Thursday 9 June 2022

Father’s Day 2022: पिता का दर्द- सुकुमार के बेटे का क्या रहस्य था?

टैलीफोन की घंटी से सुकुमार का ध्यान भंग हुआ. रिसीवर उठा कर उन्होंने कहा, ‘‘हैलो.’’ ‘‘बाबा, मैं सुब्रत बोल रहा हूं,’’ उधर से आवाज आई. ‘‘हां बेटा, बोलो कैसे हो? बच्चे कैसे हैं? रश्मि कैसी है?’’ एक सांस में सुकुमार ने कई प्रश्न कर डाले. ‘‘बाबा, हम सब ठीक हैं. आप की तबीयत कैसी है?’’ ‘‘ठीक ही है, बेटा. अब इस उम्र में तबीयत का क्या है, कुछ न कुछ लगा ही रहता है. अब तो जिंदगी दवा के सहारे चल रही है. बेटा, बहुत दिन बाद आज मेरी याद आई है?’’ ‘‘बाबा, क्या करूं? इतनी व्यस्तता हो गई है कि समय ही नहीं मिल पाता. रोज ही सोचता हूं, फोन करूं परंतु किसी न किसी काम में व्यस्तता हो जाती है.’’ ‘‘सच कह रहे हो बेटा. जैसेजैसे तुम्हारी पदोन्नति होगी, जिम्मेदारियां भी बढ़ेंगी और व्यस्तता भी.’’ ‘‘बाबा, आप से एक बात कहना चाहता हूं, बुरा तो नहीं मानेंगे?’’

‘‘कहो न, बेटा, बुरा मानने की क्या बात है?’’ ‘‘मैं सोच रहा था, मां के चले जाने के बाद आप बिलकुल अकेले हो गए हैं. आप की तबीयत भी ठीक नहीं रहती है. हम लोग भी आप से मिलने कभीकभार ही कोलकाता आ पाते हैं. अगर आप ठीक समझें तो कोलकाता का मकान बेच कर आप भी अमेरिका चले आएं. यहां गुडि़या और राज के साथ आप का समय भी कट जाएगा और हम लोग भी आप की ओर से निश्ंिचत हो सकेंगे.’’ सुब्रत का प्रस्ताव सुकुमार को ठीक ही लगा. सोचने लगे, ‘नौकरी से रिटायर हुए 10 वर्ष बीत चुके हैं और कितने दिन चलूंगा. किसी दिन आंख बंद हो जाने पर सुब्रत मेरी अरथी को कंधा भी देने नहीं आ पाएगा.’ लिहाजा सुकुमार ने अपनी सहमति दे दी. सुकुमार ने पेपर में विज्ञापन दे कर मकान का सौदा कर लिया और निश्चित समय पर कोलकाता आ कर सुब्रत ने पैसों का लेनदेन कर लिया. पोस्ट औफिस से एमआईएस और बैंक में जो कुछ सुकुमार ने रखा था, उस का भी ड्राफ्ट सुब्रत ने अपने नाम से बनवा लिया. कोलकाता की संपत्ति बेचने के बाद वे लोग अमेरिका जाने के लिए तैयार थे.

निश्चित समय पर वे लोग दमदम एअरपोर्ट पर पहुंच गए. सुब्रत ने कहा, ‘‘बाबा, आप यहां सोफे पर बैठिए. मैं चैकइन कर के आता हूं, फिर आप को ले कर चलूंगा.’’ सोफे पर सुकुमार बैठ गए. उन का मन अतीत में खो गया. जिंदगी के एकएक पन्ने खुलने लगे. जिस मकान को इतने शौक से बनवाया था, उसे बेचते समय मन कचोट रहा था. सर्विस में रहते हुए सुकुमार ने पत्नी चंद्रा से कहा था, ‘तुम्हारी इच्छा हो तो कंपनी का क्वार्टर ले लेते हैं. आराम से रहेंगे,’ परंतु चंद्रा तैयार नहीं थी, कहने लगी, ‘आज हम आराम से रह लेंगे, परंतु रिटायर होने पर फिर तो फुटपाथ पर आना पड़ेगा. बच्चे कहां रहेंगे? चाहे जैसे भी हो, एक छोटामोटा मकान या फ्लैट कंपनी से ऋण ले कर ले लो. कम से कम बुढ़ापे में इधरउधर भटकना तो नहीं पड़ेगा.’

कितने शौक के साथ सुकुमार ने यह मकान बनवाया था. चंद्रा भी तो थोड़े ही दिन मकान में रह पाई. अचानक एक दिन रात को उस की तबीयत ज्यादा खराब हो गई. सुकुमार ने इलाज के लिए उसे अस्पताल में दाखिल करवाया था. उस के कई अंगों ने काम करना बंद कर दिया था. डाक्टरों की लाख कोशिशों के बाद भी चंद्रा को बचाया नहीं जा सका और उस ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया. चंद्रा की मौत के बाद सुब्रत और रश्मि कोलकाता आए और कुछ ही दिनों बाद वे वापस चले गए. उन के जाने के बाद इस बार सुकुमार बिलकुल अकेले हो गए थे. कहीं पर भी मन नहीं लगता था. इतने बड़े घर में अकेले रहना मानो घर काटने के लिए दौड़ता हो. खाना पकाने और झाड़ूपोंछा आदि के लिए एक महिला को पार्टटाइम रखा था, जो घर का सारा कामकाज करती थी.

अचानक सुकुमार का ध्यान भंग हुआ. उन्हें लगा कि काफी देर हो चुकी है. सुब्रत चैकइन कर के अभी तक आया नहीं था, घड़ी पर नजर डाली, तो लगभग 2 घंटे का समय निकल गया था. सुकुमार ने अमेरिका जाने वाली फ्लाइट के काउंटर पर जा कर पूछा, ‘‘मैडम, मेरा नाम सुकुमार बनर्जी है. मेरे बेटे का नाम सुब्रत बनर्जी है. हमें अमेरिका की फ्लाइट पकड़नी थी. वह चैकइन के लिए आया होगा?’’ काउंटर पर कार्यरत महिला ने यात्रियों की लिस्ट देख कर बताया, ‘‘जी हां, सुब्रत बनर्जी नाम के यात्री ने चैकइन किया था.

अमेरिका की फ्लाइट निकले हुए 1 घंटे से अधिक हो गया है.’’ ‘‘परंतु मैडम, उसी फ्लाइट से तो मुझे भी अमेरिका जाना था. ऐसा कैसे हो सकता है कि मुझे बिना लिए ही फ्लाइट चली गई?’’ ‘‘अंकलजी, जितने भी यात्री उस फ्लाइट में जाने वाले थे, सभी गए हैं. कोई यात्री छूटा नहीं है, अन्यथा हमारी ओर से घोषणा जरूर की जाती है,’’ महिला ने कहा. ‘‘तो क्या मुझे बिना लिए ही सुब्रत अमेरिका चला गया? इस का मतलब तो यह हुआ कि उस ने मेरा टिकट लिया ही नहीं था. यह कैसी जालसाजी है?’’

सुकुमार के पैरों तले मानो जमीन ही खिसक गई. वे सिर पकड़ कर सोफे पर बैठ गए. सोचने लगे, ‘सुब्रत क्या इतना निष्ठुर हो सकता है, जिस को पढ़ानेलिखाने में हम ने अपने जीवन के सुनहरे दिन न्योछावर कर दिए. हर तरह की कटौती कर के सुब्रत की पढ़ाईलिखाई में कोई भी कमी हम ने नहीं आने दी. लेदे कर सुब्रत हमारा इकलौता बेटा है. मैं और चंद्रा हमेशा ही उस की सुखसुविधा का खयाल रखते थे. आज जब मुझे उस के सहारे की जरूरत थी तो वह मुझे बेसहारा छोड़ कर धोखा दे गया.’ इसी उधेड़बुन में सुब्रत के बचपन की याद ताजा हो गई और एकएक दृश्य उन के मानसपटल पर प्रतिबिंबित होने लगा. बचपन से ही सुब्रत काफी मेधावी था. अपनी कक्षा में सदैव प्रथम आता. उस की पढ़ाई से सुकुमार और चंद्रा संतुष्ट थे. इसलिए दोनों अपना पूरा ध्यान सुब्रत और उस की पढ़ाई की ओर लगाते थे. उन का एक ही उद्देश्य था कि सुब्रत पढ़लिख कर एक कामयाब इंसान बने. सुब्रत परीक्षाओं में पोजिशन लाता गया और हायर सैकंड्री में तो वह मैरिट लिस्ट में आया. सरकार की ओर से छात्रवृत्ति मिलने पर वह आगे की पढ़ाई करने के लिए कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी जाना चाहता था. सुकुमार की इतनी सामर्थ्य नहीं थी कि उसे पढ़ने के लिए विदेश भेज सकें. सुब्रत को बाहर भेजने के चक्कर में सुकुमार ने क्याक्या पापड़ नहीं बेले? किस के सामने हाथ नहीं पसारे?

तब तो बस एक ही धुन सवार थी कि सुब्रत किसी तरह अमेरिका चला जाए. इसी बात को ले कर उन की छोटे भाई संदीप से झकझक भी हो गई थी. उस ने कोई भी सहायता करने से मना कर दिया था. कहने लगा, ‘जब सामर्थ्य नहीं है, तो क्यों विदेश भेज रहे हो? क्या अपने देश में पढ़ाई नहीं होती? यहां पढ़ कर क्या बच्चे नौकरी नहीं करते? अरे, जितनी चादर हो उतने ही पैर पसारने चाहिए. मैं तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकता.’ संदीप के आचरण से सुकुमार को काफी तकलीफ हुई. उन्होंने मन ही मन ठान लिया कि चाहे जो भी हो, अब मदद के लिए भाई के दरवाजे पर कदम नहीं रखेंगे. तभी से दोनों भाइयों के बीच एक कटुता आ गई थी और आपसी संबंध ही एक तरह से टूट गया. सुकुमार सोचने लगे कि चाहे जैसे भी हो, सुब्रत को बाहर भेजना ही है. कुछ सरकारी छात्रवृत्ति, कुछ पीएफ से ऋण और कुछ अन्य स्रोतों से व्यवस्था कर के आखिर में वे सुब्रत को विदेश भेजने में कामयाब हो गए. कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में भी सुब्रत का एकेडैमिक कैरियर उज्ज्वल रहा, जिस से वहीं पर उसे जौब भी मिल गई और वह अपना ध्यान वहीं लगाने लगा.

सिक्योरिटी कर्मचारी की आवाज सुन कर सुकुमार का ध्यान टूटा. वह पूछने लगा, ‘‘सर, आप को कहां जाना है? मैं देख रहा हूं, काफी समय से आप यहां पर बैठे हुए हैं?’’ ‘‘बेटा, मैं कहां जाऊंगा, यह तो मैं भी नहीं जानता. मुझे बेटे के साथ अमेरिका जाना था, परंतु वह तो मुझे छोड़ कर चला गया है. अब तकदीर मुझे जहां ले जाएगी वहीं जाना पड़ेगा.’’ इतना कह कर सुकुमार खड़े हो गए और सोचने लगे, ‘इस मुसीबत की घड़ी में किस के पास जाऊं? कौन मुझे सहारा देगा?’ उन्होंने दिमाग पर काफी जोर दिया, परंतु कुछ भी सूझ नहीं रहा था. चहलकदमी करते हुए वे एअरपोर्ट से बाहर निकल गए और बस पकड़ने के लिए आगे बढ़ते गए. अचानक उन के जेहन में बचपन के दोस्त दीपंकर की याद आई. दोनों साथसाथ स्कूल व कालेज में पढ़े थे और उन का आपस में पारिवारिक संबंध भी था. वे सोचने लगे, ‘क्या दीपंकर मेरी मदद करेगा? क्या उस ने मुझे माफ कर दिया होगा? वैसे मैं ने तो कोई अपराध नहीं किया था. सिर्फ सुब्रत के कैरियर की वजह से मैं दीपंकर की पत्नीमालिनी की बात नहीं मान सका.

‘मालिनी चाहती थी कि उन की बेटी देवयानी की शादी सुब्रत से हो जाए, ताकि वह अपनी आंखों के सामने बेटी का घर बसता देख ले. मालिनी को मालूम था कि उसे जो बीमारी लग गई है, अब वह ज्यादा दिन की मेहमान नहीं है. उस ने शादी का प्रस्ताव मेरे सामने रखा था परंतु उसी समय सुब्रत विदेश जाने की तैयारी कर रहा था, इसलिए यह प्रस्ताव उसे स्वीकार नहीं था और हम ने इतनी जल्दी में शादी करने से मना कर दिया था.’ फिर भी, दीपंकर के अलावा उसे कोई नहीं सूझ रहा था. सोचा, ‘चल कर देखने में हर्ज ही क्या है. हो सकता है, अब तक उस ने माफ कर दिया हो. उस के सामने रोऊंगागिड़गिड़ाऊंगा और अपनी मजबूरी बताऊंगा तो शायद उस का मन पिघल जाए. एक बार दीपंकर के घर चलता हूं, फिर जैसा होगा देखा जाएगा.’ यह सोचते हुए वे दीपंकर के घर की ओर चल दिए.

थोड़ी ही देर पश्चात दीपंकर के घर वे पहुंच गए और दरवाजे पर लगी कौल बैल का स्विच दबा दिया. कौल बैल की आवाज सुन कर दीपंकर की नौकरानी काजल ने दरवाजा खोला और पूछा, ‘‘किस से मिलना है?’’ ‘‘दीपंकर है घर में?’’ ‘‘जी हां, बाबू तो हैं घर में. पर आप कौन हैं?’’ ‘‘उन से कहो कि उन का दोस्त सुकुमार बनर्जी आया है.’’ काजल ने जा कर दीपंकर से कहा, ‘‘कोई सुकुमार बनर्जी नामक सज्जन आप से मिलना चाहते हैं. उन्होंने आप को अपना मित्र बताया है.’’ सुकुमार बनर्जी का नाम सुनते ही दीपंकर ने कहा, ‘‘उन्हें अंदर बुला कर सोफे पर बैठाओ.’’ जैसे ही दीपंकर ने ड्राइंगरूम में प्रवेश किया, सुकुमार के धैर्य का बांध टूट गया और वे फूटफूट कर रोने लगे. आंखों से अविरल अश्रुधारा बह रही थी. जबान नहीं खुल रही थी. उन का मन अपने बचपन के साथी के सामने जीभर कर रो लेने को कह रहा था. दीपंकर ने पास जा कर सुकुमार के कंधे पर हाथ रखते हुए पूछा, ‘‘सुकुमार, क्या बात है? इस तरह जारजार रोए जा रहे हो? यह क्या हालत बना रखी है?’’ सुकुमार की घिग्घी बंध गई. जबान से एक शब्द भी नहीं निकल रहा था.

था तो सिर्फ आंसुओं का सैलाब. दीपंकर ने पानी का गिलास पकड़ाते हुए कहा, ‘‘लो, पहले थोड़ा जल पियो. शांत हो. अब तुम मेरे पास हो, अपने जिगरी दोस्त के पास.’’ सुकुमार ने पानी का गिलास ले कर एक ही सांस में पूरा गिलास खाली कर दिया. उन्हें लगा कि उन का तनमन शीतल हो रहा है. तनाव भी धीरेधीरे कम हो रहा है और उन्होंने एक गहरी सांस ली. और बोल उठे, ‘‘यार, मैं क्या बताऊं तुझे. इस उम्र में आ कर मैं अपनों के द्वारा ही छला गया. मैं ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि मुझे इस प्रकार का दिन देखना पड़ेगा, जहां चारों तरफ सिर्फ अंधकार ही अंधकार है.’’ ‘‘मैं कुछ समझा नहीं. कुछ खोल कर भी बताओगे या इसी प्रकार सिर्फ पहेलियां ही बुझाते रहोगे. तुम्हारी हालत देख कर मेरे जेहन में तरहतरह के प्रश्न उठने लगे हैं.’’ इस के बाद सुकुमार ने सारी घटना दीपंकर के सामने बयां कर दी. दीपंकर ने गहरी सांस लेते हुए सुकुमार की एकएक बात बड़े ध्यान से सुनी. अब सुकुमार के इस हालत में पहुंचने का कारण स्पष्ट हो चुका था. दीपंकर कहने लगे, ‘‘यह कैसी विडंबना है?

जिस पिता ने अपने बेटे को पढ़ाने और एक अच्छा इंसान बनाने के लिए अपना सबकुछ दांव पर लगा दिया हो उस के साथ ऐसा सुलूक? उस को उच्च शिक्षा दिलाने के लिए अपनों से भी जिस ने संबंध खराब कर लिए, उसे ऐसा करते हुए जरा सा भी संकोच नहीं हुआ? क्या मांबाप इसी दिन के लिए अपने बच्चों को पालतेपोसते हैं कि उम्र के इस पड़ाव पर उन्हें धोखा मिले? आजकल के बच्चे कितने स्वार्थी हो गए हैं? मांबाप अपने 4 बच्चों को पालपोस कर, पढ़ालिखा कर कामयाब बनाते हैं, परंतु 4-4 बच्चे एक मांबाप की देखभाल नहीं कर सकते. जब उन्हें सहारे की जरूरत होती है तो बच्चे उन के साथ इस तरह का सुलूक करते हैं.’’

दीपंकर का मन ग्लानि से भर गया. सोचने लगे, इस से अच्छी तो लड़कियां होती हैं, जो पराए घर जा कर भी जीवनभर मांबाप के सुखदुख को बांटने की कोशिश करती हैं. उन्हें अपनी बेटी देवयानी की याद आ गई. दूर रहते हुए भी बाबा का हालचाल पूछे बगैर सोती नहीं. फोन पर ही एक हजार हिदायतें देती रहती है-बाबा, नाश्ता व भोजन समय पर कर लेना, दवा समयसमय पर लेते रहना, सुबहशाम पार्क में टहलना जरूर, सेहत का खयाल रखना, खाली समय का उपयोग पुस्तकें पढ़ कर, टीवी देख कर करना, आजकल क्रिकेट का मैच भी हो रहा है, उसे देखना… आदिआदि. सुकुमार कहने लगे, ‘‘दीपंकर, अब मैं क्या करूं, कहां जाऊं? कुछ समझ में नहीं आ रहा है. बेहतर हो मुझे किसी वृद्धाश्रम में भेज दो.’’ ‘‘क्या कह रहे हो, सुकुमार? मेरे रहते तुम्हें वृद्धाश्रम में जाने की जरूरत नहीं है. यहां मैं भी अकेला रहता हूं. शादी के बाद देवयानी के पूना चले जाने से मैं भी तो अकेला हो गया हूं. मेरी मदद करने के लिए काजल है, जो चौबीसों घंटे मेरे सुखदुख का खयाल रखती है. अच्छा है, तुम आ गए हो. अब हम दोनों का समय आराम से कट जाएगा. पुरानी बातें हमें जीवन जीने की प्रेरणा देंगी. मुझे उम्मीद है, तुम ना नहीं करोगे.’’ सुकुमार का सिर कृतज्ञता से झुक गया था. उन्हें लगा कि आकाश के गहन अंधकार में आशा की एक किरण दिखाई दे रही है.

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टैलीफोन की घंटी से सुकुमार का ध्यान भंग हुआ. रिसीवर उठा कर उन्होंने कहा, ‘‘हैलो.’’ ‘‘बाबा, मैं सुब्रत बोल रहा हूं,’’ उधर से आवाज आई. ‘‘हां बेटा, बोलो कैसे हो? बच्चे कैसे हैं? रश्मि कैसी है?’’ एक सांस में सुकुमार ने कई प्रश्न कर डाले. ‘‘बाबा, हम सब ठीक हैं. आप की तबीयत कैसी है?’’ ‘‘ठीक ही है, बेटा. अब इस उम्र में तबीयत का क्या है, कुछ न कुछ लगा ही रहता है. अब तो जिंदगी दवा के सहारे चल रही है. बेटा, बहुत दिन बाद आज मेरी याद आई है?’’ ‘‘बाबा, क्या करूं? इतनी व्यस्तता हो गई है कि समय ही नहीं मिल पाता. रोज ही सोचता हूं, फोन करूं परंतु किसी न किसी काम में व्यस्तता हो जाती है.’’ ‘‘सच कह रहे हो बेटा. जैसेजैसे तुम्हारी पदोन्नति होगी, जिम्मेदारियां भी बढ़ेंगी और व्यस्तता भी.’’ ‘‘बाबा, आप से एक बात कहना चाहता हूं, बुरा तो नहीं मानेंगे?’’

‘‘कहो न, बेटा, बुरा मानने की क्या बात है?’’ ‘‘मैं सोच रहा था, मां के चले जाने के बाद आप बिलकुल अकेले हो गए हैं. आप की तबीयत भी ठीक नहीं रहती है. हम लोग भी आप से मिलने कभीकभार ही कोलकाता आ पाते हैं. अगर आप ठीक समझें तो कोलकाता का मकान बेच कर आप भी अमेरिका चले आएं. यहां गुडि़या और राज के साथ आप का समय भी कट जाएगा और हम लोग भी आप की ओर से निश्ंिचत हो सकेंगे.’’ सुब्रत का प्रस्ताव सुकुमार को ठीक ही लगा. सोचने लगे, ‘नौकरी से रिटायर हुए 10 वर्ष बीत चुके हैं और कितने दिन चलूंगा. किसी दिन आंख बंद हो जाने पर सुब्रत मेरी अरथी को कंधा भी देने नहीं आ पाएगा.’ लिहाजा सुकुमार ने अपनी सहमति दे दी. सुकुमार ने पेपर में विज्ञापन दे कर मकान का सौदा कर लिया और निश्चित समय पर कोलकाता आ कर सुब्रत ने पैसों का लेनदेन कर लिया. पोस्ट औफिस से एमआईएस और बैंक में जो कुछ सुकुमार ने रखा था, उस का भी ड्राफ्ट सुब्रत ने अपने नाम से बनवा लिया. कोलकाता की संपत्ति बेचने के बाद वे लोग अमेरिका जाने के लिए तैयार थे.

निश्चित समय पर वे लोग दमदम एअरपोर्ट पर पहुंच गए. सुब्रत ने कहा, ‘‘बाबा, आप यहां सोफे पर बैठिए. मैं चैकइन कर के आता हूं, फिर आप को ले कर चलूंगा.’’ सोफे पर सुकुमार बैठ गए. उन का मन अतीत में खो गया. जिंदगी के एकएक पन्ने खुलने लगे. जिस मकान को इतने शौक से बनवाया था, उसे बेचते समय मन कचोट रहा था. सर्विस में रहते हुए सुकुमार ने पत्नी चंद्रा से कहा था, ‘तुम्हारी इच्छा हो तो कंपनी का क्वार्टर ले लेते हैं. आराम से रहेंगे,’ परंतु चंद्रा तैयार नहीं थी, कहने लगी, ‘आज हम आराम से रह लेंगे, परंतु रिटायर होने पर फिर तो फुटपाथ पर आना पड़ेगा. बच्चे कहां रहेंगे? चाहे जैसे भी हो, एक छोटामोटा मकान या फ्लैट कंपनी से ऋण ले कर ले लो. कम से कम बुढ़ापे में इधरउधर भटकना तो नहीं पड़ेगा.’

कितने शौक के साथ सुकुमार ने यह मकान बनवाया था. चंद्रा भी तो थोड़े ही दिन मकान में रह पाई. अचानक एक दिन रात को उस की तबीयत ज्यादा खराब हो गई. सुकुमार ने इलाज के लिए उसे अस्पताल में दाखिल करवाया था. उस के कई अंगों ने काम करना बंद कर दिया था. डाक्टरों की लाख कोशिशों के बाद भी चंद्रा को बचाया नहीं जा सका और उस ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया. चंद्रा की मौत के बाद सुब्रत और रश्मि कोलकाता आए और कुछ ही दिनों बाद वे वापस चले गए. उन के जाने के बाद इस बार सुकुमार बिलकुल अकेले हो गए थे. कहीं पर भी मन नहीं लगता था. इतने बड़े घर में अकेले रहना मानो घर काटने के लिए दौड़ता हो. खाना पकाने और झाड़ूपोंछा आदि के लिए एक महिला को पार्टटाइम रखा था, जो घर का सारा कामकाज करती थी.

अचानक सुकुमार का ध्यान भंग हुआ. उन्हें लगा कि काफी देर हो चुकी है. सुब्रत चैकइन कर के अभी तक आया नहीं था, घड़ी पर नजर डाली, तो लगभग 2 घंटे का समय निकल गया था. सुकुमार ने अमेरिका जाने वाली फ्लाइट के काउंटर पर जा कर पूछा, ‘‘मैडम, मेरा नाम सुकुमार बनर्जी है. मेरे बेटे का नाम सुब्रत बनर्जी है. हमें अमेरिका की फ्लाइट पकड़नी थी. वह चैकइन के लिए आया होगा?’’ काउंटर पर कार्यरत महिला ने यात्रियों की लिस्ट देख कर बताया, ‘‘जी हां, सुब्रत बनर्जी नाम के यात्री ने चैकइन किया था.

अमेरिका की फ्लाइट निकले हुए 1 घंटे से अधिक हो गया है.’’ ‘‘परंतु मैडम, उसी फ्लाइट से तो मुझे भी अमेरिका जाना था. ऐसा कैसे हो सकता है कि मुझे बिना लिए ही फ्लाइट चली गई?’’ ‘‘अंकलजी, जितने भी यात्री उस फ्लाइट में जाने वाले थे, सभी गए हैं. कोई यात्री छूटा नहीं है, अन्यथा हमारी ओर से घोषणा जरूर की जाती है,’’ महिला ने कहा. ‘‘तो क्या मुझे बिना लिए ही सुब्रत अमेरिका चला गया? इस का मतलब तो यह हुआ कि उस ने मेरा टिकट लिया ही नहीं था. यह कैसी जालसाजी है?’’

सुकुमार के पैरों तले मानो जमीन ही खिसक गई. वे सिर पकड़ कर सोफे पर बैठ गए. सोचने लगे, ‘सुब्रत क्या इतना निष्ठुर हो सकता है, जिस को पढ़ानेलिखाने में हम ने अपने जीवन के सुनहरे दिन न्योछावर कर दिए. हर तरह की कटौती कर के सुब्रत की पढ़ाईलिखाई में कोई भी कमी हम ने नहीं आने दी. लेदे कर सुब्रत हमारा इकलौता बेटा है. मैं और चंद्रा हमेशा ही उस की सुखसुविधा का खयाल रखते थे. आज जब मुझे उस के सहारे की जरूरत थी तो वह मुझे बेसहारा छोड़ कर धोखा दे गया.’ इसी उधेड़बुन में सुब्रत के बचपन की याद ताजा हो गई और एकएक दृश्य उन के मानसपटल पर प्रतिबिंबित होने लगा. बचपन से ही सुब्रत काफी मेधावी था. अपनी कक्षा में सदैव प्रथम आता. उस की पढ़ाई से सुकुमार और चंद्रा संतुष्ट थे. इसलिए दोनों अपना पूरा ध्यान सुब्रत और उस की पढ़ाई की ओर लगाते थे. उन का एक ही उद्देश्य था कि सुब्रत पढ़लिख कर एक कामयाब इंसान बने. सुब्रत परीक्षाओं में पोजिशन लाता गया और हायर सैकंड्री में तो वह मैरिट लिस्ट में आया. सरकार की ओर से छात्रवृत्ति मिलने पर वह आगे की पढ़ाई करने के लिए कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी जाना चाहता था. सुकुमार की इतनी सामर्थ्य नहीं थी कि उसे पढ़ने के लिए विदेश भेज सकें. सुब्रत को बाहर भेजने के चक्कर में सुकुमार ने क्याक्या पापड़ नहीं बेले? किस के सामने हाथ नहीं पसारे?

तब तो बस एक ही धुन सवार थी कि सुब्रत किसी तरह अमेरिका चला जाए. इसी बात को ले कर उन की छोटे भाई संदीप से झकझक भी हो गई थी. उस ने कोई भी सहायता करने से मना कर दिया था. कहने लगा, ‘जब सामर्थ्य नहीं है, तो क्यों विदेश भेज रहे हो? क्या अपने देश में पढ़ाई नहीं होती? यहां पढ़ कर क्या बच्चे नौकरी नहीं करते? अरे, जितनी चादर हो उतने ही पैर पसारने चाहिए. मैं तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकता.’ संदीप के आचरण से सुकुमार को काफी तकलीफ हुई. उन्होंने मन ही मन ठान लिया कि चाहे जो भी हो, अब मदद के लिए भाई के दरवाजे पर कदम नहीं रखेंगे. तभी से दोनों भाइयों के बीच एक कटुता आ गई थी और आपसी संबंध ही एक तरह से टूट गया. सुकुमार सोचने लगे कि चाहे जैसे भी हो, सुब्रत को बाहर भेजना ही है. कुछ सरकारी छात्रवृत्ति, कुछ पीएफ से ऋण और कुछ अन्य स्रोतों से व्यवस्था कर के आखिर में वे सुब्रत को विदेश भेजने में कामयाब हो गए. कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में भी सुब्रत का एकेडैमिक कैरियर उज्ज्वल रहा, जिस से वहीं पर उसे जौब भी मिल गई और वह अपना ध्यान वहीं लगाने लगा.

सिक्योरिटी कर्मचारी की आवाज सुन कर सुकुमार का ध्यान टूटा. वह पूछने लगा, ‘‘सर, आप को कहां जाना है? मैं देख रहा हूं, काफी समय से आप यहां पर बैठे हुए हैं?’’ ‘‘बेटा, मैं कहां जाऊंगा, यह तो मैं भी नहीं जानता. मुझे बेटे के साथ अमेरिका जाना था, परंतु वह तो मुझे छोड़ कर चला गया है. अब तकदीर मुझे जहां ले जाएगी वहीं जाना पड़ेगा.’’ इतना कह कर सुकुमार खड़े हो गए और सोचने लगे, ‘इस मुसीबत की घड़ी में किस के पास जाऊं? कौन मुझे सहारा देगा?’ उन्होंने दिमाग पर काफी जोर दिया, परंतु कुछ भी सूझ नहीं रहा था. चहलकदमी करते हुए वे एअरपोर्ट से बाहर निकल गए और बस पकड़ने के लिए आगे बढ़ते गए. अचानक उन के जेहन में बचपन के दोस्त दीपंकर की याद आई. दोनों साथसाथ स्कूल व कालेज में पढ़े थे और उन का आपस में पारिवारिक संबंध भी था. वे सोचने लगे, ‘क्या दीपंकर मेरी मदद करेगा? क्या उस ने मुझे माफ कर दिया होगा? वैसे मैं ने तो कोई अपराध नहीं किया था. सिर्फ सुब्रत के कैरियर की वजह से मैं दीपंकर की पत्नीमालिनी की बात नहीं मान सका.

‘मालिनी चाहती थी कि उन की बेटी देवयानी की शादी सुब्रत से हो जाए, ताकि वह अपनी आंखों के सामने बेटी का घर बसता देख ले. मालिनी को मालूम था कि उसे जो बीमारी लग गई है, अब वह ज्यादा दिन की मेहमान नहीं है. उस ने शादी का प्रस्ताव मेरे सामने रखा था परंतु उसी समय सुब्रत विदेश जाने की तैयारी कर रहा था, इसलिए यह प्रस्ताव उसे स्वीकार नहीं था और हम ने इतनी जल्दी में शादी करने से मना कर दिया था.’ फिर भी, दीपंकर के अलावा उसे कोई नहीं सूझ रहा था. सोचा, ‘चल कर देखने में हर्ज ही क्या है. हो सकता है, अब तक उस ने माफ कर दिया हो. उस के सामने रोऊंगागिड़गिड़ाऊंगा और अपनी मजबूरी बताऊंगा तो शायद उस का मन पिघल जाए. एक बार दीपंकर के घर चलता हूं, फिर जैसा होगा देखा जाएगा.’ यह सोचते हुए वे दीपंकर के घर की ओर चल दिए.

थोड़ी ही देर पश्चात दीपंकर के घर वे पहुंच गए और दरवाजे पर लगी कौल बैल का स्विच दबा दिया. कौल बैल की आवाज सुन कर दीपंकर की नौकरानी काजल ने दरवाजा खोला और पूछा, ‘‘किस से मिलना है?’’ ‘‘दीपंकर है घर में?’’ ‘‘जी हां, बाबू तो हैं घर में. पर आप कौन हैं?’’ ‘‘उन से कहो कि उन का दोस्त सुकुमार बनर्जी आया है.’’ काजल ने जा कर दीपंकर से कहा, ‘‘कोई सुकुमार बनर्जी नामक सज्जन आप से मिलना चाहते हैं. उन्होंने आप को अपना मित्र बताया है.’’ सुकुमार बनर्जी का नाम सुनते ही दीपंकर ने कहा, ‘‘उन्हें अंदर बुला कर सोफे पर बैठाओ.’’ जैसे ही दीपंकर ने ड्राइंगरूम में प्रवेश किया, सुकुमार के धैर्य का बांध टूट गया और वे फूटफूट कर रोने लगे. आंखों से अविरल अश्रुधारा बह रही थी. जबान नहीं खुल रही थी. उन का मन अपने बचपन के साथी के सामने जीभर कर रो लेने को कह रहा था. दीपंकर ने पास जा कर सुकुमार के कंधे पर हाथ रखते हुए पूछा, ‘‘सुकुमार, क्या बात है? इस तरह जारजार रोए जा रहे हो? यह क्या हालत बना रखी है?’’ सुकुमार की घिग्घी बंध गई. जबान से एक शब्द भी नहीं निकल रहा था.

था तो सिर्फ आंसुओं का सैलाब. दीपंकर ने पानी का गिलास पकड़ाते हुए कहा, ‘‘लो, पहले थोड़ा जल पियो. शांत हो. अब तुम मेरे पास हो, अपने जिगरी दोस्त के पास.’’ सुकुमार ने पानी का गिलास ले कर एक ही सांस में पूरा गिलास खाली कर दिया. उन्हें लगा कि उन का तनमन शीतल हो रहा है. तनाव भी धीरेधीरे कम हो रहा है और उन्होंने एक गहरी सांस ली. और बोल उठे, ‘‘यार, मैं क्या बताऊं तुझे. इस उम्र में आ कर मैं अपनों के द्वारा ही छला गया. मैं ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि मुझे इस प्रकार का दिन देखना पड़ेगा, जहां चारों तरफ सिर्फ अंधकार ही अंधकार है.’’ ‘‘मैं कुछ समझा नहीं. कुछ खोल कर भी बताओगे या इसी प्रकार सिर्फ पहेलियां ही बुझाते रहोगे. तुम्हारी हालत देख कर मेरे जेहन में तरहतरह के प्रश्न उठने लगे हैं.’’ इस के बाद सुकुमार ने सारी घटना दीपंकर के सामने बयां कर दी. दीपंकर ने गहरी सांस लेते हुए सुकुमार की एकएक बात बड़े ध्यान से सुनी. अब सुकुमार के इस हालत में पहुंचने का कारण स्पष्ट हो चुका था. दीपंकर कहने लगे, ‘‘यह कैसी विडंबना है?

जिस पिता ने अपने बेटे को पढ़ाने और एक अच्छा इंसान बनाने के लिए अपना सबकुछ दांव पर लगा दिया हो उस के साथ ऐसा सुलूक? उस को उच्च शिक्षा दिलाने के लिए अपनों से भी जिस ने संबंध खराब कर लिए, उसे ऐसा करते हुए जरा सा भी संकोच नहीं हुआ? क्या मांबाप इसी दिन के लिए अपने बच्चों को पालतेपोसते हैं कि उम्र के इस पड़ाव पर उन्हें धोखा मिले? आजकल के बच्चे कितने स्वार्थी हो गए हैं? मांबाप अपने 4 बच्चों को पालपोस कर, पढ़ालिखा कर कामयाब बनाते हैं, परंतु 4-4 बच्चे एक मांबाप की देखभाल नहीं कर सकते. जब उन्हें सहारे की जरूरत होती है तो बच्चे उन के साथ इस तरह का सुलूक करते हैं.’’

दीपंकर का मन ग्लानि से भर गया. सोचने लगे, इस से अच्छी तो लड़कियां होती हैं, जो पराए घर जा कर भी जीवनभर मांबाप के सुखदुख को बांटने की कोशिश करती हैं. उन्हें अपनी बेटी देवयानी की याद आ गई. दूर रहते हुए भी बाबा का हालचाल पूछे बगैर सोती नहीं. फोन पर ही एक हजार हिदायतें देती रहती है-बाबा, नाश्ता व भोजन समय पर कर लेना, दवा समयसमय पर लेते रहना, सुबहशाम पार्क में टहलना जरूर, सेहत का खयाल रखना, खाली समय का उपयोग पुस्तकें पढ़ कर, टीवी देख कर करना, आजकल क्रिकेट का मैच भी हो रहा है, उसे देखना… आदिआदि. सुकुमार कहने लगे, ‘‘दीपंकर, अब मैं क्या करूं, कहां जाऊं? कुछ समझ में नहीं आ रहा है. बेहतर हो मुझे किसी वृद्धाश्रम में भेज दो.’’ ‘‘क्या कह रहे हो, सुकुमार? मेरे रहते तुम्हें वृद्धाश्रम में जाने की जरूरत नहीं है. यहां मैं भी अकेला रहता हूं. शादी के बाद देवयानी के पूना चले जाने से मैं भी तो अकेला हो गया हूं. मेरी मदद करने के लिए काजल है, जो चौबीसों घंटे मेरे सुखदुख का खयाल रखती है. अच्छा है, तुम आ गए हो. अब हम दोनों का समय आराम से कट जाएगा. पुरानी बातें हमें जीवन जीने की प्रेरणा देंगी. मुझे उम्मीद है, तुम ना नहीं करोगे.’’ सुकुमार का सिर कृतज्ञता से झुक गया था. उन्हें लगा कि आकाश के गहन अंधकार में आशा की एक किरण दिखाई दे रही है.

The post Father’s Day 2022: पिता का दर्द- सुकुमार के बेटे का क्या रहस्य था? appeared first on Sarita Magazine.

June 10, 2022 at 09:00AM

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