Wednesday 9 March 2022

गलतफहमी: क्या नीना को उसका प्यार मिल पाया

लेखक- संजय कुमार सिंह

नीना के प्रति मेरा आकर्षण चुंबक की तरह मुझे खींच रहा था. एक दिन मैं ने हंस कर सीधेसीधे उस से कहा, ‘‘मैं तुम से प्यार करता हूं.’’ वह ठहाका मार कर हंसी, ‘‘तुम बड़े नादान हो रविजी. महानगर में प्यार मत करो, लुट जाओेगे.’’ उस ने फिर कहीं दूर भटकते हुए कहा, ‘‘इस शहर में रहो, पर सपने मत देखो. छोटे लोगों के सपने यों ही जल जाते हैं. जिंदगी में सिर्फ राख और धुआं बचते हैं. सच तो यह है कि प्यार यहां जांघों के बीच से फिसल जाता है.’’ ‘‘कितना बेहूदा खयाल है नीना…’’ ‘‘किस का…?’’ ‘‘तुम्हारा,’’ मैं ने तल्ख हो कर कहा, ‘‘और किस का?’’ ‘‘यह मेरा खयाल है?’’ वह हैरान सी हुई, ‘‘तुम यही समझे…?’’ ‘‘तो मेरा है?’’ ‘‘ओह…’’ उस ने दुखी हो कर कहा, ‘‘फिर भी मैं कह सकती हूं कि तुम कितने अच्छे हो… काश, मैं तुम्हें समझा पाती.’’ ‘‘नहीं ही समझाओ तो अच्छा,’’ मैं ने उस से विदा लेते हुए कहा, ‘‘मैं समझ गया…’’ रास्तेभर तरहतरह के खयाल आते रहे.

आखिरकार मैं ने तय किया कि सपने कितने भी हसीन हों, अगर आप बेदखल हो गए हों, तो उन हसरतों के बारे में सोचना छोड़ देना चाहिए. मैं नीना की जिंदगी से कट सा गया था. मैं नीना को एक बस के सफर में मिला था. वह भी वहीं से चढ़ी थी, जहां से मैं चढ़ा था और वहीं उतरी भी थी. कुछ दिन में हैलोहाय से बात आगे बढ़ गई. वह एक औफिस में असिस्टैंट की नौकरी कर रही थी. बैठनाउठना हो गया. वह बिंदास थी, पर बेहद प्रैक्टिकल. कुछ जुगाड़ू भी थी. मेरे छोटेमोटे काम उस ने फोन पर ही करा दिए थे. उस दिन मैं फैक्टरी से देर से निकला, तो जैक्सन रोड की ओर निकल गया. दिल यों भी दुखी था, क्योंकि फैक्टरी में एक हादसा हो गया था. बारबार दिमाग में उस लड़के का घायल चेहरा आ रहा था. मैं एक मसाज पार्लर के पास रुक गया. यह पुराना शहर था अपनी स्मृति में, इतिहास को समेटे हुए.

ये भी पढ़ें- खामोशी – भाग 2 : बहन और जीजा ने अपने ही घरवालों के साथ धोखा क्यों

मैं ने घड़ी देखी. 7 बज रहे थे. मैं थकान दूर करने के लिए घुस गया. अभी मैं जायजा ले ही रहा था कि मेरी नजर नीना पर पड़ी, ‘‘तुम यहां…?’’ ‘‘मैं इसी पार्लर में काम करती हूं.’’ ‘‘पर, तुम ने तो बताया था कि किसी औफिस में काम करती हो…’’ ‘‘हां, करती थी.’’ ‘‘फिर…?’’ ‘‘सब यहीं पूछ लोगे क्या…?’’ कहते हुए वह दूसरे ग्राहक की ओर बढ़ गई. नशे से लुढ़कतेथुलथुले लोगों के बीच से वह उन्हें गरम बदन का अहसास दे रही थी. यह देख मुझे गहरा अफसोस हुआ. मैं सिर्फ हैड मसाज ले कर वापस आ गया. रास्ते में मैं ने फ्राई चिकन और रोटी ले ली थी. कमरे में पहुंच कर मैं ने अभी खाने का एक गस्सा तोड़ा ही था कि मोहन आ गया. ‘‘आओ मोहन,’’ मैं ने कहा, ‘‘बड़े मौके से आए हो तुम.’’ ‘‘क्या है?’’ मोहन ने मुसकराते हुए पूछा. वह एक दवा की दुकान पर सेल्समैन था. पूरा कंजूस और मजबूर आदमी. अकसर उसे घर से फोन आता था, जिस में पैसे की मांग होती थी.

इस कबूतरखाने में इसी तरह के लोग किराएदार थे, जो दूर कहीं गांवघर में अपने परिवार को छोड़ कर अपना सलीब उठाए चले आए थे. मैं ने थाली मोहन की ओर खिसकाई. बिना चूंचूं किए वह खाने लगा. मोहन बोला, ‘‘यार रवि, तुम्हीं ठीक हो. तुम्हारे घर वाले तुम्हें नोचते नहीं. मैं तो सोचता हूं कि मेरी जिंदगी इसी तरह खत्म हो जाएगी कि मैं वापस भी नहीं जा सकूंगा गांव… पहले यह सोच कर आया था कि 2-4 साल कमा कर लौट जाऊंगा… मगर, 10 साल होने को हैं, मैं यहीं हूं…’’ ‘‘सुनो मोहन, मुझे फोन इसलिए नहीं आते हैं कि मेरे घर में लोग नहीं हैं… बल्कि उन्हें पता ही नहीं है कि मैं कहां हूं… इस दुनिया में हूं भी कि नहीं… यह अच्छा है… आज जिस लड़के के साथ हादसा हुआ, अगर मेरी तरह होता तो किस्सा खत्म था, पर अब जाने क्या गुजर रही होगी उस के घर वालों पर…’’ ‘‘एक बात बोलूं?’’ ‘‘बोलो.’’ ‘‘तुम शादी कर लो.’’ ‘‘किस से?’’ ‘‘अरे, मिल जाएगी…’’ ‘‘मिली थी…’’ मैं ने कहा. ‘‘फिर क्या हुआ?’’ ‘‘टूट गया.’’ रात काफी हो गई थी. मोहन उठ गया. सवेरे मेरी नींद देर से खुली, मगर फैक्टरी में मैं समय से पहुंच गया.

ये भी पढ़ें- टीकाकरण घोटाला

मुझे वहीं पता चला कि उस ने अस्पताल में रात तकरीबन 3 बजे दम तोड़ दिया. मैनेजर ने एक मुआवजे का चैक दिखा कर हमदर्दी बटोरने के बाद फैक्टरी में चालाकी से छुट्टी कर दी. मैं वापस लौटने ही वाला था कि नीना का फोन आया. चौरंगी बाजार में एक जगह वह इंतजार कर रही थी. ‘‘क्या बात है?’’ मैं ने पूछा. ‘‘कुछ नहीं,’’ वह हंसी. ‘‘बुलाया क्यों?’’ ‘‘गुस्से में हो?’’ ‘‘किस बात के लिए?’’ ‘‘अरे, बोलो भी.’’ ‘‘बोलूं?’’ ‘‘हां.’’ ‘‘झूठ क्यों बोली?’’ ‘‘क्या झूठ?’’ ‘‘कि औफिस में…’ ‘‘नहीं, सच कहा था.’’ ‘‘तो वहीं रहती.’’ ‘‘बौस देह मांग रहा था,’’ उस ने साफसाफ कहा. ‘‘क्या…?’’ मैं अवाक रह गया. काफी देर बाद मैं ने कहा, ‘‘चलो, मुझे माफ कर दो. गलतफहमी हुई.’’ ‘‘गलतफहमी में तो तुम अभी भी हो…’’ ‘‘मतलब…?’’ मैं इस बार चौंका, ‘‘कैसे?’’ ‘‘फिर कभी,’’ नीना ने हंस कर कहा. उस दिन नीना के प्रति यह गलतफहमी रह जाती, अगर मैं उस के साथ जिद कर के उस के घर नहीं गया होता. मेरे घर की तरह दड़बेनुमा मकान था.

ये भी पढ़ें- बीरा : पूरे गांव में बीरा को लेकर क्या हंगामा हो रहा था

एक बिल्डिंग में 30-40 परिवार होंगे. सचमुच कभीकभी जिंदगी भी क्या खूब मजाक करती है. वह 2 बूढ़ों को पालते हुए खुद बूढ़ी हो रही थी. उस की मां की आंखों में एक चमक उठी. कुछ अपना रोना रोया, कुछ नीना का. मेरा भी कोई अपना कहने वाला नहीं था. भाई कब का न जाने कहां छोड़ गया था. मांबाप गुजर चुके थे. चाचाताऊ थे, पर कभी साल 2 साल में कोई खबर मिलती. उस दिन नीना का हाथ अपने हाथ में ले कर मैं ने कहा, ‘‘मुझे अब कोई गलतफहमी नहीं है, तुम्हें हो, तो कह सकती हो.’’ ‘‘मुझे है,’’ उस ने हंस कर कहा, ‘‘पर, कहूंगी नहीं.’’ एक खूबसूरत रंग फिजा में फैल कर बिखर गया. उस दिन उस के छोटे बिस्तर पर जो अपनापन मिला, मां की गोद के बाद कभी नहीं मिला था. दो महीने बाद दोनों ने शादी कर ली, बस 10 जने थे. न घोड़ी, न बरात, पर मुझे और नीना को लग रहा था कि सारी दुनिया जीत ली. अगली सुबह मैं अपने साथ खाने का डब्बा ले गया था. इस से बढ़ कर दहेज होता है क्या?

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लेखक- संजय कुमार सिंह

नीना के प्रति मेरा आकर्षण चुंबक की तरह मुझे खींच रहा था. एक दिन मैं ने हंस कर सीधेसीधे उस से कहा, ‘‘मैं तुम से प्यार करता हूं.’’ वह ठहाका मार कर हंसी, ‘‘तुम बड़े नादान हो रविजी. महानगर में प्यार मत करो, लुट जाओेगे.’’ उस ने फिर कहीं दूर भटकते हुए कहा, ‘‘इस शहर में रहो, पर सपने मत देखो. छोटे लोगों के सपने यों ही जल जाते हैं. जिंदगी में सिर्फ राख और धुआं बचते हैं. सच तो यह है कि प्यार यहां जांघों के बीच से फिसल जाता है.’’ ‘‘कितना बेहूदा खयाल है नीना…’’ ‘‘किस का…?’’ ‘‘तुम्हारा,’’ मैं ने तल्ख हो कर कहा, ‘‘और किस का?’’ ‘‘यह मेरा खयाल है?’’ वह हैरान सी हुई, ‘‘तुम यही समझे…?’’ ‘‘तो मेरा है?’’ ‘‘ओह…’’ उस ने दुखी हो कर कहा, ‘‘फिर भी मैं कह सकती हूं कि तुम कितने अच्छे हो… काश, मैं तुम्हें समझा पाती.’’ ‘‘नहीं ही समझाओ तो अच्छा,’’ मैं ने उस से विदा लेते हुए कहा, ‘‘मैं समझ गया…’’ रास्तेभर तरहतरह के खयाल आते रहे.

आखिरकार मैं ने तय किया कि सपने कितने भी हसीन हों, अगर आप बेदखल हो गए हों, तो उन हसरतों के बारे में सोचना छोड़ देना चाहिए. मैं नीना की जिंदगी से कट सा गया था. मैं नीना को एक बस के सफर में मिला था. वह भी वहीं से चढ़ी थी, जहां से मैं चढ़ा था और वहीं उतरी भी थी. कुछ दिन में हैलोहाय से बात आगे बढ़ गई. वह एक औफिस में असिस्टैंट की नौकरी कर रही थी. बैठनाउठना हो गया. वह बिंदास थी, पर बेहद प्रैक्टिकल. कुछ जुगाड़ू भी थी. मेरे छोटेमोटे काम उस ने फोन पर ही करा दिए थे. उस दिन मैं फैक्टरी से देर से निकला, तो जैक्सन रोड की ओर निकल गया. दिल यों भी दुखी था, क्योंकि फैक्टरी में एक हादसा हो गया था. बारबार दिमाग में उस लड़के का घायल चेहरा आ रहा था. मैं एक मसाज पार्लर के पास रुक गया. यह पुराना शहर था अपनी स्मृति में, इतिहास को समेटे हुए.

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मैं ने घड़ी देखी. 7 बज रहे थे. मैं थकान दूर करने के लिए घुस गया. अभी मैं जायजा ले ही रहा था कि मेरी नजर नीना पर पड़ी, ‘‘तुम यहां…?’’ ‘‘मैं इसी पार्लर में काम करती हूं.’’ ‘‘पर, तुम ने तो बताया था कि किसी औफिस में काम करती हो…’’ ‘‘हां, करती थी.’’ ‘‘फिर…?’’ ‘‘सब यहीं पूछ लोगे क्या…?’’ कहते हुए वह दूसरे ग्राहक की ओर बढ़ गई. नशे से लुढ़कतेथुलथुले लोगों के बीच से वह उन्हें गरम बदन का अहसास दे रही थी. यह देख मुझे गहरा अफसोस हुआ. मैं सिर्फ हैड मसाज ले कर वापस आ गया. रास्ते में मैं ने फ्राई चिकन और रोटी ले ली थी. कमरे में पहुंच कर मैं ने अभी खाने का एक गस्सा तोड़ा ही था कि मोहन आ गया. ‘‘आओ मोहन,’’ मैं ने कहा, ‘‘बड़े मौके से आए हो तुम.’’ ‘‘क्या है?’’ मोहन ने मुसकराते हुए पूछा. वह एक दवा की दुकान पर सेल्समैन था. पूरा कंजूस और मजबूर आदमी. अकसर उसे घर से फोन आता था, जिस में पैसे की मांग होती थी.

इस कबूतरखाने में इसी तरह के लोग किराएदार थे, जो दूर कहीं गांवघर में अपने परिवार को छोड़ कर अपना सलीब उठाए चले आए थे. मैं ने थाली मोहन की ओर खिसकाई. बिना चूंचूं किए वह खाने लगा. मोहन बोला, ‘‘यार रवि, तुम्हीं ठीक हो. तुम्हारे घर वाले तुम्हें नोचते नहीं. मैं तो सोचता हूं कि मेरी जिंदगी इसी तरह खत्म हो जाएगी कि मैं वापस भी नहीं जा सकूंगा गांव… पहले यह सोच कर आया था कि 2-4 साल कमा कर लौट जाऊंगा… मगर, 10 साल होने को हैं, मैं यहीं हूं…’’ ‘‘सुनो मोहन, मुझे फोन इसलिए नहीं आते हैं कि मेरे घर में लोग नहीं हैं… बल्कि उन्हें पता ही नहीं है कि मैं कहां हूं… इस दुनिया में हूं भी कि नहीं… यह अच्छा है… आज जिस लड़के के साथ हादसा हुआ, अगर मेरी तरह होता तो किस्सा खत्म था, पर अब जाने क्या गुजर रही होगी उस के घर वालों पर…’’ ‘‘एक बात बोलूं?’’ ‘‘बोलो.’’ ‘‘तुम शादी कर लो.’’ ‘‘किस से?’’ ‘‘अरे, मिल जाएगी…’’ ‘‘मिली थी…’’ मैं ने कहा. ‘‘फिर क्या हुआ?’’ ‘‘टूट गया.’’ रात काफी हो गई थी. मोहन उठ गया. सवेरे मेरी नींद देर से खुली, मगर फैक्टरी में मैं समय से पहुंच गया.

ये भी पढ़ें- टीकाकरण घोटाला

मुझे वहीं पता चला कि उस ने अस्पताल में रात तकरीबन 3 बजे दम तोड़ दिया. मैनेजर ने एक मुआवजे का चैक दिखा कर हमदर्दी बटोरने के बाद फैक्टरी में चालाकी से छुट्टी कर दी. मैं वापस लौटने ही वाला था कि नीना का फोन आया. चौरंगी बाजार में एक जगह वह इंतजार कर रही थी. ‘‘क्या बात है?’’ मैं ने पूछा. ‘‘कुछ नहीं,’’ वह हंसी. ‘‘बुलाया क्यों?’’ ‘‘गुस्से में हो?’’ ‘‘किस बात के लिए?’’ ‘‘अरे, बोलो भी.’’ ‘‘बोलूं?’’ ‘‘हां.’’ ‘‘झूठ क्यों बोली?’’ ‘‘क्या झूठ?’’ ‘‘कि औफिस में…’ ‘‘नहीं, सच कहा था.’’ ‘‘तो वहीं रहती.’’ ‘‘बौस देह मांग रहा था,’’ उस ने साफसाफ कहा. ‘‘क्या…?’’ मैं अवाक रह गया. काफी देर बाद मैं ने कहा, ‘‘चलो, मुझे माफ कर दो. गलतफहमी हुई.’’ ‘‘गलतफहमी में तो तुम अभी भी हो…’’ ‘‘मतलब…?’’ मैं इस बार चौंका, ‘‘कैसे?’’ ‘‘फिर कभी,’’ नीना ने हंस कर कहा. उस दिन नीना के प्रति यह गलतफहमी रह जाती, अगर मैं उस के साथ जिद कर के उस के घर नहीं गया होता. मेरे घर की तरह दड़बेनुमा मकान था.

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एक बिल्डिंग में 30-40 परिवार होंगे. सचमुच कभीकभी जिंदगी भी क्या खूब मजाक करती है. वह 2 बूढ़ों को पालते हुए खुद बूढ़ी हो रही थी. उस की मां की आंखों में एक चमक उठी. कुछ अपना रोना रोया, कुछ नीना का. मेरा भी कोई अपना कहने वाला नहीं था. भाई कब का न जाने कहां छोड़ गया था. मांबाप गुजर चुके थे. चाचाताऊ थे, पर कभी साल 2 साल में कोई खबर मिलती. उस दिन नीना का हाथ अपने हाथ में ले कर मैं ने कहा, ‘‘मुझे अब कोई गलतफहमी नहीं है, तुम्हें हो, तो कह सकती हो.’’ ‘‘मुझे है,’’ उस ने हंस कर कहा, ‘‘पर, कहूंगी नहीं.’’ एक खूबसूरत रंग फिजा में फैल कर बिखर गया. उस दिन उस के छोटे बिस्तर पर जो अपनापन मिला, मां की गोद के बाद कभी नहीं मिला था. दो महीने बाद दोनों ने शादी कर ली, बस 10 जने थे. न घोड़ी, न बरात, पर मुझे और नीना को लग रहा था कि सारी दुनिया जीत ली. अगली सुबह मैं अपने साथ खाने का डब्बा ले गया था. इस से बढ़ कर दहेज होता है क्या?

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March 10, 2022 at 09:00AM

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