Saturday 19 February 2022

परछाई- भाग 3: मायका या ससुराल, क्या था माही का फैसला?

मां उसे पहले भी यह बात कई बार समझाना चाहती थीं, उस के प्यार का बहाव ससुराल की तरफ मोड़ना चाहती थीं पर माही समझना ही नहीं चाहती थी. पर आज पता नहीं क्यों मां की बात समझने का दिल कर रहा था. उन की बातें उस के अंतर्मन को छू रही थीं. मां चली गईं तो वह अपनेआप में गुमसुम सी हो गई. जब उस का गाल ब्लैडर की पथरी का औपरेशन हुआ था तब भी कैसे सास व जेठजेठानी ने दिनरात एक कर दिया था और भैयाभाभी ने बस एक फोन कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ली थी. जेठजेठानी ने तनमनधन लगा दिया था. ननद भी औपरेशन के समय 2 दिन के लिए उस के पास आ गई थी.

आज पिछली सारी बातें जैसे साफ हो रही थीं, उस की आंखों पर पड़ा भ्रम व मोह का परदा हट रहा था. आज पहली बार वह समझ रही थी कि जो उसे अपनाना चाह रहे थे उन्हें वह ठुकरा रही थी और जो उसे ठुकरा रहे थे उन रिश्तों के पीछे वह भाग रही थी. सच वे भी तो भैयाभाभी हैं जिन से उसे प्यार मिलता है, उस के न सही उस के पति के हैं तो उस के भी हैं. वे रिश्ते भी तो उस के अपने हैं.

वह उठ कर चुपचाप सामान पैक करने लगी तभी मां कमरे में आ गई, ‘क्या कर रही है माही?’ उसे सामान पैक करते देख कर मां बोलीं.

‘अपने घर जा रही हूं मां. अपने भैयाभाभी के पास.’

मां चुप हो गईं. दोनों मांबेटी बिना शब्दों के कहे भी एकदूसरे के दिल की बात समझ गईं थीं. दूसरे दिन माही ससुराल लौट आई. उसे वापस आया देख कर घर में सास, पति, जेठजेठानी सभी खुश हो गए. किसी ने उस से नहीं पूछा कि वह इतनी जल्दी क्यों लौट आई.

ये भी पढ़ें- ओए पुत्तर: कैसे अपनों के धोखे का शिकार हुए सरदारजी?

धीरेधीरे समय कुछ साल आगे सरक गया. उस के बच्चे थोड़े बड़े हो गए. फिर उन का तबादला दिल्ली से कानपुर हो गया. समय धीरेधीरे सरकता रहा. मातापिता व सास का साथ समय के साथ छूट गया. मां के जाने के बाद मेरठ जाना बंद हो गया. लेकिन दिल्ली जेठजेठानी के पास त्योहार व छुट्टियों में आनाजाना बना रहा. तभी घंटी की आवाज सुन कर वह चौंक गई, शायद विभव औफिस से लौट आए थे. वह वर्तमान में लौट आई उस ने उठ कर दरवाजा खोल दिया.

‘‘क्या बात है माही… बहुत गमगीन सी लग रही हो… तबीयत ठीक नहीं है क्या? विभव उसे इस कदर उदास देख कर बोले.’’

‘‘नहीं कुछ नहीं सब ठीक है… दिल्ली से सोनिया की शादी का कार्ड आया है. जाने की तैयारी करनी है. रिजर्वेशन कराना है, यही सब सोच रही थी,’’ वह उत्साहित होते हएु बोली.

‘‘और यह दूसरा किस का है?’’ विभव दूसरा कार्ड उठाते हुए बोले.

‘‘यह मेरठ से आया है.’’ माही लापरवाही दिखाते हुए बोली, ‘‘आप बैठ कर देख लो मैं चाय बना कर लाती हूं,’’ कह कर माही उठ कर किचन में चली गई. थोड़ी देर बाद 2 कप चाय बना कर ले आई.

‘‘अरे यह तो साले साहब की बेटी की शादी का कार्ड है. वहां भी तो जाना होगा. तुम वहां चली जाओ मैं…’’

‘‘नहीं…’’ माही बीच में बात काटती हुई बोली, ‘‘वहां आप उपहार भेज दो, हम दोनों ही दिल्ली जाएंगे… और थोड़े दिन पहले जाएंगे. क्योंकि शादी में मदद भी तो करनी है,’’ माही पूरे आत्मविश्वास से बोली और शांत भाव से चाय पीने लगी.

ये भी पढ़ें- दिल की आवाज: क्या शर्तों में बंधकर काम कर पाया अविनाश?

विभव ने चौंक कर उस की तरफ देखा, सब कुछ समझा और चुपचाप चाय पीने लगे. समझ गए कि प्यार व स्नेह के रिश्ते खून के रिश्तों पर भारी पड़ गए हैं. आपस में प्यार और विश्वास नहीं है तो खून के रिश्तों के धागे भी कच्चे पड़ जाते हैं. इसलिए परछाइयों के पीछे भागने के बजाय हकीकत को अपनाना चाहिए.

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मां उसे पहले भी यह बात कई बार समझाना चाहती थीं, उस के प्यार का बहाव ससुराल की तरफ मोड़ना चाहती थीं पर माही समझना ही नहीं चाहती थी. पर आज पता नहीं क्यों मां की बात समझने का दिल कर रहा था. उन की बातें उस के अंतर्मन को छू रही थीं. मां चली गईं तो वह अपनेआप में गुमसुम सी हो गई. जब उस का गाल ब्लैडर की पथरी का औपरेशन हुआ था तब भी कैसे सास व जेठजेठानी ने दिनरात एक कर दिया था और भैयाभाभी ने बस एक फोन कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ली थी. जेठजेठानी ने तनमनधन लगा दिया था. ननद भी औपरेशन के समय 2 दिन के लिए उस के पास आ गई थी.

आज पिछली सारी बातें जैसे साफ हो रही थीं, उस की आंखों पर पड़ा भ्रम व मोह का परदा हट रहा था. आज पहली बार वह समझ रही थी कि जो उसे अपनाना चाह रहे थे उन्हें वह ठुकरा रही थी और जो उसे ठुकरा रहे थे उन रिश्तों के पीछे वह भाग रही थी. सच वे भी तो भैयाभाभी हैं जिन से उसे प्यार मिलता है, उस के न सही उस के पति के हैं तो उस के भी हैं. वे रिश्ते भी तो उस के अपने हैं.

वह उठ कर चुपचाप सामान पैक करने लगी तभी मां कमरे में आ गई, ‘क्या कर रही है माही?’ उसे सामान पैक करते देख कर मां बोलीं.

‘अपने घर जा रही हूं मां. अपने भैयाभाभी के पास.’

मां चुप हो गईं. दोनों मांबेटी बिना शब्दों के कहे भी एकदूसरे के दिल की बात समझ गईं थीं. दूसरे दिन माही ससुराल लौट आई. उसे वापस आया देख कर घर में सास, पति, जेठजेठानी सभी खुश हो गए. किसी ने उस से नहीं पूछा कि वह इतनी जल्दी क्यों लौट आई.

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धीरेधीरे समय कुछ साल आगे सरक गया. उस के बच्चे थोड़े बड़े हो गए. फिर उन का तबादला दिल्ली से कानपुर हो गया. समय धीरेधीरे सरकता रहा. मातापिता व सास का साथ समय के साथ छूट गया. मां के जाने के बाद मेरठ जाना बंद हो गया. लेकिन दिल्ली जेठजेठानी के पास त्योहार व छुट्टियों में आनाजाना बना रहा. तभी घंटी की आवाज सुन कर वह चौंक गई, शायद विभव औफिस से लौट आए थे. वह वर्तमान में लौट आई उस ने उठ कर दरवाजा खोल दिया.

‘‘क्या बात है माही… बहुत गमगीन सी लग रही हो… तबीयत ठीक नहीं है क्या? विभव उसे इस कदर उदास देख कर बोले.’’

‘‘नहीं कुछ नहीं सब ठीक है… दिल्ली से सोनिया की शादी का कार्ड आया है. जाने की तैयारी करनी है. रिजर्वेशन कराना है, यही सब सोच रही थी,’’ वह उत्साहित होते हएु बोली.

‘‘और यह दूसरा किस का है?’’ विभव दूसरा कार्ड उठाते हुए बोले.

‘‘यह मेरठ से आया है.’’ माही लापरवाही दिखाते हुए बोली, ‘‘आप बैठ कर देख लो मैं चाय बना कर लाती हूं,’’ कह कर माही उठ कर किचन में चली गई. थोड़ी देर बाद 2 कप चाय बना कर ले आई.

‘‘अरे यह तो साले साहब की बेटी की शादी का कार्ड है. वहां भी तो जाना होगा. तुम वहां चली जाओ मैं…’’

‘‘नहीं…’’ माही बीच में बात काटती हुई बोली, ‘‘वहां आप उपहार भेज दो, हम दोनों ही दिल्ली जाएंगे… और थोड़े दिन पहले जाएंगे. क्योंकि शादी में मदद भी तो करनी है,’’ माही पूरे आत्मविश्वास से बोली और शांत भाव से चाय पीने लगी.

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विभव ने चौंक कर उस की तरफ देखा, सब कुछ समझा और चुपचाप चाय पीने लगे. समझ गए कि प्यार व स्नेह के रिश्ते खून के रिश्तों पर भारी पड़ गए हैं. आपस में प्यार और विश्वास नहीं है तो खून के रिश्तों के धागे भी कच्चे पड़ जाते हैं. इसलिए परछाइयों के पीछे भागने के बजाय हकीकत को अपनाना चाहिए.

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February 16, 2022 at 02:20PM

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