Monday 28 February 2022

तुम देना साथ मेरा: अजय के साथ कौन-सा हादसा हुआ?

Writer- मोनिका राज

शादी, विदाई और उस की रस्मों में कैसे एक हफ्ता गुजर गया, पता ही न चला. मम्मीपापा का लगातार भागदौड़ कर सबकुछ करना, रिश्तेदारों का जमघट, सहेलियों की मीठी छेड़छाड़ और हर आनेजाने वाले की जबान पर बस, उस का ही नाम. भविष्य के स्वप्निल सपनों में खोई नेहा अजय के संग विदा हो कर अब अपने ससुराल पहुंच चुकी थी.

उसे यह सब किसी सपने सा प्रतीत हो रहा था. खयालों में खोया उस का मन कब अतीत की गलियों में विचरने लगा, उसे पता ही नहीं चला. तकरीबन 2 साल पहले औफिस में अजय से उस की मुलाकात हुई थी. उस की सादगी अजय को पहली ही नजर में भा गई थी. अजय ने मन ही मन उसे अपना हमसफर बनाने का निश्चय कर लिया था. एक दिन मौका देख कर उस ने अपने दिल की बात नेहा को बताई. नेहा भी अजय को बहुत पसंद करती थी. सो, उस ने सहर्ष स्वीकृति दे दी.

अजय की इंटर्नशिप कंप्लीट होने के बाद उस के घर में शादी की बात जोर पकड़ने लगी. शादी के लिए कई रिश्ते आए, पर अजय को तो सांवलीसलोनी सी नेहा पसंद थी.

मां ने नाक सिकोड़ते हुए कहा, ‘वे लोग हमारी हैसियत के बराबर नहीं हैं. तु?ो पसंद भी आई तो इतने साधारण नाकनक्शे वाली लड़की.’

पर उस ने तो जैसे जिद पकड़ ली कि वह नेहा से ही शादी करेगा. घर का इकलौता वारिस होने की वजह से आखिरकार घर वालों को उस की जिद के आगे ?ाकना पड़ा. आननफानन ही एक महीने के अंदर शादी की तारीख पक्की हो गई और फिर नेहा दुलहन बन कर अजय के घर आ गई.

‘‘कहां खो गईं मैडम? पैकिंग भी करनी है. कल ही देहरादून के लिए हमारी फ्लाइट है. हनीमून पर साथ जाना है या खयालों में ही गुम रहना है,’’ अजय के ?ाक?ारने पर वह अतीत की यादों से बाहर आई.

ये भी पढ़ें- लौट आओ अपने वतन: विदेशी चकाचौंध में फंसी उर्वशी

दूसरे दिन दोनों हनीमून के लिए देहरादून निकल गए. पहले दिन तो दोनों देहरादून की वादियों में पैदल ही सैर करते निकले. कुदरत के समीप हो कर उन दोनों के बीच नजदीकियां भी बढ़ रही थीं. दोनों ने साथ में काफी अच्छा वक्त बिताया.

दूसरे दिन उन्होंने नैनीताल घूमने का प्लान बनाया. वे लोग कुछ ही दूर निकले थे कि अचानक गाड़ी में ?ाटके लगने लगे. जब तक वे कुछ सम?ा पाते, गाड़ी पर से नियंत्रण छूट गया और लैंड स्लाइडिंग की वजह से गाड़ी गहरी खाई में जा गिरी. जब होश आया तो नेहा ने खुद को अस्पताल के बिस्तर पर पाया. उस के हाथपैरों में पट्टियां बंधी थीं और सिर में भी काफी चोट आई थी. उस ने आसपास नजर दौड़ाई. अजय कहीं नजर नहीं आए. अनजाने भय की आशंका से उस का हृदय कांप उठा. वह लड़खड़ाते हुए बिस्तर से उतरी. कुछ ही कदम चल पाई थी कि असहनीय पीड़ा की वजह से वह जमीन पर जा गिरी. नर्स ने आ कर उसे संभाला.

‘‘मेरे पति भी मेरे साथ थे. वे कहां हैं अब?’’ नेहा ने सवाल किया.

‘‘वे अभी ओटी में हैं. जब तक डाक्टर बाहर नहीं आते, सही से कुछ बताना मुश्किल है,’’ नर्स ने उत्तर दिया.

पूरे 2 दिनों के बाद अजय को होश आया. जब उस ने उठने की कोशिश की तो उस के पैर काम नहीं कर रहे थे. इशारे से नेहा को अपने पास बुला कर पूछा तो वह रो पड़ी.

‘‘ऐक्सिडैंट की वजह से आप ने अपना पैर हमेशा के लिए गंवा दिया है,’’ सुन कर अजय स्तब्ध रह गया.

नियति पर हमारा वश कहां चलता है. अजय के पैर के साथसाथ उन दोनों की शादीशुदा जिंदगी पर भी जैसे ग्रहण लग गया था.

नेहा के मातापिता हालखबर लेने उस की ससुराल आए. काफी देर तक इधरउधर की बात करने के बाद उस की मां बहाने से उठ कर पूरे घर में नेहा को ढूंढ़ने लगी. नेहा को अकेला पा कर मां उसे खींचते हुए एक ओर ले गई. ‘‘जाने किस की नजर लग गई हमारी बच्ची को,’’ वह नेहा से लिपट कर रो पड़ी.

नेहा के तो जैसे आंसू ही सूख चुके थे. वह निर्विकार भाव से बोली, ‘‘नियति के आगे किस का जोर चलता है मां. शायद मेरे नसीब में यही सब होना लिखा था. तुम अपनेआप को संभालो.’’

मां ने अपने आंसू पोंछ डाले और उसे सम?ाने के अंदाज में बोली, ‘‘देख बिट्टो, अभी तो तेरी जिंदगी सही से शुरू भी नहीं हुई और इतना बड़ा हादसा हो गया. तेरे सामने पहाड़ सी जिंदगी पड़ी है. तू एक अपाहिज के साथ इतना लंबा सफर कैसे तय कर पाएगी?

‘‘देख, तू एक बार अच्छे से सोचसम?ा ले. अभी तो सबकुछ ठीक लग रहा है, पर एक वक्त के बाद वह तु?ो बो?ा सा लगने लगेगा. तू उस के साथ ताउम्र खुश नहीं रह पाएगी.’’

जब बहुत देर तक नेहा कमरे में नहीं आई तो अपनी व्हीलचेयर चलाते हुए अजय उसे घर में चारों ओर ढूंढ़ने लगा.

जैसे ही वह बालकनी के पास पहुंचा, कानों में नेहा की बात पड़ी, ‘‘यह कैसी बात कर रही हो, मां? एक बात बताओ, क्या अजय की जगह यह हादसा मेरे साथ हुआ होता तब भी क्या आप यह सलाह दे पातीं? मैं अजय से बहुत प्यार करती हूं मां. बस, कहने भर को मैं ने सात जन्म साथ निभाने की कसमें नहीं खाई थीं. मैं ने सच्चे दिल से उन्हें अपना हमसफर माना था. चाहे कुछ भी हो जाए, मैं उन का साथ कभी नहीं छोड़ूंगी. मैं आप के हाथ जोड़ती हूं.

‘‘आप ने यह बात आज तो कह दी, पर भविष्य में गलती से भी यह बात अपनी जबान पर मत लाइएगा. बहुत मुश्किल से अजय उस हादसे से उबरने की कोशिश कर रहे हैं. वे सुनेंगे यह सब तो पूरी तरह टूट जाएंगे मां.’’

वैसे तो अजय नेहा से बेइंतहा मोहब्बत करता था, पर आज उस की बातें सुन नेहा के लिए उस के दिल में प्यार और इज्जत और भी ज्यादा बढ़ गई. लेकिन साथ ही उस की ?ाठी मुसकान के पीछे का दर्द महसूस कर उस की आंखों में आंसुओं का सैलाब उमड़ आया. किसी तरह खुद को जब्त करते हुए उस ने नेहा को आवाज लगाई.

‘‘अरे आप…? आप को कुछ चाहिए था क्या? सौरी, मैं थोड़ा मां से बात करने लग गई थी,’’ उस ने पूछा.

‘‘नहीं, कुछ भी नहीं चाहिए था. बस, तुम बहुत देर से नहीं दिखीं तो ढूंढ़ते हुए इधर आ गया,’’ अजय ने उत्तर दिया.

ये भी पढ़ें- हिंडोला- भाग 1: दीदी की खातिर क्या अनुभा भूल गई अपना प्यार?

धीरेधीरे दिन बीतने लगे. नेहा पूरी तत्परता से अपना फर्ज निभा रही थी. वह दिनरात चकरी की तरह घूमघूम कर सब का खयाल रखती, पर इस पर भी किसी को वह फूटी आंख नहीं सुहा रही थी. बातबात पर सास हमेशा उलाहने देती रहती, ‘‘इस के तो कदम ही बहुत अशुभ पड़े हमारे घर में. यहां आते ही हमारे बेटे की जिंदगी को नरक से भी बदतर बना दिया.’’

यह सब सुन कर तो उस का दिल छलनी हो जाता, पर जब वह अजय का बु?ा चेहरा देखती तो खुद को समेट कर होंठों पर ?ाठी मुसकान सजाए वह उस में आत्मविश्वास भरने की कोशिश करती.

नेहा के अनवरत कोशिश करते रहने से अजय धीरेधीरे उस हादसे से बाहर आने लगा, पर उस की नौकरी छूट जाने से घर में थोड़ी आर्थिक तंगी होने लग गई थी.

इधर कुछ दिनों से अजय का दोस्त विनय सब की बहुत मदद कर रहा था. दिन में कम से कम दो बार फोन कर वह अजय की हालखबर लेता और जो भी जरूरत का सामान होता, उसे लाने में भी मदद करता. इस मुश्किल की घड़ी में उस का साथ खड़े होना नेहा को बहुत मजबूती दे रहा था. आने वाले खतरे से बेखबर वह विनय के प्रति कृतज्ञ हो रही थी.

एक दिन बातों ही बातों में उस ने आर्थिक तंगी के बारे में विनय को बताया और नौकरी करने की इच्छा जताई.

‘‘मेरे औफिस में स्टेनो का पद खाली है. मैं जानता हूं कि यह पद आप के लायक नहीं, पर फिलहाल अगर आप इस से काम चला सकें तो सही होगा. मैं बहुत जल्द आप के लिए कोई अच्छी जगह काम देख दूंगा,’’ विनय ने हिचकते हुए कहा.

विनय का एहसान मानते हुए नेहा काम पर जाने लगी. इस से पूरी तरह न सही, पर एक हद तक परिवार की गाड़ी पटरी पर आने लगी थी.

एक दिन काम ज्यादा रहने से उसे थोड़ा ज्यादा देर तक औफिस में रुकना पड़ा. बाकी का स्टाफ जा चुका था. वह जल्दीजल्दी अपना काम निबटा रही थी, तभी बाहर तेज बारिश होने लगी. बरसात की वजह से बिजली चली गई तो वह काम बंद कर बारिश थमने का इंतजार करने लगी.

‘‘आज तो घर जाने में बहुत देर हो जाएगी. जाने अजय ने कुछ खाया होगा भी या नहीं,’’ वह बारबार बेचैनी से घड़ी देखती हुई चहलकदमी कर रही थी.

जब बहुत देर तक बारिश नहीं रुकी तो वह वापस कुरसी पर आ कर बैठ गई. तभी पीछे से आ कर विनय ने नेहा के कंधे को छुआ, ‘‘आप कितनी सुंदर हैं भाभी. इस गुलाबी साड़ी में तो आप और भी गजब ढा रही हैं. आप इतनी खूबसूरत हैं. इस का सही इस्तेमाल कीजिए और जिंदगी का मजा लीजिए,’’ उस ने कुटिल मुसकान बिखेरते हुए कहा.

‘‘कहना क्या चाहते हो तुम? होश में तो हो? अगर अजय को मैं ने तुम्हारी यह करतूत बताई तो वे तुम्हारा क्या हश्र करेंगे, इस का अंदाजा भी है तुम्हें,’’ क्रोध से कांपते हुए उस ने कहा.

‘‘वह अपाहिज मेरा क्या बिगाड़ लेगा. सही से खड़ा तक नहीं हो पाता वह. तुम क्यों अपनी जवानी उस के पीछे बरबाद कर रही हो. मेरा साथ दो. किसी को इस बात की कानोंकान खबर नहीं लगने दूंगा,’’ विनय ने बेशर्मी से हंसते हुए कहा.

वह नेहा के साथ जोरजबरदस्ती पर उतर आया, तभी औफिस का मेन गेट खुला और सफाई करने वाली बाई अंदर की तरफ आती दिखी. नेहा ने पूरा जोर लगा कर विनय को परे धकेला और लगभग दौड़ते हुए बाहर की ओर भागी. किसी तरह उस ने अपने कपड़ों को ठीक किया और औटो में बैठी. पूरे रास्ते उस की नजर के सामने विनय का वीभत्स रूप आ रहा था. उस के पूरे बदन में जैसे कंपकंपी दौड़ गई. किसी तरह खुद को संभालते हुए वह घर पहुंची.

घर का काम निबटा कर अजय को सुलाया और खुद भी बगल में लेट गई, पर आज नींद उस की आंखों से कोसों दूर थी. सारी रात उस ने आंखों ही आंखों में काट दी. सुबह अजय ने उस के औफिस न जाने का कारण पूछा. इस से पहले कि वह कुछ कहती, विनय उस की सास के साथ कमरे में दाखिल हुआ. सास ने जलती हुई आंखों से उसे घूरते हुए पूछा, ‘‘बताती क्यों नहीं कि औफिस क्यों नहीं जा रही?’’

नेहा के कोई उत्तर न देने पर उन्होंने खुद ही बोलना शुरू किया, ‘‘अरे, अपना न सही, पर कम से कम हमारे घर की इज्जत का ही खयाल किया होता. अगर कुकर्म ही करने थे तो यह सतीसावित्री होने का ढोंग क्यों?’’

नेहा बुत बन कर खुद पर लगाए चरित्रहीनता के इलजाम को चुपचाप सुनती रही. उस ने उम्मीदभरी आंखों से अजय की तरफ देखा, पर उस की आंखों में भी सवाल देख कर वह अंदर ही अंदर टूट गई.

‘‘आप दोनों बाहर जाइए, मु?ो नेहा से अकेले में कुछ बात करनी है,’’ अजय ने कहा.

ये भी पढ़ें- वो एक लड़की: जिस लड़की से वह बेतहाशा प्यार करती थी

दोनों कमरे से बाहर चले गए. कमरे में बहुत देर तक सन्नाटा फैला रहा. आखिरकार खामोशी तोड़ते हुए अजय ने कहा, ‘‘मैं तुम्हारे साथ इस रिश्ते में नहीं रह सकता. मु?ो तलाक चाहिए.’’

पूरी दुनिया उस पर लांछन लगाए, नेहा को परवा नहीं थी, पर जिस से उस ने दिलोजान से प्यार किया, वही आज लोगों की बातों में आ कर उस के चरित्र पर उंगली उठा रहा है. यह देख नेहा सन्न रह गई.

सारी रात बिस्तर पर करवट बदलते नेहा सिसकती रही. अजय सब जानतेबू?ाते भी खामोश था. सुबह उठते ही नेहा ने अपने कपड़े सूटकेस में डाले और कमरे से निकलते वक्त अजय की तरफ उम्मीदभरी निगाहों से देखा, पर अजय किसी किताब में इस कदर रमा था कि उस ने नजरें उठा कर उस की ओर देखना भी उचित न सम?ा. बु?ो दिल से नेहा घर से बाहर निकल गई.

आज घर में अजीब सा सन्नाटा छाया था. मांबाऊजी पार्क की तरफ गए थे. नेहा के चले जाने से पूरे घर में जैसे वीरानी छा गई थी. वह बारबार फोन हाथ में लेता और फिर उसे परे रख देता. जब बेचैनी बहुत ज्यादा बढ़ गई तो व्हीलचेयर खिसका कर वह मेज की तरफ बढ़ा और वहां रखे मोबाइल में एफएम औन किया. गीत बज रहा था, ‘हमें तुम से प्यार कितना यह हम नहीं जानते, मगर जी नहीं सकते तुम्हारे बिना…’

गीत सुन कर उसे नेहा की बहुत ज्यादा याद आने लगी. खुद को बहुत संयत किया, पर आज जैसे आंसू रुकना ही नहीं चाह रहे थे. वह अपनी शादी की तसवीर सीने से लगा कर फूटफूट कर रोने लगा, ‘हम ने साथ मिल कर कितने सपने देखे थे, पर क्षणभर में सारे सपने टूट गए. मैं तो तुम्हें खुशियां भी न दे पाया, उलटे तुम्हारी जिंदगी में एक बो?ा की तरह बन कर रह गया. मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं. तुम्हारे बिना एक पल भी नहीं रह सकता, पर मेरा यह अंधकारमय साथ तुम्हारी जिंदगी में एक ग्रहण की तरह है. तुम्हारी बेहतरी मु?ा से दूर होने में ही थी. मु?ो मेरी कड़वी बातों के लिए माफ कर देना.

‘काश, तुम्हें यह बता पाता कि मैं तुम से कितना प्यार करता हूं. तुम बिन मैं कुछ भी नहीं हूं. मेरी जिंदगी में वापस आ जाओ. लौट आओ नेहा, प्लीज लौट आओ,’ वह अपना सिर घुटने में छिपाए जारबेजार रोए जा रहा था, तभी कंधे पर किसी का स्पर्श महसूस हुआ. तब वह खुद को संयमित करने की कोशिश करने लगा.

‘‘तो अब बता दो कि मु?ा से कितना प्यार करते हो. मैं वापस आ गई हूं अजय और अब मैं तुम से दूर कभी नहीं जाऊंगी. सिर्फ तुम ही नहीं, मैं भी तुम्हारे बिना अधूरी हूं. आज के बाद मु?ो खुद से दूर करने की कोशिश भी मत करना,’’ उस ने अजय की गोद में अपना सिर रखते हुए कहा.

अजय ने सहमति में सिर हिलाया और मजबूती से नेहा का हाथ थाम लिया. तभी एफएम में गाना बज उठा, ‘जब कोई बात बिगड़ जाए, जब कोई मुश्किल पड़ जाए, तुम देना साथ मेरा, ओ हमनवाज…’

The post तुम देना साथ मेरा: अजय के साथ कौन-सा हादसा हुआ? appeared first on Sarita Magazine.



from कहानी – Sarita Magazine https://ift.tt/cwNMhy1

Writer- मोनिका राज

शादी, विदाई और उस की रस्मों में कैसे एक हफ्ता गुजर गया, पता ही न चला. मम्मीपापा का लगातार भागदौड़ कर सबकुछ करना, रिश्तेदारों का जमघट, सहेलियों की मीठी छेड़छाड़ और हर आनेजाने वाले की जबान पर बस, उस का ही नाम. भविष्य के स्वप्निल सपनों में खोई नेहा अजय के संग विदा हो कर अब अपने ससुराल पहुंच चुकी थी.

उसे यह सब किसी सपने सा प्रतीत हो रहा था. खयालों में खोया उस का मन कब अतीत की गलियों में विचरने लगा, उसे पता ही नहीं चला. तकरीबन 2 साल पहले औफिस में अजय से उस की मुलाकात हुई थी. उस की सादगी अजय को पहली ही नजर में भा गई थी. अजय ने मन ही मन उसे अपना हमसफर बनाने का निश्चय कर लिया था. एक दिन मौका देख कर उस ने अपने दिल की बात नेहा को बताई. नेहा भी अजय को बहुत पसंद करती थी. सो, उस ने सहर्ष स्वीकृति दे दी.

अजय की इंटर्नशिप कंप्लीट होने के बाद उस के घर में शादी की बात जोर पकड़ने लगी. शादी के लिए कई रिश्ते आए, पर अजय को तो सांवलीसलोनी सी नेहा पसंद थी.

मां ने नाक सिकोड़ते हुए कहा, ‘वे लोग हमारी हैसियत के बराबर नहीं हैं. तु?ो पसंद भी आई तो इतने साधारण नाकनक्शे वाली लड़की.’

पर उस ने तो जैसे जिद पकड़ ली कि वह नेहा से ही शादी करेगा. घर का इकलौता वारिस होने की वजह से आखिरकार घर वालों को उस की जिद के आगे ?ाकना पड़ा. आननफानन ही एक महीने के अंदर शादी की तारीख पक्की हो गई और फिर नेहा दुलहन बन कर अजय के घर आ गई.

‘‘कहां खो गईं मैडम? पैकिंग भी करनी है. कल ही देहरादून के लिए हमारी फ्लाइट है. हनीमून पर साथ जाना है या खयालों में ही गुम रहना है,’’ अजय के ?ाक?ारने पर वह अतीत की यादों से बाहर आई.

ये भी पढ़ें- लौट आओ अपने वतन: विदेशी चकाचौंध में फंसी उर्वशी

दूसरे दिन दोनों हनीमून के लिए देहरादून निकल गए. पहले दिन तो दोनों देहरादून की वादियों में पैदल ही सैर करते निकले. कुदरत के समीप हो कर उन दोनों के बीच नजदीकियां भी बढ़ रही थीं. दोनों ने साथ में काफी अच्छा वक्त बिताया.

दूसरे दिन उन्होंने नैनीताल घूमने का प्लान बनाया. वे लोग कुछ ही दूर निकले थे कि अचानक गाड़ी में ?ाटके लगने लगे. जब तक वे कुछ सम?ा पाते, गाड़ी पर से नियंत्रण छूट गया और लैंड स्लाइडिंग की वजह से गाड़ी गहरी खाई में जा गिरी. जब होश आया तो नेहा ने खुद को अस्पताल के बिस्तर पर पाया. उस के हाथपैरों में पट्टियां बंधी थीं और सिर में भी काफी चोट आई थी. उस ने आसपास नजर दौड़ाई. अजय कहीं नजर नहीं आए. अनजाने भय की आशंका से उस का हृदय कांप उठा. वह लड़खड़ाते हुए बिस्तर से उतरी. कुछ ही कदम चल पाई थी कि असहनीय पीड़ा की वजह से वह जमीन पर जा गिरी. नर्स ने आ कर उसे संभाला.

‘‘मेरे पति भी मेरे साथ थे. वे कहां हैं अब?’’ नेहा ने सवाल किया.

‘‘वे अभी ओटी में हैं. जब तक डाक्टर बाहर नहीं आते, सही से कुछ बताना मुश्किल है,’’ नर्स ने उत्तर दिया.

पूरे 2 दिनों के बाद अजय को होश आया. जब उस ने उठने की कोशिश की तो उस के पैर काम नहीं कर रहे थे. इशारे से नेहा को अपने पास बुला कर पूछा तो वह रो पड़ी.

‘‘ऐक्सिडैंट की वजह से आप ने अपना पैर हमेशा के लिए गंवा दिया है,’’ सुन कर अजय स्तब्ध रह गया.

नियति पर हमारा वश कहां चलता है. अजय के पैर के साथसाथ उन दोनों की शादीशुदा जिंदगी पर भी जैसे ग्रहण लग गया था.

नेहा के मातापिता हालखबर लेने उस की ससुराल आए. काफी देर तक इधरउधर की बात करने के बाद उस की मां बहाने से उठ कर पूरे घर में नेहा को ढूंढ़ने लगी. नेहा को अकेला पा कर मां उसे खींचते हुए एक ओर ले गई. ‘‘जाने किस की नजर लग गई हमारी बच्ची को,’’ वह नेहा से लिपट कर रो पड़ी.

नेहा के तो जैसे आंसू ही सूख चुके थे. वह निर्विकार भाव से बोली, ‘‘नियति के आगे किस का जोर चलता है मां. शायद मेरे नसीब में यही सब होना लिखा था. तुम अपनेआप को संभालो.’’

मां ने अपने आंसू पोंछ डाले और उसे सम?ाने के अंदाज में बोली, ‘‘देख बिट्टो, अभी तो तेरी जिंदगी सही से शुरू भी नहीं हुई और इतना बड़ा हादसा हो गया. तेरे सामने पहाड़ सी जिंदगी पड़ी है. तू एक अपाहिज के साथ इतना लंबा सफर कैसे तय कर पाएगी?

‘‘देख, तू एक बार अच्छे से सोचसम?ा ले. अभी तो सबकुछ ठीक लग रहा है, पर एक वक्त के बाद वह तु?ो बो?ा सा लगने लगेगा. तू उस के साथ ताउम्र खुश नहीं रह पाएगी.’’

जब बहुत देर तक नेहा कमरे में नहीं आई तो अपनी व्हीलचेयर चलाते हुए अजय उसे घर में चारों ओर ढूंढ़ने लगा.

जैसे ही वह बालकनी के पास पहुंचा, कानों में नेहा की बात पड़ी, ‘‘यह कैसी बात कर रही हो, मां? एक बात बताओ, क्या अजय की जगह यह हादसा मेरे साथ हुआ होता तब भी क्या आप यह सलाह दे पातीं? मैं अजय से बहुत प्यार करती हूं मां. बस, कहने भर को मैं ने सात जन्म साथ निभाने की कसमें नहीं खाई थीं. मैं ने सच्चे दिल से उन्हें अपना हमसफर माना था. चाहे कुछ भी हो जाए, मैं उन का साथ कभी नहीं छोड़ूंगी. मैं आप के हाथ जोड़ती हूं.

‘‘आप ने यह बात आज तो कह दी, पर भविष्य में गलती से भी यह बात अपनी जबान पर मत लाइएगा. बहुत मुश्किल से अजय उस हादसे से उबरने की कोशिश कर रहे हैं. वे सुनेंगे यह सब तो पूरी तरह टूट जाएंगे मां.’’

वैसे तो अजय नेहा से बेइंतहा मोहब्बत करता था, पर आज उस की बातें सुन नेहा के लिए उस के दिल में प्यार और इज्जत और भी ज्यादा बढ़ गई. लेकिन साथ ही उस की ?ाठी मुसकान के पीछे का दर्द महसूस कर उस की आंखों में आंसुओं का सैलाब उमड़ आया. किसी तरह खुद को जब्त करते हुए उस ने नेहा को आवाज लगाई.

‘‘अरे आप…? आप को कुछ चाहिए था क्या? सौरी, मैं थोड़ा मां से बात करने लग गई थी,’’ उस ने पूछा.

‘‘नहीं, कुछ भी नहीं चाहिए था. बस, तुम बहुत देर से नहीं दिखीं तो ढूंढ़ते हुए इधर आ गया,’’ अजय ने उत्तर दिया.

ये भी पढ़ें- हिंडोला- भाग 1: दीदी की खातिर क्या अनुभा भूल गई अपना प्यार?

धीरेधीरे दिन बीतने लगे. नेहा पूरी तत्परता से अपना फर्ज निभा रही थी. वह दिनरात चकरी की तरह घूमघूम कर सब का खयाल रखती, पर इस पर भी किसी को वह फूटी आंख नहीं सुहा रही थी. बातबात पर सास हमेशा उलाहने देती रहती, ‘‘इस के तो कदम ही बहुत अशुभ पड़े हमारे घर में. यहां आते ही हमारे बेटे की जिंदगी को नरक से भी बदतर बना दिया.’’

यह सब सुन कर तो उस का दिल छलनी हो जाता, पर जब वह अजय का बु?ा चेहरा देखती तो खुद को समेट कर होंठों पर ?ाठी मुसकान सजाए वह उस में आत्मविश्वास भरने की कोशिश करती.

नेहा के अनवरत कोशिश करते रहने से अजय धीरेधीरे उस हादसे से बाहर आने लगा, पर उस की नौकरी छूट जाने से घर में थोड़ी आर्थिक तंगी होने लग गई थी.

इधर कुछ दिनों से अजय का दोस्त विनय सब की बहुत मदद कर रहा था. दिन में कम से कम दो बार फोन कर वह अजय की हालखबर लेता और जो भी जरूरत का सामान होता, उसे लाने में भी मदद करता. इस मुश्किल की घड़ी में उस का साथ खड़े होना नेहा को बहुत मजबूती दे रहा था. आने वाले खतरे से बेखबर वह विनय के प्रति कृतज्ञ हो रही थी.

एक दिन बातों ही बातों में उस ने आर्थिक तंगी के बारे में विनय को बताया और नौकरी करने की इच्छा जताई.

‘‘मेरे औफिस में स्टेनो का पद खाली है. मैं जानता हूं कि यह पद आप के लायक नहीं, पर फिलहाल अगर आप इस से काम चला सकें तो सही होगा. मैं बहुत जल्द आप के लिए कोई अच्छी जगह काम देख दूंगा,’’ विनय ने हिचकते हुए कहा.

विनय का एहसान मानते हुए नेहा काम पर जाने लगी. इस से पूरी तरह न सही, पर एक हद तक परिवार की गाड़ी पटरी पर आने लगी थी.

एक दिन काम ज्यादा रहने से उसे थोड़ा ज्यादा देर तक औफिस में रुकना पड़ा. बाकी का स्टाफ जा चुका था. वह जल्दीजल्दी अपना काम निबटा रही थी, तभी बाहर तेज बारिश होने लगी. बरसात की वजह से बिजली चली गई तो वह काम बंद कर बारिश थमने का इंतजार करने लगी.

‘‘आज तो घर जाने में बहुत देर हो जाएगी. जाने अजय ने कुछ खाया होगा भी या नहीं,’’ वह बारबार बेचैनी से घड़ी देखती हुई चहलकदमी कर रही थी.

जब बहुत देर तक बारिश नहीं रुकी तो वह वापस कुरसी पर आ कर बैठ गई. तभी पीछे से आ कर विनय ने नेहा के कंधे को छुआ, ‘‘आप कितनी सुंदर हैं भाभी. इस गुलाबी साड़ी में तो आप और भी गजब ढा रही हैं. आप इतनी खूबसूरत हैं. इस का सही इस्तेमाल कीजिए और जिंदगी का मजा लीजिए,’’ उस ने कुटिल मुसकान बिखेरते हुए कहा.

‘‘कहना क्या चाहते हो तुम? होश में तो हो? अगर अजय को मैं ने तुम्हारी यह करतूत बताई तो वे तुम्हारा क्या हश्र करेंगे, इस का अंदाजा भी है तुम्हें,’’ क्रोध से कांपते हुए उस ने कहा.

‘‘वह अपाहिज मेरा क्या बिगाड़ लेगा. सही से खड़ा तक नहीं हो पाता वह. तुम क्यों अपनी जवानी उस के पीछे बरबाद कर रही हो. मेरा साथ दो. किसी को इस बात की कानोंकान खबर नहीं लगने दूंगा,’’ विनय ने बेशर्मी से हंसते हुए कहा.

वह नेहा के साथ जोरजबरदस्ती पर उतर आया, तभी औफिस का मेन गेट खुला और सफाई करने वाली बाई अंदर की तरफ आती दिखी. नेहा ने पूरा जोर लगा कर विनय को परे धकेला और लगभग दौड़ते हुए बाहर की ओर भागी. किसी तरह उस ने अपने कपड़ों को ठीक किया और औटो में बैठी. पूरे रास्ते उस की नजर के सामने विनय का वीभत्स रूप आ रहा था. उस के पूरे बदन में जैसे कंपकंपी दौड़ गई. किसी तरह खुद को संभालते हुए वह घर पहुंची.

घर का काम निबटा कर अजय को सुलाया और खुद भी बगल में लेट गई, पर आज नींद उस की आंखों से कोसों दूर थी. सारी रात उस ने आंखों ही आंखों में काट दी. सुबह अजय ने उस के औफिस न जाने का कारण पूछा. इस से पहले कि वह कुछ कहती, विनय उस की सास के साथ कमरे में दाखिल हुआ. सास ने जलती हुई आंखों से उसे घूरते हुए पूछा, ‘‘बताती क्यों नहीं कि औफिस क्यों नहीं जा रही?’’

नेहा के कोई उत्तर न देने पर उन्होंने खुद ही बोलना शुरू किया, ‘‘अरे, अपना न सही, पर कम से कम हमारे घर की इज्जत का ही खयाल किया होता. अगर कुकर्म ही करने थे तो यह सतीसावित्री होने का ढोंग क्यों?’’

नेहा बुत बन कर खुद पर लगाए चरित्रहीनता के इलजाम को चुपचाप सुनती रही. उस ने उम्मीदभरी आंखों से अजय की तरफ देखा, पर उस की आंखों में भी सवाल देख कर वह अंदर ही अंदर टूट गई.

‘‘आप दोनों बाहर जाइए, मु?ो नेहा से अकेले में कुछ बात करनी है,’’ अजय ने कहा.

ये भी पढ़ें- वो एक लड़की: जिस लड़की से वह बेतहाशा प्यार करती थी

दोनों कमरे से बाहर चले गए. कमरे में बहुत देर तक सन्नाटा फैला रहा. आखिरकार खामोशी तोड़ते हुए अजय ने कहा, ‘‘मैं तुम्हारे साथ इस रिश्ते में नहीं रह सकता. मु?ो तलाक चाहिए.’’

पूरी दुनिया उस पर लांछन लगाए, नेहा को परवा नहीं थी, पर जिस से उस ने दिलोजान से प्यार किया, वही आज लोगों की बातों में आ कर उस के चरित्र पर उंगली उठा रहा है. यह देख नेहा सन्न रह गई.

सारी रात बिस्तर पर करवट बदलते नेहा सिसकती रही. अजय सब जानतेबू?ाते भी खामोश था. सुबह उठते ही नेहा ने अपने कपड़े सूटकेस में डाले और कमरे से निकलते वक्त अजय की तरफ उम्मीदभरी निगाहों से देखा, पर अजय किसी किताब में इस कदर रमा था कि उस ने नजरें उठा कर उस की ओर देखना भी उचित न सम?ा. बु?ो दिल से नेहा घर से बाहर निकल गई.

आज घर में अजीब सा सन्नाटा छाया था. मांबाऊजी पार्क की तरफ गए थे. नेहा के चले जाने से पूरे घर में जैसे वीरानी छा गई थी. वह बारबार फोन हाथ में लेता और फिर उसे परे रख देता. जब बेचैनी बहुत ज्यादा बढ़ गई तो व्हीलचेयर खिसका कर वह मेज की तरफ बढ़ा और वहां रखे मोबाइल में एफएम औन किया. गीत बज रहा था, ‘हमें तुम से प्यार कितना यह हम नहीं जानते, मगर जी नहीं सकते तुम्हारे बिना…’

गीत सुन कर उसे नेहा की बहुत ज्यादा याद आने लगी. खुद को बहुत संयत किया, पर आज जैसे आंसू रुकना ही नहीं चाह रहे थे. वह अपनी शादी की तसवीर सीने से लगा कर फूटफूट कर रोने लगा, ‘हम ने साथ मिल कर कितने सपने देखे थे, पर क्षणभर में सारे सपने टूट गए. मैं तो तुम्हें खुशियां भी न दे पाया, उलटे तुम्हारी जिंदगी में एक बो?ा की तरह बन कर रह गया. मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं. तुम्हारे बिना एक पल भी नहीं रह सकता, पर मेरा यह अंधकारमय साथ तुम्हारी जिंदगी में एक ग्रहण की तरह है. तुम्हारी बेहतरी मु?ा से दूर होने में ही थी. मु?ो मेरी कड़वी बातों के लिए माफ कर देना.

‘काश, तुम्हें यह बता पाता कि मैं तुम से कितना प्यार करता हूं. तुम बिन मैं कुछ भी नहीं हूं. मेरी जिंदगी में वापस आ जाओ. लौट आओ नेहा, प्लीज लौट आओ,’ वह अपना सिर घुटने में छिपाए जारबेजार रोए जा रहा था, तभी कंधे पर किसी का स्पर्श महसूस हुआ. तब वह खुद को संयमित करने की कोशिश करने लगा.

‘‘तो अब बता दो कि मु?ा से कितना प्यार करते हो. मैं वापस आ गई हूं अजय और अब मैं तुम से दूर कभी नहीं जाऊंगी. सिर्फ तुम ही नहीं, मैं भी तुम्हारे बिना अधूरी हूं. आज के बाद मु?ो खुद से दूर करने की कोशिश भी मत करना,’’ उस ने अजय की गोद में अपना सिर रखते हुए कहा.

अजय ने सहमति में सिर हिलाया और मजबूती से नेहा का हाथ थाम लिया. तभी एफएम में गाना बज उठा, ‘जब कोई बात बिगड़ जाए, जब कोई मुश्किल पड़ जाए, तुम देना साथ मेरा, ओ हमनवाज…’

The post तुम देना साथ मेरा: अजय के साथ कौन-सा हादसा हुआ? appeared first on Sarita Magazine.

March 01, 2022 at 09:00AM

No comments:

Post a Comment