Wednesday 8 June 2022

Father’s Day 2022: नया साथी- पिता के अकेलेपन से क्यों परेशान हो गया आलोक?

कानपुर की चौड़ी सड़क पर आलोक की टैक्सी भाग रही थी. शायद आधे घंटे में वह अपने घर पहुंच जाएगा. आधा जागा शहर रात के 12 बजे भी. उसे लगता था जैसे यह जगार उस के स्वागत हेतु ही थी. आलोक 8 साल पहले इस शहर को छोड़ कर कनाडा जा बसा था. 1 साल पहले वह मां की मृत्यु के बाद जब यहां आया था तब भी यह शहर उसे ऐसा ही लगा था. आज भी सबकुछ उसी तरह है…सोचतेसोचते उस की टैक्सी घर के दरवाजे पर रुक गई.

पापा इमरजैंसी लाइट ले कर उस का इंतजार कर रहे थे. पापा को आधी रात में यों खड़े देख आलोक की आंखें उमड़ आईं. सामान ले कर अंदर आ गया. पैर छुए तो पापा ने झुक कर उठाया और छाती से लगा लिया. अंधेरे में ही उसे आभास हुआ कि कोई स्त्री पापा के समीप खड़ी है. उस के हाथ में भी इमरजैंसी लाइट थी. शायद कोई रिश्तेदार होगी, वह यह सोच ही रहा था कि लाइट आ गई. पूरे उजाले में स्त्री को वह साफ देख पा रहा था. अभिवादन के लिए आलोक के हाथ उठ गए.

‘‘अरे, ये तो प्रीतो आंटी हैं,’’ चौंक पड़ा था.

अचानक पत्रों का वह सिलसिला याद आ गया, ताऊजी का वह पत्र- ‘आलोक, तेरा बाप न जाने किस आवारा विधवा को घर ले आया है. तेरी मां की मृत्यु को अभी साल ही हुआ है. क्या औरत के बिना वह रह नहीं सकता? थू है बुढ़ापे की ऐसी जवानी को. तू आ कर अपनी आंखों से बाप की करतूतों को देख ले.’

दूसरा पत्र – शिबू मामा का- ‘अरे, उस दो टके की आवारा सरदारनी को घर ले आया है तेरा बाप. उस की नजरें सिर्फ तेरे पिता की प्रौपर्टी पर हैं. आ कर संभाल अपने बाप और अपनी प्रौपर्टी, दोनों को.’ और भी कई रिश्तेदारों के पत्रों ने उस की रातों की नींदें उड़ा दी थीं. तभी तो वह भागाभागा इंडिया आया. ‘ओह, तो यही वह सरदारनी है जिस को ले कर पापा पर तोहमतों के टोकरे पलटे जा रहे हैं. यही स्त्री पापा के हितैषियों की आंख की किरकिरी बनी हुई है. ठीक है, सबकुछ समझना होगा,’ वह सोचता रहा.

‘‘बेटा, इधर आओ. वहीं पर खड़ेखड़े क्या सोच रहे हो?’’ पापा ने कहा तो वह अंदर के कमरे में गया.

पापा के आग्रह पर थोड़ा खापी कर वह मां के कमरे में पलंग पर पसर गया. ऐसा लगा जैसे वह मां के बिस्तर पर नहीं, उन के अंक में पसरा हुआ है. मां के तन की सुवास से लिपटा वह न जाने कब सो गया, उसे पता ही न लगा. बड़ी सुबह नींद खुली. वस्तुस्थिति को पहचानते हुए आलोक ने पास के कमरे से आती आवाजों पर कान लगा दिए. पापा व प्रीतो आंटी सिटिंगरूम में बातचीत कर रहे थे. ‘‘आलोक यहां बेवजह नहीं आया. जरूर कोई कारण है जो वह यहां आया है,’’ ये पापा थे, ‘‘जरूर वह मेरी परेशानियों को भांप गया है. आखिर है तो मेरा बेटा.’’

‘‘यह हो सकता है प्रोफैसर साहब कि आप के किसी रिश्तेदार ने उसे बुलाया हो?’’

‘‘हां प्रीतो जी, यह भी संभव है,’’ पापा को लगा प्रीतो आंटी का अंदाजा सही है.

‘‘देखा जाए तो मेरे यहां आ जाने से सब से ज्यादा परेशानी आप के रिश्तेदारों को हो रही है,  प्रोफैसर साहब,’’ प्रीतो आंटी ने कहा. उम्र और अनुभव के आधार पर यह सोच कितनी सही थी. प्रीतो आंटी और पापा दोनों की इस सोच पर आलोक मुसकरा पड़ा था. प्रीतो आंटी ने कहा, ‘‘यह जानना जरूरी है कि हम दोनों की इस नई सोच को ले कर बेटा क्या विचार रखता है.’’ पापा ने कहा, ‘‘देखो, बेटा मेरा बहुत समझदार है. फिर भी बिना बेटे की सम्मति के मैं आप के साथ संबंध न बना पाऊंगा. मेरे जीवन में वही मेरा एकमात्र मित्र, हितैषी व सलाहकार है. वैसे तो अपने किसी भी निर्णय में मैं किसी की टोकाटाकी पसंद नहीं करता किंतु इस निर्णय पर बेटे की मुहर जरूरी है.’’ पापा के इस निर्णय ने आलोक को गर्व से भर दिया था. उस के पिता के लिए पुत्र की क्या कीमत है, यह जान कर वह अति प्रसन्न था. वैसे आलोक, पूर्वानुमान के अनुसार इस संबंध में काफी होमवर्क कर के चला था.

वह बिस्तर पर लेटालेटा सोच रहा था, ‘कनाडा में मिस्टर सेन, जो उस के मकानमालिक थे, ने 8 महीने पहले पत्नी को खोया था. घर में निपट अकेले मिस्टर सेन, सारा दिन चुपचाप बरामदे में कुरसी डाल कर बैठे सामने के पार्क में खेलने वाले बच्चों को देख कर दिन बिताते थे. उन के दोनों बेटे शहर में थे किंतु उन से मिलने कोई न आता. मिस्टर सेन को यों बैठे देख आलोक को इंडिया में रह रहे अपने पिता का खयाल आता- ‘पापा भी शायद ऐसे ही बेहद उदास व अकेले दिन काटते होंगे. उन से कौन मिलने आता होगा?’ इस सर्द दर्द को वह अंदर ही अंदर पीता था. सोचता, ‘पापा के दर्द को, अकेलेपन को दूर करने का रास्ता कैसे खोजूं?’ प्रीतो आंटी और पापा अभी भी बातें कर रहे थे- ‘‘आप सच कहते हैं, प्रोफैसर साहब. आलोक 10 वर्ष से कनाडा में रह रहा है, वहां भी बूढ़ों को ले कर समस्याएं जरूर होंगी. सुना है वहां तो ओल्डएज होम हैं. जवान बच्चे अपने बूढ़े मांबाप को वहां भेज देते हैं. वे अपनी फैमिली में कोई खलल नहीं चाहते.’’

‘‘उफ, बड़ी दयनीय स्थिति होती है वहां बूढ़ों की,’’ पापा ने लंबी सांस खींची थी.

यह सुन कर आलोक को लगा कि पापा ठीक कहते हैं. यही सच है. किंतु प्रीतो आंटी पापा के संपर्क में कैसे आईं? और क्यों? यह जानना जरूरी है. काफी तो जान लिया लेकिन अब प्रीतो आंटी के बारे में जानना है. वैसे, जितना वह जानता है उस दृष्टि से प्रीतो आंटी एक बेहद सुलझी, समझदार स्त्री हैं. उन के पति पापा के साथ कालेज में प्रोफैसर थे. शादी के 10 वर्ष तक बच्चे नहीं हुए. अपने भतीजों को ही अपने बच्चों की तरह पाला. इस महल्ले के सारे बच्चे उन से ट्यूशंस पढ़ते थे. आलोक ने भी उन से मैथ्स पढ़ी थी. महल्ले के सारे लोग उन की इज्जत करते थे. सुना था, 2 वर्ष पूर्व उन के पति की अचानक मृत्यु हो गई थी. इस के बाद क्या हुआ, नहीं पता. वैसे उन का संयुक्त परिवार था. वह जानता था कि पापा के प्रीतो आंटी को ले कर ऐसा कुछ भी न किया होगा जिस से समाज के सामने लज्जित होना पड़े. वह अपने पापा को बचपन से जानता है. हां, समाज विरोधी व स्त्री विरोधी व्यक्तियों से वे हमेशा दूर रहते हैं. फ्रैश हो कर आलोक अपने पिता के पास आ बैठा. वैसे भी उसे भूख लगी थी, बिना झिझक आंटी से बोला, ‘‘आंटी, मुझे आलू के परांठे और लस्सी चाहिए,’’  आंटी के किचन की तरफ जाते ही उस ने पापा से पूछा, ‘‘ये आंटी से आप की मुलाकात कैसे हुई?’’

‘‘हुआ यह था कि 22 दिसंबर को रात 10 बजे मैं कालेज के किसी जलसे से लौट रहा था. रोड पर अंधेरा था. मुझे लगा कि कुछ लोग किसी महिला को पीट कर सड़क पर छोड़ गए हैं. गाड़ी की हैडलाइट में दिखा कि महिला या तो बेहोश थी या फिर खत्म हो गई थी. मैं ने देर न की, उसे गाड़ी में डाल कर हौस्पिटल ले गया. मैं प्रीतो जी को पहचानता था. इसीलिए मैं ने उन के घर पर फोन किया तो जवाब आया, ‘प्रीतो तो मर गई.’ फिर भला कौन बताता कि उन के साथ क्या गुजरी है.  प्रीतो तो बताने को तैयार ही न थी. ‘‘मैं संकट में पड़ गया. हौस्पिटल से डिस्चार्ज होने के समय उन्होंने हाथ जोड़ कर रोते हुए कहा, ‘मैं तो दुनिया के लिए मर चुकी हूं. आप मुझे किसी विधवा आश्रम या वृद्धाश्रम में छोड़ दें,’’’ यह बात सुनातेसुनाते पापा की आंखें भर आईं. वे आगे बोले, ‘‘बाद में, मैं ने निश्चय किया कि किसी मजबूर स्त्री को नरक में ढकेलने से अच्छा है कि उसे अपनी शरण में ले लूं.

‘‘धीरेधीरे प्रीतो जी ने बताया, ‘हमारा संयुक्त परिवार था. बड़ेबूढ़ों की मृत्यु हो गई और जवान लड़के जिन को मैं ने बचपन में पालापोसा था, पैसेप्रौपर्टी के पीछे एकदूसरे के खून के प्यासे हो गए. उस दिन मुझे मारपीट कर सड़क पर फेंक गए. उन्होंने सोचा, शायद मैं मर गई हूं. आप न होते तो शायद गाड़ी के नीचे आ कर क्या होता, पता नहीं…’ यह है प्रीतो के जीवन का सच. बोलो बेटा, तुम क्या कहते हो?’’ आलोक शांत था. कुछ सोच कर बोलना शुरू किया, ‘‘पापा, आप ने जो किया वह एकदम सही किया. ठीक किया जो आप ने शरणागत को सहारा दिया. मुझे याद है, बचपन में आप कहानियों के द्वारा बताते थे कि अमर्यादित लोग भ्रष्ट होते हैं. वे छलकपट कर के कुछ समय का सुख पा लेते हैं. किंतु वही भ्रष्टता एक दिन उन को नष्ट कर देती है. दूसरी ओर मर्यादित लोग समाज में हर अत्याचार का विरोध करते हैं. स्त्री अत्याचार के विरोध में  हमारा समाज सदा ही साथ खड़ा रहा है.

‘‘आप ने प्रीतो आंटी को सहारा दे कर एक नेक काम किया है. आप ने कोई दुराचार नहीं किया. बदलते सामाजिक परिवेश के अनुसार जरूरत पड़ने पर परिवर्तन लाना जरूरी है. ‘टूटते संयुक्त परिवार के कारण आज बूढ़ों की दुर्दशा देखी नहीं जाती. यदि आप दोनों साथ रह कर एकदूसरे के दुखसुख में साथ देना चाहते हैं तो इस में समाज को कोई भी आपत्ति नहीं होनी चाहिए. यह तो इस उम्र की एक ज्वलंत समस्या का बड़ा सरल व मधुर तरीका है.’’

आलोक खुश था, ‘‘पापा, मैं आप को ले कर कनाडा में बहुत दुखी रहता हूं पर अब प्रीतो आंटी का साथ होगा तो मुझे भी चिंता न होगी.’’ उस ने आहट पा कर पीछे देखा, प्रीतो आंटी मुसकरा कर आलू के परांठे और लस्सी की ट्रे लिए खड़ी थीं.

पापा ने भी खुशी में कहा, ‘‘अरे, मेरे परांठे…आज तो नई भोर हुई है, पार्टी तो बनती है,’’ और तीनों हंस पड़े.

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कानपुर की चौड़ी सड़क पर आलोक की टैक्सी भाग रही थी. शायद आधे घंटे में वह अपने घर पहुंच जाएगा. आधा जागा शहर रात के 12 बजे भी. उसे लगता था जैसे यह जगार उस के स्वागत हेतु ही थी. आलोक 8 साल पहले इस शहर को छोड़ कर कनाडा जा बसा था. 1 साल पहले वह मां की मृत्यु के बाद जब यहां आया था तब भी यह शहर उसे ऐसा ही लगा था. आज भी सबकुछ उसी तरह है…सोचतेसोचते उस की टैक्सी घर के दरवाजे पर रुक गई.

पापा इमरजैंसी लाइट ले कर उस का इंतजार कर रहे थे. पापा को आधी रात में यों खड़े देख आलोक की आंखें उमड़ आईं. सामान ले कर अंदर आ गया. पैर छुए तो पापा ने झुक कर उठाया और छाती से लगा लिया. अंधेरे में ही उसे आभास हुआ कि कोई स्त्री पापा के समीप खड़ी है. उस के हाथ में भी इमरजैंसी लाइट थी. शायद कोई रिश्तेदार होगी, वह यह सोच ही रहा था कि लाइट आ गई. पूरे उजाले में स्त्री को वह साफ देख पा रहा था. अभिवादन के लिए आलोक के हाथ उठ गए.

‘‘अरे, ये तो प्रीतो आंटी हैं,’’ चौंक पड़ा था.

अचानक पत्रों का वह सिलसिला याद आ गया, ताऊजी का वह पत्र- ‘आलोक, तेरा बाप न जाने किस आवारा विधवा को घर ले आया है. तेरी मां की मृत्यु को अभी साल ही हुआ है. क्या औरत के बिना वह रह नहीं सकता? थू है बुढ़ापे की ऐसी जवानी को. तू आ कर अपनी आंखों से बाप की करतूतों को देख ले.’

दूसरा पत्र – शिबू मामा का- ‘अरे, उस दो टके की आवारा सरदारनी को घर ले आया है तेरा बाप. उस की नजरें सिर्फ तेरे पिता की प्रौपर्टी पर हैं. आ कर संभाल अपने बाप और अपनी प्रौपर्टी, दोनों को.’ और भी कई रिश्तेदारों के पत्रों ने उस की रातों की नींदें उड़ा दी थीं. तभी तो वह भागाभागा इंडिया आया. ‘ओह, तो यही वह सरदारनी है जिस को ले कर पापा पर तोहमतों के टोकरे पलटे जा रहे हैं. यही स्त्री पापा के हितैषियों की आंख की किरकिरी बनी हुई है. ठीक है, सबकुछ समझना होगा,’ वह सोचता रहा.

‘‘बेटा, इधर आओ. वहीं पर खड़ेखड़े क्या सोच रहे हो?’’ पापा ने कहा तो वह अंदर के कमरे में गया.

पापा के आग्रह पर थोड़ा खापी कर वह मां के कमरे में पलंग पर पसर गया. ऐसा लगा जैसे वह मां के बिस्तर पर नहीं, उन के अंक में पसरा हुआ है. मां के तन की सुवास से लिपटा वह न जाने कब सो गया, उसे पता ही न लगा. बड़ी सुबह नींद खुली. वस्तुस्थिति को पहचानते हुए आलोक ने पास के कमरे से आती आवाजों पर कान लगा दिए. पापा व प्रीतो आंटी सिटिंगरूम में बातचीत कर रहे थे. ‘‘आलोक यहां बेवजह नहीं आया. जरूर कोई कारण है जो वह यहां आया है,’’ ये पापा थे, ‘‘जरूर वह मेरी परेशानियों को भांप गया है. आखिर है तो मेरा बेटा.’’

‘‘यह हो सकता है प्रोफैसर साहब कि आप के किसी रिश्तेदार ने उसे बुलाया हो?’’

‘‘हां प्रीतो जी, यह भी संभव है,’’ पापा को लगा प्रीतो आंटी का अंदाजा सही है.

‘‘देखा जाए तो मेरे यहां आ जाने से सब से ज्यादा परेशानी आप के रिश्तेदारों को हो रही है,  प्रोफैसर साहब,’’ प्रीतो आंटी ने कहा. उम्र और अनुभव के आधार पर यह सोच कितनी सही थी. प्रीतो आंटी और पापा दोनों की इस सोच पर आलोक मुसकरा पड़ा था. प्रीतो आंटी ने कहा, ‘‘यह जानना जरूरी है कि हम दोनों की इस नई सोच को ले कर बेटा क्या विचार रखता है.’’ पापा ने कहा, ‘‘देखो, बेटा मेरा बहुत समझदार है. फिर भी बिना बेटे की सम्मति के मैं आप के साथ संबंध न बना पाऊंगा. मेरे जीवन में वही मेरा एकमात्र मित्र, हितैषी व सलाहकार है. वैसे तो अपने किसी भी निर्णय में मैं किसी की टोकाटाकी पसंद नहीं करता किंतु इस निर्णय पर बेटे की मुहर जरूरी है.’’ पापा के इस निर्णय ने आलोक को गर्व से भर दिया था. उस के पिता के लिए पुत्र की क्या कीमत है, यह जान कर वह अति प्रसन्न था. वैसे आलोक, पूर्वानुमान के अनुसार इस संबंध में काफी होमवर्क कर के चला था.

वह बिस्तर पर लेटालेटा सोच रहा था, ‘कनाडा में मिस्टर सेन, जो उस के मकानमालिक थे, ने 8 महीने पहले पत्नी को खोया था. घर में निपट अकेले मिस्टर सेन, सारा दिन चुपचाप बरामदे में कुरसी डाल कर बैठे सामने के पार्क में खेलने वाले बच्चों को देख कर दिन बिताते थे. उन के दोनों बेटे शहर में थे किंतु उन से मिलने कोई न आता. मिस्टर सेन को यों बैठे देख आलोक को इंडिया में रह रहे अपने पिता का खयाल आता- ‘पापा भी शायद ऐसे ही बेहद उदास व अकेले दिन काटते होंगे. उन से कौन मिलने आता होगा?’ इस सर्द दर्द को वह अंदर ही अंदर पीता था. सोचता, ‘पापा के दर्द को, अकेलेपन को दूर करने का रास्ता कैसे खोजूं?’ प्रीतो आंटी और पापा अभी भी बातें कर रहे थे- ‘‘आप सच कहते हैं, प्रोफैसर साहब. आलोक 10 वर्ष से कनाडा में रह रहा है, वहां भी बूढ़ों को ले कर समस्याएं जरूर होंगी. सुना है वहां तो ओल्डएज होम हैं. जवान बच्चे अपने बूढ़े मांबाप को वहां भेज देते हैं. वे अपनी फैमिली में कोई खलल नहीं चाहते.’’

‘‘उफ, बड़ी दयनीय स्थिति होती है वहां बूढ़ों की,’’ पापा ने लंबी सांस खींची थी.

यह सुन कर आलोक को लगा कि पापा ठीक कहते हैं. यही सच है. किंतु प्रीतो आंटी पापा के संपर्क में कैसे आईं? और क्यों? यह जानना जरूरी है. काफी तो जान लिया लेकिन अब प्रीतो आंटी के बारे में जानना है. वैसे, जितना वह जानता है उस दृष्टि से प्रीतो आंटी एक बेहद सुलझी, समझदार स्त्री हैं. उन के पति पापा के साथ कालेज में प्रोफैसर थे. शादी के 10 वर्ष तक बच्चे नहीं हुए. अपने भतीजों को ही अपने बच्चों की तरह पाला. इस महल्ले के सारे बच्चे उन से ट्यूशंस पढ़ते थे. आलोक ने भी उन से मैथ्स पढ़ी थी. महल्ले के सारे लोग उन की इज्जत करते थे. सुना था, 2 वर्ष पूर्व उन के पति की अचानक मृत्यु हो गई थी. इस के बाद क्या हुआ, नहीं पता. वैसे उन का संयुक्त परिवार था. वह जानता था कि पापा के प्रीतो आंटी को ले कर ऐसा कुछ भी न किया होगा जिस से समाज के सामने लज्जित होना पड़े. वह अपने पापा को बचपन से जानता है. हां, समाज विरोधी व स्त्री विरोधी व्यक्तियों से वे हमेशा दूर रहते हैं. फ्रैश हो कर आलोक अपने पिता के पास आ बैठा. वैसे भी उसे भूख लगी थी, बिना झिझक आंटी से बोला, ‘‘आंटी, मुझे आलू के परांठे और लस्सी चाहिए,’’  आंटी के किचन की तरफ जाते ही उस ने पापा से पूछा, ‘‘ये आंटी से आप की मुलाकात कैसे हुई?’’

‘‘हुआ यह था कि 22 दिसंबर को रात 10 बजे मैं कालेज के किसी जलसे से लौट रहा था. रोड पर अंधेरा था. मुझे लगा कि कुछ लोग किसी महिला को पीट कर सड़क पर छोड़ गए हैं. गाड़ी की हैडलाइट में दिखा कि महिला या तो बेहोश थी या फिर खत्म हो गई थी. मैं ने देर न की, उसे गाड़ी में डाल कर हौस्पिटल ले गया. मैं प्रीतो जी को पहचानता था. इसीलिए मैं ने उन के घर पर फोन किया तो जवाब आया, ‘प्रीतो तो मर गई.’ फिर भला कौन बताता कि उन के साथ क्या गुजरी है.  प्रीतो तो बताने को तैयार ही न थी. ‘‘मैं संकट में पड़ गया. हौस्पिटल से डिस्चार्ज होने के समय उन्होंने हाथ जोड़ कर रोते हुए कहा, ‘मैं तो दुनिया के लिए मर चुकी हूं. आप मुझे किसी विधवा आश्रम या वृद्धाश्रम में छोड़ दें,’’’ यह बात सुनातेसुनाते पापा की आंखें भर आईं. वे आगे बोले, ‘‘बाद में, मैं ने निश्चय किया कि किसी मजबूर स्त्री को नरक में ढकेलने से अच्छा है कि उसे अपनी शरण में ले लूं.

‘‘धीरेधीरे प्रीतो जी ने बताया, ‘हमारा संयुक्त परिवार था. बड़ेबूढ़ों की मृत्यु हो गई और जवान लड़के जिन को मैं ने बचपन में पालापोसा था, पैसेप्रौपर्टी के पीछे एकदूसरे के खून के प्यासे हो गए. उस दिन मुझे मारपीट कर सड़क पर फेंक गए. उन्होंने सोचा, शायद मैं मर गई हूं. आप न होते तो शायद गाड़ी के नीचे आ कर क्या होता, पता नहीं…’ यह है प्रीतो के जीवन का सच. बोलो बेटा, तुम क्या कहते हो?’’ आलोक शांत था. कुछ सोच कर बोलना शुरू किया, ‘‘पापा, आप ने जो किया वह एकदम सही किया. ठीक किया जो आप ने शरणागत को सहारा दिया. मुझे याद है, बचपन में आप कहानियों के द्वारा बताते थे कि अमर्यादित लोग भ्रष्ट होते हैं. वे छलकपट कर के कुछ समय का सुख पा लेते हैं. किंतु वही भ्रष्टता एक दिन उन को नष्ट कर देती है. दूसरी ओर मर्यादित लोग समाज में हर अत्याचार का विरोध करते हैं. स्त्री अत्याचार के विरोध में  हमारा समाज सदा ही साथ खड़ा रहा है.

‘‘आप ने प्रीतो आंटी को सहारा दे कर एक नेक काम किया है. आप ने कोई दुराचार नहीं किया. बदलते सामाजिक परिवेश के अनुसार जरूरत पड़ने पर परिवर्तन लाना जरूरी है. ‘टूटते संयुक्त परिवार के कारण आज बूढ़ों की दुर्दशा देखी नहीं जाती. यदि आप दोनों साथ रह कर एकदूसरे के दुखसुख में साथ देना चाहते हैं तो इस में समाज को कोई भी आपत्ति नहीं होनी चाहिए. यह तो इस उम्र की एक ज्वलंत समस्या का बड़ा सरल व मधुर तरीका है.’’

आलोक खुश था, ‘‘पापा, मैं आप को ले कर कनाडा में बहुत दुखी रहता हूं पर अब प्रीतो आंटी का साथ होगा तो मुझे भी चिंता न होगी.’’ उस ने आहट पा कर पीछे देखा, प्रीतो आंटी मुसकरा कर आलू के परांठे और लस्सी की ट्रे लिए खड़ी थीं.

पापा ने भी खुशी में कहा, ‘‘अरे, मेरे परांठे…आज तो नई भोर हुई है, पार्टी तो बनती है,’’ और तीनों हंस पड़े.

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June 09, 2022 at 09:00AM

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