Monday 14 March 2022

हत्या-आत्महत्या: ससुराल पहुंचने से पहले क्या हुआ था अनु के साथ?

अनु के विवाह समारोह से उस की विदाई होने के बाद रात को लगभग 2 बजे घर लौटी थी. थकान से सुबह 6 बजे गहरी नींद में थी कि अचानक अनु के घर से, जो मेरे घर के सामने ही था, जोरजोर से विलाप करने की आवाजों से मैं चौंक कर उठ गई. घबराई हुई बालकनी की ओर भागी. उस के घर के बाहर लोगों की भीड़ देख कर किसी अनहोनी की कल्पना कर के मैं स्तब्ध रह गई. रात के कपड़ों में ही मैं बदहवास उस के घर की ओर दौड़ी. ‘अनु… अनु…’ के नाम से मां को विलाप करते देख कर मैं सकते में आ गई.

किसी से कुछ पूछने की हिम्मत नहीं हो रही थी. लेकिन मुझे वहां की स्थिति देख कर समझने में देर नहीं लगी. तो क्या अनु ने वही किया, जिस का मुझे डर था? लेकिन इतनी जल्दी ऐसा करेगी, इस का मुझे अंदेशा नहीं था. कैसे और कहां, यह प्रश्न अनुत्तरित था, लेकिन वास्तविकता तो यह कि अब वह इस दुनिया में नहीं रही. यह बहुत बड़ी त्रासदी थी. अभी उम्र ही क्या थी उस की…? मैं अवाक अपने मुंह पर हाथ रख कर गहन सोच में पड़ गई.

मेरा दिमाग जैसे फटने को हो रहा था. कल दुलहन के वेश में और आज… पलक झपकते ही क्या से क्या हो गया. मैं मन ही मन बुदबुदाई. मेरी रूह अंदर तक कांप गई. वहां रुकने की हिम्मत नहीं हुई और क्यों कर रुकूं… यह घर मेरे लिए उस के बिना बेगाना है. एक वही तो थी, जिस के कारण मेरा इस घर में आनाजाना था, बाकी लोग तो मेरी सूरत भी देखना नहीं चाहते.

मैं घर आ कर तकिए में मुंह छिपा कर खूब रोई. मां ने आ कर मुझे बहुत सांत्वना देने की कोशिश की तो मैं उन से लिपट कर बिलखते हुए बोली, ‘‘मां, सब की माएं आप जैसे क्यों नहीं होतीं? क्यों लोग अपने बच्चों से अधिक समाज को महत्त्व देते हैं? क्यों अपने बच्चों की खुशी से बढ़ कर रिश्तेदारों की प्रतिक्रिया का ध्यान रखते हैं? शादी जैसे व्यक्तिगत मामले में भी क्यों समाज की दखलंदाजी होती है? मांबाप का अपने बच्चों के प्रति यह कैसा प्यार है जो सदियों से चली आ रही मान्यताओं को ढोते रहने के लिए उन के जीवन को भी दांव पर लगाने से नहीं चूकते? कितना प्यार करती थी वह जैकब से? सिर्फ वह क्रिश्चियन है…? प्यार क्या धर्म और जाति देख कर होता है? फिर लड़की एक बार मन से जिस के साथ जुड़ जाती है, कैसे किसी दूसरे को पति के रूप में स्वीकार करे?’’ रोतेरोते मन का सारा आक्रोश अपनी मां के सामने उगल कर मैं थक कर उन के कंधे पर सिर रख कर थोड़ी देर के लिए मौन हो गई.

ये भी पढ़ें- वक्त का पहिया: सेजल खुद पर ही क्यों शक करने लगी?

पड़ोसी फर्ज निभाने के लिए मैं अपनी मां के साथ अनु के घर गई. वहां लोगों की खुसरफुसर से ज्ञात हुआ कि विदा होने के बाद गाड़ी में बैठते ही अनु ने जहर खा लिया और एक ओर लुढ़क गई तो दूल्हे ने सोचा कि वह थक कर सो गई होगी. संकोचवश उस ने उसे उठाया नहीं और जब कार दूल्हे के घर के दरवाजे पर पहुंची तो सास तथा अन्य महिलाएं उस की आगवानी के लिए आगे बढ़ीं. जैसे ही सास ने उसे गाड़ी से उतारने के लिए उस का कंधा पकड़ा उन की चीख निकल गई. वहां दुलहन की जगह उस की अकड़ी हुई लाश थी. मुंह से झाग निकल रहा था.

चीख सुन कर सभी लोग दौड़े आए और दुलहन को देख कर सन्न रह गए.

दहेज से लदा ट्रक भी साथसाथ पहुंचा. लेकिन वर पक्ष वाले भले मानस थे, उन्होंने सोचा कि जब बहू ही नहीं रही तो उस सामान का वे क्या करेंगे? इसलिए उसी समय ट्रक को अनु के घर वापस भेज दिया. उन के घर में खुशी की जगह मातम फैल गया. अनु के घर दुखद खबर भिजवा कर उस का अंतिम संस्कार अपने घर पर ही किया. अनु के मातापिता ने अपना सिर पीट लिया, लेकन अब पछताए होत क्या, जब चिडि़यां चुग गई खेत.

एक बेटी समाज की आधारहीन परंपराओं के तहत तथा उन का अंधा अनुकरण करने वाले मातापिता की सोच के लिए बली चढ़ गई. जीवन हार गया, परंपराएं जीत गईं.

अनु मेरे बचपन की सहेली थी. एक साथ स्कूल और कालेज में पढ़ी, लेकिन जैसे ही उस के मातापिता को ज्ञात हुआ कि मैं किसी विजातीय लड़के से प्रेम विवाह करने वाली हूं, उन्होंने सख्ती से उस पर मेरे से मिलने पर पाबंदी लगाने की कोशिश की, लेकिनउस ने मुझ से मिलनेजुलने पर मांबाप की पाबंदी को दृढ़ता से नकार दिया. उन्हें क्या पता था कि उन की बटी भी अपने सहपाठी, ईसाई लड़के जैकब को दिल दे बैठी है. उन के सच्चे प्यार की साक्षी मुझ से अधिक और कौन होगा? उसे अपने मातापिता की मानसिकता अच्छी तरह पता थी. अकसर कहती थी, ‘‘प्रांजलि, काश मेरी मां की सोच तुम्हारी मां जैसे होती. मुझे एक बात समझ में नहीं आती कि मातापिता हमें अपनी सोच की जंजीरों में क्यों बांधना चाहते हैं. तो फिर हमें खुले आसमान में विचरने ही क्यों देते हैं? क्यों हमें ईसाई स्कूल में पढ़ाते हैं? क्यों नहीं पहले के जमाने के अनुसार हमारे पंख कतर कर घर में कैद कर लेते हैं? समय के अनुसार इन की सोच क्यों नहीं बदलती? ’’

मैं उस के तर्क सुन कर शब्दहीन हो जाती और सोचती काश मैं उस के मातापिता को समझा पाती कि उन की बेटी किसी अन्य पुरुष को वर के रूप में स्वीकार कर ही नहीं पाएगी, उन्हें बेटी चाहिए या सामाजिक प्रतिष्ठा, लेकिन उन्होंने मुझे इस अधिकार से वंचित कर दिया था.

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अनु एक बहुत ही संवेदनशील और हठी लड़की थी. जैकब भी पढ़ालिखा और उदार विचारों वाला युवक था. उस के मातापिता भी समझदार और धर्म के पाखंडों से दूर थे. वे अपने इकलौते बेटे को बहुत प्यार करते थे और उस की खुशी उन के लिए सर्वोपरि थी. मैं ने अनु को कई बार समझाया कि बालिग होने के बाद वह अपने मातापिता के विरुद्ध कोर्ट में जा कर भी रजिस्टर्ड विवाह कर सकती है, लेकिन उस का हमेशा एक ही उत्तर होता कि नहीं रे, तुझे पता नहीं हमारी बिरादरी का, मैं अपने लिए जैकब का जीवन खतरे में नहीं डाल सकती… इतना कह कर वह गहरी उदासी में डूब जाती.

मैं उस की कुछ भी मदद न करने में अपने को असहाय पा कर बहुत व्यथित होती. लेकिन मैं ने जैकब और उस के परिवार वालों से कहा कि उस के मातापिता से मिल कर उन्हें समझाएं, शायद उन्हें समझ में आ जाए,

लेकिन इस में भी अनु के घर वालों को मेरे द्वारा रची गई साजिश की बू आई, इसलिए उन्होंने उन्हें बहुत अपमानित किया और उन के जाने के बाद अनु को मेरा नाम ले कर खूब प्रताडि़त किया. इस के बावजूद जैकब बारबार उस के घर गया और अपने प्यार की दुहाई दी. यहां तक कि उन के पैरों पर गिर कर गिड़गिड़ाया भी, लेकिन उन का पत्थर दिल नहीं पिघला और उस की परिणति आज इतनी भयानक… एक कली खिलने से पहले ही मुरझा गई. मातापिता को तो उन के किए का दंड मिला, लेकिन मुझे अपनी प्यारी सखी को खोने का दंश बिना किसी गलती के जीवनभर झेलना पड़ेगा.

ये भी पढ़ें- तलाक के बाद: क्या समीर उसकी गलतियों को माफ कर पाया

लोग अपने स्वार्थवश कि उन की समाज में प्रतिष्ठा बढ़ेगी, बुढ़ापे का सहारा बनेगा और दैहिक सुख के परिणामस्वरूप बच्चा पैदा करते हैं और पैदा होने के बाद उसे स्वअर्जित संपत्ति मान कर उस के जीवन के हर क्षेत्र के निर्णय की डोर अपने हाथ में रखना चाहते हैं, जैसे कि वह हाड़मांस का न बना हो कर बेजान पुतली है. यह कैसी मानसिकता है उन की?

कैसी खोखली सोच है कि वे जो भी करते हैं, अपने बच्चों की भलाई के लिए करते हैं? ऐसी भलाई किस काम की, जो बच्चों के जीवन से खुशी ही छीन ले. वे उन की इस सोच से तालमेल नहीं बैठा पाते और बिना पतवार की नाव के समान अवसाद के भंवर में डूब कर जीवन ही नष्ट कर लेते हैं, जिसे हम आत्महत्या कहते हैं, लेकिन इसे हत्या कहें तो अधिक सार्थक होगा. अनु की हत्या की थी, मातापिता और उन के खोखले समाज ने.

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अनु के विवाह समारोह से उस की विदाई होने के बाद रात को लगभग 2 बजे घर लौटी थी. थकान से सुबह 6 बजे गहरी नींद में थी कि अचानक अनु के घर से, जो मेरे घर के सामने ही था, जोरजोर से विलाप करने की आवाजों से मैं चौंक कर उठ गई. घबराई हुई बालकनी की ओर भागी. उस के घर के बाहर लोगों की भीड़ देख कर किसी अनहोनी की कल्पना कर के मैं स्तब्ध रह गई. रात के कपड़ों में ही मैं बदहवास उस के घर की ओर दौड़ी. ‘अनु… अनु…’ के नाम से मां को विलाप करते देख कर मैं सकते में आ गई.

किसी से कुछ पूछने की हिम्मत नहीं हो रही थी. लेकिन मुझे वहां की स्थिति देख कर समझने में देर नहीं लगी. तो क्या अनु ने वही किया, जिस का मुझे डर था? लेकिन इतनी जल्दी ऐसा करेगी, इस का मुझे अंदेशा नहीं था. कैसे और कहां, यह प्रश्न अनुत्तरित था, लेकिन वास्तविकता तो यह कि अब वह इस दुनिया में नहीं रही. यह बहुत बड़ी त्रासदी थी. अभी उम्र ही क्या थी उस की…? मैं अवाक अपने मुंह पर हाथ रख कर गहन सोच में पड़ गई.

मेरा दिमाग जैसे फटने को हो रहा था. कल दुलहन के वेश में और आज… पलक झपकते ही क्या से क्या हो गया. मैं मन ही मन बुदबुदाई. मेरी रूह अंदर तक कांप गई. वहां रुकने की हिम्मत नहीं हुई और क्यों कर रुकूं… यह घर मेरे लिए उस के बिना बेगाना है. एक वही तो थी, जिस के कारण मेरा इस घर में आनाजाना था, बाकी लोग तो मेरी सूरत भी देखना नहीं चाहते.

मैं घर आ कर तकिए में मुंह छिपा कर खूब रोई. मां ने आ कर मुझे बहुत सांत्वना देने की कोशिश की तो मैं उन से लिपट कर बिलखते हुए बोली, ‘‘मां, सब की माएं आप जैसे क्यों नहीं होतीं? क्यों लोग अपने बच्चों से अधिक समाज को महत्त्व देते हैं? क्यों अपने बच्चों की खुशी से बढ़ कर रिश्तेदारों की प्रतिक्रिया का ध्यान रखते हैं? शादी जैसे व्यक्तिगत मामले में भी क्यों समाज की दखलंदाजी होती है? मांबाप का अपने बच्चों के प्रति यह कैसा प्यार है जो सदियों से चली आ रही मान्यताओं को ढोते रहने के लिए उन के जीवन को भी दांव पर लगाने से नहीं चूकते? कितना प्यार करती थी वह जैकब से? सिर्फ वह क्रिश्चियन है…? प्यार क्या धर्म और जाति देख कर होता है? फिर लड़की एक बार मन से जिस के साथ जुड़ जाती है, कैसे किसी दूसरे को पति के रूप में स्वीकार करे?’’ रोतेरोते मन का सारा आक्रोश अपनी मां के सामने उगल कर मैं थक कर उन के कंधे पर सिर रख कर थोड़ी देर के लिए मौन हो गई.

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पड़ोसी फर्ज निभाने के लिए मैं अपनी मां के साथ अनु के घर गई. वहां लोगों की खुसरफुसर से ज्ञात हुआ कि विदा होने के बाद गाड़ी में बैठते ही अनु ने जहर खा लिया और एक ओर लुढ़क गई तो दूल्हे ने सोचा कि वह थक कर सो गई होगी. संकोचवश उस ने उसे उठाया नहीं और जब कार दूल्हे के घर के दरवाजे पर पहुंची तो सास तथा अन्य महिलाएं उस की आगवानी के लिए आगे बढ़ीं. जैसे ही सास ने उसे गाड़ी से उतारने के लिए उस का कंधा पकड़ा उन की चीख निकल गई. वहां दुलहन की जगह उस की अकड़ी हुई लाश थी. मुंह से झाग निकल रहा था.

चीख सुन कर सभी लोग दौड़े आए और दुलहन को देख कर सन्न रह गए.

दहेज से लदा ट्रक भी साथसाथ पहुंचा. लेकिन वर पक्ष वाले भले मानस थे, उन्होंने सोचा कि जब बहू ही नहीं रही तो उस सामान का वे क्या करेंगे? इसलिए उसी समय ट्रक को अनु के घर वापस भेज दिया. उन के घर में खुशी की जगह मातम फैल गया. अनु के घर दुखद खबर भिजवा कर उस का अंतिम संस्कार अपने घर पर ही किया. अनु के मातापिता ने अपना सिर पीट लिया, लेकन अब पछताए होत क्या, जब चिडि़यां चुग गई खेत.

एक बेटी समाज की आधारहीन परंपराओं के तहत तथा उन का अंधा अनुकरण करने वाले मातापिता की सोच के लिए बली चढ़ गई. जीवन हार गया, परंपराएं जीत गईं.

अनु मेरे बचपन की सहेली थी. एक साथ स्कूल और कालेज में पढ़ी, लेकिन जैसे ही उस के मातापिता को ज्ञात हुआ कि मैं किसी विजातीय लड़के से प्रेम विवाह करने वाली हूं, उन्होंने सख्ती से उस पर मेरे से मिलने पर पाबंदी लगाने की कोशिश की, लेकिनउस ने मुझ से मिलनेजुलने पर मांबाप की पाबंदी को दृढ़ता से नकार दिया. उन्हें क्या पता था कि उन की बटी भी अपने सहपाठी, ईसाई लड़के जैकब को दिल दे बैठी है. उन के सच्चे प्यार की साक्षी मुझ से अधिक और कौन होगा? उसे अपने मातापिता की मानसिकता अच्छी तरह पता थी. अकसर कहती थी, ‘‘प्रांजलि, काश मेरी मां की सोच तुम्हारी मां जैसे होती. मुझे एक बात समझ में नहीं आती कि मातापिता हमें अपनी सोच की जंजीरों में क्यों बांधना चाहते हैं. तो फिर हमें खुले आसमान में विचरने ही क्यों देते हैं? क्यों हमें ईसाई स्कूल में पढ़ाते हैं? क्यों नहीं पहले के जमाने के अनुसार हमारे पंख कतर कर घर में कैद कर लेते हैं? समय के अनुसार इन की सोच क्यों नहीं बदलती? ’’

मैं उस के तर्क सुन कर शब्दहीन हो जाती और सोचती काश मैं उस के मातापिता को समझा पाती कि उन की बेटी किसी अन्य पुरुष को वर के रूप में स्वीकार कर ही नहीं पाएगी, उन्हें बेटी चाहिए या सामाजिक प्रतिष्ठा, लेकिन उन्होंने मुझे इस अधिकार से वंचित कर दिया था.

ये भी पढ़ें- खलनायक: क्या हो पाई कविता और गौरव की शादी?

अनु एक बहुत ही संवेदनशील और हठी लड़की थी. जैकब भी पढ़ालिखा और उदार विचारों वाला युवक था. उस के मातापिता भी समझदार और धर्म के पाखंडों से दूर थे. वे अपने इकलौते बेटे को बहुत प्यार करते थे और उस की खुशी उन के लिए सर्वोपरि थी. मैं ने अनु को कई बार समझाया कि बालिग होने के बाद वह अपने मातापिता के विरुद्ध कोर्ट में जा कर भी रजिस्टर्ड विवाह कर सकती है, लेकिन उस का हमेशा एक ही उत्तर होता कि नहीं रे, तुझे पता नहीं हमारी बिरादरी का, मैं अपने लिए जैकब का जीवन खतरे में नहीं डाल सकती… इतना कह कर वह गहरी उदासी में डूब जाती.

मैं उस की कुछ भी मदद न करने में अपने को असहाय पा कर बहुत व्यथित होती. लेकिन मैं ने जैकब और उस के परिवार वालों से कहा कि उस के मातापिता से मिल कर उन्हें समझाएं, शायद उन्हें समझ में आ जाए,

लेकिन इस में भी अनु के घर वालों को मेरे द्वारा रची गई साजिश की बू आई, इसलिए उन्होंने उन्हें बहुत अपमानित किया और उन के जाने के बाद अनु को मेरा नाम ले कर खूब प्रताडि़त किया. इस के बावजूद जैकब बारबार उस के घर गया और अपने प्यार की दुहाई दी. यहां तक कि उन के पैरों पर गिर कर गिड़गिड़ाया भी, लेकिन उन का पत्थर दिल नहीं पिघला और उस की परिणति आज इतनी भयानक… एक कली खिलने से पहले ही मुरझा गई. मातापिता को तो उन के किए का दंड मिला, लेकिन मुझे अपनी प्यारी सखी को खोने का दंश बिना किसी गलती के जीवनभर झेलना पड़ेगा.

ये भी पढ़ें- तलाक के बाद: क्या समीर उसकी गलतियों को माफ कर पाया

लोग अपने स्वार्थवश कि उन की समाज में प्रतिष्ठा बढ़ेगी, बुढ़ापे का सहारा बनेगा और दैहिक सुख के परिणामस्वरूप बच्चा पैदा करते हैं और पैदा होने के बाद उसे स्वअर्जित संपत्ति मान कर उस के जीवन के हर क्षेत्र के निर्णय की डोर अपने हाथ में रखना चाहते हैं, जैसे कि वह हाड़मांस का न बना हो कर बेजान पुतली है. यह कैसी मानसिकता है उन की?

कैसी खोखली सोच है कि वे जो भी करते हैं, अपने बच्चों की भलाई के लिए करते हैं? ऐसी भलाई किस काम की, जो बच्चों के जीवन से खुशी ही छीन ले. वे उन की इस सोच से तालमेल नहीं बैठा पाते और बिना पतवार की नाव के समान अवसाद के भंवर में डूब कर जीवन ही नष्ट कर लेते हैं, जिसे हम आत्महत्या कहते हैं, लेकिन इसे हत्या कहें तो अधिक सार्थक होगा. अनु की हत्या की थी, मातापिता और उन के खोखले समाज ने.

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March 14, 2022 at 09:07AM

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