Sunday 27 March 2022

नजराना: क्या हुआ था जारा के साथ

Writer- सावी मंगला

याद एक ऐसा शब्द, जिसे सोचते ही मन मानो कहीं गुम सा हो जाता है. कितनी अनोखी और अनूठी होती हैं ये यादें. कभी होंठों पर मुसकराहट ले आती हैं तो कभी आंखों को आंसुओं से नवाज देती हैं. कुछ पलों को याद कर हम हंस पड़ते हैं, तो कुछ पलों के जिक्र से ही आंखों से आंसुओं की लड़ी बह जाती है. लेकिन कुछ यादें हमारी जिंदगी में हमारे साए की तरह हमारे साथ हर पल रहती हैं.

यादों के कुछ ऐसे ही भंवर में उलझी जारा जब अपनी बड़ी सी काली गाड़ी से उतरी तो अचानक उस की आंखें डबडबा आईं. उस की आंखों के आगे वो सपने तैरने लगे, जो तकरीबन 15 साल पहले उस ने इस मंदिर जैसे स्कूल में बिताए थे. उस के मन में भावनाओं का बवंडर उठ रहा था. अनचाहे ही वह अतीत की उन गलियों में खोती जा रही थी, जिन से वह 15 साल पहले गुजर चुकी थी.

आज वह उस महरून रंग की इमारत के सामने खड़ी थी, जिस की बड़ी सी दीवार पर एक तरफ बड़ी ही खूबसूरती से लिखा गया था, ‘भारतीय विद्या भवन’ और दूसरी तरफ स्टील से बना उभरा हुआ स्कूल का ‘लोगो’ जड़ा हुआ था.

इमारत के चारों तरफ हरेभरे पेड़पौधे बिलकुल वैसे ही लगे हुए थे जैसे उस ने 15 साल पहले इस स्कूल को छोड़ते समय थे. यहां इस जगह की हवा में ही मानो गुलाब की खुशबू घुली हुई हो.

जारा ने लंबी सांस ली तो ये खुशबू उस के जेहन में घुल गई. जारा को मानो कई सालों बाद ऐसा सुकून मिला हो. लेकिन सुकून के साथ वो तमाम यादें भी उस के जेहन में उतर गईं, जिन्हें भुलाने की वो हजार मरतबा नाकाम कोशिशें कर चुकी थी. अब तो मानो वह हिम्मत ही हार चुकी थी या यों कहो कि समझ चुकी थी कि ये यादें उस का साया बन हमेशा उस के साथ चलती रहेंगी. पर इस बार आसपास के माहौल को समझते हुए उस ने अपनेआप को संभाला और अपनी नीले रंग की चिकन की कढ़ाई वाली साड़ी जिस पर जहीन कारीगरी की गई थी, उसे उस के सब से अजीज दोस्त सिद्धार्थ ने दी थी. ये उस का पसंदीदा रंग था. उसे ठीक करते हुए वह आगे बढ़ी और चलतेचलते स्कूल की दहलीज तक पहुंच गई. अंदर जाते हुए उस ने महसूस किया कि इतने सालों में वहां कुछ भी तो नहीं बदला था. वही खुशबू, वही सजावट और सब से बड़ी बात वही रीतिरिवाज.

ये भी पढ़ें- दंश: सोना भाभी को कौन-सी बीमारी थी?

दरअसल, आज यहां एक अंतर्राष्ट्रीय समारोह था, जिस के मुख्य अतिथि के रूप में जारा को आमंत्रित किया गया था, क्योंकि वह आईपीएस अफसर थी. वैसे तो यह उस के लिए गर्व का समय था, पर आज वह थोड़ी दुखी थी. उसे दुख इस बात का था कि ये सपना जिस का था आज वो ही वहां नहीं था. ये सिद्धार्थ का सपना था, उस सिद्धार्थ का, जिस ने कभी उसे किसी मोड़ पर अकेला नहीं छोड़ा था. जो हमेशा उस का सब से अच्छा दोस्त था. इतना अच्छा कि वक्त आने पर उस के लिए वो किया, जो शायद कोई सगा भी नहीं करता, लेकिन आज वह ही उस के साथ नहीं था.

आज उस दहलीज पर खड़े हुए उस पर फूल बरसाए जा रहे थे और स्कूल की हेड गर्ल द्वारा उस के माथे पर तिलक लगाया जा रहा था, यह देख कर… एक बार फिर वो 25 साल पहले की यादों में गुम हो गई, जब वह भी कभी इस स्कूल की हेड गर्ल हुआ करती थी और बिलकुल इस तरह से ही आईपीएस अफसर को तिलक लगाया करती थी…

उसे याद था कि तब सिद्धार्थ गंभीर स्वर में कहता था, तू देखना एक दिन मैं भी आईपीएस अफसर बनूंगा और मुझे भी ऐसे ही सम्मान दिया जाएगा.

उस ने यह कह तो दिया, पर शायद तकदीर को कुछ और ही मंजूर था…

आज उसे फिर याद आ रहा था कि कैसे वो मस्त, मगन हो कर इस स्कूल में पढ़ने के साथसाथ टेनिस कोर्ट में पूरापूरा दिन खेलती थी और सिद्धार्थ से झगड़ा भी करती थी… पर यहां इस जगह से सिर्फ खुशियों के लम्हे ही नहीं जुड़े थे, बल्कि कुछ ऐसे अंधेरे पल भी थे, जिन्होंने उस की जिंदगी का रुख ही मोड़ दिया.

आज जैसेजैसे वो इस जगह का दौरा कर रही थी, उसे हर मोड़ पर कुछ न कुछ तो याद आ ही जाता. जैसे – कैसे वह हर बार जल्दीजल्दी में उन सीढ़ियों से ऊपर जाती, जिन से जाने के लिए अर्चना मैडम, पीटी टीचर ने मना किया होता था… और कैसे वह 8वीं कक्षा में लंच ब्रेक से पहले ही पीरियड में लास्ट बेंच पर बैठ कर टिफिन खा लिया करती थी.

ये सब सोच कर उस के होंठों पर एक मुसकान तैर गई थी…

लेकिन फिर एक मोड़ ऐसा भी आया, जहां वह स्तब्ध सी खड़ी रही. यह वह मोड़ था, जहां वो लम्हा गुजरा था, जिस ने उस से हमेशाहमेशा के लिए उस का सब से अच्छा दोस्त छीन लेने की तैयारी शुरू कर दी थी. उस की आंखों के आगे उस अंधियारे दिन का दृश्य झिलमिला आया, जब सुबह से ही बादल कड़क रहे थे और चारों तरफ अंधेरा छाया हुआ था… बारिश थी कि थमने का नाम ही नहीं ले रही थी. मां तो ऐसा भयानक मौसम देख कर पहले ही मना कर रही थी, “जारा, आज छुट्टी कर ले…” पर उस ने ही मां को समझा दिया और स्कूल चली गई.

उस दिन हम सब का फेयरवेल था और सब में उत्साह की एक लहर दौड़ रही थी, पर… कौन जानता था कि इस दिन की याद एक काला सच बन कर रह जाएगी…

हम सब स्कूल के औडिटोरियम में थे कि तभी गोली चलने की आवाज कानों में गूंज गई और हाल में भगदड़ मच गई… पर हम ने हिम्मत से फैसला लेने की सोची और शांत हो कर वहीं खड़े रहे. सब डरे हुए थे, पर फोन की लाइट से अंधेरे में रास्ता ढूंढ़ते हुए सब तो किसी तरह बाहर निकल गए, पर खुद मैं ही पीछे… न जाने कैसे मेरा दुपट्टा किसी जगह अटक गया. मैं हड़बड़ा कर उसे निकालने की कोशिश करने लगी, पर अचानक एक गोली चलने की आवाज आई और फिर महसूस हुआ कि वह गोली तो मेरे ही माथे से छू कर गुजर गई थी… एक पल में अंधेरे में भी आंखों के आगे अंधेरा छा गया था.

मैं नहीं जानती कि उस के बाद क्या हुआ… कैसे मैं उस हाल से बाहर निकली… कैसे मैं अस्पताल पहुंची…? बस जानती हूं तो इतना कि जब होश आया तो महसूस हुआ कि मेरी जिंदगी का रुख इस आंधी ने बुरी तरह से मोड़ दिया.

सिद्धार्थ ने मुझे बताया था कि उन गुंडों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था… वो क्यों आए, ये तो उस ने नहीं बताया. ये भी तब बताया था, जब मैं पूरी तरह से होश में नहीं थी… जब होश में आई तो महसूस हुआ कि चारों तरफ अंधेरा था. पहले तो लगा कि वहम है, या सपना है, पर नहीं… यह हकीकत थी… एक कड़वा सच, जिसे वो चाह कर भी अपना नहीं पा रही थी. मैं अपनी आंखों की रोशनी खो बैठी थी… काफी मुश्किलों से उस ने अपने बिखरते अस्तित्व को संभाला था.

लेकिन, कहते हैं न, हर अंधेरी रात अपने साथ नई सुनहरी सुबह भी लाती है… वैसे ही जारा ने भी उम्मीद के साथ अपनेआप को जिंदगी के इस नए ढांचे में ढाल लिया और अपनी कमजोरी को अपनी ताकत बना लिया और बिलकुल सहज तरीके से जीना शुरू कर दिया. उधर उस के मां, पापा और बाकी सभी रिश्तेदारों ने उस के लिए एक ‘डोनर’ की तलाश शुरू कर दी थी… आखिर कब तक वे अपनी लाड़ली बेटी को इस हालत में देखते.

समय कब किसी के लिए रुका था, जो अब रुक जाता. जनवरी से अप्रैल कब निकल गया, किसी को पता ही नहीं चला. पूरे 5 महीने हो गए थे उस हादसे को. अब तो जारा को भी मानो इस अंधेरी रात की आदत सी हो गई थी. उस ने हादसे के बाद भी बोर्ड की परीक्षा अच्छी तरह पूरी मेहनत और लगन के साथ दी थी.

आज 24 अप्रैल था, उस का बर्थडे… एक ऐसा दिन, जब उसे तोहफे में सब का प्यारदुलार और सुंदरसुंदर उपहार मिलते हैं… इस बार भी वह खुश थी… पर कहां जानती थी कि आज ही उस की बेरंग जिंदगी में एक नया मोड़ आने वाला था… आज हमेशा की तरह सिद्धार्थ घर आया. उस के आने की आहट और उस के वही परफ्यूम की महक, जो मेरे आसपास को महका देती थी, जारा को उस के आने का पता चल गया. उस के आने से ही मानो जारा खुश हो गई, क्योंकि उसे पता था कि इस बार भी उस का गिफ्ट सब से हट कर होगा… वो आया और उस के पास बैठ गया.

उस ने उसे बताया कि वो शहर से बाहर थोड़े दिन के लिए कहीं दूर, छुट्टियों पर जाना चाहता था…

ये भी पढ़ें- अपना घर: आखिर सीमा के मायके में क्या हुआ था?

उस की यह बात सुन कर थोड़ी सी हैरानी तो हुई थी उसे, पर फिर सोचा कि 12वीं की परीक्षा है, जिस के बाद थोड़े दिनों के लिए कहीं जा रहा होगा… वो ये सब सोच ही रही थी कि तभी उस ने उस के हाथ में एक लिफाफा पकड़ा दिया और कहा कि इस में बहुत ही कीमती चीज है, जिसे वो उसे सौंप रहा था… लेकिन उस ने उसे वो खोलने नहीं दिया और चुपचाप बिना कुछ कहे ही वहां से चला गया.

जब उस का भाई आया, तो जारा ने उसे वो लिफाफा दिया और खोलने को कहा. उस को खोलने पर पता चला कि उस में एक फोटोफ्रेम था, जिस में उन दोनों के फोटो थे और साथ ही एक चिट्ठी भी थी, जिस में कुछ लिखा था… जिसे पढ़ कर उस की आंखों से आंसुओं की बूंदें लुढ़क आईं. सिद्धार्थ को लास्ट स्टेज कैंसर था और उस का ट्रीटमेंट भी अब नहीं हो सकता था. जातेजाते उस ने अपनी आंखें जारा के नाम कर दी थीं.

ये सब सुन कर उस की आंखें नम हो गईं… वैसे तो उसे खुश होना चाहिए था कि उसे उस की अंधेरी दुनिया में एक बार फिर एक रोशनी की किरण कहीं किसी कोने से आती काले बादलों को हटा रही थी. पर आज वो खुश नहीं, बल्कि दुखी थी इस बात से कि वो कैसे इतनी खुदगर्ज हो गई कि वह उस दोस्त का साथ न दे सकी, जिस ने जिंदगी के हर मोड़ पर उस का साथ दिया था. सिद्धार्थ ने कभी भी उस को ऐसा फील ही नहीं होने दिया कि वह कमजोर है, बल्कि वह तो हमेशा की तरह उस को हिम्मत देता रहा और उसे जिंदगी से डट कर लड़ना सिखाता रहा.

पत्र में उस ने लिखा था, सिर्फ अपनी आंखें ही नहीं, उन से देखे सपने भी तुम्हें सौंप कर जा रहा हूं. अब उन्हें पूरा करना तुम्हारा काम… वह खुद तो चला गया, पर मुझे एक नई जिंदगी दे गया… ऐसी जिंदगी, जिस में रंग भी थे और जीने का एक मकसद भी.

सिद्धार्थ के जाने के बाद मानो मैं ने ठान लिया कि उस के सपने को मैं पूरा कर के ही रहूंगी और शायद इस वजह से ही आज मैं इस मुकाम तक पहुंच पाई थी… सिद्दार्थ का आईपीएस बनने का सपना उस ने पूरा किया. उस की आंखों के सपने को उस ने अपनी मेहनत और लगन से पूरा कर दिखाया था.

जारा इतनी गुम थी उन गलियों में कि उसे पता ही नहीं चला कि कब फंक्शन खत्म हुआ और वह कब अपनी गाड़ी में बैठ गई थी. लेकिन जब होश आया तो वह घर नहीं गई, बल्कि उस गार्डन की ओर चल दी जहां कभी सिद्धार्थ को आना पसंद था.

अपने खत में उस ने यह भी लिखा था कि कहीं कभी जिंदगी के किसी मोड़ पर मेरी याद आए तो आ जाना उस जगह, जहां हवाओं में घुले हों मेरे ख्वाब और जुड़ी हुई हैं हमारी अनगिनत यादें… वो अच्छी तरह समझ गई थी कि वो जगह और कोई नहीं, रोज गार्डन ही थी, जहां सिद्धार्थ सपने देखा करता था. सुंदर और रंगीन सपने, बिलकुल वहां लगे फूलों की तरह.

आज इतने सालों के बाद उस जगह में बैठे हुए उसे सिद्धार्थ के होने का अहसास साफ महसूस हो रहा था. वह मानो उस की यादों से बाहर निकल आज उस जगह जारा के बिलकुल पास बैठा हो उस से बात करता हुआ. उस के होने के एहसास भर से उसे 15 सालों की थकान से आराम मिल गया हो. उसे समझ आया कि ऊपर वाले ने उस को सब से बहुमूल्य नजराना दिया था, उस का दोस्त… उस का साथी… सिद्धार्थ… और सिद्धार्थ का नायाब नजराना था उस की आंखें… जातेजाते भी उस ने अपना सब से हट कर, सब से कीमती, सब से प्यारा तोहफा देने का सिलसिला कायम रखा था.

अब तो ऐसा लगता है मानो वो कोई फरिश्ता था, जो दूर कहीं से बस उसे एक नायाब नजराना देने आया था. वो आया… जारा की जिंदगी का अटूट हिस्सा बन गया… और गया तो अपने पीछे जिंदगी में हजारों रंग भर गया… और छोड़ गया वो सपने, जो उस ने देखे थे. जारा उठी और बढ़ चली अपने सिद्धार्थ के सपनों को हासिल करने.

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Writer- सावी मंगला

याद एक ऐसा शब्द, जिसे सोचते ही मन मानो कहीं गुम सा हो जाता है. कितनी अनोखी और अनूठी होती हैं ये यादें. कभी होंठों पर मुसकराहट ले आती हैं तो कभी आंखों को आंसुओं से नवाज देती हैं. कुछ पलों को याद कर हम हंस पड़ते हैं, तो कुछ पलों के जिक्र से ही आंखों से आंसुओं की लड़ी बह जाती है. लेकिन कुछ यादें हमारी जिंदगी में हमारे साए की तरह हमारे साथ हर पल रहती हैं.

यादों के कुछ ऐसे ही भंवर में उलझी जारा जब अपनी बड़ी सी काली गाड़ी से उतरी तो अचानक उस की आंखें डबडबा आईं. उस की आंखों के आगे वो सपने तैरने लगे, जो तकरीबन 15 साल पहले उस ने इस मंदिर जैसे स्कूल में बिताए थे. उस के मन में भावनाओं का बवंडर उठ रहा था. अनचाहे ही वह अतीत की उन गलियों में खोती जा रही थी, जिन से वह 15 साल पहले गुजर चुकी थी.

आज वह उस महरून रंग की इमारत के सामने खड़ी थी, जिस की बड़ी सी दीवार पर एक तरफ बड़ी ही खूबसूरती से लिखा गया था, ‘भारतीय विद्या भवन’ और दूसरी तरफ स्टील से बना उभरा हुआ स्कूल का ‘लोगो’ जड़ा हुआ था.

इमारत के चारों तरफ हरेभरे पेड़पौधे बिलकुल वैसे ही लगे हुए थे जैसे उस ने 15 साल पहले इस स्कूल को छोड़ते समय थे. यहां इस जगह की हवा में ही मानो गुलाब की खुशबू घुली हुई हो.

जारा ने लंबी सांस ली तो ये खुशबू उस के जेहन में घुल गई. जारा को मानो कई सालों बाद ऐसा सुकून मिला हो. लेकिन सुकून के साथ वो तमाम यादें भी उस के जेहन में उतर गईं, जिन्हें भुलाने की वो हजार मरतबा नाकाम कोशिशें कर चुकी थी. अब तो मानो वह हिम्मत ही हार चुकी थी या यों कहो कि समझ चुकी थी कि ये यादें उस का साया बन हमेशा उस के साथ चलती रहेंगी. पर इस बार आसपास के माहौल को समझते हुए उस ने अपनेआप को संभाला और अपनी नीले रंग की चिकन की कढ़ाई वाली साड़ी जिस पर जहीन कारीगरी की गई थी, उसे उस के सब से अजीज दोस्त सिद्धार्थ ने दी थी. ये उस का पसंदीदा रंग था. उसे ठीक करते हुए वह आगे बढ़ी और चलतेचलते स्कूल की दहलीज तक पहुंच गई. अंदर जाते हुए उस ने महसूस किया कि इतने सालों में वहां कुछ भी तो नहीं बदला था. वही खुशबू, वही सजावट और सब से बड़ी बात वही रीतिरिवाज.

ये भी पढ़ें- दंश: सोना भाभी को कौन-सी बीमारी थी?

दरअसल, आज यहां एक अंतर्राष्ट्रीय समारोह था, जिस के मुख्य अतिथि के रूप में जारा को आमंत्रित किया गया था, क्योंकि वह आईपीएस अफसर थी. वैसे तो यह उस के लिए गर्व का समय था, पर आज वह थोड़ी दुखी थी. उसे दुख इस बात का था कि ये सपना जिस का था आज वो ही वहां नहीं था. ये सिद्धार्थ का सपना था, उस सिद्धार्थ का, जिस ने कभी उसे किसी मोड़ पर अकेला नहीं छोड़ा था. जो हमेशा उस का सब से अच्छा दोस्त था. इतना अच्छा कि वक्त आने पर उस के लिए वो किया, जो शायद कोई सगा भी नहीं करता, लेकिन आज वह ही उस के साथ नहीं था.

आज उस दहलीज पर खड़े हुए उस पर फूल बरसाए जा रहे थे और स्कूल की हेड गर्ल द्वारा उस के माथे पर तिलक लगाया जा रहा था, यह देख कर… एक बार फिर वो 25 साल पहले की यादों में गुम हो गई, जब वह भी कभी इस स्कूल की हेड गर्ल हुआ करती थी और बिलकुल इस तरह से ही आईपीएस अफसर को तिलक लगाया करती थी…

उसे याद था कि तब सिद्धार्थ गंभीर स्वर में कहता था, तू देखना एक दिन मैं भी आईपीएस अफसर बनूंगा और मुझे भी ऐसे ही सम्मान दिया जाएगा.

उस ने यह कह तो दिया, पर शायद तकदीर को कुछ और ही मंजूर था…

आज उसे फिर याद आ रहा था कि कैसे वो मस्त, मगन हो कर इस स्कूल में पढ़ने के साथसाथ टेनिस कोर्ट में पूरापूरा दिन खेलती थी और सिद्धार्थ से झगड़ा भी करती थी… पर यहां इस जगह से सिर्फ खुशियों के लम्हे ही नहीं जुड़े थे, बल्कि कुछ ऐसे अंधेरे पल भी थे, जिन्होंने उस की जिंदगी का रुख ही मोड़ दिया.

आज जैसेजैसे वो इस जगह का दौरा कर रही थी, उसे हर मोड़ पर कुछ न कुछ तो याद आ ही जाता. जैसे – कैसे वह हर बार जल्दीजल्दी में उन सीढ़ियों से ऊपर जाती, जिन से जाने के लिए अर्चना मैडम, पीटी टीचर ने मना किया होता था… और कैसे वह 8वीं कक्षा में लंच ब्रेक से पहले ही पीरियड में लास्ट बेंच पर बैठ कर टिफिन खा लिया करती थी.

ये सब सोच कर उस के होंठों पर एक मुसकान तैर गई थी…

लेकिन फिर एक मोड़ ऐसा भी आया, जहां वह स्तब्ध सी खड़ी रही. यह वह मोड़ था, जहां वो लम्हा गुजरा था, जिस ने उस से हमेशाहमेशा के लिए उस का सब से अच्छा दोस्त छीन लेने की तैयारी शुरू कर दी थी. उस की आंखों के आगे उस अंधियारे दिन का दृश्य झिलमिला आया, जब सुबह से ही बादल कड़क रहे थे और चारों तरफ अंधेरा छाया हुआ था… बारिश थी कि थमने का नाम ही नहीं ले रही थी. मां तो ऐसा भयानक मौसम देख कर पहले ही मना कर रही थी, “जारा, आज छुट्टी कर ले…” पर उस ने ही मां को समझा दिया और स्कूल चली गई.

उस दिन हम सब का फेयरवेल था और सब में उत्साह की एक लहर दौड़ रही थी, पर… कौन जानता था कि इस दिन की याद एक काला सच बन कर रह जाएगी…

हम सब स्कूल के औडिटोरियम में थे कि तभी गोली चलने की आवाज कानों में गूंज गई और हाल में भगदड़ मच गई… पर हम ने हिम्मत से फैसला लेने की सोची और शांत हो कर वहीं खड़े रहे. सब डरे हुए थे, पर फोन की लाइट से अंधेरे में रास्ता ढूंढ़ते हुए सब तो किसी तरह बाहर निकल गए, पर खुद मैं ही पीछे… न जाने कैसे मेरा दुपट्टा किसी जगह अटक गया. मैं हड़बड़ा कर उसे निकालने की कोशिश करने लगी, पर अचानक एक गोली चलने की आवाज आई और फिर महसूस हुआ कि वह गोली तो मेरे ही माथे से छू कर गुजर गई थी… एक पल में अंधेरे में भी आंखों के आगे अंधेरा छा गया था.

मैं नहीं जानती कि उस के बाद क्या हुआ… कैसे मैं उस हाल से बाहर निकली… कैसे मैं अस्पताल पहुंची…? बस जानती हूं तो इतना कि जब होश आया तो महसूस हुआ कि मेरी जिंदगी का रुख इस आंधी ने बुरी तरह से मोड़ दिया.

सिद्धार्थ ने मुझे बताया था कि उन गुंडों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था… वो क्यों आए, ये तो उस ने नहीं बताया. ये भी तब बताया था, जब मैं पूरी तरह से होश में नहीं थी… जब होश में आई तो महसूस हुआ कि चारों तरफ अंधेरा था. पहले तो लगा कि वहम है, या सपना है, पर नहीं… यह हकीकत थी… एक कड़वा सच, जिसे वो चाह कर भी अपना नहीं पा रही थी. मैं अपनी आंखों की रोशनी खो बैठी थी… काफी मुश्किलों से उस ने अपने बिखरते अस्तित्व को संभाला था.

लेकिन, कहते हैं न, हर अंधेरी रात अपने साथ नई सुनहरी सुबह भी लाती है… वैसे ही जारा ने भी उम्मीद के साथ अपनेआप को जिंदगी के इस नए ढांचे में ढाल लिया और अपनी कमजोरी को अपनी ताकत बना लिया और बिलकुल सहज तरीके से जीना शुरू कर दिया. उधर उस के मां, पापा और बाकी सभी रिश्तेदारों ने उस के लिए एक ‘डोनर’ की तलाश शुरू कर दी थी… आखिर कब तक वे अपनी लाड़ली बेटी को इस हालत में देखते.

समय कब किसी के लिए रुका था, जो अब रुक जाता. जनवरी से अप्रैल कब निकल गया, किसी को पता ही नहीं चला. पूरे 5 महीने हो गए थे उस हादसे को. अब तो जारा को भी मानो इस अंधेरी रात की आदत सी हो गई थी. उस ने हादसे के बाद भी बोर्ड की परीक्षा अच्छी तरह पूरी मेहनत और लगन के साथ दी थी.

आज 24 अप्रैल था, उस का बर्थडे… एक ऐसा दिन, जब उसे तोहफे में सब का प्यारदुलार और सुंदरसुंदर उपहार मिलते हैं… इस बार भी वह खुश थी… पर कहां जानती थी कि आज ही उस की बेरंग जिंदगी में एक नया मोड़ आने वाला था… आज हमेशा की तरह सिद्धार्थ घर आया. उस के आने की आहट और उस के वही परफ्यूम की महक, जो मेरे आसपास को महका देती थी, जारा को उस के आने का पता चल गया. उस के आने से ही मानो जारा खुश हो गई, क्योंकि उसे पता था कि इस बार भी उस का गिफ्ट सब से हट कर होगा… वो आया और उस के पास बैठ गया.

उस ने उसे बताया कि वो शहर से बाहर थोड़े दिन के लिए कहीं दूर, छुट्टियों पर जाना चाहता था…

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उस की यह बात सुन कर थोड़ी सी हैरानी तो हुई थी उसे, पर फिर सोचा कि 12वीं की परीक्षा है, जिस के बाद थोड़े दिनों के लिए कहीं जा रहा होगा… वो ये सब सोच ही रही थी कि तभी उस ने उस के हाथ में एक लिफाफा पकड़ा दिया और कहा कि इस में बहुत ही कीमती चीज है, जिसे वो उसे सौंप रहा था… लेकिन उस ने उसे वो खोलने नहीं दिया और चुपचाप बिना कुछ कहे ही वहां से चला गया.

जब उस का भाई आया, तो जारा ने उसे वो लिफाफा दिया और खोलने को कहा. उस को खोलने पर पता चला कि उस में एक फोटोफ्रेम था, जिस में उन दोनों के फोटो थे और साथ ही एक चिट्ठी भी थी, जिस में कुछ लिखा था… जिसे पढ़ कर उस की आंखों से आंसुओं की बूंदें लुढ़क आईं. सिद्धार्थ को लास्ट स्टेज कैंसर था और उस का ट्रीटमेंट भी अब नहीं हो सकता था. जातेजाते उस ने अपनी आंखें जारा के नाम कर दी थीं.

ये सब सुन कर उस की आंखें नम हो गईं… वैसे तो उसे खुश होना चाहिए था कि उसे उस की अंधेरी दुनिया में एक बार फिर एक रोशनी की किरण कहीं किसी कोने से आती काले बादलों को हटा रही थी. पर आज वो खुश नहीं, बल्कि दुखी थी इस बात से कि वो कैसे इतनी खुदगर्ज हो गई कि वह उस दोस्त का साथ न दे सकी, जिस ने जिंदगी के हर मोड़ पर उस का साथ दिया था. सिद्धार्थ ने कभी भी उस को ऐसा फील ही नहीं होने दिया कि वह कमजोर है, बल्कि वह तो हमेशा की तरह उस को हिम्मत देता रहा और उसे जिंदगी से डट कर लड़ना सिखाता रहा.

पत्र में उस ने लिखा था, सिर्फ अपनी आंखें ही नहीं, उन से देखे सपने भी तुम्हें सौंप कर जा रहा हूं. अब उन्हें पूरा करना तुम्हारा काम… वह खुद तो चला गया, पर मुझे एक नई जिंदगी दे गया… ऐसी जिंदगी, जिस में रंग भी थे और जीने का एक मकसद भी.

सिद्धार्थ के जाने के बाद मानो मैं ने ठान लिया कि उस के सपने को मैं पूरा कर के ही रहूंगी और शायद इस वजह से ही आज मैं इस मुकाम तक पहुंच पाई थी… सिद्दार्थ का आईपीएस बनने का सपना उस ने पूरा किया. उस की आंखों के सपने को उस ने अपनी मेहनत और लगन से पूरा कर दिखाया था.

जारा इतनी गुम थी उन गलियों में कि उसे पता ही नहीं चला कि कब फंक्शन खत्म हुआ और वह कब अपनी गाड़ी में बैठ गई थी. लेकिन जब होश आया तो वह घर नहीं गई, बल्कि उस गार्डन की ओर चल दी जहां कभी सिद्धार्थ को आना पसंद था.

अपने खत में उस ने यह भी लिखा था कि कहीं कभी जिंदगी के किसी मोड़ पर मेरी याद आए तो आ जाना उस जगह, जहां हवाओं में घुले हों मेरे ख्वाब और जुड़ी हुई हैं हमारी अनगिनत यादें… वो अच्छी तरह समझ गई थी कि वो जगह और कोई नहीं, रोज गार्डन ही थी, जहां सिद्धार्थ सपने देखा करता था. सुंदर और रंगीन सपने, बिलकुल वहां लगे फूलों की तरह.

आज इतने सालों के बाद उस जगह में बैठे हुए उसे सिद्धार्थ के होने का अहसास साफ महसूस हो रहा था. वह मानो उस की यादों से बाहर निकल आज उस जगह जारा के बिलकुल पास बैठा हो उस से बात करता हुआ. उस के होने के एहसास भर से उसे 15 सालों की थकान से आराम मिल गया हो. उसे समझ आया कि ऊपर वाले ने उस को सब से बहुमूल्य नजराना दिया था, उस का दोस्त… उस का साथी… सिद्धार्थ… और सिद्धार्थ का नायाब नजराना था उस की आंखें… जातेजाते भी उस ने अपना सब से हट कर, सब से कीमती, सब से प्यारा तोहफा देने का सिलसिला कायम रखा था.

अब तो ऐसा लगता है मानो वो कोई फरिश्ता था, जो दूर कहीं से बस उसे एक नायाब नजराना देने आया था. वो आया… जारा की जिंदगी का अटूट हिस्सा बन गया… और गया तो अपने पीछे जिंदगी में हजारों रंग भर गया… और छोड़ गया वो सपने, जो उस ने देखे थे. जारा उठी और बढ़ चली अपने सिद्धार्थ के सपनों को हासिल करने.

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March 28, 2022 at 09:00AM

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