Saturday 19 February 2022

परछाई- भाग 1: मायका या ससुराल, क्या था माही का फैसला?

माही को 2 शादियों के कार्ड एकसाथ मिले. एक भाई की बेटी की शादी का और एक जेठजी की बेटी की शादी का. दोनों शादियां भी एक ही दिन थीं और दोनों ही रिश्ते ऐसे कि शादी में जाना टाला नहीं जा सकता था.

माही कार्ड को उलटपुलट कर ऐसे देखने लगी, जैसे ध्यान से देखने पर कोई न कोई सुराग मिल जाएगा या कोई दूसरी तारीख मिल जाएगी. या फिर कोई दूसरी सूरत मिल जाएगी दोनों शादियां अटैंड करने की. वह क्या करेगी अब? भाई की बेटी की शादी में शामिल नहीं हो पाएगी तो भैयाभाभी की नाराजगी झेलनी पड़ेगी और अगर जेठजी की बेटी की शादी में शामिल नहीं हुई तो जेठजेठानी उस की मजबूरी समझ कर कुछ कहेंगे नहीं पर उन के प्यार भरे उलाहने का सामना कैसे करेगी?

किंकर्तव्यविमूढ़ सी वह पास पड़ी कुरसी पर बैठ गई. विभव से पूछेगी तो वे तपाक से कह देंगे कि जो तुम्हें ठीक लगता है वह करो. वह फिर दोराहे पर खड़ी हो जाएगी. या फिर बहुत अच्छे मूड में होंगे तो कह देंगे कि तुम अपने

भाई की बेटी की शादी में शामिल हो जाओ और मैं अपने भाई की बेटी की शादी में शामिल हो जाता हूं. लेकिन वह ऐसा नहीं कर सकती. शाम होने को थी, अंधेरा धीरेधीरे चारों तरफ फैल रहा था.

उस का दिल वहां पहुंच गया जब उमंगें थीं, रंगीन इंद्रधनुषी सपने थे, मातापिता थे. उस की कुलांचे भरने वाली उम्र थी. वे 2 भाईबहन थे. मातापिता की इकलौती लाडली बेटी. भाई के बाद लगभग 10 सालों के बाद हुई, इसलिए भाई का भी लाड़प्यार भरपूर मिला. वह 20 साल की थी जब भाई की शादी हुई. आम लड़कियों की तरह उस के भी कई अरमान थे भाई की शादी के… काफी लड़कियां देखने के बाद सिमरन पसंद आ गई. भाई के सेहरा बांधे देख हर बहन की तरह वह भी खुश थी.

ये भी पढ़ें- प्यार नहीं पागलपन: लावण्य से मुलाकात के बाद अशोक के साथ क्या हुआ?

भाभी ने जब घर में कदम रखा तो खुशियां जैसे उन के घर के दरवाजे पर हाथ बांधे खड़ी हो गईं. भाभी 23 साल की थीं, उम्र का फासला कम था. उसे लगा उसे हमउम्र एक सहेली मिल गई. अभी तक तो घर में सभी बडे़ थे. 3 साल उसे भाभी के सान्निध्य में रहने का मौका मिला. 23 साल की उम्र में उस की भी शादी हो गई. पहले मां काम करती थीं तो वह निश्चिंत हो कर अपनी पढ़ाई करती थी. मां भाभी की भी किचन में पूरी मदद करती थीं. पर भाभी न जाने क्यों उस से हमेशा चिढ़ी सी ही रहती थीं. शायद उन्हें लगता था कि यह आराम से अपनी पढ़ाई कर रही है. बाकी सारा काम मुझे ही करना पड़ता है. नई होने के कारण वे अधिक नहीं बोल पाती थीं पर भावभंगिमाओं से सब जता देती थीं.

भाभी के हावभाव समझ कर वह भी किचन में हाथ बंटाने की कोशिश करने लगी तो मां ने टोक दिया, ‘तू जा…अपनी पढ़ाई कर… ये काम तो जिंदगी भर करने हैं…’ वह जाने को हुई तो भाभी बोल पड़ीं, ‘पर काम आएगा नहीं तो आगे करेगी कैसे?’ उसे समझ नहीं आया कि भाभी की बात माने कि मां की. वह एम.एससी. कर रही थी. पढ़ने में वह हमेशा कक्षा में अच्छे विद्यार्थियों में गिनी जाती रही. भाभी अपनी चुप्पी के पीछे से भी पूरी दबंगता दिखा देती थीं. भाई भी उस से अब पहले की तरह बेतकल्लुफ नहीं रहते थे. पहले की तरह भाई से फरमाइश करने की उस की अब हिम्मत नहीं पड़ती थी.

भाई कहीं बाहर तो जाते तो भाभी के लिए कई चीजें खरीद कर लाते. वह बहुत उम्मीद से देखती कि शायद उस के लिए भी कुछ खरीद कर लाए हों, पर ऐसा होता नहीं था. उसे किसी बात की कमी नहीं थी पर भाई का कुछ न लाना जता देता कि अब उन की जिंदगी में उस की कोई अहमियत नहीं रह गई है. उस ने यह मासूम सी शिकायत मां से की तो उन्होंने उसे ही समझा दिया, ‘ऐसा तो होता ही है पगली. तेरी शादी होगी तो तेरा पति भी तेरे लिए ऐसे ही लाएगा, पति के लिए पत्नी सब कुछ होती है.’

‘और लोग कुछ नहीं होते?’

‘होते हैं… पर पत्नी से कम ही होते हैं.’ 2 साल तक भाभी का व्यवहार समझते हुए भी उस ने अधिक ध्यान नहीं दिया. उस के लिए भाभी फिर भी अपनी थीं पर भाभी उसे कभी अपना नहीं समझ पाईं. उस के 23 की होतेहोते मातापिता ने उस के लिए लड़का देखना शुरू कर दिया. विभव बैंक में अफसर थे. उन के घर में 2 भाई व 1 बहन और मां थीं. वहां सब कुछ अच्छा देख कर उस का रिश्ता तय हो गया और फिर उस की शादी हो गई. उस ने सोचा कि अब भाभी के साथ उस के रिश्ते सहज हो जाएंगे, जब वह कभीकभी आएगी तो भाभी भी उसे पूरा सम्मान देंगी.

ये भी पढ़ें- पहेली: जब अमित की जिंदगी में हुई कनिका की एंट्री

ससुराल में सभी ने उसे हाथोंहाथ लिया पर घर में जेठानी का ही राज था. वे पूरे परिवार पर छाई हुई थीं. सास, ननद व यहां तक की उस के पति के दिलोदिमाग पर भी वही राज कर रही थीं. वह अनायास ही ईर्ष्या से भर उठी. मायके जाती तो वहां सब कुछ भाभी का तो यहां सब कुछ जेठानी का.

धीरेधीरे न चाहते हुए भी उस के मन में जेठानी के प्रति ईर्ष्या की भावना घर कर गई. पति से कुछ भी पूछती तो एक ही जवाब मिलता कि भाभी से पूछ लो.

‘साड़ी खरीदनी है साथ चलो,’ तो उसे जवाब मिलता, ‘भाभी के साथ चली जाओ’ या फिर, ‘चलो भाभी को भी साथ ले चलते हैं, उन की पसंद बहुत अच्छी है.’’

‘खाने में क्या बनाऊं…’

‘भाभी से पूछ लो.’

सास भी बड़ी बहू से पूछे बिना कुछ न करतीं. उसे सब प्यार करते पर महत्त्व बड़ी को ही देते. जेठानी के साथ समझौता करना उसे अच्छा नहीं लगता था. जेठानी उस का रुख समझ कर बहुत संभल कर चलतीं पर कुछ न कुछ हो ही जाता. जेठजेठानी कहीं जाते तो बच्चे घर छोड़ जाते. बच्चों की चाचा के साथ घूमने की आदत तो पहले से ही थी. अब चाची भी आ गईं. तो क्या… वे दोनों कहीं भी जाना चाहते तो दोनों बच्चे भी उन के साथ लग लेते. वह विभव पर भुनभुनाती, ‘नई शादी हमारी हुई है या जेठजेठानी की? वे दोनों तो अकेले जाते हैं और हमारे साथ ये दोनों लग लेते हैं.’

‘तो क्या हुआ माही… उन्हें इस बात की समझ थोड़े ही है… बच्चे ही तो हैं.’

‘ये ऐसे ही हमारे साथ जाते रहे तो जब तक ये बड़े होंगे तब तक हम बूढ़े हो जाएंगे…’

‘अरे, जब हमारे चुनमुन होंगे तो उन्हें भाभी संभालेगी तब हम खूब अकेले घूमेंगे.’

‘जरूर संभालेंगी… अपने तो संभलते नहीं…’

जेठानी उस का मूड समझ कर बच्चों को जबरन रोकतीं. न मानने पर 1-2 थप्पड़ तक जड़ देतीं. बच्चे रोते तो उन्हें रोता देख कर विभव का मूड खराब हो जाता. और विभव का खराब मूड देख कर उस का मूड खराब हो जाता और जाने का सारा मजा किरकिरा हो जाता. उसे जेठानी पर तब और भी गुस्सा आता. लेकिन जिन बातों में वह जेठानी के साथ समझौता नहीं करना चाहती थी, उन्हीं बातों में भाभी के साथ समझौता करने की कोशिश करती. उन्हें खुश रखने का प्रयास करती ताकि उन के साथ संबंध अच्छे बने रहें.

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माही को 2 शादियों के कार्ड एकसाथ मिले. एक भाई की बेटी की शादी का और एक जेठजी की बेटी की शादी का. दोनों शादियां भी एक ही दिन थीं और दोनों ही रिश्ते ऐसे कि शादी में जाना टाला नहीं जा सकता था.

माही कार्ड को उलटपुलट कर ऐसे देखने लगी, जैसे ध्यान से देखने पर कोई न कोई सुराग मिल जाएगा या कोई दूसरी तारीख मिल जाएगी. या फिर कोई दूसरी सूरत मिल जाएगी दोनों शादियां अटैंड करने की. वह क्या करेगी अब? भाई की बेटी की शादी में शामिल नहीं हो पाएगी तो भैयाभाभी की नाराजगी झेलनी पड़ेगी और अगर जेठजी की बेटी की शादी में शामिल नहीं हुई तो जेठजेठानी उस की मजबूरी समझ कर कुछ कहेंगे नहीं पर उन के प्यार भरे उलाहने का सामना कैसे करेगी?

किंकर्तव्यविमूढ़ सी वह पास पड़ी कुरसी पर बैठ गई. विभव से पूछेगी तो वे तपाक से कह देंगे कि जो तुम्हें ठीक लगता है वह करो. वह फिर दोराहे पर खड़ी हो जाएगी. या फिर बहुत अच्छे मूड में होंगे तो कह देंगे कि तुम अपने

भाई की बेटी की शादी में शामिल हो जाओ और मैं अपने भाई की बेटी की शादी में शामिल हो जाता हूं. लेकिन वह ऐसा नहीं कर सकती. शाम होने को थी, अंधेरा धीरेधीरे चारों तरफ फैल रहा था.

उस का दिल वहां पहुंच गया जब उमंगें थीं, रंगीन इंद्रधनुषी सपने थे, मातापिता थे. उस की कुलांचे भरने वाली उम्र थी. वे 2 भाईबहन थे. मातापिता की इकलौती लाडली बेटी. भाई के बाद लगभग 10 सालों के बाद हुई, इसलिए भाई का भी लाड़प्यार भरपूर मिला. वह 20 साल की थी जब भाई की शादी हुई. आम लड़कियों की तरह उस के भी कई अरमान थे भाई की शादी के… काफी लड़कियां देखने के बाद सिमरन पसंद आ गई. भाई के सेहरा बांधे देख हर बहन की तरह वह भी खुश थी.

ये भी पढ़ें- प्यार नहीं पागलपन: लावण्य से मुलाकात के बाद अशोक के साथ क्या हुआ?

भाभी ने जब घर में कदम रखा तो खुशियां जैसे उन के घर के दरवाजे पर हाथ बांधे खड़ी हो गईं. भाभी 23 साल की थीं, उम्र का फासला कम था. उसे लगा उसे हमउम्र एक सहेली मिल गई. अभी तक तो घर में सभी बडे़ थे. 3 साल उसे भाभी के सान्निध्य में रहने का मौका मिला. 23 साल की उम्र में उस की भी शादी हो गई. पहले मां काम करती थीं तो वह निश्चिंत हो कर अपनी पढ़ाई करती थी. मां भाभी की भी किचन में पूरी मदद करती थीं. पर भाभी न जाने क्यों उस से हमेशा चिढ़ी सी ही रहती थीं. शायद उन्हें लगता था कि यह आराम से अपनी पढ़ाई कर रही है. बाकी सारा काम मुझे ही करना पड़ता है. नई होने के कारण वे अधिक नहीं बोल पाती थीं पर भावभंगिमाओं से सब जता देती थीं.

भाभी के हावभाव समझ कर वह भी किचन में हाथ बंटाने की कोशिश करने लगी तो मां ने टोक दिया, ‘तू जा…अपनी पढ़ाई कर… ये काम तो जिंदगी भर करने हैं…’ वह जाने को हुई तो भाभी बोल पड़ीं, ‘पर काम आएगा नहीं तो आगे करेगी कैसे?’ उसे समझ नहीं आया कि भाभी की बात माने कि मां की. वह एम.एससी. कर रही थी. पढ़ने में वह हमेशा कक्षा में अच्छे विद्यार्थियों में गिनी जाती रही. भाभी अपनी चुप्पी के पीछे से भी पूरी दबंगता दिखा देती थीं. भाई भी उस से अब पहले की तरह बेतकल्लुफ नहीं रहते थे. पहले की तरह भाई से फरमाइश करने की उस की अब हिम्मत नहीं पड़ती थी.

भाई कहीं बाहर तो जाते तो भाभी के लिए कई चीजें खरीद कर लाते. वह बहुत उम्मीद से देखती कि शायद उस के लिए भी कुछ खरीद कर लाए हों, पर ऐसा होता नहीं था. उसे किसी बात की कमी नहीं थी पर भाई का कुछ न लाना जता देता कि अब उन की जिंदगी में उस की कोई अहमियत नहीं रह गई है. उस ने यह मासूम सी शिकायत मां से की तो उन्होंने उसे ही समझा दिया, ‘ऐसा तो होता ही है पगली. तेरी शादी होगी तो तेरा पति भी तेरे लिए ऐसे ही लाएगा, पति के लिए पत्नी सब कुछ होती है.’

‘और लोग कुछ नहीं होते?’

‘होते हैं… पर पत्नी से कम ही होते हैं.’ 2 साल तक भाभी का व्यवहार समझते हुए भी उस ने अधिक ध्यान नहीं दिया. उस के लिए भाभी फिर भी अपनी थीं पर भाभी उसे कभी अपना नहीं समझ पाईं. उस के 23 की होतेहोते मातापिता ने उस के लिए लड़का देखना शुरू कर दिया. विभव बैंक में अफसर थे. उन के घर में 2 भाई व 1 बहन और मां थीं. वहां सब कुछ अच्छा देख कर उस का रिश्ता तय हो गया और फिर उस की शादी हो गई. उस ने सोचा कि अब भाभी के साथ उस के रिश्ते सहज हो जाएंगे, जब वह कभीकभी आएगी तो भाभी भी उसे पूरा सम्मान देंगी.

ये भी पढ़ें- पहेली: जब अमित की जिंदगी में हुई कनिका की एंट्री

ससुराल में सभी ने उसे हाथोंहाथ लिया पर घर में जेठानी का ही राज था. वे पूरे परिवार पर छाई हुई थीं. सास, ननद व यहां तक की उस के पति के दिलोदिमाग पर भी वही राज कर रही थीं. वह अनायास ही ईर्ष्या से भर उठी. मायके जाती तो वहां सब कुछ भाभी का तो यहां सब कुछ जेठानी का.

धीरेधीरे न चाहते हुए भी उस के मन में जेठानी के प्रति ईर्ष्या की भावना घर कर गई. पति से कुछ भी पूछती तो एक ही जवाब मिलता कि भाभी से पूछ लो.

‘साड़ी खरीदनी है साथ चलो,’ तो उसे जवाब मिलता, ‘भाभी के साथ चली जाओ’ या फिर, ‘चलो भाभी को भी साथ ले चलते हैं, उन की पसंद बहुत अच्छी है.’’

‘खाने में क्या बनाऊं…’

‘भाभी से पूछ लो.’

सास भी बड़ी बहू से पूछे बिना कुछ न करतीं. उसे सब प्यार करते पर महत्त्व बड़ी को ही देते. जेठानी के साथ समझौता करना उसे अच्छा नहीं लगता था. जेठानी उस का रुख समझ कर बहुत संभल कर चलतीं पर कुछ न कुछ हो ही जाता. जेठजेठानी कहीं जाते तो बच्चे घर छोड़ जाते. बच्चों की चाचा के साथ घूमने की आदत तो पहले से ही थी. अब चाची भी आ गईं. तो क्या… वे दोनों कहीं भी जाना चाहते तो दोनों बच्चे भी उन के साथ लग लेते. वह विभव पर भुनभुनाती, ‘नई शादी हमारी हुई है या जेठजेठानी की? वे दोनों तो अकेले जाते हैं और हमारे साथ ये दोनों लग लेते हैं.’

‘तो क्या हुआ माही… उन्हें इस बात की समझ थोड़े ही है… बच्चे ही तो हैं.’

‘ये ऐसे ही हमारे साथ जाते रहे तो जब तक ये बड़े होंगे तब तक हम बूढ़े हो जाएंगे…’

‘अरे, जब हमारे चुनमुन होंगे तो उन्हें भाभी संभालेगी तब हम खूब अकेले घूमेंगे.’

‘जरूर संभालेंगी… अपने तो संभलते नहीं…’

जेठानी उस का मूड समझ कर बच्चों को जबरन रोकतीं. न मानने पर 1-2 थप्पड़ तक जड़ देतीं. बच्चे रोते तो उन्हें रोता देख कर विभव का मूड खराब हो जाता. और विभव का खराब मूड देख कर उस का मूड खराब हो जाता और जाने का सारा मजा किरकिरा हो जाता. उसे जेठानी पर तब और भी गुस्सा आता. लेकिन जिन बातों में वह जेठानी के साथ समझौता नहीं करना चाहती थी, उन्हीं बातों में भाभी के साथ समझौता करने की कोशिश करती. उन्हें खुश रखने का प्रयास करती ताकि उन के साथ संबंध अच्छे बने रहें.

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February 19, 2022 at 02:33PM

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