Sunday 20 February 2022

कर्तव्य: मीनाक्षी का दिल किस पर आ गया था

लेखका-रमेश चंद्र छबीला

मीनाक्षी का दिल तब अधिक सहम उठा जब उस का एकलौता नन्हा बेटा रमन स्कूल से घर न लौटा. वह घबरा गई और गहरी आशंका से घिर गई कि कहीं रमन को औटो ड्राइवर ने कुछ कर तो नहीं दिया. सोफे पर बैठी मीनाक्षी ने दीवारघड़ी की ओर देखा. 3 बजने वाले थे. उस ने मेज पर रखा समाचारपत्र उठाया और समाचारों पर सरसरी दृष्टि डालने लगी. चोरी, चेन ?पटने, लूटमार, हत्या, अपहरण व बलात्कार के समाचार थे.

2 समाचारों पर उस की दृष्टि रुक गई, ‘12 वर्षीया बालिका से स्कूलवैन ड्राइवर द्वारा बलात्कार, दूसरा समाचार था, स्कूल के औटो ड्राइवर द्वारा 8 वर्षीय बालक का अपहरण, फिरौती न देने पर हत्या.’ पूरा समाचार पढ़ कर सन्न रह गई मीनाक्षी. यह क्या हो रहा है? क्यों बढ़ रहे हैं इतने अपराध? कहीं भी सुरक्षा नहीं रही. इन अपराधियों को तो पुलिस व जेल का बिलकुल भी भय नहीं रहा. पता नहीं क्यों आज इंसान के रूप में ऐसे शैतानों को बच्चियों पर जघन्य अपराध करते हुए जरा भी दया नहीं आती. फिरौती के रूप में लाखों रुपए न मिलने पर मासूम बच्चों की हत्या करते हुए उन का हृदय जरा भी नहीं पसीजता. सोचतेसोचते मीनाक्षी ने घड़ी की ओर देखा. साढ़े 3 बज रहे थे.

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अभी तक रमन स्कूल से नहीं लौटा. स्कूल की छुट्टी तो 3 बजे हो जाती है. घर आने तक आधा घंटा लगता है. अब तक तो रमन को घर आ जाना चाहिए था. मीनाक्षी के पति गिरीश एक प्राइवेट कंपनी में प्रबंधक थे. उन का 8 वर्षीय रमन इकलौता बेटा था. रमन शहर के एक इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ रहा था. रमन देखने में सुंदर और बहुत प्यारा था दूधिया रंग का. सिर पर मुलायम चमकीले बाल. काली आंखें. मोती से चमकते दांत. जो भी रमन को पहली बार देखता, उस का मन करता था कि देखता ही रहे. वह पढ़ाई में भी बहुत आगे रहता. उस की प्यारीप्यारी बातें सुन कर खूब बातें करने को मन करता था. एक दिन गिरीश ने मीनाक्षी से कहा था, ‘देखो मीनाक्षी, हमें दूसरा बच्चा नहीं पैदा करना है. मैं चाहता हूं कि रमन को खूब पढ़ालिखा कर किसी योग्य बना दूं.’ मीनाक्षी ने भी सहमति के रूप में सिर हिला दिया था.

वह स्वयं भी कंप्यूटर इंजीनियर थी. चाहती तो नौकरी भी कर सकती थी, परंतु रमन के कुशलतापूर्वक लालनपालन के लिए उस ने नौकरी करने का विचार त्याग दिया था. उसे एक गृहिणी बन कर रहना ही उचित लगा. मीनाक्षी के हृदय की धड़कन बढ़ने लगी. कहां रह गया रमन? सुबह 9 बजे औटोरिकशा में बैठ कर स्कूल जाता है. 5 बच्चे और भी उसी औटो में बैठ कर जाते हैं. रमन सब से पहले औटो में बैठता है और सब से बाद में घर आता है. औटोरिकशा चलाने वाला मोहन लाल पिछले वर्ष से बच्चों को ले जा रहा था. अब 3 दिनों से मोहन लाल बुखार में पड़ा था. उस ने अपने छोटे भाई सोहन लाल को भेज दिया था. कल सोहन लाल औटोरिकशा ले कर आया था. सोहन लाल भी नगर में औटो चलाता है.

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उस ने पूछा था, ‘तुम्हारा भाई मोहन लाल नहीं आया. उस का बुखार ठीक नहीं हुआ क्या? कल उस का फोन आया था कि बुखार हो गया है, इसलिए कुछ दिन छोटा भाई आएगा.’ ‘हां मैडमजी, अभी भाई का बुखार ठीक नहीं हुआ है. आज उसे खून की जांच करानी है. जब तक वह नहीं आता, मैं बच्चों को स्कूल ले जाऊंगा.’ ‘ठीक है, जरा ध्यान से ले जाना.’ उस ने रमन को औटो में बैठाते हुए कहा था. ‘आप चिंता न करें मैडमजी. मैं पहले भी कई बार इन बच्चों को स्कूल ले गया हूं. मु?ो इन बच्चों के घर का पता भी मालूम है. 3 बजे छुट्टी होती है. मैं साढ़े 3 बजे तक घर पर रमन को ले आऊंगा.’ ‘बाय, मम्मा…’ रमन ने मुसकरा कर हाथ हिलाते हुए कहा था. कल 3 बज कर 45 मिनट पर सोहन लाल औटोरिकशा में रमन को ले कर आ गया था. रमन के आ जाने पर उस ने चैन की सांस ली थी.

परंतु आज कहां रह गया रमन? पौने 4 बज रहे थे. उसे आज अपनी मूर्खता पर क्रोध आ रहा था कि उस ने सोहन लाल का मोबाइल नंबर क्यों नहीं लिया? न कल लिया और आज भी वह भूल गई थी. मीनाक्षी को ध्यान आया कि सोहन लाल का नंबर तो पिछली बार डायरी में नोट किया था. उस ने डायरी उठा कर ?ाटपट नंबर मिलाया परंतु वह नंबर मौजूद नहीं था. पता नहीं बहुत से लोग नंबर क्यों बदलते रहते हैं? वह ?ां?ाला उठी. उस ने मोहन लाल का नंबर मिला कर कहा, ‘‘तुम्हारा भाई सोहन अभी तक रमन को ले कर नहीं आया है, पता नहीं कहां रह गया? मेरे पास उस का मोबाइल नंबर भी नहीं है. इतनी देर तो नहीं होनी चाहिए थी. मैं ने उसे फोन मिलाया है पर उस का फोन लग नहीं रहा है. स्विचऔफ सुनाई दे रहा है. पता नहीं क्या बात हो सकती है?’’ उधर से मोहन लाल का भी चिंतित स्वर सुनाई दिया.

मीनाक्षी ने घबराए स्वर में कहा, ‘‘ओह, मु?ो बहुत डर लग रहा है. पता नहीं रमन किस हाल में होगा?’’ ‘‘मैडमजी आप चिंता न करें. रमन बेटा आप के पास पहुंच जाएगा. हो सकता है कहीं जाम में औटो फंस गया हो,’’ मोहन लाल का स्वर था. मीनाक्षी ने रमन की कक्षा में पढ़ने वाले एक बच्चे की मम्मी का मोबाइल नंबर मिला कर कहा, ‘‘मैं मीनाक्षी बोल रही हूं.’’ ‘‘कहिए मीनाक्षीजी, कैसी हैं आप? 10 तारीख को होटल ग्रीन में किटी पार्टी है.’’ ‘‘हां मालूम है मु?ो. यह बताओ कि आप का बेटा कमल स्कूल से आ गया है क्या?’’ बात काट कर मीनाक्षी ने कहा. ‘‘हांहां, आ गया है. वह तो सवा 3 बजे ही आ गया था पर क्या बात है, आप यह क्यों पूछ रही हैं?’’ ‘‘रमन को ले कर सोहन लाल अभी तक घर नहीं आया है.’’ ‘‘क्या कह रही हो मीनाक्षी? अब तो 4 बजने को हैं. स्कूल से छुट्टी हुए तो एक घंटा हो रहा है. कहां रह गया होगा बेटा? आजकल जमाना बहुत खराब चल रहा है.

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रोजाना अखबारों में बेटीबेटों के बारे में दिल दहला देने वाले समाचार छपते रहते हैं, किस पर कितना विश्वास करें? किसी का क्या पता कि कब मन बदल जाए? दिमाग में कब शैतान घुस जाए? हमारी मजबूरी है कि हम अपने घर के चिरागों को इन जैसे लोगों के साथ भेज देते हैं. आप जल्दी से स्कूल फोन करो. कहीं ऐसा न हो कि रमन आज स्कूल में ही रह गया हो. हमारे और आप के यहां तो एकएक ही बच्चा है? यदि कुछ ऐसावैसा हो गया तो…’’ ‘‘नहीं…’’ और सुन नहीं सकी मीनाक्षी. उस ने एकदम फोन काट दिया. उस का हृदय बुरी तरह धड़क रहा था. उस ने स्कूल का नंबर मिलाया. उधर से हैलो होते ही वह एकदम बोली, ‘मेरा बेटा रमन आप के यहां तीसरी कक्षा में पढ़ रहा है. वह अभी तक घर नहीं पहुंचा. स्कूल में तो कोई बच्चा नहीं रह गया है?’ ‘नहीं मैडमजी, यहां कोई बच्चा नहीं है.

स्कूल की 3 बजे छुट्टी हो गई थी. यदि यहां आप का बच्चा होता तो आप को फोन पर सूचना दी जाती. आप का बच्चा कैसे घर पहुंचता है?’ ‘औटोरिकशा में कुछ बच्चे आतेजाते हैं. कल व आज औटो वाले का भाई आया था. औटो वाला मोहन लाल बीमार है.’’ ‘‘ओह… मैडम, आप तुरंत पुलिस को सूचना दीजिए. इतनी देर तक बच्चा घर नहीं पहुंचा तो कुछ गलत हुआ है. कुछ पता नहीं चलता कि इंसान कब शैतान बन जाए.’’ यह सुनते ही मीनाक्षी बुरी तरह घबरा गई. आंखों से आंसू बहने लगे. उस ने गिरीश को फोन मिलाया. ‘‘हैलो,’’ गिरीश की आवाज सुनाई दी. ‘‘रमन अभी तक स्कूल से घर नहीं पहुंचा,’’ मीनाक्षी ने रोते हुए कांपते स्वर में कहा. ‘‘क्या कह रही हो? रमन अभी तक स्कूल से घर नहीं लौटा? अब तो 4 से भी ज्यादा बज रहे हैं. छुट्टी तो 3 बजे हो गई होगी. औटो वाले सोहन का नंबर मिलाया?’’ गिरीश का घबराया सा स्वर सुनाई दिया. ‘‘सोहन का नंबर मेरे पास नहीं है. मैं ने उस के भाई को मिलाया था तो वह बोला कि सोहन के फोन का स्विचऔफ है.

स्कूल वालों से पूछा तो उन्होंने जवाब दिया कि छुट्टी 3 बजे हो गई थी. अब यहां कोई बच्चा नहीं है. वे कह रहे थे कि किसी भी औटो वाले का क्या विश्वास कि कब मन बदल जाए. पुलिस में सूचना दो.’’ ‘‘मैं अभी पहुंच रहा हूं,’’ गिरीश ने चिंतित हो कर कहा. 10 मिनट में ही गिरीश घर पर पहुंच गया. मीनाक्षी को रोते हुए देख कर सम?ा गया कि रमन अभी तक नहीं आया है. ‘‘क्या सभी बच्चे अपने घर पहुंच गए?’’ ‘‘हां, मैं ने कमल की मम्मी से पूछा था. वह सवा 3 बजे अपने घर पहुंच गया था. मेरा तो दिल बैठा जा रहा है. मेरे रमन को कुछ हो गया तो मैं भी जान दे दूंगी. पता नहीं वह कमीना मेरे रमन को किस तरह सता रहा होगा,’’ कहते हुए मीनाक्षी फूटफूट कर रोने लगी. ‘‘मु?ो तो यह औटो वाला सोहन जरा भी अच्छा नहीं लगता. देखने में गुंडा और लफंगा लगता है. जब इस के भाई ने भेज ही दिया तो हम क्या करते, मजबूरी है.

इस के मन में आ गया होगा कि बच्चे को कहीं छिपा दूंगा. 15-20 लाख रुपए मांगूंगा तो 5-7 मिल ही जाएंगे. हो सकता है उस के साथ कोई दूसरा भी मिला हो. देखना अभी इस का फोन आएगा. ‘‘अपने बच्चे के लिए मैं अपने बैंक खाते के सारे रुपए तथा जेवरात दे दूंगी लेकिन रमन को कुछ नहीं होना चाहिए. उस के बिना मैं जीवित नहीं रह पाऊंगी.’’ ‘‘मीनाक्षी, अपनेआप को संभालो. हम पर अचानक यह भयंकर मुसीबत आई है. हमें इस का मुकाबला करना होगा. अब मैं पुलिस स्टेशन रिपोर्ट लिखाने जा रहा हूं,’’ गिरीश ने कहा और कमरे से बाहर निकला. तभी घर के बाहर औटोरिकशा के रुकने की आवाज आई. देखते ही गिरीश एकदम चीख उठा, ‘‘अबे, कहां मर गया था उल्लू के पट्ठे?’’ औटो की आवाज व गिरीश का चीखना सुन कर मीनाक्षी भी एकदम कमरे से बाहर आई.

रमन औटो से उतर रहा था. सोहन लाल के हाथ पर पट्टी बंधी थी तथा चेहरे पर मारपिटाई के निशान थे. मीनाक्षी ने रमन को गोद में उठा कर इस प्रकार गले लगाया मानो वर्षों बाद मिला हो. गिरीश ने रमन से पूछा, ‘‘बेटे, तुम ठीक हो?’’ ‘‘मैं बिलकुल ठीक हूं पापा, लेकिन अंकल की लोगों ने मारपिटाई की है,’’ रमन ने कहा. गिरीश व मीनाक्षी चौंके. वे दोनों चकित से सोहन लाल के चेहरे की ओर देख रहे थे. गिरीश ने पूछा, ‘‘सोहन लाल, क्या बात हुई. हम तो बहुत परेशान थे कि अभी तक तुम रमन को ले कर क्यों नहीं आए हो.’’ ‘‘परेशान होने की तो बात ही है बाबूजी. रोजाना तो बेटा साढ़े 3 बजे तक घर आ जाता था और आज इतनी देर तक भी नहीं आया, घबराहट तो होनी ही थी.

इस बीच न जाने क्याक्या सोच लिया होगा आप ने.’’ ‘‘हाथ पर चोट कैसे लगी?’’ मीनाक्षी ने पूछा. ‘‘सब बच्चे अपनेअपने घर चले गए थे. मैं इधर ही लौट रहा था तो औटो में पंचर हो गया. आधा घंटा वहां लग गया. गांधी चौक पर जाम लगा हुआ था. मैं औटो दूसरे रास्ते से ले कर जल्दी घर पहुंचना चाहता था. मैं जानता था कि देर हो चुकी है. ‘‘मैं पटेल रोड पर आ रहा था तो सामने से एक बाइक पर 2 युवा स्टंट करते हुए तेजी से आ रहे थे. जो चला रहा था, उस ने कानों में इयरफोन लगा रखा था. सिर पर हैलमैट नहीं था. मैं सम?ा गया कि इन की बाइक औटो से टकरा जाएगी.

जैसे ही मैं ने तेजी से औटो बचाया तो सड़क के किनारे खड़ी किसी नेताजी की कार में जरा सी खरोंच आ गई. ‘‘कार पर पार्टी का ?ांडा लगा था. कार से 3 व्यक्ति उतरे. मैं ने उन के आगे हाथ जोड़ कर माफी मांगी, पर वे तो सत्ता के नशे में चूर थे. उन्होंने मेरे साथ मारपिटाई शुरू कर दी. एक ने मु?ो धक्का दिया तो मेरा सिर औटो से जा लगा. लोगों ने बीचबचाव कर मु?ो छुड़ा दिया. पास के नर्सिंगहोम में जा कर मैं ने पट्टी कराई और सीधा यहां आ गया. आज तो मोबाइल चार्ज भी नहीं था, इसलिए मेरा फोन भी बंद था,’’ सोहन लाल ने बताया. यह सुन कर गिरीश व मीनाक्षी का क्रोध शांत होता चला गया.

‘‘बाबूजी, आज जो हुआ, उस में मेरा तो कोई दोष नहीं. बस, हालात ही ऐसे बनते चले गए कि देर होती चली गई,’’ सोहन लाल बोला. मीनाक्षी के हृदय में दया व सहानुभूति की लहर दौड़ने लगी. वह बोली, ‘‘सोहन लाल तुम्हारा दोष जरा भी नहीं है. तुम्हें तो चोट भी लग गई है.’’ ‘‘मु?ो इस चोट की जरा भी चिंता नहीं है मैडमजी. यदि रमन बेटे को जरा भी चोट लग जाती तो मैं कभी स्वयं को माफ न करता.

उस का मु?ो बहुत दुख होता. आप लोग अपने बच्चों को हमारे साथ कितने विश्वास के साथ स्कूल भेजते हैं. हमारा भी तो यह कर्तव्य है कि हम उस विश्वास को बनाए रखें. हम लोगों की जरा सी लापरवाही से यह विश्वास टूट जाएगा. मैं तो उन लोगों में हूं जो अपनी जान पर खेल कर सदा यह विश्वास बनाए रखना चाहते हैं.’’ गिरीश ने कहा, ‘‘बैठो सोहन, मीनाक्षी तुम्हारे लिए चाय बना कर लाती है.’’ ‘‘धन्यवाद बाबूजी, चाय फिर कभी. अभी तो मु?ो भैया के खून की टैस्ट रिपोर्ट लानी है. काफी देर हो चुकी है,’’ सोहन लाल ने कहा और औटो स्टार्ट कर चल दिया. द्य

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लेखका-रमेश चंद्र छबीला

मीनाक्षी का दिल तब अधिक सहम उठा जब उस का एकलौता नन्हा बेटा रमन स्कूल से घर न लौटा. वह घबरा गई और गहरी आशंका से घिर गई कि कहीं रमन को औटो ड्राइवर ने कुछ कर तो नहीं दिया. सोफे पर बैठी मीनाक्षी ने दीवारघड़ी की ओर देखा. 3 बजने वाले थे. उस ने मेज पर रखा समाचारपत्र उठाया और समाचारों पर सरसरी दृष्टि डालने लगी. चोरी, चेन ?पटने, लूटमार, हत्या, अपहरण व बलात्कार के समाचार थे.

2 समाचारों पर उस की दृष्टि रुक गई, ‘12 वर्षीया बालिका से स्कूलवैन ड्राइवर द्वारा बलात्कार, दूसरा समाचार था, स्कूल के औटो ड्राइवर द्वारा 8 वर्षीय बालक का अपहरण, फिरौती न देने पर हत्या.’ पूरा समाचार पढ़ कर सन्न रह गई मीनाक्षी. यह क्या हो रहा है? क्यों बढ़ रहे हैं इतने अपराध? कहीं भी सुरक्षा नहीं रही. इन अपराधियों को तो पुलिस व जेल का बिलकुल भी भय नहीं रहा. पता नहीं क्यों आज इंसान के रूप में ऐसे शैतानों को बच्चियों पर जघन्य अपराध करते हुए जरा भी दया नहीं आती. फिरौती के रूप में लाखों रुपए न मिलने पर मासूम बच्चों की हत्या करते हुए उन का हृदय जरा भी नहीं पसीजता. सोचतेसोचते मीनाक्षी ने घड़ी की ओर देखा. साढ़े 3 बज रहे थे.

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अभी तक रमन स्कूल से नहीं लौटा. स्कूल की छुट्टी तो 3 बजे हो जाती है. घर आने तक आधा घंटा लगता है. अब तक तो रमन को घर आ जाना चाहिए था. मीनाक्षी के पति गिरीश एक प्राइवेट कंपनी में प्रबंधक थे. उन का 8 वर्षीय रमन इकलौता बेटा था. रमन शहर के एक इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ रहा था. रमन देखने में सुंदर और बहुत प्यारा था दूधिया रंग का. सिर पर मुलायम चमकीले बाल. काली आंखें. मोती से चमकते दांत. जो भी रमन को पहली बार देखता, उस का मन करता था कि देखता ही रहे. वह पढ़ाई में भी बहुत आगे रहता. उस की प्यारीप्यारी बातें सुन कर खूब बातें करने को मन करता था. एक दिन गिरीश ने मीनाक्षी से कहा था, ‘देखो मीनाक्षी, हमें दूसरा बच्चा नहीं पैदा करना है. मैं चाहता हूं कि रमन को खूब पढ़ालिखा कर किसी योग्य बना दूं.’ मीनाक्षी ने भी सहमति के रूप में सिर हिला दिया था.

वह स्वयं भी कंप्यूटर इंजीनियर थी. चाहती तो नौकरी भी कर सकती थी, परंतु रमन के कुशलतापूर्वक लालनपालन के लिए उस ने नौकरी करने का विचार त्याग दिया था. उसे एक गृहिणी बन कर रहना ही उचित लगा. मीनाक्षी के हृदय की धड़कन बढ़ने लगी. कहां रह गया रमन? सुबह 9 बजे औटोरिकशा में बैठ कर स्कूल जाता है. 5 बच्चे और भी उसी औटो में बैठ कर जाते हैं. रमन सब से पहले औटो में बैठता है और सब से बाद में घर आता है. औटोरिकशा चलाने वाला मोहन लाल पिछले वर्ष से बच्चों को ले जा रहा था. अब 3 दिनों से मोहन लाल बुखार में पड़ा था. उस ने अपने छोटे भाई सोहन लाल को भेज दिया था. कल सोहन लाल औटोरिकशा ले कर आया था. सोहन लाल भी नगर में औटो चलाता है.

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उस ने पूछा था, ‘तुम्हारा भाई मोहन लाल नहीं आया. उस का बुखार ठीक नहीं हुआ क्या? कल उस का फोन आया था कि बुखार हो गया है, इसलिए कुछ दिन छोटा भाई आएगा.’ ‘हां मैडमजी, अभी भाई का बुखार ठीक नहीं हुआ है. आज उसे खून की जांच करानी है. जब तक वह नहीं आता, मैं बच्चों को स्कूल ले जाऊंगा.’ ‘ठीक है, जरा ध्यान से ले जाना.’ उस ने रमन को औटो में बैठाते हुए कहा था. ‘आप चिंता न करें मैडमजी. मैं पहले भी कई बार इन बच्चों को स्कूल ले गया हूं. मु?ो इन बच्चों के घर का पता भी मालूम है. 3 बजे छुट्टी होती है. मैं साढ़े 3 बजे तक घर पर रमन को ले आऊंगा.’ ‘बाय, मम्मा…’ रमन ने मुसकरा कर हाथ हिलाते हुए कहा था. कल 3 बज कर 45 मिनट पर सोहन लाल औटोरिकशा में रमन को ले कर आ गया था. रमन के आ जाने पर उस ने चैन की सांस ली थी.

परंतु आज कहां रह गया रमन? पौने 4 बज रहे थे. उसे आज अपनी मूर्खता पर क्रोध आ रहा था कि उस ने सोहन लाल का मोबाइल नंबर क्यों नहीं लिया? न कल लिया और आज भी वह भूल गई थी. मीनाक्षी को ध्यान आया कि सोहन लाल का नंबर तो पिछली बार डायरी में नोट किया था. उस ने डायरी उठा कर ?ाटपट नंबर मिलाया परंतु वह नंबर मौजूद नहीं था. पता नहीं बहुत से लोग नंबर क्यों बदलते रहते हैं? वह ?ां?ाला उठी. उस ने मोहन लाल का नंबर मिला कर कहा, ‘‘तुम्हारा भाई सोहन अभी तक रमन को ले कर नहीं आया है, पता नहीं कहां रह गया? मेरे पास उस का मोबाइल नंबर भी नहीं है. इतनी देर तो नहीं होनी चाहिए थी. मैं ने उसे फोन मिलाया है पर उस का फोन लग नहीं रहा है. स्विचऔफ सुनाई दे रहा है. पता नहीं क्या बात हो सकती है?’’ उधर से मोहन लाल का भी चिंतित स्वर सुनाई दिया.

मीनाक्षी ने घबराए स्वर में कहा, ‘‘ओह, मु?ो बहुत डर लग रहा है. पता नहीं रमन किस हाल में होगा?’’ ‘‘मैडमजी आप चिंता न करें. रमन बेटा आप के पास पहुंच जाएगा. हो सकता है कहीं जाम में औटो फंस गया हो,’’ मोहन लाल का स्वर था. मीनाक्षी ने रमन की कक्षा में पढ़ने वाले एक बच्चे की मम्मी का मोबाइल नंबर मिला कर कहा, ‘‘मैं मीनाक्षी बोल रही हूं.’’ ‘‘कहिए मीनाक्षीजी, कैसी हैं आप? 10 तारीख को होटल ग्रीन में किटी पार्टी है.’’ ‘‘हां मालूम है मु?ो. यह बताओ कि आप का बेटा कमल स्कूल से आ गया है क्या?’’ बात काट कर मीनाक्षी ने कहा. ‘‘हांहां, आ गया है. वह तो सवा 3 बजे ही आ गया था पर क्या बात है, आप यह क्यों पूछ रही हैं?’’ ‘‘रमन को ले कर सोहन लाल अभी तक घर नहीं आया है.’’ ‘‘क्या कह रही हो मीनाक्षी? अब तो 4 बजने को हैं. स्कूल से छुट्टी हुए तो एक घंटा हो रहा है. कहां रह गया होगा बेटा? आजकल जमाना बहुत खराब चल रहा है.

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रोजाना अखबारों में बेटीबेटों के बारे में दिल दहला देने वाले समाचार छपते रहते हैं, किस पर कितना विश्वास करें? किसी का क्या पता कि कब मन बदल जाए? दिमाग में कब शैतान घुस जाए? हमारी मजबूरी है कि हम अपने घर के चिरागों को इन जैसे लोगों के साथ भेज देते हैं. आप जल्दी से स्कूल फोन करो. कहीं ऐसा न हो कि रमन आज स्कूल में ही रह गया हो. हमारे और आप के यहां तो एकएक ही बच्चा है? यदि कुछ ऐसावैसा हो गया तो…’’ ‘‘नहीं…’’ और सुन नहीं सकी मीनाक्षी. उस ने एकदम फोन काट दिया. उस का हृदय बुरी तरह धड़क रहा था. उस ने स्कूल का नंबर मिलाया. उधर से हैलो होते ही वह एकदम बोली, ‘मेरा बेटा रमन आप के यहां तीसरी कक्षा में पढ़ रहा है. वह अभी तक घर नहीं पहुंचा. स्कूल में तो कोई बच्चा नहीं रह गया है?’ ‘नहीं मैडमजी, यहां कोई बच्चा नहीं है.

स्कूल की 3 बजे छुट्टी हो गई थी. यदि यहां आप का बच्चा होता तो आप को फोन पर सूचना दी जाती. आप का बच्चा कैसे घर पहुंचता है?’ ‘औटोरिकशा में कुछ बच्चे आतेजाते हैं. कल व आज औटो वाले का भाई आया था. औटो वाला मोहन लाल बीमार है.’’ ‘‘ओह… मैडम, आप तुरंत पुलिस को सूचना दीजिए. इतनी देर तक बच्चा घर नहीं पहुंचा तो कुछ गलत हुआ है. कुछ पता नहीं चलता कि इंसान कब शैतान बन जाए.’’ यह सुनते ही मीनाक्षी बुरी तरह घबरा गई. आंखों से आंसू बहने लगे. उस ने गिरीश को फोन मिलाया. ‘‘हैलो,’’ गिरीश की आवाज सुनाई दी. ‘‘रमन अभी तक स्कूल से घर नहीं पहुंचा,’’ मीनाक्षी ने रोते हुए कांपते स्वर में कहा. ‘‘क्या कह रही हो? रमन अभी तक स्कूल से घर नहीं लौटा? अब तो 4 से भी ज्यादा बज रहे हैं. छुट्टी तो 3 बजे हो गई होगी. औटो वाले सोहन का नंबर मिलाया?’’ गिरीश का घबराया सा स्वर सुनाई दिया. ‘‘सोहन का नंबर मेरे पास नहीं है. मैं ने उस के भाई को मिलाया था तो वह बोला कि सोहन के फोन का स्विचऔफ है.

स्कूल वालों से पूछा तो उन्होंने जवाब दिया कि छुट्टी 3 बजे हो गई थी. अब यहां कोई बच्चा नहीं है. वे कह रहे थे कि किसी भी औटो वाले का क्या विश्वास कि कब मन बदल जाए. पुलिस में सूचना दो.’’ ‘‘मैं अभी पहुंच रहा हूं,’’ गिरीश ने चिंतित हो कर कहा. 10 मिनट में ही गिरीश घर पर पहुंच गया. मीनाक्षी को रोते हुए देख कर सम?ा गया कि रमन अभी तक नहीं आया है. ‘‘क्या सभी बच्चे अपने घर पहुंच गए?’’ ‘‘हां, मैं ने कमल की मम्मी से पूछा था. वह सवा 3 बजे अपने घर पहुंच गया था. मेरा तो दिल बैठा जा रहा है. मेरे रमन को कुछ हो गया तो मैं भी जान दे दूंगी. पता नहीं वह कमीना मेरे रमन को किस तरह सता रहा होगा,’’ कहते हुए मीनाक्षी फूटफूट कर रोने लगी. ‘‘मु?ो तो यह औटो वाला सोहन जरा भी अच्छा नहीं लगता. देखने में गुंडा और लफंगा लगता है. जब इस के भाई ने भेज ही दिया तो हम क्या करते, मजबूरी है.

इस के मन में आ गया होगा कि बच्चे को कहीं छिपा दूंगा. 15-20 लाख रुपए मांगूंगा तो 5-7 मिल ही जाएंगे. हो सकता है उस के साथ कोई दूसरा भी मिला हो. देखना अभी इस का फोन आएगा. ‘‘अपने बच्चे के लिए मैं अपने बैंक खाते के सारे रुपए तथा जेवरात दे दूंगी लेकिन रमन को कुछ नहीं होना चाहिए. उस के बिना मैं जीवित नहीं रह पाऊंगी.’’ ‘‘मीनाक्षी, अपनेआप को संभालो. हम पर अचानक यह भयंकर मुसीबत आई है. हमें इस का मुकाबला करना होगा. अब मैं पुलिस स्टेशन रिपोर्ट लिखाने जा रहा हूं,’’ गिरीश ने कहा और कमरे से बाहर निकला. तभी घर के बाहर औटोरिकशा के रुकने की आवाज आई. देखते ही गिरीश एकदम चीख उठा, ‘‘अबे, कहां मर गया था उल्लू के पट्ठे?’’ औटो की आवाज व गिरीश का चीखना सुन कर मीनाक्षी भी एकदम कमरे से बाहर आई.

रमन औटो से उतर रहा था. सोहन लाल के हाथ पर पट्टी बंधी थी तथा चेहरे पर मारपिटाई के निशान थे. मीनाक्षी ने रमन को गोद में उठा कर इस प्रकार गले लगाया मानो वर्षों बाद मिला हो. गिरीश ने रमन से पूछा, ‘‘बेटे, तुम ठीक हो?’’ ‘‘मैं बिलकुल ठीक हूं पापा, लेकिन अंकल की लोगों ने मारपिटाई की है,’’ रमन ने कहा. गिरीश व मीनाक्षी चौंके. वे दोनों चकित से सोहन लाल के चेहरे की ओर देख रहे थे. गिरीश ने पूछा, ‘‘सोहन लाल, क्या बात हुई. हम तो बहुत परेशान थे कि अभी तक तुम रमन को ले कर क्यों नहीं आए हो.’’ ‘‘परेशान होने की तो बात ही है बाबूजी. रोजाना तो बेटा साढ़े 3 बजे तक घर आ जाता था और आज इतनी देर तक भी नहीं आया, घबराहट तो होनी ही थी.

इस बीच न जाने क्याक्या सोच लिया होगा आप ने.’’ ‘‘हाथ पर चोट कैसे लगी?’’ मीनाक्षी ने पूछा. ‘‘सब बच्चे अपनेअपने घर चले गए थे. मैं इधर ही लौट रहा था तो औटो में पंचर हो गया. आधा घंटा वहां लग गया. गांधी चौक पर जाम लगा हुआ था. मैं औटो दूसरे रास्ते से ले कर जल्दी घर पहुंचना चाहता था. मैं जानता था कि देर हो चुकी है. ‘‘मैं पटेल रोड पर आ रहा था तो सामने से एक बाइक पर 2 युवा स्टंट करते हुए तेजी से आ रहे थे. जो चला रहा था, उस ने कानों में इयरफोन लगा रखा था. सिर पर हैलमैट नहीं था. मैं सम?ा गया कि इन की बाइक औटो से टकरा जाएगी.

जैसे ही मैं ने तेजी से औटो बचाया तो सड़क के किनारे खड़ी किसी नेताजी की कार में जरा सी खरोंच आ गई. ‘‘कार पर पार्टी का ?ांडा लगा था. कार से 3 व्यक्ति उतरे. मैं ने उन के आगे हाथ जोड़ कर माफी मांगी, पर वे तो सत्ता के नशे में चूर थे. उन्होंने मेरे साथ मारपिटाई शुरू कर दी. एक ने मु?ो धक्का दिया तो मेरा सिर औटो से जा लगा. लोगों ने बीचबचाव कर मु?ो छुड़ा दिया. पास के नर्सिंगहोम में जा कर मैं ने पट्टी कराई और सीधा यहां आ गया. आज तो मोबाइल चार्ज भी नहीं था, इसलिए मेरा फोन भी बंद था,’’ सोहन लाल ने बताया. यह सुन कर गिरीश व मीनाक्षी का क्रोध शांत होता चला गया.

‘‘बाबूजी, आज जो हुआ, उस में मेरा तो कोई दोष नहीं. बस, हालात ही ऐसे बनते चले गए कि देर होती चली गई,’’ सोहन लाल बोला. मीनाक्षी के हृदय में दया व सहानुभूति की लहर दौड़ने लगी. वह बोली, ‘‘सोहन लाल तुम्हारा दोष जरा भी नहीं है. तुम्हें तो चोट भी लग गई है.’’ ‘‘मु?ो इस चोट की जरा भी चिंता नहीं है मैडमजी. यदि रमन बेटे को जरा भी चोट लग जाती तो मैं कभी स्वयं को माफ न करता.

उस का मु?ो बहुत दुख होता. आप लोग अपने बच्चों को हमारे साथ कितने विश्वास के साथ स्कूल भेजते हैं. हमारा भी तो यह कर्तव्य है कि हम उस विश्वास को बनाए रखें. हम लोगों की जरा सी लापरवाही से यह विश्वास टूट जाएगा. मैं तो उन लोगों में हूं जो अपनी जान पर खेल कर सदा यह विश्वास बनाए रखना चाहते हैं.’’ गिरीश ने कहा, ‘‘बैठो सोहन, मीनाक्षी तुम्हारे लिए चाय बना कर लाती है.’’ ‘‘धन्यवाद बाबूजी, चाय फिर कभी. अभी तो मु?ो भैया के खून की टैस्ट रिपोर्ट लानी है. काफी देर हो चुकी है,’’ सोहन लाल ने कहा और औटो स्टार्ट कर चल दिया. द्य

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February 21, 2022 at 08:00AM

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