Friday 4 February 2022

पिघलती बर्फ: भाग 1- क्यों स्त्रियां स्वयं को हीन बना लेती हैं?

“आज ब्रहस्पतिवार को तूने फिर सिर धो लिया. कितनी बार कहा है कि ब्रहस्पतिवार को सिर मत धोया कर, लक्ष्मीजी नाराज हो जाती हैं,” मां ने प्राची को टोकते हुए कहा.

“मां सिर चिपचिपा रहा था,” मां की बात सुन कर धीमे स्वर में अपनी बात कह प्राची मन ही मन बुदबुदाई, ‘सोमवार, बुधवार और गुरुवार को सिर न धोओ. शनिवार, मंगलवार, गुरुवार को बाल न कटवाओ क्योंकि गुरुवार को बाल कटवाने से धन की कमी तथा मंगल व शनिवार को कटवाने से आयु कम होती है. वहीं, शनि, मंगल और गुरुवार को नाखून काटने की भी मां की सख्त मनाही थी. कोई वार बेटे पर तो कोई पति पर और नहीं, तो लक्ष्मीजी का कोप… उफ, इतने बंधनों में बंधी जिंदगी भी कोई जिंदगी है.

“कल धो लेती, किस ने मना किया था पर तुझे तो कुछ सुनना ही नहीं है. और हां, आज शाम से तुझे ही खाना बनाना है.” प्राची मां की यह बात सुन कर मन के चक्रव्यूह से बाहर आई.

ओह, यह अलग मुसीबत…सोमवार से तो मेरे एक्जाम हैं. सब मैं ही करूं, भाई तो हाथ लगाएगा नहीं, यह सोच कर प्राची ने सिर पकड़ लिया.

‘अब क्या हो गया?’ मां ने उसे ऐसा करते देख कर कहा.

‘मां सोमवार से तो मेरे एक्जाम हैं,’ प्राची ने कहा.

‘तो क्या हुआ, कौन सा तुझे डिप्टी कलैक्टर बनना है?’

ये भी पढ़ें- मैं खुद पर इतराई थी: शुभा को अपनी सहेली क्यों नहीं नजर आ रही थी?

‘मां, क्या जब डिप्टी कलैक्टर बनना हो, तभी पढ़ाई करनी चाहिए, वैसे नहीं. वैसे भी, मुझे डिप्टी कलैक्टर नहीं बनना, मुझे डाक्टर बनना है और मैं बन कर दिखाऊंगी,” कहते हुए प्राची ने बैग उठाया और कालेज के लिए चल दी.

‘नखरे तो देखो इस लड़की के, सास के घर जा कर नाक कटाएगी. अरे, अभी नहीं सीखेगी तो कब सीखेगी. लड़की कितनी भी पढ़लिख जाए पर रीतिरिवाजों को तो मानना ही पड़ता है.” प्राची के उत्तर को सुन कर सरिता बड़बड़ाईं.

प्राची 10वीं कक्षा की छात्रा है. वह विज्ञान की विद्यार्थी है. सो, उसे इन सब बातों पर विश्वास नहीं है. मां को जो करना है करें पर हमें विवश न करें. पापा भी उन की इन सब बातों से परेशान रहते हैं लेकिन घर की सुखशांति के लिए उन्होंने यह सब सहना सीख लिया है. ऐसा नहीं था कि मां पढ़ीलिखी नहीं हैं, वे सोशल साइंस में एमए तथा बीएड थीं लेकिन शायद उन की मां तथा दादी द्वारा बोए बीज जबतब अंकुरित हो कर उन्हें ऐसा करने के लिए मजबूर करते थे. प्राची ने मन ही मन निर्णय कर लिया था कि चाहे जो हो जाए वह अपने मन में इन बीजों को पनपने नहीं देगी.

प्राची के एक्जाम खत्म हुए ही थे कि एक दिन पापा नई कार मारूति स्विफ्ट ले कर घर आए. अभी वह और भाई विजय गाड़ी देख ही रहे थे कि मां नीबू और हरीमिर्च हाथ में ले कर आईं. उन्होंने नीबू और हरीमिर्च हाथ में ले कर गाड़ी के चारों ओर चक्कर लगाया तथा गाड़ी पर रोली से स्वास्तिक का निशान बना कर उस पर फूल मालाएं तथा कलावा चढ़ा कर मिठाई का एक पीस रखा. उस के बाद मां ने नारियल हाथ में उठाया…

“अरे, नारियल गाड़ी पर मत फोड़ना,” अचानक पापा चिल्लाए.

“तुम मुझे बेवकूफ समझते हो. गाड़ी पर नारियल फोडूंगी तो उस जगह गाड़ी दब नहीं जाएगी,” कहते हुए मां ने गाड़ी के सामने पहले से धो कर रखी ईंट पर नारियल फोड़ कर ‘ जय दुर्गे मां’ का उद्घोष करते हुए ‘यह गाड़ी हम सब के लिए शुभ हो’ कह कर गाड़ी के सात चक्कर न केवल खुद लगाए बल्कि हम सब को भी लगाने के लिए भी कहा.

“तुम लगा ही रही हो, फिर हमारे लगाने की क्या आवश्यकता है,” पापा ने थोड़ा विरोध करते हुए कहा.

“आप तो पूरे नास्तिक हो गए हो. आप ने देखा नहीं, टीवी पर लड़ाकू विमान राफेल लाने गए हमारे रक्षामंत्री ने फ्रांस में भी तो यही टोटके किए थे.”

मां की बात सुन कर पापा चुप हो गए. सच, जब नामी व्यक्ति ऐसा करेंगे तो इन बातों पर विश्वास रखने वालों को कैसे समझाया जा सकता है.

समय बीतता गया. मां की सारी बंदिशों के बावजूद प्राची को मैडिकल में दाखिला मिल ही गया. लड़की होने के कारण मां उसे दूर नहीं भेजना चाहती थीं, किंतु इस बार पापा चुप न रह सके. उन्होंने मां से कहा, “मैं ने तुम्हारी किसी बात में दखल नहीं दिया. किंतु आज प्राची के कैरियर का प्रश्न है, इस बार मैं तुम्हारी कोई बात नहीं सुनूंगा. मेरी बेटी मैडिकल की प्रतियोगी परीक्षा में सफल हुई है, उस ने सिर्फ हमारा ही नहीं, हमारे पूरे खानदान का नाम रोशन किया है. उसे उस की मंजिल तक पहुंचाने में सहायता करना हमारा दायित्व है.”

ये भी पढ़ें- मन का घोड़ा: क्यों श्वेता को अपने रंगरूप पर इतना गुमान था

मां की अनिच्छा के बावजूद पापा प्राची को इलाहाबाद मैडिकल कालेज में पढ़ने के लिए ले कर गए. पापा जब उसे होस्टल में छोड़ कर वापस आने लगे तब वह खुद को रोक न पाई, फूटफूट कर रोने लगी थी.

“बेटा, रो मत. तुझे अपना सपना पूरा करना है न, बस, अपना ख़याल रखना. तुझे तो पता है तेरी मां तुझे ले कर कितनी आशंकित हैं,” पापा ने उसे समझाते हुए उस के सिर पर हाथ फेरा तथा बिना उस की ओर देखे चले गए. शायद, वे अपनी आंखों में आए आंसुओं को उस से छिपाना चाहते थे.

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“आज ब्रहस्पतिवार को तूने फिर सिर धो लिया. कितनी बार कहा है कि ब्रहस्पतिवार को सिर मत धोया कर, लक्ष्मीजी नाराज हो जाती हैं,” मां ने प्राची को टोकते हुए कहा.

“मां सिर चिपचिपा रहा था,” मां की बात सुन कर धीमे स्वर में अपनी बात कह प्राची मन ही मन बुदबुदाई, ‘सोमवार, बुधवार और गुरुवार को सिर न धोओ. शनिवार, मंगलवार, गुरुवार को बाल न कटवाओ क्योंकि गुरुवार को बाल कटवाने से धन की कमी तथा मंगल व शनिवार को कटवाने से आयु कम होती है. वहीं, शनि, मंगल और गुरुवार को नाखून काटने की भी मां की सख्त मनाही थी. कोई वार बेटे पर तो कोई पति पर और नहीं, तो लक्ष्मीजी का कोप… उफ, इतने बंधनों में बंधी जिंदगी भी कोई जिंदगी है.

“कल धो लेती, किस ने मना किया था पर तुझे तो कुछ सुनना ही नहीं है. और हां, आज शाम से तुझे ही खाना बनाना है.” प्राची मां की यह बात सुन कर मन के चक्रव्यूह से बाहर आई.

ओह, यह अलग मुसीबत…सोमवार से तो मेरे एक्जाम हैं. सब मैं ही करूं, भाई तो हाथ लगाएगा नहीं, यह सोच कर प्राची ने सिर पकड़ लिया.

‘अब क्या हो गया?’ मां ने उसे ऐसा करते देख कर कहा.

‘मां सोमवार से तो मेरे एक्जाम हैं,’ प्राची ने कहा.

‘तो क्या हुआ, कौन सा तुझे डिप्टी कलैक्टर बनना है?’

ये भी पढ़ें- मैं खुद पर इतराई थी: शुभा को अपनी सहेली क्यों नहीं नजर आ रही थी?

‘मां, क्या जब डिप्टी कलैक्टर बनना हो, तभी पढ़ाई करनी चाहिए, वैसे नहीं. वैसे भी, मुझे डिप्टी कलैक्टर नहीं बनना, मुझे डाक्टर बनना है और मैं बन कर दिखाऊंगी,” कहते हुए प्राची ने बैग उठाया और कालेज के लिए चल दी.

‘नखरे तो देखो इस लड़की के, सास के घर जा कर नाक कटाएगी. अरे, अभी नहीं सीखेगी तो कब सीखेगी. लड़की कितनी भी पढ़लिख जाए पर रीतिरिवाजों को तो मानना ही पड़ता है.” प्राची के उत्तर को सुन कर सरिता बड़बड़ाईं.

प्राची 10वीं कक्षा की छात्रा है. वह विज्ञान की विद्यार्थी है. सो, उसे इन सब बातों पर विश्वास नहीं है. मां को जो करना है करें पर हमें विवश न करें. पापा भी उन की इन सब बातों से परेशान रहते हैं लेकिन घर की सुखशांति के लिए उन्होंने यह सब सहना सीख लिया है. ऐसा नहीं था कि मां पढ़ीलिखी नहीं हैं, वे सोशल साइंस में एमए तथा बीएड थीं लेकिन शायद उन की मां तथा दादी द्वारा बोए बीज जबतब अंकुरित हो कर उन्हें ऐसा करने के लिए मजबूर करते थे. प्राची ने मन ही मन निर्णय कर लिया था कि चाहे जो हो जाए वह अपने मन में इन बीजों को पनपने नहीं देगी.

प्राची के एक्जाम खत्म हुए ही थे कि एक दिन पापा नई कार मारूति स्विफ्ट ले कर घर आए. अभी वह और भाई विजय गाड़ी देख ही रहे थे कि मां नीबू और हरीमिर्च हाथ में ले कर आईं. उन्होंने नीबू और हरीमिर्च हाथ में ले कर गाड़ी के चारों ओर चक्कर लगाया तथा गाड़ी पर रोली से स्वास्तिक का निशान बना कर उस पर फूल मालाएं तथा कलावा चढ़ा कर मिठाई का एक पीस रखा. उस के बाद मां ने नारियल हाथ में उठाया…

“अरे, नारियल गाड़ी पर मत फोड़ना,” अचानक पापा चिल्लाए.

“तुम मुझे बेवकूफ समझते हो. गाड़ी पर नारियल फोडूंगी तो उस जगह गाड़ी दब नहीं जाएगी,” कहते हुए मां ने गाड़ी के सामने पहले से धो कर रखी ईंट पर नारियल फोड़ कर ‘ जय दुर्गे मां’ का उद्घोष करते हुए ‘यह गाड़ी हम सब के लिए शुभ हो’ कह कर गाड़ी के सात चक्कर न केवल खुद लगाए बल्कि हम सब को भी लगाने के लिए भी कहा.

“तुम लगा ही रही हो, फिर हमारे लगाने की क्या आवश्यकता है,” पापा ने थोड़ा विरोध करते हुए कहा.

“आप तो पूरे नास्तिक हो गए हो. आप ने देखा नहीं, टीवी पर लड़ाकू विमान राफेल लाने गए हमारे रक्षामंत्री ने फ्रांस में भी तो यही टोटके किए थे.”

मां की बात सुन कर पापा चुप हो गए. सच, जब नामी व्यक्ति ऐसा करेंगे तो इन बातों पर विश्वास रखने वालों को कैसे समझाया जा सकता है.

समय बीतता गया. मां की सारी बंदिशों के बावजूद प्राची को मैडिकल में दाखिला मिल ही गया. लड़की होने के कारण मां उसे दूर नहीं भेजना चाहती थीं, किंतु इस बार पापा चुप न रह सके. उन्होंने मां से कहा, “मैं ने तुम्हारी किसी बात में दखल नहीं दिया. किंतु आज प्राची के कैरियर का प्रश्न है, इस बार मैं तुम्हारी कोई बात नहीं सुनूंगा. मेरी बेटी मैडिकल की प्रतियोगी परीक्षा में सफल हुई है, उस ने सिर्फ हमारा ही नहीं, हमारे पूरे खानदान का नाम रोशन किया है. उसे उस की मंजिल तक पहुंचाने में सहायता करना हमारा दायित्व है.”

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मां की अनिच्छा के बावजूद पापा प्राची को इलाहाबाद मैडिकल कालेज में पढ़ने के लिए ले कर गए. पापा जब उसे होस्टल में छोड़ कर वापस आने लगे तब वह खुद को रोक न पाई, फूटफूट कर रोने लगी थी.

“बेटा, रो मत. तुझे अपना सपना पूरा करना है न, बस, अपना ख़याल रखना. तुझे तो पता है तेरी मां तुझे ले कर कितनी आशंकित हैं,” पापा ने उसे समझाते हुए उस के सिर पर हाथ फेरा तथा बिना उस की ओर देखे चले गए. शायद, वे अपनी आंखों में आए आंसुओं को उस से छिपाना चाहते थे.

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February 05, 2022 at 09:00AM

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