Monday 14 February 2022

कंगन- भाग 1: जब सालों बाद बेटे के सामने खुला वसुधा का राज

लेखिका- गीतिका सक्सेना

‘‘अरे,यह कमरे का क्या हाल बना रखा है रुचिता?’’ कमरे के फर्श पर फैले सामान को देख कर वसुधा ने पूछा.‘‘मां, राघव ने जो हीरे का कंगन दिया था शादी की वर्षगांठ पर नहीं मिल रहा. सारा सामान निकाल कर देख लिया, पता नहीं कहां है. मैं बहुत परेशान हो रही हूं कहीं खो तो नहीं गया. यहीं अलमारी में रखा रहता था… बाकी सब चीजें हैं बस वही नहीं है. राघव को बहुत बुरा लगेगा और नुकसान हो जाएगा सो अलग,’’ रुचिता ने परेशानी भरे स्वर में कहा.

‘‘जाएगा कहां घर में ही होगा तुम ज्यादा परेशान न हो, कहीं रख कर भूल गई होगी, मिल जाएगा,’’ वसुधा ने रुचिता की परेशानी कम करने को बात टाल दी. लेकिन वह भी सोच में पड़ गई कि रुचिता के कमरे में कभी कोई बाहर वाला नहीं जाता, कोरोना की वजह से आजकल सफाईवाली भी नहीं आ रही और रुचिता इतनी लापरवाह भी नहीं कि इतनी कीमती चीज कहीं भी रख दे. फिर कंगन जा कहां सकता है.

यों तो वसुधा और रुचिता दोनों सासबहू थीं, लेकिन आपस में बंधन बिलकुल मांबेटी जैसा था. वसुधा के एक ही बेटा था, राघव, जो आईआईटी से बीटैक कर के अब एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में सीईओ था. जब राघव 5 साल का था तभी उस के मातापिता का तलाक हो गया था, क्योंकि उस के पिता के अपने ही कार्यालय की एक महिला से संबंध थे. वसुधा ने तब से अकेले ही राघव की परवरिश की थी. उस ने राघव को कभी किसी चीज की कमी नहीं होने दी. उसे अच्छे स्कूल में पढ़ाया. राघव पढ़ाई में होशियार था सो उस का चयन आईआईटी में हो गया. वहीं कैंपस प्लेसमैंट भी हो गया और अब 15 साल बाद वह सीईओ बन गया था. इसी बीच वसुधा ने उस के लिए रुचिता को पसंद कर 2 साल पहले दोनों की शादी करवा दी थी. उस ने सोचा अब एक बेटी की कमी पूरी हो जाएगी. रुचिता भी वसुधा को मां की तरह मानती थी. दोनों को देख कर लोग अकसर उन्हें मांबेटी सम झते थे.

शाम को जब राघव अपने दफ्तर से लौटा तो रुचिता ने उस से पूछा कि कहीं उस ने वह कंगन कहीं रख तो नहीं दिया. लेकिन राघव ने भी कहा कि उसे कंगन के बारे में कुछ नहीं पता. अब तो रुचिता की सब्र का बांध टूट गया और वह फूटफूट कर रोने लगी.

उसे इस तरह रोता हुआ देख कर राघव ने उसे गले लगा कर कहा, ‘‘अरे क्यों परेशान हो रही हो मिल जाएगा और नहीं मिला तो कोई बात नहीं तुम पर ऐसे कई कंगन कुरबान. चलो रोना बंद करो और अपने हाथ की बढि़या चाय पिलाओ.’’

रुचिता मुंह धो कर चाय बना तो लाई, लेकिन उस का मन ठीक नहीं था. राघव ने उसे बताया कि उस के औफिस के कुछ साथी अगले दिन रात के खाने पर आने वाले हैं. उस ने कहा, ‘‘तुम मां के साथ मिल कर सारी तैयारी कर लेना. रोज तुम्हारे हाथ के बने टिफिन की तारीफ करते हैं सो मैं ने उन्हें घर पर बुला लिया. तुम्हें कोई तकलीफ तो नहीं होगी?’’

‘‘बिलकुल नहीं,’’ रुचिता ने कहा? ‘‘तुम्हारे लिए क्या मैं इतना भी नहीं कर सकती.’’

रुचिता को वैसे भी खाना बनाने का बहुत शौक था और राघव को खाने का. वह रोज नईनई रैसिपी बना कर राघव को खिलाती, वह भी उस के खाने की खूब तारीफ करता.

अगले दिन रुचिता ने सारा घर साफ किया और बढि़या सजावट कर के रसोई में जुट गई. वह जानती थी क्योंकि राघव के दफ्तर के साथ आ रहे थे सो यह उस के मानसम्मान का प्रश्न था. उस ने शाम तक बढि़या स्नैक्स, सूप, मेन कोर्स के लिए दाल मखनी, कड़ाही पनीर, स्टफ्ड टमाटर और दही भिंडी और मीठे में फ्रूट क्रीम बनाई और फिर वह खुद तैयार होने चली गई, आखिर उसे भी तो सीईओ की पत्नी जैसा लगना था.

अभी वह कपड़ों की अलमारी खोल कर सोच ही रही थी कि क्या पहने तभी वसुधा ने आ कर कहा, ‘‘सूट या साड़ी मत पहन लेना कोई राघव की पसंद की ड्रैस निकाल कर पहन लो उसे अच्छा लगेगा.’’

रुचिता खुश हो गई और फिर जल्दीजल्दी तैयार होने लगी. थोड़ी ही देर में राघव के साथ उस की मित्र कनिका और उस के 4 दोस्त आ गए. रुचिता ने सभी का स्वागत किया और सब को बैठा कर सूप और स्नैक्स लेने रसोई में चली गई. इसी बीच वसुधा एक बार सब से मिल कर अपने कमरे में चली गई.

राघव मां को बुलाने गया तो वसुधा ने कहा, ‘‘तुम बच्चे मौज करो मैं यहीं आराम करूंगी. मेरा खाना यहीं भिजवा देना.’’

घर की साजसज्जा देख कर और रुचिता के हाथ का खाना खा कर सब उस की खूब तारीफ कर रहे थे.

राघव भी खुशी से फूला नहीं समा रहा था कि तभी रुचिता की निगाह कनिका के कंगन पर गई अब उस के पैरों तले की जैसे जमीन खिसक गई. वह पहचान गई कि यह वही कंगन है जिसे वह ढूंढ़ रही थी. लेकिन यह कनिका के पास कैसे? तभी उस के दिमाग ने कहा राघव के अलावा कौन दे सकता है पर फिर उस के दिल ने कहा नहीं राघव मु झे धोखा नहीं दे सकता. एक बार फिर उस के दिमाग ने कहा तुम बेवकूफ हो, सुबूत तुम्हारे सामने है और तुम नकारा रही हो. फिर भी रुचिता ने सोचा कि बिना पूरी छानबीन के वह राघव से इस बारे में कोई बात नहीं करेगी. उसे गुस्सा तो बहुत आ रहा था, उस का मन कर रहा था कि इसी समय घर छोड़ कर चली जाए, लेकिन उस ने खुद को संभाला और कनिका के साथ बैठ कर उस से बातें करने लगी. उस ने उस से कई बातें पूछीं जिन से उसे पता चला कि वह एक गरीब घर की महत्त्वाकांक्षी लड़की है. अब वह कनिका को कुछकुछ सम झ रही थी.

The post कंगन- भाग 1: जब सालों बाद बेटे के सामने खुला वसुधा का राज appeared first on Sarita Magazine.



from कहानी – Sarita Magazine https://ift.tt/6zpnAQX

लेखिका- गीतिका सक्सेना

‘‘अरे,यह कमरे का क्या हाल बना रखा है रुचिता?’’ कमरे के फर्श पर फैले सामान को देख कर वसुधा ने पूछा.‘‘मां, राघव ने जो हीरे का कंगन दिया था शादी की वर्षगांठ पर नहीं मिल रहा. सारा सामान निकाल कर देख लिया, पता नहीं कहां है. मैं बहुत परेशान हो रही हूं कहीं खो तो नहीं गया. यहीं अलमारी में रखा रहता था… बाकी सब चीजें हैं बस वही नहीं है. राघव को बहुत बुरा लगेगा और नुकसान हो जाएगा सो अलग,’’ रुचिता ने परेशानी भरे स्वर में कहा.

‘‘जाएगा कहां घर में ही होगा तुम ज्यादा परेशान न हो, कहीं रख कर भूल गई होगी, मिल जाएगा,’’ वसुधा ने रुचिता की परेशानी कम करने को बात टाल दी. लेकिन वह भी सोच में पड़ गई कि रुचिता के कमरे में कभी कोई बाहर वाला नहीं जाता, कोरोना की वजह से आजकल सफाईवाली भी नहीं आ रही और रुचिता इतनी लापरवाह भी नहीं कि इतनी कीमती चीज कहीं भी रख दे. फिर कंगन जा कहां सकता है.

यों तो वसुधा और रुचिता दोनों सासबहू थीं, लेकिन आपस में बंधन बिलकुल मांबेटी जैसा था. वसुधा के एक ही बेटा था, राघव, जो आईआईटी से बीटैक कर के अब एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में सीईओ था. जब राघव 5 साल का था तभी उस के मातापिता का तलाक हो गया था, क्योंकि उस के पिता के अपने ही कार्यालय की एक महिला से संबंध थे. वसुधा ने तब से अकेले ही राघव की परवरिश की थी. उस ने राघव को कभी किसी चीज की कमी नहीं होने दी. उसे अच्छे स्कूल में पढ़ाया. राघव पढ़ाई में होशियार था सो उस का चयन आईआईटी में हो गया. वहीं कैंपस प्लेसमैंट भी हो गया और अब 15 साल बाद वह सीईओ बन गया था. इसी बीच वसुधा ने उस के लिए रुचिता को पसंद कर 2 साल पहले दोनों की शादी करवा दी थी. उस ने सोचा अब एक बेटी की कमी पूरी हो जाएगी. रुचिता भी वसुधा को मां की तरह मानती थी. दोनों को देख कर लोग अकसर उन्हें मांबेटी सम झते थे.

शाम को जब राघव अपने दफ्तर से लौटा तो रुचिता ने उस से पूछा कि कहीं उस ने वह कंगन कहीं रख तो नहीं दिया. लेकिन राघव ने भी कहा कि उसे कंगन के बारे में कुछ नहीं पता. अब तो रुचिता की सब्र का बांध टूट गया और वह फूटफूट कर रोने लगी.

उसे इस तरह रोता हुआ देख कर राघव ने उसे गले लगा कर कहा, ‘‘अरे क्यों परेशान हो रही हो मिल जाएगा और नहीं मिला तो कोई बात नहीं तुम पर ऐसे कई कंगन कुरबान. चलो रोना बंद करो और अपने हाथ की बढि़या चाय पिलाओ.’’

रुचिता मुंह धो कर चाय बना तो लाई, लेकिन उस का मन ठीक नहीं था. राघव ने उसे बताया कि उस के औफिस के कुछ साथी अगले दिन रात के खाने पर आने वाले हैं. उस ने कहा, ‘‘तुम मां के साथ मिल कर सारी तैयारी कर लेना. रोज तुम्हारे हाथ के बने टिफिन की तारीफ करते हैं सो मैं ने उन्हें घर पर बुला लिया. तुम्हें कोई तकलीफ तो नहीं होगी?’’

‘‘बिलकुल नहीं,’’ रुचिता ने कहा? ‘‘तुम्हारे लिए क्या मैं इतना भी नहीं कर सकती.’’

रुचिता को वैसे भी खाना बनाने का बहुत शौक था और राघव को खाने का. वह रोज नईनई रैसिपी बना कर राघव को खिलाती, वह भी उस के खाने की खूब तारीफ करता.

अगले दिन रुचिता ने सारा घर साफ किया और बढि़या सजावट कर के रसोई में जुट गई. वह जानती थी क्योंकि राघव के दफ्तर के साथ आ रहे थे सो यह उस के मानसम्मान का प्रश्न था. उस ने शाम तक बढि़या स्नैक्स, सूप, मेन कोर्स के लिए दाल मखनी, कड़ाही पनीर, स्टफ्ड टमाटर और दही भिंडी और मीठे में फ्रूट क्रीम बनाई और फिर वह खुद तैयार होने चली गई, आखिर उसे भी तो सीईओ की पत्नी जैसा लगना था.

अभी वह कपड़ों की अलमारी खोल कर सोच ही रही थी कि क्या पहने तभी वसुधा ने आ कर कहा, ‘‘सूट या साड़ी मत पहन लेना कोई राघव की पसंद की ड्रैस निकाल कर पहन लो उसे अच्छा लगेगा.’’

रुचिता खुश हो गई और फिर जल्दीजल्दी तैयार होने लगी. थोड़ी ही देर में राघव के साथ उस की मित्र कनिका और उस के 4 दोस्त आ गए. रुचिता ने सभी का स्वागत किया और सब को बैठा कर सूप और स्नैक्स लेने रसोई में चली गई. इसी बीच वसुधा एक बार सब से मिल कर अपने कमरे में चली गई.

राघव मां को बुलाने गया तो वसुधा ने कहा, ‘‘तुम बच्चे मौज करो मैं यहीं आराम करूंगी. मेरा खाना यहीं भिजवा देना.’’

घर की साजसज्जा देख कर और रुचिता के हाथ का खाना खा कर सब उस की खूब तारीफ कर रहे थे.

राघव भी खुशी से फूला नहीं समा रहा था कि तभी रुचिता की निगाह कनिका के कंगन पर गई अब उस के पैरों तले की जैसे जमीन खिसक गई. वह पहचान गई कि यह वही कंगन है जिसे वह ढूंढ़ रही थी. लेकिन यह कनिका के पास कैसे? तभी उस के दिमाग ने कहा राघव के अलावा कौन दे सकता है पर फिर उस के दिल ने कहा नहीं राघव मु झे धोखा नहीं दे सकता. एक बार फिर उस के दिमाग ने कहा तुम बेवकूफ हो, सुबूत तुम्हारे सामने है और तुम नकारा रही हो. फिर भी रुचिता ने सोचा कि बिना पूरी छानबीन के वह राघव से इस बारे में कोई बात नहीं करेगी. उसे गुस्सा तो बहुत आ रहा था, उस का मन कर रहा था कि इसी समय घर छोड़ कर चली जाए, लेकिन उस ने खुद को संभाला और कनिका के साथ बैठ कर उस से बातें करने लगी. उस ने उस से कई बातें पूछीं जिन से उसे पता चला कि वह एक गरीब घर की महत्त्वाकांक्षी लड़की है. अब वह कनिका को कुछकुछ सम झ रही थी.

The post कंगन- भाग 1: जब सालों बाद बेटे के सामने खुला वसुधा का राज appeared first on Sarita Magazine.

February 15, 2022 at 09:00AM

No comments:

Post a Comment