Wednesday 23 February 2022

मोक्ष: हरीरी और केशव के प्यार का क्या अंजाम हुआ

लेखक-नीरज कुमार मिश्रा

‘‘सुना है, तेरा बापू तेरा ब्याह रचाने की तैयारी में है…’’ केशव ने 16 साल की हरीरी से पूछा. ‘‘पता नहीं… पर एक दिन अम्मां और बापू कुछ बात कर रहे थे और जब मैं पहुंची तो वे चुप हो गए,’’ हरीरी ने भोलेपन से जवाब दिया. ‘‘हां, पर तुझे कुछ पता भी है कि तेरा मरद कौन होने वाला है,’’ केशव ने कहा. ‘‘कोई भी हो, क्या फर्क पड़ता है… अब तुम तो ऊंची जाति वाले हो, इसलिए तुम से ब्याह कर पाना तो मेरे करम में नहीं है,’’ मन भर आया था हरीरी का. उस के इस सवाल के बदले में कोई भी जवाब नहीं था केशव के पास, बस उस ने आगे बढ़ कर हरीरी के गाल को चूम लिया था. केशव की बांहों में अपनेआप सीमटती चली गई हरीरी.

‘‘तेरा बापू… असल में तेरा सौदा कर रहा है. वह तुझे मोहनलाल, जो गांव के बाहर देशी शराब का ठेका चलाता है और अंडे बेचता है, को तुझे बेच रहा है पूरे 10,000 रुपए में,’’ केशव ने बताया. ‘‘पर केशव, मैं तो इस में कुछ नहीं कर सकती. अभी बापू के घर में हूं तो जहां वे काम के लिए भेजते हैं, वहां चली जाती हूं, कल को जहां ब्याह दी जाऊंगी… वहीं चली जाऊंगी, ’’ हरीरी बोली. ‘‘पर यह ब्याह नहीं है. वे तो तुझे उस 40 साल के बूढ़े के हाथों पैसा ले कर बेच रहे हैं,’’ केशव गुस्से में था. ‘‘ठीक तो है… जब मेरा ब्याह मोहनलाल के साथ हो जाएगा, तब मेरे ठेके पर आना… मुफ्त में दारू पिलाएंगे तुझे,’’ कहते हुए ठहाका लगाया था हरीरी ने. केशव ओर हरीरी एक ही गांव में रहते और एकदूसरे से प्यार भी करते थे. यह अलग बात है कि एक ऊंची जाति के लड़के को एससी लड़की से प्यार करने में क्याक्या परेशानियां आ सकती हैं,

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इस से वे दोनों अनजान नहीं थे, और बिना अपने प्यार का नतीजा जाने वे एकदूसरे से छिप कर मिलते रहे थे. फिर एक दिन हरीरी के बाप ने उस का और मोहनलाल का ब्याह करा दिया. या यों कह लीजिए कि हरीरी को एक आदमी के हाथों बेच दिया. मोहनलाल की पहली बीवी मर चुकी थी, इसलिए उसे अपने दारू के धंधे में हाथ बंटाने के लिए एक औरत चाहिए थी. हरीरी के बाप को पैसा चाहिए था, इसलिए दोनों ने मिल कर एकदूसरे की समस्या का हल कर दिया था. अपनी शादी के दिन, गांव के एक हिस्से से गांव के ही दूसरे घर में पहुंच गई थी हरीरी. न बैंडबाजा, न बरात, बस मोहनलाल को चायपानी जरूर करा दिया गया था और मोहनलाल ने पूरे 10,000 रुपए गिन कर दे दिए थे हरीरी के बापू को. रात हुई तो हरीरी ने खाना बनाया और दोनों ने साथ में मिल कर खाया. बिस्तर पर लेटते ही मोहनलाल हरीरी को चूमने लगा था और फिर पीठ घुमा कर खर्राटे भरने लगा, क्योंकि उस के शरीर को औरत की जरूरत सिर्फ अपने धंधे के लिए थी, किसी औरत को संतुष्ट कर पाने की ताकत नहीं थी उस में. अगली सुबह से ही दुलहन बनी हरीरी ने घर का सारा काम संभाल लिया और मोहनलाल के धंधे में उस का हाथ भी बंटाने लगी.

एक कम उम्र की लड़की दारू के ठेके पर बैठ कर अंडा, नमकीन बेचेगी तो दारू की बिक्री में इजाफा होना तो तय ही था. लोग दारू पीते, अंडानमकीन खाते, हरीरी को देखदेख कर आहें भरते और भद्दे मजाक करते हुए चले जाते, पर मोहनलाल को इस सब से कोई दिक्कत नहीं थी. एक शाम ठेके पर केशव आया. उसी समय मोहनलाल कहीं बाहर गया हुआ था. केशव द्वारा दारू मांगने पर हरीरी बोली, ‘‘तुम कब से दारू पीने लगे?’’ ‘‘जब से तुम जिंदगी से दूर चली गई हो,’’ केशव ने कहा. हरीरी के बुलाने पर केशव अंदर बैठ कर दारू पीने लगा. तभी बाहर तेज बारिश शुरू हो गई थी. अंदर 2 जवां प्रेमी के दिल तेजी से धड़क रहे थे. केशव ने हरीरी का हाथ पकड़ लिया और हरीरी ने भी बिना कोई विरोध किए केशव को सौंप दिया. दोनों के मन तो पहले से एक थे, आज तन भी एक हो गए. मोहनलाल का धंधा दोगुना फायदा दे रहा था. अब तो वह देर शाम को घर आता तो पैसों की एक थैली उस के हाथ में होती, जिन को कई बार वह गिन कर ही अलमारी में रखता था. केशव के मन में हरीरी के लिए प्यार की आग और भी भड़क उठी थी. उसे लगने लगा था कि अब वह हरीरी के बिना नहीं रह सकेगा. उधर हरीरी भी ठेके पर लोगों के गलत बरताव से दुखी हो चुकी थी. हरीरी ने कई बार मोहनलाल से शिकायत भी की थी, मैं काम से नहीं मना करती

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, पर यहां लोग दारू पीने के बाद मुझ से छेड़छाड़ करते हैं, जो मुझे अच्छा नहीं लगता. इस पर मोहनलाल ने उसे जवाब दिया, ‘‘इसी के लिए तुझे ब्याह कर लाया हूं कि मेरे काम में एक औरत के होने से और रौनक आए और निचली जाति में पैदा होने के बाद इतने नखरे मत झाड़ा कर. कभीकभार कोई कुछ बोल भी दे, तो मुंह बनाने के बजाय मुसकरा दिया कर.’’ हरीरी ने चुपचाप मोहनलाल की बात सुन ली और अपने काम में लग गई. दोनों की शादी के 6 महीने बीत गए थे. एक सुबह जैसे ही मोहनलाल सो कर उठा, तो हरीरी ने तबीयत खराब होने की बात बताई. पहले तो मोहनलाल ने ऐसे ही टालने की कोशिश की, पर जब हरीरी को उलटियां होने लगीं, तो वह उसे गांव के अस्पताल में ले गया. अस्पताल में जब डाक्टर ने उसे बताया कि हरीरी मां बनने वाली है, तो यह बात सुन कर वह सन्न रह गया. ‘‘यह बच्चा किस का है?’’ घर आते समय मोहनलाल ने पूछा. पहले तो हरीरी खामोश रही,

पर जब उसे लगा कि मोहनलाल से सच छिपाने से क्या फायदा, इसलिए उस ने केशव और अपने संबंध के बारे में सबकुछ सचसच बता दिया. रात में खूब दारू पीने के बाद मोहनलाल ने हरीरी को बहुत पीटा और जीभर कर गालियां दीं. उस की गालियां और मार खा कर हरीरी के मन में जीने की कोई इच्छा न रही. वह घर से भाग गई और शायद खुदकुशी कर ही ली थी, अगर उसे केशव ने सही समय पर नहीं बचाया होता. सारा हाल जानने के बाद केशव ने फैसला लिया कि अब वह हरीरी को अकेला नहीं छोड़ेगा. दोनों शहर में जा कर रहेंगे. अब चाहे अंजाम कुछ भी हो, पर वह हरीरी को नहीं छोड़ेगा. केशव अपने घर से पैसे और दूसरा जरूरी सामान लाने हरीरी का हाथ पकड़ कर चल दिया. उधर जब हरीरी घर में नहीं मिली, तो मोहनलाल समझ गया कि चिडि़या फुर्र हो गई है. वह सीधा केशव के पिता के पास पहुंचा और सारी बात बताते हुए कहा कि भोलेभाले केशव को उस की पत्नी हरीरी ने डोरे डाल कर फंसा लिया है और अब वह पैसे के लालच में केशव के साथ कहीं भाग सकती है. केशव के पिताजी की आंखें गुस्से से लाल हो गई थीं.

वे क्षत्रिय थे, भला किसी निचली जाति वाली लड़की उन के लड़के पर कैसे डोरे डाल सकती है? क्या केशव की मति मारी गई है, जो उस लड़की के साथ रिश्ता बना रहा है…? अरे, पैर की जूती पैर में ही भली लगती है. ऐसा सोच कर उन्होंने अपने आदमियों को तुरंत केशव को ढूंढ़ कर लाने को कहा. तभी सामने से केशव आता दिखाई दिया. केशव ने बड़ी हिम्मत से हरीरी का हाथ पकड़ा हुआ था. मोहनलाल अपनी बीवी को गैरमर्द के साथ देख कर चीख पड़ा था, ‘‘देखिए ठाकुर साहब… यह रही डायन, आप के लड़के को फांसे हुए है.’’ मोहनलाल के शब्द सुन कर केशव के पिता की आंखें गुस्से से दहक उठीं. उन्होंने अपने आदमियों को इशारा किया, जिन्होंने केशव को तुरंत पकड़ कर अंदर कमरे में बंद कर दिया.

केशव ने छूटने की बहुत कोशिश की, पर उन मुस्टंडों की ताकत के आगे वह अकेला था और छूट नहीं पाता. तब तक केशव के घर के आगे गांव के काफी लोग भी जमा हो गए थे. केशव के पिताजी ऊंची आवाज में बोले, ‘‘गांव वालो, आज एक और शरीर को हमें डायन के आतंक से मुक्ति दिलानी होगी. यह डायन हमारे लड़के को भी खाने वाली थी और धीरेधीरे सारे गांव को ही अपना निवाला बना लेती, इसलिए इसे इतना मारो कि इस की आत्मा अभी इस शरीर को त्याग कर परलोक सिधार जाए.’’ ऐसे मौकों पर गांव वालों के पास न तो पत्थरों की कमी होती है और न ही ताकत की. गांव वालों ने इस से पहले भी कई बार कई औरतों को डायन के आतंक से मुक्ति दिलाई थी. गांव वालों ने बिना कुछ सोचेसमझे पत्थर उठा कर मारने शुरू किए और कुछ ही देर में हरीरी की आत्मा उस के शरीर को त्याग चुकी थी और उस की लाश गांव वालों के सामने पड़ी हुई थी. गांव वालों ने एक एससी लड़की को मोक्ष प्रदान कर दिया था.

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लेखक-नीरज कुमार मिश्रा

‘‘सुना है, तेरा बापू तेरा ब्याह रचाने की तैयारी में है…’’ केशव ने 16 साल की हरीरी से पूछा. ‘‘पता नहीं… पर एक दिन अम्मां और बापू कुछ बात कर रहे थे और जब मैं पहुंची तो वे चुप हो गए,’’ हरीरी ने भोलेपन से जवाब दिया. ‘‘हां, पर तुझे कुछ पता भी है कि तेरा मरद कौन होने वाला है,’’ केशव ने कहा. ‘‘कोई भी हो, क्या फर्क पड़ता है… अब तुम तो ऊंची जाति वाले हो, इसलिए तुम से ब्याह कर पाना तो मेरे करम में नहीं है,’’ मन भर आया था हरीरी का. उस के इस सवाल के बदले में कोई भी जवाब नहीं था केशव के पास, बस उस ने आगे बढ़ कर हरीरी के गाल को चूम लिया था. केशव की बांहों में अपनेआप सीमटती चली गई हरीरी.

‘‘तेरा बापू… असल में तेरा सौदा कर रहा है. वह तुझे मोहनलाल, जो गांव के बाहर देशी शराब का ठेका चलाता है और अंडे बेचता है, को तुझे बेच रहा है पूरे 10,000 रुपए में,’’ केशव ने बताया. ‘‘पर केशव, मैं तो इस में कुछ नहीं कर सकती. अभी बापू के घर में हूं तो जहां वे काम के लिए भेजते हैं, वहां चली जाती हूं, कल को जहां ब्याह दी जाऊंगी… वहीं चली जाऊंगी, ’’ हरीरी बोली. ‘‘पर यह ब्याह नहीं है. वे तो तुझे उस 40 साल के बूढ़े के हाथों पैसा ले कर बेच रहे हैं,’’ केशव गुस्से में था. ‘‘ठीक तो है… जब मेरा ब्याह मोहनलाल के साथ हो जाएगा, तब मेरे ठेके पर आना… मुफ्त में दारू पिलाएंगे तुझे,’’ कहते हुए ठहाका लगाया था हरीरी ने. केशव ओर हरीरी एक ही गांव में रहते और एकदूसरे से प्यार भी करते थे. यह अलग बात है कि एक ऊंची जाति के लड़के को एससी लड़की से प्यार करने में क्याक्या परेशानियां आ सकती हैं,

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इस से वे दोनों अनजान नहीं थे, और बिना अपने प्यार का नतीजा जाने वे एकदूसरे से छिप कर मिलते रहे थे. फिर एक दिन हरीरी के बाप ने उस का और मोहनलाल का ब्याह करा दिया. या यों कह लीजिए कि हरीरी को एक आदमी के हाथों बेच दिया. मोहनलाल की पहली बीवी मर चुकी थी, इसलिए उसे अपने दारू के धंधे में हाथ बंटाने के लिए एक औरत चाहिए थी. हरीरी के बाप को पैसा चाहिए था, इसलिए दोनों ने मिल कर एकदूसरे की समस्या का हल कर दिया था. अपनी शादी के दिन, गांव के एक हिस्से से गांव के ही दूसरे घर में पहुंच गई थी हरीरी. न बैंडबाजा, न बरात, बस मोहनलाल को चायपानी जरूर करा दिया गया था और मोहनलाल ने पूरे 10,000 रुपए गिन कर दे दिए थे हरीरी के बापू को. रात हुई तो हरीरी ने खाना बनाया और दोनों ने साथ में मिल कर खाया. बिस्तर पर लेटते ही मोहनलाल हरीरी को चूमने लगा था और फिर पीठ घुमा कर खर्राटे भरने लगा, क्योंकि उस के शरीर को औरत की जरूरत सिर्फ अपने धंधे के लिए थी, किसी औरत को संतुष्ट कर पाने की ताकत नहीं थी उस में. अगली सुबह से ही दुलहन बनी हरीरी ने घर का सारा काम संभाल लिया और मोहनलाल के धंधे में उस का हाथ भी बंटाने लगी.

एक कम उम्र की लड़की दारू के ठेके पर बैठ कर अंडा, नमकीन बेचेगी तो दारू की बिक्री में इजाफा होना तो तय ही था. लोग दारू पीते, अंडानमकीन खाते, हरीरी को देखदेख कर आहें भरते और भद्दे मजाक करते हुए चले जाते, पर मोहनलाल को इस सब से कोई दिक्कत नहीं थी. एक शाम ठेके पर केशव आया. उसी समय मोहनलाल कहीं बाहर गया हुआ था. केशव द्वारा दारू मांगने पर हरीरी बोली, ‘‘तुम कब से दारू पीने लगे?’’ ‘‘जब से तुम जिंदगी से दूर चली गई हो,’’ केशव ने कहा. हरीरी के बुलाने पर केशव अंदर बैठ कर दारू पीने लगा. तभी बाहर तेज बारिश शुरू हो गई थी. अंदर 2 जवां प्रेमी के दिल तेजी से धड़क रहे थे. केशव ने हरीरी का हाथ पकड़ लिया और हरीरी ने भी बिना कोई विरोध किए केशव को सौंप दिया. दोनों के मन तो पहले से एक थे, आज तन भी एक हो गए. मोहनलाल का धंधा दोगुना फायदा दे रहा था. अब तो वह देर शाम को घर आता तो पैसों की एक थैली उस के हाथ में होती, जिन को कई बार वह गिन कर ही अलमारी में रखता था. केशव के मन में हरीरी के लिए प्यार की आग और भी भड़क उठी थी. उसे लगने लगा था कि अब वह हरीरी के बिना नहीं रह सकेगा. उधर हरीरी भी ठेके पर लोगों के गलत बरताव से दुखी हो चुकी थी. हरीरी ने कई बार मोहनलाल से शिकायत भी की थी, मैं काम से नहीं मना करती

ये भी पढ़ें- साथ वाली सीट

, पर यहां लोग दारू पीने के बाद मुझ से छेड़छाड़ करते हैं, जो मुझे अच्छा नहीं लगता. इस पर मोहनलाल ने उसे जवाब दिया, ‘‘इसी के लिए तुझे ब्याह कर लाया हूं कि मेरे काम में एक औरत के होने से और रौनक आए और निचली जाति में पैदा होने के बाद इतने नखरे मत झाड़ा कर. कभीकभार कोई कुछ बोल भी दे, तो मुंह बनाने के बजाय मुसकरा दिया कर.’’ हरीरी ने चुपचाप मोहनलाल की बात सुन ली और अपने काम में लग गई. दोनों की शादी के 6 महीने बीत गए थे. एक सुबह जैसे ही मोहनलाल सो कर उठा, तो हरीरी ने तबीयत खराब होने की बात बताई. पहले तो मोहनलाल ने ऐसे ही टालने की कोशिश की, पर जब हरीरी को उलटियां होने लगीं, तो वह उसे गांव के अस्पताल में ले गया. अस्पताल में जब डाक्टर ने उसे बताया कि हरीरी मां बनने वाली है, तो यह बात सुन कर वह सन्न रह गया. ‘‘यह बच्चा किस का है?’’ घर आते समय मोहनलाल ने पूछा. पहले तो हरीरी खामोश रही,

पर जब उसे लगा कि मोहनलाल से सच छिपाने से क्या फायदा, इसलिए उस ने केशव और अपने संबंध के बारे में सबकुछ सचसच बता दिया. रात में खूब दारू पीने के बाद मोहनलाल ने हरीरी को बहुत पीटा और जीभर कर गालियां दीं. उस की गालियां और मार खा कर हरीरी के मन में जीने की कोई इच्छा न रही. वह घर से भाग गई और शायद खुदकुशी कर ही ली थी, अगर उसे केशव ने सही समय पर नहीं बचाया होता. सारा हाल जानने के बाद केशव ने फैसला लिया कि अब वह हरीरी को अकेला नहीं छोड़ेगा. दोनों शहर में जा कर रहेंगे. अब चाहे अंजाम कुछ भी हो, पर वह हरीरी को नहीं छोड़ेगा. केशव अपने घर से पैसे और दूसरा जरूरी सामान लाने हरीरी का हाथ पकड़ कर चल दिया. उधर जब हरीरी घर में नहीं मिली, तो मोहनलाल समझ गया कि चिडि़या फुर्र हो गई है. वह सीधा केशव के पिता के पास पहुंचा और सारी बात बताते हुए कहा कि भोलेभाले केशव को उस की पत्नी हरीरी ने डोरे डाल कर फंसा लिया है और अब वह पैसे के लालच में केशव के साथ कहीं भाग सकती है. केशव के पिताजी की आंखें गुस्से से लाल हो गई थीं.

वे क्षत्रिय थे, भला किसी निचली जाति वाली लड़की उन के लड़के पर कैसे डोरे डाल सकती है? क्या केशव की मति मारी गई है, जो उस लड़की के साथ रिश्ता बना रहा है…? अरे, पैर की जूती पैर में ही भली लगती है. ऐसा सोच कर उन्होंने अपने आदमियों को तुरंत केशव को ढूंढ़ कर लाने को कहा. तभी सामने से केशव आता दिखाई दिया. केशव ने बड़ी हिम्मत से हरीरी का हाथ पकड़ा हुआ था. मोहनलाल अपनी बीवी को गैरमर्द के साथ देख कर चीख पड़ा था, ‘‘देखिए ठाकुर साहब… यह रही डायन, आप के लड़के को फांसे हुए है.’’ मोहनलाल के शब्द सुन कर केशव के पिता की आंखें गुस्से से दहक उठीं. उन्होंने अपने आदमियों को इशारा किया, जिन्होंने केशव को तुरंत पकड़ कर अंदर कमरे में बंद कर दिया.

केशव ने छूटने की बहुत कोशिश की, पर उन मुस्टंडों की ताकत के आगे वह अकेला था और छूट नहीं पाता. तब तक केशव के घर के आगे गांव के काफी लोग भी जमा हो गए थे. केशव के पिताजी ऊंची आवाज में बोले, ‘‘गांव वालो, आज एक और शरीर को हमें डायन के आतंक से मुक्ति दिलानी होगी. यह डायन हमारे लड़के को भी खाने वाली थी और धीरेधीरे सारे गांव को ही अपना निवाला बना लेती, इसलिए इसे इतना मारो कि इस की आत्मा अभी इस शरीर को त्याग कर परलोक सिधार जाए.’’ ऐसे मौकों पर गांव वालों के पास न तो पत्थरों की कमी होती है और न ही ताकत की. गांव वालों ने इस से पहले भी कई बार कई औरतों को डायन के आतंक से मुक्ति दिलाई थी. गांव वालों ने बिना कुछ सोचेसमझे पत्थर उठा कर मारने शुरू किए और कुछ ही देर में हरीरी की आत्मा उस के शरीर को त्याग चुकी थी और उस की लाश गांव वालों के सामने पड़ी हुई थी. गांव वालों ने एक एससी लड़की को मोक्ष प्रदान कर दिया था.

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February 24, 2022 at 09:00AM

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