Tuesday 15 February 2022

सायोनारा: क्या हुआ था अंजू और देव के बीच?

उन दिनों देव झारखंड के जमशेदपुर स्थित टाटा स्टील में इंजीनियर था. वह पंजाब के मोगा जिले का रहने वाला था. परंतु उस के पिता का जमशेदपुर में बिजनैस था. यहां जमशेदपुर को टाटा भी कहते हैं. स्टेशन का नाम टाटानगर है. शायद संक्षेप में इसीलिए इस शहर को टाटा कहते हैं. टाटा के बिष्टुपुर स्थित शौपिंग कौंप्लैक्स कमानी सैंटर में कपड़ों का शोरूम था.

देव ने वहीं बिष्टुपुर के केएमपीएस स्कूल से पढ़ाई की थी. इंजीनियरिंग की पढ़ाई उस ने झारखंड की राजधानी रांची के बिलकुल निकट बीआईटी मेसरा से की थी. उसी कालेज में कैंपस से ही टाटा स्टील में उसे नौकरी मिल गई थी. वैसे उस के पास और भी औफर थे, पर बचपन से इस औद्योगिक नगर में रहा था. यहां की साफसुथरी कालोनी, दलमा की पहाड़ी, स्वर्णरेखा नदी और जुबली पार्क से उसे बहुत लगाव था और सर्वोपरी मातापिता का सामीप्य.

ये भी पढ़ें- Short Story: सुलझे लोग

खरकाई नदी के पार आदित्यपुर में उस के पापा का बड़ा सा था. पर सोनारी की कालोनी में कंपनी ने देव को एक औफिसर्स फ्लैट दे रखा था. आदित्यपुर की तुलना में यह प्लांट के काफी निकट था और उस की शिफ्ट ड्यूटी भी होती थी. महीने में कम से कम 1 सप्ताह तो नाइट शिफ्ट करनी ही पड़ती थी, इसलिए वह इसी फ्लैट में रहता था. बाद में उस के पापामम्मी भी साथ में रहने लगे थे. पापा की दुकान बिष्टुपुर में थी जो यहां से समीप ही था. आदित्यपुर वाले मकान के एक हिस्से को उन्होंने किराए पर दे दिया था.

इसी बीच टाटा स्टील का आधुनिकीकरण प्रोजैक्ट आया था. जापान की निप्पन स्टील की तकनीकी सहायता से टाटा कंपनी अपनी नई कोल्ड रोलिंग मिल और कंटिन्युअस कास्टिंग शौप के निर्माण में लगी थी. देव को भी कंपनी ने शुरू से इसी प्रोजैक्ट में रखा था ताकि निर्माण पूरा होतेहोते नई मशीनों के बारे में पूरी जानकारी हो जाए. निप्पन स्टील ने कुछ टैक्निकल ऐक्सपर्ट्स भी टाटा भेजे थे जो यहां के वर्कर्स और इंजीनियर्स को ट्रेनिंग दे सकें. ऐक्सपर्ट्स के साथ दुभाषिए (इंटरप्रेटर) भी होते थे, जो जापानी भाषा के संवाद को अंगरेजी में अनुवाद करते थे. इन्हीं इंटरप्रेटर्स में एक लड़की थी अंजु. वह लगभग 20 साल की सुंदर युवती थी. उस की नाक आम जापानी की तरह चपटी नहीं थी. अंजु देव की टैक्निकल टीम में ही इंटरप्रेटर थी. वह लगभग 6 महीने टाटा में रही थी. इस बीच देव से उस की अच्छी दोस्ती हो गई थी. कभी वह जापानी व्यंजन देव को खिलाती थी तो कभी देव उसे इंडियन फूड खिलाता था. 6 महीने बाद वह जापान चली गई थी.

देव उसे छोड़ने कोलकाता एअरपोर्ट तक गया था. उस ने विदा होते समय 2 उपहार भी दिए थे. एक संगमरमर का ताजमहल और दूसरा बोधगया के बौद्ध मंदिर का बड़ा सा फोटो. उपहार पा कर वह बहुत खुश थी. जब वह एअरपोर्ट के अंदर प्रवेश करने लगी तब देव ने उस से हाथ मिलाया और कहा, ‘‘बायबाय.’’

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अंजु ने कहा, ‘‘सायोनारा,’’ और फिर हंसते हुए हाथ हिलाते हुए सुरक्षा जांच के लिए अंदर चली गई.

कुछ महीनों के बाद नई मशीनों का संचालन सीखने के लिए कंपनी ने देव को जापान स्थित निप्पन स्टील प्लांट भेजा. जापान के ओसाका स्थित प्लांट में उस की ट्रेनिंग थी. उस की भी 6 महीने की ट्रेनिंग थी. इत्तफाक से वहां भी इंटरप्रेटर अंजु ही मिली. वहां दोनों मिल कर काफी खुश थे. वीकेंड में दोनों अकसर मिलते और काफी समय साथ बिताते थे.

देखतेदेखते दोस्ती प्यार में बदलने लगी. देव की ट्रेनिंग खत्म होने में 1 महीना रह गया तो देव ने अंजु से पूछा, ‘‘यहां आसपास कुछ घूमने लायक जगह है तो बताओ.’’

हां, हिरोशिमा ज्यादा दूर नहीं है. बुलेट ट्रेन से 2 घंटे से कम समय में पहुंचा जा सकता है.

‘‘यह तो बहुत अच्छी बात है. मैं वहां जाना चाहूंगा. द्वितीय विश्वयुद्ध में अमेरिका ने पहला एटम बम वहीं गिराया था.’’

‘‘हां, 6 अगस्त, 1945 के उस मनहूस दिन को कोई जापानी, जापानी क्या पूरी दुनिया नहीं भूल सकती है. दादाजी ने कहा था कि करीब 80 हजार लोग तो उसी क्षण मर गए थे और आने वाले 4 महीनों के अंदर ही यह संख्या लगभग 1 करोड़ 49 लाख हो गई थी.’’

‘‘हां, यह तो बहुत बुरा हुआ था… दुनिया में ऐसा दिन फिर कभी न आए.’’

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अंजु बोली, ‘‘ठीक है, मैं भी तुम्हारे साथ चलती हूं. परसों ही तो 6 अगस्त है. वहां शांति के लिए जापानी लोग इस दिन हिरोशिमा में प्रार्थना करते हैं.’’

2 दिन बाद देव और अंजु हिरोशिमा गए. वहां 2 दिन रुके. 6 अगस्त को मैमोरियल पीस पार्क में जा कर दोनों ने प्रार्थना भी की. फिर दोनों होटल आ गए. लंच में अंजु ने अपने लिए जापानी लेडी ड्रिंक शोचूं और्डर किया तो देव की पसंद भी पूछी.

देव ने कहा, ‘‘आज मैं भी शोचूं ही टेस्ट कर लेता हूं.’’

दोनों खातेपीते सोफे पर बैठे एकदूसरे के इतने करीब आ गए कि एकदूसरे की सांसें और दिल की धड़कनें भी सुन सकते थे.

अंजु ने ही पहले उसे किस किया और कहा, ‘‘ऐशिते इमासु.’’

देव इस का मतलब नहीं समझ सका था और उस का मुंह देखने लगा था.

तब वह बोली, ‘‘इस का मतलब आई लव यू.’’

इस के बाद तो दोनों दूसरी ही दुनिया में पहुंच गए थे. दोनों कब 2 से 1 हो गए किसी को होश न था.

जब दोनों अलग हुए तब देव ने कहा, ‘‘अंजु, तुम ने आज मुझे सारे जहां की खुशियां दे दी हैं… मैं तो खुद तुम्हें प्रपोज करने वाला था.’’

‘‘तो अब कर दो न. शर्म तो मुझे करनी थी और शरमा तुम रहे थे.’’

‘‘लो, अभी किए देता हूं. अभी तो मेरे पास यही अंगूठी है, इसी से काम चल जाएगा.’’

इतना कह कर देव अपने दाहिने हाथ की अंगूठी निकालने लगा.

अंजू ने उस का हाथ पकड़ कर रोकते हुए कहा, ‘‘तुम ने कहा और मैं ने मान लिया. मुझे तुम्हारी अंगूठी नहीं चाहिए. इसे अपनी ही उंगली में रहने दो.’’

‘‘ठीक है, बस 1 महीने से भी कम समय बचा है ट्रेनिंग पूरी होने में. इंडिया जा कर मम्मीपापा को सब बताऊंगा और फिर तुम भी वहीं आ जाना. इंडियन रिवाज से ही शादी के फेरे लेंगे,’’ देव बोला.

अंजू बोली, ‘‘मुझे उस दिन का बेसब्री से इंतजार रहेगा.’’

ट्रेनिंग के बाद देव इंडिया लौट आया. इधर उस की गैरहाजिरी में उस के पापा ने उस के लिए एक लड़की पसंद कर ली थी. देव भी उस लड़की को जानता था. उस के पापा के अच्छे दोस्त की लड़की थी. घर में आनाजाना भी था. लड़की का नाम अजिंदर था. वह भी पंजाबिन थी. उस के पिता का भी टाटा में ही बिजनैस था. पर बिजनैस और सट्टा बाजार दोनों में बहुत घाटा होने के कारण उन्होंने आत्महत्या कर ली थी.

अजिंदर अपनी बिरादरी की अच्छी लड़की थी. उस के पिता की मौत के बाद देव के मातापिता ने उस की मां को वचन दिया था कि अजिंदर की शादी अपने बेटे से ही करेंगे. देव के लौटने के बाद जब उसे शादी की बात बताई गई तो उस ने इस रिश्ते से इनकार कर दिया.

उस की मां ने उस से कहा, ‘‘बेटे, अजिंदर की मां को उन की दुख की घड़ी में यह वचन दिया था ताकि बूढ़ी का कुछ बोझ हलका हो जाए. अभी भी उन पर बहुत कर्ज है… और फिर अजिंदर को तो तुम भी अच्छी तरह जानते हो. कितनी अच्छी है. वह ग्रैजुएट भी है.’’

‘‘पर मां, मैं किसी और को पसंद करता हूं… मैं ने अजिंदर को कभी इस नजर से नहीं देखा है.’’

इसी बीच उस के पापा भी वहां आ गए. मां ने पूछा, ‘‘पर हम लोगों को तो अजिंदर में कोई कमी नहीं दिखती है… अच्छा जरा अपनी पसंद तो बता?’’

‘‘मैं उस जापानी लड़की अंजु से प्यार

करता हूं… वह एक बार हमारे घर भी आई थी. याद है न?’’

देव के पिता ने नाराज हो कर कहा, ‘‘देख देव, उस विदेशी से तुम्हारी शादी हमें हरगिज मंजूर नहीं. आखिर अजिंदर में क्या कमी है? अपने देश में लड़कियों की कमी है क्या कि चल दिया विदेशी लड़की खोजने? हम ने उस बेचारी को वचन दे रखा है. बहुत आस लगाए बैठी हैं मांबेटी दोनों.’’

‘‘पर पापा, मैं ने भी…’’

उस के पापा ने बीच में ही उस की बात काटते हुए कहा, ‘‘कोई परवर नहीं सुननी है हमें. अगर अपने मम्मीपापा को जिंदा देखना चाहते हो तो तुम्हें अजिंदर से शादी करनी ही होगी.’’

थोड़ी देर तक सभी खामोश थे. फिर देव के पापा ने आगे कहा, ‘‘देव, तू ठीक से सोच ले वरना मेरी भी मौत अजिंदर के पापा की तरह निश्चित है, और उस के जिम्मेदार सिर्फ तुम होगे.’’

देव की मां बोलीं, ‘‘छि…छि… अच्छा बोलिए.’’

‘‘अब सबकुछ तुम्हारे लाड़ले पर है.’’ कह कर देव के पापा वहां से चले गए.

न चाहते हुए भी देव को अपने पापामम्मी की बात माननी पड़ी थी.

देव ने अपनी पूरी कहानी और मजबूरी अंजु को भी बताई तो अंजु ने कहा था कि ऐसी स्थिति में उसे अजिंदर से शादी कर लेनी चाहिए.

अंजु ने देव को इतनी आसानी से मुक्त तो कर दिया था, पर खुद विषम परिस्थिति में फंस चुकी थी. वह देव के बच्चे की मां बनने वाली थी. अभी तो दूसरा महीना ही चला था. पर देव को उस ने यह बात नहीं बताई थी. उसे लगा था कि यह सुन कर देव कहीं कमजोर न पड़ जाए.

अगले महीने देव की शादी थी. देव ने उसे भी सपरिवार आमंत्रित किया था. लिखा था कि हो सके तो अपने पापामम्मी के साथ आए. अंजु ने लिखा था कि वह आने की पुरजोर कोशिश करेगी. पर उस के पापामम्मी का तो बहुत पहले ही तलाक हो चुका था. वह नानी के यहां पली थी.

देव की शादी में अंजु आई, पर उस ने अपने को पूरी तरह नियंत्रित रखा. चेहरे पर कोई गिला या चिंता न थी. पर देव ने देखा कि अंजु को बारबार उलटियां आ रही थीं.

उस ने अंजु से पूछा, ‘‘तुम्हारी तबीयत तो ठीक है?’’

अंजु बोली, ‘‘हां तबीयत तो ठीक है… कुछ यात्रा की थकान है और कुछ पार्टी के हैवी रिच फूड के असर से उलटियां आ रही हैं.’’

शादी के बाद उस ने कहा, ‘‘पिछली बार मैं बोधगया नहीं जा सकी थी, इस बार वहां जाना चाहती हूं. मेरे लिए एक कैब बुक करा दो.’’

‘‘ठीक है, मैं एक बड़ी गाड़ी बुक कर लेता हूं. अजिंदर और मैं भी साथ चलते हैं.’’

अगले दिन सुबहसुबह देव, अजिंदर और अंजु तीनों गया के लिए निकल गए. अंजु ने पहले से ही दवा खा ली थी ताकि रास्ते में उलटियां न हों. दोपहर के कुछ पहले ही वे लोग वहां पहुंच गए. रात में होटल में एक ही कमरे में रुके थे तीनों हालांकि अंजु ने बारबार अलग कमरे के लिए कहा था. अजिंदर ने ही मना करते कहा था, ‘‘ऐसा मौका फिर मिले न मिले. हम लोग एक ही रूम में जी भर कर गप्प करेंगे.’’

अंजु गया से ही जापान लौट गई थी. देव और अजिंदर एअरपोर्ट पर विदा करने गए थे. एअरपोर्ट पर देव ने जब बायबाय कहा तो फिर अंजु ने हंस कर कहा, ‘‘सायोनारा, कौंटैक्ट में रहना.’’

समय बीतता गया. अजिंदर को बेटा हुआ था और उस के कुछ महीने पहले अंजु को बेटी हुई थी. उस की बेटी का रंग तो जापानियों जैसा बहुत गोरा था, पर चेहरा देव का डुप्लिकेट. इधर अजिंदर का बेटा भी देखने में देव जैसा ही था. देव, अजिंदर और अंजु का संपर्क इंटरनैट पर बना हुआ था. देव ने अपने बेटे की खबर अंजु को दे रखी थी पर अंजु ने कुछ नहीं बताया था. देव अपने बेटे शिवम का फोटो नैट पर अंजु को भेजता रहता था. अंजु भी शिवम के जन्मदिन पर और अजिंदर एवं देव की ऐनिवर्सरी पर गिफ्ट भेजती थी.

देव जब उस से पूछता कि शादी कब करोगी तो कहती मेरे पसंद का लड़का नहीं मिल रहा या और किसी न किसी बहाने टाल देती थी.

एक बार देव ने अंजु से कहा, ‘‘जल्दी शादी करो, मुझे भी गिफ्ट भेजने का मौका दो. आखिर कब तक वेट करोगी आदर्श पति के लिए?’’

अंजु बोली, ‘‘मैं ने मम्मीपापा की लाइफ से सीख ली है. शादीवादी के झंझट में नहीं पड़ना है, इसलिए सिंगल मदर बनूंगी. एक बच्ची को कुछ साल हुए अपना लिया है.’’

‘‘पर ऐसा क्यों किया? शादी कर अपना बच्चा पा सकती थी?’’

‘‘मैं इस का कोई और कारण नहीं बता सकती, बस यों ही.’’

‘‘अच्छा, तुम जो ठीक समझो. बेबी का नाम बताओ?’’

‘‘किको नाम है उस का. इस का मतलब भी बता देती हूं होप यानी आशा. मेरे जीवन की एकमात्र आशा किको ही है.’’

‘‘ओके उस का फोटो भेजना.’’

‘‘ठीक है, बाद में भेज दूंगी.’’

‘‘समय बीतता रहा. देव और अंजु दोनों के बच्चे करीब 7 साल के हो चुके थे. एक दिन अंजु का ईमेल आया कि वह 2-3 सप्ताह के लिए टाटा आ रही है. वहां प्लांट में निप्पन द्वारा दी मशीन में कुछ तकनीकी खराबी है. उसी की जांच के लिए निप्पन एक ऐक्सपर्ट्स की टीम भेज रही है जिस में वह इंटरप्रेटर है.’’

अंजु टाटा आई थी. देव और अजिंदर से भी मिली थी. शिवम के लिए ढेर सारे गिफ्ट्स लाई थी.

‘‘किको को क्यों नहीं लाई?’’ देव ने पूछा.

‘‘एक तो उतना समय नहीं था कि उस का वीजा लूं, दूसरे उस का स्कूल… उसे होस्टल में छोड़ दिया है… मेरी एक सहेली उस की देखभाल करेगी इस बीच.’’

अंजु की टीम का काम 2 हफ्ते में हो गया. अगले दिन उसे जापान लौटना था. देव ने उसे डिनर पर बुलाया था.

अगली सुबह वह ट्रेन से कोलकाता जा रही थी, तो देव और अजिंदर दोनों स्टेशन पर छोड़ने आए थे. अंजु जब ट्रेन में बैठ गई तो उस ने अपने बैग से बड़ा सा गिफ्ट पैक निकाल कर देव को दिया.

‘‘यह क्या है? आज तो कोई बर्थडे या ऐनिवर्सरी भी नहीं है?’’ देव ने पूछा.

अंजु ने कहा, ‘‘इसे घर जा कर देखना.’’

ट्रेन चली तो अंजु हाथ हिला कर बोली, ‘‘सायोनारा.’’

अजिंदर और देव ने घर जा कर उस पैकेट को खोला. उस में एक बड़ा सा फ्रेम किया किको का फोटो था. फोटो के नीचे लिखा था, ‘‘हिरोशिमा का एक अंश.’’

देव और अजिंदर दोनों कभी फोटो को देखते तो कभी एकदूसरे को प्रश्नवाचक नजरों से. शिवम और किको बिलकुल जुड़वा लग रहे थे. फर्क सिर्फ चेहरे के रंग का था.

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उन दिनों देव झारखंड के जमशेदपुर स्थित टाटा स्टील में इंजीनियर था. वह पंजाब के मोगा जिले का रहने वाला था. परंतु उस के पिता का जमशेदपुर में बिजनैस था. यहां जमशेदपुर को टाटा भी कहते हैं. स्टेशन का नाम टाटानगर है. शायद संक्षेप में इसीलिए इस शहर को टाटा कहते हैं. टाटा के बिष्टुपुर स्थित शौपिंग कौंप्लैक्स कमानी सैंटर में कपड़ों का शोरूम था.

देव ने वहीं बिष्टुपुर के केएमपीएस स्कूल से पढ़ाई की थी. इंजीनियरिंग की पढ़ाई उस ने झारखंड की राजधानी रांची के बिलकुल निकट बीआईटी मेसरा से की थी. उसी कालेज में कैंपस से ही टाटा स्टील में उसे नौकरी मिल गई थी. वैसे उस के पास और भी औफर थे, पर बचपन से इस औद्योगिक नगर में रहा था. यहां की साफसुथरी कालोनी, दलमा की पहाड़ी, स्वर्णरेखा नदी और जुबली पार्क से उसे बहुत लगाव था और सर्वोपरी मातापिता का सामीप्य.

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खरकाई नदी के पार आदित्यपुर में उस के पापा का बड़ा सा था. पर सोनारी की कालोनी में कंपनी ने देव को एक औफिसर्स फ्लैट दे रखा था. आदित्यपुर की तुलना में यह प्लांट के काफी निकट था और उस की शिफ्ट ड्यूटी भी होती थी. महीने में कम से कम 1 सप्ताह तो नाइट शिफ्ट करनी ही पड़ती थी, इसलिए वह इसी फ्लैट में रहता था. बाद में उस के पापामम्मी भी साथ में रहने लगे थे. पापा की दुकान बिष्टुपुर में थी जो यहां से समीप ही था. आदित्यपुर वाले मकान के एक हिस्से को उन्होंने किराए पर दे दिया था.

इसी बीच टाटा स्टील का आधुनिकीकरण प्रोजैक्ट आया था. जापान की निप्पन स्टील की तकनीकी सहायता से टाटा कंपनी अपनी नई कोल्ड रोलिंग मिल और कंटिन्युअस कास्टिंग शौप के निर्माण में लगी थी. देव को भी कंपनी ने शुरू से इसी प्रोजैक्ट में रखा था ताकि निर्माण पूरा होतेहोते नई मशीनों के बारे में पूरी जानकारी हो जाए. निप्पन स्टील ने कुछ टैक्निकल ऐक्सपर्ट्स भी टाटा भेजे थे जो यहां के वर्कर्स और इंजीनियर्स को ट्रेनिंग दे सकें. ऐक्सपर्ट्स के साथ दुभाषिए (इंटरप्रेटर) भी होते थे, जो जापानी भाषा के संवाद को अंगरेजी में अनुवाद करते थे. इन्हीं इंटरप्रेटर्स में एक लड़की थी अंजु. वह लगभग 20 साल की सुंदर युवती थी. उस की नाक आम जापानी की तरह चपटी नहीं थी. अंजु देव की टैक्निकल टीम में ही इंटरप्रेटर थी. वह लगभग 6 महीने टाटा में रही थी. इस बीच देव से उस की अच्छी दोस्ती हो गई थी. कभी वह जापानी व्यंजन देव को खिलाती थी तो कभी देव उसे इंडियन फूड खिलाता था. 6 महीने बाद वह जापान चली गई थी.

देव उसे छोड़ने कोलकाता एअरपोर्ट तक गया था. उस ने विदा होते समय 2 उपहार भी दिए थे. एक संगमरमर का ताजमहल और दूसरा बोधगया के बौद्ध मंदिर का बड़ा सा फोटो. उपहार पा कर वह बहुत खुश थी. जब वह एअरपोर्ट के अंदर प्रवेश करने लगी तब देव ने उस से हाथ मिलाया और कहा, ‘‘बायबाय.’’

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अंजु ने कहा, ‘‘सायोनारा,’’ और फिर हंसते हुए हाथ हिलाते हुए सुरक्षा जांच के लिए अंदर चली गई.

कुछ महीनों के बाद नई मशीनों का संचालन सीखने के लिए कंपनी ने देव को जापान स्थित निप्पन स्टील प्लांट भेजा. जापान के ओसाका स्थित प्लांट में उस की ट्रेनिंग थी. उस की भी 6 महीने की ट्रेनिंग थी. इत्तफाक से वहां भी इंटरप्रेटर अंजु ही मिली. वहां दोनों मिल कर काफी खुश थे. वीकेंड में दोनों अकसर मिलते और काफी समय साथ बिताते थे.

देखतेदेखते दोस्ती प्यार में बदलने लगी. देव की ट्रेनिंग खत्म होने में 1 महीना रह गया तो देव ने अंजु से पूछा, ‘‘यहां आसपास कुछ घूमने लायक जगह है तो बताओ.’’

हां, हिरोशिमा ज्यादा दूर नहीं है. बुलेट ट्रेन से 2 घंटे से कम समय में पहुंचा जा सकता है.

‘‘यह तो बहुत अच्छी बात है. मैं वहां जाना चाहूंगा. द्वितीय विश्वयुद्ध में अमेरिका ने पहला एटम बम वहीं गिराया था.’’

‘‘हां, 6 अगस्त, 1945 के उस मनहूस दिन को कोई जापानी, जापानी क्या पूरी दुनिया नहीं भूल सकती है. दादाजी ने कहा था कि करीब 80 हजार लोग तो उसी क्षण मर गए थे और आने वाले 4 महीनों के अंदर ही यह संख्या लगभग 1 करोड़ 49 लाख हो गई थी.’’

‘‘हां, यह तो बहुत बुरा हुआ था… दुनिया में ऐसा दिन फिर कभी न आए.’’

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अंजु बोली, ‘‘ठीक है, मैं भी तुम्हारे साथ चलती हूं. परसों ही तो 6 अगस्त है. वहां शांति के लिए जापानी लोग इस दिन हिरोशिमा में प्रार्थना करते हैं.’’

2 दिन बाद देव और अंजु हिरोशिमा गए. वहां 2 दिन रुके. 6 अगस्त को मैमोरियल पीस पार्क में जा कर दोनों ने प्रार्थना भी की. फिर दोनों होटल आ गए. लंच में अंजु ने अपने लिए जापानी लेडी ड्रिंक शोचूं और्डर किया तो देव की पसंद भी पूछी.

देव ने कहा, ‘‘आज मैं भी शोचूं ही टेस्ट कर लेता हूं.’’

दोनों खातेपीते सोफे पर बैठे एकदूसरे के इतने करीब आ गए कि एकदूसरे की सांसें और दिल की धड़कनें भी सुन सकते थे.

अंजु ने ही पहले उसे किस किया और कहा, ‘‘ऐशिते इमासु.’’

देव इस का मतलब नहीं समझ सका था और उस का मुंह देखने लगा था.

तब वह बोली, ‘‘इस का मतलब आई लव यू.’’

इस के बाद तो दोनों दूसरी ही दुनिया में पहुंच गए थे. दोनों कब 2 से 1 हो गए किसी को होश न था.

जब दोनों अलग हुए तब देव ने कहा, ‘‘अंजु, तुम ने आज मुझे सारे जहां की खुशियां दे दी हैं… मैं तो खुद तुम्हें प्रपोज करने वाला था.’’

‘‘तो अब कर दो न. शर्म तो मुझे करनी थी और शरमा तुम रहे थे.’’

‘‘लो, अभी किए देता हूं. अभी तो मेरे पास यही अंगूठी है, इसी से काम चल जाएगा.’’

इतना कह कर देव अपने दाहिने हाथ की अंगूठी निकालने लगा.

अंजू ने उस का हाथ पकड़ कर रोकते हुए कहा, ‘‘तुम ने कहा और मैं ने मान लिया. मुझे तुम्हारी अंगूठी नहीं चाहिए. इसे अपनी ही उंगली में रहने दो.’’

‘‘ठीक है, बस 1 महीने से भी कम समय बचा है ट्रेनिंग पूरी होने में. इंडिया जा कर मम्मीपापा को सब बताऊंगा और फिर तुम भी वहीं आ जाना. इंडियन रिवाज से ही शादी के फेरे लेंगे,’’ देव बोला.

अंजू बोली, ‘‘मुझे उस दिन का बेसब्री से इंतजार रहेगा.’’

ट्रेनिंग के बाद देव इंडिया लौट आया. इधर उस की गैरहाजिरी में उस के पापा ने उस के लिए एक लड़की पसंद कर ली थी. देव भी उस लड़की को जानता था. उस के पापा के अच्छे दोस्त की लड़की थी. घर में आनाजाना भी था. लड़की का नाम अजिंदर था. वह भी पंजाबिन थी. उस के पिता का भी टाटा में ही बिजनैस था. पर बिजनैस और सट्टा बाजार दोनों में बहुत घाटा होने के कारण उन्होंने आत्महत्या कर ली थी.

अजिंदर अपनी बिरादरी की अच्छी लड़की थी. उस के पिता की मौत के बाद देव के मातापिता ने उस की मां को वचन दिया था कि अजिंदर की शादी अपने बेटे से ही करेंगे. देव के लौटने के बाद जब उसे शादी की बात बताई गई तो उस ने इस रिश्ते से इनकार कर दिया.

उस की मां ने उस से कहा, ‘‘बेटे, अजिंदर की मां को उन की दुख की घड़ी में यह वचन दिया था ताकि बूढ़ी का कुछ बोझ हलका हो जाए. अभी भी उन पर बहुत कर्ज है… और फिर अजिंदर को तो तुम भी अच्छी तरह जानते हो. कितनी अच्छी है. वह ग्रैजुएट भी है.’’

‘‘पर मां, मैं किसी और को पसंद करता हूं… मैं ने अजिंदर को कभी इस नजर से नहीं देखा है.’’

इसी बीच उस के पापा भी वहां आ गए. मां ने पूछा, ‘‘पर हम लोगों को तो अजिंदर में कोई कमी नहीं दिखती है… अच्छा जरा अपनी पसंद तो बता?’’

‘‘मैं उस जापानी लड़की अंजु से प्यार

करता हूं… वह एक बार हमारे घर भी आई थी. याद है न?’’

देव के पिता ने नाराज हो कर कहा, ‘‘देख देव, उस विदेशी से तुम्हारी शादी हमें हरगिज मंजूर नहीं. आखिर अजिंदर में क्या कमी है? अपने देश में लड़कियों की कमी है क्या कि चल दिया विदेशी लड़की खोजने? हम ने उस बेचारी को वचन दे रखा है. बहुत आस लगाए बैठी हैं मांबेटी दोनों.’’

‘‘पर पापा, मैं ने भी…’’

उस के पापा ने बीच में ही उस की बात काटते हुए कहा, ‘‘कोई परवर नहीं सुननी है हमें. अगर अपने मम्मीपापा को जिंदा देखना चाहते हो तो तुम्हें अजिंदर से शादी करनी ही होगी.’’

थोड़ी देर तक सभी खामोश थे. फिर देव के पापा ने आगे कहा, ‘‘देव, तू ठीक से सोच ले वरना मेरी भी मौत अजिंदर के पापा की तरह निश्चित है, और उस के जिम्मेदार सिर्फ तुम होगे.’’

देव की मां बोलीं, ‘‘छि…छि… अच्छा बोलिए.’’

‘‘अब सबकुछ तुम्हारे लाड़ले पर है.’’ कह कर देव के पापा वहां से चले गए.

न चाहते हुए भी देव को अपने पापामम्मी की बात माननी पड़ी थी.

देव ने अपनी पूरी कहानी और मजबूरी अंजु को भी बताई तो अंजु ने कहा था कि ऐसी स्थिति में उसे अजिंदर से शादी कर लेनी चाहिए.

अंजु ने देव को इतनी आसानी से मुक्त तो कर दिया था, पर खुद विषम परिस्थिति में फंस चुकी थी. वह देव के बच्चे की मां बनने वाली थी. अभी तो दूसरा महीना ही चला था. पर देव को उस ने यह बात नहीं बताई थी. उसे लगा था कि यह सुन कर देव कहीं कमजोर न पड़ जाए.

अगले महीने देव की शादी थी. देव ने उसे भी सपरिवार आमंत्रित किया था. लिखा था कि हो सके तो अपने पापामम्मी के साथ आए. अंजु ने लिखा था कि वह आने की पुरजोर कोशिश करेगी. पर उस के पापामम्मी का तो बहुत पहले ही तलाक हो चुका था. वह नानी के यहां पली थी.

देव की शादी में अंजु आई, पर उस ने अपने को पूरी तरह नियंत्रित रखा. चेहरे पर कोई गिला या चिंता न थी. पर देव ने देखा कि अंजु को बारबार उलटियां आ रही थीं.

उस ने अंजु से पूछा, ‘‘तुम्हारी तबीयत तो ठीक है?’’

अंजु बोली, ‘‘हां तबीयत तो ठीक है… कुछ यात्रा की थकान है और कुछ पार्टी के हैवी रिच फूड के असर से उलटियां आ रही हैं.’’

शादी के बाद उस ने कहा, ‘‘पिछली बार मैं बोधगया नहीं जा सकी थी, इस बार वहां जाना चाहती हूं. मेरे लिए एक कैब बुक करा दो.’’

‘‘ठीक है, मैं एक बड़ी गाड़ी बुक कर लेता हूं. अजिंदर और मैं भी साथ चलते हैं.’’

अगले दिन सुबहसुबह देव, अजिंदर और अंजु तीनों गया के लिए निकल गए. अंजु ने पहले से ही दवा खा ली थी ताकि रास्ते में उलटियां न हों. दोपहर के कुछ पहले ही वे लोग वहां पहुंच गए. रात में होटल में एक ही कमरे में रुके थे तीनों हालांकि अंजु ने बारबार अलग कमरे के लिए कहा था. अजिंदर ने ही मना करते कहा था, ‘‘ऐसा मौका फिर मिले न मिले. हम लोग एक ही रूम में जी भर कर गप्प करेंगे.’’

अंजु गया से ही जापान लौट गई थी. देव और अजिंदर एअरपोर्ट पर विदा करने गए थे. एअरपोर्ट पर देव ने जब बायबाय कहा तो फिर अंजु ने हंस कर कहा, ‘‘सायोनारा, कौंटैक्ट में रहना.’’

समय बीतता गया. अजिंदर को बेटा हुआ था और उस के कुछ महीने पहले अंजु को बेटी हुई थी. उस की बेटी का रंग तो जापानियों जैसा बहुत गोरा था, पर चेहरा देव का डुप्लिकेट. इधर अजिंदर का बेटा भी देखने में देव जैसा ही था. देव, अजिंदर और अंजु का संपर्क इंटरनैट पर बना हुआ था. देव ने अपने बेटे की खबर अंजु को दे रखी थी पर अंजु ने कुछ नहीं बताया था. देव अपने बेटे शिवम का फोटो नैट पर अंजु को भेजता रहता था. अंजु भी शिवम के जन्मदिन पर और अजिंदर एवं देव की ऐनिवर्सरी पर गिफ्ट भेजती थी.

देव जब उस से पूछता कि शादी कब करोगी तो कहती मेरे पसंद का लड़का नहीं मिल रहा या और किसी न किसी बहाने टाल देती थी.

एक बार देव ने अंजु से कहा, ‘‘जल्दी शादी करो, मुझे भी गिफ्ट भेजने का मौका दो. आखिर कब तक वेट करोगी आदर्श पति के लिए?’’

अंजु बोली, ‘‘मैं ने मम्मीपापा की लाइफ से सीख ली है. शादीवादी के झंझट में नहीं पड़ना है, इसलिए सिंगल मदर बनूंगी. एक बच्ची को कुछ साल हुए अपना लिया है.’’

‘‘पर ऐसा क्यों किया? शादी कर अपना बच्चा पा सकती थी?’’

‘‘मैं इस का कोई और कारण नहीं बता सकती, बस यों ही.’’

‘‘अच्छा, तुम जो ठीक समझो. बेबी का नाम बताओ?’’

‘‘किको नाम है उस का. इस का मतलब भी बता देती हूं होप यानी आशा. मेरे जीवन की एकमात्र आशा किको ही है.’’

‘‘ओके उस का फोटो भेजना.’’

‘‘ठीक है, बाद में भेज दूंगी.’’

‘‘समय बीतता रहा. देव और अंजु दोनों के बच्चे करीब 7 साल के हो चुके थे. एक दिन अंजु का ईमेल आया कि वह 2-3 सप्ताह के लिए टाटा आ रही है. वहां प्लांट में निप्पन द्वारा दी मशीन में कुछ तकनीकी खराबी है. उसी की जांच के लिए निप्पन एक ऐक्सपर्ट्स की टीम भेज रही है जिस में वह इंटरप्रेटर है.’’

अंजु टाटा आई थी. देव और अजिंदर से भी मिली थी. शिवम के लिए ढेर सारे गिफ्ट्स लाई थी.

‘‘किको को क्यों नहीं लाई?’’ देव ने पूछा.

‘‘एक तो उतना समय नहीं था कि उस का वीजा लूं, दूसरे उस का स्कूल… उसे होस्टल में छोड़ दिया है… मेरी एक सहेली उस की देखभाल करेगी इस बीच.’’

अंजु की टीम का काम 2 हफ्ते में हो गया. अगले दिन उसे जापान लौटना था. देव ने उसे डिनर पर बुलाया था.

अगली सुबह वह ट्रेन से कोलकाता जा रही थी, तो देव और अजिंदर दोनों स्टेशन पर छोड़ने आए थे. अंजु जब ट्रेन में बैठ गई तो उस ने अपने बैग से बड़ा सा गिफ्ट पैक निकाल कर देव को दिया.

‘‘यह क्या है? आज तो कोई बर्थडे या ऐनिवर्सरी भी नहीं है?’’ देव ने पूछा.

अंजु ने कहा, ‘‘इसे घर जा कर देखना.’’

ट्रेन चली तो अंजु हाथ हिला कर बोली, ‘‘सायोनारा.’’

अजिंदर और देव ने घर जा कर उस पैकेट को खोला. उस में एक बड़ा सा फ्रेम किया किको का फोटो था. फोटो के नीचे लिखा था, ‘‘हिरोशिमा का एक अंश.’’

देव और अजिंदर दोनों कभी फोटो को देखते तो कभी एकदूसरे को प्रश्नवाचक नजरों से. शिवम और किको बिलकुल जुड़वा लग रहे थे. फर्क सिर्फ चेहरे के रंग का था.

The post सायोनारा: क्या हुआ था अंजू और देव के बीच? appeared first on Sarita Magazine.

February 15, 2022 at 09:00AM

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