Sunday 19 June 2022

मिलीभगत: आखिर उमाकांतजी के साथ क्या हुआ?

प्रिया ने अपना 10वां जन्मदिन ससुराल में मनाया. उस की सास शारदा और जेठानी सीमा ने मिल कर स्वादिष्ठ भोजन तैयार किया था. प्रिया का पति आरक्षित पद पर लगा था और अच्छी कमाई कर रहा था.

खाने में प्रिया के भैयाभाभी ही शामिल हो पाए. उस के पापा की तबीयत ठीक न होने के कारण मां भी नहीं आ पाई थी.

सीमा का छोटा भाई रवि इत्तफाक से लंच के समय आ गया था. उस ने भी सब के साथ भोजन किया.

खाना खाने के बाद सब से पहले प्रिया के ससुर उमाकांतजी सर्दी की धूप का आनंद लेने पास के बाग में चले गए.

रवि कई सालों से बेकार था, इधरउधर घूमता रहता था. उन के जाने के चंद मिनटों बाद रवि विदा हो गया. उस के जाने के करीब 15 मिनट बाद प्रिया ने घर में हंगामा खड़ा कर दिया. प्रिया को घर के अपने रिश्तेदारों द्वारा चोरी करने का अंदेशा था.

‘‘मेरा 20 हजार रुपए का मोबाइल चोरी चला गया है,’’ गुस्से और घबराहट के कारण प्रिया ने लगभग चिल्लाते हुए सब को चौंका दिया था. उसे जेठानी और जेठ पर शक था.

‘‘तुम ने कहीं इधरउधर रख दिया होगा. चोरी जाने की बात मुंह से मत निकालो,’’  उस के पति नीरज ने उसे समझाया. उसे भी अपने बड़े भाई से कोई खास प्रेम न था क्योंकि सब का बचपन अभावों में गुजरा था.

‘‘मैं ने आप के फोन से अपने फोन का नंबर मिलाया है. मेरे फोन की घंटी बज ही नहीं रही है. उस का सिम कार्ड निकाल लिया गया है और यह काम कोई चोर ही करेगा न.’’

‘‘हो सकता है फोन की बैट्री खत्म हो गई हो.’’

‘‘मैं ने सुबह ही उसे फुल चार्ज किया था. फोन चोरी किया गया है और मैं इस मामले में चुप नहीं बैठूंगी. पुलिस में रिपोर्ट करने से भी मैं हिचकिचाने वाली नहीं.’’

प्रिया ने यह धमकी अपनी जेठानी सीमा की तरफ क्रोधित नजरों से देखते हुए दी थी. इस कारण सीमा का पारा फौरन चढऩा शुरू हो गया.

‘‘तुम किसी पर चोर होने का शक कर रही हो, प्रिया?’’ बड़ी कठिनाई से अपने गुस्से को नियंत्रित रखते हुए सीमा ने अपनी देवरानी से सवाल किया.

‘‘जिन पर मुझे शक नहीं है वो हैं मेरे भैयाभाभी, मम्मीपापा और नीरज. ये लोग मेरा फोन नहीं चुराएंगे.’’

‘‘यानी कि तुम्हारी नजरों में मेरे पति और मैं चोर हो सकते हैं?’’

‘‘रवि भी आया था यहां.’’

‘‘मेरे भाई को या हमें चोर कहा तो अच्छा नहीं होगा, प्रिया,’’ सीमा का चेहरा गुस्से से लाल हो उठा.

‘‘चोर का पता पुलिस लगा ही लेगी, भाभी. मुझे इस मामले में आप से कोई बहस नहीं करनी है. वैसे, तुम्हें या भैया को भी मैं चोर नहीं मान रही हूं.

‘‘चोरी मेरे भाई ने भी नहीं की है.’’

‘‘फिर कहां है मेरा मोबाइल?’’ प्रिया के इस चुभते सवाल का सीमा फौरन कोई जवाब नहीं दे पाई थी.

प्रिया के भैया प्रमोद और भाभी वंदना साफ नाराज और परेशान नजर आ रहे थे. पर उन्होंने खामोश रहना ही बेहतर समझा. प्रमोद और वंदना भी साधारण हैसियत के ही थे पर प्रिया अब पति की मोटी वेतनवाली जौब के कारण खुश थी.

दिखावे के लिए नीरज ने प्रिया को डांटना शुरू कर दिया, ‘‘जब संभाल कर नहीं रख सकती हो, तो तुम्हें इतना महंगा मोबाइल खरीदना ही नहीं चाहिए था. हर चीज तुम्हें महंगी और अव्वल दर्जे की चाहिए, पर देखभाल करने के नाम पर तुम बहुत ही लापरवाह हो.’’

‘‘जिन पर विश्वास हो उन्हें चीजें चुराने से कैसे रोका जा सकता है. हां, आगे देखती हूं कि कोई बाहर का आदमी मेरी किसी चीज को कैसे छूता है.’’ प्रिया अपने पति से उलझने को भी तैयार हो गई.

‘‘नीरज, इसे फालतू बोलने से रोको. रवि ईमानदार लडक़ा है. प्रिया का उसे चोर समझना मुझे पसंद नहीं आ रहा है. उस की नौकरी नहीं लगी, तो मतलब यह तो नहीं कि वह चोर है,” नवीन ने अपने छोटे भाई को गंभीर लहजे में हिदायत दी.

इस बार वंदना ने वार्त्तालाप में हिस्सा लेते हुए कहा, ‘‘हम तो अभी यहीं हैं. आप लोग हमारी तलाशी ले लीजिए. बाद में कोई हमें शक के दायरे में घसीटे, यह हमें बिलकुल अच्छा नहीं लगेगा.’’

‘‘जिस की तलाशी होनी चाहिए थी, वह तो जा चुका है,’’ प्रिया की इस बात ने सारे मामले में आग में घी डालने जैसा काम किया था.

सीमा भडक़ कर बोली, ‘‘मुझे तो इस मामले में तुम ननद-भाभी की मिलीभगत साफ नजर आ रही है. मोबाइल के चोरी होने का झूठा इलजाम मेरे भाई पर लगा कर तुम लोग यह लड़ाईझगड़ा क्यों कर रहे हो, मुझे पता है.’’

‘‘क्या कहना चाह रही हैं आप?’’ वंदना सीमा से उलझने को तैयार हो गई.

‘‘जैसे तुम लड़झगड़ कर अपनी ससुराल से अलग हुई थी, वही काम अब प्रिया करे, यही चाहती हो तुम.’’

‘‘आप बिलकुल बेसिरपैर का इलजाम मुझ पर लगा रही हैं. जरा सोचसमझ कर बोलिए, नहीं तो हम इस घर में फिर कभी कदम नहीं रखेंगे.’’

शारदा ने किसी अन्य के बोलने से पहले ही ऊंची आवाज में सब से शांत होने की प्रार्थना की, पर उन की बात पर किसी ने ध्यान नहीं दिया.

सिवा प्रमोद के हर व्यक्ति इस झगड़े में भागीदारी कर रहा था. शिकायत, नाराजगी, गुस्से व नफरत के भावों ने कमरे का माहौल बेहद दूषित कर दिया था. किसी को फ्रिक नहीं थी कि उस वक्त कड़वी, तीखी व जहरीली जबान से वे जो जख्म दूसरों के दिलों पर लगा रहे थे, वह शायद कभी न भरे.

अपनी देवरानी और उस की भाभी से उलझते हुए अचानक सीमा अपने माथे पर हाथ मारते हुए दुखी लहजे में बोली, ‘‘पता नहीं किस मनहूस घड़ी में इस घर का रिश्ता तुम्हारे घर से जुड़ा था. तुम्हारे आने से घर की सुखशांति हमेशा के लिए नष्ट हो गई है.’’

प्रिया से पहले उस के भाई प्रमोद ने इस पर अपनी प्रतिक्रिया प्रकट की, ‘‘इतने ही दुखी हो अगर आप सब मेरी बहन से, तो अलग कर दीजिए उसे घर से. जो अच्छा घर मिला है वह नवीन की वजह से ही है.’’

‘यही तो प्रिया चाहती है,’’ सीमा चुभते लहजे में बोली, ‘‘अपनी पगार के घमंड के कारण इस ने कभी इस घर को अपना घर नहीं समझा. कभी बड़ों की इज्जत नहीं की. यह तो सोच कर ही आई थी कि जल्दी से जल्दी अलग हो जाएगी.’’

‘‘भाभी, सचाई तो यह है कि मैं आप को पहले दिन से ही कभी फूटी आंख नहीं भाई. मुझ से जलती रही हैं आप,’’ प्रिया की आंखों से नफरत के भाव झलके.

प्रमोद ने खड़े हो कर ऊंची आवाज में शारदा से कहा, ‘‘आंटी, आज यह बिलकुल साफ हो गया है कि आप की दोनों बहुएं साथसाथ कभी सुखशांति से नहीं रह पाएंगी. मेरी सलाह है कि आप प्रिया और नीरज को घर से अलग कर दें.’’

‘‘तुम्हारे कहने से दे दी हम ने इन्हें अलग होने की इजाजत,’’ पार्क से लौटे उमाकांत की गंभीर आवाज ने कमरे में उपस्थित हर व्यक्ति को चौंका कर चुप कर दिया था.

उमाकांतजी के पूछने पर प्रिया ने अपने कीमती मोबाइल के चोरी हो जाने की बात उन्हें बता दी. उमाकांत भी बेचारे से थे. उन्हें छोटी सी पैंशन मिलती थी.

‘‘तुम ने रवि पर शक क्यों किया? क्या उस ने पहले कभी हमारे घर से कुछ चुराया है?’’ उमाकांतजी ने सवाल किया.

“रवि के अलावा और कौन चोर हो सकता है?” प्रिया दब कर चुप नहीं रही और अपना शक उन्हें बता दिया. कमाऊ पति की पत्नी का गरूर तो आ ही जाता था. जितनी आमदनी नवीन की थी, घर में किसी की नहीं थी.

‘‘नीरज, क्या इस बात को मुद्दा बना कर तुम घर से अलग होना चाहते हो?’’ उमाकांतजी ने अपने छोटे बेटे से सीधेसीधे यह सवाल पूछ लिया.

नीरज ने झिझकते हुए जवाब दिया, ‘‘पापा, रोजरोज के झगड़ों की जड़ काटने का हमें यह ही तरीका समझ आता है.’’

‘‘इस कारण तुम्हारी मां और मुझे जो दुख होगा, उस पर गौर किया है तुम ने?’’

‘‘पापा, ये लोग आसपास ही तो रहेंगे.’’

‘‘पर दिलों के बीच दूरियां तो बढ़ ही जाएंगी. दोनों भाई साथ रह कर तो एकदूसरे के काम आते ही रहोगे. कभी झगड़ा होगा, तो कभी प्यार से हंसनेबोलने के मौके भी तो मिलेंगे. तुम दोनों नौकरी करते हो. कल को तुम्हारे बच्चों की देखभाल सीमा से बेहतर कौन करेगा? तुम दोनों के कारण यह घर आर्थिक रूप से ज्यादा मजबूत हो सकता है. मेरी समझ से तुम्हारा घर से अलग होना ठीक नहीं है,’’ उन्होंने अपने छोटे बेटे को गंभीर लहजे में साथ रहने के फायदे गिनाए.

नीरज के बजाय उस के साले ने जवाब दिया, ‘‘अंकल, आप की सब बातें ठीक हैं पर सचाई तो यह है कि हर इंसान अपनीअपनी झंझटों में उलझा हुआ है. किसी दूसरे का किसी दूसरे से उस का खून का रिश्ता भी हो सकता है. भला करने का न उस के पास समय है, न इच्छाशक्ति. इस मामले में नीरज मुझ से बात करता रहा है. मेरी मानें तो आप बड़े भाई भाभी को घर से अलग हो ही जाने दें. इसी में सब की भलाई है.’’

‘‘तुम क्या कहते हो, नवीन?’’ उमाकांतजी ने बड़े बेटे से पूछा.

‘‘किसी की बातों में आ कर नीरज को घर नहीं छोडऩा चाहिए,” नवीन ने भाईपना जताते हुए अपनी राय बता दी.’’

‘‘तुम्हारी राय क्या है?’’ वे अपनी पत्नी की तरफ घूमे.

‘‘अगर ये दोनों बहुए प्रेम से मिलजुल कर नहीं रह सकती हैं, तो बड़ी बहू को जाने दो,’’ शारदा का गला भर आया.

कुछ देर सोचविचार करने के बाद उमाकांतजी ने अपना फैसला सुना दिया, ‘‘मेरी समझ से प्रिया अलग होने का पक्का मन बना चुकी है. किसी को जबरदस्ती रोकना रातदिन के क्लेश को निमंत्रण देना होगा. ठीक है प्रिया, तुम दोनों अलग हो सकते हो.’’

वे थकेहारे अंदाज में उठ कर जाने लगे तो नवीन ने परेशान से लहजे में कहा, ‘‘पापा, नया फ्लैट किराए पर लेने के लिए मुझे रुपयों की जरूरत पड़ेगी.’’

‘‘मेरे पास तो बैंक में कुछ है नहीं. और यह बात तुम सब को मालूम भी है. यह मकान भी नीरज की बदौलत है. हम लोग तो पहले कच्चे मकानों में रहते थे.’’

‘‘लेकिन अंकल, यह तो सोचिए कि नवीन नया मकान किराए पर कैसे लेगा,’’ प्रमोद ने उत्तेजित हो कर पूछा.

‘‘यह सब सोचना मेरी समस्या नहीं है,” उमाकांतजी ने रुखाई से जवाब दिया.

सीमा और नवीन को अब आफत नजर आने लगी. नीरज ने कई कंपीटिशनों में आरक्षण का फायदा ले कर ऊपरी कमाई वाली नौकरी पा ली थी. उधर, सीमा को सदा लगता था कि वह जेठानी है और प्रिया या नीरज के एहसानों को मानने को वह तैयार न थी.

उसे समझ आ रहा था कि प्रिया ने यह नाटक खेला है पर वह कर क्या सकती थी. उस ने अपने पुराने मोबाइल से रवि को सारी बात बताई तो रवि को समझ आया कि वह तो मोहरा था. उस ने कहा, ‘‘दीदी, आप 4 दिन का समय मांग लो, फिर मैं देखता हूं क्या कर सकता हूं.’’

रवि कोई गुंडा-चोर तो नहीं था पर उस के दोस्तों में से कुछ शातिर थे. उस ने उन के साथ मिल कर एक प्लान बनाया.

2 दिनों बाद सुबहसुबह दरवाजे पर 5-7 पुलिसमेन खड़े थे. एक ने कहा, ‘‘नीरज कौन है, उसे बुलाओ.”

नवीन बाहर आया और बोला, “इंस्पैक्टर साहब, बात क्या है?”

इंस्पैक्टर अकड़ कर बोला, ‘‘तू कौन?’’

नवीन ने कहा, ‘‘मैं नीरज का बड़ा भाई हूं.’’

इंस्पैक्टर घुडक़ा, ‘‘तो फिर नीरज को भेज न. उस के खिलाफ वारंट है.’’

वारंट का नाम सुनते ही सब के चेहरे पर हवाइयां उडऩे लगीं. नीरज की ऊपर की कमाई थी, यह सब को मालूम था. किस ने शिकायत की होगी, यह पता नहीं चल सकता.

नीरज निकल कर आया. इंस्पैक्टर ने कहा, ‘‘तो तुम हो नीरज. बच्चू चलो अब थाने, आगे की बात वहीं होगी.’’

इतने में नवीन बोल पड़ा, ‘‘इंस्पैक्टर साहब, आप कुछ देर तो रुकिए. इसे कपड़े बदलने दें. नाश्ता कर ले, आप सब लोग भी नाश्ता तो कर लें.’’

इंस्पैक्टर ने कहा, ‘‘हमारा फर्ज तो यही है कि मुजरिम को देखते ही गिरफ्तार कर लें पर तुम कहते हो तो नाश्ता करने देते हैं.’’

सब के लिए नाश्ता बनने लगा. 5 लोग पुलिस वाले थे.

इतने में रवि भागता हुआ आया, पूछा, ‘‘क्या हुआ, आप लोग कौन हैं?’’

इंस्पैक्टर रुखार्ई से बोला, “अबे तू कौन. क्यों कानूनी काम में दखल दे रहा है?”

नवीन ने साले को सारी बात बताई. वह बोला, ‘‘ठीक है, मैं अभी आया.’’ और वह बाहर जा कर बात करने लगा.

फिर अंदर आ कर इंस्पैक्टर से बोला, ‘‘आप रामकुमार यादव, एसआई हैं न.’’

इंस्पैक्टर ने कहा, ‘‘हां, तो?’’

रवि ने फोन इंस्पैक्टर को देते हुए कहा, ‘‘प्लीज बात कर लें.’’

इंस्पैक्टर ने बात शुरू की, फिर वह खड़ा हो कर बात करने लगा. ‘‘जी, जनाब, जी नहीं. जी हां, हमें क्या मालूम था कि अपने लोग हैं. ठीक है जनाब.”

फोन लौटाते हुए उस ने कहा, ‘‘प्रिया कौन है?’’ प्रिया पीछे खड़ी थी. उसे अंदाजा नहीं था कि नीरज की ही मुसीबत आ जाएगी.

‘‘जी, मैं,’’ हकलाती हुई वह बोली.

‘‘तुम्हारा मोबाइल चोरी हुआ है न.’’

‘‘जी हां, 2 दिनों से नहीं मिल रहा. नीरज और प्रिया दोनों एकसाथ बोले.’’

‘‘तो ठीक है, मुझे तलाशी लेने दो. वह भी ऊपर की कमाई का रहा होगा न. तुम दोनों का कमरा कौन सा है?’’

अब तो प्रिया रोने लगी दहाड़े मारमार कर. कभी इस भगवान को याद करती, कभी उस अल्लाह को. उसे यही सिखाया गया था कि पूजा करने से आफत खत्म हो जाती है.

इंस्पैक्टर आराम से परोसे परांठे खाने लगा था. बाकी 4 भी यही कर रहे थे.

थूक अटक कर फिर प्रिया बोली, ‘‘मेरा मोबाइल चोरी नहीं हुआ है.’’ सोफे के नीचे से निकाल कर उस ने दिखाया.

इंस्पैक्टर ने बिना देखे कहा, ‘‘लो भई, हमारा नाश्ता हो गया, तुम्हारा मोबाइल  मिल गया. दहिया साहब की रवि से जानपहचान की वजह से यह मामला भी रफादफा कर देंगे.”

अब नीरज फट पड़ा, ‘‘तुम भी अजीब औरत हो. किसी पर इलजाम लगा कर इतनी साजिश कैसे कर सकती हो. जाओ, रवि से माफी मांगो.’’ नीरज के गुस्से को भांप कर प्रिया फौरन उठी और अपनी जेठानी और रवि से माफी मांगने के लिए उन के कमरे की तरफ  बढ़ गई.

प्रमोद के इशारे पर वंदना भी प्रिया के पीछेपीछे ड्राइंगरूम से अंदर की ओर चली गई. उन के बाहर जाते ही माहौल बदल गया. उमाकांतजी ने अपने दोनों हाथ हवा में विजयी अंदाज में उठाए और प्रसन्न स्वर में कहा, “हमारी योजना सफल हो गई.” प्रमोद अपनी बहन से बोला, “छोटी भाभी की अलग होने की जिद अब ख़त्म हो जाएगी. लेकिन हां, हमआप सभी को इस बात का बहुत ध्यान रखना होगा कि प्रिया या अन्य किसी बाहरी व्यक्ति को हमारी मिलीभगत का पता न चले. मेरा दांव काम आया, यह बड़ी बात है.

उमाकांतजी ने उठ कर प्रमोद को गले से लगाया और आभार प्रकट किया, “बेटा, तुम बहुत समझदार इंसान हो. तुम साथ न देते तो हमारा संयुक्त परिवार टूट जाता. वक्त के साथ रिश्तों में बदलाव आता है. मुझे यकीन है कि आने वाले समय में प्रिया भी हम सब के साथ प्यार व अपनेपन की मजबूत डोर से बंध जाएगी. तुम उस की बिलकुल फ़िक्र मत करना. वह और उस का हित इस घर में पूरी तरह सुरक्षित है.”

उमाकांत और शारदा से आशीर्वाद लेने के बाद प्रमोद नवीन और नीरज से गले मिला. सभी के दिलों में ख़ुशी, संतोष और सुरक्षा को दर्शाने वाली मुसकान उन सभी के होंठों पर नाच रही थी.

The post मिलीभगत: आखिर उमाकांतजी के साथ क्या हुआ? appeared first on Sarita Magazine.



from कहानी – Sarita Magazine https://ift.tt/PoVhxK5

प्रिया ने अपना 10वां जन्मदिन ससुराल में मनाया. उस की सास शारदा और जेठानी सीमा ने मिल कर स्वादिष्ठ भोजन तैयार किया था. प्रिया का पति आरक्षित पद पर लगा था और अच्छी कमाई कर रहा था.

खाने में प्रिया के भैयाभाभी ही शामिल हो पाए. उस के पापा की तबीयत ठीक न होने के कारण मां भी नहीं आ पाई थी.

सीमा का छोटा भाई रवि इत्तफाक से लंच के समय आ गया था. उस ने भी सब के साथ भोजन किया.

खाना खाने के बाद सब से पहले प्रिया के ससुर उमाकांतजी सर्दी की धूप का आनंद लेने पास के बाग में चले गए.

रवि कई सालों से बेकार था, इधरउधर घूमता रहता था. उन के जाने के चंद मिनटों बाद रवि विदा हो गया. उस के जाने के करीब 15 मिनट बाद प्रिया ने घर में हंगामा खड़ा कर दिया. प्रिया को घर के अपने रिश्तेदारों द्वारा चोरी करने का अंदेशा था.

‘‘मेरा 20 हजार रुपए का मोबाइल चोरी चला गया है,’’ गुस्से और घबराहट के कारण प्रिया ने लगभग चिल्लाते हुए सब को चौंका दिया था. उसे जेठानी और जेठ पर शक था.

‘‘तुम ने कहीं इधरउधर रख दिया होगा. चोरी जाने की बात मुंह से मत निकालो,’’  उस के पति नीरज ने उसे समझाया. उसे भी अपने बड़े भाई से कोई खास प्रेम न था क्योंकि सब का बचपन अभावों में गुजरा था.

‘‘मैं ने आप के फोन से अपने फोन का नंबर मिलाया है. मेरे फोन की घंटी बज ही नहीं रही है. उस का सिम कार्ड निकाल लिया गया है और यह काम कोई चोर ही करेगा न.’’

‘‘हो सकता है फोन की बैट्री खत्म हो गई हो.’’

‘‘मैं ने सुबह ही उसे फुल चार्ज किया था. फोन चोरी किया गया है और मैं इस मामले में चुप नहीं बैठूंगी. पुलिस में रिपोर्ट करने से भी मैं हिचकिचाने वाली नहीं.’’

प्रिया ने यह धमकी अपनी जेठानी सीमा की तरफ क्रोधित नजरों से देखते हुए दी थी. इस कारण सीमा का पारा फौरन चढऩा शुरू हो गया.

‘‘तुम किसी पर चोर होने का शक कर रही हो, प्रिया?’’ बड़ी कठिनाई से अपने गुस्से को नियंत्रित रखते हुए सीमा ने अपनी देवरानी से सवाल किया.

‘‘जिन पर मुझे शक नहीं है वो हैं मेरे भैयाभाभी, मम्मीपापा और नीरज. ये लोग मेरा फोन नहीं चुराएंगे.’’

‘‘यानी कि तुम्हारी नजरों में मेरे पति और मैं चोर हो सकते हैं?’’

‘‘रवि भी आया था यहां.’’

‘‘मेरे भाई को या हमें चोर कहा तो अच्छा नहीं होगा, प्रिया,’’ सीमा का चेहरा गुस्से से लाल हो उठा.

‘‘चोर का पता पुलिस लगा ही लेगी, भाभी. मुझे इस मामले में आप से कोई बहस नहीं करनी है. वैसे, तुम्हें या भैया को भी मैं चोर नहीं मान रही हूं.

‘‘चोरी मेरे भाई ने भी नहीं की है.’’

‘‘फिर कहां है मेरा मोबाइल?’’ प्रिया के इस चुभते सवाल का सीमा फौरन कोई जवाब नहीं दे पाई थी.

प्रिया के भैया प्रमोद और भाभी वंदना साफ नाराज और परेशान नजर आ रहे थे. पर उन्होंने खामोश रहना ही बेहतर समझा. प्रमोद और वंदना भी साधारण हैसियत के ही थे पर प्रिया अब पति की मोटी वेतनवाली जौब के कारण खुश थी.

दिखावे के लिए नीरज ने प्रिया को डांटना शुरू कर दिया, ‘‘जब संभाल कर नहीं रख सकती हो, तो तुम्हें इतना महंगा मोबाइल खरीदना ही नहीं चाहिए था. हर चीज तुम्हें महंगी और अव्वल दर्जे की चाहिए, पर देखभाल करने के नाम पर तुम बहुत ही लापरवाह हो.’’

‘‘जिन पर विश्वास हो उन्हें चीजें चुराने से कैसे रोका जा सकता है. हां, आगे देखती हूं कि कोई बाहर का आदमी मेरी किसी चीज को कैसे छूता है.’’ प्रिया अपने पति से उलझने को भी तैयार हो गई.

‘‘नीरज, इसे फालतू बोलने से रोको. रवि ईमानदार लडक़ा है. प्रिया का उसे चोर समझना मुझे पसंद नहीं आ रहा है. उस की नौकरी नहीं लगी, तो मतलब यह तो नहीं कि वह चोर है,” नवीन ने अपने छोटे भाई को गंभीर लहजे में हिदायत दी.

इस बार वंदना ने वार्त्तालाप में हिस्सा लेते हुए कहा, ‘‘हम तो अभी यहीं हैं. आप लोग हमारी तलाशी ले लीजिए. बाद में कोई हमें शक के दायरे में घसीटे, यह हमें बिलकुल अच्छा नहीं लगेगा.’’

‘‘जिस की तलाशी होनी चाहिए थी, वह तो जा चुका है,’’ प्रिया की इस बात ने सारे मामले में आग में घी डालने जैसा काम किया था.

सीमा भडक़ कर बोली, ‘‘मुझे तो इस मामले में तुम ननद-भाभी की मिलीभगत साफ नजर आ रही है. मोबाइल के चोरी होने का झूठा इलजाम मेरे भाई पर लगा कर तुम लोग यह लड़ाईझगड़ा क्यों कर रहे हो, मुझे पता है.’’

‘‘क्या कहना चाह रही हैं आप?’’ वंदना सीमा से उलझने को तैयार हो गई.

‘‘जैसे तुम लड़झगड़ कर अपनी ससुराल से अलग हुई थी, वही काम अब प्रिया करे, यही चाहती हो तुम.’’

‘‘आप बिलकुल बेसिरपैर का इलजाम मुझ पर लगा रही हैं. जरा सोचसमझ कर बोलिए, नहीं तो हम इस घर में फिर कभी कदम नहीं रखेंगे.’’

शारदा ने किसी अन्य के बोलने से पहले ही ऊंची आवाज में सब से शांत होने की प्रार्थना की, पर उन की बात पर किसी ने ध्यान नहीं दिया.

सिवा प्रमोद के हर व्यक्ति इस झगड़े में भागीदारी कर रहा था. शिकायत, नाराजगी, गुस्से व नफरत के भावों ने कमरे का माहौल बेहद दूषित कर दिया था. किसी को फ्रिक नहीं थी कि उस वक्त कड़वी, तीखी व जहरीली जबान से वे जो जख्म दूसरों के दिलों पर लगा रहे थे, वह शायद कभी न भरे.

अपनी देवरानी और उस की भाभी से उलझते हुए अचानक सीमा अपने माथे पर हाथ मारते हुए दुखी लहजे में बोली, ‘‘पता नहीं किस मनहूस घड़ी में इस घर का रिश्ता तुम्हारे घर से जुड़ा था. तुम्हारे आने से घर की सुखशांति हमेशा के लिए नष्ट हो गई है.’’

प्रिया से पहले उस के भाई प्रमोद ने इस पर अपनी प्रतिक्रिया प्रकट की, ‘‘इतने ही दुखी हो अगर आप सब मेरी बहन से, तो अलग कर दीजिए उसे घर से. जो अच्छा घर मिला है वह नवीन की वजह से ही है.’’

‘यही तो प्रिया चाहती है,’’ सीमा चुभते लहजे में बोली, ‘‘अपनी पगार के घमंड के कारण इस ने कभी इस घर को अपना घर नहीं समझा. कभी बड़ों की इज्जत नहीं की. यह तो सोच कर ही आई थी कि जल्दी से जल्दी अलग हो जाएगी.’’

‘‘भाभी, सचाई तो यह है कि मैं आप को पहले दिन से ही कभी फूटी आंख नहीं भाई. मुझ से जलती रही हैं आप,’’ प्रिया की आंखों से नफरत के भाव झलके.

प्रमोद ने खड़े हो कर ऊंची आवाज में शारदा से कहा, ‘‘आंटी, आज यह बिलकुल साफ हो गया है कि आप की दोनों बहुएं साथसाथ कभी सुखशांति से नहीं रह पाएंगी. मेरी सलाह है कि आप प्रिया और नीरज को घर से अलग कर दें.’’

‘‘तुम्हारे कहने से दे दी हम ने इन्हें अलग होने की इजाजत,’’ पार्क से लौटे उमाकांत की गंभीर आवाज ने कमरे में उपस्थित हर व्यक्ति को चौंका कर चुप कर दिया था.

उमाकांतजी के पूछने पर प्रिया ने अपने कीमती मोबाइल के चोरी हो जाने की बात उन्हें बता दी. उमाकांत भी बेचारे से थे. उन्हें छोटी सी पैंशन मिलती थी.

‘‘तुम ने रवि पर शक क्यों किया? क्या उस ने पहले कभी हमारे घर से कुछ चुराया है?’’ उमाकांतजी ने सवाल किया.

“रवि के अलावा और कौन चोर हो सकता है?” प्रिया दब कर चुप नहीं रही और अपना शक उन्हें बता दिया. कमाऊ पति की पत्नी का गरूर तो आ ही जाता था. जितनी आमदनी नवीन की थी, घर में किसी की नहीं थी.

‘‘नीरज, क्या इस बात को मुद्दा बना कर तुम घर से अलग होना चाहते हो?’’ उमाकांतजी ने अपने छोटे बेटे से सीधेसीधे यह सवाल पूछ लिया.

नीरज ने झिझकते हुए जवाब दिया, ‘‘पापा, रोजरोज के झगड़ों की जड़ काटने का हमें यह ही तरीका समझ आता है.’’

‘‘इस कारण तुम्हारी मां और मुझे जो दुख होगा, उस पर गौर किया है तुम ने?’’

‘‘पापा, ये लोग आसपास ही तो रहेंगे.’’

‘‘पर दिलों के बीच दूरियां तो बढ़ ही जाएंगी. दोनों भाई साथ रह कर तो एकदूसरे के काम आते ही रहोगे. कभी झगड़ा होगा, तो कभी प्यार से हंसनेबोलने के मौके भी तो मिलेंगे. तुम दोनों नौकरी करते हो. कल को तुम्हारे बच्चों की देखभाल सीमा से बेहतर कौन करेगा? तुम दोनों के कारण यह घर आर्थिक रूप से ज्यादा मजबूत हो सकता है. मेरी समझ से तुम्हारा घर से अलग होना ठीक नहीं है,’’ उन्होंने अपने छोटे बेटे को गंभीर लहजे में साथ रहने के फायदे गिनाए.

नीरज के बजाय उस के साले ने जवाब दिया, ‘‘अंकल, आप की सब बातें ठीक हैं पर सचाई तो यह है कि हर इंसान अपनीअपनी झंझटों में उलझा हुआ है. किसी दूसरे का किसी दूसरे से उस का खून का रिश्ता भी हो सकता है. भला करने का न उस के पास समय है, न इच्छाशक्ति. इस मामले में नीरज मुझ से बात करता रहा है. मेरी मानें तो आप बड़े भाई भाभी को घर से अलग हो ही जाने दें. इसी में सब की भलाई है.’’

‘‘तुम क्या कहते हो, नवीन?’’ उमाकांतजी ने बड़े बेटे से पूछा.

‘‘किसी की बातों में आ कर नीरज को घर नहीं छोडऩा चाहिए,” नवीन ने भाईपना जताते हुए अपनी राय बता दी.’’

‘‘तुम्हारी राय क्या है?’’ वे अपनी पत्नी की तरफ घूमे.

‘‘अगर ये दोनों बहुए प्रेम से मिलजुल कर नहीं रह सकती हैं, तो बड़ी बहू को जाने दो,’’ शारदा का गला भर आया.

कुछ देर सोचविचार करने के बाद उमाकांतजी ने अपना फैसला सुना दिया, ‘‘मेरी समझ से प्रिया अलग होने का पक्का मन बना चुकी है. किसी को जबरदस्ती रोकना रातदिन के क्लेश को निमंत्रण देना होगा. ठीक है प्रिया, तुम दोनों अलग हो सकते हो.’’

वे थकेहारे अंदाज में उठ कर जाने लगे तो नवीन ने परेशान से लहजे में कहा, ‘‘पापा, नया फ्लैट किराए पर लेने के लिए मुझे रुपयों की जरूरत पड़ेगी.’’

‘‘मेरे पास तो बैंक में कुछ है नहीं. और यह बात तुम सब को मालूम भी है. यह मकान भी नीरज की बदौलत है. हम लोग तो पहले कच्चे मकानों में रहते थे.’’

‘‘लेकिन अंकल, यह तो सोचिए कि नवीन नया मकान किराए पर कैसे लेगा,’’ प्रमोद ने उत्तेजित हो कर पूछा.

‘‘यह सब सोचना मेरी समस्या नहीं है,” उमाकांतजी ने रुखाई से जवाब दिया.

सीमा और नवीन को अब आफत नजर आने लगी. नीरज ने कई कंपीटिशनों में आरक्षण का फायदा ले कर ऊपरी कमाई वाली नौकरी पा ली थी. उधर, सीमा को सदा लगता था कि वह जेठानी है और प्रिया या नीरज के एहसानों को मानने को वह तैयार न थी.

उसे समझ आ रहा था कि प्रिया ने यह नाटक खेला है पर वह कर क्या सकती थी. उस ने अपने पुराने मोबाइल से रवि को सारी बात बताई तो रवि को समझ आया कि वह तो मोहरा था. उस ने कहा, ‘‘दीदी, आप 4 दिन का समय मांग लो, फिर मैं देखता हूं क्या कर सकता हूं.’’

रवि कोई गुंडा-चोर तो नहीं था पर उस के दोस्तों में से कुछ शातिर थे. उस ने उन के साथ मिल कर एक प्लान बनाया.

2 दिनों बाद सुबहसुबह दरवाजे पर 5-7 पुलिसमेन खड़े थे. एक ने कहा, ‘‘नीरज कौन है, उसे बुलाओ.”

नवीन बाहर आया और बोला, “इंस्पैक्टर साहब, बात क्या है?”

इंस्पैक्टर अकड़ कर बोला, ‘‘तू कौन?’’

नवीन ने कहा, ‘‘मैं नीरज का बड़ा भाई हूं.’’

इंस्पैक्टर घुडक़ा, ‘‘तो फिर नीरज को भेज न. उस के खिलाफ वारंट है.’’

वारंट का नाम सुनते ही सब के चेहरे पर हवाइयां उडऩे लगीं. नीरज की ऊपर की कमाई थी, यह सब को मालूम था. किस ने शिकायत की होगी, यह पता नहीं चल सकता.

नीरज निकल कर आया. इंस्पैक्टर ने कहा, ‘‘तो तुम हो नीरज. बच्चू चलो अब थाने, आगे की बात वहीं होगी.’’

इतने में नवीन बोल पड़ा, ‘‘इंस्पैक्टर साहब, आप कुछ देर तो रुकिए. इसे कपड़े बदलने दें. नाश्ता कर ले, आप सब लोग भी नाश्ता तो कर लें.’’

इंस्पैक्टर ने कहा, ‘‘हमारा फर्ज तो यही है कि मुजरिम को देखते ही गिरफ्तार कर लें पर तुम कहते हो तो नाश्ता करने देते हैं.’’

सब के लिए नाश्ता बनने लगा. 5 लोग पुलिस वाले थे.

इतने में रवि भागता हुआ आया, पूछा, ‘‘क्या हुआ, आप लोग कौन हैं?’’

इंस्पैक्टर रुखार्ई से बोला, “अबे तू कौन. क्यों कानूनी काम में दखल दे रहा है?”

नवीन ने साले को सारी बात बताई. वह बोला, ‘‘ठीक है, मैं अभी आया.’’ और वह बाहर जा कर बात करने लगा.

फिर अंदर आ कर इंस्पैक्टर से बोला, ‘‘आप रामकुमार यादव, एसआई हैं न.’’

इंस्पैक्टर ने कहा, ‘‘हां, तो?’’

रवि ने फोन इंस्पैक्टर को देते हुए कहा, ‘‘प्लीज बात कर लें.’’

इंस्पैक्टर ने बात शुरू की, फिर वह खड़ा हो कर बात करने लगा. ‘‘जी, जनाब, जी नहीं. जी हां, हमें क्या मालूम था कि अपने लोग हैं. ठीक है जनाब.”

फोन लौटाते हुए उस ने कहा, ‘‘प्रिया कौन है?’’ प्रिया पीछे खड़ी थी. उसे अंदाजा नहीं था कि नीरज की ही मुसीबत आ जाएगी.

‘‘जी, मैं,’’ हकलाती हुई वह बोली.

‘‘तुम्हारा मोबाइल चोरी हुआ है न.’’

‘‘जी हां, 2 दिनों से नहीं मिल रहा. नीरज और प्रिया दोनों एकसाथ बोले.’’

‘‘तो ठीक है, मुझे तलाशी लेने दो. वह भी ऊपर की कमाई का रहा होगा न. तुम दोनों का कमरा कौन सा है?’’

अब तो प्रिया रोने लगी दहाड़े मारमार कर. कभी इस भगवान को याद करती, कभी उस अल्लाह को. उसे यही सिखाया गया था कि पूजा करने से आफत खत्म हो जाती है.

इंस्पैक्टर आराम से परोसे परांठे खाने लगा था. बाकी 4 भी यही कर रहे थे.

थूक अटक कर फिर प्रिया बोली, ‘‘मेरा मोबाइल चोरी नहीं हुआ है.’’ सोफे के नीचे से निकाल कर उस ने दिखाया.

इंस्पैक्टर ने बिना देखे कहा, ‘‘लो भई, हमारा नाश्ता हो गया, तुम्हारा मोबाइल  मिल गया. दहिया साहब की रवि से जानपहचान की वजह से यह मामला भी रफादफा कर देंगे.”

अब नीरज फट पड़ा, ‘‘तुम भी अजीब औरत हो. किसी पर इलजाम लगा कर इतनी साजिश कैसे कर सकती हो. जाओ, रवि से माफी मांगो.’’ नीरज के गुस्से को भांप कर प्रिया फौरन उठी और अपनी जेठानी और रवि से माफी मांगने के लिए उन के कमरे की तरफ  बढ़ गई.

प्रमोद के इशारे पर वंदना भी प्रिया के पीछेपीछे ड्राइंगरूम से अंदर की ओर चली गई. उन के बाहर जाते ही माहौल बदल गया. उमाकांतजी ने अपने दोनों हाथ हवा में विजयी अंदाज में उठाए और प्रसन्न स्वर में कहा, “हमारी योजना सफल हो गई.” प्रमोद अपनी बहन से बोला, “छोटी भाभी की अलग होने की जिद अब ख़त्म हो जाएगी. लेकिन हां, हमआप सभी को इस बात का बहुत ध्यान रखना होगा कि प्रिया या अन्य किसी बाहरी व्यक्ति को हमारी मिलीभगत का पता न चले. मेरा दांव काम आया, यह बड़ी बात है.

उमाकांतजी ने उठ कर प्रमोद को गले से लगाया और आभार प्रकट किया, “बेटा, तुम बहुत समझदार इंसान हो. तुम साथ न देते तो हमारा संयुक्त परिवार टूट जाता. वक्त के साथ रिश्तों में बदलाव आता है. मुझे यकीन है कि आने वाले समय में प्रिया भी हम सब के साथ प्यार व अपनेपन की मजबूत डोर से बंध जाएगी. तुम उस की बिलकुल फ़िक्र मत करना. वह और उस का हित इस घर में पूरी तरह सुरक्षित है.”

उमाकांत और शारदा से आशीर्वाद लेने के बाद प्रमोद नवीन और नीरज से गले मिला. सभी के दिलों में ख़ुशी, संतोष और सुरक्षा को दर्शाने वाली मुसकान उन सभी के होंठों पर नाच रही थी.

The post मिलीभगत: आखिर उमाकांतजी के साथ क्या हुआ? appeared first on Sarita Magazine.

June 20, 2022 at 10:27AM

No comments:

Post a Comment