Sunday 5 June 2022

Father’s day Special: वरुण और मेरे बीच कैसे खड़ी हो गई दीवार

मुझे रात को जल्दी सोने की आदत है. बेटेबहू की तरह मैं देररात तक जागना पसंद नहीं करता. शाम का खाना जल्दी खा कर थोड़ी देर टहलने जाना और फिर गहरी नींद का मजा लेने के लिए बिस्तर पर लेट जाना मेरी रोज की दिनचर्या है. इस में मैं थोड़ा सा भी बदलाव नहीं करता.

उस दिन भी मैं अपनी इसी दिनचर्या के अनुसार अपने बिस्तर पर आ कर लेट गया. किंतु जाने क्या हुआ मुझे नींद ही नहीं आ रही थी. बिस्तर पर करवटें बदलतेबदलते जब मैं उकता गया तो सोचा क्यों न कुछ देर पोतापोती के साथ खेल कर मन बहला लूं.

मैं जब पोतापोती के कमरे में पहुंचा तो देखा वे लोग कुछ काम कर रहे थे. पहले तो मुझे लगा कि शायद वे पढ़ाई कर रहे हैं और उन की पढ़ाई में खलल डालना उचित नहीं होगा, मगर फिर ध्यान से देखने पर पता चला कि वे दोनों तो चित्रकारी कर रहे थे. मैं उन के पीछे जा कर खड़ा हो गया और उन की चित्रकारी देखने लगा. जल्द ही उन दोनों को एहसास हो गया कि मैं उन के पीछे खड़ा हूं. उन्होंने आश्चर्य से मेरी तरफ कुछ ऐसे देखा मानो पूछ रहे हों, ‘आप इस समय यहां क्या कर रहे हैं?’

‘‘क्या कर रहे हो बच्चो, किस का चित्र बना रहे हो, जरा मुझे भी तो दिखाओ.’’

आंखों ही आंखों में दोनों में कुछ इशारेबाजी हुई और फिर दोनों लगभग एकसाथ बोले, ‘‘कुछ खास नहीं दादाजी, हमें स्कूल में एक प्रोजैक्ट मिला है, वही कर रहे हैं.’’

‘‘अच्छा. लाओ मुझे दिखाओ, क्या प्रोजैक्ट मिला है. मैं मदद कर देता हूं.’’

‘‘नहींनहीं दादाजी, मुश्किल नहीं है, हम कर लेंगे. वैसे भी थोड़ा सा ही काम बचा है. आप अभी तक सोए नहीं, काफी देर हो गई है?’’ मेरी पोती ने पूछा.

‘‘मैं पानी पीने के लिए उठा था. तुम्हारे कमरे की लाइट जल रही थी, इसलिए तुम से मिलने आ गया.’’

‘‘मैं आप के लिए पानी लाती हूं,’’ पोती ने उठते हुए कहा.

‘‘नहीं, रहने दो, मैं पानी पी चुका हूं.’’

‘‘मैं आप को कमरे तक छोड़ आऊं दादाजी.’’ मेरे पोते ने बड़ी मासूमियत से यह कहा तो मुझे उन दोनों पर बड़ा प्यार आया. मैं उन दोनों के सिर पर हाथ फेर कर अपने कमरे में चला आया. यों तो मेरे पोतापोती बड़े अच्छे बच्चे हैं, दोनों मेरा हमेशा ही आदर करते हैं और मेरी परवा भी, किंतु उन का आज का व्यवहार मेरे प्रति कतई सम्मानजनक नहीं था बल्कि वे दोनों मुझे जल्दी से जल्दी अपने कमरे से बाहर करना चाहते थे.

खैर, मैं वापस अपने कमरे में आ गया. हालांकि बच्चों ने तो छिपाने की पूरी कोशिश की थी पर मुझे पता चल ही गया कि वे दोनों क्या कर रहे थे. वे फादर्स डे के मौके पर अपने पापा के लिए कार्ड बना रहे थे और कहीं मैं उन के इस सरप्राइज के बारे में जान न जाऊं, इसीलिए उन्होंने जल्द से जल्द मुझे अपने कमरे से टालने की कोशिश की.

फादर्स डे पर न जाने क्यों मेरे कदम अपनेआप ही अपनी अलमारी की तरफ उठ गए. मैं ने अलमारी खोली और उस में से एक डब्बा निकाला. यह डब्बा टाई का था. मैं ने डब्बे में से टाई निकाली और उसे प्यार से सहला दिया. यह टाई मेरे बेटे वरुण ने तोहफे में दी थी. वह फादर्स डे के मौके पर इसे मेरे लिए अपनी पहली तनख्वाह से खरीद कर लाया था. हालांकि मुझे इसे कभी पहनने का मौका नहीं मिला, लेकिन यह मेरे दिल के बेहद करीब है. मैं ने इसे संभाल कर रखा है.

सुबह नाश्ते की मेज पर दोनों बच्चों  ने अपने पापा को कार्ड भेंट  किया. मेरा बेटा कार्ड देख कर अपने बच्चों पर निहाल हो गया. उस ने दोनों को अपनी गोद में बैठा लिया और उन्हें अपने हाथों से नाश्ता करवाने लगा. बच्चों द्वारा बनाया गया कार्ड देखने को मुझे भी मिला. उन के द्वारा बनाई गई अपने बेटे की कार्टून जैसी सूरत देख कर मेरे होंठों पर मुसकान आ गई जिसे मैं बहुत कोशिश कर के भी अपने बेटे से छिपा नहीं पाया.

‘‘बच्चों की कोशिश बहुत अच्छी थी. हमें उन का हौसला बढ़ाना चाहिए. प्यार से दिया गया  हर तोहफा अनमोल होता है, हमें यह हमेशा ध्यान रखना चाहिए. मगर कुछ लोग दूसरों की भावनाओं को समझते ही नहीं या तो तोहफा देने वाले को डांट देते हैं या उस का मजाक उड़ाने लगते हैं,’’ वरुण ने सख्त शब्दों में अपनी नाराजगी व्यक्त की.

उस की यह नाराजगी उस के बच्चों के कार्ड का मजाक उड़ाने के लिए नहीं थी, बल्कि उस की इस नाराजगी की असली वजह वह टाई थी जिसे खरीदने पर मैं ने उसे डांटा था. वह पुराना वाकेआ हम पितापुत्र के बीच आज भी मौजूद है. न उस वाकए को कभी मैं भुला पाया और न ही कभी वो. यह बात उस के दिल में ऐसी घर कर गईर् कि उस के बाद मेरा बेटा मुझ से दूर हो गया.

हालांकि कोई भी यह कह सकता है कि मुझ से तब बहुत बड़ी गलती हो गई. मैं खुद भी कभी इस बात के लिए खुद को माफ नहीं कर सका. सफाई भी क्या दूं, जब यह हुआ उस समय मेरे हालात से वह बिलकुल अनजान तो नहीं था. एक तो उस समय मेरी आर्थिक स्थिति काफी नाजुक थी, उस पर पत्नी का स्वास्थ्य दिनोंदिन बिगड़ता जा रहा था और वह हमारा साथ छोड़ने की तैयारी में थी. ऐसे में इन औपचारिकताओं के लिए जिंदगी में जगह ही कहां थी.

मैं कुछ कहता तो बात और बढ़ती, उस से पहले मेरी बहू सुमी हमेशा की तरह आगे आई, ‘‘अच्छा अब छोड़ो पुरानी बातें और जल्दी से नाश्ता खत्म करो. फिर बाजार भी जाना है. आज बच्चे अपने पापा के लिए दोपहर के खाने में कुछ खास बनाना चाहते हैं.’’ वह बातें करतेकरते सब के लिए नाश्ता भी परोसती जा रही थी. सब पनीरसैंडविच खा रहे थे जबकि मुझे उस ने दूध व कौर्नफ्लैक्स खाने को दिए. यह भेदभाव देख कर मुझे बुरा लगा.

वरुण ने बाजार जाने से मना कर दिया. उसे दफ्तर की कोई जरूरी फाइल देखनी थी. सुमी भी इतवार की सुबह काफी व्यस्त रहती है. सो, बाजार जाने की जिम्मेदारी मैं ने ले ली. सुमी ने सामान की सूची और झोले के साथ यह हिदायत भी दे डाली कि मैं अधिक दूर न जा कर पास की मार्केट से ही सामान ले आऊं.

सुमी की हिदायत के बावजूद मैं दूर  सब्जी मंडी चला गया. शायद  सुबह की खीझ मिटाने और रास्ते में अपने मित्र रामलाल हलवाई की दुकान तक पहुंच कर मेरा सब्र टूट गया और वहां मैं ने डट कर कचौरी व जलेबी का नाश्ता किया. नाश्ता करते समय मैं ने ‘फादर्स डे’ के मौके पर बड़े ही भावपूर्ण तरीके से अपने पिताजी को याद किया और बेटे के लिए उस की सलामती की कामना की.

‘‘बड़ी देर लगा दी पापाजी, कहां चले गए थे?’’ घर पहुंचते ही सुमी ने इस सवाल के साथ मेरा स्वागत किया.

‘‘मैं मंडी चला गया था. वहां सब्जी सस्ती और अच्छी मिलती है न.’’ अपनी इस समझदारी पर दाद मिलने की उम्मीद से मैं ने उस की ओर देखा पर उस ने मेरा दिल तोड़ दिया.

‘‘सब्जी लेने ही गए थे न या फिर कुछ और भी?’’ उस के इस आधेअधूरे सवाल का मतलब मैं बखूबी समझ गया था और जवाब में उसे घूर कर भी देखना चाहता था मगर चोरी पकड़ी जाने के डर से ऐसा कर न सका. थकान का बहाना बना कर मैं अपने कमरे में चला आया.

रसोई में हंगामा सा मचा हुआ था. बच्चे खाना बना रहे थे और उन के मातापिता उन की मदद कर रहे थे. पता नहीं खाना ही बना रहे थे या कोई खेल खेल रहे थे, मुझे समझ नहीं आया. अच्छा ही हुआ जो मैं बाहर से खा कर आ गया, पता नहीं घर में तो आज खाना बनेगा भी या नहीं.

मेज पर खाना लग चुका था. मेरा पोता मुझे बुलाने आया. मेरा पेट जरा भारी सा हो रहा था. इस समय भोजन करने का बिलकुल भी मन नहीं था. पर मना करने का तो सवाल ही नहीं उठता, कमजोरी मेरी ही थी. मैं मन ही मन अपनी मधुमेह आदि बीमारियों को कोसते हुए, जो मुझे अपने बच्चों से झूठ बोलने को मजबूर कर देती हैं, बाहर चला आया.

यों तो आज भी मेरे लिए लौकी की सब्जी और चपाती बनी थी पर शायद आज बच्चों को मुझ पर थोड़ा ज्यादा प्यार आ गया, इसलिए उन्होंने अपने खाने में से भी थोड़ा सा चखने के लिए दे दिया. खाना बेहद स्वादिष्ठ बना था, शायद इसलिए कि उस में बच्चों का प्यार भी मिला था, पर मजा नहीं आ रहा था. इस का कारण भी मैं जानता था.

‘‘क्या बात है पापाजी, आप खाना नहीं खा रहे? अच्छा नहीं लग रहा है क्या?’’ बहू ने मुझे प्लेट में चम्मच घुमाते देख पूछा. वह खोजी नजरों से मुझे देख रही थी. मुझे उस की इस अदा से बड़ा डर लगता है, लगता है मानो अंदर झांक कर सारे राज मालूम कर लेगी.

‘‘नहीं बेटे, ऐसी कोई बात नहीं है. खाना बहुत अच्छा बना है,’’ मैं ने जल्दीजल्दी निवाले निगलते हुए कहा. उस समय मुझे अपनी पोल खुलने से अधिक फिक्र अपने बच्चों की भावनाओं की थी. मैं ने सब के साथ भरपेट भोजन किया और दिल खोल कर भोजन की तारीफ भी की.

शाम को बच्चों का बाहर जाने का प्लान था. जब वे लोग मुझ से इजाजत लेने आए तब मेरे पेट में बहुत तेज दर्द हो रहा था, लेकिन मैं ने उन्हें इस बाबत बताना ठीक नहीं समझा क्योंकि वे लोग अपना प्लान रद्द कर देते. मेरे पोतापोती मुझे बाय कर रहे थे और मैं किसी तरह अपने दर्द को दबाए हुए मुसकराने की कोशिश कर रहा था. सुमी अब भी मेरे लिए खाना बना कर गई थी. मुझे बड़ी खुशी हुई यह देख कर कि वह मेरी हर छोटीबड़ी जरूरत का हर तरह से ध्यान रखती है. मन तो किया कि उस के लिए ही सही, दो निवाले खा लूं, मगर मुझ से नहीं हुआ. हार कर मैं अपने बिस्तर पर पड़ गया.

मैं इतनी तकलीफ में था कि बच्चे कब घर वापस आए, मुझे पता ही नहीं चला. मुझे सोया जान उन्होंने मुझे नहीं जगाया. मैं रातभर दर्द से तड़पता रहा. सुबह खाई कचौरियां मेरे पेट में कुहराम मचाए हुए थीं. ऐसे में ठीक तो यही रहता कि मैं अपने बेटाबहू को जगा देता पर सब थके हुए थे और मुझे उस समय उन्हें परेशान करना ठीक नहीं लगा. मगर परेशान तो वे लोग फिर भी हो गए. मेरी लाख कोशिशों के बावजूद उन्हें मेरी तकलीफ के बारे में पता चल गया. मेरे वाशरूम से बारबार आती फ्लश की आवाज ने चुगली जो कर दी थी.

वरुण और सुमी मेरे कमरे में चले आए. मेरी हालत देख कर वे घबरा गए. वे तो उसी समय डाक्टर को बुलाना चाहते थे मगर इतनी रात डाक्टर का आना मुश्किल था. सो, खुद ही मेरी तीमारदारी में जुट गए. मुझे उस समय अपने बच्चों पर प्यार आ रहा था और शायद उन्हें गुस्सा, तभी तो वरुण मुझे घूर कर देख रहा था. वरुण के इस तरह घूरने से मुझे डर लगता था. उस के गुस्से से खुद को बचाने के लिए मैं आंखें बंद कर के लेट गया. थोड़ी देर में मुझे दवा के कारण नींद आ गई.

10 बजे के करीब मेरी नींद टूटी. मैं चौंक कर उठ बैठा. सुमी का दफ्तर जाने का समय हो रहा था. आज मैं अपनी आदत के उलट बहुत देर तक सोता रहा. मैं ने उठने की कोशिश की, पर उठ नहीं पाया. बड़ी कमजोरी महसूस हो रही थी. कुछ ही देर में सुमी मुझे देखने आई. मुझे जगा हुआ देख कर वह चाय बना लाई. तब तक वरुण ने मुझे सहारा दे कर बैठा दिया. दोनों को उस समय घर के कपड़ों में देख कर मुझे कुछ आश्चर्य हुआ, ‘‘तुम दोनों अब तक तैयार नहीं हुए. आज औफिस नहीं जाना है क्या?’’

‘‘आप को ऐसी हालत में छोड़ कर औफिस कैसे जाएं. आज हम दोनों ने दफ्तर से छुट्टी ले ली है,’’ वरुण ने जवाब दिया.

‘‘नहीं बेटा, इस की कोई जरूरत नहीं है. मैं अब ठीक महसूस कर रहा हूं. तुम लोग आराम से दफ्तर जाओ,’’ जाने मैं बच्चों से झूठ बोल रहा था या फिर खुद से, मुझे समझ नहीं आया.

‘‘हां, पता है हमें कितना ठीक महसूस कर रहे हैं आप. आप का चेहरा देख कर ही पता चल रहा है. अब आप कुछ नहीं बोलेंगे, सिर्फ आराम करेंगे. आज हम आप को छोड़ कर कहीं नहीं जाएंगे. पूरा दिन आप पर नजर रखेंगे और आप वो करेंगे जो हम कहेंगे. चलिए, लेट जाइए.’’ बहू की यह मीठी झिड़की मुझे अच्छी लगी. इस के बाद दोनों पूरा दिन मेरी इस तरह देखभाल करते रहे जैसे कि मैं एक छोटा बच्चा हूं और वे दोनों मेरे अभिभावक, मैं भी उन की हर आज्ञा का पालन करता रहा.

शाम तक मेरी हालत में काफी सुधार हो चुका था. मैं अपने कमरे में बैठेबैठे बोर हो गया था. सो, उठ कर हौल में चला आया. मुझे देख कर सुमी ने चाय का कप और एक प्लेट में बिस्कुट परोस कर मेरे सामने रख दिए. मुझे बड़ी हसरत से पैस्ट्री और समोसों की ओर ताकते देख उस के होंठों पर शरारती मुसकान आ गई जिसे देख कर मैं शरमा गया.

‘‘कल आप कहां गए थे पापा?’’ वरुण ने मेरी ओर सवाल दागा.

उस के इस सवाल के लिए मैं तैयार नहीं था, इसलिए कुछ पलों के लिए तो हड़बड़ा गया लेकिन फिर विरोध करने वाले अंदाज में बोला. ‘‘तुम्हारी याददाश्त अभी से कमजोर हो गई है क्या? याद नहीं तुम्हें, सब्जी लेने गया था, बहू ने ही तो भेजा था.’’

‘‘मेरी याददाश्त बिलकुल ठीक है. आप की बहू ने तो आप को पास वाली मार्केट भेजा था, पर आप रामलाल चाचा की दुकान पर पहुंच गए. पूछ सकता हूं क्यों?’’

‘‘मैं रामलाल की दुकान पर नहीं, मंडी गया था, अच्छी और सस्ती सब्जी लेने.’’ मैं जानता था अब मेरा झूठ ज्यादा देर तक नहीं चलेगा, पर फिर भी मैं ने एक आखिरी कोशिश की.

‘‘मेरे दोस्त दिनेश ने आप को रामलाल चाचा की दुकान पर देखा था वह भी जलेबी और कचौरी खाते हुए.’’मेरे बेटे के बिगड़े तेवरों ने मुझे सीधा कर दिया. दिनेश को तो मैं ने भी देखा था उस दिन पर यह नहीं सोचा था कि वह मेरे बेटे से मेरी चुगली कर देगा, चुगलखोर कहीं का. आजकल के लड़कों में बड़ों के लिए आदरसम्मान रहा ही नहीं. मैं ने अपने बेटे की ओर देखा. वह सच सुनने के इंतजार में लगातार मुझे घूर रहा था. अब और किसी झूठ के लिए जगह नहीं थी, बहाने भी लगभग खत्म हो चुके थे. सो, अब सच बोलने में ही भलाई थी.

‘‘कल तुम लोगों को फादर्स डे मनाते देख मेरा भी मन कर गया. मैं वहां फादर्स डे मनाने गया था.’’ मेरा यह मासूमियत भरा जवाब सुन कर मेरी बहू की हंसी छूट गई. जाने उस की हंसी में क्या था कि पहले मैं, फिर मेरा बेटा भी उस के साथ खुल कर हंस दिए. हम हंसे जा रहे थे और दोनों बच्चे हमारी ओर आश्चर्यभरी नजरों से देख रहे थे.

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मुझे रात को जल्दी सोने की आदत है. बेटेबहू की तरह मैं देररात तक जागना पसंद नहीं करता. शाम का खाना जल्दी खा कर थोड़ी देर टहलने जाना और फिर गहरी नींद का मजा लेने के लिए बिस्तर पर लेट जाना मेरी रोज की दिनचर्या है. इस में मैं थोड़ा सा भी बदलाव नहीं करता.

उस दिन भी मैं अपनी इसी दिनचर्या के अनुसार अपने बिस्तर पर आ कर लेट गया. किंतु जाने क्या हुआ मुझे नींद ही नहीं आ रही थी. बिस्तर पर करवटें बदलतेबदलते जब मैं उकता गया तो सोचा क्यों न कुछ देर पोतापोती के साथ खेल कर मन बहला लूं.

मैं जब पोतापोती के कमरे में पहुंचा तो देखा वे लोग कुछ काम कर रहे थे. पहले तो मुझे लगा कि शायद वे पढ़ाई कर रहे हैं और उन की पढ़ाई में खलल डालना उचित नहीं होगा, मगर फिर ध्यान से देखने पर पता चला कि वे दोनों तो चित्रकारी कर रहे थे. मैं उन के पीछे जा कर खड़ा हो गया और उन की चित्रकारी देखने लगा. जल्द ही उन दोनों को एहसास हो गया कि मैं उन के पीछे खड़ा हूं. उन्होंने आश्चर्य से मेरी तरफ कुछ ऐसे देखा मानो पूछ रहे हों, ‘आप इस समय यहां क्या कर रहे हैं?’

‘‘क्या कर रहे हो बच्चो, किस का चित्र बना रहे हो, जरा मुझे भी तो दिखाओ.’’

आंखों ही आंखों में दोनों में कुछ इशारेबाजी हुई और फिर दोनों लगभग एकसाथ बोले, ‘‘कुछ खास नहीं दादाजी, हमें स्कूल में एक प्रोजैक्ट मिला है, वही कर रहे हैं.’’

‘‘अच्छा. लाओ मुझे दिखाओ, क्या प्रोजैक्ट मिला है. मैं मदद कर देता हूं.’’

‘‘नहींनहीं दादाजी, मुश्किल नहीं है, हम कर लेंगे. वैसे भी थोड़ा सा ही काम बचा है. आप अभी तक सोए नहीं, काफी देर हो गई है?’’ मेरी पोती ने पूछा.

‘‘मैं पानी पीने के लिए उठा था. तुम्हारे कमरे की लाइट जल रही थी, इसलिए तुम से मिलने आ गया.’’

‘‘मैं आप के लिए पानी लाती हूं,’’ पोती ने उठते हुए कहा.

‘‘नहीं, रहने दो, मैं पानी पी चुका हूं.’’

‘‘मैं आप को कमरे तक छोड़ आऊं दादाजी.’’ मेरे पोते ने बड़ी मासूमियत से यह कहा तो मुझे उन दोनों पर बड़ा प्यार आया. मैं उन दोनों के सिर पर हाथ फेर कर अपने कमरे में चला आया. यों तो मेरे पोतापोती बड़े अच्छे बच्चे हैं, दोनों मेरा हमेशा ही आदर करते हैं और मेरी परवा भी, किंतु उन का आज का व्यवहार मेरे प्रति कतई सम्मानजनक नहीं था बल्कि वे दोनों मुझे जल्दी से जल्दी अपने कमरे से बाहर करना चाहते थे.

खैर, मैं वापस अपने कमरे में आ गया. हालांकि बच्चों ने तो छिपाने की पूरी कोशिश की थी पर मुझे पता चल ही गया कि वे दोनों क्या कर रहे थे. वे फादर्स डे के मौके पर अपने पापा के लिए कार्ड बना रहे थे और कहीं मैं उन के इस सरप्राइज के बारे में जान न जाऊं, इसीलिए उन्होंने जल्द से जल्द मुझे अपने कमरे से टालने की कोशिश की.

फादर्स डे पर न जाने क्यों मेरे कदम अपनेआप ही अपनी अलमारी की तरफ उठ गए. मैं ने अलमारी खोली और उस में से एक डब्बा निकाला. यह डब्बा टाई का था. मैं ने डब्बे में से टाई निकाली और उसे प्यार से सहला दिया. यह टाई मेरे बेटे वरुण ने तोहफे में दी थी. वह फादर्स डे के मौके पर इसे मेरे लिए अपनी पहली तनख्वाह से खरीद कर लाया था. हालांकि मुझे इसे कभी पहनने का मौका नहीं मिला, लेकिन यह मेरे दिल के बेहद करीब है. मैं ने इसे संभाल कर रखा है.

सुबह नाश्ते की मेज पर दोनों बच्चों  ने अपने पापा को कार्ड भेंट  किया. मेरा बेटा कार्ड देख कर अपने बच्चों पर निहाल हो गया. उस ने दोनों को अपनी गोद में बैठा लिया और उन्हें अपने हाथों से नाश्ता करवाने लगा. बच्चों द्वारा बनाया गया कार्ड देखने को मुझे भी मिला. उन के द्वारा बनाई गई अपने बेटे की कार्टून जैसी सूरत देख कर मेरे होंठों पर मुसकान आ गई जिसे मैं बहुत कोशिश कर के भी अपने बेटे से छिपा नहीं पाया.

‘‘बच्चों की कोशिश बहुत अच्छी थी. हमें उन का हौसला बढ़ाना चाहिए. प्यार से दिया गया  हर तोहफा अनमोल होता है, हमें यह हमेशा ध्यान रखना चाहिए. मगर कुछ लोग दूसरों की भावनाओं को समझते ही नहीं या तो तोहफा देने वाले को डांट देते हैं या उस का मजाक उड़ाने लगते हैं,’’ वरुण ने सख्त शब्दों में अपनी नाराजगी व्यक्त की.

उस की यह नाराजगी उस के बच्चों के कार्ड का मजाक उड़ाने के लिए नहीं थी, बल्कि उस की इस नाराजगी की असली वजह वह टाई थी जिसे खरीदने पर मैं ने उसे डांटा था. वह पुराना वाकेआ हम पितापुत्र के बीच आज भी मौजूद है. न उस वाकए को कभी मैं भुला पाया और न ही कभी वो. यह बात उस के दिल में ऐसी घर कर गईर् कि उस के बाद मेरा बेटा मुझ से दूर हो गया.

हालांकि कोई भी यह कह सकता है कि मुझ से तब बहुत बड़ी गलती हो गई. मैं खुद भी कभी इस बात के लिए खुद को माफ नहीं कर सका. सफाई भी क्या दूं, जब यह हुआ उस समय मेरे हालात से वह बिलकुल अनजान तो नहीं था. एक तो उस समय मेरी आर्थिक स्थिति काफी नाजुक थी, उस पर पत्नी का स्वास्थ्य दिनोंदिन बिगड़ता जा रहा था और वह हमारा साथ छोड़ने की तैयारी में थी. ऐसे में इन औपचारिकताओं के लिए जिंदगी में जगह ही कहां थी.

मैं कुछ कहता तो बात और बढ़ती, उस से पहले मेरी बहू सुमी हमेशा की तरह आगे आई, ‘‘अच्छा अब छोड़ो पुरानी बातें और जल्दी से नाश्ता खत्म करो. फिर बाजार भी जाना है. आज बच्चे अपने पापा के लिए दोपहर के खाने में कुछ खास बनाना चाहते हैं.’’ वह बातें करतेकरते सब के लिए नाश्ता भी परोसती जा रही थी. सब पनीरसैंडविच खा रहे थे जबकि मुझे उस ने दूध व कौर्नफ्लैक्स खाने को दिए. यह भेदभाव देख कर मुझे बुरा लगा.

वरुण ने बाजार जाने से मना कर दिया. उसे दफ्तर की कोई जरूरी फाइल देखनी थी. सुमी भी इतवार की सुबह काफी व्यस्त रहती है. सो, बाजार जाने की जिम्मेदारी मैं ने ले ली. सुमी ने सामान की सूची और झोले के साथ यह हिदायत भी दे डाली कि मैं अधिक दूर न जा कर पास की मार्केट से ही सामान ले आऊं.

सुमी की हिदायत के बावजूद मैं दूर  सब्जी मंडी चला गया. शायद  सुबह की खीझ मिटाने और रास्ते में अपने मित्र रामलाल हलवाई की दुकान तक पहुंच कर मेरा सब्र टूट गया और वहां मैं ने डट कर कचौरी व जलेबी का नाश्ता किया. नाश्ता करते समय मैं ने ‘फादर्स डे’ के मौके पर बड़े ही भावपूर्ण तरीके से अपने पिताजी को याद किया और बेटे के लिए उस की सलामती की कामना की.

‘‘बड़ी देर लगा दी पापाजी, कहां चले गए थे?’’ घर पहुंचते ही सुमी ने इस सवाल के साथ मेरा स्वागत किया.

‘‘मैं मंडी चला गया था. वहां सब्जी सस्ती और अच्छी मिलती है न.’’ अपनी इस समझदारी पर दाद मिलने की उम्मीद से मैं ने उस की ओर देखा पर उस ने मेरा दिल तोड़ दिया.

‘‘सब्जी लेने ही गए थे न या फिर कुछ और भी?’’ उस के इस आधेअधूरे सवाल का मतलब मैं बखूबी समझ गया था और जवाब में उसे घूर कर भी देखना चाहता था मगर चोरी पकड़ी जाने के डर से ऐसा कर न सका. थकान का बहाना बना कर मैं अपने कमरे में चला आया.

रसोई में हंगामा सा मचा हुआ था. बच्चे खाना बना रहे थे और उन के मातापिता उन की मदद कर रहे थे. पता नहीं खाना ही बना रहे थे या कोई खेल खेल रहे थे, मुझे समझ नहीं आया. अच्छा ही हुआ जो मैं बाहर से खा कर आ गया, पता नहीं घर में तो आज खाना बनेगा भी या नहीं.

मेज पर खाना लग चुका था. मेरा पोता मुझे बुलाने आया. मेरा पेट जरा भारी सा हो रहा था. इस समय भोजन करने का बिलकुल भी मन नहीं था. पर मना करने का तो सवाल ही नहीं उठता, कमजोरी मेरी ही थी. मैं मन ही मन अपनी मधुमेह आदि बीमारियों को कोसते हुए, जो मुझे अपने बच्चों से झूठ बोलने को मजबूर कर देती हैं, बाहर चला आया.

यों तो आज भी मेरे लिए लौकी की सब्जी और चपाती बनी थी पर शायद आज बच्चों को मुझ पर थोड़ा ज्यादा प्यार आ गया, इसलिए उन्होंने अपने खाने में से भी थोड़ा सा चखने के लिए दे दिया. खाना बेहद स्वादिष्ठ बना था, शायद इसलिए कि उस में बच्चों का प्यार भी मिला था, पर मजा नहीं आ रहा था. इस का कारण भी मैं जानता था.

‘‘क्या बात है पापाजी, आप खाना नहीं खा रहे? अच्छा नहीं लग रहा है क्या?’’ बहू ने मुझे प्लेट में चम्मच घुमाते देख पूछा. वह खोजी नजरों से मुझे देख रही थी. मुझे उस की इस अदा से बड़ा डर लगता है, लगता है मानो अंदर झांक कर सारे राज मालूम कर लेगी.

‘‘नहीं बेटे, ऐसी कोई बात नहीं है. खाना बहुत अच्छा बना है,’’ मैं ने जल्दीजल्दी निवाले निगलते हुए कहा. उस समय मुझे अपनी पोल खुलने से अधिक फिक्र अपने बच्चों की भावनाओं की थी. मैं ने सब के साथ भरपेट भोजन किया और दिल खोल कर भोजन की तारीफ भी की.

शाम को बच्चों का बाहर जाने का प्लान था. जब वे लोग मुझ से इजाजत लेने आए तब मेरे पेट में बहुत तेज दर्द हो रहा था, लेकिन मैं ने उन्हें इस बाबत बताना ठीक नहीं समझा क्योंकि वे लोग अपना प्लान रद्द कर देते. मेरे पोतापोती मुझे बाय कर रहे थे और मैं किसी तरह अपने दर्द को दबाए हुए मुसकराने की कोशिश कर रहा था. सुमी अब भी मेरे लिए खाना बना कर गई थी. मुझे बड़ी खुशी हुई यह देख कर कि वह मेरी हर छोटीबड़ी जरूरत का हर तरह से ध्यान रखती है. मन तो किया कि उस के लिए ही सही, दो निवाले खा लूं, मगर मुझ से नहीं हुआ. हार कर मैं अपने बिस्तर पर पड़ गया.

मैं इतनी तकलीफ में था कि बच्चे कब घर वापस आए, मुझे पता ही नहीं चला. मुझे सोया जान उन्होंने मुझे नहीं जगाया. मैं रातभर दर्द से तड़पता रहा. सुबह खाई कचौरियां मेरे पेट में कुहराम मचाए हुए थीं. ऐसे में ठीक तो यही रहता कि मैं अपने बेटाबहू को जगा देता पर सब थके हुए थे और मुझे उस समय उन्हें परेशान करना ठीक नहीं लगा. मगर परेशान तो वे लोग फिर भी हो गए. मेरी लाख कोशिशों के बावजूद उन्हें मेरी तकलीफ के बारे में पता चल गया. मेरे वाशरूम से बारबार आती फ्लश की आवाज ने चुगली जो कर दी थी.

वरुण और सुमी मेरे कमरे में चले आए. मेरी हालत देख कर वे घबरा गए. वे तो उसी समय डाक्टर को बुलाना चाहते थे मगर इतनी रात डाक्टर का आना मुश्किल था. सो, खुद ही मेरी तीमारदारी में जुट गए. मुझे उस समय अपने बच्चों पर प्यार आ रहा था और शायद उन्हें गुस्सा, तभी तो वरुण मुझे घूर कर देख रहा था. वरुण के इस तरह घूरने से मुझे डर लगता था. उस के गुस्से से खुद को बचाने के लिए मैं आंखें बंद कर के लेट गया. थोड़ी देर में मुझे दवा के कारण नींद आ गई.

10 बजे के करीब मेरी नींद टूटी. मैं चौंक कर उठ बैठा. सुमी का दफ्तर जाने का समय हो रहा था. आज मैं अपनी आदत के उलट बहुत देर तक सोता रहा. मैं ने उठने की कोशिश की, पर उठ नहीं पाया. बड़ी कमजोरी महसूस हो रही थी. कुछ ही देर में सुमी मुझे देखने आई. मुझे जगा हुआ देख कर वह चाय बना लाई. तब तक वरुण ने मुझे सहारा दे कर बैठा दिया. दोनों को उस समय घर के कपड़ों में देख कर मुझे कुछ आश्चर्य हुआ, ‘‘तुम दोनों अब तक तैयार नहीं हुए. आज औफिस नहीं जाना है क्या?’’

‘‘आप को ऐसी हालत में छोड़ कर औफिस कैसे जाएं. आज हम दोनों ने दफ्तर से छुट्टी ले ली है,’’ वरुण ने जवाब दिया.

‘‘नहीं बेटा, इस की कोई जरूरत नहीं है. मैं अब ठीक महसूस कर रहा हूं. तुम लोग आराम से दफ्तर जाओ,’’ जाने मैं बच्चों से झूठ बोल रहा था या फिर खुद से, मुझे समझ नहीं आया.

‘‘हां, पता है हमें कितना ठीक महसूस कर रहे हैं आप. आप का चेहरा देख कर ही पता चल रहा है. अब आप कुछ नहीं बोलेंगे, सिर्फ आराम करेंगे. आज हम आप को छोड़ कर कहीं नहीं जाएंगे. पूरा दिन आप पर नजर रखेंगे और आप वो करेंगे जो हम कहेंगे. चलिए, लेट जाइए.’’ बहू की यह मीठी झिड़की मुझे अच्छी लगी. इस के बाद दोनों पूरा दिन मेरी इस तरह देखभाल करते रहे जैसे कि मैं एक छोटा बच्चा हूं और वे दोनों मेरे अभिभावक, मैं भी उन की हर आज्ञा का पालन करता रहा.

शाम तक मेरी हालत में काफी सुधार हो चुका था. मैं अपने कमरे में बैठेबैठे बोर हो गया था. सो, उठ कर हौल में चला आया. मुझे देख कर सुमी ने चाय का कप और एक प्लेट में बिस्कुट परोस कर मेरे सामने रख दिए. मुझे बड़ी हसरत से पैस्ट्री और समोसों की ओर ताकते देख उस के होंठों पर शरारती मुसकान आ गई जिसे देख कर मैं शरमा गया.

‘‘कल आप कहां गए थे पापा?’’ वरुण ने मेरी ओर सवाल दागा.

उस के इस सवाल के लिए मैं तैयार नहीं था, इसलिए कुछ पलों के लिए तो हड़बड़ा गया लेकिन फिर विरोध करने वाले अंदाज में बोला. ‘‘तुम्हारी याददाश्त अभी से कमजोर हो गई है क्या? याद नहीं तुम्हें, सब्जी लेने गया था, बहू ने ही तो भेजा था.’’

‘‘मेरी याददाश्त बिलकुल ठीक है. आप की बहू ने तो आप को पास वाली मार्केट भेजा था, पर आप रामलाल चाचा की दुकान पर पहुंच गए. पूछ सकता हूं क्यों?’’

‘‘मैं रामलाल की दुकान पर नहीं, मंडी गया था, अच्छी और सस्ती सब्जी लेने.’’ मैं जानता था अब मेरा झूठ ज्यादा देर तक नहीं चलेगा, पर फिर भी मैं ने एक आखिरी कोशिश की.

‘‘मेरे दोस्त दिनेश ने आप को रामलाल चाचा की दुकान पर देखा था वह भी जलेबी और कचौरी खाते हुए.’’मेरे बेटे के बिगड़े तेवरों ने मुझे सीधा कर दिया. दिनेश को तो मैं ने भी देखा था उस दिन पर यह नहीं सोचा था कि वह मेरे बेटे से मेरी चुगली कर देगा, चुगलखोर कहीं का. आजकल के लड़कों में बड़ों के लिए आदरसम्मान रहा ही नहीं. मैं ने अपने बेटे की ओर देखा. वह सच सुनने के इंतजार में लगातार मुझे घूर रहा था. अब और किसी झूठ के लिए जगह नहीं थी, बहाने भी लगभग खत्म हो चुके थे. सो, अब सच बोलने में ही भलाई थी.

‘‘कल तुम लोगों को फादर्स डे मनाते देख मेरा भी मन कर गया. मैं वहां फादर्स डे मनाने गया था.’’ मेरा यह मासूमियत भरा जवाब सुन कर मेरी बहू की हंसी छूट गई. जाने उस की हंसी में क्या था कि पहले मैं, फिर मेरा बेटा भी उस के साथ खुल कर हंस दिए. हम हंसे जा रहे थे और दोनों बच्चे हमारी ओर आश्चर्यभरी नजरों से देख रहे थे.

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June 06, 2022 at 10:00AM

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