Writer- प्रेमलता यदु
पिता की मौत से मयंक दुखी था, पर उस से भी ज्यादा उन के क्रियाकर्म पर होने वाले खर्च से वह और भी सोच में पड़ गया. पत्नी आराधना के कहने पर मयंक ने अपनी दोनों बहनों माला और मालती से पैसे क्या मांग लिए, आंखों की किरकिरी बन गया. अपना हिस्सा ले कर ये दोनों बहनें क्या जीत की मिठाई खा सकीं या फिर…
आज सुबहसुबह सोहनलालजी की आंखें मुंदते ही मलय और उस की पत्नी आराधना के समक्ष तो जैसे मुसीबतों का पहाड़ खड़ा हो गया. पिता के जाने का दुख तो मलय को था ही, लेकिन साथ ही साथ मलय और आराधना को अब इस बात की चिंता भी सताने लगी थी कि पिता की अंत्येष्टि और मृत्यु पर्यंत समाज के द्वारा बनाए गए ढकोसलों पर खर्च करने के लिए पैसे कहां से आएंगे, जो भी पूंजी थी वह तो पहले ही दोनों बहन माला और मालती को एक अच्छे परिवार और रईस खानदान में ब्याहने में चले गए थे और फिर बचीखुची पूंजी भी पिताजी की बीमारी में स्वाहा हो गई. उन में इतना साहस नहीं था कि वे लोगों के कमेंट सुन सकें.
अभी तक तो यह स्थिति थी कि पिता की थोड़ी सी पेंशन और घर से लगी मलय की एक छोटी सी किराने की दुकान से बच्चों की पढ़ाई और जैसेतैसे घर का गुजारा चल रहा था, लेकिन अब पिताजी के जाने के बाद यह सब कैसे हो पाएगा. यह सोच कर मलय निढाल सा सोफे पर जा बैठा, तभी आराधना उस के कांधे पर हाथ रखती हुई बोली, “चलो उठो… माला और मालती को खबर करनी पड़ेगी. और बाकी रिश्तेदारों को भी खबर दे दो. जो होना था, वह तो हो ही गया. अब आगे की आगे सोचेंगे, पहले जो सामने है उसे तो निबटाएं. मेरे पास दोनों बच्चों के स्कूल की फीस के पैसे रखे हैं, उन्हें आप अभी के लिए ले लो और फिर माला और मालती के आने के बाद उन से कुछ मदद के लिए कहना.”
यह सुन कर मलय की आंखों में पानी आ गया. आज उस के पास इतने रुपए भी नहीं थे कि वह अपने पिता की मृत्यु पर मेहमानों को ठहरा भी सके. उसे अपने पिता के अंतिम क्रियाकलापों के लिए भी अपनी दकियानूसी बहनों के आगे हाथ फैलाना पड़ेगा, जो रीतिरिवाज का नाम ले कर हलवापूरी और मौज का इंतजाम करने के मौके नहीं छोड़तीं थीं.
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बहनों के आगे हाथ फैलाना पड़ेगा, लेकिन वह कर भी क्या सकता था. उस की अपनी मजबूरी थी. अपने रिश्तेदारों में एक मलय ही तो था, जो पैसों के मामलों में सब से ज्यादा कमजोर था.
सोहनलालजी की मृत्यु की खबर पा कर सभी आसपड़ोस के लोग और नातेरिश्तेदार अपनी बड़ीबड़ी गाड़ियों में आने लगे. सभी रिश्तेदार इकठ्ठे हो गए थे, सभी एकदूसरे को अपने पैसे की शान इस शोक स्थल पर भी दिखाने से बाज नहीं आ रहे थे, लेकिन सभी मलय से कन्नी काटते हुए नजर आए, क्योंकि मलय की माली हालत से सभी वाकिफ थे. और कोई भी मलय की मदद रुपएपैसे से नहीं करना चाहता था. ऊपरी तौर पर भले ही सभी शोक जता रहे थे और जहां तक हो सके सहयोग करने की बात भी कह रहे थे, लेकिन अंदर ही अंदर सभी इस बात से डरे हुए थे कि कहीं मलय कुछ रुपएपैसे मांग ना ले.
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मलय की दोनों बहनों के आने के पश्चात और उन के द्वारा अपने पिता के अंतिम दर्शन करने के उपरांत अंतिम संस्कार की क्रिया पूरी कर दी गई. रिश्तेदारों को विदा करने के बाद जब मलय ने अपनी दोनों बहनों से कहा, “मुझे कुछ रुपयों की जरूरत है. बाबूजी की बीमारी और अब उन की मृत्यु के बाद जो थोड़ेबहुत कर्मकांड करने पड़ेंगे, इस सब पर बहुत खर्चा बैठेगा. तुम दोनों का परिवार संपन्न है. अगर तुम दोनों पैसे का इंतजाम कर दो, तो मैं धीरेधीरे कर के चुका दूंगा.”
मलय का इतना कहना था कि दोनों बहनें एकदूसरे का मुंह ताकने लगीं. उस के बाद माला जो मलय से छोटी और मालती से बड़ी है, उठ खड़ी हुई और तुनक कर बोली, “देखो भैया… और भाभी आप भी सुन लो… हम दोनों बहनें पैसे वाले और रईस परिवार में जरूर गई है, लेकिन इस का ये मतलब कतई नहीं कि हम आप लोगों के शौक और जरूरतों के लिए अपने ससुराल से पैसे ला कर दें. हमारा भी कुछ मानसम्मान है कि नहीं उस घर में, ससुराल से रुपएपैसे ला कर आप लोगों को देने लगें तब तो फिर हो गया…सब के आगे ससुराल में हमारी क्या इज्जत रह जाएगी, मजाक बन जाएगा हमारा. और तो और मेरी ननद मुझे ताने मारने का एक भी मौका नहीं छोड़ेगी, कहेगी कि कैसी भुक्कड़ घर से आई हो. भैया को देना चाहिए तो उलटा आप के भैयाभाभी बहन के आगे हाथ फैला रहे हैं. ना रे बाबा ना, भैया मुझ से तो रुपएपैसे की कोई उम्मीद ना ही रखें तो अच्छा है. हां… छोटी का छोटी जाने. वो देख लें उसे जो करना है.”
माला के ऐसा कहते ही मालती ने भी अपना पल्ला यह कहते हुए झाड़ लिया कि वह भी अपने घर से एक रुपया नहीं ला पाएगी, क्योंकि अभीअभी उस के पति ने नया व्यापार शुरू किया है, जिस में काफी पैसे लग गए, इसलिए वह रुपएपैसे से तो कोई मदद नहीं कर पाएगी. और फिर हम ने यूरोप जाने का प्रोग्राम भी बनाया है और उस के लिए काफी पैसे पहले ही ट्रेवल एजेंट को दे दिए हैं.
इतना कह कर मालती माला की ओर देखती हुई कुछ कहने का इशारा करने लगी. मलय अपनी दोनों सगी छोटी बहनों को चुपचाप सुनता रहा और भीतर ही भीतर अपनी बेबसी में टूटता रहा.
तभी आराधना बोली, “हम आप दोनों से पैसे उधार के तौर पर मांग रहे हैं. हम आप लोगों के पैसे डकार नहीं जाएंगे. मुसीबत आ पड़ी है, इसलिए मांग रहे हैं. कोई अपना शौक पूरा करने को नहीं मांग रहे हैं और फिर इन के पिता आप लोगों के भी तो कुछ लगते थे, आप लोगों का भी तो कोई फर्ज बनता है.”
आराधना ने इतना क्या कह दिया, माला उस पर ही टूट पड़ी और कहने लगी, “अरे… रहने दो भाभी आप हमें फर्ज का पाठ ना पढ़ाओ तो बेहतर होगा. जब भी हम दोनों बहनें तीजत्योहारों पर यहां अपने मायके आईं, तो आप और भैया ने कौन सा अपना फर्ज निभाया है, हमें एकएक सस्ती सी साड़ी पकड़ा कर अपने कर्तव्यों का इतिश्री समझ लिया और अपनी तंगी का रोना ले कर बैठ गए.”
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अभी माला की बात पूरी भी नहीं हुई थी, तभी मालती कूद पड़ी और कहने लगी, “सही कह रही हैं जीजी, आप दोनों का तो सदा से पैसों का रोना रहा है, जबकि जबलपुर जैसे शहर के बीचोबीच बाबूजी का यह मकान और दुकान है, जिस पर आप लोग पहले से ही कुंडली मार कर बैठे हैं. बाबूजी अपनी पैंशन भी आप लोगों पर ही खर्च करते थे और फिर बाबूजी के एकलौते बेटाबहू होने के नाते उन का अंतिम क्रियाकर्म करना आप दोनों का ही फर्ज है.”
मलय सोफे पर बैठा भीगी आंखों से बिना कोई जवाब दिए अपनी बहनों की तीखी और स्वार्थ भरी बातें सुनता रहा. उस का दिल तारतार हो गया और उस की आत्मा बारबार चीखचीख कर उस से बस एक ही सवाल कर रही थी कि क्या पैसों के आगे खून के रिश्ते का कोई मोल नहीं…? क्या अपनों का कोई मायने नहीं रह गया है.
जिन की मृत्यु हुई है, वह कोई और नहीं, इन के भी पिता थे और ये वही पिता थे, जिन्होंने अपनी दोनों बेटियों को अच्छी जिंदगी देने के लिए खुद कर्जों के बोझ तले दबते चले गए और ऊफ तक नहीं किया. आज उन्हीं के नाम पर उन की अपनी बेटियां चार पैसे खर्च करने को तैयार नहीं और जिस भाई को दोनों खरीखोटी सुना रही हैं, जिसे अपने पिता के घर और दुकान पर कब्जा करने का लांछन लगा रही हैं, ये वही गरीब बेबस भाई है, जिस ने अपने बीमार पिता की सेवा बिना किसी शिकायत के करता रहा. अपनी बहनों का मान रखने के लिए कर्ज ले कर हर तीजत्योहार में अपनी हैसियत से बढ़ कर उन्हें दिया.
मलय की दोनों बहनों से यह सुन आराधना से रहा नहीं गया. वह बिफर पड़ी और कहने लगी, “मेरी मति मारी गई थी, जो मैं ने अपने सुख और बच्चों के भविष्य की चिंता किए बिना बाबूजी और तुम्हारे भैया को तुम दोनों की शादी बड़े रईस परिवार में करने के लिए कर्ज लेने दिया. अगर तुम्हारे भैया और बाबूजी कर्ज ले कर तुम दोनों का ब्याह ना करवाए होते तो आज तुम दोनों बड़े घर की बहूरानी ना होती, हमें आज यह दिन ना देखना पड़ता और ना ही तुम दोनों से इतना सुनना पड़ता.
“रही बात इस दुकान की, तो आजकल इतने सारे मौल और बड़ेबड़े किराना स्टोर खुल गए हैं कि इस छोटे से किराने की दुकान से कोई नमक तक खरीदना पसंद नहीं करता. इस गली के कुछ लोग सामान खरीद लें, वही बहुत है.”
तकरार बढ़ गई, दोनों बहनों ने साफ शब्दों में कह दिया कि वो एक रुपए भी नहीं देंगी. मलय को आगे का कर्मकांड जिस प्रकार निबटाना हो निपटाए. उन्हें इस से कोई लेनादेना नहीं है. अब दोनों बहनें सीधे तेरहवीं पर ही आएंगी, इतना कह कर दोनों वहां से चली गईं और मलय उन्हें चुपचाप जाता देखता रहा. उसे अपनी तंगहाली और बहनों का यह कटु व्यवहार अंदर तक तोड़ गया.
मरता क्या ना करता, समाज में व्याप्त मृत्युभोज जैसी कुरीतियों की वजह से मलय को अपने घर और दुकान को गिरवी के तौर पर चढ़ाना पड़ा. तेरहवीं के दिन फिर सभी नातेरिश्तेदार, आसपड़ोस के लोग शामिल हुए और मजे से जायकेदार भोजन का लुफ्त भी उठा रहे थे और मलय की बुराई भी करते हुए हर किसी ना किसी चीज में मीनमेख निकाल रहे थे. दोनों बहनें भी मेहमानों की तरह आईं, मलय और आराधना के द्वारा की गई व्यवस्था और खानपान पर कमी निकाल कर अपने पिता को खोने का ढोंग कर वापस अपने ससुराल चली गईं.
तेरहवीं से जाने के बाद माला और मालती ने कई महीनों तक मलय और आराधना की तरफ मुड़ कर भी नहीं देखा और एक दिन अचानक मलय के घर पर कानूनी नोटिस आया, जिस पर दोनों बहनों ने घर और दुकान पर अपने हिस्से का दावा कर दिया था.
यह पढ़ कर मलय के पैरों तले जमीन खिसक गई, उस ने कभी सोचा भी नहीं था कि उस की बहनें जिन के पास पैसे की कोई कमी नहीं थी, जिन के पास सबकुछ था, वे चंद पैसों के लिए इतना नीचे गिर जाएंगी.
आराधना को जैसे ही हिस्से के बारे पता चला, वह गुस्से में तमतामा उठी. उस की भौंहें तन गईं, तभी मलय उसे समझाते हुए बोला, “शांत हो जाओ तुम. कानूनी तौर पर पिता की संपत्ति पर बेटियों का भी बराबरी का अधिकार होता है और वही वो दोनों मांग रही हैं. इस में कोई गलत भी नहीं है. वैसे भी मकान और दुकान दोनों गिरवी पड़े हैं. मेरे पास इतने पैसे भी नहीं कि मैं घर और दुकान वापस पा सकूं, तो ठीक है इन्हें बिक जाने दो. कम से कम माला और मालती को तो उन का हिस्सा मिल जाएगा. हम फिर से एक नई शुरुआत करेंगे.”
मलय के ऐसा कहते ही आराधना उसे लिपट कर फूटफूट कर रोने लगी. शांतिपूर्वक मकान और दुकान बिक गए, जिस के तीन हिस्से हुए. माला और मालती अपने हिस्से के रुपए लेकर चली गईं.
इधर अपना कर्ज चुकाने के बाद मलय के हाथों में कुछ नहीं बचा था. मलय के परिवार के सिर से छत, उस के बीवीबच्चों के मुंह से निवाला और उस का रोजगार सब छिन गया था. उस का पूरा परिवार रास्ते में आ गया था. उधर दोनों बहनें इस बात का जश्न मना रही थीं कि उन्हें उन के हिस्से का पैसा मिल गया. तभी माला की सहेली अर्चना वहां आ गई, जो पिछले कुछ समय से शहर से बाहर थी.
अर्चना को देखते ही माला ने उसे गले लगा लिया और उस की ओर मिठाई की प्लेट बढ़ाती हुई बोली, “तू एकदम सही समय पर आई है. ले, मुंह मीठा कर.”
अर्चना मिठाई की प्लेट हाथों में लेती हुई बोली, “अरे, पहले यह तो बताओ कि यह मिठाई किस खुशी में.”
तभी माला चहकते हुए बोली, “हमारे बाबूजी का मकान और दुकान, जिस में हमारे भैया कब्जा जमाए बैठे थे, आखिरकार बिक ही गया और हम दोनों बहनों को हमारा हिस्सा मिल ही गया. ये हमारे जीत की मिठाई है.”
यह सुनते ही अर्चना मिठाई की प्लेट नीचे रखती हुई बोली, “मैं यह मिठाई नहीं खा सकती, इस मिठाई में मिठास नहीं कड़वाहट छुपी है. ये वह मिठाई है, जिस में एक बेबस भाई का बेघर हो जाने का दर्द छुपा है. तुम दोनों बहनें जीत जरूर गई हो, लेकिन भाईबहन का रिश्ता हार गया है.”
इतना कह कर अर्चना वहां से चली गई. माला और मालती सन्न खड़ी रहीं, जैसे किसी ने उन्हें उन का स्वार्थरूपी असली चेहरा दिखा दिया हो.
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Writer- प्रेमलता यदु
पिता की मौत से मयंक दुखी था, पर उस से भी ज्यादा उन के क्रियाकर्म पर होने वाले खर्च से वह और भी सोच में पड़ गया. पत्नी आराधना के कहने पर मयंक ने अपनी दोनों बहनों माला और मालती से पैसे क्या मांग लिए, आंखों की किरकिरी बन गया. अपना हिस्सा ले कर ये दोनों बहनें क्या जीत की मिठाई खा सकीं या फिर…
आज सुबहसुबह सोहनलालजी की आंखें मुंदते ही मलय और उस की पत्नी आराधना के समक्ष तो जैसे मुसीबतों का पहाड़ खड़ा हो गया. पिता के जाने का दुख तो मलय को था ही, लेकिन साथ ही साथ मलय और आराधना को अब इस बात की चिंता भी सताने लगी थी कि पिता की अंत्येष्टि और मृत्यु पर्यंत समाज के द्वारा बनाए गए ढकोसलों पर खर्च करने के लिए पैसे कहां से आएंगे, जो भी पूंजी थी वह तो पहले ही दोनों बहन माला और मालती को एक अच्छे परिवार और रईस खानदान में ब्याहने में चले गए थे और फिर बचीखुची पूंजी भी पिताजी की बीमारी में स्वाहा हो गई. उन में इतना साहस नहीं था कि वे लोगों के कमेंट सुन सकें.
अभी तक तो यह स्थिति थी कि पिता की थोड़ी सी पेंशन और घर से लगी मलय की एक छोटी सी किराने की दुकान से बच्चों की पढ़ाई और जैसेतैसे घर का गुजारा चल रहा था, लेकिन अब पिताजी के जाने के बाद यह सब कैसे हो पाएगा. यह सोच कर मलय निढाल सा सोफे पर जा बैठा, तभी आराधना उस के कांधे पर हाथ रखती हुई बोली, “चलो उठो… माला और मालती को खबर करनी पड़ेगी. और बाकी रिश्तेदारों को भी खबर दे दो. जो होना था, वह तो हो ही गया. अब आगे की आगे सोचेंगे, पहले जो सामने है उसे तो निबटाएं. मेरे पास दोनों बच्चों के स्कूल की फीस के पैसे रखे हैं, उन्हें आप अभी के लिए ले लो और फिर माला और मालती के आने के बाद उन से कुछ मदद के लिए कहना.”
यह सुन कर मलय की आंखों में पानी आ गया. आज उस के पास इतने रुपए भी नहीं थे कि वह अपने पिता की मृत्यु पर मेहमानों को ठहरा भी सके. उसे अपने पिता के अंतिम क्रियाकलापों के लिए भी अपनी दकियानूसी बहनों के आगे हाथ फैलाना पड़ेगा, जो रीतिरिवाज का नाम ले कर हलवापूरी और मौज का इंतजाम करने के मौके नहीं छोड़तीं थीं.
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बहनों के आगे हाथ फैलाना पड़ेगा, लेकिन वह कर भी क्या सकता था. उस की अपनी मजबूरी थी. अपने रिश्तेदारों में एक मलय ही तो था, जो पैसों के मामलों में सब से ज्यादा कमजोर था.
सोहनलालजी की मृत्यु की खबर पा कर सभी आसपड़ोस के लोग और नातेरिश्तेदार अपनी बड़ीबड़ी गाड़ियों में आने लगे. सभी रिश्तेदार इकठ्ठे हो गए थे, सभी एकदूसरे को अपने पैसे की शान इस शोक स्थल पर भी दिखाने से बाज नहीं आ रहे थे, लेकिन सभी मलय से कन्नी काटते हुए नजर आए, क्योंकि मलय की माली हालत से सभी वाकिफ थे. और कोई भी मलय की मदद रुपएपैसे से नहीं करना चाहता था. ऊपरी तौर पर भले ही सभी शोक जता रहे थे और जहां तक हो सके सहयोग करने की बात भी कह रहे थे, लेकिन अंदर ही अंदर सभी इस बात से डरे हुए थे कि कहीं मलय कुछ रुपएपैसे मांग ना ले.
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मलय की दोनों बहनों के आने के पश्चात और उन के द्वारा अपने पिता के अंतिम दर्शन करने के उपरांत अंतिम संस्कार की क्रिया पूरी कर दी गई. रिश्तेदारों को विदा करने के बाद जब मलय ने अपनी दोनों बहनों से कहा, “मुझे कुछ रुपयों की जरूरत है. बाबूजी की बीमारी और अब उन की मृत्यु के बाद जो थोड़ेबहुत कर्मकांड करने पड़ेंगे, इस सब पर बहुत खर्चा बैठेगा. तुम दोनों का परिवार संपन्न है. अगर तुम दोनों पैसे का इंतजाम कर दो, तो मैं धीरेधीरे कर के चुका दूंगा.”
मलय का इतना कहना था कि दोनों बहनें एकदूसरे का मुंह ताकने लगीं. उस के बाद माला जो मलय से छोटी और मालती से बड़ी है, उठ खड़ी हुई और तुनक कर बोली, “देखो भैया… और भाभी आप भी सुन लो… हम दोनों बहनें पैसे वाले और रईस परिवार में जरूर गई है, लेकिन इस का ये मतलब कतई नहीं कि हम आप लोगों के शौक और जरूरतों के लिए अपने ससुराल से पैसे ला कर दें. हमारा भी कुछ मानसम्मान है कि नहीं उस घर में, ससुराल से रुपएपैसे ला कर आप लोगों को देने लगें तब तो फिर हो गया…सब के आगे ससुराल में हमारी क्या इज्जत रह जाएगी, मजाक बन जाएगा हमारा. और तो और मेरी ननद मुझे ताने मारने का एक भी मौका नहीं छोड़ेगी, कहेगी कि कैसी भुक्कड़ घर से आई हो. भैया को देना चाहिए तो उलटा आप के भैयाभाभी बहन के आगे हाथ फैला रहे हैं. ना रे बाबा ना, भैया मुझ से तो रुपएपैसे की कोई उम्मीद ना ही रखें तो अच्छा है. हां… छोटी का छोटी जाने. वो देख लें उसे जो करना है.”
माला के ऐसा कहते ही मालती ने भी अपना पल्ला यह कहते हुए झाड़ लिया कि वह भी अपने घर से एक रुपया नहीं ला पाएगी, क्योंकि अभीअभी उस के पति ने नया व्यापार शुरू किया है, जिस में काफी पैसे लग गए, इसलिए वह रुपएपैसे से तो कोई मदद नहीं कर पाएगी. और फिर हम ने यूरोप जाने का प्रोग्राम भी बनाया है और उस के लिए काफी पैसे पहले ही ट्रेवल एजेंट को दे दिए हैं.
इतना कह कर मालती माला की ओर देखती हुई कुछ कहने का इशारा करने लगी. मलय अपनी दोनों सगी छोटी बहनों को चुपचाप सुनता रहा और भीतर ही भीतर अपनी बेबसी में टूटता रहा.
तभी आराधना बोली, “हम आप दोनों से पैसे उधार के तौर पर मांग रहे हैं. हम आप लोगों के पैसे डकार नहीं जाएंगे. मुसीबत आ पड़ी है, इसलिए मांग रहे हैं. कोई अपना शौक पूरा करने को नहीं मांग रहे हैं और फिर इन के पिता आप लोगों के भी तो कुछ लगते थे, आप लोगों का भी तो कोई फर्ज बनता है.”
आराधना ने इतना क्या कह दिया, माला उस पर ही टूट पड़ी और कहने लगी, “अरे… रहने दो भाभी आप हमें फर्ज का पाठ ना पढ़ाओ तो बेहतर होगा. जब भी हम दोनों बहनें तीजत्योहारों पर यहां अपने मायके आईं, तो आप और भैया ने कौन सा अपना फर्ज निभाया है, हमें एकएक सस्ती सी साड़ी पकड़ा कर अपने कर्तव्यों का इतिश्री समझ लिया और अपनी तंगी का रोना ले कर बैठ गए.”
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अभी माला की बात पूरी भी नहीं हुई थी, तभी मालती कूद पड़ी और कहने लगी, “सही कह रही हैं जीजी, आप दोनों का तो सदा से पैसों का रोना रहा है, जबकि जबलपुर जैसे शहर के बीचोबीच बाबूजी का यह मकान और दुकान है, जिस पर आप लोग पहले से ही कुंडली मार कर बैठे हैं. बाबूजी अपनी पैंशन भी आप लोगों पर ही खर्च करते थे और फिर बाबूजी के एकलौते बेटाबहू होने के नाते उन का अंतिम क्रियाकर्म करना आप दोनों का ही फर्ज है.”
मलय सोफे पर बैठा भीगी आंखों से बिना कोई जवाब दिए अपनी बहनों की तीखी और स्वार्थ भरी बातें सुनता रहा. उस का दिल तारतार हो गया और उस की आत्मा बारबार चीखचीख कर उस से बस एक ही सवाल कर रही थी कि क्या पैसों के आगे खून के रिश्ते का कोई मोल नहीं…? क्या अपनों का कोई मायने नहीं रह गया है.
जिन की मृत्यु हुई है, वह कोई और नहीं, इन के भी पिता थे और ये वही पिता थे, जिन्होंने अपनी दोनों बेटियों को अच्छी जिंदगी देने के लिए खुद कर्जों के बोझ तले दबते चले गए और ऊफ तक नहीं किया. आज उन्हीं के नाम पर उन की अपनी बेटियां चार पैसे खर्च करने को तैयार नहीं और जिस भाई को दोनों खरीखोटी सुना रही हैं, जिसे अपने पिता के घर और दुकान पर कब्जा करने का लांछन लगा रही हैं, ये वही गरीब बेबस भाई है, जिस ने अपने बीमार पिता की सेवा बिना किसी शिकायत के करता रहा. अपनी बहनों का मान रखने के लिए कर्ज ले कर हर तीजत्योहार में अपनी हैसियत से बढ़ कर उन्हें दिया.
मलय की दोनों बहनों से यह सुन आराधना से रहा नहीं गया. वह बिफर पड़ी और कहने लगी, “मेरी मति मारी गई थी, जो मैं ने अपने सुख और बच्चों के भविष्य की चिंता किए बिना बाबूजी और तुम्हारे भैया को तुम दोनों की शादी बड़े रईस परिवार में करने के लिए कर्ज लेने दिया. अगर तुम्हारे भैया और बाबूजी कर्ज ले कर तुम दोनों का ब्याह ना करवाए होते तो आज तुम दोनों बड़े घर की बहूरानी ना होती, हमें आज यह दिन ना देखना पड़ता और ना ही तुम दोनों से इतना सुनना पड़ता.
“रही बात इस दुकान की, तो आजकल इतने सारे मौल और बड़ेबड़े किराना स्टोर खुल गए हैं कि इस छोटे से किराने की दुकान से कोई नमक तक खरीदना पसंद नहीं करता. इस गली के कुछ लोग सामान खरीद लें, वही बहुत है.”
तकरार बढ़ गई, दोनों बहनों ने साफ शब्दों में कह दिया कि वो एक रुपए भी नहीं देंगी. मलय को आगे का कर्मकांड जिस प्रकार निबटाना हो निपटाए. उन्हें इस से कोई लेनादेना नहीं है. अब दोनों बहनें सीधे तेरहवीं पर ही आएंगी, इतना कह कर दोनों वहां से चली गईं और मलय उन्हें चुपचाप जाता देखता रहा. उसे अपनी तंगहाली और बहनों का यह कटु व्यवहार अंदर तक तोड़ गया.
मरता क्या ना करता, समाज में व्याप्त मृत्युभोज जैसी कुरीतियों की वजह से मलय को अपने घर और दुकान को गिरवी के तौर पर चढ़ाना पड़ा. तेरहवीं के दिन फिर सभी नातेरिश्तेदार, आसपड़ोस के लोग शामिल हुए और मजे से जायकेदार भोजन का लुफ्त भी उठा रहे थे और मलय की बुराई भी करते हुए हर किसी ना किसी चीज में मीनमेख निकाल रहे थे. दोनों बहनें भी मेहमानों की तरह आईं, मलय और आराधना के द्वारा की गई व्यवस्था और खानपान पर कमी निकाल कर अपने पिता को खोने का ढोंग कर वापस अपने ससुराल चली गईं.
तेरहवीं से जाने के बाद माला और मालती ने कई महीनों तक मलय और आराधना की तरफ मुड़ कर भी नहीं देखा और एक दिन अचानक मलय के घर पर कानूनी नोटिस आया, जिस पर दोनों बहनों ने घर और दुकान पर अपने हिस्से का दावा कर दिया था.
यह पढ़ कर मलय के पैरों तले जमीन खिसक गई, उस ने कभी सोचा भी नहीं था कि उस की बहनें जिन के पास पैसे की कोई कमी नहीं थी, जिन के पास सबकुछ था, वे चंद पैसों के लिए इतना नीचे गिर जाएंगी.
आराधना को जैसे ही हिस्से के बारे पता चला, वह गुस्से में तमतामा उठी. उस की भौंहें तन गईं, तभी मलय उसे समझाते हुए बोला, “शांत हो जाओ तुम. कानूनी तौर पर पिता की संपत्ति पर बेटियों का भी बराबरी का अधिकार होता है और वही वो दोनों मांग रही हैं. इस में कोई गलत भी नहीं है. वैसे भी मकान और दुकान दोनों गिरवी पड़े हैं. मेरे पास इतने पैसे भी नहीं कि मैं घर और दुकान वापस पा सकूं, तो ठीक है इन्हें बिक जाने दो. कम से कम माला और मालती को तो उन का हिस्सा मिल जाएगा. हम फिर से एक नई शुरुआत करेंगे.”
मलय के ऐसा कहते ही आराधना उसे लिपट कर फूटफूट कर रोने लगी. शांतिपूर्वक मकान और दुकान बिक गए, जिस के तीन हिस्से हुए. माला और मालती अपने हिस्से के रुपए लेकर चली गईं.
इधर अपना कर्ज चुकाने के बाद मलय के हाथों में कुछ नहीं बचा था. मलय के परिवार के सिर से छत, उस के बीवीबच्चों के मुंह से निवाला और उस का रोजगार सब छिन गया था. उस का पूरा परिवार रास्ते में आ गया था. उधर दोनों बहनें इस बात का जश्न मना रही थीं कि उन्हें उन के हिस्से का पैसा मिल गया. तभी माला की सहेली अर्चना वहां आ गई, जो पिछले कुछ समय से शहर से बाहर थी.
अर्चना को देखते ही माला ने उसे गले लगा लिया और उस की ओर मिठाई की प्लेट बढ़ाती हुई बोली, “तू एकदम सही समय पर आई है. ले, मुंह मीठा कर.”
अर्चना मिठाई की प्लेट हाथों में लेती हुई बोली, “अरे, पहले यह तो बताओ कि यह मिठाई किस खुशी में.”
तभी माला चहकते हुए बोली, “हमारे बाबूजी का मकान और दुकान, जिस में हमारे भैया कब्जा जमाए बैठे थे, आखिरकार बिक ही गया और हम दोनों बहनों को हमारा हिस्सा मिल ही गया. ये हमारे जीत की मिठाई है.”
यह सुनते ही अर्चना मिठाई की प्लेट नीचे रखती हुई बोली, “मैं यह मिठाई नहीं खा सकती, इस मिठाई में मिठास नहीं कड़वाहट छुपी है. ये वह मिठाई है, जिस में एक बेबस भाई का बेघर हो जाने का दर्द छुपा है. तुम दोनों बहनें जीत जरूर गई हो, लेकिन भाईबहन का रिश्ता हार गया है.”
इतना कह कर अर्चना वहां से चली गई. माला और मालती सन्न खड़ी रहीं, जैसे किसी ने उन्हें उन का स्वार्थरूपी असली चेहरा दिखा दिया हो.
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March 10, 2022 at 09:00AM
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