Sunday 20 March 2022

जागने लगी उम्मीदें : भाग 1

शेखर ने अपना ब्लडप्रैशर फिर चैक किया, काफी हाई था. अपनी हैल्थ को ले कर उन का चिंतित होना स्वाभाविक था. आसान तो है ही नहीं अजय के बिना जीना. कोशिश कर रहे हैं पर तनमन पर जैसे कोई बस ही नहीं. पूरीपूरी रात अजय के कमरे के चक्कर लगाते रहते हैं, कभी उस का सामान ठीक करने लगते हैं, तो कभी उस की अलमारी खोल कर खड़े रह जाते हैं. कुदरत ने क्रूर मजाक किया है उन के साथ. एक रिटायर्ड पिता का इकलौता बेटा जब कोरोना जैसी महामारी का शिकार हो गया हो, देखते ही देखते दुनिया छोड़ गया हो, तो जीना आसान होगा क्या?

उन की पत्नी रेखा भी बीमारी के बाद उन का साथ छोड़ चुकी थीं और अब अजय भी चला गया तो अकेले घर में बंद… न दिन में चैन आता, न रात को नींद. लौकडाउन का समय था. बहुत परेशान हो रहे थे शेखर. टीचर थे, साथ के कई दोस्त इस महामारी ने छीन लिए थे, जो बचे थे, एकदम डरे हुए अपनेअपने घरों में बंद थे. उन से फोन पर बात भी होती, तो वही विषय थे जिन पर बात कर के दिल घबरा जाता और बीमारी और मौत के अलावा कोई बात ही नहीं होती.

शेखर ने पड़ोस के अपने डाक्टर मित्रर रवि को फोन किया, ”रवि, तबीयत घबरा रही है, रात से सिरदर्द भी बहुत है, ब्लडप्रैशर हाई है, चैक किया है, क्या करूं?”

”बीपी की रोज की दवाई ले रहे हो न?””हां.‘’”खाने का क्या कर रहे हो?””कभी खिचड़ी बना लेता हूं, कभी दालचावल, मैड तो आजकल आ नहीं रही है, नहीं तो वही सब करती थी. एक टाइम कभी भी बना लेता हूं, वही खाता रहता हूं जब भूख लगती है, वैसे भूख भी नहीं लगती है.‘’

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”शेखर, ऐसे तो बिलकुल नहीं चलेगा, इस समय खुद को संभालना है तुम्हें, अपनी डाइट का ध्यान रखना है. एक काम करो, पड़ोस में ही एक महिला उमा ने टिफिन देने का काम शुरू किया है. उस के पति हैं नहीं, 2 बच्चे हैं, उसे भी काम की जरूरत है, उसे दोनों टाइम के टिफिन का और्डर दे दो, उस के बच्चे दे जाएंगे, अच्छी डाइट लोगे तो तबीयत थोड़ी संभलेगी. मैं तुम्हें उस का नंबर व्हाट्सऐप पर भेज रहा हूं, थोड़े दिन ढंग से खाओपियो, अपनी दवा लो. मैं उमा को बता देता हूं कि तुम्हारा खाना हाई ब्लडप्रैशर के हिसाब से भेजे.”

”ठीक है, रवि, तुम्हारा बड़ा सहारा है मुझे.‘’शेखर ने रवि के दिए नंबर पर उमा से बात कर ली. पता चला कि इसी गली के कोने में ही उस का घर है. शेखर को याद आया कि सुबह की सैर के समय जाते हुए उस छोटे से घर पर नजर तो कई बार पड़ी थी. रेखा थी तो पड़ोस के लोगों के बारे में थोड़ा पता चल जाता था, नहीं तो अब तो पितापुत्र ऐसे ही जी रहे थे.

रेखा और अजय की याद फिर आ गई. शेखर बैठ कर फूटफूट कर रो पड़े. कैसे कटेगा जीवन? वैसे तो वे एक सरल स्वभाव के अपने काम से काम रखने वाले पुरुष थे. सहारनपुर के एक अच्छे इलाके में यह सुंदर सा घर था, सरकारी स्कूल से रिटायर हुए थे, अच्छी पेंशन मिलती थी, पैसे की कमी तो बिलकुल नहीं थी, पर मन अकेलेपन से भर गया था और उस का हल समझ नहीं आ रहा था.

पहले रेखा और अब अजय के जाने के बाद रिश्तेदार एकदम उन से कट गए थे कि कहीं उन की देखरेख किसी के जिम्मे न आ जाएं. वे सब समझ रहे थे, उन्होंने अब सब को फोन करना भी बंद कर दिया था और न ही किसी का भूलेभटके फोन आता भी. उन्हें अकेले ही जीना है, वे समझ चुके थे पर यह आसान था क्या? उन का सिरदर्द उन्हें बहुत परेशान करने लगा तो उन्होंने दूध और एक टोस्ट खा कर दवा ले ली, रातभर सो नहीं पाए थे, तो आंख लग गई. थोड़ी देर सोते रहे थे. डाक्टर रवि के फोन से ही आंख खुली. रवि उन की तबीयत पूछते रहे. वे अकसर ही उन के संपर्क में रहते थे.

नहाधो कर शेखर को कुछ ठीक लगा. लगभग 12 बजे डोरबेल बजी. एक प्यारी, मुसकराती लड़की टिफिन ले कर खड़ी थी,”हैलो, अंकल, मैं नेहा, मम्मी ने यह टिफिन भेजा है और रवि अंकल ने कहा है कि मैं आप के खाने तक आप के साथ ही बैठी रहूं और खाली टिफिन ले कर ही घर जाऊं,” लड़की की प्यारी सी स्माइल देख कर शेखर भी पता नहीं कितने दिन बाद मुसकराए, बोले,”आओ, लो, अपने हाथ सैनीटाइज कर लो, आराम से बैठो फिर रवि ने कहा है तो बात माननी ही पड़ेगी.‘’

ये भी पढ़ें- संजोग: मां-बाप के मतभेद के कारण विवेक ने क्या किया?

नेहा डाइनिंग टेबल पर टिफिन रख कर वहीं एक चेयर पर बैठ गई. शेखर प्लेट और चम्मच ले कर खाना निकाल कर खाने लगे. दाल, रोटी, भिंडी की सब्जी और थोड़ा सा चावल, सलाद… पता नहीं उन्होंने यह खाना कितने दिनों बाद देखा था. बहुत कोशिश की आंसुओं को रोकने की पर आंसू बह ही निकले.

नेहा को उन का दुख रवि बता चुके थे, वह उन्हें रोते देख बहुत दुखी हुई. कैसे तसल्ली दे, समझ ही नहीं आ रहा था, बच्ची ही तो थी, यों ही बात शुरू की, ”अंकल, मम्मी ने कहा है कि खाने में कोई भी कमी हो तो आप बता दें, अगली बार मम्मी ध्यान रखेंगी.‘’

”नहीं, बेटा, खाना तो बहुत अच्छा है, बहुत दिनों बाद ऐसा खाना खाया है,” फिर न चाहते हुए भी मुंह से निकल ही गया, ”तुम्हारी आंटी भी ऐसे ही बनाती थीं भिंडी और अजय बहुत शौक से खाता था.‘’

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शेखर ने अपना ब्लडप्रैशर फिर चैक किया, काफी हाई था. अपनी हैल्थ को ले कर उन का चिंतित होना स्वाभाविक था. आसान तो है ही नहीं अजय के बिना जीना. कोशिश कर रहे हैं पर तनमन पर जैसे कोई बस ही नहीं. पूरीपूरी रात अजय के कमरे के चक्कर लगाते रहते हैं, कभी उस का सामान ठीक करने लगते हैं, तो कभी उस की अलमारी खोल कर खड़े रह जाते हैं. कुदरत ने क्रूर मजाक किया है उन के साथ. एक रिटायर्ड पिता का इकलौता बेटा जब कोरोना जैसी महामारी का शिकार हो गया हो, देखते ही देखते दुनिया छोड़ गया हो, तो जीना आसान होगा क्या?

उन की पत्नी रेखा भी बीमारी के बाद उन का साथ छोड़ चुकी थीं और अब अजय भी चला गया तो अकेले घर में बंद… न दिन में चैन आता, न रात को नींद. लौकडाउन का समय था. बहुत परेशान हो रहे थे शेखर. टीचर थे, साथ के कई दोस्त इस महामारी ने छीन लिए थे, जो बचे थे, एकदम डरे हुए अपनेअपने घरों में बंद थे. उन से फोन पर बात भी होती, तो वही विषय थे जिन पर बात कर के दिल घबरा जाता और बीमारी और मौत के अलावा कोई बात ही नहीं होती.

शेखर ने पड़ोस के अपने डाक्टर मित्रर रवि को फोन किया, ”रवि, तबीयत घबरा रही है, रात से सिरदर्द भी बहुत है, ब्लडप्रैशर हाई है, चैक किया है, क्या करूं?”

”बीपी की रोज की दवाई ले रहे हो न?””हां.‘’”खाने का क्या कर रहे हो?””कभी खिचड़ी बना लेता हूं, कभी दालचावल, मैड तो आजकल आ नहीं रही है, नहीं तो वही सब करती थी. एक टाइम कभी भी बना लेता हूं, वही खाता रहता हूं जब भूख लगती है, वैसे भूख भी नहीं लगती है.‘’

ये भी पढ़ें- उधार का रिश्ता: क्या हुआ सरिता के साथ ?

”शेखर, ऐसे तो बिलकुल नहीं चलेगा, इस समय खुद को संभालना है तुम्हें, अपनी डाइट का ध्यान रखना है. एक काम करो, पड़ोस में ही एक महिला उमा ने टिफिन देने का काम शुरू किया है. उस के पति हैं नहीं, 2 बच्चे हैं, उसे भी काम की जरूरत है, उसे दोनों टाइम के टिफिन का और्डर दे दो, उस के बच्चे दे जाएंगे, अच्छी डाइट लोगे तो तबीयत थोड़ी संभलेगी. मैं तुम्हें उस का नंबर व्हाट्सऐप पर भेज रहा हूं, थोड़े दिन ढंग से खाओपियो, अपनी दवा लो. मैं उमा को बता देता हूं कि तुम्हारा खाना हाई ब्लडप्रैशर के हिसाब से भेजे.”

”ठीक है, रवि, तुम्हारा बड़ा सहारा है मुझे.‘’शेखर ने रवि के दिए नंबर पर उमा से बात कर ली. पता चला कि इसी गली के कोने में ही उस का घर है. शेखर को याद आया कि सुबह की सैर के समय जाते हुए उस छोटे से घर पर नजर तो कई बार पड़ी थी. रेखा थी तो पड़ोस के लोगों के बारे में थोड़ा पता चल जाता था, नहीं तो अब तो पितापुत्र ऐसे ही जी रहे थे.

रेखा और अजय की याद फिर आ गई. शेखर बैठ कर फूटफूट कर रो पड़े. कैसे कटेगा जीवन? वैसे तो वे एक सरल स्वभाव के अपने काम से काम रखने वाले पुरुष थे. सहारनपुर के एक अच्छे इलाके में यह सुंदर सा घर था, सरकारी स्कूल से रिटायर हुए थे, अच्छी पेंशन मिलती थी, पैसे की कमी तो बिलकुल नहीं थी, पर मन अकेलेपन से भर गया था और उस का हल समझ नहीं आ रहा था.

पहले रेखा और अब अजय के जाने के बाद रिश्तेदार एकदम उन से कट गए थे कि कहीं उन की देखरेख किसी के जिम्मे न आ जाएं. वे सब समझ रहे थे, उन्होंने अब सब को फोन करना भी बंद कर दिया था और न ही किसी का भूलेभटके फोन आता भी. उन्हें अकेले ही जीना है, वे समझ चुके थे पर यह आसान था क्या? उन का सिरदर्द उन्हें बहुत परेशान करने लगा तो उन्होंने दूध और एक टोस्ट खा कर दवा ले ली, रातभर सो नहीं पाए थे, तो आंख लग गई. थोड़ी देर सोते रहे थे. डाक्टर रवि के फोन से ही आंख खुली. रवि उन की तबीयत पूछते रहे. वे अकसर ही उन के संपर्क में रहते थे.

नहाधो कर शेखर को कुछ ठीक लगा. लगभग 12 बजे डोरबेल बजी. एक प्यारी, मुसकराती लड़की टिफिन ले कर खड़ी थी,”हैलो, अंकल, मैं नेहा, मम्मी ने यह टिफिन भेजा है और रवि अंकल ने कहा है कि मैं आप के खाने तक आप के साथ ही बैठी रहूं और खाली टिफिन ले कर ही घर जाऊं,” लड़की की प्यारी सी स्माइल देख कर शेखर भी पता नहीं कितने दिन बाद मुसकराए, बोले,”आओ, लो, अपने हाथ सैनीटाइज कर लो, आराम से बैठो फिर रवि ने कहा है तो बात माननी ही पड़ेगी.‘’

ये भी पढ़ें- संजोग: मां-बाप के मतभेद के कारण विवेक ने क्या किया?

नेहा डाइनिंग टेबल पर टिफिन रख कर वहीं एक चेयर पर बैठ गई. शेखर प्लेट और चम्मच ले कर खाना निकाल कर खाने लगे. दाल, रोटी, भिंडी की सब्जी और थोड़ा सा चावल, सलाद… पता नहीं उन्होंने यह खाना कितने दिनों बाद देखा था. बहुत कोशिश की आंसुओं को रोकने की पर आंसू बह ही निकले.

नेहा को उन का दुख रवि बता चुके थे, वह उन्हें रोते देख बहुत दुखी हुई. कैसे तसल्ली दे, समझ ही नहीं आ रहा था, बच्ची ही तो थी, यों ही बात शुरू की, ”अंकल, मम्मी ने कहा है कि खाने में कोई भी कमी हो तो आप बता दें, अगली बार मम्मी ध्यान रखेंगी.‘’

”नहीं, बेटा, खाना तो बहुत अच्छा है, बहुत दिनों बाद ऐसा खाना खाया है,” फिर न चाहते हुए भी मुंह से निकल ही गया, ”तुम्हारी आंटी भी ऐसे ही बनाती थीं भिंडी और अजय बहुत शौक से खाता था.‘’

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March 21, 2022 at 09:00AM

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