Friday 25 February 2022

अपने पैर कुल्हाड़ी- भाग 1: मोहिनी अपने पति से क्यों नाराज थी

“तुम्हारे लिए शुभ समाचार है शिप्रा पटेल,” मोहिनी बड़ी अदा से मुसकराई मानो शिप्रा पर कोई उपकार कर रही हो.

‘‘शुभ समाचार… वह भी तुम्हारे मुंह से? चलो, सुना ही डालो,’’ शिप्रा व्यंग्य भरे लहजे में बोली.

‘‘तुम्हारे प्यारे आशीष गुर्जर को मैं ने तुम्हारे लिए छोड़ दिया है. अब तुम साथ जीनेमरने के अपने वादे पूरे कर सकते हो,’’ मोहिनी पर्स से दर्पण निकाल कर अपनी छवि निहारते हुए बोली.

‘‘मेरी चिंता तुम ना ही करो तो अच्छा है. पर, बेचारे आशीष को क्यों छोड़ आई? कोई मिल गया क्या?’’

‘‘तुम्हें नहीं पता क्या? मेरा विवाह दिल्ली के प्रसिद्ध व्यावसायिक घराने में तय हो गया है. आशीष बहुत रोयागिड़गिड़ाया, कहने लगा कि मैं ने उसे छोड़ दिया तो आत्महत्या कर लेगा. उस ने क्या सोचा था? मैं उस से विवाह करूंगी? मैं ने ही उसे समझाया कि वैसे तो शिप्रा अब तक तुम्हारी बाट जोह रही है. और फिर जाति के बाहर शादी करने पर होहल्ला बेकार ही हो, इसलिए यह संबंध यहीं खत्म करना होगा. पर वह मूर्ख कुछ सुनने को तैयार ही नहीं है.’’

‘‘तुम से किस ने कहा कि मैं आशीष की बाट जोह रही हूं. तुम होती कौन हो मेरे संबंध में इस तरह की बात करने वाली?” शिप्रा कोध में आ गई.

‘‘पर, यों कहो कि तुम्हारी ऊंची जाति की अकड़ अब बीच में आ गई है. हम पिछड़ी जाति वालों को तो तुम वैसे ही पीठ पीछे बुराभला कहते रहते हो.’’

‘‘लो और सुनो, मैं तुम्हारी सब से प्यारी सहेली हूं, अब क्या यह भी याद दिलाना पड़ेगा?’ क्या जाति की बात मैं ने कभी की थी?”

ये भी पढ़ें- प्यार नहीं पागलपन: लावण्य से मुलाकात के बाद अशोक के साथ क्या हुआ?

‘‘सहेली हो नहीं, थी कभी. तुम्हारे जैसे मित्र हों तो शत्रु की क्या आवश्यकता है? एकसाथ एक ही कक्षा में पढ़ने के कारण तुम से हंसबोल लेती हूं तो इस का यह मतलब तो नहीं कि तुम अब भी मेरी प्रिय सहेली हो. सच पूछो, तो तुम ने और आशीष ने मेरे साथ जो किया, उस के बाद से मेरा मित्रता और प्रेम जैसे शब्दों से विश्वास ही उठ गया है. हम एक समाज से आते थे, इसलिए घुलमिल रहे थेे पर तुम ने तो उसे भी खट्टा कर दिया,’’ आक्रोश से शिप्रा का स्वर भर्रा गया और आंखें ड़बड़बा गईं.

‘‘यों दिल छोटा नहीं करते. इस संसार में कुछ भी स्थायी नहीं होता. वैसे भी तुम मानो ना मानो मैं तो तुम्हें अब भी अपनी सब से प्रिय सहेली मानती हूं.’’

‘‘अपने विचार मुबारक हो तुम्हें, पर मैं स्थायी संबंधों की तलाश में हूं. वैसे, एक शुभ सूचना तुम्हें मैं भी दे दूं कि मैं आशीष की बाट नहीं जोह रही. मैं ने अपने मातापिता द्वारा चुने वर से विवाह करने का निर्णय किया है,’’ शिप्रा ने बात समाप्त की.

‘‘तुम तो बड़ी छुपी रुस्तम निकली? बताया तक नहीं कि विवाह कर रही हो?’’

‘‘ऐसा कुछ बताने को है भी नहीं, मैं तो अपने जैसे हमारी ही जाति के मध्यमवर्गीय परिवार के युवक से विवाह कर रही हूं. वह न तो तुम्हारे वर की भांति बड़े ऊंची जाति वाले घराने का है और ना ही लाखों में एक. वह तो मेरे जैसे साधारण रूपरंग वाला युवक है और इतना कमा लेता है कि हम दोनों आराम से रह सकें. सच पूछो तो उस के व्यवहार में बड़बोलापन कहीं नजर नहीं आया. बातबात पर हंसना और हंसाना. अब तक केवल दो बार मिली हूं उस से. पर न जाने कैसा जादू कर दिया है उस ने कि फोन पर घंटों व्हाट्सएप चैट कर के भी मन तृप्त नही.’’

‘‘यह तो बड़ा ही शुभ समाचार है. कुछ ही दिनों में परीक्षा समाप्त हो जाएंगी और हम दोनों बिछुड़ जाएंगे, पर अपने विवाह में बुलाना मत भूल जाना. आशीष को मारो गोली, उसे कोई और मिल जाएगी.’’

शिप्रा का रुख देख कर मोहिनी ने बात बदल दी थी.

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शिप्रा दूर तक मोहिनी को जाते हुए देखती रही थी. दोनों की घनिष्ठ मित्रता की चर्चा कालेज भर में थी. दोनों ही एक जिस्म एक जान थीं. लोगों को आश्चर्य होता था कि अलग जातियों के होते हुए भी इन की कैसे चल रही है. पर जब मोहिनी आशीष को ही ले उड़ी थी तो शिप्रा को संभालने में लंबा समय लगा था. उसे सारा संसार स्वार्थी और अर्थहीन लगने लगा था. आज वही मोहिनी उस के लिए आकाश को छोड़ने की बात कर रही थी मानो वह कोई कठपुतली हो, जिसे मोहिनी अपनी उंगलियों पर नचा सके. फिर उस ने एक झटके से इस विचार को झटक दिया था. परीक्षा सिर पर थी और वह मोहिनीआशीष प्रकरण में उलझ कर अपना भविष्य दांव पर नहीं लगा सकती.

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“तुम्हारे लिए शुभ समाचार है शिप्रा पटेल,” मोहिनी बड़ी अदा से मुसकराई मानो शिप्रा पर कोई उपकार कर रही हो.

‘‘शुभ समाचार… वह भी तुम्हारे मुंह से? चलो, सुना ही डालो,’’ शिप्रा व्यंग्य भरे लहजे में बोली.

‘‘तुम्हारे प्यारे आशीष गुर्जर को मैं ने तुम्हारे लिए छोड़ दिया है. अब तुम साथ जीनेमरने के अपने वादे पूरे कर सकते हो,’’ मोहिनी पर्स से दर्पण निकाल कर अपनी छवि निहारते हुए बोली.

‘‘मेरी चिंता तुम ना ही करो तो अच्छा है. पर, बेचारे आशीष को क्यों छोड़ आई? कोई मिल गया क्या?’’

‘‘तुम्हें नहीं पता क्या? मेरा विवाह दिल्ली के प्रसिद्ध व्यावसायिक घराने में तय हो गया है. आशीष बहुत रोयागिड़गिड़ाया, कहने लगा कि मैं ने उसे छोड़ दिया तो आत्महत्या कर लेगा. उस ने क्या सोचा था? मैं उस से विवाह करूंगी? मैं ने ही उसे समझाया कि वैसे तो शिप्रा अब तक तुम्हारी बाट जोह रही है. और फिर जाति के बाहर शादी करने पर होहल्ला बेकार ही हो, इसलिए यह संबंध यहीं खत्म करना होगा. पर वह मूर्ख कुछ सुनने को तैयार ही नहीं है.’’

‘‘तुम से किस ने कहा कि मैं आशीष की बाट जोह रही हूं. तुम होती कौन हो मेरे संबंध में इस तरह की बात करने वाली?” शिप्रा कोध में आ गई.

‘‘पर, यों कहो कि तुम्हारी ऊंची जाति की अकड़ अब बीच में आ गई है. हम पिछड़ी जाति वालों को तो तुम वैसे ही पीठ पीछे बुराभला कहते रहते हो.’’

‘‘लो और सुनो, मैं तुम्हारी सब से प्यारी सहेली हूं, अब क्या यह भी याद दिलाना पड़ेगा?’ क्या जाति की बात मैं ने कभी की थी?”

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‘‘सहेली हो नहीं, थी कभी. तुम्हारे जैसे मित्र हों तो शत्रु की क्या आवश्यकता है? एकसाथ एक ही कक्षा में पढ़ने के कारण तुम से हंसबोल लेती हूं तो इस का यह मतलब तो नहीं कि तुम अब भी मेरी प्रिय सहेली हो. सच पूछो, तो तुम ने और आशीष ने मेरे साथ जो किया, उस के बाद से मेरा मित्रता और प्रेम जैसे शब्दों से विश्वास ही उठ गया है. हम एक समाज से आते थे, इसलिए घुलमिल रहे थेे पर तुम ने तो उसे भी खट्टा कर दिया,’’ आक्रोश से शिप्रा का स्वर भर्रा गया और आंखें ड़बड़बा गईं.

‘‘यों दिल छोटा नहीं करते. इस संसार में कुछ भी स्थायी नहीं होता. वैसे भी तुम मानो ना मानो मैं तो तुम्हें अब भी अपनी सब से प्रिय सहेली मानती हूं.’’

‘‘अपने विचार मुबारक हो तुम्हें, पर मैं स्थायी संबंधों की तलाश में हूं. वैसे, एक शुभ सूचना तुम्हें मैं भी दे दूं कि मैं आशीष की बाट नहीं जोह रही. मैं ने अपने मातापिता द्वारा चुने वर से विवाह करने का निर्णय किया है,’’ शिप्रा ने बात समाप्त की.

‘‘तुम तो बड़ी छुपी रुस्तम निकली? बताया तक नहीं कि विवाह कर रही हो?’’

‘‘ऐसा कुछ बताने को है भी नहीं, मैं तो अपने जैसे हमारी ही जाति के मध्यमवर्गीय परिवार के युवक से विवाह कर रही हूं. वह न तो तुम्हारे वर की भांति बड़े ऊंची जाति वाले घराने का है और ना ही लाखों में एक. वह तो मेरे जैसे साधारण रूपरंग वाला युवक है और इतना कमा लेता है कि हम दोनों आराम से रह सकें. सच पूछो तो उस के व्यवहार में बड़बोलापन कहीं नजर नहीं आया. बातबात पर हंसना और हंसाना. अब तक केवल दो बार मिली हूं उस से. पर न जाने कैसा जादू कर दिया है उस ने कि फोन पर घंटों व्हाट्सएप चैट कर के भी मन तृप्त नही.’’

‘‘यह तो बड़ा ही शुभ समाचार है. कुछ ही दिनों में परीक्षा समाप्त हो जाएंगी और हम दोनों बिछुड़ जाएंगे, पर अपने विवाह में बुलाना मत भूल जाना. आशीष को मारो गोली, उसे कोई और मिल जाएगी.’’

शिप्रा का रुख देख कर मोहिनी ने बात बदल दी थी.

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शिप्रा दूर तक मोहिनी को जाते हुए देखती रही थी. दोनों की घनिष्ठ मित्रता की चर्चा कालेज भर में थी. दोनों ही एक जिस्म एक जान थीं. लोगों को आश्चर्य होता था कि अलग जातियों के होते हुए भी इन की कैसे चल रही है. पर जब मोहिनी आशीष को ही ले उड़ी थी तो शिप्रा को संभालने में लंबा समय लगा था. उसे सारा संसार स्वार्थी और अर्थहीन लगने लगा था. आज वही मोहिनी उस के लिए आकाश को छोड़ने की बात कर रही थी मानो वह कोई कठपुतली हो, जिसे मोहिनी अपनी उंगलियों पर नचा सके. फिर उस ने एक झटके से इस विचार को झटक दिया था. परीक्षा सिर पर थी और वह मोहिनीआशीष प्रकरण में उलझ कर अपना भविष्य दांव पर नहीं लगा सकती.

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February 26, 2022 at 09:00AM

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