Wednesday 16 February 2022

बेवकूफ: क्यों अंकित अपने ही हाथों अपना घर तबाह करना चाहता था

अंकित जब इस कसबे में प्रवक्ता हो कर आया तो सालभर पहले ब्याही नीरा को भी साथ लेता आया था. नीरा के मन में बड़ी उमंग थी. कालेज के बाद सारे समय दोनों साथ रहेंगे. संयुक्त परिवार में स्वच्छंदता की जो चाह दबी रही उसे पूरी करने की ललक मात्र ने उस की कामनाओं के कमल खिला दिए.

छोटा सा कसबा, छोटा सा घर. घर में पतिपत्नी कहो या प्रेमीप्रेमिका, मात्र 2 प्राणी वैसे ही रहेंगे जैसे किसी घोंसले में बैठे पक्षी भावभरी आंखों में एकदूसरे को निहार कर मुग्ध होते रहते हैं. अतृप्त आकांक्षाओं की पूर्ति का सपना तनमन को सराबोर सा कर रहा था.

नीरा को यह सपना सच होता भी लगा. ब्लौक औफिस के बड़े बाबू सरोजजी की मेहरबानी से मकान की समस्या हल हो गई. शांत एकांत में बनी कालोनी का एक क्वार्टर उन्हें मिल गया और अकेलेपन में नीरा का साथ देने के लिए बड़े बाबू की पत्नी विमला का साथ भी था. विमला ने बड़ी बहन जैसे स्नेह से नीरा की आवभगत की थी और उन की बेटी सुगंधा और निर्मला तो जैसे उस की हमउम्र सहेलियां बन गई थीं. दोनों परिवारों में नजदीकियां इतनी जल्दी हो गईं कि कुछ पता ही नहीं चला और जब चला तो नीरा के हाथों के तोते उड़ गए.

नीरा वैसे तो सुगंधा की मुक्त हंसी के साथ उस के मददगार स्वभाव की कायल थी. वह घर के काम में सहायता करती और काम यदि अंकित का होता तो वह और तत्परता से करती. अंकित जब खाने के बाद कपड़े पहन कर कहता, ‘कितनी बार तुम से कहा है कि बटन कपड़े साफ  करने से पहले ही टांक दिया करो.’ सुगंधा तब नीरा के बोलने से पहले ही बोल पड़ती, ‘लाओ, मैं टांक देती हूं. भाभी को तो पहले से ही बहुत काम करने को पड़े हैं. औरत की जिंदगी भी कोई जिंदगी है. कोल्हू के बैल सी जुती रहो रातदिन.’

सुगंधा आंखें  झपकाती हुई जिस तरह अपने मोहक चेहरे पर हंसी और गुस्से का मिलाजुला रूप प्रकट करती वह अंकित को अपना मुरीद बनाने को काफी था. ऐसे में बटन टांकती सुगंधा हौले से अपनी उंगलियां अंकित के चौड़े सीने के बालों पर फिरा देती.

ये भी पढ़ें- सायोनारा: क्या हुआ था अंजू और देव के बीच?

अंकित को लगता, जैसे किसी ने उस के दिल के तारों को छेड़ दिया है, जिस की मधुर  झंकार अपनी थरथराहट देर तक अनुभव कराती रहती.

कभीकभी वह जानबू झ कर बटन तोड़ बैठता ताकि सुगंधा के स्पर्शसुख का आनंद ले सके. ऐसे मौके पर सुगंधा इठला कर कहती, ‘देखती हूं, आजकल तुम्हारे बटन रोजरोज टूटने लगे हैं.’

‘जब कोई टांकने वाली हो तो बटन क्या किसी से पूछ कर टूटेंगे,’ अंकित ने सधे शब्दों में अपनी बात कह दी.

अंकित की बात से सुगंधा की आंखें चमक उठीं. अपने होंठों की मुसकान समेटते हुए उस ने आंखों को ऊपर चढ़ा कर कहा, ‘भाभी का लिहाज कर के मैं बटन टांक देती हूं वरना तुम में कोई सुरखाब के पर नहीं लगे हैं.’

‘वह तो तुम्हीं लोगों के लगे होते हैं, हमारी औकात ही क्या?’ अंकित ने मुसकरा कर कहा तो नीरा चौंक गई.

एक दिन नीरा ने देखा, सुगंधा अंकित के सीने पर उंगली फिरा रही थी और अंकित मुंह से ध?ागा काटती सुगंधा के सिर को सूंघ रहा था. नीरा अब जान पाई कि सुगंधा उस के घर अधिकतर तभी क्यों आती है जब अंकित घर पर होता है.

उस ने सुगंधा के आनेजाने पर गहरी दृष्टि रखनी शुरू की. एक दिन सुगंधा की मां से नीरा बोली, ‘‘चाची, सुगंधा की शादी कब कर रही हो? अभी तो दूसरी बेटी भी ब्याहनी है. बाप के रिटायर होने से पहले दोनों के हाथ पीले हो जाएं तो अच्छा है.’’

‘‘क्या कहूं बहू, आजकल की लड़कियों की जिद तो जानती ही हो. कहती है, पहले एमए करूंगी उस के बाद ब्याह की बात. लोग पढ़ीलिखी लड़की को ज्यादा पसंद करते हैं. अब अंकित से पढ़ाई में सहयोग लेने की बात कर रही थी,’’ विमला ने अपनी भारीभरकम काया को ऊपरनीचे करते हुए कहा.

‘‘यह तो है, पर शादी की उम्र निकल गई तो डिग्रियों को कौन पूछेगा? मेरी सम झ में सुगंधा मु झ से छोटी तो कतई नहीं होगी,’’ नीरा ने ठहरठहर कर कहा.

विमला इस तथ्य से अनभिज्ञ हो ऐसा न था, लेकिन अपनी बेटी की बढ़ती आयु का प्रश्न उसे अपनी लाचारी का बोध करा गया. वह कटुता से बोली, ‘‘ऊपर वाला किसी को बेटी न दे. घरवाले खिलाते हैं, बाहर वालों को तकलीफ होती है. जिस की चाहे जितनी मदद करो, गैर आदमी कभी अपना हुआ है?’’

इस के बाद 2-3 दिन तक सुगंधा अंकित के घर नहीं आई तो अंकित को कुछ अटपटा लगा. नीरा भी दरवाजे पर खड़ी हो कर देखती कि दिनभर उस के घर मंडराने वाली सुगंधा को चैन कैसे पड़ता होगा बिना यहां आए. कहीं वह बीमार तो नहीं पड़ गई?

आखिर तीसरे दिन अंकित ने कालेज से आते समय बड़े बाबू के घर जा कर खोजखबर ली. इस के पहले वह नीरा से पूछना चाहता था मगर कहीं वह संदेह न करने लगे, यह सोच कर नहीं पूछा.

बड़े बाबू घर में नहीं थे, न ही सुगंधा की मां या बहन थी. सूने घर में सुगंधा तकिए के खोल पर कढ़ाई कर रही थी. वह अपने काम में इतना तल्लीन थी कि अंकित ने उस की आंखें बंद कर लीं. वह जान ही न सकी. वह सम झी कि अकेलेपन से ऊब कर नीरा दीदी आई हैं, परंतु जब अंकित ने हथेलियों को हटाने का उपक्रम किया तो उसे उन हाथों के स्पर्श का भान हुआ. वह ‘उई मां’ कहती हुई चौंक कर छिटकी और कमरे के दूसरे छोर पर जा खड़ी हुई. फिर आंखें नचा कर बोली, ‘‘शरारत पर उतारू हो, पहले भाभी से इजाजत ले लेते तो ठीक था.’’

‘‘क्यों, क्या बात है? क्या मु झे जोरू का गुलाम सम झ रखा है,’’ कह कर अंकित उस की ओर बढ़ा, तो ‘न न’ करती सुगंधा उस की बांहों में आ गई. अंकित ने पूछा. ‘‘नाराज तो नहीं हो?’’

‘‘तुम से नाराज होने का अर्थ खुद अपनेआप से नाराज होना है. 2-3 दिन तुम्हें देखे बिना जैसे काटे हैं, मैं ही जानती हूं. भाभी का वश चलता तो तुम्हारे पैरों में बेडि़यां डाल देतीं,’’ अंकित की गरदन पर सिर रखे सुगंधा सुबक कर बोली.

अंकित ने उस के आंसू पोंछे. सांत्वना देते उस ने हाथ सुगंधा की पीठ पर फिराया तो उस का सारा शरीर जैसे  झन झना उठा. जवानी के मादक स्पर्श और एकांत ने दोनों की सुधबुध हर ली. दोनों आवेश से गुजर रहे थे. दोनों के तनमन जैसे एकदूसरे में समा जाने को बेचैन हो रहे हों.

इसी समय विमला बाजार से आ गई. दोनों को अजीब हालत में देख कर अंकित से बोली, ‘‘घर में अकेली लड़की पा कर उस की इज्जत पर हमला बोलते तुम्हें शर्म नहीं आई? आने दो बड़े बाबू को. तुम्हारी एकएक हरकत न बताई तो कहना. ठीक कर दूंगी, सम झते क्या हो? तुम्हें मकान इसीलिए दिलाया था कि हमारे घर पर ही डाका डालो.’’

घायल नागिन की तरह विमला की फुंफकार देख कर अंकित के होश उड़ गए. वह चुपचाप गरदन नीची कर के बाहर जाने लगा तो मां की नजर बचा कर आंख दबा कर सुगंधा ने उसे गंभीरता से न लेने का संकेत किया.

अंकित घर आया तो उस के हवाइयां उड़ते चेहरे को देख कर नीरा घबरा गई. पहले तो वह निढाल सा पड़ा रहा, फिर अकबक करने लगा तो नीरा घबरा गई और वह विमला चाची को बुलाने चली गई.

विमला ने नीरा की दशा पर तरस खाते हुए कहा, ‘‘चलो, मैं आती हूं. मर्द जात को हजार परेशानियां रहती हैं. कोई बेमन की बात हुई होगी. वह भावुक आदमी है, मन परेशान हो उठा होगा.’’

विमला ने आते ही हंस कर कुछ कहने से पहले अंकित की ओर देखा, फिर हथेलियों से उस का सिर सहला कर कहा, ‘‘क्या तबीयत ज्यादा घबरा रही है? घबराओ नहीं, सब ठीक हो जाएगा.’’

विमला चाची के पांव छूते हुए अंकित बोला, ‘‘अब आप आ गई हैं तो लगता है मेरी मां आ गई है. अब जी ठीक है, थोड़ा सिरदर्द है.’’

‘‘इसे थोड़ा सिरदर्द कहते हो, ऐसे ही डिप्रैशन की शुरुआत होती है,’’ फिर नीरा से बोली, ‘‘आदमी की इच्छा के विरुद्ध कोई काम जानलेवा हो सकता है.’’

तब तक सुगंधा आ चुकी थी. उस ने धीरेधीरे अंकित का सिर सहलाया, बालों में उंगलियां फिराईं और वह ठीक हो गया.

विमला के इस बदलाव को देख कर अंकित को आश्चर्य हो रहा था. यह आश्चर्य उस ने इशारे से सुगंधा से जाहिर किया तो वह धीरे से बोली, ‘‘मैं ने जान देने की धमकी दी है तब मानी हैं. बस, उन्हें खुश रखने की जरूरत है.’’

अंकित को राहत मिल गई. नीरा रसोई में शायद चाय बना रही थी. विमला चाची को घर में ताला लगाना याद आ गया और वे चली गईं. सुगंधा अंकित का हाथ सहलाते हुई बोली, ‘‘मां दिल की बड़ी साफ हैं. तुम्हारी इतनी बड़ी हरकत  झेल गईं. कल उन के लिए साड़ी और शौल ले कर आना.’’

आत्मीय वातावरण में चाय पी गई. नीरा को लगा, मांबेटी ने उसे उबार लिया है. अब उसे सुगंधा के पढ़ने पर एतराज हो कर भी, एतराज नहीं था. पति की जिंदगी का सवाल जो था.

अंकित की अधिकांश कमाई सुगंधा के घर वालों पर खर्च होते देख कर नीरा को कोफ्त तो होती मगर लाचार थी. दिल कचोट कर रह जाता, पर अंकित के डिप्रैशन में जाने का डर था. सुगंधा रोज देररात तक उस के पास ही पढ़ती और कभी वह स्वयं सुगंधा के घर पढ़ा आता. विमला तो उस पर जैसे बलिहारी जाती.

इधर एक परिवर्तन यह हुआ कि विमला के घर उस का दूर का भतीजा विनोद अकसर आने लगा. सुगंधा भी उस में रुचि लेती थी. यह बात अंकित की सहनशक्ति से बाहर थी. अंकित के सामने ही विनोद पर सुगंधा का पूरा ध्यान देना कुछ अनकही कह रहा था. उसे विनोद का व्यवहार भाई जैसा भी नहीं लग रहा था परंतु सुगंधा इस बाबत कुछ कहने पर उसे बहला कर रूठती हुई बोली, ‘‘तुम्हारे मन में पाप है. भाई के सामने तुम्हारा ध्यान रख कर मु झे क्या बदनाम होना है?’’

वह अगले 2 दिन तक रूठी रही तो अंकित ने उस से कहा, ‘‘आखिर तुम चाहती क्या हो?’’

‘‘नीरा भाभी को जेवरों से लादे हो. मेरे नाम पर फूटी कौड़ी भी है कभी?’’ सुगंधा मुंह फुला कर बोली.

‘‘तुम हुक्म तो करो,’’ अंकित ने मामला संभालना चाहा.

‘‘आज रात को नीरा के सारे जेवर ले आना और दरवाजा खुला छोड़ देना. सवेरे कह दिया जाएगा कि चोरी हो गई,’’ सुगंधा ने कहा.

‘‘मेरी परीक्षा ले रही हो?’’ अंकित बोला.

‘‘तुम तो अभी से घबराने लगे,’’ सुगंधा ने मुंह बनाया.

‘‘नहीं, तुम्हें निराश नहीं होना पड़ेगा.’’

‘‘देखूंगी,’’ कह कर सुगंधा ने अपनी ओर बढ़े अंकित के हाथ धीरे से हटा दिए, जैसे कह रही हो, यह सब तभी होगा जब वचन के पक्के निकलोगे.

नीरा दोनों की बातचीत दरवाजे के पास से सुन रही थी. उस के पैरों के नीचे से जैसे जमीन खिसक गई.

नीरा सबकुछ जान कर भी खामोश बनी रही. रात को वह जल्दी सोने का नाटक करने लगी जिस से अंकित को मौका मिल सके. अंकित ने जब जेवर और इंदिरा विकासपत्र अलमारी से निकाले तो वह चौंक कर जाग गई.

अंकित परेशान सा उसे देखने लगा पर नीरा की आंखें फिर बंद हो गईं. अंकित जेवर वगैरह ले कर चलने को हुआ तो नीरा हड़बड़ा कर उठ बैठी. अंकित परेशान सा उस की ओर देखने लगा. वह बोली, ‘‘अंकित, बाहर देखो, सरसराहट जैसी आवाज हो रही है.’’

‘‘हवा का  झोंका होगा. तुम बेफिक्र रहो,’’ अंकित ने उसे भरमाने की कोशिश की.

‘‘मगर देख लेने में हर्ज क्या है,’’ कह कर नीरा उठ खड़ी हुई. लाचारी में अंकित को भी इसलिए उठना पड़ा ताकि यह बाहर अकेली जाए तो कहीं कोई बवाल न खड़ा कर दे.

बाहर देखने पर लगा, वाकई

2 साए  झुरमुट के पास छिटक कर अलग हो गए. पुरुष स्वर बोला, ‘‘मेरी मानो तो यहीं से लौट चलो, बाद में बवाल होगा.’’

‘‘उस बेवकूफ को तो आ जाने दो जो बीवी के जेवर ले कर मेरी राह देख रहा होगा. जैसे अभी तक सब्र किया है, एक घंटे और धीरज नहीं रख सकते,’’ इस बार स्वर सुगंधा का था.

अब चौंकने की बारी अंकित की थी. उस के मुंह से हठात निकला, ‘‘ओह, इतना बड़ा फरेब?’’

अंकित और नीरा दबेपांव वहां से अपने मकान में आ गए.

‘‘मैं तो यह सब पहले से जानती थी परंतु तुम कुछ सुनने को तैयार होते, तभी तो बताती,’’ नीरा बोली.

‘‘तुम्हें सब पता था?’’ अंकित ने नीरा की ओर देखा जैसे कोई बच्चा खुद को पिटाई से बचा लेने वाले को देखता है.

‘‘हां, और यह भी जान लो कि मैं सोने का बहाना कर रही थी. मु झे तुम्हारी खुशी के लिए मुंह सिलना पड़ा वरना इन दोनों की रात को घर से भागने की बात मैं पहले ही इन के दरवाजे के पास खड़ी हो कर सुन चुकी थी.’’

‘‘दरअसल, मैं वहां पकौड़े देने गई थी पर वहां की बातचीत से चौंक गई. विमला चाची, विनोद और सुगंधा को अकेला छोड़ कर बाजार गई थीं और ये दोनों एकदूसरे मे खोए अपनी योजना पर चर्चा कर रहे थे.

‘‘सुगंधा कह रही थी, ‘अंकित को भरोसा है कि मैं उस पर जान देती हूं.’’’

‘‘विनोद ने फौरन योजना बता दी, ‘मांग लो, बेवकूफ से बीवी के गहने,’ यह सुन कर मैं तो सन्न रह गई और तुम्हें रोकने का एक यही उपाय मु झे सू झा.’’

‘‘तुम ने मु झे बरबादी से बचा लिया,’’ कहते हुए अंकित की आंखें भर आईं.

‘‘तो कौन सा एहसान कर दिया, साथ ही मैं भी तो बरबाद होती. तुम्हारी बरबादी क्या मेरी बरबादी न होती? फिर सच कहूं, जेवर खो कर भी मैं तुम्हें खोना नहीं चाहती थी. मु झे डर था कि ये लोग तुम पर कोई जानलेवा हमला न कर दें,’’ नीरा ने अपने मन की बात कह दी.

‘‘और मैं, जेवर और तुम्हें दोनों को खो कर उस को खुश करना चाहता था जो मु झे बेवकूफ सम झती है,’’ अंकित भरे मन से बोला. नीरा ने कहा, ‘‘अब तो बेवकूफ नहीं सम झेगी?’’

‘‘अगर रुक गई तो?’’ अंकित ने जवाब दिया.

‘‘जाएगी कहां? नीरा बोली, ‘‘वह ठग विनोद इसे नहीं, जेवरों को ले जाना चाहता था. इसे तो वैसे भी कूल्हे पर लात मार कर निकाल देता.’’

‘‘सच, वह तो सूरत से लफंगा लगता है. तुम ने दोनों को बचा लिया,’’ अंकित अपने माथे पर हाथ रखते हुए बोला.

दोनों ने निश्चय किया, अब तबादले का आवेदन कर दिया जाएगा और जब तक तबादला नहीं होता है, बीमारी की छुट्टी ले ली जाएगी, परंतु अब यहां नहीं रहना है.

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अंकित जब इस कसबे में प्रवक्ता हो कर आया तो सालभर पहले ब्याही नीरा को भी साथ लेता आया था. नीरा के मन में बड़ी उमंग थी. कालेज के बाद सारे समय दोनों साथ रहेंगे. संयुक्त परिवार में स्वच्छंदता की जो चाह दबी रही उसे पूरी करने की ललक मात्र ने उस की कामनाओं के कमल खिला दिए.

छोटा सा कसबा, छोटा सा घर. घर में पतिपत्नी कहो या प्रेमीप्रेमिका, मात्र 2 प्राणी वैसे ही रहेंगे जैसे किसी घोंसले में बैठे पक्षी भावभरी आंखों में एकदूसरे को निहार कर मुग्ध होते रहते हैं. अतृप्त आकांक्षाओं की पूर्ति का सपना तनमन को सराबोर सा कर रहा था.

नीरा को यह सपना सच होता भी लगा. ब्लौक औफिस के बड़े बाबू सरोजजी की मेहरबानी से मकान की समस्या हल हो गई. शांत एकांत में बनी कालोनी का एक क्वार्टर उन्हें मिल गया और अकेलेपन में नीरा का साथ देने के लिए बड़े बाबू की पत्नी विमला का साथ भी था. विमला ने बड़ी बहन जैसे स्नेह से नीरा की आवभगत की थी और उन की बेटी सुगंधा और निर्मला तो जैसे उस की हमउम्र सहेलियां बन गई थीं. दोनों परिवारों में नजदीकियां इतनी जल्दी हो गईं कि कुछ पता ही नहीं चला और जब चला तो नीरा के हाथों के तोते उड़ गए.

नीरा वैसे तो सुगंधा की मुक्त हंसी के साथ उस के मददगार स्वभाव की कायल थी. वह घर के काम में सहायता करती और काम यदि अंकित का होता तो वह और तत्परता से करती. अंकित जब खाने के बाद कपड़े पहन कर कहता, ‘कितनी बार तुम से कहा है कि बटन कपड़े साफ  करने से पहले ही टांक दिया करो.’ सुगंधा तब नीरा के बोलने से पहले ही बोल पड़ती, ‘लाओ, मैं टांक देती हूं. भाभी को तो पहले से ही बहुत काम करने को पड़े हैं. औरत की जिंदगी भी कोई जिंदगी है. कोल्हू के बैल सी जुती रहो रातदिन.’

सुगंधा आंखें  झपकाती हुई जिस तरह अपने मोहक चेहरे पर हंसी और गुस्से का मिलाजुला रूप प्रकट करती वह अंकित को अपना मुरीद बनाने को काफी था. ऐसे में बटन टांकती सुगंधा हौले से अपनी उंगलियां अंकित के चौड़े सीने के बालों पर फिरा देती.

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अंकित को लगता, जैसे किसी ने उस के दिल के तारों को छेड़ दिया है, जिस की मधुर  झंकार अपनी थरथराहट देर तक अनुभव कराती रहती.

कभीकभी वह जानबू झ कर बटन तोड़ बैठता ताकि सुगंधा के स्पर्शसुख का आनंद ले सके. ऐसे मौके पर सुगंधा इठला कर कहती, ‘देखती हूं, आजकल तुम्हारे बटन रोजरोज टूटने लगे हैं.’

‘जब कोई टांकने वाली हो तो बटन क्या किसी से पूछ कर टूटेंगे,’ अंकित ने सधे शब्दों में अपनी बात कह दी.

अंकित की बात से सुगंधा की आंखें चमक उठीं. अपने होंठों की मुसकान समेटते हुए उस ने आंखों को ऊपर चढ़ा कर कहा, ‘भाभी का लिहाज कर के मैं बटन टांक देती हूं वरना तुम में कोई सुरखाब के पर नहीं लगे हैं.’

‘वह तो तुम्हीं लोगों के लगे होते हैं, हमारी औकात ही क्या?’ अंकित ने मुसकरा कर कहा तो नीरा चौंक गई.

एक दिन नीरा ने देखा, सुगंधा अंकित के सीने पर उंगली फिरा रही थी और अंकित मुंह से ध?ागा काटती सुगंधा के सिर को सूंघ रहा था. नीरा अब जान पाई कि सुगंधा उस के घर अधिकतर तभी क्यों आती है जब अंकित घर पर होता है.

उस ने सुगंधा के आनेजाने पर गहरी दृष्टि रखनी शुरू की. एक दिन सुगंधा की मां से नीरा बोली, ‘‘चाची, सुगंधा की शादी कब कर रही हो? अभी तो दूसरी बेटी भी ब्याहनी है. बाप के रिटायर होने से पहले दोनों के हाथ पीले हो जाएं तो अच्छा है.’’

‘‘क्या कहूं बहू, आजकल की लड़कियों की जिद तो जानती ही हो. कहती है, पहले एमए करूंगी उस के बाद ब्याह की बात. लोग पढ़ीलिखी लड़की को ज्यादा पसंद करते हैं. अब अंकित से पढ़ाई में सहयोग लेने की बात कर रही थी,’’ विमला ने अपनी भारीभरकम काया को ऊपरनीचे करते हुए कहा.

‘‘यह तो है, पर शादी की उम्र निकल गई तो डिग्रियों को कौन पूछेगा? मेरी सम झ में सुगंधा मु झ से छोटी तो कतई नहीं होगी,’’ नीरा ने ठहरठहर कर कहा.

विमला इस तथ्य से अनभिज्ञ हो ऐसा न था, लेकिन अपनी बेटी की बढ़ती आयु का प्रश्न उसे अपनी लाचारी का बोध करा गया. वह कटुता से बोली, ‘‘ऊपर वाला किसी को बेटी न दे. घरवाले खिलाते हैं, बाहर वालों को तकलीफ होती है. जिस की चाहे जितनी मदद करो, गैर आदमी कभी अपना हुआ है?’’

इस के बाद 2-3 दिन तक सुगंधा अंकित के घर नहीं आई तो अंकित को कुछ अटपटा लगा. नीरा भी दरवाजे पर खड़ी हो कर देखती कि दिनभर उस के घर मंडराने वाली सुगंधा को चैन कैसे पड़ता होगा बिना यहां आए. कहीं वह बीमार तो नहीं पड़ गई?

आखिर तीसरे दिन अंकित ने कालेज से आते समय बड़े बाबू के घर जा कर खोजखबर ली. इस के पहले वह नीरा से पूछना चाहता था मगर कहीं वह संदेह न करने लगे, यह सोच कर नहीं पूछा.

बड़े बाबू घर में नहीं थे, न ही सुगंधा की मां या बहन थी. सूने घर में सुगंधा तकिए के खोल पर कढ़ाई कर रही थी. वह अपने काम में इतना तल्लीन थी कि अंकित ने उस की आंखें बंद कर लीं. वह जान ही न सकी. वह सम झी कि अकेलेपन से ऊब कर नीरा दीदी आई हैं, परंतु जब अंकित ने हथेलियों को हटाने का उपक्रम किया तो उसे उन हाथों के स्पर्श का भान हुआ. वह ‘उई मां’ कहती हुई चौंक कर छिटकी और कमरे के दूसरे छोर पर जा खड़ी हुई. फिर आंखें नचा कर बोली, ‘‘शरारत पर उतारू हो, पहले भाभी से इजाजत ले लेते तो ठीक था.’’

‘‘क्यों, क्या बात है? क्या मु झे जोरू का गुलाम सम झ रखा है,’’ कह कर अंकित उस की ओर बढ़ा, तो ‘न न’ करती सुगंधा उस की बांहों में आ गई. अंकित ने पूछा. ‘‘नाराज तो नहीं हो?’’

‘‘तुम से नाराज होने का अर्थ खुद अपनेआप से नाराज होना है. 2-3 दिन तुम्हें देखे बिना जैसे काटे हैं, मैं ही जानती हूं. भाभी का वश चलता तो तुम्हारे पैरों में बेडि़यां डाल देतीं,’’ अंकित की गरदन पर सिर रखे सुगंधा सुबक कर बोली.

अंकित ने उस के आंसू पोंछे. सांत्वना देते उस ने हाथ सुगंधा की पीठ पर फिराया तो उस का सारा शरीर जैसे  झन झना उठा. जवानी के मादक स्पर्श और एकांत ने दोनों की सुधबुध हर ली. दोनों आवेश से गुजर रहे थे. दोनों के तनमन जैसे एकदूसरे में समा जाने को बेचैन हो रहे हों.

इसी समय विमला बाजार से आ गई. दोनों को अजीब हालत में देख कर अंकित से बोली, ‘‘घर में अकेली लड़की पा कर उस की इज्जत पर हमला बोलते तुम्हें शर्म नहीं आई? आने दो बड़े बाबू को. तुम्हारी एकएक हरकत न बताई तो कहना. ठीक कर दूंगी, सम झते क्या हो? तुम्हें मकान इसीलिए दिलाया था कि हमारे घर पर ही डाका डालो.’’

घायल नागिन की तरह विमला की फुंफकार देख कर अंकित के होश उड़ गए. वह चुपचाप गरदन नीची कर के बाहर जाने लगा तो मां की नजर बचा कर आंख दबा कर सुगंधा ने उसे गंभीरता से न लेने का संकेत किया.

अंकित घर आया तो उस के हवाइयां उड़ते चेहरे को देख कर नीरा घबरा गई. पहले तो वह निढाल सा पड़ा रहा, फिर अकबक करने लगा तो नीरा घबरा गई और वह विमला चाची को बुलाने चली गई.

विमला ने नीरा की दशा पर तरस खाते हुए कहा, ‘‘चलो, मैं आती हूं. मर्द जात को हजार परेशानियां रहती हैं. कोई बेमन की बात हुई होगी. वह भावुक आदमी है, मन परेशान हो उठा होगा.’’

विमला ने आते ही हंस कर कुछ कहने से पहले अंकित की ओर देखा, फिर हथेलियों से उस का सिर सहला कर कहा, ‘‘क्या तबीयत ज्यादा घबरा रही है? घबराओ नहीं, सब ठीक हो जाएगा.’’

विमला चाची के पांव छूते हुए अंकित बोला, ‘‘अब आप आ गई हैं तो लगता है मेरी मां आ गई है. अब जी ठीक है, थोड़ा सिरदर्द है.’’

‘‘इसे थोड़ा सिरदर्द कहते हो, ऐसे ही डिप्रैशन की शुरुआत होती है,’’ फिर नीरा से बोली, ‘‘आदमी की इच्छा के विरुद्ध कोई काम जानलेवा हो सकता है.’’

तब तक सुगंधा आ चुकी थी. उस ने धीरेधीरे अंकित का सिर सहलाया, बालों में उंगलियां फिराईं और वह ठीक हो गया.

विमला के इस बदलाव को देख कर अंकित को आश्चर्य हो रहा था. यह आश्चर्य उस ने इशारे से सुगंधा से जाहिर किया तो वह धीरे से बोली, ‘‘मैं ने जान देने की धमकी दी है तब मानी हैं. बस, उन्हें खुश रखने की जरूरत है.’’

अंकित को राहत मिल गई. नीरा रसोई में शायद चाय बना रही थी. विमला चाची को घर में ताला लगाना याद आ गया और वे चली गईं. सुगंधा अंकित का हाथ सहलाते हुई बोली, ‘‘मां दिल की बड़ी साफ हैं. तुम्हारी इतनी बड़ी हरकत  झेल गईं. कल उन के लिए साड़ी और शौल ले कर आना.’’

आत्मीय वातावरण में चाय पी गई. नीरा को लगा, मांबेटी ने उसे उबार लिया है. अब उसे सुगंधा के पढ़ने पर एतराज हो कर भी, एतराज नहीं था. पति की जिंदगी का सवाल जो था.

अंकित की अधिकांश कमाई सुगंधा के घर वालों पर खर्च होते देख कर नीरा को कोफ्त तो होती मगर लाचार थी. दिल कचोट कर रह जाता, पर अंकित के डिप्रैशन में जाने का डर था. सुगंधा रोज देररात तक उस के पास ही पढ़ती और कभी वह स्वयं सुगंधा के घर पढ़ा आता. विमला तो उस पर जैसे बलिहारी जाती.

इधर एक परिवर्तन यह हुआ कि विमला के घर उस का दूर का भतीजा विनोद अकसर आने लगा. सुगंधा भी उस में रुचि लेती थी. यह बात अंकित की सहनशक्ति से बाहर थी. अंकित के सामने ही विनोद पर सुगंधा का पूरा ध्यान देना कुछ अनकही कह रहा था. उसे विनोद का व्यवहार भाई जैसा भी नहीं लग रहा था परंतु सुगंधा इस बाबत कुछ कहने पर उसे बहला कर रूठती हुई बोली, ‘‘तुम्हारे मन में पाप है. भाई के सामने तुम्हारा ध्यान रख कर मु झे क्या बदनाम होना है?’’

वह अगले 2 दिन तक रूठी रही तो अंकित ने उस से कहा, ‘‘आखिर तुम चाहती क्या हो?’’

‘‘नीरा भाभी को जेवरों से लादे हो. मेरे नाम पर फूटी कौड़ी भी है कभी?’’ सुगंधा मुंह फुला कर बोली.

‘‘तुम हुक्म तो करो,’’ अंकित ने मामला संभालना चाहा.

‘‘आज रात को नीरा के सारे जेवर ले आना और दरवाजा खुला छोड़ देना. सवेरे कह दिया जाएगा कि चोरी हो गई,’’ सुगंधा ने कहा.

‘‘मेरी परीक्षा ले रही हो?’’ अंकित बोला.

‘‘तुम तो अभी से घबराने लगे,’’ सुगंधा ने मुंह बनाया.

‘‘नहीं, तुम्हें निराश नहीं होना पड़ेगा.’’

‘‘देखूंगी,’’ कह कर सुगंधा ने अपनी ओर बढ़े अंकित के हाथ धीरे से हटा दिए, जैसे कह रही हो, यह सब तभी होगा जब वचन के पक्के निकलोगे.

नीरा दोनों की बातचीत दरवाजे के पास से सुन रही थी. उस के पैरों के नीचे से जैसे जमीन खिसक गई.

नीरा सबकुछ जान कर भी खामोश बनी रही. रात को वह जल्दी सोने का नाटक करने लगी जिस से अंकित को मौका मिल सके. अंकित ने जब जेवर और इंदिरा विकासपत्र अलमारी से निकाले तो वह चौंक कर जाग गई.

अंकित परेशान सा उसे देखने लगा पर नीरा की आंखें फिर बंद हो गईं. अंकित जेवर वगैरह ले कर चलने को हुआ तो नीरा हड़बड़ा कर उठ बैठी. अंकित परेशान सा उस की ओर देखने लगा. वह बोली, ‘‘अंकित, बाहर देखो, सरसराहट जैसी आवाज हो रही है.’’

‘‘हवा का  झोंका होगा. तुम बेफिक्र रहो,’’ अंकित ने उसे भरमाने की कोशिश की.

‘‘मगर देख लेने में हर्ज क्या है,’’ कह कर नीरा उठ खड़ी हुई. लाचारी में अंकित को भी इसलिए उठना पड़ा ताकि यह बाहर अकेली जाए तो कहीं कोई बवाल न खड़ा कर दे.

बाहर देखने पर लगा, वाकई

2 साए  झुरमुट के पास छिटक कर अलग हो गए. पुरुष स्वर बोला, ‘‘मेरी मानो तो यहीं से लौट चलो, बाद में बवाल होगा.’’

‘‘उस बेवकूफ को तो आ जाने दो जो बीवी के जेवर ले कर मेरी राह देख रहा होगा. जैसे अभी तक सब्र किया है, एक घंटे और धीरज नहीं रख सकते,’’ इस बार स्वर सुगंधा का था.

अब चौंकने की बारी अंकित की थी. उस के मुंह से हठात निकला, ‘‘ओह, इतना बड़ा फरेब?’’

अंकित और नीरा दबेपांव वहां से अपने मकान में आ गए.

‘‘मैं तो यह सब पहले से जानती थी परंतु तुम कुछ सुनने को तैयार होते, तभी तो बताती,’’ नीरा बोली.

‘‘तुम्हें सब पता था?’’ अंकित ने नीरा की ओर देखा जैसे कोई बच्चा खुद को पिटाई से बचा लेने वाले को देखता है.

‘‘हां, और यह भी जान लो कि मैं सोने का बहाना कर रही थी. मु झे तुम्हारी खुशी के लिए मुंह सिलना पड़ा वरना इन दोनों की रात को घर से भागने की बात मैं पहले ही इन के दरवाजे के पास खड़ी हो कर सुन चुकी थी.’’

‘‘दरअसल, मैं वहां पकौड़े देने गई थी पर वहां की बातचीत से चौंक गई. विमला चाची, विनोद और सुगंधा को अकेला छोड़ कर बाजार गई थीं और ये दोनों एकदूसरे मे खोए अपनी योजना पर चर्चा कर रहे थे.

‘‘सुगंधा कह रही थी, ‘अंकित को भरोसा है कि मैं उस पर जान देती हूं.’’’

‘‘विनोद ने फौरन योजना बता दी, ‘मांग लो, बेवकूफ से बीवी के गहने,’ यह सुन कर मैं तो सन्न रह गई और तुम्हें रोकने का एक यही उपाय मु झे सू झा.’’

‘‘तुम ने मु झे बरबादी से बचा लिया,’’ कहते हुए अंकित की आंखें भर आईं.

‘‘तो कौन सा एहसान कर दिया, साथ ही मैं भी तो बरबाद होती. तुम्हारी बरबादी क्या मेरी बरबादी न होती? फिर सच कहूं, जेवर खो कर भी मैं तुम्हें खोना नहीं चाहती थी. मु झे डर था कि ये लोग तुम पर कोई जानलेवा हमला न कर दें,’’ नीरा ने अपने मन की बात कह दी.

‘‘और मैं, जेवर और तुम्हें दोनों को खो कर उस को खुश करना चाहता था जो मु झे बेवकूफ सम झती है,’’ अंकित भरे मन से बोला. नीरा ने कहा, ‘‘अब तो बेवकूफ नहीं सम झेगी?’’

‘‘अगर रुक गई तो?’’ अंकित ने जवाब दिया.

‘‘जाएगी कहां? नीरा बोली, ‘‘वह ठग विनोद इसे नहीं, जेवरों को ले जाना चाहता था. इसे तो वैसे भी कूल्हे पर लात मार कर निकाल देता.’’

‘‘सच, वह तो सूरत से लफंगा लगता है. तुम ने दोनों को बचा लिया,’’ अंकित अपने माथे पर हाथ रखते हुए बोला.

दोनों ने निश्चय किया, अब तबादले का आवेदन कर दिया जाएगा और जब तक तबादला नहीं होता है, बीमारी की छुट्टी ले ली जाएगी, परंतु अब यहां नहीं रहना है.

The post बेवकूफ: क्यों अंकित अपने ही हाथों अपना घर तबाह करना चाहता था appeared first on Sarita Magazine.

February 16, 2022 at 09:31AM

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