ गई है. ऐसा करते हैं, मैं तुम्हें अपनी मां से मिलवाती हूं. तुम्हारे बारे में उन की राय भी तो जरूरी है, कल एक अच्छी सी ड्रैस पहन कर आ जाना, बाल आज के फैशन के हिसाब से कटवा लेना. उन्हें आधुनिक लड़के पसंद हैं. बाकी मैं संभाल लूंगी,’’ कामना ने जतिन को समझाया.

‘‘कल कितने बजे?’’

‘‘7 या 8 बजे. क्यों टाइम सूट करेगा न? फोन नंबर और पता मैं तुम्हें दे दूंगी.’’

‘‘तो चलो, फिर इसी खुशी में एक मूवी देख ली जाए. डर्टी पिक्चर रिवोली में ही लगी है. क्या बोल्ड डायलौग हैं और विद्या बालन की ऐक्टिंग, एकदम धांसू. तुम्हें पसंद आएगी.’’ जतिन ने शाम को रंगीन बनाने के लिए सुझाव दिया.

‘‘यह पिक्चर तो मैं जरूर देखूंगी, पर तुम्हारे साथ नहीं,’’ कामना ने कहा.

तभी एक सुंदर युवक दोनों के सामने आ खड़ा हुआ. उसे देखते ही कामना रुक गई.

कामना ने युवक से कहा, ‘‘सुहास, इन से मिलो. ये मेरे दोस्त हैं, जतिन. हम दोनों ने शादी करने का फैसला किया है. वास्तव में हम पिछले 2 घंटे से अपनी वैडिंग ही प्लान कर रहे थे.’’

सुहास ने बढ़ कर जतिन से हाथ मिलाया और उसे शादी के लिए बधाई दी.

अब कामना जतिन की तरफ मुड़ी. बोली, ‘‘जतिन, तुम्हारे और मेरे बीच पिछले 2 घंटे में जो कुछ बातें हुईं, सब मनगढ़ंत थीं. सिर्फ टाइमपास. सुहास के यहां पहुंचने तक के लिए. न तो मैं रईस हूं और न ही मेरी मां मेरी शादी के लिए किचकिच करने वाली हैं. मैं भी तुम्हारी तरह ही मध्यवर्गीय परिवार से हूं और सुहास मेरे मंगेतर हैं. जल्दी ही हमारी शादी होने वाली है.

आज मैं इन के साथ यहां डेटिंग के लिए आई हूं. रिवोली में हम डर्टी पिक्चर देखेंगे और डिनर करेंगे. इसीलिए तो मैं ने तुम से थोड़ी देर पहले कहा था कि मैं यह पिक्चर देखूंगी जरूर, पर तुम्हारे साथ नहीं.’’ कामना ने जतिन के चेहरे को पढ़ा, ठगे जाने के हजारों भाव उस के चेहरे पर आजा रहे थे. वह हक्काबक्का, बेजान सा खड़ा कामना की बातें सुने जा रहा था. उस के कानों से गरमगरम लावा बहने लगा था.

कामना ने आगे कहा, ‘‘दरअसल, आज सुहास और मेरी मुलाकात में इतनी देर इसलिए हो गई क्योंकि मैं यहां कुछ जल्दी पहुंच गई और सुहास की लोकल टे्रन लेट हो गई. पार्क में समय गुजारने के लिए जब मैं बैंच पर आ कर बैठी तो कई लफंगे युवकों को अपने आसपास चक्कर लगाते हुए पाया. मैं उन्हें देख कर डर गई.

अचानक मेरी निगाह तुम पर पड़ी. तुम भी मुझे घूर रहे थे. मैं एक नजर में ही पहचान गई कि तुम गुंडे किस्म के लड़के नहीं हो. फिर क्या था? मैं ने तुरंत एक कहानी गढ़ डाली. तुम्हें कहानी का नायक बनाते हुए, हाथ के इशारे से तुम्हें अपने पास बुला डाला. उस के बाद जो कुछ हुआ, तुम्हें बताने की जरूरत नहीं है.’’

‘‘बहुत मजेदार,’’ सुहास बोल उठा.

कामना अब सुहास के हाथों में हाथ डाल कर चल पड़ी. जाते समय जतिन के हाथों में एक चाकलेट पकड़ा दी. उस के गाल पर हलकी सी चपत लगाते हुए बोली, ‘‘बच्चे, जिस कालेज से तुम पढ़ कर निकले हो, वहां मैं प्रोफैसर हूं.’’

कामना जब सुहास के साथ पार्क से बाहर निकल गई तो जतिन की तंद्रा टूटी.

उस के मुंह से कालेज के दिनों वाली गालियां निकलती चली गईं, ‘‘साली… धोखेबाज… लुच्ची… लफंगन.’’

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लेखक- सतीश सक्शेना

रिवोली थिएटर, थिएटर के सामने एक सुंदर पार्क, पार्क में हर तरफ बिखरी हुई फूलों की छटा, सीमेंटकंकरीट के जंगलों सी फैली ऊंचीऊंची इमारतों के बीच, मुंबई की उमस से थोड़ी सी राहत पाने की एक जगह. शाम के समय घूमते हुए कुछ बुजुर्ग, शोर मचा कर खेलते हुए बच्चे. कुछ युवकयुवतियां हाथ में हाथ लिए, पार्क की बैंचों पर, जगहजगह सटे बैठे, अपने प्यार के सुखद लमहों को जीते हुए और कुछ लफंगे युवक इधरउधर ताकझांक करते हुए.

कामना पार्क के एक बैंच पर अकेली बैठी थी. पार्क के ये नजारे भी उस के अकेलेपन को दूर नहीं कर पा रहे थे. उस के ठीक सामने वाली बैंच पर एक लड़का भी अकेला बैठा हुआ था. कामना पिछले 10 मिनट से देख रही थी कि वह उसे नजरें चुराचुरा कर देख रहा है.

कामना उठी और उस लड़के के पास आ कर खड़ी हुई. जतिन समझ नहीं पाया कि वह लड़की क्यों खड़ी है. उस ने अपने आसपास और आगेपीछे देखा. उस के अलावा वहां कोई और जानपहचान का नहीं था. जब यह निश्चित हो गया कि वह लड़की उसी से मिलने आई है तो वह सकपका गया. शरीर के रोंगटे खड़े हो गए.

23-24 साल की जिंदगी में उस के साथ ऐसा पहले कभी नहीं हुआ. पैदल चलते, बसों में, मुंबई की लोकल ट्रेनों में सफर करते समय, उस ने सैकड़ों लड़कियों के रूप को आंखों से भरते हुए मन में उतारा था. पर कभी कोई लड़की उसे इस प्रकार घूरते हुए देख कर खुद पास नहीं चली आई. उसे पहली नजर में वह लड़की शरीफ घराने की लगी थी. फिर शंका हुई कि वह कहीं चालचलन में खराब तो नहीं है. पर मन नहीं माना. वह जरूर शरीफ घराने की ही है, उस ने अपने मन को समझाया. अब लगा कि यदि उस की सोच सही है तो कहीं वह उसे थप्पड़ मारने का इरादा तो नहीं कर रही है? पार्क में उपस्थित लोगों के सामने शर्मिंदा तो नहीं करना चाहती? एकबारगी जी चाहा कि पार्क छोड़ कर चला जाए पर अंत में वह हिम्मत जुटा कर उस के सामने जा कर खड़ा हो गया.

ये भी पढ़ें- पहली डेट: क्यों उसका मन आशंकाओं से भरा था?

‘‘बैठो,‘‘ बैंच पर खाली जगह पर बैठते हुए कामना बोली.

जतिन की सांसें जो कुछ देर पहले रुकने लगी थीं, फिर चल पड़ीं. जो कुछ उस ने लड़की के बारे में सोचा था, गलत सिद्ध हो गया. वह शरीफ घराने से ही थी. थप्पड़ मारने और शर्मिंदा करने का उस का कोई इरादा नहीं दिखाई दिया.

‘‘आप बहुत सुंदर हैं,’’ बैठते हुए जतिन ने कहा, ‘‘लाख कोशिशों के बावजूद भी मैं आप के चेहरे से अपनी नजरें नहीं हटा पा रहा था.’’

‘‘सच,’’ कामना ने अपनी नीलीनीली आंखें उस के चेहरे पर गड़ा दीं.

‘‘आप को वहां अकेले नहीं बैठना चाहिए था. ये जो लड़के आप के आसपास मंडरा रहे हैं, अच्छे नहीं हैं,’’ वह बोला.

‘‘मैं जानती हूं पर ये मुझे नहीं छेड़ते. मैं यहां रोज जो आती हूं. वैसे तुम्हारा नाम…’’

‘‘जतिन, और आप का?’’

‘‘कामना,’’ उसे गौर से देखते हुए कामना बोली, ‘‘जतिन, जानते हो मैं तुम्हारे पास क्यों आई? तुम में एक गजब का आकर्षण है. तुम्हें देख कर मुझे लगा, जैसे मेरी बरसों की तलाश पूरी होने जा रही है.’’

‘‘फ्लर्टिंग? ’’ जतिन को अपनी तारीफ सुन कर विश्वास नहीं हुआ.

‘‘बिलकुल नहीं,’’ कामना ने कहा.

‘‘सच तो यह है कि आप जैसी सुंदर लड़की मैं ने इस पार्क में पहले कभी नहीं देखी,’’ जतिन बोला.

‘‘अब तुम फ्लर्ट कर रहे हो?’’

‘‘बिलकुल नहीं.’’

‘‘गुड, मुझे साफ बात करने वाले लड़के ही पसंद हैं. एक बार मुझे फिर से देख कर बताओ कि मैं कैसी लग रही हूं? कोई लड़का यदि लड़की की तारीफ करे तो उसे अच्छा लगता है.’’

जतिन ने इस बार कामना को ऊपर से नीचे तक देखा. ‘‘स्मार्ट, सैक्सी, पार्टीवियर आउटफिट. बिलकुल बेपरवाह हुस्न,’’ उस ने कहा.

‘‘थैंक यू,’’ कामना ने पूछा, ‘‘वैसे करते क्या हो?’’

‘‘एमए कर चुका हूं. अच्छी नौकरी की तलाश में हूं.’’

‘‘मैं ने भी ग्रैजुएशन किया है. मेरी नौकरी करने की मजबूरी नहीं है. पिता हैं नहीं, सिर्फ मां हैं और पिताजी का छोड़ा हुआ खूब पैसा है. सारा दिन सजीसंवरी रहती हूं, दिन में 10 बार सुंदर से सुंदर आउटफिट चेंज करती हूं, मौजमस्ती करती हूं और पैसे लुटाती हूं. बस, यही मेरी जिंदगी है,’’ कामना कुछ गंभीर दिखाई दी.

‘‘फिर यहां पार्क में, अकेले?’’ जतिन ने झिझकते हुए पूछा.

ये भी पढ़ें- Women’s Day Special: जीवन संवारना होगा

‘‘मां शादी के लिए पीछे पड़ी हैं. न कोई अच्छा लड़का उन्हें मेरे लिए मिला है और न ही मुझे, जिसे मैं पसंद कर सकूं. जब तनाव बढ़ जाता है तो यहां आ कर बैठ जाती हूं. तुम पहले लड़के हो, जो मुझे अच्छे लगे हो. खैर छोड़ो इन बातों को. यह बताओ कि कालेज में सिर्फ फ्लर्टिंग ही की या कभी किसी लड़की के साथ डेटिंग भी की?’’

जतिन ने कामना के पास खिसकते हुए कहा, ‘‘डियर, किस दुनिया में जी रही हो. फ्लर्टिंग, डेटिंग आज आउटडेटिड हो चुके हैं. जवान लोगों की नई मंजिल है, लिव इन रिलेशन की. वैसे अभी तक मुझे डेटिंग का मौका नहीं मिला पर तुम चाहो तो यह संभव हो सकता है,’’ जतिन अब खुलने लगा था.

‘‘कहां ले चलोगे? मुझे तेज रफ्तार पसंद है. पार्क के बाहर मेरी औडी खड़ी है. उसी से यहां आतीजाती हूं. मुश्किल से 50 किलोमीटर की स्पीड आ पाती है. सब तरफ कीड़ेमकोड़ों की तरह इंसानों की भीड़. 100 किलोमीटर से ऊपर स्पीड आए तो आए कैसे? तुम्हारे पास बाइक है? उसी पर चलेंगे. ड्राइव मैं करूंगी,’’ कामना बोली.

जतिन कामना के थोड़ा और करीब खिसक आया और बोला, ‘‘महाबलेश्वर कैसा रहेगा?’’

‘‘नाइस, परसों चलते हैं, लेकिन अभी से मेरे इतने नजदीक मत आओ. मुझ से इतना चिपक कर मत बैठो. मैं काफी समय से पार्क में आ रही हूं. बहुत लोग मुझे जानने लगे हैं. उन्हें थोड़ा अजीब लगेगा.’’

जतिन ने खिसक कर अपने और कामना के बीच फिर से उतनी ही दूरी बना ली, जितनी पहले थी.

‘‘पानीपूरी खाओगे?’’

‘‘श्योर, लेकिन एक शर्त पर.‘‘

‘‘कैसी शर्त?’’

‘‘पैसे मैं दूंगा.’’

‘‘नहीं, पैसे मैं दूंगी. जिंदगी में सिर्फ तुम हो, जो मुझे एक नजर में ही पसंद आ गए हो. क्या मैं इस खुशी को भी सैलिब्रेट नहीं कर सकती? इच्छा तो है किसी फाइवस्टार होटल में चलें. पर जल्दबाजी में कदम नहीं उठाने चाहिए. गिरने का डर रहता है.’’

‘‘पानीपूरी कहां खाओगी?’’

‘‘पार्क के बाहर एक चाट वाला है. वहीं चलते हैं,’’ कहते हुए कामना ने कलाई घड़ी की तरफ निगाह डाली. साढ़े 7 बज रहे थे. ‘‘ओफ, डेढ़ घंटा हो गया,’’ उस के मुंह से  निकला.

‘‘कहीं और जाना है क्या?’’ जतिन ने पूछा.

‘‘नहीं, मां ज्यादा चिकचिक न करें, यही खयाल रहता है. अभी वक्त है. चलो, चलते हैं,’’ कामना बैंच से उठ गई. जतिन भी उस के साथ ही उठ गया.

पानीपूरी खातेखाते जतिन सोच रहा था कि उस की तो लौटरी लग गई है. एक बार इस के दिल में पूरी तरह से समा गया तो फिर चांदी ही चांदी है. अजगर हो जाऊंगा. अजगर कहां नौकरी करते हैं? आराम ही आराम. ऐश और सिर्फ ऐश.

‘‘चलो, अब थोड़ा पार्क में घूमते हैं,’’ पानीपूरी खा कर लौटते हुए कामना ने कहा. दोनों पार्क में आ कर एक छोर से दूसरे छोर तक घूमने लगे. थोड़ी देर बाद कामना ने चुप्पी तोड़ी, ‘‘मुझ से शादी करोगे?’’

जतिन बोला, ‘‘तुम अच्छी तो लगने लगी हो पर मुझे जिंदगी में सैटल होने में अभी कुछ वक्त लगेगा. अच्छी नौकरी मिलना भी तो आसान नहीं है.’’

‘‘लेकिन मैं ज्यादा इंतजार नहीं कर सकती. नौकरी न भी करोगे तो चलेगा. मुझे मां की चिकचिक हमेशा के लिए खतम कर के उन्हें खुश करना है.’’

‘‘फिर तो कोई समस्या ही नहीं है. मैं शादी के लिए तैयार हूं.’’

‘‘एक दिन में जिंदगी के फैसले तो नहीं किए जा सकते. कुछ तुम्हें, मुझे समझना है और कुछ मुझे, तुम्हें. थोड़ा समय तो लगेगा. इसीलिए तो मैं ने डेटिंग के

लिए हामी भरी थी. बस, कुछ दिन डेटिंग, फिर फैसला.’’

‘‘तो फिर एक काम क्यों न करें?

1-2 महीने लिव इन रिलेशनशिप में रह लेते हैं. आजकल तो ट्रायल औफर्स का जमाना है. बिल्डर मकान बना कर बेचते हैं तो एक महीने तक का ट्रायल औफर देते हैं. महीने भर ट्रायल लो. पसंद आए तो खरीदो वरना नहीं. डाक्टर्स ट्रीटमैंट में ट्रायल औफर देते हैं तो होटल खाने में. आजकल हर फील्ड में ट्रायल औफर्स की भरमार है. कालेज में भी तो यही चलन लड़के और लड़कियों के बीच था. इस से एकदूसरे को समझने का मौका मिल जाएगा. बात जमी तो शादी, वरना रास्ते अलगअलग और एकदूसरे को अलविदा. कोई कानूनी कार्यवाही नहीं.’’

‘‘नहीं, यह असंभव है. अब मैं ऐसा कुछ नहीं कर सकती, लाइफ  में मैच्योरिटी आ गई है. ऐसा करते हैं, मैं तुम्हें अपनी मां से मिलवाती हूं. तुम्हारे बारे में उन की राय भी तो जरूरी है, कल एक अच्छी सी ड्रैस पहन कर आ जाना, बाल आज के फैशन के हिसाब से कटवा लेना. उन्हें आधुनिक लड़के पसंद हैं. बाकी मैं संभाल लूंगी,’’ कामना ने जतिन को समझाया.

‘‘कल कितने बजे?’’

‘‘7 या 8 बजे. क्यों टाइम सूट करेगा न? फोन नंबर और पता मैं तुम्हें दे दूंगी.’’

‘‘तो चलो, फिर इसी खुशी में एक मूवी देख ली जाए. डर्टी पिक्चर रिवोली में ही लगी है. क्या बोल्ड डायलौग हैं और विद्या बालन की ऐक्टिंग, एकदम धांसू. तुम्हें पसंद आएगी.’’ जतिन ने शाम को रंगीन बनाने के लिए सुझाव दिया.

‘‘यह पिक्चर तो मैं जरूर देखूंगी, पर तुम्हारे साथ नहीं,’’ कामना ने कहा.

तभी एक सुंदर युवक दोनों के सामने आ खड़ा हुआ. उसे देखते ही कामना रुक गई.

कामना ने युवक से कहा, ‘‘सुहास, इन से मिलो. ये मेरे दोस्त हैं, जतिन. हम दोनों ने शादी करने का फैसला किया है. वास्तव में हम पिछले 2 घंटे से अपनी वैडिंग ही प्लान कर रहे थे.’’

सुहास ने बढ़ कर जतिन से हाथ मिलाया और उसे शादी के लिए बधाई दी.

अब कामना जतिन की तरफ मुड़ी. बोली, ‘‘जतिन, तुम्हारे और मेरे बीच पिछले 2 घंटे में जो कुछ बातें हुईं, सब मनगढ़ंत थीं. सिर्फ टाइमपास. सुहास के यहां पहुंचने तक के लिए. न तो मैं रईस हूं और न ही मेरी मां मेरी शादी के लिए किचकिच करने वाली हैं. मैं भी तुम्हारी तरह ही मध्यवर्गीय परिवार से हूं और सुहास मेरे मंगेतर हैं. जल्दी ही हमारी शादी होने वाली है.

आज मैं इन के साथ यहां डेटिंग के लिए आई हूं. रिवोली में हम डर्टी पिक्चर देखेंगे और डिनर करेंगे. इसीलिए तो मैं ने तुम से थोड़ी देर पहले कहा था कि मैं यह पिक्चर देखूंगी जरूर, पर तुम्हारे साथ नहीं.’’ कामना ने जतिन के चेहरे को पढ़ा, ठगे जाने के हजारों भाव उस के चेहरे पर आजा रहे थे. वह हक्काबक्का, बेजान सा खड़ा कामना की बातें सुने जा रहा था. उस के कानों से गरमगरम लावा बहने लगा था.

कामना ने आगे कहा, ‘‘दरअसल, आज सुहास और मेरी मुलाकात में इतनी देर इसलिए हो गई क्योंकि मैं यहां कुछ जल्दी पहुंच गई और सुहास की लोकल टे्रन लेट हो गई. पार्क में समय गुजारने के लिए जब मैं बैंच पर आ कर बैठी तो कई लफंगे युवकों को अपने आसपास चक्कर लगाते हुए पाया. मैं उन्हें देख कर डर गई.

अचानक मेरी निगाह तुम पर पड़ी. तुम भी मुझे घूर रहे थे. मैं एक नजर में ही पहचान गई कि तुम गुंडे किस्म के लड़के नहीं हो. फिर क्या था? मैं ने तुरंत एक कहानी गढ़ डाली. तुम्हें कहानी का नायक बनाते हुए, हाथ के इशारे से तुम्हें अपने पास बुला डाला. उस के बाद जो कुछ हुआ, तुम्हें बताने की जरूरत नहीं है.’’

‘‘बहुत मजेदार,’’ सुहास बोल उठा.

कामना अब सुहास के हाथों में हाथ डाल कर चल पड़ी. जाते समय जतिन के हाथों में एक चाकलेट पकड़ा दी. उस के गाल पर हलकी सी चपत लगाते हुए बोली, ‘‘बच्चे, जिस कालेज से तुम पढ़ कर निकले हो, वहां मैं प्रोफैसर हूं.’’

कामना जब सुहास के साथ पार्क से बाहर निकल गई तो जतिन की तंद्रा टूटी.

उस के मुंह से कालेज के दिनों वाली गालियां निकलती चली गईं, ‘‘साली… धोखेबाज… लुच्ची… लफंगन.’’

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March 16, 2022 at 09:38AM

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