Sunday 5 June 2022

Father’s Day Special: दूरियां- क्यों हर औलाद को बुरा मानता था सतीश?

‘‘सुरेखा, सुरेखा…’’ किचन में कुकर की सीटी की आवाज के आगे सतीश की आवाज दब गई. जब पत्नी ने पुकार का कोई जवाब नहीं दिया तो अखबार हाथ में उठा कर सतीश खुद अंदर चले आए.

हाथ का अखबार पास पड़ी कुरसी पर पटक कुछ जोर से बोले सतीश, ‘‘क्या हो रहा है? मैं ने कल की खबर तुम्हें सुनाई थी कि पिता के पैसों के लिए बेटे ने उस की हत्या की सुपारी अपने ही एक दोस्त को दे दी. देखा, कलियुगी बच्चों को…बेटाबेटी ने मिल कर अपने बूढ़े मातापिता को मौत के घाट उतार दिया, ताकि उन के पैसों से मौजमस्ती कर सकें. हद है, आज की पीढ़ी का कोई ईमान ही नहीं रहा.’’  सुरेखा ने उन्हें शांत करने की कोशिश की, ‘‘आप इन खबरों को पढ़ कर इतने परेशान क्यों होते हैं? यह भी देखिए कि ये बच्चे किस वर्ग के हैं और कितने पढ़ेलिखे हैं?’’

‘‘क्या कह रही हो तुम? ये बच्चे बाहर से एमबीए आदि पढ़लिख कर आए थे. जरा सोचो सुरेखा, इन की पढ़ाईलिखाई पर मांबाप ने कितना पैसा खर्च किया होगा. आजकल के बच्चे इतने नकारा हैं कि…’’

कहतेकहते हांफने लगे सतीश. सुरेखा पानी का गिलास ले कर उन के पास चली आईं, ‘‘आप रोजरोज इस तरह की खबरें पढ़ कर अपने को क्यों दुखी करते हैं? छोडि़ए न, हम तो अच्छेभले हैं. बस, 2 महीने रह गए हैं आप के रिटायरमैंट को. अपना घर है. पैंशन आती रहेगी. और क्या चाहिए हमें? जितना है वह अपने बच्चों का ही तो है.’’

सतीश पानी का एक घूंट ले कर कुछ रुक कर बोले, ‘‘बच्चों का क्यों? तीनों को पढ़ालिखा दिया. अब जो करना है, उन्हें खुद करना है. मैं एक पैसा किसी पर खर्च नहीं करने वाला.’’

सुरेखा चौंकीं, ‘‘अरे, यह क्या कह   रहे हैं? सिर्फ अमन की ही तो   शादी हुई है. अभी तो आभा की होनी है. आरुष भी आगे पढ़ाई करना चाहता है. फिर…’’

इस ‘फिर’ से बचते हुए सतीश बाहर निकल गए. दरअसल, जब से उन्होंने अपनी ही कालोनी में रहने वाले जगत को सुबहसुबह पार्क में फूटफूट कर रोते देखा तो उन की सोच ही बदल गई. जगत उम्र में उन से 10 साल बड़े थे. एक बेटा धनंजय और एक बेटी छवि. धनंजय को पढ़ालिखा कर इंजीनियर बनाया. रिटायरमैंट में मिले फंड के पैसों से छवि की शादी कर दी. बचाखुचा पत्नी की बीमारी में निकल गया. बेटे की शादी के बाद वे साथ ही रहते थे. महीना भर पहले बेटे ने उन्हें घर से निकाल दिया. जगत की समझ में नहीं आ रहा था कि वे इस उम्र में जाएं तो कहां जाएं. अपनी पूरी कमाई बच्चों पर लगा दी. उन की पढ़ाई और शादी की वजह से अपना घर नहीं बना पाए. पैंशन नहीं, देखरेख करने वाला भी कोई नहीं.

सतीश, जगत का हाल सुन कर हिल गए. धनंजय को बचपन में देखा था उन्होंने. वह ऐसा निकलेगा, क्या कभी सोचा था?  सुरेखा को पता था कि सतीश एक बार जो ठान लेते हैं उस से पलटते नहीं हैं. कल रात ही आरुष ने उन से कहा था, ‘‘पापा, मैं आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका जाना चाहता हूं. छात्रवृत्ति के लिए कोशिश तो कर रहा हूं, फिर भी 3 लाख तक का खर्च आ ही जाएगा.

पापा, क्या आप इतने पैसे उधार दे सकेंगे?’’

आरुष ने बिलकुल एक बच्चे की तरह कहा, ‘‘ममा, 2 साल बाद मेरा एमबीए हो जाएगा. इस के बाद मुझे कहीं अच्छी नौकरी मिल जाएगी. मैं पापा के सारे पैसे चुका दूंगा. आप बात कीजिए न उन से,’’ उस समय तो सुरेखा ने हां कह दिया था, पर अपने पति का रुख देख कर उसे शंका हो रही थी कि पता नहीं वे क्या जवाब देंगे.

घर का काम निबटा कर सुरेखा सतीश के कमरे में आईं, तो वे कंप्यूटर के सामने चिंता में बैठे थे. सुरेखा धीरे से उन के पीछे आ खड़ी हुईं. कुछ क्षण रुकने के बाद बोलीं, ‘‘यह क्या चिंता ले कर बैठ गए? बच्चे भी पूछने लगे हैं अब तो. खाना भी सब के साथ नहीं खाते और…’’  सतीश ने पलट कर सुरेखा की तरफ देखा, ‘‘मेरे पास उन से बात करने के लिए कुछ नहीं है. वे अपनी अलग दुनिया में जीते हैं सुरेखा. मैं साथ बैठता हूं तो सब असहज महसूस करते हैं.’’  ‘‘ऐसा नहीं है, सब आप की इज्जत करते हैं. अच्छा, कल बहू मायके जाने को कह रही है, भेज दें?’’

सतीश झल्ला गए, ‘‘तुम ये सब बातें मुझ से क्यों  पूछ रही हो, उन्हें तय करने दो. अमन जिम्मेदार शादीशुदा आदमी  है. उसे अपनी जिंदगी खुद जीनी चाहिए.’’ सुरेखा चुप हो गईं. ऐसे मूड में आरुष के विदेश जाने की बात करतीं भी कैसे?

अगले दिन नाश्ते के समय आरुष ने खुद बात छेड़ दी, ‘‘पापा, मैं ने आप को बताया था न कि एमबीए के लिए मेरा अमेरिका में एक यूनिवर्सिटी में चयन हो गया है. बस, पहले साल मुझे 40 प्रतिशत स्कौलरशिप मिलेगी. मैं सोच रहा था कि अगर आप…’’  सतीश एकदम से भड़क गए, ‘‘सोचना भी मत. तुम्हें इंजीनियर बना दिया, बस, अब इस से आगे मैं कुछ नहीं कर सकता. यही तो दिक्कत है तुम जैसी नई पीढ़ी की, बस अपनी सोचते हो. यह नहीं सोचते कि कल तुम्हारे मातापिता का क्या होगा? हम अपनी बाकी जिंदगी कैसे जिएंगे?’’

आरुष सकपका गया. अमन भी वहीं बैठा था. उस ने जल्दी से कहा, ‘‘पापा, आप ऐसा क्यों कहते हैं? हम लोग हैं न.’’  सतीश के होंठों पर व्यंग्य तिर आया, ‘‘तुम लोग क्या करोगे, यह मुझे अच्छी तरह पता है. मुझे तुम लोगों से कोई उम्मीद नहीं, तुम लोग भी मुझ से कोई उम्मीद मत रखना…’’ प्लेट छोड़ उठ खड़े हुए सतीश. सुरेखा को झटका सा लगा. अपने बच्चों के साथ ऐसा क्यों कर रहे हैं सतीश? आज तक बच्चों की परवरिश में कहीं कोई कमी नहीं रखी, अच्छे स्कूलकालेजों में पढ़ाया. अब अचानक उन के सोचने की दिशा क्यों बदल गई है?

अमन उठ कर सुरेखा के पास चला आया, ‘‘मां, पापा को आजकल क्या हो गया है? आजकल इतने गुस्से में क्यों रहते हैं?’’ अचानक सुरेखा की आंखों से आंसू निकल आए, ‘‘पता नहीं क्याक्या पढ़ते रहते हैं. सोचते हैं कि उन के बच्चे भी उन के साथ…’’

‘‘क्या मां, क्या लगता है उन्हें? हम उन के पैसों के पीछे हैं?’’ अमन ने सीधे पूछ लिया.

सुरेखा की हिचकी बंध गई, ‘‘पता नहीं बेटा, ऐसा ही कुछ भर गया है उन के दिमाग में. मैं तो समझासमझा कर हार गई कि सब घर एक से नहीं होते.’’

अमन ने सुरेखा के हाथ थाम लिए और धीरे से बोला, ‘‘इस में पापा की गलती नहीं है. आजकल रोज इस तरह की खबरें आ रही हैं. पहले भी आती होंगी, पर आजकल मीडिया कुछ ज्यादा ही सक्रिय है. आप जाने दीजिए मां, सब ठीक हो जाएगा. पापा से कह दीजिए कि हमें उन के पैसे नहीं चाहिए. बस, हमें चाहिए कि वे सुकून से रहें.’’

अमन और आरुष अपनेअपने रास्ते पर चले गए. आभा अब तक कालेज से नहीं आई थी. इस साल उस की पढ़ाई भी पूरी हो जाएगी. आभा चाहती थी कि वह नौकरी करे. सुरेखा को लगता था कि समय पर उस की शादी हो जानी चाहिए. पर उन की सुनने वाला घर में कोई नहीं था.  आरुष ने अमन की मदद से बैंक से लोन लिया और महीने भर बाद वह अमेरिका चला गया. आभा को भी कैंपस इंटरव्यू में नौकरी मिल गई. जब उस ने अपनी पहली तनख्वाह सतीश के हाथ में रखी तो वे निर्लिप्त भाव से बोले, ‘‘अपनी कमाई तुम अपने पास रखो, जमा करो. कल तुम्हारे काम आएगी.’’

सुरेखा ने समझ लिया था कि सतीश को समझाना बहुत मुश्किल है, लेकिन उन्हें इस बात का संतोष था कि कम से कम बच्चे समझदार हैं. 6 महीने बाद अमन को भी मुंबई में अच्छी नौकरी मिल गई. अमन अपनी पत्नी के साथ मुंबई चला गया.  सुरेखा को घर का अकेलापन काटने लगा. आभा का काम कुछ ऐसा था कि दफ्तर से लौटने में देर हो जाती. सुरेखा टोकतीं तो आभा कहती, ‘‘मां, आजकल हर प्राइवेट नौकरी में यही हाल है. देर तक काम करना पड़ता है. कोई जल्दी घर जाने की बात नहीं करता तो मैं कैसे आऊं.’’  आभा इतनी व्यस्त रहती कि उसे खानेपीने की सुध ही नहीं रहती. सुरेखा चाहती थीं कि उन की युवा बेटी शादी कर के सुख से रहे. दूसरी लड़कियों की तरह सजेसंवरे, अपनी दुनिया बसाए. एक दिन वह सतीश के सामने फट पड़ीं, ‘‘आप को पता भी है कि आभा कितने साल की हो गई है? उस की शादी की बात आप चलाएंगे या मैं चलाऊं? मैं अपनी बेटी को खुश देखना चाहती हूं.’’

सतीश अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में इतने रमे हुए थे कि बेटी का रिश्ता खोजना उन्हें भारी लग रहा था. पर सुरेखा के कहने पर वे कुछ चौकन्ने हुए. अखबार में देख कर एक सही सा लड़का ढूंढ़ा. आभा को यह बिलकुल पसंद नहीं था कि वह किसी के देखने की खातिर सजेसंवरे. बड़ी मुश्किल से वह लड़के वालों के सामने आने को तैयार हुई. सुरेखा उत्साह से तैयारी में जुट गईं. बेटी की शादी का सपना हर मां अपनी आंखों में संजोए रहती है.  आभा 2-3 बार उस से कह चुकी थी कि मां, अभी रिश्ता हुआ नहीं है. आप को ज्यादा कुछ करने की जरूरत नहीं  है. बस, चाय और बिस्कुट रखिए मेज पर.  सुरेखा हंसने लगीं, ‘‘ऐसा कहीं होता है भला? जिस घर में तेरी शादी होनी है उस घर के लोगों की कुछ तो खातिरदारी करनी पड़ेगी.’’

आभा चुप हो गई. सुरेखा ने घर पर ही गुलाबजामुन बनाए, नारियल की बरफी बनाई, नमकीन में समोसे, कटलेट और पनीर मंचूरियन बनाया. साथ ही जलजीरा आदि तो था ही. चुपके से जा कर वे अपने होने वाले दामाद के लिए सोने की चेन भी ले आई थीं. रिश्ता पक्का होने के बाद कुछ तो देना पड़ेगा.

सतीश को जिस बात का अंदेशा था, आखिरकार वही हुआ. प्रमोद चार्टर्ड अकाउंटैंट था और आते ही उस की मां ने बढ़चढ़ कर बताया कि प्रमोद को सीए बनाने में उन्होंने कितने पापड़ बेले हैं.

सतीश ने कुछ देर तक उन का त्याग- मंडित भाषण सुना, फिर पूछ लिया, ‘‘देखिए मैडम, हर मातापिता अपने बच्चे को शिक्षा दिलाने के लिए कुछ न कुछ त्याग तो करते ही हैं. मैं ने भी अपने बच्चों की शिक्षा पर बहुत खर्च किया है. आप कहना क्या चाहती हैं, यह स्पष्ट बताइए.’’

प्रमोद की मां सकपका गईं. बात प्रमोद के मामा ने संभाली, ‘‘आप तो दुनियादार हैं सतीशजी. बेटे की शादी भी कर रखी है. आप को क्या बताना.’’

सतीश गंभीर हो गए, ‘‘अगर बात लेनदेन की कर रहे हैं तो मैं आप से कोई संबंध नहीं रखना चाहूंगा.’’

सतीश की आवाज इतनी तल्ख थी कि किसी की कुछ बोलने की हिम्मत ही नहीं पड़ी. इस के बाद बात बस, औपचारिक बन कर रह गई. उन के जाने के बाद सुरेखा अपने पति पर बरस पड़ीं, ‘‘लगता है, आप अपनी बेटी की शादी करना ही नहीं चाहते. आप का ऐसा रुख रहेगा, तो कौन आप से संबंध रखना चाहेगा भला?’’

सतीश ने अपनी पत्नी की तरफ निगाह डाली और शांत आवाज में कहा, ‘‘मैं ने अपनी बेटी को इसलिए नहीं पढ़ाया कि उस का रिश्ता ऐसे घर में करूं.’’

सुरेखा रोने लगीं, ‘‘आप पैसे के पीछे पागल हो गए हैं. अपनी बेटी की शादी में कौन पैसा खर्च नहीं करता.’’

सुरेखा के रोने का उन पर कोई असर नहीं पड़ा. वे वहां से चले गए. अचानक सुरेखा ने कंधे पर एक कोमल स्पर्श महसूस किया, आभा खड़ी थी. आभा धीरे से बोली, ‘‘मां, रोओ मत. पापा ने सही किया. मुझे खुद दहेज दे कर शादी नहीं करनी. मैं अपने लिए राह खुद बना लूंगी, तुम चिंता मत करो.’’

बेटी का आश्वासन भी सुरेखा को शांत न कर पाया.

6 महीने बाद आभा ने एक दिन सुरेखा से कहा, ‘‘मां, मैं किसी को आप से मिलवाना चाहती हूं.’’

सुरेखा को खटका लगा. पहली बार आभा उस से किसी को मिलवाने को कह रही है. कौन है?

शाम को आभा अपने से उम्र में काफी बड़े एक आदमी को घर ले कर आई, ‘‘मां, मेरे साथ काम करते हैं हरिहरण. बहुत बड़े साइंटिस्ट हैं और हम दोनों…’’

आभा की बात पूरी होने से पहले सुरेखा उसे खींच कर कमरे में ले गईं और बोलीं, ‘‘आभा, उम्र में इतने बड़े आदमी से…ऐसा क्यों कर रही है बेटी? ऊपर से साउथ इंडियन?’’

‘‘मां,’’ आभा ने सुरेखा का हाथ कस कर पकड़ लिया, ‘‘हरी बेहद सुलझे हुए और इंटेलिजैंट व्यक्ति हैं. आजकल नार्थसाउथ में क्या रखा है मां? तुम्हें भी तो इडलीसांभर पसंद है. क्या तुम होटल जा कर रसम और चावल नहीं खातीं? हरि को तो अपनी तरफ का राजमा, अरहर की दाल और आलू के परांठे बहुत पसंद हैं. हम दोनों एकदूसरे को अच्छे से जाननेसमझने लगे हैं. मैं उन के साथ बहुत खुश रहूंगी मां,’’ कहतेकहते आभा की आंखों में पानी भर आया. सुरेखा ने उसे गले से लगा लिया, ‘‘आभा, मेरे लिए तेरी खुशी से बढ़ कर और कुछ नहीं है बेटी. पर एक मां हूं न, क्या करूं, दिल नहीं मानता.’’

आभा की पसंद के बारे में सतीश ने कुछ कहा नहीं. उन्हें हरिहरण अच्छे लगे. आभा ने कोर्ट में जा कर शादी की. सुरेखा कहती रह गईं कि पार्टी होनी चाहिए, पर हरि ने हंस कर कहा, ‘‘मिसेज सतीश, आप पैसा क्यों खर्च करना चाहती हैं? वह भी दूसरों को खिलापिला कर. सेव इट फौर टुमारो.’’

तीनों बच्चे अपनी जिंदगी में रम गए. गाहेबगाहे आते तो कुछ लेने के बजाय बहुत कुछ दे जाते. सतीश अब पहले से कम बोलने लगे. अब उन्हें भी बच्चों की कमी खलने लगी थी.

ऐसे ही चुपचाप एक दिन रात को जो वे सोए तो सुबह उठे ही नहीं. पहला दिल का दौरा इतना तेज था कि उन के प्राण निकल गए. सुरेखा अकेली रह गईं. आभा महीना भर आ कर उन के पास रह गई, पर उस की भी नौकरी थी, जाना तो था ही. अमन भी आरुष का साथ देने अमेरिका पहुंच गया और वहीं जा कर बस गया.

इतने बड़े घर में सुरेखा अब अकेली पड़ गईं, सतीश की पैंशन, उन के कमाए पैसों और अपने गहनों के साथ. रहरह कर उस के मन में टीस उठती कि समय पर अगर बच्चों की मदद कर दी होती तो आज यह पैसा बोझ बन कर उन के दिल को ठेस न पहुंचाता.

अमन से जब भी वे अपने दिल की बात करतीं, वह तुरंत जवाब देता, ‘‘मां, तुम सब छोड़छाड़ कर यहां आ जाओ हमारे पास. सब साथ रहेंगे. मेरी बेटी बड़ी हो रही है. उसे तुम्हारा साथ चाहिए.’’

बहुत सोचसमझ कर सुरेखा ने अपनी जायदाद के 3 हिस्से किए और कागजात साइन करवाने अमन, आभा और आरुष के पास भेज दिए. सप्ताह भर बाद अमन की लंबी चिट्ठी आई. चिट्ठी में लिखा था, ‘‘मां, हमें वहां से कुछ नहीं चाहिए. हम तीनों बच्चों को आप ने बहुत कुछ दिया है. आप अपना पैसा जरूरतमंदों में बांट दीजिए, किसी अनाथालय के नाम कर दीजिए. शायद इस से पापा की आत्मा को भी शांति मिलेगी. और हां, देर मत कीजिए, जल्दी आइए. अब तो कम से कम हम सब को साथ वक्त बिताना चाहिए.’’

सुरेखा फूटफूट कर रोने लगीं. काश, आज यह दिन देखने के लिए सतीश जिंदा होते. जिस पैसे की खातिर सतीश अपने बच्चों से दूर हो गए, वह पैसा आज उन के किसी काम का रहा नहीं.

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‘‘सुरेखा, सुरेखा…’’ किचन में कुकर की सीटी की आवाज के आगे सतीश की आवाज दब गई. जब पत्नी ने पुकार का कोई जवाब नहीं दिया तो अखबार हाथ में उठा कर सतीश खुद अंदर चले आए.

हाथ का अखबार पास पड़ी कुरसी पर पटक कुछ जोर से बोले सतीश, ‘‘क्या हो रहा है? मैं ने कल की खबर तुम्हें सुनाई थी कि पिता के पैसों के लिए बेटे ने उस की हत्या की सुपारी अपने ही एक दोस्त को दे दी. देखा, कलियुगी बच्चों को…बेटाबेटी ने मिल कर अपने बूढ़े मातापिता को मौत के घाट उतार दिया, ताकि उन के पैसों से मौजमस्ती कर सकें. हद है, आज की पीढ़ी का कोई ईमान ही नहीं रहा.’’  सुरेखा ने उन्हें शांत करने की कोशिश की, ‘‘आप इन खबरों को पढ़ कर इतने परेशान क्यों होते हैं? यह भी देखिए कि ये बच्चे किस वर्ग के हैं और कितने पढ़ेलिखे हैं?’’

‘‘क्या कह रही हो तुम? ये बच्चे बाहर से एमबीए आदि पढ़लिख कर आए थे. जरा सोचो सुरेखा, इन की पढ़ाईलिखाई पर मांबाप ने कितना पैसा खर्च किया होगा. आजकल के बच्चे इतने नकारा हैं कि…’’

कहतेकहते हांफने लगे सतीश. सुरेखा पानी का गिलास ले कर उन के पास चली आईं, ‘‘आप रोजरोज इस तरह की खबरें पढ़ कर अपने को क्यों दुखी करते हैं? छोडि़ए न, हम तो अच्छेभले हैं. बस, 2 महीने रह गए हैं आप के रिटायरमैंट को. अपना घर है. पैंशन आती रहेगी. और क्या चाहिए हमें? जितना है वह अपने बच्चों का ही तो है.’’

सतीश पानी का एक घूंट ले कर कुछ रुक कर बोले, ‘‘बच्चों का क्यों? तीनों को पढ़ालिखा दिया. अब जो करना है, उन्हें खुद करना है. मैं एक पैसा किसी पर खर्च नहीं करने वाला.’’

सुरेखा चौंकीं, ‘‘अरे, यह क्या कह   रहे हैं? सिर्फ अमन की ही तो   शादी हुई है. अभी तो आभा की होनी है. आरुष भी आगे पढ़ाई करना चाहता है. फिर…’’

इस ‘फिर’ से बचते हुए सतीश बाहर निकल गए. दरअसल, जब से उन्होंने अपनी ही कालोनी में रहने वाले जगत को सुबहसुबह पार्क में फूटफूट कर रोते देखा तो उन की सोच ही बदल गई. जगत उम्र में उन से 10 साल बड़े थे. एक बेटा धनंजय और एक बेटी छवि. धनंजय को पढ़ालिखा कर इंजीनियर बनाया. रिटायरमैंट में मिले फंड के पैसों से छवि की शादी कर दी. बचाखुचा पत्नी की बीमारी में निकल गया. बेटे की शादी के बाद वे साथ ही रहते थे. महीना भर पहले बेटे ने उन्हें घर से निकाल दिया. जगत की समझ में नहीं आ रहा था कि वे इस उम्र में जाएं तो कहां जाएं. अपनी पूरी कमाई बच्चों पर लगा दी. उन की पढ़ाई और शादी की वजह से अपना घर नहीं बना पाए. पैंशन नहीं, देखरेख करने वाला भी कोई नहीं.

सतीश, जगत का हाल सुन कर हिल गए. धनंजय को बचपन में देखा था उन्होंने. वह ऐसा निकलेगा, क्या कभी सोचा था?  सुरेखा को पता था कि सतीश एक बार जो ठान लेते हैं उस से पलटते नहीं हैं. कल रात ही आरुष ने उन से कहा था, ‘‘पापा, मैं आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका जाना चाहता हूं. छात्रवृत्ति के लिए कोशिश तो कर रहा हूं, फिर भी 3 लाख तक का खर्च आ ही जाएगा.

पापा, क्या आप इतने पैसे उधार दे सकेंगे?’’

आरुष ने बिलकुल एक बच्चे की तरह कहा, ‘‘ममा, 2 साल बाद मेरा एमबीए हो जाएगा. इस के बाद मुझे कहीं अच्छी नौकरी मिल जाएगी. मैं पापा के सारे पैसे चुका दूंगा. आप बात कीजिए न उन से,’’ उस समय तो सुरेखा ने हां कह दिया था, पर अपने पति का रुख देख कर उसे शंका हो रही थी कि पता नहीं वे क्या जवाब देंगे.

घर का काम निबटा कर सुरेखा सतीश के कमरे में आईं, तो वे कंप्यूटर के सामने चिंता में बैठे थे. सुरेखा धीरे से उन के पीछे आ खड़ी हुईं. कुछ क्षण रुकने के बाद बोलीं, ‘‘यह क्या चिंता ले कर बैठ गए? बच्चे भी पूछने लगे हैं अब तो. खाना भी सब के साथ नहीं खाते और…’’  सतीश ने पलट कर सुरेखा की तरफ देखा, ‘‘मेरे पास उन से बात करने के लिए कुछ नहीं है. वे अपनी अलग दुनिया में जीते हैं सुरेखा. मैं साथ बैठता हूं तो सब असहज महसूस करते हैं.’’  ‘‘ऐसा नहीं है, सब आप की इज्जत करते हैं. अच्छा, कल बहू मायके जाने को कह रही है, भेज दें?’’

सतीश झल्ला गए, ‘‘तुम ये सब बातें मुझ से क्यों  पूछ रही हो, उन्हें तय करने दो. अमन जिम्मेदार शादीशुदा आदमी  है. उसे अपनी जिंदगी खुद जीनी चाहिए.’’ सुरेखा चुप हो गईं. ऐसे मूड में आरुष के विदेश जाने की बात करतीं भी कैसे?

अगले दिन नाश्ते के समय आरुष ने खुद बात छेड़ दी, ‘‘पापा, मैं ने आप को बताया था न कि एमबीए के लिए मेरा अमेरिका में एक यूनिवर्सिटी में चयन हो गया है. बस, पहले साल मुझे 40 प्रतिशत स्कौलरशिप मिलेगी. मैं सोच रहा था कि अगर आप…’’  सतीश एकदम से भड़क गए, ‘‘सोचना भी मत. तुम्हें इंजीनियर बना दिया, बस, अब इस से आगे मैं कुछ नहीं कर सकता. यही तो दिक्कत है तुम जैसी नई पीढ़ी की, बस अपनी सोचते हो. यह नहीं सोचते कि कल तुम्हारे मातापिता का क्या होगा? हम अपनी बाकी जिंदगी कैसे जिएंगे?’’

आरुष सकपका गया. अमन भी वहीं बैठा था. उस ने जल्दी से कहा, ‘‘पापा, आप ऐसा क्यों कहते हैं? हम लोग हैं न.’’  सतीश के होंठों पर व्यंग्य तिर आया, ‘‘तुम लोग क्या करोगे, यह मुझे अच्छी तरह पता है. मुझे तुम लोगों से कोई उम्मीद नहीं, तुम लोग भी मुझ से कोई उम्मीद मत रखना…’’ प्लेट छोड़ उठ खड़े हुए सतीश. सुरेखा को झटका सा लगा. अपने बच्चों के साथ ऐसा क्यों कर रहे हैं सतीश? आज तक बच्चों की परवरिश में कहीं कोई कमी नहीं रखी, अच्छे स्कूलकालेजों में पढ़ाया. अब अचानक उन के सोचने की दिशा क्यों बदल गई है?

अमन उठ कर सुरेखा के पास चला आया, ‘‘मां, पापा को आजकल क्या हो गया है? आजकल इतने गुस्से में क्यों रहते हैं?’’ अचानक सुरेखा की आंखों से आंसू निकल आए, ‘‘पता नहीं क्याक्या पढ़ते रहते हैं. सोचते हैं कि उन के बच्चे भी उन के साथ…’’

‘‘क्या मां, क्या लगता है उन्हें? हम उन के पैसों के पीछे हैं?’’ अमन ने सीधे पूछ लिया.

सुरेखा की हिचकी बंध गई, ‘‘पता नहीं बेटा, ऐसा ही कुछ भर गया है उन के दिमाग में. मैं तो समझासमझा कर हार गई कि सब घर एक से नहीं होते.’’

अमन ने सुरेखा के हाथ थाम लिए और धीरे से बोला, ‘‘इस में पापा की गलती नहीं है. आजकल रोज इस तरह की खबरें आ रही हैं. पहले भी आती होंगी, पर आजकल मीडिया कुछ ज्यादा ही सक्रिय है. आप जाने दीजिए मां, सब ठीक हो जाएगा. पापा से कह दीजिए कि हमें उन के पैसे नहीं चाहिए. बस, हमें चाहिए कि वे सुकून से रहें.’’

अमन और आरुष अपनेअपने रास्ते पर चले गए. आभा अब तक कालेज से नहीं आई थी. इस साल उस की पढ़ाई भी पूरी हो जाएगी. आभा चाहती थी कि वह नौकरी करे. सुरेखा को लगता था कि समय पर उस की शादी हो जानी चाहिए. पर उन की सुनने वाला घर में कोई नहीं था.  आरुष ने अमन की मदद से बैंक से लोन लिया और महीने भर बाद वह अमेरिका चला गया. आभा को भी कैंपस इंटरव्यू में नौकरी मिल गई. जब उस ने अपनी पहली तनख्वाह सतीश के हाथ में रखी तो वे निर्लिप्त भाव से बोले, ‘‘अपनी कमाई तुम अपने पास रखो, जमा करो. कल तुम्हारे काम आएगी.’’

सुरेखा ने समझ लिया था कि सतीश को समझाना बहुत मुश्किल है, लेकिन उन्हें इस बात का संतोष था कि कम से कम बच्चे समझदार हैं. 6 महीने बाद अमन को भी मुंबई में अच्छी नौकरी मिल गई. अमन अपनी पत्नी के साथ मुंबई चला गया.  सुरेखा को घर का अकेलापन काटने लगा. आभा का काम कुछ ऐसा था कि दफ्तर से लौटने में देर हो जाती. सुरेखा टोकतीं तो आभा कहती, ‘‘मां, आजकल हर प्राइवेट नौकरी में यही हाल है. देर तक काम करना पड़ता है. कोई जल्दी घर जाने की बात नहीं करता तो मैं कैसे आऊं.’’  आभा इतनी व्यस्त रहती कि उसे खानेपीने की सुध ही नहीं रहती. सुरेखा चाहती थीं कि उन की युवा बेटी शादी कर के सुख से रहे. दूसरी लड़कियों की तरह सजेसंवरे, अपनी दुनिया बसाए. एक दिन वह सतीश के सामने फट पड़ीं, ‘‘आप को पता भी है कि आभा कितने साल की हो गई है? उस की शादी की बात आप चलाएंगे या मैं चलाऊं? मैं अपनी बेटी को खुश देखना चाहती हूं.’’

सतीश अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में इतने रमे हुए थे कि बेटी का रिश्ता खोजना उन्हें भारी लग रहा था. पर सुरेखा के कहने पर वे कुछ चौकन्ने हुए. अखबार में देख कर एक सही सा लड़का ढूंढ़ा. आभा को यह बिलकुल पसंद नहीं था कि वह किसी के देखने की खातिर सजेसंवरे. बड़ी मुश्किल से वह लड़के वालों के सामने आने को तैयार हुई. सुरेखा उत्साह से तैयारी में जुट गईं. बेटी की शादी का सपना हर मां अपनी आंखों में संजोए रहती है.  आभा 2-3 बार उस से कह चुकी थी कि मां, अभी रिश्ता हुआ नहीं है. आप को ज्यादा कुछ करने की जरूरत नहीं  है. बस, चाय और बिस्कुट रखिए मेज पर.  सुरेखा हंसने लगीं, ‘‘ऐसा कहीं होता है भला? जिस घर में तेरी शादी होनी है उस घर के लोगों की कुछ तो खातिरदारी करनी पड़ेगी.’’

आभा चुप हो गई. सुरेखा ने घर पर ही गुलाबजामुन बनाए, नारियल की बरफी बनाई, नमकीन में समोसे, कटलेट और पनीर मंचूरियन बनाया. साथ ही जलजीरा आदि तो था ही. चुपके से जा कर वे अपने होने वाले दामाद के लिए सोने की चेन भी ले आई थीं. रिश्ता पक्का होने के बाद कुछ तो देना पड़ेगा.

सतीश को जिस बात का अंदेशा था, आखिरकार वही हुआ. प्रमोद चार्टर्ड अकाउंटैंट था और आते ही उस की मां ने बढ़चढ़ कर बताया कि प्रमोद को सीए बनाने में उन्होंने कितने पापड़ बेले हैं.

सतीश ने कुछ देर तक उन का त्याग- मंडित भाषण सुना, फिर पूछ लिया, ‘‘देखिए मैडम, हर मातापिता अपने बच्चे को शिक्षा दिलाने के लिए कुछ न कुछ त्याग तो करते ही हैं. मैं ने भी अपने बच्चों की शिक्षा पर बहुत खर्च किया है. आप कहना क्या चाहती हैं, यह स्पष्ट बताइए.’’

प्रमोद की मां सकपका गईं. बात प्रमोद के मामा ने संभाली, ‘‘आप तो दुनियादार हैं सतीशजी. बेटे की शादी भी कर रखी है. आप को क्या बताना.’’

सतीश गंभीर हो गए, ‘‘अगर बात लेनदेन की कर रहे हैं तो मैं आप से कोई संबंध नहीं रखना चाहूंगा.’’

सतीश की आवाज इतनी तल्ख थी कि किसी की कुछ बोलने की हिम्मत ही नहीं पड़ी. इस के बाद बात बस, औपचारिक बन कर रह गई. उन के जाने के बाद सुरेखा अपने पति पर बरस पड़ीं, ‘‘लगता है, आप अपनी बेटी की शादी करना ही नहीं चाहते. आप का ऐसा रुख रहेगा, तो कौन आप से संबंध रखना चाहेगा भला?’’

सतीश ने अपनी पत्नी की तरफ निगाह डाली और शांत आवाज में कहा, ‘‘मैं ने अपनी बेटी को इसलिए नहीं पढ़ाया कि उस का रिश्ता ऐसे घर में करूं.’’

सुरेखा रोने लगीं, ‘‘आप पैसे के पीछे पागल हो गए हैं. अपनी बेटी की शादी में कौन पैसा खर्च नहीं करता.’’

सुरेखा के रोने का उन पर कोई असर नहीं पड़ा. वे वहां से चले गए. अचानक सुरेखा ने कंधे पर एक कोमल स्पर्श महसूस किया, आभा खड़ी थी. आभा धीरे से बोली, ‘‘मां, रोओ मत. पापा ने सही किया. मुझे खुद दहेज दे कर शादी नहीं करनी. मैं अपने लिए राह खुद बना लूंगी, तुम चिंता मत करो.’’

बेटी का आश्वासन भी सुरेखा को शांत न कर पाया.

6 महीने बाद आभा ने एक दिन सुरेखा से कहा, ‘‘मां, मैं किसी को आप से मिलवाना चाहती हूं.’’

सुरेखा को खटका लगा. पहली बार आभा उस से किसी को मिलवाने को कह रही है. कौन है?

शाम को आभा अपने से उम्र में काफी बड़े एक आदमी को घर ले कर आई, ‘‘मां, मेरे साथ काम करते हैं हरिहरण. बहुत बड़े साइंटिस्ट हैं और हम दोनों…’’

आभा की बात पूरी होने से पहले सुरेखा उसे खींच कर कमरे में ले गईं और बोलीं, ‘‘आभा, उम्र में इतने बड़े आदमी से…ऐसा क्यों कर रही है बेटी? ऊपर से साउथ इंडियन?’’

‘‘मां,’’ आभा ने सुरेखा का हाथ कस कर पकड़ लिया, ‘‘हरी बेहद सुलझे हुए और इंटेलिजैंट व्यक्ति हैं. आजकल नार्थसाउथ में क्या रखा है मां? तुम्हें भी तो इडलीसांभर पसंद है. क्या तुम होटल जा कर रसम और चावल नहीं खातीं? हरि को तो अपनी तरफ का राजमा, अरहर की दाल और आलू के परांठे बहुत पसंद हैं. हम दोनों एकदूसरे को अच्छे से जाननेसमझने लगे हैं. मैं उन के साथ बहुत खुश रहूंगी मां,’’ कहतेकहते आभा की आंखों में पानी भर आया. सुरेखा ने उसे गले से लगा लिया, ‘‘आभा, मेरे लिए तेरी खुशी से बढ़ कर और कुछ नहीं है बेटी. पर एक मां हूं न, क्या करूं, दिल नहीं मानता.’’

आभा की पसंद के बारे में सतीश ने कुछ कहा नहीं. उन्हें हरिहरण अच्छे लगे. आभा ने कोर्ट में जा कर शादी की. सुरेखा कहती रह गईं कि पार्टी होनी चाहिए, पर हरि ने हंस कर कहा, ‘‘मिसेज सतीश, आप पैसा क्यों खर्च करना चाहती हैं? वह भी दूसरों को खिलापिला कर. सेव इट फौर टुमारो.’’

तीनों बच्चे अपनी जिंदगी में रम गए. गाहेबगाहे आते तो कुछ लेने के बजाय बहुत कुछ दे जाते. सतीश अब पहले से कम बोलने लगे. अब उन्हें भी बच्चों की कमी खलने लगी थी.

ऐसे ही चुपचाप एक दिन रात को जो वे सोए तो सुबह उठे ही नहीं. पहला दिल का दौरा इतना तेज था कि उन के प्राण निकल गए. सुरेखा अकेली रह गईं. आभा महीना भर आ कर उन के पास रह गई, पर उस की भी नौकरी थी, जाना तो था ही. अमन भी आरुष का साथ देने अमेरिका पहुंच गया और वहीं जा कर बस गया.

इतने बड़े घर में सुरेखा अब अकेली पड़ गईं, सतीश की पैंशन, उन के कमाए पैसों और अपने गहनों के साथ. रहरह कर उस के मन में टीस उठती कि समय पर अगर बच्चों की मदद कर दी होती तो आज यह पैसा बोझ बन कर उन के दिल को ठेस न पहुंचाता.

अमन से जब भी वे अपने दिल की बात करतीं, वह तुरंत जवाब देता, ‘‘मां, तुम सब छोड़छाड़ कर यहां आ जाओ हमारे पास. सब साथ रहेंगे. मेरी बेटी बड़ी हो रही है. उसे तुम्हारा साथ चाहिए.’’

बहुत सोचसमझ कर सुरेखा ने अपनी जायदाद के 3 हिस्से किए और कागजात साइन करवाने अमन, आभा और आरुष के पास भेज दिए. सप्ताह भर बाद अमन की लंबी चिट्ठी आई. चिट्ठी में लिखा था, ‘‘मां, हमें वहां से कुछ नहीं चाहिए. हम तीनों बच्चों को आप ने बहुत कुछ दिया है. आप अपना पैसा जरूरतमंदों में बांट दीजिए, किसी अनाथालय के नाम कर दीजिए. शायद इस से पापा की आत्मा को भी शांति मिलेगी. और हां, देर मत कीजिए, जल्दी आइए. अब तो कम से कम हम सब को साथ वक्त बिताना चाहिए.’’

सुरेखा फूटफूट कर रोने लगीं. काश, आज यह दिन देखने के लिए सतीश जिंदा होते. जिस पैसे की खातिर सतीश अपने बच्चों से दूर हो गए, वह पैसा आज उन के किसी काम का रहा नहीं.

The post Father’s Day Special: दूरियां- क्यों हर औलाद को बुरा मानता था सतीश? appeared first on Sarita Magazine.

June 06, 2022 at 10:00AM

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