Tuesday 8 February 2022

Valentine’s Special: प्यार का रंग- रोमा किस सोच में डूबती चली जा रही थी

रोमा को एक युवक से प्रेम हो गया था. वैसे इस उम्र में प्रेम होना स्वाभाविक भी है, लेकिन जो स्वाभाविक नहीं था, वह भी हुआ, जिस ने उस की प्रेमखुशी पर ग्रहण लगा दिया. प्रेमरोग के साथसाथ उसे पता चला कि उसे कैंसर का भयंकर रोग भी लग गया है. प्रेम सुमन पुष्पितपल्लवित होने से पहले ही मुरझा गया. वह कैंसर की भयंकर अग्नि में स्वाहा हो गया, पर क्या प्रेम वास्तव में परीक्षा में हार गया था? हां, सतही प्रेम तो परीक्षा में अवश्य हारा था पर वास्तविक प्रेम…

रोमा के विचार सीढ़ीदरसीढ़ी उस के जेहन में उतरते चले गए. 20 साल की उम्र में रोमा ही क्या कोई भी युवती अधिकतर प्रेमसंबंधों की कल्पना में ही डूबतीउतराती है. कैंसर से दोचार होने की कौन सोचता है, पर रोमा पर पड़ती प्रेम फुहार अभी उसे अपने प्रेम में सराबोर भी नहीं कर पाई थी कि उस पर कैंसर का पहाड़ टूट पड़ा.

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रोमा सोच में डूबती चली गई. उस की सोच बचपन के आंगन में उतरती चली गई और वह उन्हीं यादों में खोती चली गई. दादी और मां की हिदायतें कि हमारे यहां डेटिंग की प्रथा नहीं है… तुम बड़ी हो रही हो, संभल कर चलो, कहीं प्यारव्यार के चक्कर में न पड़ जाना… अपनी मर्यादा में रहना… आदि हिदायतें उसे याद आ गईं.

जैसेजैसे वह बड़ी होती गई हिदायतें उस से चिपकती चली गईं. तन से ही नहीं मनमस्तिष्क पर भी जोंक की तरह चिपक गईं और ये हिदायतें मेरा सुरक्षाकवच बन गई थीं मैं ककूना की तरह खुद में सिमटती चली गई. पर आखिर कब तक ऐसा संभव था. रोमा का यौवन धीरेधीरे उस पर हावी हो रहा था. अब उस के जीवन में रोमांस करवटें बदलने लगा. हिदायतें हिदायतें बन कर ही रह गईं. अब यौवन के कदम उस की दहलीज लांघने लगे और एक दिन उस ने सैम के प्यार में खुद को बंधा पाया.

सैम के प्यार का बंधन कुछ और कसता, इस के पहले ही रोमा पर कैंसर के डायग्नोज ने कहर ढा दिया. जिस प्यार के बंधन को वह अटूट समझने लगी थी वह इस डायग्नोज से उस के शरीर की तरह ही क्षतविक्षत होने लगा. उस में दरार पड़ने लगी. रोमा न तो कैंसर से लड़ पा रही थी और न ही प्यार के इस टूटते बंधन से. दोनों ही अनुभूतियां उस के जीवन में नई थीं. दोनों से ही पार पाना उसे अपनी क्षमता से परे लग रहा था. उसे अपने दुख की सीमा का छोर नहीं दिख रहा था. उस की जिंदगी एक ऐसी गुफा में प्रवेश कर चुकी थी जहां सिर्फ अंधकार के सिवा और कुछ भी नहीं रह गया था.

ये भी पढ़ें-गृहप्रवेश- भाग 1: उज्ज्वल किसकी तरफ आकर्षित हो रहा था?

सैम ने सहारा अवश्य दिया पर वह क्षणिक था. कुछ क्षणों के लिए उस ने अपना कंधा अवश्य दिया था जिस पर सिर रख कर रोमा रोई थी. उस ने उसे आश्वस्त भी किया था कि वह ठीक हो जाएगी पर साथ ही उस ने उस से संबंध विच्छेद भी कर लिया था. उसे दुख के महासागर में डूबनेउतराने के लिए मंझधार में छोड़ दिया था. काली अंधेरी रातों में रोमा सिसकती रह गई थी. वह तकिए पर मुंह रख बिलखती चीख उठी थी, ‘मैं कैंसर से लड़ सकती हूं पर इस संबंध विच्छेद से नहीं उबर पा रही हूं. सैम मुझे इस अवस्था में कैसे छोड़ सकता है जबकि इस समय मुझे उस के साथ की सब से ज्यादा जरूरत है… क्या यही प्यार है, यह कैसा प्यार है? रोमा आंसुओं के सैलाब में डूबती चली गई.

कीमोथैरेपी ने उस की शारीरिक रूपरेखा ही बदल दी. अपने जिन लंबे, काले बालों पर उसे नाज था, उन्होंने भी उस का साथ छोड़ दिया. शारीरिक संरचना बदलने लगी थी. बालों में हाथ की उंगलियां घूमने की जगह गंजी खोपड़ी की कड़ी जमीन पर घूमती उंगलियां उसे यथार्थ के ठोस धरातल पर पटक देतीं. आईने में झांकता अपना अक्स उसे अजनबी सा लगता. आंसुओं को आंखों में ही रोकने का प्रयास करती रोमा थोड़ी सी बचीखुची पलकों पर काला मसकारा लगा कर उन्हें गहरा करने के प्रयास में खुद और अधिक गम की गहराइयों में डूब जाती. हृदय की धड़कनों के साथ उठतेगिरते, उस के वक्ष पर लगे सर्जरी से बने कट के निशान उस की कातर आंखों में और भी कातरता भर देते.

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समय गुजरता गया. अचानक जिंदगी ने करवट ली, इलाज फलने लगा. पलकों और भौंहों में कुछ और बाल जुड़ने लगे. गंजी खोपड़ी पर रखी नकली विग की भी अब जरूरत नहीं थी. अब स्थिति कुछकुछ सामान्य होने लगी. आईने से झांकती छवि ने रोमा में कुछ मानसिक संतुलन बनाया. वह लोगों से मिलनेजुलने लगी. हां, किसी के द्वारा कहा गया वाक्य जैसे, ‘तुम खूबसूरत लग रही हो’ उसे प्रेम के प्रति आश्वस्त न कर सके. पर हां, प्रगति की ओर कदम अवश्य बढ़ रहे थे.

लेकिन कुदरत को तो कुछ और ही मंजूर था. प्रेमप्रगति की ओर बढ़ने वाले कदम दोबारा रोग की ओर घसीटने लगे. जिस दुख के सागर को तैर कर वह किनारे लगने लगी थी, उस की उत्ताल तरंगों ने उसे फिर अपनी ओर वापस खींचना शुरू कर दिया. स्तन कैंसर का सर्प दोबारा अपना फन उठाने लगा. विधि का विधान भी अजीबोगरीब परिस्थितियां उत्पन्न कर देता है. इस रोग ने जहां रोमा को दुख दिया वहीं अपने प्यार से भी मिलवाया. 4 साल बाद जहां स्तन कैंसर ठीक होतेहोते दोबारा वापस आ गया, वहीं उस ने रोमा का पथ पेंटर समीर से भी जोड़ दिया.

समीर अपनी नई पेंटिंग पर काम कर रहा था. उस ने रोमा को अपनी कलाप्रेरणा बनने के लिए प्रोत्साहित किया. समीर देखने में तो सामान्य लगता था पर था वह ज्ञान का भंडार. वह रोमा को रोग से लड़ने के नएनए तरीकों से अवगत कराता रहा. उस में रोग से लड़ने की हिम्मत भरता रहा. धीरेधीरे वह रोमा के जीवन का हिस्सा बन गया. रोमा और समीर एकदूसरे के करीब आते गए. रोमा समीर के विनम्र स्वभाव से काफी प्रभावित थी. समीर का प्यार शब्दों के बजाय भावों में व्यक्त होता रहा. रोमा के दर्द के कतरे समीर से उपजी संवेदना की धरती पर गिर कर अपना अस्तित्व मिटाते रहे. रोमा एक ओर दोबारा प्यार में पदार्पण करने से घबरा रही थी, पर दूसरी ओर समीर के स्वाभाविक गुणों से उस की ओर खिंचती चली जा रही थी.

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प्रेरणा से पार्टनर में बदलना रोमा के लिए आसान न था, क्योंकि भावनात्मक संवेदनाओं से वह भयभीत थी. सैम द्वारा दिया गया प्यार का अनुभव बारबार उस के इस तरफ बढ़ते कदमों को रोक लेता था, पर धीरेधीरे रोमा समीर के बढ़े हुए हाथों की ओर डगमगाते कदमों से बढ़ने लगी और एक दिन उस ने उन विश्वस्त हाथों को थाम ही लिया. रोमा के आंसुओं की बाढ़ को समीर ने अपनी करुणा से पोंछा. जब भी रोमा हतोत्साहित हुई समीर ने उस का उत्साह बढ़ाया. जब दुख से कातर हुई तो समीर ने उसे अपने अंक में समा सांत्वना दी. जब भी वह निराशा के गर्त में गिरी समीर ने उसे वहां से निकाल आशा का दामन थमाया कि वह इस रोग से अवश्य मुक्ति पा लेगी. जब पीड़ा से रोमा के अंग दुखे तो समीर ने अपने हाथों से उस की शारीरिक पीड़ा व अपनी संवेदना से उस की मानसिक पीड़ा को कम करने का प्रयास किया. हर स्थिति में समीर रोमा के साथ खड़ा रहा. समीर के प्यार की दृढ़ता ने सैम के प्यार की दुर्बलता को भुला दिया. रोमा के दिल में सैम द्वारा उस समय उसे सपोर्ट न करने की जो कटुता आ गई थी उसे उस ने उस के चरित्र की दुर्बलता समझ कर भुला दिया. उसे ‘अमैच्योर लव’ की संज्ञा से प्यार के उस अनुभव को झटक दिया.

इस बार रोमा जहां कैंसर की लड़ाई में पीछे नहीं हटी, वहीं समीर के प्यार के रंग में सराबोर हो उस पर निहाल हो गई, धन्य हो गई. असली प्यार क्या होता है, समीर के प्यार में रोमा ने उस का दर्शन, उस का अनुभव कर लिया था. समीर के प्यार की सार्थकता में रोमा ने अपना असली प्यार पा लिया था.

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रोमा को एक युवक से प्रेम हो गया था. वैसे इस उम्र में प्रेम होना स्वाभाविक भी है, लेकिन जो स्वाभाविक नहीं था, वह भी हुआ, जिस ने उस की प्रेमखुशी पर ग्रहण लगा दिया. प्रेमरोग के साथसाथ उसे पता चला कि उसे कैंसर का भयंकर रोग भी लग गया है. प्रेम सुमन पुष्पितपल्लवित होने से पहले ही मुरझा गया. वह कैंसर की भयंकर अग्नि में स्वाहा हो गया, पर क्या प्रेम वास्तव में परीक्षा में हार गया था? हां, सतही प्रेम तो परीक्षा में अवश्य हारा था पर वास्तविक प्रेम…

रोमा के विचार सीढ़ीदरसीढ़ी उस के जेहन में उतरते चले गए. 20 साल की उम्र में रोमा ही क्या कोई भी युवती अधिकतर प्रेमसंबंधों की कल्पना में ही डूबतीउतराती है. कैंसर से दोचार होने की कौन सोचता है, पर रोमा पर पड़ती प्रेम फुहार अभी उसे अपने प्रेम में सराबोर भी नहीं कर पाई थी कि उस पर कैंसर का पहाड़ टूट पड़ा.

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रोमा सोच में डूबती चली गई. उस की सोच बचपन के आंगन में उतरती चली गई और वह उन्हीं यादों में खोती चली गई. दादी और मां की हिदायतें कि हमारे यहां डेटिंग की प्रथा नहीं है… तुम बड़ी हो रही हो, संभल कर चलो, कहीं प्यारव्यार के चक्कर में न पड़ जाना… अपनी मर्यादा में रहना… आदि हिदायतें उसे याद आ गईं.

जैसेजैसे वह बड़ी होती गई हिदायतें उस से चिपकती चली गईं. तन से ही नहीं मनमस्तिष्क पर भी जोंक की तरह चिपक गईं और ये हिदायतें मेरा सुरक्षाकवच बन गई थीं मैं ककूना की तरह खुद में सिमटती चली गई. पर आखिर कब तक ऐसा संभव था. रोमा का यौवन धीरेधीरे उस पर हावी हो रहा था. अब उस के जीवन में रोमांस करवटें बदलने लगा. हिदायतें हिदायतें बन कर ही रह गईं. अब यौवन के कदम उस की दहलीज लांघने लगे और एक दिन उस ने सैम के प्यार में खुद को बंधा पाया.

सैम के प्यार का बंधन कुछ और कसता, इस के पहले ही रोमा पर कैंसर के डायग्नोज ने कहर ढा दिया. जिस प्यार के बंधन को वह अटूट समझने लगी थी वह इस डायग्नोज से उस के शरीर की तरह ही क्षतविक्षत होने लगा. उस में दरार पड़ने लगी. रोमा न तो कैंसर से लड़ पा रही थी और न ही प्यार के इस टूटते बंधन से. दोनों ही अनुभूतियां उस के जीवन में नई थीं. दोनों से ही पार पाना उसे अपनी क्षमता से परे लग रहा था. उसे अपने दुख की सीमा का छोर नहीं दिख रहा था. उस की जिंदगी एक ऐसी गुफा में प्रवेश कर चुकी थी जहां सिर्फ अंधकार के सिवा और कुछ भी नहीं रह गया था.

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सैम ने सहारा अवश्य दिया पर वह क्षणिक था. कुछ क्षणों के लिए उस ने अपना कंधा अवश्य दिया था जिस पर सिर रख कर रोमा रोई थी. उस ने उसे आश्वस्त भी किया था कि वह ठीक हो जाएगी पर साथ ही उस ने उस से संबंध विच्छेद भी कर लिया था. उसे दुख के महासागर में डूबनेउतराने के लिए मंझधार में छोड़ दिया था. काली अंधेरी रातों में रोमा सिसकती रह गई थी. वह तकिए पर मुंह रख बिलखती चीख उठी थी, ‘मैं कैंसर से लड़ सकती हूं पर इस संबंध विच्छेद से नहीं उबर पा रही हूं. सैम मुझे इस अवस्था में कैसे छोड़ सकता है जबकि इस समय मुझे उस के साथ की सब से ज्यादा जरूरत है… क्या यही प्यार है, यह कैसा प्यार है? रोमा आंसुओं के सैलाब में डूबती चली गई.

कीमोथैरेपी ने उस की शारीरिक रूपरेखा ही बदल दी. अपने जिन लंबे, काले बालों पर उसे नाज था, उन्होंने भी उस का साथ छोड़ दिया. शारीरिक संरचना बदलने लगी थी. बालों में हाथ की उंगलियां घूमने की जगह गंजी खोपड़ी की कड़ी जमीन पर घूमती उंगलियां उसे यथार्थ के ठोस धरातल पर पटक देतीं. आईने में झांकता अपना अक्स उसे अजनबी सा लगता. आंसुओं को आंखों में ही रोकने का प्रयास करती रोमा थोड़ी सी बचीखुची पलकों पर काला मसकारा लगा कर उन्हें गहरा करने के प्रयास में खुद और अधिक गम की गहराइयों में डूब जाती. हृदय की धड़कनों के साथ उठतेगिरते, उस के वक्ष पर लगे सर्जरी से बने कट के निशान उस की कातर आंखों में और भी कातरता भर देते.

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समय गुजरता गया. अचानक जिंदगी ने करवट ली, इलाज फलने लगा. पलकों और भौंहों में कुछ और बाल जुड़ने लगे. गंजी खोपड़ी पर रखी नकली विग की भी अब जरूरत नहीं थी. अब स्थिति कुछकुछ सामान्य होने लगी. आईने से झांकती छवि ने रोमा में कुछ मानसिक संतुलन बनाया. वह लोगों से मिलनेजुलने लगी. हां, किसी के द्वारा कहा गया वाक्य जैसे, ‘तुम खूबसूरत लग रही हो’ उसे प्रेम के प्रति आश्वस्त न कर सके. पर हां, प्रगति की ओर कदम अवश्य बढ़ रहे थे.

लेकिन कुदरत को तो कुछ और ही मंजूर था. प्रेमप्रगति की ओर बढ़ने वाले कदम दोबारा रोग की ओर घसीटने लगे. जिस दुख के सागर को तैर कर वह किनारे लगने लगी थी, उस की उत्ताल तरंगों ने उसे फिर अपनी ओर वापस खींचना शुरू कर दिया. स्तन कैंसर का सर्प दोबारा अपना फन उठाने लगा. विधि का विधान भी अजीबोगरीब परिस्थितियां उत्पन्न कर देता है. इस रोग ने जहां रोमा को दुख दिया वहीं अपने प्यार से भी मिलवाया. 4 साल बाद जहां स्तन कैंसर ठीक होतेहोते दोबारा वापस आ गया, वहीं उस ने रोमा का पथ पेंटर समीर से भी जोड़ दिया.

समीर अपनी नई पेंटिंग पर काम कर रहा था. उस ने रोमा को अपनी कलाप्रेरणा बनने के लिए प्रोत्साहित किया. समीर देखने में तो सामान्य लगता था पर था वह ज्ञान का भंडार. वह रोमा को रोग से लड़ने के नएनए तरीकों से अवगत कराता रहा. उस में रोग से लड़ने की हिम्मत भरता रहा. धीरेधीरे वह रोमा के जीवन का हिस्सा बन गया. रोमा और समीर एकदूसरे के करीब आते गए. रोमा समीर के विनम्र स्वभाव से काफी प्रभावित थी. समीर का प्यार शब्दों के बजाय भावों में व्यक्त होता रहा. रोमा के दर्द के कतरे समीर से उपजी संवेदना की धरती पर गिर कर अपना अस्तित्व मिटाते रहे. रोमा एक ओर दोबारा प्यार में पदार्पण करने से घबरा रही थी, पर दूसरी ओर समीर के स्वाभाविक गुणों से उस की ओर खिंचती चली जा रही थी.

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प्रेरणा से पार्टनर में बदलना रोमा के लिए आसान न था, क्योंकि भावनात्मक संवेदनाओं से वह भयभीत थी. सैम द्वारा दिया गया प्यार का अनुभव बारबार उस के इस तरफ बढ़ते कदमों को रोक लेता था, पर धीरेधीरे रोमा समीर के बढ़े हुए हाथों की ओर डगमगाते कदमों से बढ़ने लगी और एक दिन उस ने उन विश्वस्त हाथों को थाम ही लिया. रोमा के आंसुओं की बाढ़ को समीर ने अपनी करुणा से पोंछा. जब भी रोमा हतोत्साहित हुई समीर ने उस का उत्साह बढ़ाया. जब दुख से कातर हुई तो समीर ने उसे अपने अंक में समा सांत्वना दी. जब भी वह निराशा के गर्त में गिरी समीर ने उसे वहां से निकाल आशा का दामन थमाया कि वह इस रोग से अवश्य मुक्ति पा लेगी. जब पीड़ा से रोमा के अंग दुखे तो समीर ने अपने हाथों से उस की शारीरिक पीड़ा व अपनी संवेदना से उस की मानसिक पीड़ा को कम करने का प्रयास किया. हर स्थिति में समीर रोमा के साथ खड़ा रहा. समीर के प्यार की दृढ़ता ने सैम के प्यार की दुर्बलता को भुला दिया. रोमा के दिल में सैम द्वारा उस समय उसे सपोर्ट न करने की जो कटुता आ गई थी उसे उस ने उस के चरित्र की दुर्बलता समझ कर भुला दिया. उसे ‘अमैच्योर लव’ की संज्ञा से प्यार के उस अनुभव को झटक दिया.

इस बार रोमा जहां कैंसर की लड़ाई में पीछे नहीं हटी, वहीं समीर के प्यार के रंग में सराबोर हो उस पर निहाल हो गई, धन्य हो गई. असली प्यार क्या होता है, समीर के प्यार में रोमा ने उस का दर्शन, उस का अनुभव कर लिया था. समीर के प्यार की सार्थकता में रोमा ने अपना असली प्यार पा लिया था.

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February 09, 2022 at 09:00AM

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