Wednesday 30 March 2022

प्रीत किए दुख होए: भाग 1

नंदीग्राम खगडि़या जिले का एक कसबा था, जो वहां से महज 10 किलोमीटर ही दूर था. कहलाता तो वह दलित बस्ती इलाका था, लेकिन वहां के सारे दलित ब्राह्मणों को ‘बाबू लोग’ पुकारते थे. इक्कादुक्का घर राजपूतों के भी थे.

आबादी में ज्यादा होने के बावजूद वहां के दलितों को ‘बाबू लोगों’ ने हड़प नीति का इस्तेमाल कर सब की जरजमीन छीन कर गांव छोड़ने पर मजबूर कर दिया था. वहां 2 घर बचे थे, जो भूमिहीन व गरीब थे. वे लोग किसी के सहारे पलते थे. इन्हीं 2 घरों में से एक घर में जैसे कीचड़ में कमल खिल गया था.

झुग्गीझोंपड़ी योजना के तहत वहां पुराना स्कूल था, जिस में ज्यादातर ‘बाबू लोगों’ के बच्चे ही पढ़ा करते थे. दलितों के लड़के रहे ही कहां, जो स्कूल में दिखते. बस, एकमात्र काजल थी, जो दलित तबके से आती थी.

हालांकि सभी लड़के काजल से अलग बैठते थे, लेकिन एक ब्राह्मण छात्र सुंदर था, जो उस के एकाकीपन का साथी बन गया था, इसलिए सुंदर से भी सब चिढ़ते थे. एक ब्राह्मण का लड़का दलित लड़की से नजदीकियां बनाए, यह किसी को गवारा न था.

काजल दलित जरूर थी, लेकिन खूबसूरती में बेजोड़ सुंदर. उस की इसी खूबसूरती का मुरीद था सुंदर.

स्कूल से विदाई का दिन आ गया. अब यहां से निकल कर छात्रों को मध्य विद्यालय में दाखिला लेना था. काजल अच्छे नंबरों से पास हुई थी.

‘‘काजल, आगे कहां पढ़ोगी? बाबा तो मुझे शहर भेजने पर तुले हैं… खगडि़या,’’ सुंदर ने कहा.

‘‘मैं…? मैं कैसे जा सकती हूं शहर? मेरी मां अकेली हैं. वैसे, गांव से बाहर एक किलोमीटर दूर है मध्य विद्यालय. मैं वहीं दाखिला लूंगी और रोज आनाजाना करूंगी.’’

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‘‘सोचा तो मैं ने भी यही था, लेकिन बाबा का सपना है मुझे हाकिम बनाने का.

‘‘चल न तू भी शहर? मैं मनाऊंगा चाची को…’’ सुंदर ने कहा, ‘‘मेरा वहां अकेले मन नहीं लगेगा.’’

‘‘तो मैं क्या करूं? हो सकता है कि मेरी पढ़ाई भी छूट जाए. मैं गरीब भी हूं और मां मुझे बेहद प्यार करती हैं. वे मुझे दूर नहीं जाने देंगी,’’ काजल ने भोलेपन से कहा.

‘‘तो मेरी भी पढ़ाई छूट जाएगी…’’ सुंदर बोला, ‘‘मैं मर जाऊं तभी तेरा साथ छूटेगा.’’

‘‘मरे तेरे दुश्मन. मैं तो लड़की हूं… चूल्हाचक्की के लिए पढ़ाई करना जरूरी नहीं है. लेकिन तुम्हें तो पढ़ाई करनी ही पड़ेगी. हाकिम न बन सके तो शादी न होगी. बच्चे होंगे तो उन को भूखा मारोगे क्या? कमाई तो करनी ही पड़ेगी…’’ काजल ने कहा, ‘‘कहीं बाबागीरी न करनी पड़ जाए…’’

‘‘अरी मेरी दादी…’’ कहते हुए सुंदर ने उस के कान उमेठ दिए, ‘‘तू मुझे मेरी जन्मपत्री बता रही है क्या? आखिर मेरे बाबा की पूजापाठ, कथावाचन और शादीश्राद्ध की रोजरोज की आमदनी कहां जाएगी?’’

‘‘उई बाबा…’’ कह कर काजल वहां से भाग गई. सुंदर वहां ठगा सा खड़ा रह गया. स्कूल के और भी बच्चे थे. एक तगड़ा लड़का भी था, जो सरपंच का बेटा था. वह सुंदर से जलता था.

‘‘वह उड़नपरी है, उड़नपरी. वह किसी की नहीं होती. उस पर भी वह दलित है. कानून जानता है क्या? अंदर हो जाओगे और बाबाजी की जन्मपत्री, लगनपत्री, मरणपत्री सब की सब छिन जाएगी,’’ उस लड़के ने सुंदर की हंसी उड़ाई.

‘‘चल भाग यहां से. अपना चेहरा देख. काजल तो क्या, कोई काली भैंस भी तुझे घास नहीं डालेगी,’’ सुंदर ने जवाब दिया.

‘‘अच्छा, तो तुझे अपने चेहरे पर घमंड है?’’

शुरू हो गई दोनों में उठापटक. तगड़े लड़के ने सचमुच सुंदर का चेहरा भद्दा कर दिया. काजल को मालूम हुआ, तो दौड़ कर देखने आई और हिम्मत देने के बजाय हंसी उड़ा दी, ‘‘वाह, नाम सुंदर, मुंह छछूंदर?’’

सुंदर ने गुस्से में दौड़ कर उसे पकड़ा और कहा, ‘‘काजल, तुम भी… ठीक है, अब मैं शहर जाऊंगा और तुझे एकदम भूल जाऊंगा.

‘‘देखना, मैं हाकिम बन कर ही आऊंगा,’’ दुखी हो कर सुंदर अपने घर की ओर चल दिया.

यह सुन कर काजल भी रो पड़ी, ‘‘ऐसा मत करना सुंदर. एक तेरा ही तो सहारा है मुझे.’’ लेकिन, सुंदर ने उस का कहा नहीं सुना और अपने घर चला गया.

पंडित रमाकांत को जब सब मालूम हो गया, तो उन्होंने भी सुंदर को खूब पीटा, ‘‘एक तो दलित लड़की है, दूसरे तुम ब्राह्मण. क्या होगा बिरादरी में मेरा? कम से कम मुझ पर तो रहम कर. आखिर उम्र ही क्या है तेरी? ठहर, तेरे मामा को फोन करता हूं. वह तुझे ले जाएगा और मारमार कर हाकिम बनाएगा.’’

सुंदर को भी उस मामा के बारे में मालूम था कि वे काफी बेरहम हैं. उन की अब तक 2 बीवियां भाग चुकी हैं.

‘‘नहीं बाबा, नहीं. मुझे कहीं और भेज दो, पर मैं वहां नहीं जाऊंगा,’’ कह कर सुंदर रो पड़ा.

‘‘अरे, चुप हो जा. मैं समझ गया सबकुछ. अच्छा है… जब 2-4 थप्पड़ रोज पड़ेंगे न, तो भाग जाएगा काजल के इश्क का भूत,’’ उन्होंने सचमुच ही उसी रात फोन कर के अगले दिन उस के मामा को बुलवा लिया.

‘‘तुम बेफिक्र रहो. इसे मैं अच्छे स्कूल में पढ़ाऊंगा और खुद निगरानी करूंगा,’’ मामा ने सुंदर की मां से कहा.

‘‘देखना भैया, बच्चा कोमल है. मारना मत. और हां, पंडितजी की इसे हाकिम बनाने की इच्छा है,’’ मां ने हाथ जोड़ कर कहा.

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‘‘बनेगाबनेगा हाकिम, कैसे नहीं बनेगा. सुनी नहीं है वह कहावत कि मारमार कर हाकिम बनाना,’’ इतना कह कर मामा खुद रिकशा लेने चले गए और तुरंत ही रिकशा ले कर आ भी गए.

सामान रिकशे में रखा और मामाभांजे दोनों चल पड़े खगडि़या स्टेशन.

रास्ते में ही काजल का घर था. ‘काजल माफ करना. तेरा दिल दुखा कर मैं ने अच्छा नहीं किया. तुझे कभी नहीं भूलूंगा काजल,’ इतना सोचते ही सुंदर रो पड़ा.

‘‘चुप हो जा… नई दुलहन की तरह रो रहा है… पड़ेगा एक थप्पड़,’’ मामा ने लताड़ा.

सुंदर एकदम चुप. मामा ऐसे मूंछें ऐंठ रहे थे, जैसे सीताहरण के दौरान रावण ने सीता के रोने पर तेज हंसी के साथ मूंछें ऐंठी थीं.

गाड़ी मिली, चली और उतर गए बेगुसराय. फिर वहां से 10 किलोमीटर सवारी गाड़ी से और 5 किलोमीटर आगे मैदान बौराही, जहां न तो कोई स्कूल था, न ही कालेज.

काजल को जैसे ही पता चला कि सुंदर वाकई शहर चला गया है तो वह भी रो पड़ी और दौड़ कर मां का आंचल खींच कर ठुनकने लगी, ‘‘सुंदर शहर चला गया मां. मैं भी शहर में पढ़ूंगी.’’

‘‘अरी बावली, वे बाबू लोग हैं और तुम ठहरी दलित. फिर शहर जाने के लिए पैसे कहां हैं बेटी?’’ मां ने काजल को बड़े ही प्यार से समझाया.

‘‘मां, अब सुंदर पढ़लिख कर कब आएगा? मैं ने उस की हंसी उड़ाई थी. शायद वह मुझ से रूठ कर चला गया है,’’ काजल की आंखों से टपकते आंसू उस के कोमल गालों पर लकीर बनाने लगे.

‘‘बेटी, अगर तुम उस से लगाव रखती हो तो तुझे आंसू नहीं बहाने चाहिए. हंस कर दुआ करनी चाहिए कि वह पढ़लिख कर हाकिम बन कर ही तुझ से मिले,’’ मां ने आंचल से उस के आंसू पोंछते हुए कहा, ‘‘क्या मालूम, कल वह हाकिम बन कर अंगरेजी में बातें करेगा. समझोगी तुम?

‘‘अच्छा है कि तुम इस गांव में ही मन लगा कर पढ़ो. हाकिम तो गांव में भी पढ़ कर हुए हैं लोग. हमारे पहले राष्ट्रपति राजेंद्र बाबू, प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और दूसरे कई शख्स हैं, जिन्होंने गांव में ही पढ़ाई की थी. कल चलना, हैडमास्टर सर से कह कर स्कूल में दाखिला करा दूंगी.’’

काजल समझ गई और चहकते हुएबोली, ‘‘हां मां, मैं उसे दिखा दूंगी कि बड़ा बनने के लिए शहर में ही नहीं, बल्कि गांव में भी पढ़ाई की जा सकती है. शहर या वहां के स्कूल नहीं पढ़ते, पढ़ते हैं छात्र, जो गांव में भी होते हैं.’’

‘‘मेरी अच्छी बेटी,’’ इतना कह कर मां ने उस का मुंह चूम लिया.

दूसरे दिन ही मां ने काजल का दाखिला गांव के ही मिडिल स्कूल में करा दिया. उसे यह सुन कर और भी खुशी हुई कि मुफ्त में ड्रैस, किताबें और कौपियां  मिलेंगी.

‘‘साइकिल भी दूंगा… अगर मन से पढ़ेगी तो… साइकिल चलाना आता है न तुझे?’’ हैडमास्टर सर ने पूछा.

‘‘साइकिल भी चलाना सीख लूंगी,’’ काजल ने पूछा.

‘‘गुड गर्ल… कल से तुम स्कूल आना शुरू कर दो.’’

‘‘जी सर,’’ इतना कह कर काजल अपनी मां के साथ घर चली आई.

इधर सुंदर को मामा के घर गए महीनों बीत गए. सुंदर की मां ने फोन किया तो सुंदर के मामा बबलू ने कहा, ‘‘हांहां, खूब मन लगा कर पढ़ रहा है वह. बगैर हाकिम बनाए इसे

छोड़ूंगा क्या? पटना से ले कर दिल्ली तक के नेताओं का झोला टांगा है, अटैची ढोई है. वह सब कब काम आएगा?’’

सुंदर चूल्हा फूंक रहा था. दौड़ादौड़ा वह वहां आया और बोला, ‘‘मामा, मां से मेरी भी बात करा दो. कई दिन पहले उन्हें मैं ने अपने सपने में देखा था.’’

‘‘जब देख ही लिया था तो बातें क्यों न कर लीं? चल भाग. ऐसा जोर का घूंसा दूंगा कि तेरी बत्तीसी बाहर निकल जाएगी,’’ मामा बबलू बिगड़ गए.

सुंदर रो पड़ा और रोतेरोते ही फिर चूल्हा फूंकने लगा.

बाहर बंगले पर बबलू गए, तो सुंदर ने दौड़ कर फोन का चोगा उठा लिया. अब लगाए तो कौन नंबर? घर में तो फोन है नहीं.

मां हाट आई होंगी और एसटीडी से बातें की होंगी. वह ठगा सा चोगा रख कर रो पड़ा, ‘मुझे कहां फंसा दिया बाबा? यहां जब कोई स्कूल ही नहीं है, तो पढ़ूंगा क्या खाक?

‘दिनरात मामा की तीमारदारी करनी पड़ती है. घर से लाई किताबें भी खोलने नहीं देते. यह मामा नहीं कंस है, कंस…

‘मैं ने काजल को भी धोखा दिया है. यह सब मुझे उसी की सजा मिल रही है. बाबा, अपने बच्चे की खुशी क्यों नहीं देखी गई आप से?’ सोच कर सुंदर और भी उदास हो गया.

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नंदीग्राम खगडि़या जिले का एक कसबा था, जो वहां से महज 10 किलोमीटर ही दूर था. कहलाता तो वह दलित बस्ती इलाका था, लेकिन वहां के सारे दलित ब्राह्मणों को ‘बाबू लोग’ पुकारते थे. इक्कादुक्का घर राजपूतों के भी थे.

आबादी में ज्यादा होने के बावजूद वहां के दलितों को ‘बाबू लोगों’ ने हड़प नीति का इस्तेमाल कर सब की जरजमीन छीन कर गांव छोड़ने पर मजबूर कर दिया था. वहां 2 घर बचे थे, जो भूमिहीन व गरीब थे. वे लोग किसी के सहारे पलते थे. इन्हीं 2 घरों में से एक घर में जैसे कीचड़ में कमल खिल गया था.

झुग्गीझोंपड़ी योजना के तहत वहां पुराना स्कूल था, जिस में ज्यादातर ‘बाबू लोगों’ के बच्चे ही पढ़ा करते थे. दलितों के लड़के रहे ही कहां, जो स्कूल में दिखते. बस, एकमात्र काजल थी, जो दलित तबके से आती थी.

हालांकि सभी लड़के काजल से अलग बैठते थे, लेकिन एक ब्राह्मण छात्र सुंदर था, जो उस के एकाकीपन का साथी बन गया था, इसलिए सुंदर से भी सब चिढ़ते थे. एक ब्राह्मण का लड़का दलित लड़की से नजदीकियां बनाए, यह किसी को गवारा न था.

काजल दलित जरूर थी, लेकिन खूबसूरती में बेजोड़ सुंदर. उस की इसी खूबसूरती का मुरीद था सुंदर.

स्कूल से विदाई का दिन आ गया. अब यहां से निकल कर छात्रों को मध्य विद्यालय में दाखिला लेना था. काजल अच्छे नंबरों से पास हुई थी.

‘‘काजल, आगे कहां पढ़ोगी? बाबा तो मुझे शहर भेजने पर तुले हैं… खगडि़या,’’ सुंदर ने कहा.

‘‘मैं…? मैं कैसे जा सकती हूं शहर? मेरी मां अकेली हैं. वैसे, गांव से बाहर एक किलोमीटर दूर है मध्य विद्यालय. मैं वहीं दाखिला लूंगी और रोज आनाजाना करूंगी.’’

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‘‘सोचा तो मैं ने भी यही था, लेकिन बाबा का सपना है मुझे हाकिम बनाने का.

‘‘चल न तू भी शहर? मैं मनाऊंगा चाची को…’’ सुंदर ने कहा, ‘‘मेरा वहां अकेले मन नहीं लगेगा.’’

‘‘तो मैं क्या करूं? हो सकता है कि मेरी पढ़ाई भी छूट जाए. मैं गरीब भी हूं और मां मुझे बेहद प्यार करती हैं. वे मुझे दूर नहीं जाने देंगी,’’ काजल ने भोलेपन से कहा.

‘‘तो मेरी भी पढ़ाई छूट जाएगी…’’ सुंदर बोला, ‘‘मैं मर जाऊं तभी तेरा साथ छूटेगा.’’

‘‘मरे तेरे दुश्मन. मैं तो लड़की हूं… चूल्हाचक्की के लिए पढ़ाई करना जरूरी नहीं है. लेकिन तुम्हें तो पढ़ाई करनी ही पड़ेगी. हाकिम न बन सके तो शादी न होगी. बच्चे होंगे तो उन को भूखा मारोगे क्या? कमाई तो करनी ही पड़ेगी…’’ काजल ने कहा, ‘‘कहीं बाबागीरी न करनी पड़ जाए…’’

‘‘अरी मेरी दादी…’’ कहते हुए सुंदर ने उस के कान उमेठ दिए, ‘‘तू मुझे मेरी जन्मपत्री बता रही है क्या? आखिर मेरे बाबा की पूजापाठ, कथावाचन और शादीश्राद्ध की रोजरोज की आमदनी कहां जाएगी?’’

‘‘उई बाबा…’’ कह कर काजल वहां से भाग गई. सुंदर वहां ठगा सा खड़ा रह गया. स्कूल के और भी बच्चे थे. एक तगड़ा लड़का भी था, जो सरपंच का बेटा था. वह सुंदर से जलता था.

‘‘वह उड़नपरी है, उड़नपरी. वह किसी की नहीं होती. उस पर भी वह दलित है. कानून जानता है क्या? अंदर हो जाओगे और बाबाजी की जन्मपत्री, लगनपत्री, मरणपत्री सब की सब छिन जाएगी,’’ उस लड़के ने सुंदर की हंसी उड़ाई.

‘‘चल भाग यहां से. अपना चेहरा देख. काजल तो क्या, कोई काली भैंस भी तुझे घास नहीं डालेगी,’’ सुंदर ने जवाब दिया.

‘‘अच्छा, तो तुझे अपने चेहरे पर घमंड है?’’

शुरू हो गई दोनों में उठापटक. तगड़े लड़के ने सचमुच सुंदर का चेहरा भद्दा कर दिया. काजल को मालूम हुआ, तो दौड़ कर देखने आई और हिम्मत देने के बजाय हंसी उड़ा दी, ‘‘वाह, नाम सुंदर, मुंह छछूंदर?’’

सुंदर ने गुस्से में दौड़ कर उसे पकड़ा और कहा, ‘‘काजल, तुम भी… ठीक है, अब मैं शहर जाऊंगा और तुझे एकदम भूल जाऊंगा.

‘‘देखना, मैं हाकिम बन कर ही आऊंगा,’’ दुखी हो कर सुंदर अपने घर की ओर चल दिया.

यह सुन कर काजल भी रो पड़ी, ‘‘ऐसा मत करना सुंदर. एक तेरा ही तो सहारा है मुझे.’’ लेकिन, सुंदर ने उस का कहा नहीं सुना और अपने घर चला गया.

पंडित रमाकांत को जब सब मालूम हो गया, तो उन्होंने भी सुंदर को खूब पीटा, ‘‘एक तो दलित लड़की है, दूसरे तुम ब्राह्मण. क्या होगा बिरादरी में मेरा? कम से कम मुझ पर तो रहम कर. आखिर उम्र ही क्या है तेरी? ठहर, तेरे मामा को फोन करता हूं. वह तुझे ले जाएगा और मारमार कर हाकिम बनाएगा.’’

सुंदर को भी उस मामा के बारे में मालूम था कि वे काफी बेरहम हैं. उन की अब तक 2 बीवियां भाग चुकी हैं.

‘‘नहीं बाबा, नहीं. मुझे कहीं और भेज दो, पर मैं वहां नहीं जाऊंगा,’’ कह कर सुंदर रो पड़ा.

‘‘अरे, चुप हो जा. मैं समझ गया सबकुछ. अच्छा है… जब 2-4 थप्पड़ रोज पड़ेंगे न, तो भाग जाएगा काजल के इश्क का भूत,’’ उन्होंने सचमुच ही उसी रात फोन कर के अगले दिन उस के मामा को बुलवा लिया.

‘‘तुम बेफिक्र रहो. इसे मैं अच्छे स्कूल में पढ़ाऊंगा और खुद निगरानी करूंगा,’’ मामा ने सुंदर की मां से कहा.

‘‘देखना भैया, बच्चा कोमल है. मारना मत. और हां, पंडितजी की इसे हाकिम बनाने की इच्छा है,’’ मां ने हाथ जोड़ कर कहा.

ये भी पढ़ें- मुक्त: क्या शादी से खुश नहीं थी आरवी?

‘‘बनेगाबनेगा हाकिम, कैसे नहीं बनेगा. सुनी नहीं है वह कहावत कि मारमार कर हाकिम बनाना,’’ इतना कह कर मामा खुद रिकशा लेने चले गए और तुरंत ही रिकशा ले कर आ भी गए.

सामान रिकशे में रखा और मामाभांजे दोनों चल पड़े खगडि़या स्टेशन.

रास्ते में ही काजल का घर था. ‘काजल माफ करना. तेरा दिल दुखा कर मैं ने अच्छा नहीं किया. तुझे कभी नहीं भूलूंगा काजल,’ इतना सोचते ही सुंदर रो पड़ा.

‘‘चुप हो जा… नई दुलहन की तरह रो रहा है… पड़ेगा एक थप्पड़,’’ मामा ने लताड़ा.

सुंदर एकदम चुप. मामा ऐसे मूंछें ऐंठ रहे थे, जैसे सीताहरण के दौरान रावण ने सीता के रोने पर तेज हंसी के साथ मूंछें ऐंठी थीं.

गाड़ी मिली, चली और उतर गए बेगुसराय. फिर वहां से 10 किलोमीटर सवारी गाड़ी से और 5 किलोमीटर आगे मैदान बौराही, जहां न तो कोई स्कूल था, न ही कालेज.

काजल को जैसे ही पता चला कि सुंदर वाकई शहर चला गया है तो वह भी रो पड़ी और दौड़ कर मां का आंचल खींच कर ठुनकने लगी, ‘‘सुंदर शहर चला गया मां. मैं भी शहर में पढ़ूंगी.’’

‘‘अरी बावली, वे बाबू लोग हैं और तुम ठहरी दलित. फिर शहर जाने के लिए पैसे कहां हैं बेटी?’’ मां ने काजल को बड़े ही प्यार से समझाया.

‘‘मां, अब सुंदर पढ़लिख कर कब आएगा? मैं ने उस की हंसी उड़ाई थी. शायद वह मुझ से रूठ कर चला गया है,’’ काजल की आंखों से टपकते आंसू उस के कोमल गालों पर लकीर बनाने लगे.

‘‘बेटी, अगर तुम उस से लगाव रखती हो तो तुझे आंसू नहीं बहाने चाहिए. हंस कर दुआ करनी चाहिए कि वह पढ़लिख कर हाकिम बन कर ही तुझ से मिले,’’ मां ने आंचल से उस के आंसू पोंछते हुए कहा, ‘‘क्या मालूम, कल वह हाकिम बन कर अंगरेजी में बातें करेगा. समझोगी तुम?

‘‘अच्छा है कि तुम इस गांव में ही मन लगा कर पढ़ो. हाकिम तो गांव में भी पढ़ कर हुए हैं लोग. हमारे पहले राष्ट्रपति राजेंद्र बाबू, प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और दूसरे कई शख्स हैं, जिन्होंने गांव में ही पढ़ाई की थी. कल चलना, हैडमास्टर सर से कह कर स्कूल में दाखिला करा दूंगी.’’

काजल समझ गई और चहकते हुएबोली, ‘‘हां मां, मैं उसे दिखा दूंगी कि बड़ा बनने के लिए शहर में ही नहीं, बल्कि गांव में भी पढ़ाई की जा सकती है. शहर या वहां के स्कूल नहीं पढ़ते, पढ़ते हैं छात्र, जो गांव में भी होते हैं.’’

‘‘मेरी अच्छी बेटी,’’ इतना कह कर मां ने उस का मुंह चूम लिया.

दूसरे दिन ही मां ने काजल का दाखिला गांव के ही मिडिल स्कूल में करा दिया. उसे यह सुन कर और भी खुशी हुई कि मुफ्त में ड्रैस, किताबें और कौपियां  मिलेंगी.

‘‘साइकिल भी दूंगा… अगर मन से पढ़ेगी तो… साइकिल चलाना आता है न तुझे?’’ हैडमास्टर सर ने पूछा.

‘‘साइकिल भी चलाना सीख लूंगी,’’ काजल ने पूछा.

‘‘गुड गर्ल… कल से तुम स्कूल आना शुरू कर दो.’’

‘‘जी सर,’’ इतना कह कर काजल अपनी मां के साथ घर चली आई.

इधर सुंदर को मामा के घर गए महीनों बीत गए. सुंदर की मां ने फोन किया तो सुंदर के मामा बबलू ने कहा, ‘‘हांहां, खूब मन लगा कर पढ़ रहा है वह. बगैर हाकिम बनाए इसे

छोड़ूंगा क्या? पटना से ले कर दिल्ली तक के नेताओं का झोला टांगा है, अटैची ढोई है. वह सब कब काम आएगा?’’

सुंदर चूल्हा फूंक रहा था. दौड़ादौड़ा वह वहां आया और बोला, ‘‘मामा, मां से मेरी भी बात करा दो. कई दिन पहले उन्हें मैं ने अपने सपने में देखा था.’’

‘‘जब देख ही लिया था तो बातें क्यों न कर लीं? चल भाग. ऐसा जोर का घूंसा दूंगा कि तेरी बत्तीसी बाहर निकल जाएगी,’’ मामा बबलू बिगड़ गए.

सुंदर रो पड़ा और रोतेरोते ही फिर चूल्हा फूंकने लगा.

बाहर बंगले पर बबलू गए, तो सुंदर ने दौड़ कर फोन का चोगा उठा लिया. अब लगाए तो कौन नंबर? घर में तो फोन है नहीं.

मां हाट आई होंगी और एसटीडी से बातें की होंगी. वह ठगा सा चोगा रख कर रो पड़ा, ‘मुझे कहां फंसा दिया बाबा? यहां जब कोई स्कूल ही नहीं है, तो पढ़ूंगा क्या खाक?

‘दिनरात मामा की तीमारदारी करनी पड़ती है. घर से लाई किताबें भी खोलने नहीं देते. यह मामा नहीं कंस है, कंस…

‘मैं ने काजल को भी धोखा दिया है. यह सब मुझे उसी की सजा मिल रही है. बाबा, अपने बच्चे की खुशी क्यों नहीं देखी गई आप से?’ सोच कर सुंदर और भी उदास हो गया.

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March 31, 2022 at 09:00AM

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